Thursday, 23 October 2025

 ✈️ *द्वितीय महायुध्द में डॉ आंबेडकर साहाब एवं महार रेजिमेंट की सक्रियता तथा कांग्रेस - गांधी - नेताजी की अदुरदर्शी राजनीति !*

       *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु मप्र 

आंतरराष्ट्रीय परिषद के संशोधन पेपर परिक्षक 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


        द्वितीय महायुध्द का कालखंड १५ सितंबर १९३९ से २ अक्तुबर १९४५ तक रहा है. इटली का हुकुमशहा *बेनितो मुसोलिनी* और उसकी प्रेमिका *क्लारा पेटिचा* इनको, २८ अप्रेल १९४५ को, इटली सेना द्वारा भर चौक में, *"गोलियों से भुना"* जाता है. उनके *"लाश को भी चौराह पर लटकाया"* जाता है. यह खबर सुनकर ही, जर्मनी का हुकुमशहा *एडोल्फ हिटलर* ये भी, अपनी प्रेमिका *एव्हा ब्राऊन* के साथ, जमिन के बहुत निचे *"खंदक"* में ही, ३० अप्रेल १९४५ को *"आत्महत्या"* करता है. *"अक्ष राष्ट्र - धुरी राष्ट्र"* की हार हो जाती है. फिर भी द्वितीय महायुध्द यह *"चार माह"* के बाद, *"२ सितंबर १९४५"* को *"मित्र राष्ट्र की विजय"* घोषित कर दिया जाता है. और भारत को आजादी मिलने के लिये *"१५ अगस्त १९४७"* का, हमे इंतजार करना पडता है. हमें विश्व के इस राजनीति को समझना बहुत ही जरुरी है. सन १९४२ में कांग्रेस का *"इंग्रज, भारत छोडो"* आंदोलन असफल रहा. जब कि द्वितीय महायुध्द काल में, उस आंदोलन की कोई औचित्यता ही नहीं थी. *"गुलाम भारत को सन १९४३ को ही आजादी मिलना, क्या संभव विषय था ?"* अगर संभव विषय था तो, फिर भी भारत को आजादी मिलने के लिये, *"चार - पाच साल देरी की राजनीति"* क्या रही थी ? यह प्रश्न मेरे मन में हमेशा का रहा है. *"द्वितीय महायुध्द"* यह मित्र राष्ट्र - *"सोवियत संघ रुस (जोसेफ स्टॅलिन) / अमेरिका ( फ्रेंकलिन डेलिनो रूझवेल्ट) / ब्रिटन (विन्स्टन चर्चिल) / चायना (चियांग कोई शेक - माओ)"* तथा कुछ अन्य देश, बनाम अक्ष राष्ट्र / धुरी राष्ट्र देश - *"जर्मनी (एडोल्फ हिटलर) / इटली (बेनितो मुसोलिनी) / जापान (हिराहितो - झारशाही)"* इनके बिच चल रहा था. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने *"द्वितीय महायुध्द में अगर हिटलर की जीत होती हो तो, उसके अरिष्ट परिणामों को देखकर, मित्र राष्ट्रों को अपना समर्थन घोषित किया था."* तब कांग्रेस - मोहनदास क. गांधी / जवाहरलाल नेहरू / सरदार वल्लभभाई पटेल / नेताजी सुभाषचंद्र बोस इन सभी नेताओं ने, *"डॉ आंबेडकर को गद्दार - देशद्रोही कहां था."* वही कांग्रेस द्वितीय महायुध्द में, *"मित्र देशों को साथ दे या धुरी राष्ट्र को साथ दे,"* इस कश्मोकश में ही उलझी हुयी थी. वे कभी *"हिटलर से मिलती रही थी तो कभी अंग्रेज नेताओं से !"* अंतत: कांग्रेस ने, *"मित्र देशों"* को ही अपना समर्थन घोषित किया. तब कहां गया थी *"कांग्रेस की गद्दारी  - देशद्रोहीता !!!"*

           हमारे कुछ वाम साथी मित्र / कांग्रेस विरोधी भी, *नेताजी सुभाषचंद्र बोस* ये २३ अक्तुबर १९४३ को, *"आझाद हिंद सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री"* बने थे, यह बतानें में कोई शर्म भी महसुस नहीं करते है. साथ ही वे *"जापान / जर्मनी / इटली / थॉयलंड / बर्मा / क्रोएशिया / फिलिपिन्स"* इन देशों का समर्थन भी बता जाते है. सुभाषचंद्र बोस के साथ *शाहनवाज खान / लक्ष्मी सहगल / पी के सहगल* आदि लोगों का, वे संदर्भ भी कर जाते है. नेताजीं ने *"आझाद हिंद सेना"* का हेडक्वार्टर यह *"रंगुन"* (बर्मा) बनाने का जिक्र कर, *"कोईमा"* (आज के नागालॅंड की राजधानी) पर आक्रमण करने का, वे संदर्भ भी कर जाते है. *"मेरा स्वयं का असम / नागालॅंंड / मणिपूर / मेघालय "* इन राज्यों में, कुछ कारणवश दौरा रहा है. मैने उन स्थानों को भी भेट दी है. *"दक्षिण कोरिया"* इस मेरे प्रवास में, *"युद्ध स्मारक"* को भी मेरी भेट रही है. द्वितीय महायुध्द में *"महार रेजिमेंट"* (पहिली - तिसरी बटालियन) द्वारा उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में / *"दुसरी - २५ वी महार बटालियन"* द्वारा *"बर्मा - कोईमा अभियान"* / नेताजी बोस के *"आझाद हिंद सेनाओं"* को *"चने चबाना / खदेड भगाना"* आदी विषयों पर, फिर कभी मैं चर्चा करुंगा ही. फिलहाल *नेताजी सुभाषचंद्र बोस - कांग्रेस कार्यकाल"* इस विषय पर चर्चा करना, बहुत ज्यादा जरुरी है.

           सुभाषचंद्र बोस इनका संबंध *"भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस"* इससे रहा है. वे १८ जनवरी १९३८ से २९ अप्रेल १९३९ काल तक *"कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष"* रहे थे. वैसे तो सुभाषचंद्र बोस इनका *"कांग्रेस अध्यक्ष"* चुनकर आना, यह *मोहनदास गांधी* इनकी बडी *"राजनैतिक करारी हार"* रही थी. अंतत: सुभाषचंद्र बोस इन्हे *"कांग्रेस का अध्यक्ष"* पद तथा कांग्रेस को छोडने की परिस्थिती बनायी गयी थी. फिर सुभाषचंद्र बोस इन्होने तो *"अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लॉक"* का गठण कर, उनका *"राष्ट्रिय अध्यक्ष"* यह कार्यकाल २२ जुन १९३९ से १६ जनवरी १९४१ तक रहा. *"भारतीय युद्ध बंदीओं"* की एक सेना स्थापित कर *"४ जुलै १९४३ से १८ अगस्त १९४५"* तक वे *"आझाद हिंद सेना"* के प्रमुख (मृत्यू तक) रहे. सुभाषचंद्र बोस इनका इन तिनों भी संघटन का कार्यकाल समजना बहुत जरुरी है. इसके पहले *सुभाषचंद्र बोस* इन्होने *सरदार वल्लभभाई पटेल* इनके साथ जुडकर, *मोहनदास गांधी* इनके विरोध में, सन १९३३ को *"इंडिया टुडे"* में एक संयुक्त निवेदन *"व्हियन्ना"* से आने के बाद प्रकाशीत करने की चर्चा भी है. वह निवेदन रहा है - *"We are clearly of the opinion that, as a political leader Mahatma Gandhi has failed. Gandhi is an old useless piece of furniture. He has done good service in his time but he is an obstacle now."* सन १९३९ का कालखंड यह *"द्वितीय महायुध्द"* का भी है, यह हमें समजना होगा. अर्थात सुभाषचंद्र बोस भारत आजादी में ४ जुलै १९४३ से जुडे दिखाई देते है.

             सुभाषचंद्र बोस इनका *"जापान"* को जाना / द्वितीय महायुध्द में *"अक्ष राष्ट्र - धुरी राष्ट्र - जापान / इटली / जर्मनी"* इनके साथ मिलकर, *"भारत पर आक्रमण"* करना यह बहुत बडी मुर्खता थी. क्यौं की *"जापान"* देश ने *कोरिया* पर अधिपत्य जमाया था. *"चायना"* पर भी वो आक्रमण करने की योजना बना चुका था. वही *"जर्मनी"* ने *रशिया* के साथ मिलकर ही, *"पोलंड"* देश पर अधिपत्य जमाया हुआ था. आगे जाकर *"जर्मनी"* ने रशिया पर ही अधिपत्य करने की योजना बनायी. *"जर्मनी"* देश भी उसी दिशा में जा रहा था. अंततः *"रशिया"* द्वारा *"मित्र देशों"* के पक्ष में आना / *"रशिया / अमेरिका / ग्रेट ब्रिटन / चायना"* इन देशों का एक साथ मिलकर, *"द्वितीय महायुध्द"* करने की राजनीति बनाना, यह वक्त की पुकार थी. गुलाम भारत पर *"ग्रेट ब्रिटन"* (अंग्रेज) का कब्जा होने पर भी, *हिटलर / मुसोलिनी / हिराहितो* इनके शासन प्रणाली से बढकर, *"अंग्रेज शासन"* एक तरह से ठिक था, यह *डॉ आंबेडकर* समज गये थे. एक ओर *"अंग्रेज की गुलामी"* के बाद, *"हिटलर की हुकुमशाही / जापान की झारशाही"* का भी भारत पर खतरा था. *"साम्राज्यवाद विस्तार "* की राजनीति थी. परंतु *"कांग्रेस - गांधी - नेहरू - सुभाषचंद्र बोस"* इन नेताओं में, यह दुरदर्शिता दिखाई नहीं देती थी. और उनका वह *"भटकाव"* भारत के लिये बडा खतरा था. वही *"सुभाषचंद्र बोस"* का जापान के *"रेन्कोजी"* शहर में रहना / सन १९३७ में गुप्त रुप से *एमिली शेकल* इनसे *"शादी"* करने के बाद भी उसे *"सार्वजनिक ना करना"* / उस विवाह से *"अनिता बोस फाफ"* लडकी का जन्म हो जाना / जापान के ताईहोकु विमान अड्डे से उडाण भरकर, *"विमान दुर्घटना में १८ अगस्त १९४५ को मृत्यू"* हो जाना, यह एक बडी ट्रजेडी रही है.

             *"गुलाम भारत"* (?) की सामाजिक स्थिती तो बहुत ही बदतर थी. कांग्रेसी नेताओं को *"सत्ता प्राप्ती का सपना"* ही दिखाई देने लगा था. *"जवाहरलाल नेहरु / वल्लभभाई पटेल / डॉ राजेंद्र प्रसाद"*  ये कांग्रेसी प्रमुख नेता  *"प्रधानमंत्री"* बनने का बडी चाह पाले हुये थे. वही *मोहम्मद अली जिना* भी अपनी मंजील खोज रहा था. *सुभाषचंद्र बोस* भी आझाद हिंद फौज माध्यम से *"प्रधानमंत्री"* बनने की आस में थे. हर नेता स्वयं का स्वार्थ देख रहा था. *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* तो अपने *"समाज का हित"* देख रहे थे. बाबासाहेब की वेदना भी थी, और उन्होंने *मोहनदास गांधी* को पुछा भी था, *"मिस्टर गांधी, व्हेअर इज माय होम लॅंड ?"* वही *"क्रांतिकारी वर्ग"* देश को आझाद होना देख रहा था. *"अंग्रेज शासन"* तो, भारत के इस स्थिती को बेहतर जानता था. *जवाहरलाल नेहरू* इनके लार्ड माऊंटबॅटन की पत्नी  *लेडी - पामेला माऊंटबॅटन* से गहरे संबंध भी रहे थे. अत: राजनीति की दिशा तय करना अंग्रेज भलीभाती जानते थे. *मोहनदास गांधी* इनके बारे में क्या कहे ? आगे जाकर कांग्रेस ने उन्हे *"राष्ट्रपिता"* घोषित कर दिया. भारत के *"हिंदु - मुसलमान - अछुत"* यह झगडा उफान पर था. यही कारण रहे है कि, *"भारत को आजादी मिलने में चार - पाच साल की देरी"* हुयी है. कितना शर्मसार यह विषय है. मुसलमान वर्ग ने अपने लिये *"पाकिस्तान"* अलग देश ले ही गया. *"अछुत"* तब भी अपने अधिकारों के लिये लढ रहा था. आज भी वह लढ रहा है.  *"महार रेजिमेंट"* ने द्वितीय महायुध्द में, *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इनके मार्गदर्शन में, अपना पुरा दायित्व निभाया था. फिर भी द्वितीय महायुध्द के बाद *"महार रेजिमेंट"* को भंग कर दिया गया था. हम इसे क्या कहे ? आगे जाकर *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इनके प्रयासों से मध्य प्रदेश के *"सागर"* में, इसका मुख्यालय बनाया गया. *महार रेजिमेंट* ने भारत को *दो सेना प्रमुख* - जनरल कृष्णा राव / जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी दिये है. यही नहीं *"एक परमवीर चक्र / एक अशोक चक्र / नव पीव्हीएसएम /चार महावीर चक्र / चार किर्ती चक्र / पद्मश्री "* और ऐसे अनगिणत सजावट राष्ट्रिय पुरस्कार भी पाये है. आज भारत की *"सामाजिक स्थिती,"* उस काल से भी बहुत बदतर है. भारत की *"राजनीति"* भी ??? सवाल है - *"विकास भारत ! समृध्द भारत !!! कुशाल भारत !!!!!"* बनाने का.....


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपूर दिनांक २३ अक्तुबर २०२५

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