Thursday 29 February 2024

 ✍️ *बिन- अकल (घुटना सिख) एड दिनेश सिंघ के - डॉ. आंबेडकर सीक्रेट क्रिश्चियन (छुपे हुये इसाई) इस छुटे लिखाण को करारा जबाब....!!!*

     *डॉ. मिलिंन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       अकसर सिख समुदायों पर, जोक क्यौं लिखी जाती है. या सिख समुदायों की अकल घुटनों में रहती है. यह जो अकसर बातें चर्चा में होती है, इसमे तथ्य कितना है, यह संशोधन का विषय है. परंतु दिनेश सिंघ यह निश्चित ही *"घुटना सिख"* है, यह दिखाई देता है. या कहे तो, सस्ते में प्रसिध्दी पाने की ख्यायिश हो. मेरे पिछले लेख में, *"मैने सिखों की देश गद्दारी, हारे हुये सैनिक, उनकी औरतों का ज्योहार (सती जाना) और जो औरते सति नहीं गयी हों, उनका अंग्रेजो को सरेंडर होने का जिक्र किया था."* किसी भी समुदायों का बदनामीकरण करना उचित नहीं है. परंतु सिख धर्मगुरु दिनेश सिंघ के बाबासाहेब आंबेडकर विरोधी लिखाण को, रोक ना लागते हो तो, सिख समुदायों की पुरी चिरफाड करना, यह लाजमी हो गया है. और मेरे पढाई में उच्च वर्गीय सिखों का, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर विरोधी रवय्या का, और एक कारण सामने आ गया है. *"बाबासाहेब ने अछुत सिखों के लिये, पंजाब की चालिस लाख एकर भुमी में सें, चार लाख एकर भुमी मिल जाने का प्रयास किया था. जिससे अछुत सिखों का जीवन स्तर सुधर जाएं."* और इसका पंजाब प्रांत के (जाट सिख) मंत्री *प्रतापसिंह कैरो* ने, इसका खुले तौर पर विरोध किया था. क्यौं कि, मंत्री वह जमिन अपने रिस्तेदारों को, वो देना चाहता था. यह जानकारी बाबासाहेब के बहुत ही करिबी तथा पंजाब से ही जुडे हुये *सोहनलाल शास्त्री* इन्होने, अपनी पुस्तक *"डॉ. आंबेडकर के संपर्क में पच्चीस वर्ष"* में लिखी हुयी है. इसी के साथ ही पंंजाब के आंबेडकरी कृतीशील मान्यवर *एल. आर. बाली* इनकी लिखी हुयी पुस्तक - *"डॉ. आंबेडकर जीवन और मिशन"* इसमें सें, कुछ संदर्भ दुंगा. अब हम दिनेश सिंघ के लिखाण का चिरफाड करेंगे.

     घुटना सिख - *दिनेश सिंघ* ने, हमारे मार्गदाता *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इन पर, *"छुपे हुये इसाई होने का"* आरोप लगाया है. इस आरोप के संदर्भ में दिनेश सिंघ ने, बाम्बे मेथाडिस्ट चर्च के पाद्री *जैरल वासकोम पिकेट* इनकी लिखी गयी एक पुस्तक *"My Twenties Century Odyssey"* के पेज न ३२, १५५, १५६ का संदर्भ दिया है. और दिनेश सिंघ अपने लेख में कहता है की, *"पाद्री जैरल वासकोम पिकेट ने कहा कि, बाबासाहेब १९३५ में येवला में धर्मांतरण करने की घोषणा के बाद, उन्हे आंबेडकर इनको मिलने का आग्रह (इसाई वरिष्ठों ने) किया गया. पिकेट १९३५ में बिशप और १९३६ में बाम्बे क्षेत्र में नियुक्त किये गये थे. पिकेट ने कहा कि, बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने उन्हे शेंकडों किताबे उधार लिये थे. और दो साल बाद आंबेडकर जी ने, पिकेट से "गुप्त रूप से बाप्तिस्मा करने को" कहा था. परंतु पिकेट यह करने को सहमत नहीं थे. आंबेडकर साहाब ने, हर साल युवा पुरुषों / महिलाओं को, प्रशिक्षण का खर्च उठाने के लिये, मनाने की कोशिश की थी. ता कि, वे उनके अनुयायीओं के पाद्री बन सके. आंबेडकर नहीं चाहते थे कि, उनके शिष्यों को चर्च में, अनुशासन के अधिन रखा जाए."* इसके साथ ही बिशप जैरल वासकोम पिकेट के शिष्य *आर्थर जी. मैकफी* इनकी लिखी गयी पुस्तक *"The Road to Delhi"* इस पुस्तक का संदर्भ देते हुये कहा कि, *"मेथाडिस्ट चर्च के बिशप जैरल वासकोम पिकेट और डॉ आंबेडकर ये करिबी दोस्त थे. बाबासाहेब दो बार पिकेट से, "गुप्त रुप से बाप्तिस्मा देने को" कहा था. परंतु पिकेट ने मना कर दिया. आंबेडकर एक विधुर इसाई महिला मिशनरी से, शादी करने के इच्छुक थे. जिसने उनकी कई तरह से मदत की थी. उसने उसके बार बार के प्रस्तावों को कभी स्वीकार नहीं किया. आंबेडकर साहाब ने एक विधवा ब्राह्मण से विवाह तय कर दिया."* यही नहीं दिनेश सिंघ यह कह गया कि, डॉ आंबेडकर *"मुस्लिम धर्म"* स्वीकार करना चाहते थें, परंतु गांधी ने मना कर दिया और कहा कि, *"यदी आप मुस्लिम बनेंगे तो, आप पुना पेक्ट वादों को भुल जाओ."*  हिंदु महासभा के *डॉ. बी. एस. मुंजे*  से १८ जुन १९३६ को, राजगृह में एक सिक्रेट पेक्ट हुआ था. *सिख प्रतिनिधीयों* ने डॉ आंबेडकर को *"विदेश जाने"* के लिये, रुपये भी दिये थे.

     बिन-अकल *दिनेश सिंघ* के लगायें गये आरोपों के उत्तर की ओर हम बढेंगे. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर साहाब ने येवला, नासिक में, ३१ मई १९३५ को धर्मांतरण की घोषणा की थी. और कहां था कि, *"मैं हिंदु धर्म में जन्मा जरुर हुं. परंतु हिंदु धर्म में रहकर कभी मरुंगा नहीं."* बाबासाहेब आंबेडकर के इस घोषणा के बाद, *मेथाडिस्ट एपिस्कोपल चर्च* मुंबई के बिशप *थाबर्न ब्रडले* इन्होने डॉ आंबेडकर इनके धर्मांतरण घोषणा का स्वागत किया. तथा कहा कि, *"पिछले वर्ग के लोग जीवन में नया मार्ग प्रशस्त करना चाहते है तो, उन्होंने इसाई धर्म को ग्रहण कर लेना चाहिये."* मुस्लिम धर्म के नेता और विधानसभा सदस्य *के.‌ एल. गौवा* ने, बाबासाहेब आंबेडकर को एक तार भेजकर कहा कि, *"भारत के समस्त मुसलमान उनका और अछुतों का  इस्लाम धर्म में स्वागत करने के लिये उतावले है."* महाबोधी सोसायटी सारनाथ के सचिव ने बाबासाहेब आंबेडकर को एक तार भेजकर कहा कि, *"सोसायटी डॉ आंबेडकर और उनके अनुयायीओं बुध्द धर्म अपनाने का निमंत्रण देती है."* अमृतसर हरिमंदिर साहाब के उपप्रधान *सरदार दिलिप सिंह दोआबिया* ने तार भेजकर प्रार्थना कि, *"वे सिख धर्म का स्वीकार कर ले."* उस समय बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनका झुकाव *"सिख धर्म"* की और था. दिनांक १३ जनवरी १९३६ को, बाबासाहेब डॉ सोलंकी को लेकर, एक दिवाण और किर्तन में भाग लिया था. दिनांक ११ - १२ -  १३ अप्रैल १९३६ को, बाबासाहेब ने अमृतसर में *"सिख मिशनरी कांन्फेंन्स"* में सहभाग लिया था.  और *"जुलुस में प्रधान के साथ शाही बग्गी पर विराजमान थे."*  यही नहीं प्रधान सन्त *हुक्म सिंह* ने, बाबासाहेब के सन्मान में, एक शानदार भोजन का आयोजन किया था. उसी समय लाहोर (पंजाब प्रांत) में *"जात पात तोडक मंडल"* की एक अपनी *"कांन्फेंन्स"* बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनकी अध्यक्षता में होनी थी. वह कांन्फेंन्स क्यौं रद्द हुयी ? इस विषय पर, मैं फिर कभी लेख लिखुंगा. बाबासाहेब आंबेडकर के इस घोषणा सें, हिंदु नेता बहुत ही परेशान हो गये थे. *गांधी जी* ने भारत के करोडपती *बालचंद हिराचंद / जमनालाल बजाज* इनको बाबासाहेब आंबेडकर इनके पास भेजा. हर प्रकार का प्रलोभन दिया. परंतु बाबासाहेब हिंदु धर्म त्यागने के अपने निश्चय से, टस से मस नहीं हुये. आखिर हिंदु महासभा के नेता *डॉ ‌मुंजे* ने, एक आंदोलन चलाया. और विनंती कि *"अछुतों ने यदी धर्मांतरण करना ही है, तो वे मुसलमान या इसाई बनने के स्थान पर, सिख धर्म का स्वीकार कर ले."* यह सभी संदर्भ बाबासाहेब आंबेडकर इनके जीवनी लेखक *एल. आर. बाली* इनके पुस्तक में वर्णीत है. वही बाबासाहेब आंबेडकर के बहुत ही करिबी *सोहनलाल शास्त्री* इन्होने एक लेख लिखकर बाबासाहेब को निवेदन किया कि, *"वे अछुतों को सामुहिक तौर पर, सिख धर्म में दीक्षित होने का आदेश ना दे. जिस रोग के कारण ये हिंदु धर्म से पिण्ड छुडाना चाहते है, वह सिखों में भी मौजुद है. भले ही उस रोग का किटाणु सिखों के, धर्म ग्रंथ में ना हो, लेकीन सिखों में मौजुद है."*  बाबासाहेब आंबेडकर इनकी *पटियाला* (पंजाब) के राजा *भुपेंद्रसिंग* इन्होने शाही मेहमानी की थी. उस समय लाहोर के *सरदार महतावसिंग* भी उपस्थित थे. महाराज ने बाबासाहेब को *"पटियाला का प्रधानमंत्री"* बनने का प्रलोभन दिया था. तब बाबासाहेब ने महाराज को कहा था कि, *"तुम्हारे धर्म में मुझे और मेरे लोगों को, अपने अंदर लाने की कोई चीज ही नहीं है. महाराज साहाब, मैं लालच और लोभ में फसनेवाली मछली नहीं हुं."* वही सरदार महतावसिंग जब वेळ लाहोर लौटे थे, तब उनके सहकारी ओं ने इस संदर्भ में पुछा था, तब सरदार महतावसिंग कहते हैं कि, *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर तो अजिब स्वभाव के व्यक्ती है. उन्हे तो कोई सांसारिक लोभ लालच नहीं खीच सकता."* हिंदु महासभा के नेता *भाई परमानंद* कहते है की, *"आंबेडकर में कितने ही दोष क्यौं ना हो, किंतु वे न तो बेईमान है, न ही खुदगर्ज, न ही लालची."*(डॉ आंबेडकर इनके संपर्क में पच्चीस वर्ष‌‌‌ - इस पुस्तक सें लिये गये संदर्भ) यही नहीं *हैदराबाद के निजाम* बाबासाहेब आंबेडकर को, *"मुस्लिम धर्म स्वीकार हेतु चार करोड का प्रलोभन देते है."* फिर भी बाबासाहेब उन सभी प्रलोभन को ठुकरा देते है.

       उपरोक्त पैरा संदर्भ में मेथाडिस्ट चर्च के *बिशप थाबर्न ब्रडले* का उल्लेख दिखाई देता है. ना कि *बिशप जैरल वासकोम पिकेट* इस महाशय का. दुसरी बात यह कि, वे नये नये बने हुये बिशप दिखाई देते है. अत: वे बाबासाहेब आंबेडकर समान पहाड से, इस संदर्भ में बातें करेंगे, यह विषय हजम होनेवाला नहीं है. वही बिशप जैरल पिकेट से *"गहरी मित्रता"* रही थी, इस संदर्भ के कोई इतिहास सबुत नहीं दिये गये. और *बिशप जैरल वासकोम पिकेट* की एक किताब - *"My Twenties Century Odyssey"* इसका प्रकाशन सन १९८० का है. वही बिशप जैरल वासकोम पिकेट का शिष्य *आर्थर जी मैकफी* इनकी लिखी गयी पुस्तक *"The Road to Delhi"* इसका प्रकाशन दिनांक ३१ अक्तुबर २००५ का रहा है. *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनकी *धम्मदीक्षा १४ अक्तुबर १९५६* में हुयी थी. इसके पहले बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ने सन १९३३ को, मुंबई स्थित अपने घर का नाम *"राजगृह"* रखा था. जो बुध्द संस्कृती का प्रतिक है. यही नहीं, मुंबई में स्थापित कॉलेज का नामकरण *"सिध्दार्थ कॉलेज"* (१९४६) तथा औरंगाबाद में स्थापित कॉलेज का नामकरण *"मिलिंद कॉलेज"* (१९५०) रखते है. *"भारतीय बौद्ध जनसंघ"* की स्थापना सन १९५१ में करते है. *"The Buddhist Society of India"* इस धार्मिक संघटन की स्थापना १९५४ में, और पंजीकरण सन १९५५ में करते है.  *"The Buddha and His Dhamma"*  इस पुस्तक का लिखाण सुरुवात, सन १९५१ से करते है और १९५६ को उसे पुर्ण करते है. यही नहीं बाबासाहेब आंबेडकर *श्रीलंका* में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (१९५०) / *बर्मा* (म्यानमार) में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (सन १९५४) तथा *नेपाल* में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (१९५६) में सहभाग लेते है. और ६ दिसंबर १९५६को हमें छोड जाते है. उनका *"महापरिनिर्वाण"* हो जाता है. बाबासाहेब आंबेडकर सभी कार्यक्रम जाहीर दिखाई देते है. और बिशप जैरल वासकोम पिकेट (१९८०) या उसका शिष्य आर्थर जी मैकफी (२००५) में पुस्तक लिखकर, बाबासाहेब आंबेडकर से घनिष्ठ मैत्री दिखाकर, उनपर आरोप लगाते है. यह कैसे विश्वसनीय विषय हो सकता है ?  यह अहं प्रश्न है. अगर बिन-अकल *दिनेश सिंघ* को, किसी व्यक्तीने उसकी *"मां के मृत्यु के उपरांत"* यह कह दे की, *"दिनेश सिंघ के मां सें उस व्यक्ती के नाजायज संबंध थे, और दिनेश सिंघ उसकी औलाद है."* तो क्या दिनेश सिंघ उस कथन को स्वीकार करेगा ? या *अंग्रेजो से उसकी मां के अनैतिक संबंधो से, दिनेश सिंघ का जन्म हुआ है.* इस प्रकार की बातों पर, दिनेश सिंघ क्या विश्वास करेगा ? इस तरह की जलील देना भी ठिक नहीं है. परंतु कभी कभी कडवे घोट पिलाना भी जरुरी हो जाता है. क्यौं कि, दिनेश सिंघ एक महापुरुष पर आरोप लगा रहा है.

        सिख धर्म यह हिंदु संस्कृती का प्रतिक है.  इसलिए शंकराचार्य / डॉ कुर्तकोटी / डॉ. मुंजे भी बाबासाहेब आंबेडकर को *"सिख धर्म की ओर"* जाने का दबाव बना रहे थे.‌ वही डॉ आंबेडकर उस समय में "Mr. Gandhi and Emancipation of the Untouchables / What Congress & Gandhi have done the Untouchables"  समान ग्रंथ लिखते है. *"पुना पेक्ट"* के समय गांधी रोने की स्थिती में दिखाई देता था. इस संदर्भ पर चर्चा करना, हम ठिक भी नहीं समझते. वही *"भीमा कोरेगाव का इतिहास"* यह महार समुदायों के शौर्य का इतिहास है. एक एक महार सैनिकों ने, छप्पन पेशवा सैनिकों को मृत्यु के घाट उतार दिया था. इसलिए *"तेरे समान छप्पन देखे"* यह कहावत प्रचलित है. *"जालियनवाला बाग हत्याकांड"* में, उच्च वर्गीय सिखों ने, अछुत वर्ग सिखों सें दगाबाजी की थी. अत: उच्च वर्गीय सिखों का इतिहास देश गद्दारी का रहा है. हां, यह सत्य है की, बाबासाहेब की एक *विदेशी विदुषी"* से मैत्री थी. और बाबासाहेब आंबेडकर अपनी लिखी एक किताब, उसको अर्पण की है. *हिंदु महासभा के डॉ मुंजे हो, गोळवलकर हो, सुभाषचंद्र बोस हो,* और भी कोई हो, वे सभी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पास सहकार्य की अपेक्षा मिलने आते थे. लेकीन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने, कोई भी बातें देश विरोधी नहीं की, ना ही अपने लोगों से गोपनीय रखी. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ख्रिस्ती या मुस्लिम धर्मांतरण संदर्भ में कहते है की, *"Conversion to Islam or Christianity will denatization the Depressed Classes."* पिछले दस - बारा दिनो सें, कार से ही मेरा प्रवास *खामगाव / नासिक / इगतपुरी / मुंबई / वर्धा / आर्वी / कारंजा / भंडारा / साकोली / उमरेड* आदी जगहों पर, पर्यटन तज्ञ *डॉ उमाजी बिसेन / इंजी. विजय बागडे* इनके साथ रहा है. भंडारा / साकोली / कामठी / चिंचोली प्रवास में, फिल्म / सिरीयल अभिनेत्री *पी. मिनाक्षी* हमारे साथ रही थी. इतने सारे मेरे व्यस्तता के बीच, मैं यह लेख लिखने की चेष्टा की है. अंत में मेरे कविता की कुछ पंक्तिया लिखकर, इस मेरे लेख को, मैं  विराम देता हुं -

*कभी तो वफा़ करो, अपने ही दिलों से*

*झुठ मक्कारी की साथ, युं कब तक लोगें*

*निंद पाने के लिये, बसं यें सकुन जरुरी है*

*यें सुख का जरीया, केवल वही तो बसा है...*


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नागपुर, दिनांक २९ फरवरी २०२४

Sunday 25 February 2024

 .🎒 *जीवनातील ओझ्यांचा प्रवास...!*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपूर

       मो. न. ९३७०९८४१३८


ह्या जीवचर जीव जंतु वृक्ष पौध्यांनी

पृथ्वीवर जन्म घेणे

हे चिरकाल सत्य आहे

आणि जीवनातील ओझ्यांचा प्रवास

हा चिरकाल चालु असणारा

एक नित्याचा प्रवाह आहे....

निसर्ग जंगलातील प्रवास आनंद असो

वा नदी सागर किनारा सोबत असो

वा इतिहास प्राचीर भींतीवर बसुन

मनाच्या जुडणा-या आठवणी असो

कळत नकळत विस्मरुन जात असतात

कधी कधी तर त्या कायमच्याच

ह्या हृदयात साठवल्या जात असतात....

निसर्गाच्या सौंदर्याने नटलेल्या

ह्या सृष्टी जीवाचे रुप न्याहारतांना

बुध्दाचे जीवन भ्रमण

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय

हा मंत्र जनसाद घेत असतांना 

प्रेम मैत्री बंधुता करुणेला

मन कप्यात चेतवत असतांना

हळुवार वा-याची झुळख

ही‌ माणसाला आनंद देवुन जाते....

निसर्गाच्या रंगी बिरंगी फुल सानिध्यात

माणुस रममाण होत असतांना

फुल आणि पाखरांचे निस्सिम प्रेम बघतांना

कधी कधी तर हेवा करुन जातो

पण माणसांचे हे काही वेगळेचं असते

तो हे निसर्ग अनुभव घेत असतांना

जगण्याची कविता करुन जातो

एक जीवन सत्य म्हणून !!!!!


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नागपूर, दिनांक २५ फेब्रुवारी २०२४

Thursday 22 February 2024

 🤝 *सिने अभिनेत्री मिनाक्षी पाखरे (मु्व्ही / सिरीयल) इनकी सीआरपीसी राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ मिलिंद जीवने 'शाक्य' आणि सीआरपीसी परिवार समवेत दीक्षाभूमी / चिचोली / ड्रॅगन पॅलेस को २२ फरवरी को सदिच्छा भेट हुयी.*


      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.) की डॉटर विंग *"सी. आर. पी. सी. वुमन विंग"* की "प्रदेश उपाध्यक्षा" २२ - २३ तारीख को, नागपुर - भंडारा पर्यटन दौरे पर आयी है.‌ मिनाक्षी २३ तारीख को साकोली / भंडारा में आयोजित *"लोककला महोत्सव"* में उपस्थित रहेगी.  तथा २२ तारीख को सीआरपीसी राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ मिलिंद जीवने 'शाक्य', डॉ मनिषा घोष, साधना सोनारे, सुरेखा खंडारे* इनके समवेत, नागपुर दीक्षाभूमी / चिचोली / ड्रॅगन पॅलेस को सदिच्छा भेट हुयी. कुछ महत्वपूर्ण कारणों सें,  पर्यटन तज्ञ *डॉ. उमाजी बिसेन,*  तथा सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कॉमर्स विंग के *इंजी. विजय बागडे* व्यस्त होने के कारण, इस सदिच्छा भेट में सम्मीलीत नहीं हो पाये. मिनाक्षी पाखरे ने *"आई मायेचा कवच / माझी माणसे / स्वामी समर्थ / रंग माझा वेगळा / क्राईम पेट्रोल / क्राईम अलर्ट / शांताराम आप्पाजी / खंड्या / पिंकीचा विजय असो / बाळु मामा / घर की बेटी / प्रेमास रंग यावे / कांस्टेबल / घोषणा / भरारी"* आदी चित्रपट  / सिरीयल में काम किया है. यह जाणकारी सीआरपीसी वुमन विंग की *डॉ. मनिषा घोष* इन्होने दी है.

Monday 19 February 2024

Sunita Sonvane posted State Vice President of CRPC Women Wing

 🤝 *सुनीता सोनवणे इनकी सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (वुमन विंग) प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ती.*


      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.) की डॉटर विंग *"सी. आर. पी. सी. वुमन विंग"* के "प्रदेश उपाध्यक्षा" पद पर, *सुनीता सोनवणे* उनकी नियुक्ती, "पर्यटन तज्ञ *डॉ. उमाजी बिसेन*  इनकी शिफारस पर, सी. आर‌. पी. सी. वुमन विंग की प्रदेश अध्यक्षा *डॉ. भारती लांजेवार* इन्होने की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी के राष्ट्रिय अध्यक्ष तथा सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कामर्स विंग / सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी एम्प्लॉईज विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब के संस्थापक - राष्ट्रिय पेट्रान *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेज दी है. सुनीता जी के नियुक्ती पर, सी.आर.पी.सी. के समस्त पदाधिकारी वर्ग ने सुनीता जी का अभिनंदन किया है.

Sunday 18 February 2024

🌼 *सीआरपीसी प्रमुख डॉ मिलिंद जीवने 'शाक्य' तथा पर्यटन तज्ञ डॉ उमाजी बिसेन, इंजी. विजय बागडे इनका खामगाव‌ / नासिक / इगतपुरी / मुंबई मिशन टुर...!*
    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. मिलिंन्द जीवने 'शाक्य'*, महाराष्ट्र बुध्दीस्ट टुरिझम कौन्सिल के अध्यक्ष / पर्यटन तज्ञ *डॉ. उमाजी बिसेन* तथा सीआरपीसी सलग्न सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कॉमर्स विंग के राष्ट्रिय अध्यक्ष *इंजी. विजय बागडे* इन्होने खामगाव / नासिक / इगतपुरी / मुंबई का मिशन दौरा किया है. *खामगाव* टुर में दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया बुलडाणा / खामगाव के *प्रा.‌आनंद वानखेडे* इन्होने डॉ. जीवने इनकी भेट ली तथा स्वागत किया. *नासिक* टुर में बिझनेस मैन *दत्ता कदम* ने स्वागत किया. तथा डॉ जीवने इनके परम मित्र *न्यायाधीश अनिल वैद्द* इन्होने अपने घर बुलाकर अपनी लिखी हुयी किताब भेट की. न्यायाधीश अनिल वैद्द इन्होने डॉ. जीवने‌ / डॉ बिसेन / इंजी. बागडे इनको लेकर, *"नासिक विपश्यना केंद्र"* दिखाकर नासिक का परिचय कराया. उसके बाद *इगतपुरी* टुर में *"विपश्यना विश्व विद्यापीठ धम्मगीरी इगतपुरी"* के गोविंद वाणी से भेट की. *मुंबई* टुर में, कुछ लोगों से भेट की गयी. *फिल्म / सिरीयल अभिनेत्री मिनाक्षी पाखरे* इन्होने भी भेट ली.

Saturday 17 February 2024

 🌈 *फिल्म अभिनेत्री मिनाक्षी पाखरे इनकी महाराष्ट्र टुरिझम कौन्सिल मुंबई अध्यक्ष पद पर नियुक्ती...!*

    महाराष्ट्र टुरिझम कौन्सिल के मुंबई अध्यक्षा पद पर *मिनाक्षी एम. पाखरे* इनकी नियुक्ती कौन्सिल के अध्यक्ष *डॉ उमाजी बिसेन* इन्होने की है. और सदर नियुक्ती पत्र उसे कौन्सिल के सल्लागार *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनके हाथो, मुंबई में प्रदान किया गया. उस अवसर पर, सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कॉमर्स विंग के राष्ट्रिय अध्यक्ष *इंजी. विजय बागडे* विशेष रुप से उपस्थित थे. मिनाक्षी ने बहुत से मराठी फिल्म में तथा बहुत से मराठी / हिंदी सिरीयल में अभिनय किया है. मिनाक्षी के इस नियुक्ती पर, बहुत से पदाधिकारी वर्ग ने, उसका अभिनंदन किया है.

Friday 16 February 2024

Minakshi Pakhare posted State Vice President of CRPC Women Wing.

 🤝 *मिनाक्षी पाखरे इनकी सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (वुमन विंग) प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ती.*


      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.) की डॉटर विंग *"सी. आर. पी. सी. वुमन विंग"* के "प्रदेश उपाध्यक्षा" पद पर उनकी नियुक्ती, "पर्यटन तज्ञ *डॉ. उमाजी बिसेन*  इनकी शिफारस पर, सी. आर‌. पी. सी. वुमन विंग की प्रदेश अध्यक्षा *डॉ. भारती लांजेवार* इन्होने की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी के राष्ट्रिय अध्यक्ष तथा सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कामर्स विंग / सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी एम्प्लॉईज विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब के संस्थापक - राष्ट्रिय पेट्रान *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेज दी है. मिनाक्षी पाखरे ने *"आई मायेचा कवच / माझी माणसे / स्वामी समर्थ / रंग माझा वेगळा / क्राईम पेट्रोल / क्राईम अलर्ट / शांताराम आप्पाजी / खंड्या / पिंकीचा विजय असो / बाळु मामा / घर की बेटी / प्रेमास रंग यावे / कांस्टेबल / घोषणा / भरारी"* आदी चित्रपट  / सिरीयल में काम किया है. मिनाक्षी जी के नियुक्ती पर, सी.आर.पी.सी. के समस्त पदाधिकारी वर्ग ने मिनाक्षी जी का अभिनंदन किया है.

Tuesday 13 February 2024

Dr. Umaji Bisen posted National Organizer of CRPC Trades & Commerce Wing

 🤝 *डॉ . उमाजी बिसेन इनकी सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (ट्रेड्स एंड कॉमर्स विंग) राष्ट्रिय संघटक पद पर नियुक्ती.*


      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.) की डॉटर विंग *"सी. आर. पी. सी. ट्रेड्स एंड कामर्स विंग"* के "राष्ट्रिय संघटक" पद पर "पर्यटन तज्ञ *डॉ.उमाजी बिसेन*  इनकी नियुक्ति  सी. आर‌. पी. सी. ट्रेड्स एंड कामर्स विंग के राष्ट्रिय अध्यक्ष *इंजी. विजय बागडे* इन्होने की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी के राष्ट्रिय अध्यक्ष तथा सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कामर्स विंग / सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी एम्प्लॉईज विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब के संस्थापक - राष्ट्रिय पेट्रान *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेज दी है. बिसेश जी के नियुक्ती पर, सी.आर.पी.सी. के समस्त पदाधिकारी वर्ग ने बिसेन जी का अभिनंदन किया है.

Sunday 11 February 2024

 ✍️ *डॉ. आंबेडकर साहाब इनकी बदनामी करनेवालों सिखों को, उनके सिख पुर्वजों की भारत गद्दारी का इतिहास क्या मालुम है...?*

    *डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य,"* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      बुध्द - आंबेडकरी समुदायों का वैचारिक - सामाजिक - राजकीय - सांस्कृतिक तीव्र संघर्ष, यह विशेषतः विदेशी ब्राह्मण वर्ग द्वारा रहा है. और *"बुध्द - ब्राह्मण संघर्ष"* को प्राचिन भारत का एक इतिहास है. प्राचीन भारत की *"सिंध संस्कृति या हडप्पा संस्कृति"* (पुर्व हडप्पा संस्कृति का कालखंड इ. पु. ७५००  - ३३००,  हडप्पा संस्कृति या पहिला नागरीकरण कालखंड इ. पु. ३३००  - १५००, परिपक्व हडप्पा संस्कृति का कालखंड इ. पु. २६०० - १९००) पर पहिला आक्रमण *"विदेशी वैदिक ब्राह्मणों"* (वैदिक सभ्यता का कालखंड इ. पु. १५०० - ६००) द्वारा किया गया. *"ब्राह्मण वर्ग ये भारत में विदेशी है"* इस तथ्य पर, मनुस्मृती (श्लोक २४) / बाल गंगाधर तिलक (वैदिक आर्यों का मुलस्थान - Arctic home in the Vedas) तथा भारत वर्ष का इतिहास पृ. ६३ - ८७) / मोहनदास गांधी (२७ दिसंबर १९२४ का कांग्रेस अधिवेशन का भाषण) / जवाहरलाल नेहरू (पिता की ओर से पुत्री के खत) / लाला लजपतराय (भारत वर्ष का इतिहास पृ.२१ - २२) / पंडित श्यामबिहारी मिश्रा और सुखदेव बिहारी (भारत वर्ष का इतिहास भाग १ पृ. ६२  - ६३) / पंडित जनार्दन भट (माधुरी मासिक ) ऐसे बहुत से लोगों द्वारा, उसे प्रमाणित किया गया है.‌ और प्राचिन भारत में, ब्राह्मण वर्ग द्वारा *"अनैतिक वाद"* का बीजारोपण किया गया. फिर *बुध्द कालखंड* (इ. पु. ५६३ - ४८३ और बौध्द सम्राट साम्राज्य कालखंड इ. पु.  ५४४ - १८५) यह *"सवर्ण युग"* के रुप में जाना जाता है. *"मौर्य साम्राज्य वंश"* के बुध्द धर्मीय - चक्रवर्ती सम्राट बृहद्रथ इनका, ब्राह्मणी सेनापति *पुष्यमित्र शुंग* (अपनी बहन बृहद्रथ को ब्याहकर मैत्री करना) ने, *ब्राह्मण ऋषी पातंजली* इनके कहने पर,  इ. पु. १८५ में किया गया. उसके बाद *"भोगवादी साहित्य / भोगवादी युग"* का ब्राह्मण पंडित *कालिदास* द्वारा आक्रमण दिखाई देता है. *"सिख धर्म"* की स्थापना यह इसा १८ वी शती में होती है. और सिख धर्म के संस्थापक *गुरु नानक"* इन पर भी, हिंदु धर्म का प्रभाव दिखाई देता है.

       *"प्रथम महायुध्द"* का कालखंड यह सन १९११ का रहा. और प्रथम महायुध्द में जापान ने, *"अमेरिका,ग्रेट ब्रिटन, फ्रान्स"* का पक्ष भी लिया था. उभी दोरान जापान ने, *ब्रिटीश साम्राज्य* पर आक्रमण कर, साम्राज्य विस्तार की शुरुवात की थी. *"सोव्हिएत संघ - जापान* ने उसी काल में, *"वाणिज्य और नेव्हीगेशन संधी"* पर हस्ताक्षर भी किये थे. इधर भारत *"अंग्रेजो को गुलामी"* में जखडा हुआ था. वही प्रथम महायुध्द के बाद, सन १९१८ में जो *"अछुत सिख"* पंंजाब वापस आये थें, उन्होंने सन १९१९ में *"जालियनवाला बाग"* में एक मीटिंग रखी थी. उस मीटिंग का एक खास कारण था. *"अमृतसर गुरुद्वारा"* में अछुत सिखों को, दर्शन करने नहीं दिया जाता था. और उन्हे बाहर निकलवा जाता था. *उच्च जाती के सिखों के इस भेदाभेद विरोध में, वह शांतपुर्ण मीटिंग का आयोजन‌ होने पर,* इसका बदला क्यौं ना लिया जाए ? उच्च जाती के सिखों ने, *जनरल डायर* को गलत सुचना दी थी कि, *"जालियनवाला बाग में क्रांतिकारीयों की मीटिंग रखी गयी है."* और जनरल डायर ने बिना कुछ छानबीन के, *"निहत्थे अछुत सिखों पर गोलीयां चलाई थी."* इसका बदला अछुत सिख *उधम सिंग* ने, लंडन जाकर जनरल डायर को गोलीयों से भुन डाला. *"अंत: पंजाब के उच्च वर्गीय सिखों की, गुलाम भारत के गद्दारी का यह इतिहास है."* और अभी जो  सिख वर्ग *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* पर, जो मनगंढत आरोप लगा रहे है, वे उन गद्दार सिखों के वंशज है. जो उनके लहु में *"गद्दार लहु"* पुरा भरा हुआ है.

       अब हम *"द्वितीय महायुध्द"* (सन १९३९ से लेकरं १९४५ तक) की ओर बढते है. जर्मनी के हुकुमशहा *एडोल्फ हिटलर* / इटली का हुकुमशहा *बेनितो मुसोलिनी* / जापान का हुकुमशहा *हिरोहितो* इनका प्रभाव समस्त विश्व में फैला हुआ था. और उन *"धुरी देशों"* के विरोध में, *"मित्र देशों"* से सोव्हिएत संघ / उत्तरी और दक्षिण अमेरिका / युनायटेड किंग्डम / चायना आदी देशों के नेता - *जोसेफ स्टॅलिन / फैंकलिन डेलिनो रूझवेल्ट / विन्स्टन चर्चिल / चिआंग काई शेक* और अन्य नेता, एकसंघ हो चुके थे. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने द्वितीय महायुध्द में, ब्रिटीशों के पक्ष में समर्थन देकर, *"हिटलर / मुसोलिनी / हिरोहितो* इनकी भविष्य में, भारत पर गुलामी लादना है, यह दुर की बात वे जान चुके थे. *"इधर कांग्रेस और मोहनदास गांधी द्विधा स्थिती में रहे थे. हिटलर को साथ दे या ब्रिटीशों को...!!!"* और हिंदु - मुस्लिम संबंध भी कुछ अच्छे नहीं थे. इधर अछुतों पर भारत में अन्याय ये बढता ही रहा था. समस्त विश्व की *"अर्थव्यवस्था"* यह चरमरा गयी थी. बाबासाहेब ने सन १९४० में, *"पाकिस्तान का विभाजन - Thoughts of Pakistan"* यह ग्रंथ प्रकाशन के पहले बेळगाव की सभा २६ दिसंबर १९३९ में कहा था की, *"राष्ट्र की सत्ता अपने हाथ में हो, यह कांग्रेस कहती है. परंतु तुमने मुसलमान के लिये क्या किया है ? हिंदु - मुसलमानों के बीच कडी दुश्मनी बनी हुयी है. और वह पहले से जादा अति बढ गयी है. उन्हे हिंदु के राज्य में रहना नहीं है. यह मुसलमानों की भावना बनी है. अत: भारत के दो तुकडे होना चाहिए, ऐसा उनको लगता है. इतके लिये केवल और केवल कांग्रेस ही जिम्मेदार है."* महत्वपूर्ण विषय यह कि, कांग्रेस और गांधी इनका *"मुसलमान - अछुत"* इनके प्रति संदिग्ध निर्णय ने, *"भारत को आजादी ३ - ४ साल देरी से मिली है."*

       भारत को आजादी १५ अगस्त १९४७ को मिलने के बाद, कांग्रेस और एम. के. गांधी ने  *डॉ.आंबेडकर साहाब* के साथ तथा अछुतों के साथ, क्या राजनीति की है ? बाबासाहेब डॉ आंबेडकर को *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) पर जाने के लिये, *क्या क्या वे पापड बेलने पडे थे ?* इस विषय पर मैं फिर कभी लिखुंगा. या कहे तो इस विषय पर, एक अच्छा संशोधन ग्रंथ हो सकता है.  *बाबासाहेब आंबेडकर* संविधान सभा में २५ नंवबर १९४९ को कहते हैं कि, *"On 26th January 1950, India will be an Independent Country (Cheers). What would happen to her Independence? Will she maintain to her Independence or she lose it again ? This is first thought that comes to my mind. It is not that India was never an country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ?"* आज भाजपा शासन काल में, हम किस दौर से गुजर रहे है, यह बडा चिंता का विषय है. भारत को गुलाम करनेवाले गद्दारों  का उल्लेख भी, बाबासाहेब आंबेडकर ने उस भाषण में करते हुये कहा कि, *"In the invasion of Sindh by Mohammad Bin Kasim, the military Commander of King Dohar accepted bribes from the agent of Mohammad Bin Kasim and refused to fight on the side of their King ... When the British were trying to destroy the Sikh Rulars, Gulab Singh, the Principal Commander sat silence and did not help to save the Sikh Kingdom."*

      *सिख जाती (उच्च वर्ग) का इतिहास यह शौर्य, बलिदान, निष्ठा का रहा है क्या ?* यह प्रश्न उपरोक्त विषय पढकर खडा होना लाजमी है. क्यौं कि, सिखों का इतिहास यह ज्यादातर हारने का दिखाई देता है. और *"सिख स्त्री वर्ग का ज्योहार"* (एक तरह से सती जाना) जाना, यह संशोधन का विषय है. और *जो सिख स्त्री ज्योहार ना गयी हो, और किसी को सरेंडर हुयी हो,* बाबासाहेब आंबेडकर इन पर आरोप करनेवाले, उस अनैतिक / दुषित रिस्ते की संतान होने की, संभावना ज्यादातर दिखाई देती है‌. इस तरह का शब्द प्रयोग करना उचित नहीं है. परंतु *"सिख धर्मगुरु"* इस विषय पर शांत हो तो, यह विषय बनता है. महार समाज का इतिहास यह इमानदारी, शौर्य, निष्ठा और बलिदान का रहा है. *"द्वितीय महायुध्द"* में महार सैनिकों का, अपना एक इतिहास है. *"भीमा कोरेगाव"* भी उसका एक सबुत है. एक एक महार सैनिकों ने, छप्पन्न की संख्या में, पेशवा सैनिकों को, मृत्यु के घाट उतार दिया था. इसलिए *"तेरे समान छप्पन देखे है"* यह मुहावरा प्रचलित है. *शिवाजी महाराज* इनकी सेना में, ज्यादातर महार ही वे लोग थे. शिवाजी महाराज को आग्रा के औरंगजेब की जेल से छुडानेवाला जीवा महार था.‌ इसलिए तो, *"था जीवा इसलिए बच गया शिवा"* यह मुहावरा बडा ही प्रचलीत है.‌

       बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन पर, दिल्ली का उस *सिख बिगडेल छोरे* का गुस्सा, *"सिख धर्म"* का स्वीकार ना करना, यह दिखाई देता है. यह सत्य है की, बाबासाहेब ने १९३५ में हिंदु धर्म छोडने की घोषणा के बाद, उन्हे विभिन्न धर्मों से निमंत्रण मिले थे. पटियाला (पंजाब) के राजा *भुपेंद्रसिंग* इन्होने बाबासाहेब आंबेडकर का शाही मेहमानी भी की थी. लाहोर के *सरदार महतावसिंग* भी पटियाला आये थे. महाराज ने बाबासाहेब को *"पटियाला का प्रधानमंत्री"* बनाने का लालच भी दिया था. तब बाबासाहेब ने महाराज को कहा कि,*"तुम्हारे धर्म में मुझे और मेरे लोगों को, अपने अंदर लाने की कोई चीज ही नहीं है. महाराज साहाब, मैं लालच और लोभ में फसनेवाली मछली नहीं हुं"* वही लाहोर के सरदार महतावसिंग को जब उनके लोगों ने पुछा कि, क्या होनेवाला है. तब सरदार जी बोल गये कि, *"डॉ आंबेडकर तो अजिब स्वभाव के व्यक्ती है. उन्हे तो कोई सांसारिक लोभ लालच नहीं खीच सकता."* वही पंजाब के हिंदु महासभा के नेता *भाई परमानंद* कहते हैं कि, *"आंबेडकर में कितने ही दोष क्यौं ना हो, किंतु वे न तो बेईमान है, ने ही खुदगर्ज, न ही लालची."* "बाबासाहेब आंबेडकर के संपर्क में पच्चीस वर्ष" इस ग्रंथ के लेखक *सोहनलाल शास्त्री*, जो पंजाब से ही थे, उन्होंने एक लेख लिखकर बाबासाहेब को भेजा था. और उस लेख में *"सिख धर्म में भी, हिंदु धर्म समान छुआछुत होने की बात कही थी."*  उपरोक्त कारण ही था कि, डॉ बाबासाहेब ने सिख धर्म का स्वीकार नहीं किया था.

      दिल्ली का पंजाबी बिन-अकल छोरा *एड. दिनेश सिंघ* ने *"हिंदु राष्ट्र के निर्माता है डॉ आंबेडकर"* इस लेख पर, मेरे जबाबी उत्तर के बाद, उसके दुसरे लेख - *"भारत का संविधान वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को स्थापित करता है"* यह लेख लिखकर उसने, *"ब्राह्मण समुदायों"* पर भी जोरदार हमला बोला. और कहा कि, *बाबासाहेब आंबेडकर* ने *"सबसे पहले नारा दिया था हमें जातिविहिन और वर्गविहिन समाज का निर्माण करना है."* परंतु डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इस तरह की व्यवस्था कभी नहीं निर्माण कर सकते थे.‌ इतके साथ ही उस बिन-अकल ने *"मागास आरक्षण"* का विरोध जताया. साथ ही उसने *"राष्ट्रियकरण"* की मांग कर डाली. उस गधे को यह भी पत्ता नहीं कि, *"राष्ट्रियकरण"* की भी पहली मांग *डॉ आंबेडकर साहाब द्वारा ही वो की गयी थी."* बाबासाहेब आंबेडकर ने *"जातिविहिन - वर्गविहिन समाज"* निर्माण करने का लक्ष रखा था. *"भारतीय संविधान"* में वे बहुत कुछ जोडना चाहते थे. परंतु एक सिमित काल में संविधान निर्माण करना जरुरी था. और *"संविधान सभा"* में ७६३५ संशोधन प्रस्तावित थे. परंतु २४७३ संशोधन ही स्वीकार किये गये. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने, संविधान लिखने के बाद, संविधान सभा में जिस तरह उसको फेस किया था, और अपना पक्ष कैसा सही है ? यह बताने में वे सफल रहे, तथा बाबासाहाब को शरीर भी साथ नहीं दे रहा था, और बाबासाहेब का *"संविधान संघर्ष इतिहास"* को समजना, उस सिख बिगडेल छोरे के बसं का विषय नहीं.‌ या कहे तो  यह उसकी औकात नहीं. क्यौं कि, *"भारतीय संविधान और भारतीय कानुन"* यह दो अलग विषय है. जब वो बिगडेल वकिल कानुन ही नहीं समझ पाया तो, वो, *"संविधान को क्या समझ पाएगा."* अंत: *"भारतीय संविधान"* पर *"जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था स्थापित करना"* यह आरोप करना, इसे क्या कहते ? आज वो जो कुछ भी लिख रहा, वो आजादी उसे भारतीय संविधान ने ही थी है. अत: उस तरह मानसिकता लिये लोगों के लिये, मेरे कविता के शब्द याद आ गये -

 *"तुम ने ना कभी युं वो वफा की थी,*

 *बसं वफा की चाह तुम कर बैठे हो*

*वतन के लिये थोडी कुर्बानी कर देखो,*

*प्रेम मैत्री बंधुता करुणा को तुम पाओगे...!"*


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नागपुर, दिनांक ११ फरवरी २०२४

Saturday 10 February 2024

 👌 *एक जीवन सत्य है ...!*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       ‌‌ मो. न.‌ ९३७०९८४१३८


तुम जब बहुत दुर चले जाते हो

तुम्हे अहसास हो जाता है

बसं वक्त निकल जाता है

जीवन की यादें रह जाती है

अपनापन खो जाते हो

वाणी से परे हो जाते हो

बहाव में तुम युं बह जाते हो

विश्वास कई मैल दुर हो जाता है

वही यादें जीवन की पहली होती है

कभी वह लौटकर नहीं आती

जीवन का यही चिरकाल सत्य है...

बुध्द हमें वही बातें बताते है

तब तुम समझ से परे होते हो

मन में द्वेष - नफ़रत पाले होते हो

जीवन सत्य ना समझ पाते हो

गुमनाम जीवन को जीयें होते हो

जब गलती का अहसास होता है

एक आवाज देने की हिम्मत

ना ही युं रह जाती है

अंत: तुम बहुत दुर हो जाते हो

पहचान को भी भुल जाते हो 

उस खाई को भरना कठिण होता है

बुध्द की प्रेम मैत्री बंधुता करुणा ही

एक जीवन सत्य है

एक जीवन सत्य है

एक जीवन सत्य है ...!!!


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नागपुर, दिनांक १० फरवरी २०२४

Wednesday 7 February 2024

 ✍️ *अमळनेर येथील ९७ वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन ते १८ व्या विद्रोही मराठी साहित्य संमेलनातील वैचारिक संघर्ष आणि बुध्द - आंबेडकरी साहित्यातील दुरत्व !*

    *डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य'* नागपूर ४४००१७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु (म.प्र.)


      अमळनेर येथील अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष *डॉ .रविंद्र शोभणे* आणि ह्या सोबतचं १८ व्या विद्रोही साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष *डॉ .वासुदेव मुलाटे* ह्या दोन परस्पर विरोधी अध्यक्षांची प्रेम गळाभेट विषय, हा तसा फार चर्चेचा विषय होवुन गेला. वर्धा येथे झालेल्या ९६ व्या अ. भा. मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष *न्या. नरेंद्र चपळगावकर* आणि विद्रोही संमेलनाचे अध्यक्ष *डॉ.चंद्रकांत वानखेडे* ह्यांच्या झालेल्या गळा प्रेम भेटीची आठवण करुन दिली. माजी अध्यक्ष *न्या. नरेंद्र चपळगावकर* ह्यांनी मात्र ह्या मराठी साहित्य संमेलनाला दांडी मारुन, साहित्य संमेलनाला उपस्थित राहण्याची परंपरा ही मोडीत काढली. तसे बघता ह्या *"दोन्हीही साहित्य संमेलनाची"* प्रासंगिकता, विषय केंद बिंदु हे उत्तर दक्षिण ह्या दिशांचा बोध करणारी अशी आहेत. *"अभिजन विरुध्द बहुजन"* हे म्हणावे किंवा *"प्रस्थापित विरुध्द विद्रोही"* असे ह्या साहित्य संमेलनाचे स्वरूप आहे. अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाला *"सरकारीकरणाचा बागुलबुवा"* फार दिसुन येतो. अर्थात मराठी साहित्य स़मेलन व्यासपीठावर *"राजकिय सत्ता नेते"* ही नाचतांना विशेषतः दिसुन येतात. हां विषय अलग आहे की, *"ती नाचा नेते हे व्यासपीठावर साडी आणि हातात बांगड्या घालुन बसलेली नसतात."*  साहित्य संमेलनात राजकीय नेत्यांचे औचित्य काय आहे? हे मात्र समजायला काही मार्ग नाही. ह्या विषयावर माझा लिहिण्याचा मागिल दोन तिन दिवसांपासून खुप  विचार होता. परंतु माझ्या फार व्यस्ततेमुळे, मला ह्या विषयावर लिहिणेचं शक्य झालेले नाही. आणि अश्यातच माझा मोबाईल हा चोरीला गेला. आणि मला लिहिण्यास पुर्णतः लकवत्व आले. असो, आता मुळ विषयाला हात घातलेला आहे.

     अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष *डॉ रविंद्र शोभणे* ह्यांच्या अध्यक्षीय भाषणाचा उहापोह करु या. शोभणेंच्या भाषणात *"देशीवादाचा विरोध"* हा मुख्य विषय बघता, नविन चिंतन विषय दिसुन आलेला नाही. आणि बाकी सारे हे नेहमीचे विषय होते. डॉ शोभणे हे *"देशीवादाचा"* उहापोह करतांना *"प्रांतवाद, जातवाद"* ह्या विषयावर मत प्रदर्शन करतांना ते विसरले नाहीत.‌ परंतु *"धर्मांधवाद, देववाद"* ह्या विषयाला मात्र त्यांनी दांडी मारली. दुसरे असे की *"तिन कोटींच्या वर खर्च"* होणा-या मराठी साहित्य संमेलनाला प्रेक्षकांची ही दांडी असल्यास त्याला काय म्हणावे ??? विद्रोही साहित्य संमेलनाचे अध्यक्ष *डॉ. वासुदेव मुलाटे* ह्यांनी भारतीय सत्ता व्यवस्था संदर्भात बोलतांना *"बेभरवसा, अविश्वसनीयता, असुरक्षितता"* ह्या विषयाला स्पर्श केला आहे. तसेच साखळीने जखडलेल्या लेखणीला मुक्त करणे, लेखणीची धार जोपासुन *"अभिव्यक्ती स्वातंत्र्याची होणारी मुस्कटदाबी"* ह्यावर हल्ला चढविला. मावळते संमेलनाध्यक्ष *चंद्रकांत वानखेडे* ह्यांनी प्रस्थापित समाज व्यवस्थेसह ब्राह्मणवादावर कठोर हल्ला चढवला. बाकी सारे विषय हे नेहमीचेचं म्हणावे. *"विद्रोही साहित्य ह्याचे खरे मुळ, तत्कालीन औचित्य आणि त्यानंतर आलेले परिवर्तन"* हा विषय आयोजकांना समजला आहे काय ? हा प्रश्न मात्र अनुत्तरीत आहे.

     .*"साहित्य भाषेचा उगम आणि भाषा लिपी"* ह्या संदर्भात प्राचिन‌ काळामध्ये जाणे हे गरजेचे आहे. प्राचिन भारताची *"सिंध संस्कृती"* संदर्भात बोलायचे झाल्यास, विदेशी ब्राह्मणांचे *"प्राचिन भारतावर आक्रमण"* समजुन घ्यावे लागणार आहे. त्यानंतर येणा-या *"वैदिक काळात"* लिपीच्या अस्तित्वाचा प्रश्न निर्माण होतो. ब्राह्मणी *"वर्णव्यवस्था युग""* आणि अमानवतावाद युगाचा असणारा तो केंद्र बिंदु. इसा पुर्व दुस-या - तिस-या शतकाच्या *"बुध्द कालखंडात"* आपल्याला भाषा साहित्याची / लिपीची अनुभुती होते.‌ *"संस्कृत ही भाषा पाली - प्राकृत भाषा नंतरची उपज आहे."* अर्थात संस्कृत ही सर्व भाषांची जननी नाही, ह्या सत्याचा बोध होवुन जातो. इंडो - ग्रीक राजा *मिनांडर प्रथम* (मिलिंद राजे):आणि *बौध्द भंते नागसेन* ह्यांच्या विवादाचे लेखन *"मिलिंद पन्ह"*  (मिलिंद प्रश्न) ह्याचा कालावधी इसा पुर्व १०० चा एक इतिहास आहे. बुध्दाची शिकवण *"नेतीगंधा वा नेत्तीपकरण"* ह्या मार्गदर्शन पुस्तकाचा कालखंड ही तोच दिसुन येतो. *बुध्द घोष* द्वारा रचित *"त्रिपिटक"* ह्या बौध्द धर्मग्रंथांचा कालखंड इसा पुर्व पाचवे शतक आहे. बुध्दाच्या जीवनावरील *"निदानकथा"* ह्या ग्रंथांचा कालावधी इसा पुर्व पहले शतक आहे. बुध्दाच्या जीवनावरील *"दीपवंश"* (चवथे - पाचवे शतक) तसेच *"महावंश"* (पाचवे शतक) ह्या साहित्य रचनेचा इतिहास आहे. ह्या सोबत बौध्द भंते *"अश्वघोष"* (कालखंड इसा पुर्व ८० - १५०) ह्यांची रचना *"बुध्द चरित्र / सौदरानंद / सुत्रालंकार / सारीपुत्र सुची / वज्र सुची"* प्रसिद्ध आहेत. प्राचिन भारताचा पहिला नाटककार / संगितकार म्हणुन अश्वघोष हे परिचीत आहेत. *कालिदास* हा ब-याच नंतर जन्माला आलेला ब्राह्मण पंडित.

     *भंते अश्वघोष* ह्याच्याशिवाय प्राचिन बौध्द साहित्यामध्ये - *भंते नागार्जुन* ( मध्यमिक सिध्दांत / मध्यमिक सुत्रालंकार‌ / सद्धर्म पुंडरीक / सुभलेखा / रसरत्नाकर ), *अमरसिम्हा* (अमरकोष / संस्कृतचा पहिला शब्दकोष), *वासुनाबढु* (अभिधर्मकोष / बौध्द दर्शनाचा पहिला शब्दकोष), *बुध्द घोष* (विशुध्दीमग्ग / सुमंगलवासिनी / अट्ठकथयेन), *दिगनागा* (तर्काचा सिध्दांत / प्रमाणमुचाय परिचय), *धर्म किर्ती* (न्यायबिंदु) ह्या प्राचिन बौध्द कालीन साहित्याला आपण विसरणार आहोत काय ? हां महत्वाचा प्रश्न आहे. ही प्राचिन पुस्तके व्याकरण आधारीत बौध्द साहित्य पुंजी आहे. *बौध्द सौंदर्य शास्त्र, नैतिक वाद, निसर्गवाद, मानवतावाद ह्यांची अनुभुती देणारे साहित्य आहे.* त्यानंतर जन्माला आलेला ब्राह्मण पंडित *कालिदास* हा ऋतुसंहार / कुमारसंभवम् / रघुवंशम् / मेघदूत अशी काव्यरचना करतो. आणि महाकवी होवुन जातो. *कालिदास हा भोगवादाकडे घेवुन जातो.* साहित्यिक संशोधक मंडळी ह्या सम्यक दिशेने जातांना दिसत नाही, ह्याला आम्ही काय म्हणावे ? कालिदास हा *रामायण, महाभारत, पुराणावर* आधारीत नाटके, कविता ह्याला तो पुरस्कृत करतो. आणि आम्ही लोक फक्त *"विद्रोही साहित्य"* घेवुन उदो उदो करतो. प्रश्न‌ हा आहे की, *'केवल विद्रोह करून चालणार आहे काय ?"* आम्ही आमचे *"सौंदर्य शास्त्र, निसर्ग शास्त्र, मानवता शास्त्र, नैतिक शास्त्र"* ह्याची जोपासणा करणार आहोत की नाही ? त्यानंतर इसवी सन १८ व्या शतकात *महात्मा ज्योतिबा फुले* हे विद्रोही विचाराने आम्हाला चेतवितात. आणि १९ व्या शतकात *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर / छत्रपती शाहु महाराज* आम्हाला आमच्या हक्काची जाणिव करुन देतात. बाबासाहेब आंबेडकर ह्यांनी तर बुध्दाचे बोट धरुन *"स्वातंत्र्य, समता, बंधुता, न्याय"* आधारीत विचारांकडे चालण्याचा मंत्र देतात. आम्ही ती दिशा न पकडता केवल विद्रोही विचारात अडकत असणार काय ? हां प्रश्न आपण सर्व भारत देश प्रेमींकरीता ...!!!


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नागपूर, दिनांक ७ फेब्रुवारी २०२४

Tuesday 6 February 2024

Adv. Dilip Ramteke posted vice president of CRPC Nagpur district

 * *एड. दिलिप रामटेके इनकी सीआरपीसी नागपुर जिला उपाध्यक्ष पद पर नियुक्ती*


     सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सीआरपीसी) के "नागपुर जिला उपाध्यक्ष" पद पर *एड. दिलिप रामटेके* इनकी नियुक्ती, सीआरपीसी महाराष्ट्र राज्य की प्रदेश अध्यक्षा *मनिषा घोष* इन्होने राष्ट्रिय सचिव *सुर्यभान शेंडे* इनकी शिफारस पर की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी के राष्ट्रिय अध्यक्ष तथा सीआरपीसी वुमन विंग / सीआरपीसी एडव्होकेट विंग / सीआरपीसी ट्रेड्स एंड कॉमर्स विंग / सीआरपीसी एम्प्लॉइज विंग / सीआरपीसी ट्रायबल विंग / सीआरपीसी वुमन क्लब के राष्ट्रिय पेट्रान *डॉ मिलिंद जीवने 'शाक्य' सर* इनको भेज दी है. सदर नियुक्ती पर पदाधिकारी वर्ग ने, एड रामटेके इनका अभिनंदन किया है.