☘️ *आयुर्वेद का सही जन्मदाता बुध्द है या धनवंतरी ! आयुर्वेद नायक चरक - सुश्रुत - जीवक - वाग्भट इनका वैद्यकीय कालखंड !*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु मप्र
एक्स मेडिकल ऑफिसर / हाऊस सर्जन
आंतरराष्ट्रीय परिषद के संशोधन पेपर के परिक्षक
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
हमारे छात्र जीवन में आयुर्वेद अध्ययन करते समय *"आयुर्वेद के उद्गाता धनवंतरी"* पढाया जाता था. और धनवंतरी को *"विष्णु का अवतार"* (?) माना गया है. आयुर्वेद का *"उगम ३००० - ५००० साल पहले ही समुद मंथन"* (?) से बताया गया है. और आयुर्वेद के इतिहास ग्रंथ भी उसी का बोध कराते है. उसी छात्र जीवन में मैने एक आयुर्वेद ग्रंथ *"भारत के प्राणाचार्य"* पढी थी. वहां आयुर्वेद के उद्गाता *"अवलोकितेश्र्वर"* (अर्थ - करुणा के साथ संसार को देखने वाला) का वहा जिक्र था. मेरे छात्र जीवन में मैं *"डॉ आंबेडकर आयुर्वेदिक मेडिकोज असोसिएशन"* का अध्यक्ष भी रहा. तब असोसिएशन की ओर से, महाराष्ट्र स्तर पर *"निबंध स्पर्धा"* का आयोजन मैं करता था. सदर निबंध स्पर्धा को बहुत अच्छा प्रतिसाद मिलता रहा और वह निबंध स्पर्धा आयोजन का एक नाम भी था. पाच साल बाद *"मैने पारितोषिक प्राप्त निबंध"* की एक स्मारिका *"अवलोकितेश्र्वर"* भी मेरे संपादन में निकाली थी. अचानक यु ट्युब पर *डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह* इनका *"बुध्द ही बैद्दनाथ (भैषज्यगुरु) है"* यह व्याख्यान सुनने पर, मेरे छात्र जीवन की यादें ताजा हो गयी. वैसे तो *"प्राचीन बुध्दीझम पर संशोधन व्याख्यान / लिखाण"* करनेवाले बहुत ही गिने चुनें मान्यवर कार्यरत है. परंतु प्राचिन परंपरा से जो *"गलत इतिहास का किडा"* हमारे मन मस्तिष्क में डाला गया है, वह हमारे / मान्यवरों के *"संशोधन व्याख्यान / लिखाण"* करने से भी, सहजता से / मन से जानेवाला नही है. दुसरे अर्थों में इस मानसिक व्यवस्था को, हमारी मेडिकल भाषा में,*"मेंटल पॅरालिसिस"* ही कह सकते हैं. अब उस *"गलत इतिहास सर्जरी"* को ओर हम बढते हुये *"इतिहास सर्जरी"* करेंगे.
*"आयुर्वेद का प्राय: उद्गाता धनवंतरी / आयुर्वेद का उगम समुद्र मंथन"* से, यह दोनो भी अलग अलग विचारधारा *"ब्राह्मणी ग्रंथ"* देते है. दूसरी ओर आयुर्वेद को *"अथर्ववेद का उपवेद"* भी कहा गया है. अगर आयुर्वेद को *"अथर्ववेद का उपवेद"* मान लिया गया तो, *"वेद का निर्माण इसवी ११ - १४ शती"* में, भारत के इन *"चार पीठो"* में हुआ है. *ऋंगेरीपीठ* केरल (यजुर्वेद) / *शारदा पीठ* गुजरात (सामवेद) / *ज्योतीर्मठ* उत्तराखंड (अथर्ववेद) / *गोवर्धन पीठ* ओरिसा (ऋग्वेद). महत्वपूर्ण विषय यह कि, *"चार वेद"* यह तो *"कागद"* पर अंकीत है. *"ना कि किसी शिलालेख / ताम्रपट / ताडपत्र पर अंकित है."* और कागज का शोध यह *"इसवी दसवी शती में चायना"* देश में लगा है. *"ऋग्वेद "* की प्रमाणित प्रत *"युनोस्को को सन २००७"* को भेजी गयी. *"रामायण / महाभारत / वेद / उपनिषदे"* आदी सभी ग्रंथ कागज पर अंकित है. दुसरा विषय यह कि, भारत के *"पांच लाख साल"* के प्राचिन मानव की खोपडी *"नर्मदा मॅन"* मध्य प्रदेश में मिली है. जो मानव पुर्णतः नग्न रहते थे. *पुर्व पाषाण काल* (इ. पु. २५००० - १२०००) / *मध्य पाषाण काल* (इ. पु. १२०००- १००००) / *नव पाषाण काल*(इ. पु. १०००० - ३५००) / *कांस्य युग* (इ. पु. ३३०० - १२००) / *लौह युग* (इ. पु. १२०० - ५५०) रहा है. फिर *विष्णु / धनवंतरी* ये *"स्वर्ण आभुषणधारी / कपडेधारी"* कैसे है ? यह प्रश्न है. वास्तविकता यह कि, *"बुध्द का जन्म"* यह कार्बन डेटिंग शोध से, *इ. पु. ६२३* (इ. पु. ५६३ नहीं) बताया गया है. बुध्द काल में *"वंश व्यवस्था"* ही रही थी. जैसे कि - शाक्य वंश / कोलिय वंश / हरयक वंश / मौर्य वंश आदि... बुद्ध काल में *"ब्राम्ही लिपी / धम्म लिपी"* थी. और भाषा यै *"पाली भाषा"* थी. इसवी *"पहिली शती"* / तिसरी बुद्ध संगिती में, बुद्ध धर्म यह *"हिनयान / महायान"* संप्रदाय में विभक्त हुआ. महायान ने *"पाली भाषा पर संस्कार कर "हिब्रू संस्कृत भाषा " का आविष्कार"* किया. लिपी लेकिन *"ब्राम्ही लिपी"* ही थी. उसके बाद पहिली ते पाचवी शती में *"अपभ्रंश भाषा"* का / बारावी शती में *"आदि हिंदी भाषा"* का जन्म हुआ. *"पाली प्राकृत भाषा की अंतिम अपभ्रंश अवस्था ही आदि हिंदी भाषा है,"* इसे मान्यता है. और अठरावी शती में *"आधुनिक हिंदी भाषा"* का उगम हुआ. *देवनागरी लिपी"* का प्राथमिक स्वरुप *"इसवी ११००"* का रहा है, परंतु वह व्यवहार में *"इसवी १७४०"* में आयी. उसके बाद / आज की संस्कृत भाषा यह *"क्लासिकल संस्कृत "* उगम होने के पश्चात / उसकी लिपी यह *"देवनागरी लिपी "* ही रही है.
बुध्द धर्म का पहिली शती में *"महायान - हिनयान"* संप्रदाय में विभक्त होने के बाद / पाचवी शती में महायान ने *"वज्रयान"* संप्रदाय को / एवं आठवी शती में वज्रयान ने *"तंत्रयान"* संप्रदाय को जन्म दिया. इसवी ८५० को *शंकर* नामक व्यक्ती का जन्म होता है. वह *"प्रछन्न बौध्द"* भी कहलाया जाता है. इसवी दसवी शती में *"वज्रयान - तंत्रयान"* संप्रदाय ने, *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* को जन्म दिया. वही शंकर नामक व्यक्ती स्वयं को *"आदि शंकराचार्य"* घोषित कर, उपरोक्त पॅरा में लिखे गये *"चार पीठों"* का निर्माण करता है. महत्वपूर्ण विषय यह कि, आदि शंकराचार्य ये *"महायान बौध्द विहारो"* पर अधिपत्य जमाता है. बुध्द धर्म की *"अवनति की शुरुवात दसवी शती"* से होती है. *"वैदिक धर्म / ब्राह्मण धर्म"* का उदय भी, *"इसवी ११ - १४ वी शती"* में होता है. बुध्द काल में *"ब्राह्मण वर्ग"* अस्तित्व होने का कोई प्रमाण नहीं है. बुध्द काल में *"बम्हण"* शब्द प्रयोग दिखाई देता है. *"ब्राह्मण"* शब्द से उसका कोई संबंध नहीं है. पाली भाषा में *"(र्) / ऋ / श / क्ष / त्र / ज्ञ"* शब्द नहीं है. *"सम्राट अशोक शिलालेख"* में भी, *कौटिल्य - चाणक्य ब्राह्मण"* या कोई *"ब्राह्मण वर्ग"* का उल्लेख नहीं है. मौर्य काल में युनानी राजदुत *मेगास्थनीज* सात साल दरबार में रहा था. उसने *"इंडिका"* ग्रंथ की रचना कि, जहाँ *"मौर्य काल में सात वर्ग"* का जिक्र किया है. वे वर्ग है - *"विद्वान वर्ग / खेतिहार वर्ग / पशुपालक वर्ग / कारागिर वर्ग / सैनिक वर्ग / दुकानदार वर्ग / गरिब वर्ग."* उसके बाद पहिली शती में, इराणी विचारविद *"एरियन"* भी अखंड भारत - पाकिस्तान आता है. वह भी *"इंडिका"* ग्रंथ की रचना करता है. एरियन भी मेगास्थनिज के विचारों को ही मानता है. इसवी ९ - १० वी शती में *"अलबरुनी"* भी उसी इतिहास को संदर्भ कोट करता है. बुध्द काल में *"बम्हण"* शब्द *"विद्वान वर्ग"* अर्थ में / दुसरा भी अर्थ है *"समन / सुनना".* अर्थात बुद्ध काल में *"वैदिक धर्म / ब्राह्मण धर्म"* नहीं था. वह इसवी ११ - १४ वी शती की उपज है. *"सिंधु घाटी सभ्यता"* (इ. पु. ३३०० - १९००) में भी हमे, *"वैदिक धर्म / ब्राह्मण धर्म"* के "स्टेफी चरवाह" का *"DNA"* नहीं दिखाई दिया. उस संस्कृती में *"पहिला बुध्द - ताण्हणकर बुध्द के स्तुप"* के प्रमाण दिखाई देते है.
अब हम *"प्राचिन बौध्द विद्यापीठ"* का इतिहास देखेंगे. *"तक्षशिला विद्यापीठ"* (अखंड भारत - पाकिस्तान) इ. पु. ६०० - ५०० कालखंड है. इसवी ५ वी शती में *"हुण आक्रमणकारीयों"* ने उसे नष्ट किया. वहां सभी विद्या शाखाओं का विद्यार्जन केंद्र रहा था. *जीवक / बिंबिसार / अजातशत्रू / वसुबंधु* समान महान विद्वान, वहां के छात्र रहे है. *"मिथिला विद्यापीठ"* (अखंड भारत - नेपाल) इ. पु. १०० - इसवी ५०० समृध्दी कालखंड रहा है. इसवी १० - १२ वी शती मे, *"तुर्क आक्रमणकारी - बख्तियार खिलजी"* ने उसे नष्ट किया. *"नालंदा विद्यापीठ"* (अखंड भारत - बिहार) इसवी ४२७ कालखंड में बौध्द सम्राट कुमारगुप्त ने स्थापित किया. इसवी १२ वी शती में *तुर्क आक्रमणकारी - बख्तियार खिलजी* ने उसे नष्ट किया था. *"विक्रमशीला विद्यापीठ"* (अखंड भारत - बिहार) आठवी शती काल में बौध्द सम्राट *धर्मपाल* (पाल वंश) स्थापित किया. इसवी १३ वी शती में *"तुर्क आक्रमणकारी - बख्तियार खिलजी* ने उसे नष्ट किया. *"वल्लभी विद्यापीठ "* (अखंड भारत - गुजरात) बौध्द सम्राट *मैत्रक राजवंश* ने, *"हिनयान बौध्द संप्रदाय"* के लिये खास स्थापित किया था. इसवी ८ वी शती में *"अरबों आक्रमणकारीयों"* ने उसे नष्ट किया. *"पुष्पगिरी विद्यापीठ"* (अखंड भारत - ओरिसा) इसवी ३ शती में स्थापित हुआ और आठवी शती में वह नष्ट हुआ. *"जगद्दला विद्यापीठ"* (अखंड भारत - बांगला देश) इसवी ११ - १२ वी शती में बौध्द सम्राट *पाल वंश* ने इसे स्थापित किया. बाद में *"मुस्लिम आक्रमणकारीयों"* ने उसे नष्ट किया. *"सोमपुरी विद्यापीठ"* (अखंड भारत - बांगला देश) इसवी ८ वी शती मे बौध्द सम्राट *धर्मपाल* (पाल वंश) ने स्थापित किया. *"मुस्लिम आक्रमणकारीयों / अशांती"* के कारण उसे नष्ट किया गया. *"कन्याकुब्ज विद्यापीठ"* (अखंड भारत - उत्तर प्रदेश) इसवी ५ - ६ वी शती काल में, *सम्राट हर्षवर्धन* द्वारा इसे स्थापित किया गया. इसवी ११ वी शती में गजना के सुलतान *मोहम्मुद बिन कासिन बख्तियार खिलजी* ने इसे नष्ट किया. *"ओदन्तपुरी विद्यापीठ"* (अखंड भारत - बिहार) इसवी ८ वी शती में पाल वंश के बौध्द सम्राट *गोपाल* द्वारा इसे स्थापित किया गया. इसवी १३ वी शती में *"मोहम्मद बिन कासिन बख्तियार खिलजी* ने उसे नष्ट किया था. *"शारदापीठ विद्यापीठ"* (अखंड भारत - पाकिस्तान व्याप्त कश्मिर) इसवी ६ शती में स्थापित किया गया. *बख्तियार खिलजी* ने नष्ट करने का प्रयास के बाद भी सन १९४७ तक वह रहा. बाद में वह खंडहर में तब्दील हुआ. भारत के इतिहास में *"प्राचिन बौध्द विद्यापीठ"* नष्ट करने का संदर्भ भी, *"मुस्लिम आक्रमणकारी"* बताये जाना / वह एक अर्थ से *"पुर्ण सत्य नहीं"* है. *"वैदिक धर्म / ब्राह्मण धर्म"* उगम - बुध्द धर्म की अवनती / बुध्द धर्म प्रति *"ब्राह्मणी द्वेष"* के कारण, ब्राह्मण वर्ग द्वारा *"मुस्लिम शासक वर्ग* को भडकाना रहा है. वह कालखंड हमें वह प्रमाण दे जाता है.
तथागत बुद्ध के बडे *"रुग्ण सेवा"* का संदर्भ, उन्हे *"भैषज्यगुरु या बैध्दनाथ"* से जोडा गया है. जापान / चीन / तिब्बत में *"बुध्द को Medicine Buddha"* के रुप मे माना जाता है. *Science of Medicine and Surgery in Buddhist India"* Written" By - Meena Talim यह पुस्तक / *"Asceticism and Healing in Ancient India (Medicine in the Buddhist Monastery)"* Written By - Kennyth G Zysk यह पुस्तक *"प्राचीन बौध्द कालखंड का चिकित्सा विज्ञान"* का बोध कराता है. प्राचीन बौद्ध विहारों (मठ) में *"चिकित्सालय"* होने का प्रमाण भी है. उस काल में ३० प्रकार की दवाईयां / ६५ प्रकार के स्वास्थ पेय / ५० प्रकार के रोग, जिसमे १७ प्रकार के विशेष रोग का अध्ययन / ११ प्रकार की सर्जरी / ७१ प्रकार के शल्य उपकरण / महिला वर्ग संबध में, बांझपण - गर्भधारणा - प्रसव - प्रसव दिनचर्या - नर्सिंग - असहायों का निवासस्थान आदि का उल्लेख है. सदर संदर्भ *"चायना देश के कुचा में मिली पांडुलिपी"* जीसे अंग्रेज अफसर एच. बोअर द्वारा खोज होने के कारण, उस पांडुलिपी को *"बोअर पांडुलिपी"* नाम दिया गया है. उस पांडुलिपी में आयुर्वेद नायक *"चरक / सुश्रुत"* इनका संदर्भ है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* इन्होने भी बहुत से *"चिकित्सालय"* का निर्माण किया था. कम्बोडिया का बौध्द सम्राट *जयवर्धन* इन्होने भी १०२ चिकित्सालय / ७९८ औषधालय / १२१ विश्रामगृह का निर्माण, सम्राट अशोक के आदर्श विचारों पर ही किया था. पटना (बिहार) के प्राचिन बौध्द विहार में, *"चिकित्सालय का खंडहर"* मिले हैं. *श्रीलंका"* (सिलोन) में भी, बौध्द विहार में चिकित्सालय के खंडहर मिले हैं.
तथागत बुद्ध द्वारा *"रुग्न सेवा"* किये जाने का संदर्भ, *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* द्वारा लिखित - *"The Buddha and his Dhamma"* यह धम्म ग्रंथ भी कर जाता है. सदर धम्म ग्रंथ में बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ने, *"एक बौध्द भिक्खु जब अतिसार"* व्याधी से पिडित है, तब *"बुध्द स्वयं अपने हाथो से"* उनकी देखभाल करते है. दुसरा संदर्भ राजगृह में *स्थविर वक्कली* का है. तिसरा संदर्भ भग्गी देश के मृगवन वाटिका में *गृहपति नकुलपिता* का है. चवथा संदर्भ कपिलवस्तु के अनिरोद्दान में *महानाम* का भी है. तथागत द्वारा *महारोगी सप्रबुध्द* को दीक्षीत करने का भी संदर्भ है. *तक्षशिला विद्यापीठ* का स्थापना - समृद्धी कालखंड संदर्भ इ. पु. ६०० - ५०० रहा है. बुध्द का कालखंड भी वही है. अत: जापान / चायना / तिब्बत देश के मान्यवर *"बुध्द को Medicine Buddha"* मानते है, उसकी पुष्टी होती है. अर्थात बुध्द ये *"भैषज्यगुरु / बैद्दनाथ"* है / *ना कि* कपोलकल्पित / दंतकथा नायक *"धनवंतरी"* चिकित्सा देवता है. ना ही *आयुर्वेद* का उगम किसी कपोलकल्पित/ दंतकथा *"समुद्र मंथन"* से हुआ है. *"विष्णु वा वेद"* से भी आयुर्वेद को जोडना उचित नहीं है.
*आचार्य जीवक* का कालखंड इ. पु. ५ वी शती है. जीवक ये *सम्राट बिंदुसार के राजवैद* रहे तथा *भगवान बुद्ध के भी निजी चिकित्सक* रहे थे. बुध्द ने स्वयं को मार्गदर्शक माना. *"देव - आत्मा"* इनके अस्तित्व को नकारा है. *"जीवक ये ना ही केवल रोग चिकित्सक (Physician) ही रहे थे, बल्की वे शल्य चिकित्सक (Surgeon) भी थे."* दुसरे आयुर्वेद नायक *आचार्य वाग्भट* इनका कालखंड इ. पु. ५ वी शती बताया जाता है. उन्होंने *"अष्टांग हृदय / अष्टांग संग्रह"* ग्रंथ की रचना की है. उनके बाद और भी वाग्भट हुये है. बारावी शती के वाग्भट ने *"नेमिनिर्वाण"* महाकाव्य की रचना की है. *"आचार्य चरक"* का कालखंड इ. पु. १५० - २०० बताया गया है. आचार्य चरक ये कुषाण काल में, *सम्राट कनिष्क के राजवैद्द"* भी रहे थे. उन्होंने *"चरक संहिता"* ग्रंथ की रचना की. कुछ विद्वान आचार्य चरक को *"आयुर्वेद का जनक"* मानते है. वह बिलकुल गलत है. क्यौ कि, वह कालखंड बयाण करता है. बडा विवाद का विषय है *आचार्य सुश्रुत* जो *"शल्य चिकित्सा के जनक"* माने जाते है. उनका कालखंड इ. पु. ७०० - ६०० बताया गया है. बडा विवाद का विषय यह कि, *"तक्षशिला विद्यापीठ** का निर्माण इ. पु. षटी शती में हुआ. और आयुर्वेद में पहिला स्थान / जन्म भी, ये *"रोग चिकित्सा"* (Physician) रहा है. बाद में *"शल्य चिकित्सा"* (Surgery) का उदय हुआ है. अत: *"आचार्य सुश्रुत"* का कालखंड यह बडा ही विवादित दिखाई देता है. और *आचार्य चरक* तो इ. पु. पहिली शती में रहे है. यह सत्य है कि, *"जीवक / वाग्भट / चरक / सुश्रुत"* यह सभी आचार्य बौध्द थे. अत: इस विवाद पर संशोधन होना बहुत जरुरी है.
जय भीम ! नमो बुध्दाय !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक २६ अक्तुबर २०२५
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