Thursday 31 May 2018

वंदना और मेरे सह-जीवन के वह २२ साल
एक यादगार है १ जुन हमारा संघर्ष काल...!
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
  राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल


Wednesday 30 May 2018

🔮 *तुटा मै वो एक शिशा हुँ ....!*
            *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
             मो.न. ९३७०९८४१३८

तुटा मै वो एक शिशा हुँ
बुध्द भीम गीत गाता हुँ ...

कोई साथ मिला ना सारा
दु:ख का वह मै साथी हुँ
आसुँ पिकर आती धारा
दर्द गीत लिख जाता हुँ ...

सुख भाव दिखा ना वारा
अपने धुंद में जीता हुँ
चिंता क्या करे मन धारा
पंछी बने उड जाता हुँ ...

कौन मेरा ना ही दुजारा
दिन का राग सुनाता हुँ
मंजिल धुंडे जाता मारा
चल अकेला रो जाता हुँ ...

* * * * * * * * * * * * * *

Tuesday 29 May 2018

👌 *बुध्द ही सत्य है...!*
          **डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
            मो.न. ९३७०९८४१३८

बुध्द ही सत्य है, सत्य ही बुध्द है
बुध्द के बिना संसार अधुरा है ...

बुध्द की पुकार है, शांती साद है
बुध्द विश्व का, करूणा सागर है
हर पल दु:ख है, सुख पाना है
बुध्द के शरण मे हमे जाना है ...

युध्द की छाया है, डर का राज है
आँधी मन पर, एक ही बोज है
ना अब अशोक है, ना ही भीम है
बुध्द के बिना, ना कोई सहारा है ...

विशाल जन का, एक ही नारा है
अमन चमन ही , हमे लाना है
ना कोई वाली है, ना कोई धारा है
बुध्द जीवन का कल्याण सार है ...

* * * * * * * * * * * * * * * * * * *

Monday 28 May 2018

🌹 *भीम तुम बिन कैसे ....!*
        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
         मो.न. ९३७०९८४१३८

भीम तुम बिन कैसे होगी नैया पार
बुध्द को तुम्हे लाना है फिर एक बार ...

नफरत के आँधी ने जमाई है धार
हर कोई चाहता है शांती और प्यार
धर्म के ठेकेदारो़ ने किया अंधकार
राजनिती के नंगो ने दिया उसे वार ...

बिखरा है चमन पावन ज़मी धार
हर कोई तरसा भी अमन के द्वार
आँसमान ने रोया नदी के उस पार
बचा ना कोई वाली दबंग बना मार ...

संविधान ने हमे तो किया राह पार
लायको के अभाव मे रोया जना धार
यहा हर कोई है जुमले - ए - दिदार
गैरो के संगत का भरा यहा बाजार ...

* * * * * * * * * * * * * * * * * * *
      (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

Sunday 27 May 2018

🐗 *नरेंद्र मोदी इस सुवर भाग (गंदगी) को अनैतिक हिंदुस्तान देश में भगावो..!*
        अभी अभी बागपत, उत्तर प्रदेश मे एक रँली को संबोधित करते हुयें, भारत (?) के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार बार "हिंदुस्तान" इस संविधान विरोधी शब्द का जिक्र किया. जो मोदी भारत इस देश में रहता है... और संविधानिक विरोधी कृतीयाँ करता है. उसे भारत के प्रधानमंत्री पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार नही है. वही बार बार "दलित" इस संविधानिक विरोधी शब्द का भी वापर कर गया. भारत का केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी भी अपने भाषण मे "हिंदुस्तान" कह गया. ऐसे ना-लायक नेता लोग देश मे किसी मंत्री पद पर बने रहने के लायक ना होकर, सुवर की गंदगी फैला रहे है. अत: हम उन गंदगी भावों का जाहिर निषेध करते है.
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

Tuesday 22 May 2018

🇮🇳 *नागपुर की आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद संपन्नता में गधों का बिन अकलवाद !*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

      महाराष्ट्र शासन के अंतर्गत सामाजिक न्याय विभाग द्वारा नागपुर में आयोजित, "आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद २०१८" यह कविवर्य सुरेश भट सभागृह तथा दिक्षाभुमी में विवादो़ के घेरों में संपन्न हुयी. जहाँ भदंत ज्ञानज्योती जी ने विचारमंच पर ही उस परिषद का जाहिर निषेध करना, वही समता सैनिक दल के युवाओं ने उस परिषद के विरोध में सभागृह के अंदर ही अंदर खुला निषेध प्रदर्शन करना, क्या हम विचारवादी लोगों ने इस विद्रोह भाव को इतना सहज लेना चाहिये ? यह प्रश्न भी हमे बहुत कुछ कह जाता है. वही दुसरी ओर, उस शांती आंतरराष्ट्रिय परिषद में उपस्थित कुछ अतिथी ओं का मेरे साथ हुयी मैत्री चर्चा में, परिषद औचित्तता भावों के आयोजन - नियोजन - प्रयोजन में हिन दर्जा पर भी, अपनी जाहिर नाराजी जताना, मुझे अपने आप मे एक शर्म महसुस हुयी. कहने का सार यही था कि, *वह आंतरराष्ट्रिय परिषद कम, और राजकिय मेला जादा दिखाई दे रहा था. ना कोई संशोधनपर पेपर सादरीकरण हुये, ना उपस्थित डेलिगेट्स की ओर से सवाल - जवाब प्रश्न काल हुआ, ना ही परिषद मे कोई अध्यक्षता थी, ना सत्र में विषय गांभिर्यता थी, ना किसी भी तरह का ठराव पारित किये गये, तो उस आंतरराष्ट्रिय परिषद का डाकुमेंटेशन करना, यह भाव तो बहुत दुर की बात है !* वही परिषद के आयोजन पध्दती पर विरोध होने से, भदंत नागार्जुन सुरेई ससाई, भंदत सदानंद, डॉ. सुखदेव थोरात आदी मान्यवरों ने अपनी दुरी बनाये रखना भी, एक बडा चर्चा का विषय रहा.
     सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद के निमंत्रण पत्रिका पर "समारोप सत्र" यह नजारद ही था. फिर भी समारोपीय सत्र में केंद्रिय भुपृष्ठ परिवहन मंत्री *नितिन गडकरी* का वक्तव्य हमे हिन बुध्दी का एक परिचय दे गया. गडकरी कह गये कि, *"विश्व कल्याण के लिए आयोजित इस शांती परिषद के माध्यम से, विश्व को शांती संदेश देनेवाले इस परिषद को राजकिय रंग देना गलत होगा. वोट बँक के लिए यह समता परिषद नही है !"* सब से महत्वपुर्ण भाग यह है कि, मेरे लिखे गये एक लेख मे, इस परिषद के आयोजन दोषों पर सवाल ए निशान लगाये गये थे. *"क्या सदर परिषद यह वैचारिक परिषद थी या राजकिय परिषद...?"* और आप जैसे राजकिय नर्तकों को इस वैचारिक परिषद में आगे आगे नाचने की क्या जरुरत थी ? तुम्हारे अंदर स्थित राजकिय गंदगी को, आप लोगों ने यहाँ लाते हुये, उस परिषद के सर्वोत्तम गरिमा को गंदा कर डाला. *महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आयु. देवेंद्र फडणवीस तथा कुछ अन्य विधायकों ने सदर परिषद से अपनी दुरी बनाकर नैतिकता बनाई रखी !* नितिन गडकरी ने अपनी नैतिकता को गहाण रख दिया. इस लिए गडकरी के वक्तव्य को गंभिरता से लेने का कोई औचित्य नही है. *वही आंबेडकरी (?) कहनेवाले राजकिय नाचों ने अपना जम़िर ही बेच डाला. एक तवायफ भी अपना धंदा चार दिवारों के अंदर ही करती है. खुले रास्ते पर अपनी अब्रु बेचा नही करती. इन राजकिय नाचों ने अपने समाज की इज्जत खुले रास्ते पर बेच डाली !* तो इनके औकात को क्या कहे ? मै देश - विदेशों मे कई आंतरराष्ट्रिय परिषदों मे सम्मिलीत रहा हुँ. तथा स्वयं भी ४ - ५ आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषदों का सफल आयोजन किया है. जहा विचारपीठ पर केवल विचारविद ही अपने संशोधनपर विचार देते आये है. और मेरे परिषदों में राजकिय नाचों को कोई स्थान नही था. इस संदर्भ मे और कुछ आंतरराष्ट्रिय परिषदों की यादे स्मरण हो गयी. जो यहाँ शेअर करना अति आवश्यक है.
       दो साल पहले श्रीलंका के अनुराधापुर में आयोजित "आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद" मे मुझे बुलाया गया था. तथा देश - विदेशों से भी कई अन्य मान्यवर वहाँ उपस्थित थे. सदर परिषद का आयोजन श्रीलंका सरकार के सांस्कृतिक एवं रक्षा मंत्रालय ने किया था. और जो भी विदेशी मान्यवर आनेवाले थे, उनकी सुची तथा आने - जाने की जानकारी कोलोंबो हवाई विभाग को दी गयी थी. जब मै विमान से श्रीलंका के हवाई अड्डेपर पहुंचा, और विमान का दरवाजा खुलने के उपरांत बाहर निकला, तो एक एयर होस्टेस एवं एक सुरक्षा अधिकारी मेरे नाम की पाटी लेकर खड़े थे. मैने अपना परिचय देने के उपरांत कोई भी विदेशी प्रवासी की फार्मुलिटी किये बिना मुझे व्ही. व्ही. आय. पी. कक्ष ले गये. और वहाँ दो कँप्टन, ८ - १० मिलिटरी गार्ड्स एवं हवाई अड्डा अधिकारी मेरे स्वागत हेतु उपस्थित थे. मुझे बोर्डिंग पास मांगकर मेरा सामान लाया गया. चहा नास्ता होने के उपरांत तिन मिलिटरी गाडी जो बाहर खडी थी, वहाँ मुझे बिठाकर अनुराधापुर की ओर रवाना हुये. वहाँ फिर मिलिटरी हेड क्वार्टर में हमारे खाने की व्यवस्था की गयी थी. खाना होने के पश्चात पंचतारांकित होटेल मे हम आराम करने चले गये. दुसरे दिन आंतरराष्ट्रिय परिषद के स्थान पर हम पहुंच गये. वहाँ जिलाधिकारी से लेकर बडे बडे मान्यवर उपस्थित थे. उनसे परिचय किया गया. वही उदघाटन समारोह मे मंच पर विद्वत भिख्खु गण और सन्मानीत विचारविद बैठने के उपरांत समारोह एवं परिषद संपन्न हुयी. परिषद मे सभी मान्यवर एवं डेलीगेट्स की खाने की व्यवस्था एक ही स्थान पर की गयी थी. वही राजकिय नेता - मंत्रीवर गण मंच पर विराजमान नही दिखाई दिये. वे सभी ऑडियंस मे बैठकर विचारविदों के विचार सुनते दिखाई दिये. इसी बीच देश - विदेशों से जो विचारविद उस परिषद मे सम्मिलीत हुये थे, उन सभी मान्यवरों को आजु बाजु के परिसर स्थित प्राचिन बौध्द धरोहर दिखाने का प्रबंध किया गया था.
       आंध्र प्रदेश सरकार ने भी ३-४-५ फरवरी २०१८ को *"आंतरराष्ट्रीय विश्व शांती अमरावती बौध्द महोत्सव"* का विजयवाडा शहर मे सफल आयोजन किया था. मुझे भी वहा विशेष अतिथी के रूप मे तथा संशोधनात्मक पेपर सादर करने हेतु निमंत्रित किया गया था. उस धम्म महोत्सव में नागपुर से ८० के आस पास भंते एवं उपासक सम्मिलीत थे. उन सभी की आने - जाने एवं रहने की उचित व्यवस्था आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा की गयी थी. वही जो देश - विदेश से अतिथी आये थे, उनकी व्यवस्था पंचतारांकित होटेल मे की गयी थी. समस्त शहर मे निमंत्रित अतिथी के बडे बडे होर्डिंग्स लगाये गये थे. परंतु उस महोत्सव मे भी "धम्मपीठ" पर किसी मंत्री, सांसद, विधायक का बोलबाला नही था. जब कभी स्वागत करना होता था, तब ही देश - विदेशों से निमंत्रित भंते वर्ग को धम्मपीठ पर बुलाकर, उनका स्वागत किया जाता था. स्वागत के उपरांत, सभी मान्यवर ऑडियंस मे बैठकर विद्वान मान्यवरों के विचारों को सुनते थे. आंध्र प्रदेश सरकार ने भी देश - विदेशों से आये, उन सभी मान्यवरों को, आस पास के ३-४ प्राचिन बौध्द स्थलों को दिखाने का आयोजन किया था. *महत्वपुर्ण बात यह थी कि, मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडु तथा वहा के सांस्कृतिक मंत्री का भी उस कार्यक्रम मे हस्तक्षेप नही दिखा...!* परंतु महाराष्ट्र के मंत्री हो या, कोई संत्री हो, सांसद हो या विधायक हो, वे सभी के सभी हमे "पीठभाव" के "मानसिक रोगी" दिखाई दिये. वही महाराष्ट्र शासन के सामाजिक न्याय विभाग ने उन देशी - विदेशी मान्यवरों को प्राचिन धरोहर घुमाने का आयोजन निमंत्रण पत्रिका मे या उनके आयोजन यादी मे सम्मिलीत नही किया था. सामाजिक (अ)न्याय विभाग का यह था, बिन अकल अंधार !
      नागपुर मे आयोजित आंतरराष्ट्रिय परिषद मे *पुज्य भंते बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* (अध्यक्ष, महाबोधी सोसायटी ऑफ श्रीलंका) उपस्थित थे. महत्वपुर्ण बात यह की, कुछ महिनों से अपघात के कारण उन्हे चलने मे कठिणाई हो रही थी. फिर भी वे आये. परंतु उन्हे सदर परिषद का ना "अध्यक्ष" बनाया गया, ना उचित सन्मान !   श्रीलंका के प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपती हो, वे उन्हे बडा ही सन्मान देते है. मेरा उनसे कई बार मिलना जुलना रहा है. मुझे तो भारतीय बौध्द महासभा के स्वयं घोषित अध्यक्ष चंद्रबोधी पाटील के कृतीपर ही दया आती है. क्या उन्हे राष्ट्रिय अध्यक्ष पद के काबिल समझा जा सकता है...? वे उस परिषद मे हमाली काम करते हुये दिखाई दिये. फिलिपीन्स की राजकुमारी मारिया अमोर, कंबोडिया की राजकुमारी केसोमाकाक्रितारख्खा, थायलंड के धम्मासिरीबुन फाउंडेशन के अध्यक्ष नलिनथ्रान, थायलंड के ही वर्ल आलायंस ऑफ बुध्दीस्ट के अध्यक्ष डॉ. पोर्नचाई पिंयापोंग,  दक्षिण कोरिया के डब्लु.जी.सी.ए. के अध्यक्ष मुन योंग जो आदी मान्यवरों का सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद मे आना, वही उदघाटक के रूप मे, उनमे से किसी भी एक मान्यवर को सन्मान ना मिलना, यह तो हमारे ना-लायक राजकिय नाचो़ं की एक बडी हिनवादीता कहनी होगी...!
     सामाजिक न्याय विभाग द्वारा आयोजित एक सभा मे सिने अभिनेता गगन मालिक से मेरी भेट हुयी. इस के पहले भी गगन और मै एक धम्म कार्यक्रम मे हम साथ साथ थे. गगन मलिक का मेरे ऑफिस मे सत्कार भी किया था. गगन को जो बात मैने कही है, उस पर गंभिरता से सोचना गगन के लिए जरूरी है. क्यौं कि, इस परिषद में विदेशों से जो मान्यवर आये थे, उन लोगो़ नें बहुत सी भेट वस्तुएँ, मुर्तीयाँ, बुध्द के लॉकेट, टी शर्ट्स, महंगे कपडे, चीवर आदी के बक्से भरकर लाये थे. वे भेट वस्तुएँ भी दो दो, चार चार नग इन आयोजकों ने ले जाना, इसे भिखारवाड नही तो क्या कहे...? पर हम भारतीय लोगों ने उन्हे भेट मे क्या दिया ? और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का विचार "Pay Back to Society"  इस का हम ने कितना निर्वाहन किया, यह भी संशोधन का विषय है.
       अंत मे "शांती और समता" भाव को लेकर इस आंतरराष्ट्रिय परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद मे संशोधन पेपर सादरीकरण ना होने से, इस परिषद का "सार" क्या रहा है ? यह अहं प्रश्न है. वही राजकिय नेता नाचाओं के खाने की व्यवस्था पंचतारांकित होटेल में की गयी थी. और डेलिगेट्स, उपस्थित लोगों की व्यवस्था यह परिषद स्थल पर, धुप मे की गयी थी. क्या इस भाव को समता कहेंगे ? या न्याय कहेंगे... ? अत: भविष्य में इस आंतरराष्ट्रिय परिषद पर, किये गये समस्त आर्थिकवाद की समिक्षा की जाऐगी ही...! परंतु हमारा अंतिम लक्ष केवल "ब्राम्हण संघवाद" पर ठिकरा फोडने के बदले, इन आंबेडकरी (?) नाचाओं में पनप रही "ब्राम्हण्यवादी मानसिकता" की चिकित्सा करना ही जादा जरूरी है...!!!

* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
       (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
🇮🇳 *नागपुर की आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद संपन्नता में गधों का बिन अकलवाद !*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

      महाराष्ट्र शासन के अंतर्गत सामाजिक न्याय विभाग द्वारा नागपुर में आयोजित, "आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद २०१८" यह कविवर्य सुरेश भट सभागृह तथा दिक्षाभुमी में विवादो़ के घेरों में संपन्न हुयी. जहाँ भदंत ज्ञानज्योती जी ने विचारमंच पर ही उस परिषद का जाहिर निषेध करना, वही समता सैनिक दल के युवाओं ने उस परिषद के विरोध में सभागृह के अंदर ही अंदर खुला निषेध प्रदर्शन करना, क्या हम विचारवादी लोगों ने इस विद्रोह भाव को इतना सहज लेना चाहिये ? यह प्रश्न भी हमे बहुत कुछ कह जाता है. वही दुसरी ओर, उस शांती आंतरराष्ट्रिय परिषद में उपस्थित कुछ अतिथी ओं का मेरे साथ हुयी मैत्री चर्चा में, परिषद औचित्तता भावों के आयोजन - नियोजन - प्रयोजन में हिन दर्जा पर भी, अपनी जाहिर नाराजी जताना, मुझे अपने आप मे एक शर्म महसुस हुयी. कहने का सार यही था कि, *वह आंतरराष्ट्रिय परिषद कम, और राजकिय मेला जादा दिखाई दे रहा था. ना कोई संशोधनपर पेपर सादरीकरण हुये, ना उपस्थित डेलिगेट्स की ओर से सवाल - जवाब प्रश्न काल हुआ, ना ही परिषद मे कोई अध्यक्षता थी, ना सत्र में विषय गांभिर्यता थी, ना किसी भी तरह का ठराव पारित किये गये, तो उस आंतरराष्ट्रिय परिषद का डाकुमेंटेशन करना, यह भाव तो बहुत दुर की बात है !* वही परिषद के आयोजन पध्दती पर विरोध होने से, भदंत नागार्जुन सुरेई ससाई, भंदत सदानंद, डॉ. सुखदेव थोरात आदी मान्यवरों ने अपनी दुरी बनाये रखना भी, एक बडा चर्चा का विषय रहा.
     सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद के निमंत्रण पत्रिका पर "समारोप सत्र" यह नजारद ही था. फिर भी समारोपीय सत्र में केंद्रिय भुपृष्ठ परिवहन मंत्री *नितिन गडकरी* का वक्तव्य हमे हिन बुध्दी का एक परिचय दे गया. गडकरी कह गये कि, *"विश्व कल्याण के लिए आयोजित इस शांती परिषद के माध्यम से, विश्व को शांती संदेश देनेवाले इस परिषद को राजकिय रंग देना गलत होगा. वोट बँक के लिए यह समता परिषद नही है !"* सब से महत्वपुर्ण भाग यह है कि, मेरे लिखे गये एक लेख मे, इस परिषद के आयोजन दोषों पर सवाल ए निशान लगाये गये थे. *"क्या सदर परिषद यह वैचारिक परिषद थी या राजकिय परिषद...?"* और आप जैसे राजकिय नर्तकों को इस वैचारिक परिषद में आगे आगे नाचने की क्या जरुरत थी ? तुम्हारे अंदर स्थित राजकिय गंदगी को, आप लोगों ने यहाँ लाते हुये, उस परिषद के सर्वोत्तम गरिमा को गंदा कर डाला. *महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री आयु. देवेंद्र फडणवीस तथा कुछ अन्य विधायकों ने सदर परिषद से अपनी दुरी बनाकर नैतिकता बनाई रखी !* नितिन गडकरी ने अपनी नैतिकता को गहाण रख दिया. इस लिए गडकरी के वक्तव्य को गंभिरता से लेने का कोई औचित्य नही है. *वही आंबेडकरी (?) कहनेवाले राजकिय नाचों ने अपना जम़िर ही बेच डाला. एक तवायफ भी अपना धंदा चार दिवारों के अंदर ही करती है. खुले रास्ते पर अपनी अब्रु बेचा नही करती. इन राजकिय नाचों ने अपने समाज की इज्जत खुले रास्ते पर बेच डाली !* तो इनके औकात को क्या कहे ? मै देश - विदेशों मे कई आंतरराष्ट्रिय परिषदों मे सम्मिलीत रहा हुँ. तथा स्वयं भी ४ - ५ आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषदों का सफल आयोजन किया है. जहा विचारपीठ पर केवल विचारविद ही अपने संशोधनपर विचार देते आये है. और मेरे परिषदों में राजकिय नाचों को कोई स्थान नही था. इस संदर्भ मे और कुछ आंतरराष्ट्रिय परिषदों की यादे स्मरण हो गयी. जो यहाँ शेअर करना अति आवश्यक है.
       दो साल पहले श्रीलंका के अनुराधापुर में आयोजित "आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद" मे मुझे बुलाया गया था. तथा देश - विदेशों से भी कई अन्य मान्यवर वहाँ उपस्थित थे. सदर परिषद का आयोजन श्रीलंका सरकार के सांस्कृतिक एवं रक्षा मंत्रालय ने किया था. और जो भी विदेशी मान्यवर आनेवाले थे, उनकी सुची तथा आने - जाने की जानकारी कोलोंबो हवाई विभाग को दी गयी थी. जब मै विमान से श्रीलंका के हवाई अड्डेपर पहुंचा, और विमान का दरवाजा खुलने के उपरांत बाहर निकला, तो एक एयर होस्टेस एवं एक सुरक्षा अधिकारी मेरे नाम की पाटी लेकर खड़े थे. मैने अपना परिचय देने के उपरांत कोई भी विदेशी प्रवासी की फार्मुलिटी किये बिना मुझे व्ही. व्ही. आय. पी. कक्ष ले गये. और वहाँ दो कँप्टन, ८ - १० मिलिटरी गार्ड्स एवं हवाई अड्डा अधिकारी मेरे स्वागत हेतु उपस्थित थे. मुझे बोर्डिंग पास मांगकर मेरा सामान लाया गया. चहा नास्ता होने के उपरांत तिन मिलिटरी गाडी जो बाहर खडी थी, वहाँ मुझे बिठाकर अनुराधापुर की ओर रवाना हुये. वहाँ फिर मिलिटरी हेड क्वार्टर में हमारे खाने की व्यवस्था की गयी थी. खाना होने के पश्चात पंचतारांकित होटेल मे हम आराम करने चले गये. दुसरे दिन आंतरराष्ट्रिय परिषद के स्थान पर हम पहुंच गये. वहाँ जिलाधिकारी से लेकर बडे बडे मान्यवर उपस्थित थे. उनसे परिचय किया गया. वही उदघाटन समारोह मे मंच पर विद्वत भिख्खु गण और सन्मानीत विचारविद बैठने के उपरांत समारोह एवं परिषद संपन्न हुयी. परिषद मे सभी मान्यवर एवं डेलीगेट्स की खाने की व्यवस्था एक ही स्थान पर की गयी थी. वही राजकिय नेता - मंत्रीवर गण मंच पर विराजमान नही दिखाई दिये. वे सभी ऑडियंस मे बैठकर विचारविदों के विचार सुनते दिखाई दिये. इसी बीच देश - विदेशों से जो विचारविद उस परिषद मे सम्मिलीत हुये थे, उन सभी मान्यवरों को आजु बाजु के परिसर स्थित प्राचिन बौध्द धरोहर दिखाने का प्रबंध किया गया था.
       आंध्र प्रदेश सरकार ने भी ३-४-५ फरवरी २०१८ को *"आंतरराष्ट्रीय विश्व शांती अमरावती बौध्द महोत्सव"* का विजयवाडा शहर मे सफल आयोजन किया था. मुझे भी वहा विशेष अतिथी के रूप मे तथा संशोधनात्मक पेपर सादर करने हेतु निमंत्रित किया गया था. उस धम्म महोत्सव में नागपुर से ८० के आस पास भंते एवं उपासक सम्मिलीत थे. उन सभी की आने - जाने एवं रहने की उचित व्यवस्था आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा की गयी थी. वही जो देश - विदेश से अतिथी आये थे, उनकी व्यवस्था पंचतारांकित होटेल मे की गयी थी. समस्त शहर मे निमंत्रित अतिथी के बडे बडे होर्डिंग्स लगाये गये थे. परंतु उस महोत्सव मे भी "धम्मपीठ" पर किसी मंत्री, सांसद, विधायक का बोलबाला नही था. जब कभी स्वागत करना होता था, तब ही देश - विदेशों से निमंत्रित भंते वर्ग को धम्मपीठ पर बुलाकर, उनका स्वागत किया जाता था. स्वागत के उपरांत, सभी मान्यवर ऑडियंस मे बैठकर विद्वान मान्यवरों के विचारों को सुनते थे. आंध्र प्रदेश सरकार ने भी देश - विदेशों से आये, उन सभी मान्यवरों को, आस पास के ३-४ प्राचिन बौध्द स्थलों को दिखाने का आयोजन किया था. *महत्वपुर्ण बात यह थी कि, मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडु तथा वहा के सांस्कृतिक मंत्री का भी उस कार्यक्रम मे हस्तक्षेप नही दिखा...!* परंतु महाराष्ट्र के मंत्री हो या, कोई संत्री हो, सांसद हो या विधायक हो, वे सभी के सभी हमे "पीठभाव" के "मानसिक रोगी" दिखाई दिये. वही महाराष्ट्र शासन के सामाजिक न्याय विभाग ने उन देशी - विदेशी मान्यवरों को प्राचिन धरोहर घुमाने का आयोजन निमंत्रण पत्रिका मे या उनके आयोजन यादी मे सम्मिलीत नही किया था. सामाजिक (अ)न्याय विभाग का यह था, बिन अकल अंधार !
      नागपुर मे आयोजित आंतरराष्ट्रिय परिषद मे *पुज्य भंते बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो* (अध्यक्ष, महाबोधी सोसायटी ऑफ श्रीलंका) उपस्थित थे. महत्वपुर्ण बात यह की, कुछ महिनों से अपघात के कारण उन्हे चलने मे कठिणाई हो रही थी. फिर भी वे आये. परंतु उन्हे सदर परिषद का ना "अध्यक्ष" बनाया गया, ना उचित सन्मान !   श्रीलंका के प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपती हो, वे उन्हे बडा ही सन्मान देते है. मेरा उनसे कई बार मिलना जुलना रहा है. मुझे तो भारतीय बौध्द महासभा के स्वयं घोषित अध्यक्ष चंद्रबोधी पाटील के कृतीपर ही दया आती है. क्या उन्हे राष्ट्रिय अध्यक्ष पद के काबिल समझा जा सकता है...? वे उस परिषद मे हमाली काम करते हुये दिखाई दिये. फिलिपीन्स की राजकुमारी मारिया अमोर, कंबोडिया की राजकुमारी केसोमाकाक्रितारख्खा, थायलंड के धम्मासिरीबुन फाउंडेशन के अध्यक्ष नलिनथ्रान, थायलंड के ही वर्ल आलायंस ऑफ बुध्दीस्ट के अध्यक्ष डॉ. पोर्नचाई पिंयापोंग,  दक्षिण कोरिया के डब्लु.जी.सी.ए. के अध्यक्ष मुन योंग जो आदी मान्यवरों का सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद मे आना, वही उदघाटक के रूप मे, उनमे से किसी भी एक मान्यवर को सन्मान ना मिलना, यह तो हमारे ना-लायक राजकिय नाचो़ं की एक बडी हिनवादीता कहनी होगी...!
     सामाजिक न्याय विभाग द्वारा आयोजित एक सभा मे सिने अभिनेता गगन मालिक से मेरी भेट हुयी. इस के पहले भी गगन और मै एक धम्म कार्यक्रम मे हम साथ साथ थे. गगन मलिक का मेरे ऑफिस मे सत्कार भी किया था. गगन को जो बात मैने कही है, उस पर गंभिरता से सोचना गगन के लिए जरूरी है. क्यौं कि, इस परिषद में विदेशों से जो मान्यवर आये थे, उन लोगो़ नें बहुत सी भेट वस्तुएँ, मुर्तीयाँ, बुध्द के लॉकेट, टी शर्ट्स, महंगे कपडे, चीवर आदी के बक्से भरकर लाये थे. वे भेट वस्तुएँ भी दो दो, चार चार नग इन आयोजकों ने ले जाना, इसे भिखारवाड नही तो क्या कहे...? पर हम भारतीय लोगों ने उन्हे भेट मे क्या दिया ? और बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का विचार "Pay Back to Society"  इस का हम ने कितना निर्वाहन किया, यह भी संशोधन का विषय है.
       अंत मे "शांती और समता" भाव को लेकर इस आंतरराष्ट्रिय परिषद का आयोजन किया गया था. इस परिषद मे संशोधन पेपर सादरीकरण ना होने से, इस परिषद का "सार" क्या रहा है ? यह अहं प्रश्न है. वही राजकिय नेता नाचाओं के खाने की व्यवस्था पंचतारांकित होटेल में की गयी थी. और डेलिगेट्स, उपस्थित लोगों की व्यवस्था यह परिषद स्थल पर, धुप मे की गयी थी. क्या इस भाव को समता कहेंगे ? या न्याय कहेंगे... ? अत: भविष्य में इस आंतरराष्ट्रिय परिषद पर, किये गये समस्त आर्थिकवाद की समिक्षा की जाऐगी ही...! परंतु हमारा अंतिम लक्ष केवल "ब्राम्हण संघवाद" पर ठिकरा फोडने के बदले, इन आंबेडकरी (?) नाचाओं में पनप रही "ब्राम्हण्यवादी मानसिकता" की चिकित्सा करना ही जादा जरूरी है...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
       (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Monday 21 May 2018

🎂 *प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर सर ह्यांचा अमृत महोत्सव गोगा-वाद आयोजकांच्या संग... !*
        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपूर*
        मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

      ३ जुन २०१८ ... हा महत्वपुर्ण असा दिवस आहे ! प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर सर ह्यांचा "अमृत महोत्सव समारोह" हा नागपुरच्या डॉ. वसंतराव देशपांडे सभागृहात सायं ५.०० वाजता आयोजित केलेला आहे. प्रा. डॉ. मनोहर हे नाव तर समस्त महाराष्ट्राच्या साहित्य क्षेत्रातील एक मोठे असेचं नाव आहे ! कदाचित त्यांच्या साहित्य लिखाणावर "सच्चा आंबेडकरवादी - बुध्दवादी" असण्याच्या संदर्भात काही वाद ही होवु शकतो ! परंतु "दलित साहित्यिक" म्हणुन वाद असण्याचे कारण नाही. कारण मनोहरांनी आपल्या लिखाणात मार्क्स ही जोपासला आहे ! आणि केशवसुत ही ! परंतु डॉ मनोहरांच्या साहित्य लिखाणातील विषय गांभिर्य, विद्रोह, वैचारिकता, दिशा इत्यादी भाव कोणताही टिकाकार नाकारणार नाही. तेव्हा प्रा. डॉ. यशवंत मनोहर सरांच्या "अमृत महोत्सव" वर्षा निमित्ताने त्यांचे खुप खुप अभिनंदन...!!!
      "प्रा. यशवंत मनोहर अमृत महोत्सव समिती" ह्या बँनरच्या अधिनस्त सदर सत्कार समारोहाचे असलेले आयोजन आणि त्यातही प्रा. मनोहर सरांचा जुडलेला फार मोठा मित्र परिवार, त्यामुळे सदर कार्यक्रम हा भव्य - दिव्य असाचं राहाणार आहे. परंतु सदर आयोजन समितीतील *प्रमुख आयोजक आयु. गिरिश गांधी (भाजपा), डॉ. नितिन राऊत (काँग्रेस)* ह्यांचे नित्यपणे असले "स्वागत समारंभ आयोजना"तील एकीकरण मात्र कुठे तरी स्व-मनाला टोचणी करुन जातो. ह्यापैकी एक आयोजक हे "गोलवलकर विचारवादी" तर दुसरे आयोजक हे "गांधी विचारवाद" कट्टर भाव जोपासणारे राजकिय नेते आहेत. अर्थात *"गोगा-वाद" : गोलवलकर - गांधी विचारमय वादाचा प्रभाव"* जोपासुन कोणत्याही आंबेडकरवादी - बुध्दवादीं मान्यवरांचा सत्कार समारोह हा नैतिक भाव जोपासणारा म्हणता येईल काय ? हा मात्र महत्वपुर्ण प्रश्न सहज मनात येतो. मागच्या वर्षी ह्या गोगा टीमने पालीचे गाढे अभ्यासक आणि साहित्यिक *प्रा. डॉ. भाऊ लोखंडे* ह्यांचा भव्य - दिव्य सत्कार हा वसंतराव देशपांडे सभागृहातचं आयोजित केलेला होता. तसेच अलीकडे आमचे रिपब्लिकन नेते *प्रा. जोगेंद्र कवाडे सर* ह्यांचाही भव्य - दिव्य सत्कार समारोहाचे आयोजन केले होते. आपला एक चांगला मित्र म्हणुन आपल्या प्रिय मित्राच्या अभिनंदन कार्यक्रमात सहभागी होणे, ह्याला तर विरोध असण्याचे काहीचं कारण नाही. पण ती गोगा मंडळी समारोहाचे आयोजक असणे ...? मग आंबेडकरी बाण्याचे आयोजक मेले तर नाही नां ! हा पुनश्च दुसरा प्रश्न आलाचं...! ह्याशिवाय आर्थिक नीति - अनीति हा अन्य वाद बाजुला सारू या !!
     आंबेडकरी समाजात अलिकडे *"नाचेवाद"* हा फारचं फोफावलेला दिसुन येतो. आणि प्रत्येक समारोहात ही अनैतिक नाचा टीम बिनधास्त पणे नाचतांना दिसुन येते. डॉ. मनोहर सरांचा सदर समारोह करण्याला ह्या नाचा टीमने पुढाकार हा नक्कीच घेतला असता. त्या नाच्यांना फक्त नाम - दाम ह्याच्याशी मतलब आहे. फरक एवढाच की, सदर नाच्यांचा स्तर हा फारचं लहान आहे. तर सध्याच्या आयोजक मंडळीचा स्तर फार मोठा ! काही वर्षापुर्वी डॉ. मनोहर सर आणि त्यांच्या सहपाठींनी *"पहिली जागतिक आंबेडकरवादी साहित्य परिषद"* नागपूर येथे घेण्याची संपुर्ण तयारी आणि त्याची जोरदार प्रसिद्धी ही केलेली होती. प्रा. यशवंत मनोहर सर हे सदर परिषदेचे अध्यक्ष जाहिर होवुन त्यांच्या स्वागताची बातमी दैनिकात प्रकाशित झालेली होती. तर गोगावादी गिरीश गांधी हे त्या परिषदेचे स्वागताध्यक्ष. तेव्हा गिरीश गांधीच्या "स्वागताध्यक्ष" पदावर मी स्वत: आक्षेप घेवुन ह्या संदर्भात सोशल मिडियावर बरेच लिखाण केले होते. सदर परिषदेचे स्वागताध्यक्ष म्हणुन नामांकित आंबेडकरी साहित्यिक *प्रा. डॉ. गंगाधर पानतावणे* कां नाहीत...? आंबेडकरी चळवळी बाहेरील जातीयवादी गिरीश गांधीची निवड कां ? हा माझा अहमं प्रश्न होता. इथे गिरीश गांधीनी केलेल्या उपदव्यापाबद्दल आता लिहिणे बरे नाही ! तसेच नागपुरातील समस्त आंबेडकरी साहित्यीकांचा वाढता विरोध बघता, सदर घोषित जागतिक साहित्य परिषद ही रद्द करण्यात आली. प्रश्न असा की, *"आंबेडकरी - बौद्ध साहित्यिक हे समाजाच्या नैतिक विचारवादाचा आरसा आहेत...!"* समाजाला ह्या साहित्यिकांकडुन उचित अशा दिशा आणि मार्गदर्शनाची अपेक्षा आहे. जर ती मान्यवर अनैतिकवादाची री ओढुन समाजाला आपली शेपटी पकडुन मुकपणे सोबत यावे, अशी अपेक्षा करणार असतील तर त्यांना फालो करावे वा त्या विरोधात आवाज उठवावा. हा भाव आपण विद्वान समाज भावावर सोडलेला बरे.. ! कारण अलीकडे महाराष्ट्राच्या सामाजिक न्याय विभागाने नागपुरात घेतलेली "आंतरराष्ट्रिय शांतता व समता परिषद" हा असाचं एक प्रयोग होता. तेव्हा आपण सर्वांच्या बुध्दीच्या कसोटीवर ह्याचा सर्वांगी विचार व्हावा. ह्या अपेक्षेत...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपूर*
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Sunday 20 May 2018

Government of Maharashtra refused to provide Z Plus Security to an eminent person Dr. Milind Jiwane.

🚨 *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' इन्हे महाराष्ट्र शासन ने 'झेड प्लस सुरक्षा' देना नकारा...!*
      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन के अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६ के अध्यक्ष, नामांकित कवि - लेखक - चिंतक - टिकाकार *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनको, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक *डॉ. मोहन भागवत जी* इन्हे जो झेड प्लस सुरक्षा एवं सुविधाएँ दी गयी है, ठिक उसी प्रकार की सुरक्षा देने की माँग, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री / गृहमंत्री को की गयी थी. परंतु पोलिस आयुक्त, नागपुर इन्होने डॉ. जीवने को "झेड प्लस सुरक्षा" देने मे नकार दिया था. अत: पोलिस आयुक्त के उस अधिकार आदेश पर प्रश्न उपस्थित किया गया. अभी अभी महाराष्ट्र के सहा. पोलिस महानिरीक्षक, मुंबई के आदेश अन्वये वह सुरक्षा देना अस्विकृत करने का पत्र, पोलिस उप - आयुक्त, विशेष शाखा, नागपुर इन्होने डॉ. जीवने को भेजा है. अब और प्रश्न उठ रहा कि, सहा. पोलिस महानिरीक्षक को झेड प्लस सुरक्षा देने संदर्भ मे आदेश देने का अधिकार है या नही...? या वह अधिकार गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारों के अधिन है..? या गृहमंत्री - मुख्यमंत्री को...? अगर डॉ. जीवने को "झेड प्लस सुरक्षा" देना नकारा जाता हो तो, फिर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और अन्य शक्तीशाली लोगों को कौन से मापदंड आधार पर "झेड प्लस सुरक्षा एवं सुविधाएँ" प्रदान की गयी है...? और जनता के करोडो रूपयों का अपव्यय किया जा रहा है...!
* *इंजी. गौतम हेंदरे*, जिला अध्यक्ष, नागपुर
* *डॉ. प्रमोद चिंचखेडे*, शहर अध्यक्ष, नागपुर
* प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, सुर्यभान शेंडे, दिपाली शंभरकर, डॉ. मनिषा घोष, डॉ. भारती लांजेवार, वंदना जीवने, चंदा भानुसे, माला सोनेकर, हिना लांजेवार, बबीता गोडबोले, मिलिन्द गाडेकर, नरेश डोंगरे, डॉ. राजेश नंदेश्वर, संजय फुलझेले, विरेंद्र कर्दम, पुनम फुलझेले, सुरेखा खंडारे, अड. निलिमा लाडे आंबेडकर आदी... पदाधिकारी
* सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल


Saturday 19 May 2018

🇮🇳 *हम सभी भारतीय है....!*
           *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
           मो.न. ९३७०९८४१३८

भारतीय इतिहास के पन्नो पर
असत्य एवं षद्म मानसिकता छाया में
अखंड भारत सत्य की
अपनी अलग ही पहचान देनेवाले
करूणा सागर बुध्द हो
महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक हो
या राष्ट्रपिता ज्योतीबा फुले हो
राष्ट्रमाता सावित्री फुले हो
छत्रपती राजे शिवाजी महाराज हो
छत्रपती राजे शाहु महाराज हो
भारत के संविधान निर्माता
बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर हो
आदी महान वीरों के
महान दर्शन एवं कृतीशिलता ने
अखंड भारत को खंड खंड करनेवाले
हिन मानसिकता को बेनकाब कर
ब्राम्हणी मानसिकता पुरस्कृत
गद्दार सरदार पुष्यमित्र हो
घरभेदी विभिषण हो
राजा (?) जयचंद हो
आदी हिन - नीच भावों के नाम
भारतीय समाज व्यवस्था ने
अपने वारिसों के लिए फिर नही दोहराये
और वे नाम इतिहास जमा हो गये.
वही भारतीय इतिहास मे
फिर से
'गोगा' वाद का कु-उदय
अर्थात गोलवलकर गांधी का जन्म होना
भारत अ-विकास की काली छाया रही
और 'समता मुलक समाज' निर्माण सें
हम कही दुर चले गयें !
वही भारतीय संविधान ने
अपना स्व-अस्तित्व प्रस्थापित कर
समस्त जन मन को
एक व्यक्ती, एक वोट
और एक वोट, एक मुल्य का
समान राजकिय अधिकार देकर
तुम्हे आदमी के काबिल तो बना दिया
पर तुम 'गोगा' के अधिन काम करने में
अपनी ही धन्यता मानते रहे
और संविधान प्रदत्त अधिकार होकर भी
तुम गोगा के मानसिक गुलाम बन गये.
वही सामाजिक - आर्थिक समता भाव को
तुम्हारी बडी भुल और अज्ञानता ने
तुम उसे बहुत दुर छोड चले गयें
और सत्तावाद का संपूर्ण केंद्रीकरण
अल्पसंख्यी उच्च वर्ग के पास आ गया.
वे तुम्हे धर्मांधी देववाद का दास बनाकर
अपने ही आपस आपस मे लढाते रहे
वही मंदिरो के बहुमुल्य चढावे पर
केवल स्व-स्वामित्व अधिकार जताकर
भारतीय अर्थव्यवस्था का
पुरा बंट्याधार करते आये है.
फिर भी तुम भावना मे अंधे होकर
भारत का नही, देववाद का सोचते है
दोस्तो, यह मुर्खमय अंध भाव
हम कब तक सहन करे ?
अब चलो... उठो ! क्रांती करने !!
इस हाथ मे एक मशाल लिये !!!
सामाजिक - आर्थिक समता पाने के लिए
बुध्द - फुले - आंबेडकर का दामन थामे
हमे एक उंचा नारा देना है
हम सभी भारतीय है...!!!

* * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
      (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८

Thursday 17 May 2018

💃 *राजकिय नाच्यांच्या जगतात...!*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
           मो.न. ९३७०९८४१३८

आम्ही भारताचे लोक
सार्वभौम प्रजासत्ताक झालेले आहोत.
ह्या सोबतचं
भारतीय संविधानाने
राजकिय अधिकाराची समता
ह्या देशात प्रस्थापित करतांना
सामाजिक - आर्थिक विषमतेचा
भयान महापाट अद्यापही फुलतांना
डॉ. आंबेडकरांनी दिलेली चेतावणी
तो मात्र पुर्णत: विसरतो आहे...!
भारतास मिळालेल्या स्वातंत्र्याला
अर्ध्या शतकाच्याही अधिक
असा कालखंड लोटलेला असतांना
नरेंद्र मोदी - भोगी - चोदी
राहुल गांधी सारखे ना-लायक भोकाडे
आज ही 'हिंदुस्तान' नावाचा
अनैतिक जप करीत असतांना
'भारत' ह्या स्व: संविधानिक आईवर
बिनधास्त बलात्कार करीत आहेत.
आणि भारत राष्ट्रवादाचा आव आणतांना
त्यांच्या ह्या हिन विकृतीचे
गोडवे गाणा-या 'राजकिय नाच्यांची'
निर्माण झालेली अनैतिक फौज
ह्या देशाशी गद्दारी करीत असतांना
आम्ही भारतीय लोक
हिजड्यांच्या टाळ्या वाजवुन
अनैतिक संस्कृतीचा
बिनधास्त खुला प्रसार - प्रचार करतांना
आमच्यातला तो स्वाभिमान
आम्ही कुठे गहाण ठेवला आहे ?
हा अनुत्तरित गंभिर प्रश्न आहे.
अलिकडे तर
ह्या राजकिय जगतातील
मंत्री, संत्री, जंत्री, खासदार, आमदार
ह्यांनी आपल्या राजनिती पटलावरील
आपले स्व-नैतिक दायित्व सोडुन
सामाजिक - धार्मिक सभा परिषदामंध्ये
बिनधास्तपणे हजेरी लावतांना
शंकराचार्य - पंडित - भिख्खु वर्गाला
आता तुम्हाला शरण जाणार नाही
तुम्हालाचं आमच्या पायाशी
भविष्यात लोटांगण घालायचे आहे
असा संदेश देणे सुरु केले आहे.
आता पुनश्च एक प्रश्न निर्माण झाला
ह्या राजकिय नाच्यांनी
सामाजिक - धार्मिक क्षेत्रामध्ये
'डांसिंग शो' सुरू केलेले असल्याने
राजकिय नाचांच्या जगतात
आता सत्तावादाचे वारिस कोण...?

* * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
     (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

Wednesday 16 May 2018

✍ *नागपुर की आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद २०१८ : नाचवाद के हिन - दीन प्रभाव में बिन-अकलों का दिशाहिन अनैतिक मेला ?*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

        सामाजिक न्याय विभाग, महाराष्ट्र शासन सलग्न डॉ. आंबेडकर समता प्रतिष्ठान, बार्टी पुणे इनकी संयुक्त तत्वाधान में नागपुर के सुरेश भट सभागृह एवं दीक्षाभुमी मे १९ - २० मई २०१८ को "आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद" का आयोजन किया गया है. वही कुछ सामाजिक संघटनों के प्रतिनिधीयों का इस कार्य मे सहयोग लेना, वही वैचारिक स्तर पर संशोधक, विचारवंत, सामाजिक चिकित्सक इनसे संशोधन पेपर ना मंगाना, ना ही संशोधन विचारों पर गहण चर्चा का होना, विषय - स्तर भी आंतरराष्ट्रिय स्तर पर का ना होना,  *ना ही उदघाटक का नाम घोषित है, ना ही परिषद के अध्यक्ष का नाम को घोषित है,  ना ही समारोप सत्र का आयोजन हुआ है, ना ही अतिथीओं के पेपर/भाषण पढने के उपरांत प्रश्नकाल का भाग है, तथा इस परिषद मे 'ठराव वाचन एवं मंजुरी सत्र' का ना होना भी...?"* क्या इसे आंतरराष्ट्रिय परिषद कहाँ जा सकता है...? मंच पर जादातर भाजपा - काँग्रेसी राजकिय नर्तकों का भरमार है, क्या इस परिषद को कोई महामहिम *"विचार पीठ"* कह भी सकता है...? यह तो हमे केवल *"राजकिय नर्तक पीठ"* दिखाई देता है...! जहाँ "शांती एवं समता" विषय चर्चा के संदर्भ मे दुनिया भर के किसी बड़े विद्वान, संशोधक, सामाजिक चिकित्सक आदी महामहिम को कोई स्कोप है ? यह भी और एक अहमं तथा महत्वपुर्ण संशोधन का विषय कहना होगा ! *जब कोई आयोजक ही बिन अकल - दिशाहिन नाचा (नर्तक) हो तो, उस नर्तक से गरिमामय "विचार परिषद" आयोजन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है...?* निमंत्रण पत्रिका मे कौनसा राजकिय नर्तक किस महाभाग का स्वागत करेगा, और कौनसा सरकारी नर्तक (नाचा) मार्गदर्शन, आभार भाव व्यक्त करेगा, उस का ज्वलंत एकमेव उदाहरण "निमंत्रण पत्रिका" अगर कोई है तो, वह है हमारे महाराष्ट्र के सामाजिक (अ)-न्याय विभाग की...! जो अपने आप में अ-नैतिकता की एक पहचान कराती है...! *अत: जन मन के पैसों का इस तरह धुलवाड - बरबादीकरण चल रहा हो तो, निश्चित ही हमे इसकी दखल लेनी होगी. क्यौं कि, यह पैसा इन नर्तकों (नाचा) के किसी व्यक्तीगत खातों से खर्च नही हो रहा है, बल्की यह पैसा तो समस्त आवाम का है. इस गैर-परिषद से राष्ट्रनिर्माण यह भाव काफी दुर है..!* और इसके लिए जो भी नाचा दोषी होगा, उन पर हमे फौजदारी एवं नागरी केस दाखल करने की दिशा मे पहल करनी बहुत जरूरी है ! इस हिन कृती को राष्ट्रद्रोहिता - समाजद्रोहिता नही, तो इसे और क्या कहे ? अत: भविष्य मे कोई भी राष्ट्रद्रोही नर्तक (नाचा) इस तरह की गुस्ताकी ना करे,  इस लिए हमे सजग भी रहना होगा...!
     कुछ दिन पहले मैने इस आंतरराष्ट्रिय परिषद के आयोजन दोषों पर, सुझाव लेख लिखकर, उन आयोजकों को सुधार करने की बातें कही थी. मै स्वयं भी कई राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषदों मे देश - विदेशों में सम्मिलीत रहा हुँ. तथा संशोधन पेपर भी पढे है. पर मुझे किसी भी परिषदों मे इस तरह के राजकिय नाचों की, विचार पीठ पर सक्रियता नही दिखाई दी. वे राजकीय नेता लोग जनता के बीच बैठकर विद्वान लोगों के विचार सुनते दिखाई दिये. ना ही किसी आयोजकों ने उन्हे विचार पीठ पर बुलाया था. मैने स्वयं भी ४ - ५ आंतरराष्ट्रिय परिषदों का आयोजन किया है. एक भी राजकिय मान्यवरों को मंच पर नही बुलाया है. *"कोई भी राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषद यह केवल और केवल सामाजिक - धार्मिक क्षेत्र मे कार्यरत विद्वान - संशोधक - चिकित्सक इन की एक 'प्रतिनिधिक विचार परिषद' होती है. सामान्य लोगों का वहा जमावडा नही होता...!"* क्यौ कि, वह "विचार परिषद" यह तो समाज - राष्ट्रिय विकास भाव का एक प्रतिबिंब होती है. शासन भी उस परिषद के सार एवं ठरावों पर अपनी भावी दिशा तय करता है. इस लिए हर किसी "विचार परिषद" का डाकुमेंटेशन करना बहुत ही जरूरी भाग होता है. वह परिषद कोई सांस्कृतिक मेला नही होती. परंतु मेरे तथा अन्य मान्यवर लोगो़ के सुझाव देने के उपरांत भी, अगर आयोजक वर्ग मे अती मुजोरभाव भरा हो तो, वह बडा ही चिंता का विषय है. हमारे सरकारी कार्यालय, यह कोई उन अधिकारी वर्ग का वैयक्तिक घर नही है, जो स्वयं मनमर्जी हेकेखोरी करे...! उन अधिकारी वर्ग को मिलनेवाला पगार भी जनता से टँक्स स्वरूप में वसुल किया जाता है. इस लिए ही उन्हे सरकारी नोकर कहा जाता है, मालिक नही...! *निश्चित ही हमारे देश मे ऐसा भी सर्वोच्च पद पर कार्यरत, अच्छा अधिकारी वर्ग है, जिन्होने सामाजिक बांधिलकी को अपना दायित्व समझा है. और वे समाज मे कार्यरत भी दिखाई देते है !* इतना ही नही उन अधिकारी वर्ग ने अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है...! कई बार मेरी उन लोगो़ से चर्चा भी होती है. मिलना - जुलना भी होता है. उन अधिकारी वर्ग की समझदारी - सुजबुझ - विचारों के राह पर, अगर ये अधिकारी नही चले तो, और केवल इन राजकिय नेताओ़ के गुलाम बनते रहेे तो, यह समाज के लिए एक बडी गंभिर समस्या कहनी होगी...!
     नियोजित इस आंतरराष्ट्रिय परिषद में विदेशों से कुछ अच्छे विद्वान और नामांकित मान्यवर भी आ रहे है. जो इस हिन - दीन भावों से अज्ञात है. नियोजित इस परिषद मे उन नामी मान्यवरों को, ना अच्छा पद मिला हुआ हमे दिखाई देता है...! ना परिषद चर्चा का उच्च स्तर...!!! *उदघाटक पद पुर्णतः गायब है. परिषद का अध्यक्ष पद भी गायब है. स्वागताध्यक्ष पद तो नजर नही आता. विभिन्न चर्चा सत्र का पुर्णत: अभाव ही अभाव दिखाई देता है. समापन सत्र कही भी हमे दिखाई नही देता...!!! विद्वान संशोधको का बिलकुल ही सहभाग नही है...! तो क्या केवल यह भाषणबाजी का खुला मंच है...?* ऐसा था तो फिर, आंतरराष्ट्रिय परिषद लेने की क्या जरुरत थी. यह करना था तो, उन राजकिय नर्तकों के लिए, केवल "राजकिय मेला" का ही आयोजन करना था ! जब उपस्थित देशी - विदेशी मान्यवर "विचार पीठ" पर इन नाचों (नर्तक) का जमावडा देखेंगे, और कोई भी गंभिर - सखोल संशोधनात्मक - चिकित्सात्मक चर्चा नही सुनेंगे, तो भारत के छबी को खराब करने के लिए, यह ना-लायक जबाबदार होंगे... क्या इस बारे मे कभी उन्होने सोचा है...?
       दोस्तो, सामाजिक, धार्मिक, राजकीय इन तिनो क्षेत्रों की अपनी अलग अलग सीमाएँ बंधी है. और सामाजिक और राजकिय क्षेत्र में कार्यरत लोक, यह एक दुसरे क्षेत्र मे कार्यरत दिखाई देना, कोई भी बुराई नही कहा जा सकती. परंतु धार्मिक क्षेत्र यह उन दोनो ही क्षेत्र से परे होकर, बडे ही शक्तीशाली एवं नैतिकता भाव का आदर्शवाद लेकर चलता है. धार्मिक क्षेत्र में कार्यरत मान्यवरों का बडा ही सन्मान होता है. वे मान्यवर पुजनिय भी होते है. अत: इस क्षेत्र मे हिन - दीन - गंदगी फैलानेवाले, वे हिन - दीन आयोजक, निश्चितच ही माफी के काबिल नही है...! अत: उस नियोजित परिषद के संदर्भ मे उचित निर्णय लेने का दायित्व यह सर्वस्वी आप का अपना है...!!!

* * * * * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न.  ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
✍ *नागपुर की आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद २०१८ : नाचवाद के हिन - दीन प्रभाव में बिन-अकलों का दिशाहिन अनैतिक मेला ?*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

        सामाजिक न्याय विभाग, महाराष्ट्र शासन सलग्न डॉ. आंबेडकर समता प्रतिष्ठान, बार्टी पुणे इनकी संयुक्त तत्वाधान में नागपुर के सुरेश भट सभागृह एवं दीक्षाभुमी मे १९ - २० मई २०१८ को "आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद" का आयोजन किया गया है. वही कुछ सामाजिक संघटनों के प्रतिनिधीयों का इस कार्य मे सहयोग लेना, वही वैचारिक स्तर पर संशोधक, विचारवंत, सामाजिक चिकित्सक इनसे संशोधन पेपर ना मंगाना, ना ही संशोधन विचारों पर गहण चर्चा का होना, विषय - स्तर भी आंतरराष्ट्रिय स्तर पर का ना होना,  *ना ही उदघाटक का नाम घोषित है, ना ही परिषद के अध्यक्ष का नाम को घोषित है,  ना ही समारोप सत्र का आयोजन हुआ है, ना ही अतिथीओं के पेपर/भाषण पढने के उपरांत प्रश्नकाल का भाग है, तथा इस परिषद मे 'ठराव वाचन एवं मंजुरी सत्र' का ना होना भी...?"* क्या इसे आंतरराष्ट्रिय परिषद कहाँ जा सकता है...? मंच पर जादातर भाजपा - काँग्रेसी राजकिय नर्तकों का भरमार है, क्या इस परिषद को कोई महामहिम *"विचार पीठ"* कह भी सकता है...? यह तो हमे केवल *"राजकिय नर्तक पीठ"* दिखाई देता है...! जहाँ "शांती एवं समता" विषय चर्चा के संदर्भ मे दुनिया भर के किसी बड़े विद्वान, संशोधक, सामाजिक चिकित्सक आदी महामहिम को कोई स्कोप है ? यह भी और एक अहमं तथा महत्वपुर्ण संशोधन का विषय कहना होगा ! *जब कोई आयोजक ही बिन अकल - दिशाहिन नाचा (नर्तक) हो तो, उस नर्तक से गरिमामय "विचार परिषद" आयोजन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है...?* निमंत्रण पत्रिका मे कौनसा राजकिय नर्तक किस महाभाग का स्वागत करेगा, और कौनसा सरकारी नर्तक (नाचा) मार्गदर्शन, आभार भाव व्यक्त करेगा, उस का ज्वलंत एकमेव उदाहरण "निमंत्रण पत्रिका" अगर कोई है तो, वह है हमारे महाराष्ट्र के सामाजिक (अ)-न्याय विभाग की...! जो अपने आप में अ-नैतिकता की एक पहचान कराती है...! *अत: जन मन के पैसों का इस तरह धुलवाड - बरबादीकरण चल रहा हो तो, निश्चित ही हमे इसकी दखल लेनी होगी. क्यौं कि, यह पैसा इन नर्तकों (नाचा) के किसी व्यक्तीगत खातों से खर्च नही हो रहा है, बल्की यह पैसा तो समस्त आवाम का है. इस गैर-परिषद से राष्ट्रनिर्माण यह भाव काफी दुर है..!* और इसके लिए जो भी नाचा दोषी होगा, उन पर हमे फौजदारी एवं नागरी केस दाखल करने की दिशा मे पहल करनी बहुत जरूरी है ! इस हिन कृती को राष्ट्रद्रोहिता - समाजद्रोहिता नही, तो इसे और क्या कहे ? अत: भविष्य मे कोई भी राष्ट्रद्रोही नर्तक (नाचा) इस तरह की गुस्ताकी ना करे,  इस लिए हमे सजग भी रहना होगा...!
     कुछ दिन पहले मैने इस आंतरराष्ट्रिय परिषद के आयोजन दोषों पर, सुझाव लेख लिखकर, उन आयोजकों को सुधार करने की बातें कही थी. मै स्वयं भी कई राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषदों मे देश - विदेशों में सम्मिलीत रहा हुँ. तथा संशोधन पेपर भी पढे है. पर मुझे किसी भी परिषदों मे इस तरह के राजकिय नाचों की, विचार पीठ पर सक्रियता नही दिखाई दी. वे राजकीय नेता लोग जनता के बीच बैठकर विद्वान लोगों के विचार सुनते दिखाई दिये. ना ही किसी आयोजकों ने उन्हे विचार पीठ पर बुलाया था. मैने स्वयं भी ४ - ५ आंतरराष्ट्रिय परिषदों का आयोजन किया है. एक भी राजकिय मान्यवरों को मंच पर नही बुलाया है. *"कोई भी राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषद यह केवल और केवल सामाजिक - धार्मिक क्षेत्र मे कार्यरत विद्वान - संशोधक - चिकित्सक इन की एक 'प्रतिनिधिक विचार परिषद' होती है. सामान्य लोगों का वहा जमावडा नही होता...!"* क्यौ कि, वह "विचार परिषद" यह तो समाज - राष्ट्रिय विकास भाव का एक प्रतिबिंब होती है. शासन भी उस परिषद के सार एवं ठरावों पर अपनी भावी दिशा तय करता है. इस लिए हर किसी "विचार परिषद" का डाकुमेंटेशन करना बहुत ही जरूरी भाग होता है. वह परिषद कोई सांस्कृतिक मेला नही होती. परंतु मेरे तथा अन्य मान्यवर लोगो़ के सुझाव देने के उपरांत भी, अगर आयोजक वर्ग मे अती मुजोरभाव भरा हो तो, वह बडा ही चिंता का विषय है. हमारे सरकारी कार्यालय, यह कोई उन अधिकारी वर्ग का वैयक्तिक घर नही है, जो स्वयं मनमर्जी हेकेखोरी करे...! उन अधिकारी वर्ग को मिलनेवाला पगार भी जनता से टँक्स स्वरूप में वसुल किया जाता है. इस लिए ही उन्हे सरकारी नोकर कहा जाता है, मालिक नही...! *निश्चित ही हमारे देश मे ऐसा भी सर्वोच्च पद पर कार्यरत, अच्छा अधिकारी वर्ग है, जिन्होने सामाजिक बांधिलकी को अपना दायित्व समझा है. और वे समाज मे कार्यरत भी दिखाई देते है !* इतना ही नही उन अधिकारी वर्ग ने अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है...! कई बार मेरी उन लोगो़ से चर्चा भी होती है. मिलना - जुलना भी होता है. उन अधिकारी वर्ग की समझदारी - सुजबुझ - विचारों के राह पर, अगर ये अधिकारी नही चले तो, और केवल इन राजकिय नेताओ़ के गुलाम बनते रहेे तो, यह समाज के लिए एक बडी गंभिर समस्या कहनी होगी...!
     नियोजित इस आंतरराष्ट्रिय परिषद में विदेशों से कुछ अच्छे विद्वान और नामांकित मान्यवर भी आ रहे है. जो इस हिन - दीन भावों से अज्ञात है. नियोजित इस परिषद मे उन नामी मान्यवरों को, ना अच्छा पद मिला हुआ हमे दिखाई देता है...! ना परिषद चर्चा का उच्च स्तर...!!! *उदघाटक पद पुर्णतः गायब है. परिषद का अध्यक्ष पद भी गायब है. स्वागताध्यक्ष पद तो नजर नही आता. विभिन्न चर्चा सत्र का पुर्णत: अभाव ही अभाव दिखाई देता है. समापन सत्र कही भी हमे दिखाई नही देता...!!! विद्वान संशोधको का बिलकुल ही सहभाग नही है...! तो क्या केवल यह भाषणबाजी का खुला मंच है...?* ऐसा था तो फिर, आंतरराष्ट्रिय परिषद लेने की क्या जरुरत थी. यह करना था तो, उन राजकिय नर्तकों के लिए, केवल "राजकिय मेला" का ही आयोजन करना था ! जब उपस्थित देशी - विदेशी मान्यवर "विचार पीठ" पर इन नाचों (नर्तक) का जमावडा देखेंगे, और कोई भी गंभिर - सखोल संशोधनात्मक - चिकित्सात्मक चर्चा नही सुनेंगे, तो भारत के छबी को खराब करने के लिए, यह ना-लायक जबाबदार होंगे... क्या इस बारे मे कभी उन्होने सोचा है...?
       दोस्तो, सामाजिक, धार्मिक, राजकीय इन तिनो क्षेत्रों की अपनी अलग अलग सीमाएँ बंधी है. और सामाजिक और राजकिय क्षेत्र में कार्यरत लोक, यह एक दुसरे क्षेत्र मे कार्यरत दिखाई देना, कोई भी बुराई नही कहा जा सकती. परंतु धार्मिक क्षेत्र यह उन दोनो ही क्षेत्र से परे होकर, बडे ही शक्तीशाली एवं नैतिकता भाव का आदर्शवाद लेकर चलता है. धार्मिक क्षेत्र में कार्यरत मान्यवरों का बडा ही सन्मान होता है. वे मान्यवर पुजनिय भी होते है. अत: इस क्षेत्र मे हिन - दीन - गंदगी फैलानेवाले, वे हिन - दीन आयोजक, निश्चितच ही माफी के काबिल नही है...! अत: उस नियोजित परिषद के संदर्भ मे उचित निर्णय लेने का दायित्व यह सर्वस्वी आप का अपना है...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न.  ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Sunday 13 May 2018

💧 *ह्या रमाईच्या आसवाला.....!*
              *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
               मो.न.९३७०९८४१३८

ह्या रमाईच्या आसवाला भीमाचा वास होता
बाबांच्या प्रेम पत्राला जगण्याचा नाद होता...

गोव-या थापतांना भारी श्रमाचा मारा होता
कटु आसवे पितांना दु:खाचा ना भाव होता
अरे आईच्या कुशीत भीमबाचा साद होता
क्रांतीने तुझ्या नावे इतिहास घडला होता....

राजरत्नाच्या जाण्याने बाबांना तो घात होता
कफनाच्या खर्चालाही खिशात ना पैसा होता
फाडुन तु पदर अंत संस्कारा दिला होता
बाबांच्या वेदनांना अग हा मोठा घाव होता...

विलायत जातांना भीमाला तुझा साथ होता
ओथंबलेल्या आसवांनी तुझा तो बाय होता
शब्दमय मनाचा बाबाला तुझा धीर होता
तुझ्या जाण्याने बाबांचा आधार खचला होता...

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Friday 11 May 2018

Is a International gathering or Conference , it will organize by Govt. Of Maharashtra...?

✍ *सामाजिक न्याय विभागातर्फे नागपुरात आयोजित आंतरराष्ट्रिय परिषद की मेळावा ?*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपूर*
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

         सामाजिक न्याय व विशेष सहाय्य विभाग, महाराष्ट्र राज्य ह्यांनी स्वपुढाकार घेवुन बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर आणि भ. गौतम बुध्द जयंतीच्या निमित्ताने आतंरराष्ट्रीय शांती आणि समता परिषद *"( International Peace and Equality Conference)"* ह्या कार्यक्रमाचे आयोजन करणे, हा खरे तर स्तुत्य उपक्रम म्हणावा लागेल. भले ही इथे राजनितिक भाव असेल ! परंतु ह्या उपक्रमात शासकिय आयोजक वर्गाकडुन झालेले गंभिर दोष हे मात्र वैचारिक दिवाळपण सांगणारे आहेत. आणि ह्या वैचारिक दिवाळपणात जर बगैर शासकिय मंडळीचा सहभाग असेल तर, मग मात्र अशा बिन-अकलवादी, अनुभव नसलेल्यांची सोबत ह्या नियोजित आंतरराष्ट्रिय परिषदेचा दर्जा खालावण्यास निश्चित कारणीभुत ठरणार आहे. आणि ती मंडळी स्वत:ला आंबेडकरी म्हणवुन घेत असतील तर, मात्र त्यांच्या बुध्दीची (?) किव करावी लागेल...! आता नियोजित परिषदेतील झालेल्या चुका विषयी बोलु या...!
      सदर नियोजित आंतरराष्ट्रिय परिषदेतील सर्वात मोठी आणि भयानक चुक म्हणजे *"थिम टायटल"* आणि दुसरे म्हणजे संपूर्ण जगभरातील संशोधक - मान्यवर - विद्वानाकडुन संशोधन पेपर न मागविणे...! तसेच सब-थीमचा ही अभाव...!!! ह्याशिवाय ज्या विषयावर नियोजित आंतरराष्ट्रीय परिषदेत सखोल चर्चा करणे अभिप्रेत आहे, सदर विषयाला नसणारा आंतरराष्ट्रिय दर्जा स्पर्श...! आणि संशोधकांनी पेपर सादरीकरण केल्यानंतर उपस्थितांना वाटणा-या शंका निरसरण एवं प्रश्न, त्याची उत्तरे सत्राचा व्यवस्था अभाव. इतकेच काय डाकुमेंटेशनचे अभावीकरण...! कुठल्याही राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषदेतील सामाजिक - राष्ट्रिय विषयावर झालेल्या त्या संशोधनात्मक चर्चेचे डाकुमेंटेशन करुन, सदर डाकुमेंटेशन प्रकाशित करणे आणि शासनाला कळविणे हे ही गरजेचे असते. कारण सदर डाकुमेंटेशन द्वारा शासनाला सामाजिक - राष्ट्रिय दृष्टिकोनातून काही महत्त्वाच्या शासन योजना तयार करण्याला मदत होणारी असते. आणि सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद शासनाकडुनचं आयोजित केलेली असल्याने उपरोक्त जबाबदारी ही जास्तचं अशी वाढणारी आहे. *"कारण कोणतीही आंतरराष्ट्रिय परिषद ही केवळ देशी-विदेशी लोकांना बोलावण्याचा जमघट नाही. तर ती पॉलिसी मेकिंग आणि अप्लाईंग प्रोसीजर आहे."* एकंदरीत बघता सदर बाबींचा अभाव असल्याने नियोजित समारोहाला "आंतरराष्ट्रिय परिषद" न म्हणता *"आंतरराष्ट्रिय मेळावा"* म्हणने जास्त संयुक्तिक होईल...!
     सदर नियोजित आंतरराष्ट्रिय परिषदेचे नाव हे "International Peace and Equality Conference" असे घोषित केलेले आहे. ह्या नावातचं खुप अशी गंभिर चुक आहे. कारण हेचं नाव तर सदर परिषदेची "थीम" आहे. आणि सदर परिषदेचे नामकरण हे *"World Peace and Equality International Conference" किंवा "International Conference for Peace and Equality"* असे असते तर अजुन ते जास्त संयुक्तिक असे झाले असते. तसेच सदर थिमच्या अनुषंगाने सब-थीम देणे ही गरजेचे होते. परंतु नाचेवाद आणि खुरापत करणारी हिन - दीन - दलित सोबती असल्यास, अशी महाचुक होणे काही नविन नाही ! तेव्हा पुढे भविष्यात होणा-या कोणत्याही परिषदेत पुढे ही काळजी घेणे गरजेचे आहे. ह्याशिवाय भाषण वेळेचे सीमा बंधन पालन महत्त्वाचे आहे. उदघाटक आणि अध्यक्षांना १५ - २० मिनिटाचा अवधी तर अन्य वक्त्यांना केवळ १० मिनिटे बोलण्याचा अवधी बाबतची सुचना देणे फार गरजेचे आहे. नाही तर त्यांचा ४५ - ६० मिनिटाचा विद्यार्थ्यांना शिकविण्याचा पाठ सवय ही जाता जात नाही. आणि एक महत्वाचा विषय म्हणजे सदर परिषदेत ठेवल्या जाणा-या छत्रपती शिवाजी महाराज आणि म. ज्योतीबा फुले ह्यांचा फोटो. निश्चितच सदर दोन्ही महामानव आम्हाला आदर्श आहेत. परंतु सदर दोन्ही मान्यवरांचे फोटो ठेवण्याची इथे औचित्यता नाही. भगवान बुध्दाची मुर्ती आणि प.पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ह्यांचा फोटोचं सदर परिषदेत विचार पीठावर ठेवणे हे औचित्याचे असणार आहे.
      सदर नियोजित आंतरराष्ट्रिय शांती आणि समता परिषदेत सहभागी होणा-या प्रमुख अतिथी वर्गाचा दर्जा ही अजिबात साजेसा असा दिसत नाही. दुस-या भाषेत सांगावयाचे झाले तर सदर निमंत्रित मान्यवर नैतिकतेच्या कसोटीवर सदर पदाला पात्र आहेत असे म्हणता येणार नाही. जसे - महाराष्ट्राचे मुख्यमंत्री मा. देवेंद्र फडणवीस ह्यांना आंतरराष्ट्रिय परिषदेचे अध्यक्षपद देणे. नितीन गडकरी ह्यांचे बीज भाषण. आंतरराष्ट्रिय परिषदेत बीज भाषण काय प्रकार आहे...? निश्चितचं देवेंद्र फडणवीस आणि नितीन गडकरी जी, ही मान्यवर राजकारण आणि सत्तेतील मोठी मान्यवर आहेत. *परंतु धर्म मुल्याच्या संदर्भाने सदर मंडळी शंकराचार्य वा अन्य प्रमुख संत ह्यांच्या पेक्षा मोठी नाहीत. आणि सदर मान्यवर ही त्यांना आपला आदर्श मानतात. सन्मान ही देतात. असा भाव आमच्या आयोजक महिमांना कां जोपासता आला नाही...?* ही एक शोकांतिका म्हणावी लागेल...! आणि नागपुर शहरात सदर आंतरराष्ट्रिय परिषद होत असल्याने आणि सदर मान्यवर मंडळी ही नागपुरचीच असल्याने , तसेच वरिष्ठ मंत्री असल्याने, पर्यायाने ती मान्यवर नेते शासनाचा भाग असल्याने त्यांना सदर परिषदेचे "स्वागताध्यक्ष" केले असते तर आणि त्यांच्या हाताने उपस्थित विदेशी पाहुण्यांचा सत्कार केला गेला असता तर, सदर नियोजित परिषदेला अजुन एक लौकिक प्राप्त झाला असता. दुसरी गोष्ट ही की, सदर मंत्रीगण भाजपा शी संबधित असल्याने त्यांना विरोध होता कामा नये. ह्यापुर्वी काँग्रेस शासित मंत्री वर्गाला विरोध केला गेला नाही तर भाजपा शासित मंत्री वर्गाला विरोध करणे, हे नैतिकतेला धरुन म्हणता येणार नाही. तसेच मा. राजकुमार बडोले साहेब सदर परिषदेचे "प्रमुख निमंत्रक" म्हणुन राहणे हे अधिक सोईस्कर झाले असते. *उदघाटक म्हणुन कोणत्याही बौध्द देशातील राजघराण्याच्या मान्यवराचे असणे आणि सदर नियोजित आंतरराष्ट्रीय परिषदेचे अध्यक्ष हे जर जागतिक दर्जाचे बौध्द भिख्खु वा कुणा विद्वानाला बोलावले गेले असते तर, सदर परिषदेची गरिमा अजुन मोठी झालेली असती.* तसेच अन्य देशी विदेशी मोठी मान्यवर ही 'प्रमुख अतिथी' तसेच विशेष अतिथी म्हणुन असते तर, परिषदेचा लौकिक वाढला असता. सदर परिषदेत खा. डॉ. नरेंद्र जाधव ह्यांचे विशेष व्याख्यान हा काय प्रकार आहे...? कोणत्याही परिषदेत उदघाटन सत्र, प्रथम सत्र, द्वितिय सत्र, तृतीय सत्र, समारोप सत्र हा क्रम असतो. तसेच समारोपीय सत्रात "ठराव वाचन आणि मान्यता" हा एक महत्वपुर्ण भाग असतो. सदर महत्वपुर्ण भाग हा सदर नियोजित परिषदेत दिसुन आलेला नाही. कारण कोणत्याही परिषदेत पारित झालेले ठराव हे सामाजिक - धार्मिक - मानवी - राष्ट्रिय मुल्यांचे भाव जोपासणारे असतात. शासन सुद्धा सदर ठरावाची दखल घेत असते. समारोपीय सत्रात ही उदघाटन सत्रा प्रमाणेचं देशी - विदेशी पाहुण्यांना प्राधान्य असणे हा तर सदर परिषदेचा दर्जा आणि गरिमा वाढविणारी आहे.
     मित्रांनो, सदर परिषदेच्या सत्रातील चुकांच्या संदर्भानेही अजुन बरेच लिहिता येईल. कोणत्याही आंतरराष्ट्रिय परिषदेचे आयोजन करणे, हा इतका सहज भाव नाही. जवळपास एक वर्षभर त्याचे दुरगामी प्लँनिग, विषयवार सुक्ष्म अभ्यास आणि नियोजित प्रमुख अतिथी वर्गांची कार्य पार्श्वभूमी आदींची माहिती घेणे, संशोधन पेपर मागविणे, डाकुमेंटेशन तयार करणे आदी ब-याच प्रकारच्या प्रक्रियेतुन जावे लागत असते. आज काल जिकडे तिकडे भरणा-या परिषदा ह्या तर परिषदा नसुन फक्त आणि फक्त मेळावे आहेत. मध्यंतरी पुणे येथे *"भारतीय बौद्ध महासभा"* ह्या संघटनेच्या एका गटाने घेतलेली आंतरराष्ट्रिय परिषद ही एक अशीचं बिन-अकलवादी आयोजक - पदाधिका-यांनी आयोजित केलेली परिषद होती. अलीकडे संत तुकडोजी महाराज नागपूर विद्यापीठाद्वारे आयोजित *"आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट सेंटर"* च्या उदघाटन समारोहाची पुर्णत: वाट लागली. सदर बांधलेल्या इमारतीचा नकाशा हा मनपाच्या नगर रचना विभागाकडून मंजुरचं करुन घेण्यात आला नाही. जर ह्या दोषी प्रकरणात आमचे आंबेडकरी म्हणवणारी अधिकारी सहभागी असतील तर, त्यांच्या बुध्दीची कीवचं करावी लागेल...! तसे बघता आंबेडकरी समाजात आता नव्याने समोर समोर नाचणा-या नाच्यांची फौज तयार झालेली दिसुन येते. आणि कदाचित भविष्यात ह्या दीन - हिन - दलित नाचांच्या उपद्रवातुन आंबेडकरी चक्र हे उलट तर फिरणार नाही नां...? ही भयान भीति आता वाटु लागलेली आहे...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४ , २०१५
* आयोजक, जागतिक बौद्ध स्त्री परिषद २०१५
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Wednesday 9 May 2018

✍ *आंबेडकरी समाजातील दीन-हिन दलित नाचे आणि फोफावणारा अनैतिक नाचेवाद ?*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपूर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

           आमच्या ह्या आंबेडकरी समाजाने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ह्यांच्या विचार प्रभावातुन बौध्द धम्माशी बांधिलकी घेणे, हा मात्र वैचारिक परिवर्तनाचा मोठा केंद्र बिंदु म्हणावा लागेल...! कदाचित आमच्यातील काही मान्यवर मंडळी ही "आंबेडकर समाज" ह्या शब्द प्रयोगावरही शब्द आगपाखड करतील. परंतु आज ही ह्या महार समाजाचे अस्तित्व ठेवणा-या "दलितत्व" भावाचे काय ? ह्या साध्या प्रश्नाचे उत्तर मिळणे ही गरजेचे राहाणार आहे. दलितत्व जोपासणारा हा महार समुह असो की, अन्य मागासवर्गीय समाज असो, ह्यांना कट्टर, प्रामाणिक, समर्पित असे आंबेडकर विचारवादी म्हणता येईल काय..? पुन्हा हा प्रश्न आलाचं ! अलिकडे काही दलितवादी मंडळी मात्र कधी कधी गांधीचा उदो उदो करतांना दिसतात, तर काही मंडळी ही मार्क्सचा...! भारतात जन्मास आलेला आंबेडकरवाद हा काय अपुर्ण म्हणावा ? वा बुध्दवादात काही अभाव आहे काय ? म्हणुन तो विद्वान दलित वर्ग समुह हा गांधी - मार्क्सच्या विचार पंगतीला बसला आहे...? ह्या उलट गांधी - मार्क्सवादी विचारवंतानी त्यांच्या विचार पीठावर आंबेडकरवादाची औचित्यता ह्यावर कधी चर्चा केली आहे काय...? हा ही प्रश्न महत्वपुर्ण असुन ह्यावर संशोधनात्मक, चिकित्सात्मक विचार होणे गरजेचे आहे.
      प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ह्यांनी २० जुलै १९२४ ला "बहिष्कृत हितकारीणी सभा" ह्या सामाजिक संघटनेची निवं ठेवली. आणि तिन वर्षाच्या अल्पावधीतच १९२७ ला "समता सैनिक दल" ह्या शिस्तबद्ध सामाजिक संघटनेला जन्माला घालणे, हा संदर्भ आम्ही काय समजावा...? पुढे १२ वर्षाचा कालखंड पार पाडल्यानंतर १९३६ ला "स्वतंत्र मजदुर पक्ष" ह्या राजकिय पक्षाचे निर्माण, त्यानंतर सन १९४२ ला "शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशनची" स्थापना करणे आणि त्यानंतर १९५६ ला "रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया" या राजकिय पक्षाच्या संरचनेचा विचार संदर्भ आम्ही कसा समजुन घेणार आहोत ! वर्तमान पत्राबद्दल बोलायचे झाल्यास डॉ. आंबेडकर हे "बहिष्कृत भारत - मुकनायक - जनता" आणि पुढे "प्रबुध्द भारत" ह्या नैतिक विचार-शीलता भावाकडे घेवुन जातांना ते दिसतात. धार्मिक भावना संदर्भाने बोलायचे झाल्यास १ जुलै १९५१ ला "भारतीय बौध्द जन संघ" ह्याची नीव ठेवुन ४ मार्च १९५४ ला "The Buddhist Society of India (भारतीय बौद्ध महासभा)"  ही संघटना स्थापन करतात. आणि दिनांक १४ आक्टोबर १९५६ ला बाबासाहेब आम्हाला बुध्दाकडे घेवुन जातात...! आज ह्या धम्म क्रांतीला ६० वर्षाचा असा मोठा कालखंड लोटलेला आहे. तरी ही आमच्यातील काहींचा दलित - दलितत्वाचा उदो उदो...! आणि स्वत:ला कट्टर, प्रामाणिक आंबेडकरवादी म्हणवुन घेणे...! हा काय गौडबंगाल आहे ? हे समजणे आंबेडकरी बौद्ध समाजाला फारच गरजेचे आहे. आपल्या स्व अस्तीनीतील ही हिन - दीन - दलित निखारे (?) समस्त आंबेडकरी बौद्ध समाजाला कुण्या राजकिय दावणीला (?) बांधताना आपली पोळी मात्र शेकतो आहे. दलित - दलितत्व भावाचे हे हिन - दीन राज सुत्र आम्ही समजणार आहोत की नाही ! हा प्रश्न मात्र तुम्हा स्वत:ला विचारायचा आहे....!!!
      आंबेडकरी भाव विश्वात रमणारे आमचे काही तथाकथित आंबेडकरी नाचेहीे अलीकडे मात्र, मग ती कांग्रेस असो वा भाजपा असो वा, लालशाही असो वा, ती रिपब्लिकन तुकडेवादाची गटशाही असो, त्यांच्या प्रत्येक कार्यक्रमात समोर समोर मिरवतांना दिसुन येतात. तर कधी ते सामाजिक कार्यक्रम असो वा, धार्मिक कार्यक्रम असो वा, सांस्कृतिक कार्यक्रम असो, ही आंबेडकरी (?) नाचे समोर समोर नाचतांना बडेजावपणा सांगुन जातात. आमच्यातील काही प्राध्यापक मंडळीला अशा डायसवर दोन शब्द बोलण्याची संधी दिली की मग त्यांचा ४५ - ६० मिनिटाचा एक पिरियड ठरलेला असतो. तर काही अधिकारी मिरवणारे नाचे ही कुठे सामाजिक - धार्मिक - सांस्कृतिक कार्यक्रम होईल, आणि दुस-याच्या त्या डायसवर समोर समोर नाचायला मिळेल ह्याची वाट बघत असतात. तर काही महाभाग सदर कार्यक्रमाच्या आयोजन समितीत राहतांना आपल्या वार्षिक खर्चाची सहज तजबीज करुन घेतात. ह्याशिवाय कुण्या मोठ्या मान्यवरांच्या जन्मदिवस वा अन्य आयोजनात समरस होवुन स्वत:ची पत (?) किती मोठी आहे, हे सांगुन जातात. इथे प्रश्न आहे तो अशा नाचांच्या मेरिटचा..? ही नाचे स्व-मेरिटवर पुढे गेल्याचे उदाहरण फार क्वचितचं सापडेलं...! त्या नाच्यांमध्ये मात्र एक अ-मेरिट हमखास दिसुन येते. ते आहे "चापुलसगिरी - सलामगिरी...!"
      अलीकडे राजसत्ता धारण करणा-या प्रत्येक राजकिय पक्षांना (गोगा : गोडवलकर - गांधी) डॉ. आंबेडकर - बुध्दवादाला शरण जाणे हे गरजेचे झाले आहे. कांग्रेस युगात गांधी - गांधी नाचेला त्रस्त झालेला जनमत, धर्मांधवादात गुरफटलेला असतांना भाजपाच्या चंगुलवादात फसला. तर दुसरीकडे ओ.बी.सी. आरक्षण मिळण्याकरिता पुर्वी आरक्षणाला विरोध करणारे भडवे "आरक्षण आंदोलन" करतांना हमखास दिसुन येतात. हा प.पु. डॉ. आंबेडकरांच्या विचाराचा आणि "हिंदु कोड बील क्रांतीचा" खरा विजय आपण मानणार आहात की नाही ? तरी ही ह्या ओ.बी.सी. वाद्यांचे पुनश्च गांधी चरण...? सोबतीला दलित भडव्यांचे आंबेडकर विचारपीठावर काहींचे "गांधीकरण - मार्क्सीकरण भाव...!" अती भयान वादळ पेटले आहे. आणि जळतो मात्र आंबेडकरी समाज...! मित्रांनो, ह्या सर्व काही उपद्रव्यापात आंबेडकरी समाजात वावरणारे हे अनैतिक नाचे महत्वपुर्ण दिशाहिनता पसरवतांना दिसत आहेत. अर्थात ह्या "अनैतिक नाचेवादाचा" त्वरित असा बंदोबस्त केला नाही तर, सशक्त आंबेडकरी समाज निर्माण हे मृगजळ स्वप्न असणार आहे.

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Monday 7 May 2018

My Poem..... Dr. Milind Jiwane 'Shakya'

🌹 *माझे शीर्ष बुध्दास लीन झाले !*
        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
          मो.न. ९३७०९८४१३८

सुखी मनाचे रे भाव हे आले
माझे शीर्ष बुध्दास लीन झाले...

गुलामी पाश आम्हा संग वाले
जिवन आम्हा पशु हिन ताले
मानवी भाव हे शोधी ना आले
भीम क्रांतीने नव जीव झाले...

अशोका सत्ता पुनर्जीव काले
भारत भुला नव रूप आले
समता मंत्र जगी नाद न्हाले
भीमा तुझा जगा आधार झाले...

तुकड्या राज पुन्हा संग आले
गुलामी बेड्या आम्हा वाटा झाले
भीमाच्या नावे जो तो भक्त काले
आदर्श रे कुणा ना रक्ती झाले...

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Thursday 3 May 2018

News Paper cutting of Buddha Jayanti celebration at Civil Rights Protection Cell Nagpur

सिव्हील राईट्स प्रोटेक्शन सेल द्वारा नागपुर मुख्यालय में  मनायी गयी बुध्द जयंती की विभिन्न अखबार की पेपर कटिंग...









Tuesday 1 May 2018

Buddha's Birth Day celebrated at Civil Rights Protection Cell office

🌹 *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल द्वारा बुध्द जयंती मुख्यालय में संपन्न...!*
 
      सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (C.R.P.C.) की नागपुर जिला एवं नागपुर शहर के संयुक्त तत्वाधान में, नवा नकाशा नागपुर मुख्यालय में भगवान बुद्ध जंयती सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनकी अध्यक्षता में संपन्न हुयी. प्रमुख अतिथी के तौर पर  *प्रा. डॉ. सुखदेव चिंचखेडे, इंजी. गौतम हेंदरे, डॉ. प्रमोद चिंचखेडे* उपस्थित थे. उस अवसर पर डॉ. मनिषा घोष, वंदना मि. जीवने, डॉ. भारती लांजेवार, चंदा भानुसे, माला सोनेकर, मिलिन्द गाडेकर, पुनम फुलझेले, डॉ. राजेश नंदेश्वर, विरेंद्र कर्दम, साक्षी फुलझेले, मिलिन्द कर्दम आदी पदाधिकारी उपस्थित थे.

* इंजी. गौतम हेंदरे, जिल्हा अध्यक्ष
* डॉ. प्रमोद चिंचखेडे, शहर अध्यक्ष