Wednesday 16 May 2018

✍ *नागपुर की आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद २०१८ : नाचवाद के हिन - दीन प्रभाव में बिन-अकलों का दिशाहिन अनैतिक मेला ?*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

        सामाजिक न्याय विभाग, महाराष्ट्र शासन सलग्न डॉ. आंबेडकर समता प्रतिष्ठान, बार्टी पुणे इनकी संयुक्त तत्वाधान में नागपुर के सुरेश भट सभागृह एवं दीक्षाभुमी मे १९ - २० मई २०१८ को "आंतरराष्ट्रिय शांती एवं समता परिषद" का आयोजन किया गया है. वही कुछ सामाजिक संघटनों के प्रतिनिधीयों का इस कार्य मे सहयोग लेना, वही वैचारिक स्तर पर संशोधक, विचारवंत, सामाजिक चिकित्सक इनसे संशोधन पेपर ना मंगाना, ना ही संशोधन विचारों पर गहण चर्चा का होना, विषय - स्तर भी आंतरराष्ट्रिय स्तर पर का ना होना,  *ना ही उदघाटक का नाम घोषित है, ना ही परिषद के अध्यक्ष का नाम को घोषित है,  ना ही समारोप सत्र का आयोजन हुआ है, ना ही अतिथीओं के पेपर/भाषण पढने के उपरांत प्रश्नकाल का भाग है, तथा इस परिषद मे 'ठराव वाचन एवं मंजुरी सत्र' का ना होना भी...?"* क्या इसे आंतरराष्ट्रिय परिषद कहाँ जा सकता है...? मंच पर जादातर भाजपा - काँग्रेसी राजकिय नर्तकों का भरमार है, क्या इस परिषद को कोई महामहिम *"विचार पीठ"* कह भी सकता है...? यह तो हमे केवल *"राजकिय नर्तक पीठ"* दिखाई देता है...! जहाँ "शांती एवं समता" विषय चर्चा के संदर्भ मे दुनिया भर के किसी बड़े विद्वान, संशोधक, सामाजिक चिकित्सक आदी महामहिम को कोई स्कोप है ? यह भी और एक अहमं तथा महत्वपुर्ण संशोधन का विषय कहना होगा ! *जब कोई आयोजक ही बिन अकल - दिशाहिन नाचा (नर्तक) हो तो, उस नर्तक से गरिमामय "विचार परिषद" आयोजन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है...?* निमंत्रण पत्रिका मे कौनसा राजकिय नर्तक किस महाभाग का स्वागत करेगा, और कौनसा सरकारी नर्तक (नाचा) मार्गदर्शन, आभार भाव व्यक्त करेगा, उस का ज्वलंत एकमेव उदाहरण "निमंत्रण पत्रिका" अगर कोई है तो, वह है हमारे महाराष्ट्र के सामाजिक (अ)-न्याय विभाग की...! जो अपने आप में अ-नैतिकता की एक पहचान कराती है...! *अत: जन मन के पैसों का इस तरह धुलवाड - बरबादीकरण चल रहा हो तो, निश्चित ही हमे इसकी दखल लेनी होगी. क्यौं कि, यह पैसा इन नर्तकों (नाचा) के किसी व्यक्तीगत खातों से खर्च नही हो रहा है, बल्की यह पैसा तो समस्त आवाम का है. इस गैर-परिषद से राष्ट्रनिर्माण यह भाव काफी दुर है..!* और इसके लिए जो भी नाचा दोषी होगा, उन पर हमे फौजदारी एवं नागरी केस दाखल करने की दिशा मे पहल करनी बहुत जरूरी है ! इस हिन कृती को राष्ट्रद्रोहिता - समाजद्रोहिता नही, तो इसे और क्या कहे ? अत: भविष्य मे कोई भी राष्ट्रद्रोही नर्तक (नाचा) इस तरह की गुस्ताकी ना करे,  इस लिए हमे सजग भी रहना होगा...!
     कुछ दिन पहले मैने इस आंतरराष्ट्रिय परिषद के आयोजन दोषों पर, सुझाव लेख लिखकर, उन आयोजकों को सुधार करने की बातें कही थी. मै स्वयं भी कई राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषदों मे देश - विदेशों में सम्मिलीत रहा हुँ. तथा संशोधन पेपर भी पढे है. पर मुझे किसी भी परिषदों मे इस तरह के राजकिय नाचों की, विचार पीठ पर सक्रियता नही दिखाई दी. वे राजकीय नेता लोग जनता के बीच बैठकर विद्वान लोगों के विचार सुनते दिखाई दिये. ना ही किसी आयोजकों ने उन्हे विचार पीठ पर बुलाया था. मैने स्वयं भी ४ - ५ आंतरराष्ट्रिय परिषदों का आयोजन किया है. एक भी राजकिय मान्यवरों को मंच पर नही बुलाया है. *"कोई भी राष्ट्रिय - आंतरराष्ट्रिय परिषद यह केवल और केवल सामाजिक - धार्मिक क्षेत्र मे कार्यरत विद्वान - संशोधक - चिकित्सक इन की एक 'प्रतिनिधिक विचार परिषद' होती है. सामान्य लोगों का वहा जमावडा नही होता...!"* क्यौ कि, वह "विचार परिषद" यह तो समाज - राष्ट्रिय विकास भाव का एक प्रतिबिंब होती है. शासन भी उस परिषद के सार एवं ठरावों पर अपनी भावी दिशा तय करता है. इस लिए हर किसी "विचार परिषद" का डाकुमेंटेशन करना बहुत ही जरूरी भाग होता है. वह परिषद कोई सांस्कृतिक मेला नही होती. परंतु मेरे तथा अन्य मान्यवर लोगो़ के सुझाव देने के उपरांत भी, अगर आयोजक वर्ग मे अती मुजोरभाव भरा हो तो, वह बडा ही चिंता का विषय है. हमारे सरकारी कार्यालय, यह कोई उन अधिकारी वर्ग का वैयक्तिक घर नही है, जो स्वयं मनमर्जी हेकेखोरी करे...! उन अधिकारी वर्ग को मिलनेवाला पगार भी जनता से टँक्स स्वरूप में वसुल किया जाता है. इस लिए ही उन्हे सरकारी नोकर कहा जाता है, मालिक नही...! *निश्चित ही हमारे देश मे ऐसा भी सर्वोच्च पद पर कार्यरत, अच्छा अधिकारी वर्ग है, जिन्होने सामाजिक बांधिलकी को अपना दायित्व समझा है. और वे समाज मे कार्यरत भी दिखाई देते है !* इतना ही नही उन अधिकारी वर्ग ने अपनी एक अलग पहचान भी बनाई है...! कई बार मेरी उन लोगो़ से चर्चा भी होती है. मिलना - जुलना भी होता है. उन अधिकारी वर्ग की समझदारी - सुजबुझ - विचारों के राह पर, अगर ये अधिकारी नही चले तो, और केवल इन राजकिय नेताओ़ के गुलाम बनते रहेे तो, यह समाज के लिए एक बडी गंभिर समस्या कहनी होगी...!
     नियोजित इस आंतरराष्ट्रिय परिषद में विदेशों से कुछ अच्छे विद्वान और नामांकित मान्यवर भी आ रहे है. जो इस हिन - दीन भावों से अज्ञात है. नियोजित इस परिषद मे उन नामी मान्यवरों को, ना अच्छा पद मिला हुआ हमे दिखाई देता है...! ना परिषद चर्चा का उच्च स्तर...!!! *उदघाटक पद पुर्णतः गायब है. परिषद का अध्यक्ष पद भी गायब है. स्वागताध्यक्ष पद तो नजर नही आता. विभिन्न चर्चा सत्र का पुर्णत: अभाव ही अभाव दिखाई देता है. समापन सत्र कही भी हमे दिखाई नही देता...!!! विद्वान संशोधको का बिलकुल ही सहभाग नही है...! तो क्या केवल यह भाषणबाजी का खुला मंच है...?* ऐसा था तो फिर, आंतरराष्ट्रिय परिषद लेने की क्या जरुरत थी. यह करना था तो, उन राजकिय नर्तकों के लिए, केवल "राजकिय मेला" का ही आयोजन करना था ! जब उपस्थित देशी - विदेशी मान्यवर "विचार पीठ" पर इन नाचों (नर्तक) का जमावडा देखेंगे, और कोई भी गंभिर - सखोल संशोधनात्मक - चिकित्सात्मक चर्चा नही सुनेंगे, तो भारत के छबी को खराब करने के लिए, यह ना-लायक जबाबदार होंगे... क्या इस बारे मे कभी उन्होने सोचा है...?
       दोस्तो, सामाजिक, धार्मिक, राजकीय इन तिनो क्षेत्रों की अपनी अलग अलग सीमाएँ बंधी है. और सामाजिक और राजकिय क्षेत्र में कार्यरत लोक, यह एक दुसरे क्षेत्र मे कार्यरत दिखाई देना, कोई भी बुराई नही कहा जा सकती. परंतु धार्मिक क्षेत्र यह उन दोनो ही क्षेत्र से परे होकर, बडे ही शक्तीशाली एवं नैतिकता भाव का आदर्शवाद लेकर चलता है. धार्मिक क्षेत्र में कार्यरत मान्यवरों का बडा ही सन्मान होता है. वे मान्यवर पुजनिय भी होते है. अत: इस क्षेत्र मे हिन - दीन - गंदगी फैलानेवाले, वे हिन - दीन आयोजक, निश्चितच ही माफी के काबिल नही है...! अत: उस नियोजित परिषद के संदर्भ मे उचित निर्णय लेने का दायित्व यह सर्वस्वी आप का अपना है...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न.  ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

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