Thursday 30 August 2018

Neha Ganvir getting Dhamma books from Dr. Milind Jiwane 'Shakya'..!

नेहा गणवीर को धम्म पुस्तको़ं की भेंट करते हुये डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'...! नेहा यह एक अच्छी कलाकार है... !









Sunday 26 August 2018

😎 *सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मागास वर्ग के नोकरी आरक्षण लाभ पर सवाल: एक संदेश?*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

       मा. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में उन के समक्ष मागास वर्ग समुह के आरक्षण संदर्भ में विचाराधीन याचिका में, *"सरकारी सेवा के उच्च पदस्थ अनुसुचित जाती / जमाती वर्गों के, अधिकारी समुह के सधनता संदर्भ मे, नोकरी के बढतीं में आरक्षण विषय पर, यह देने के औचित्य का तर्कशास्त्र पुछा गया ?"* वही आगे जाकर, ओ. बी. सी.(अन्य मागासवर्गीय) समुह के "क्रिमीलेयर तत्व की बात", इन अनुसुचित जाती / जमाती वर्ग को क्यौं ना लागु की जाए...??? इस विषय पर भी सवाल - ए - निशान मा. खंडपीठ ने करना, यह बहुत बडा एक संशोधन का विषय है ! वही *"सर्वोच्च तथा सभी उच्च न्यायालयों मे आज तक पदस्थ एवं गच्छंथ सभी न्यायधीशों के जातीगत (?) आधार पर नियुक्तीयाँ, उच्च वर्ग का अदृश्य (?) आरक्षण और उनके द्वारा दिये गये न्याय आदेश (Judgements) की भी उच्च स्तरीय समिक्षा - 'अनुसुचीत जाती / जमाती / ओ.बी. सी. वर्ग के सर्वोत्तम वकिलों के पांच सदस्यीय द्वारा' (जहाँ उस समिती में एक भी उच्च वर्ग का वकिल ना हों) करने की माँग / अपिल भी, हमे मा. सर्वोच्च न्यायालय मे दायर करने के बारे में सोचना, अब जरूरी हो गया है...!"* ता कि, उच्च वर्ग के न्यायधीशों के मेरीट गुणों की सही - निरपेक्ष जानकारी, भारत के तमाम आवाम को मिल सके. और उस के पश्चात भारत के सभी न्यायालयों मे, जाती लोकसंख्या आधार पर, मेरीट प्राप्त इमानदार न्यायाधीशों की नियुक्तीयाँ, भविष्य में की जा सके. इसके साथ साथ ही, *"प्रशासकिय सेवा परिक्षा (I.A.S.) मे, आज तक के जुडे हुये, तमाम मागास वर्गों के उम्मीदवारों को मिले लेखी परिक्षा अंक तथा पर्सनल टेस्ट के अंक और उच्च वर्ग समुह को दिये गये अंक तथा इंटर्व्हु समिती में बैठे हुयें, तमाम एक्सपर्ट का लेखा जोखा आदी की भी समिक्षा का समावेश उस अपिल में हो."* साथ ही हमारे देश के १९५० मे भारत प्रजासत्ताक होने से लेकर, अब तक भरे गये सभी उच्चतम - प्रथम - द्वितिय - तृतीय वर्ग पदों के मागास वर्ग आरक्षण बँकलाग की भी समिक्षा हो...! तभी मा. सर्वोच्च न्यायालयों के *सरन्यायाधिश मा. दिपक मिश्रा इनकी अध्यक्षता में तथा न्यायाधीश महोदय कुरियन जोसेफ, आर आर नरिमन, एस के कौल, और इंदु मल्होत्रा* इन पांच न्यायधीशों के पीठ को सही न्याय करने में सुविधा होगी.
    मुव्ही में अकसर ही न्यायालयीन मुकदमों में, खडी न्यायदेवता के आँखो पर, काली पट्टी बांधी हुयी देखी जाती है और तराजु का एक ओर झुका होना भी. *"क्या वह खडी न्यायदेवता अंधी है या न्याय निरपेक्ष है !"* यह प्रश्न तो आज भी बना हुआ है. क्यौ कि, न्याय के न्याय निरपेक्षता पर, प्रश्न चिन्ह लगाते हुये हम ने पिडित लोगों को देखा है. *"कभी कभी तो कोई न्यायधीश महोदय, याचिका से परे विषय भी, न्याय आदेश में देते हुये पाये गये."* यह तो सहजता से मिले, खुर्चीका ही कमाल कहना होगा...! जो खुर्ची पाने के लिए अनुसुचित जाती / जमाती / ओ.बी. सी. को सालो साल इंतजार करना होता है. क्यौं कि, वहाँ मागासवर्ग आरक्षण व्यवस्था लागु नही है. वही बात राजसत्ता मंत्रीमंडल व्यवस्था हो या, कोई आयोग - समिती हो या,आयसोलेटड पोष्ट हो या, सुरक्षा - गोपनीय विभाग हो...! सत्ता चाहे वह राजकिय हो या, न्यायिक हो या, सामाजिक हो या, धार्मिक हो या, सांस्कृतिक हो या, आर्थिक हो या, औद्योगिक हो या, कार्मिक हो या, और कोई और हो - एक विशिष्ट उच्च वर्ग ने अपना अधिपत्त जमा रखा है. फिर हमारे देश की गोपनियता भंग हो जाना हो या, भ्रष्टाचार का बोलबाला पनपना हो या, भारतीय व्यवस्था मे खोकलापन आदी अवगुणों की व्याप्तता का दोषी कौन ? *"देश का गद्दार कौन ? देशद्रोही कौन ? यह देशवासीओं को हम ने बताने की आवश्यकता नही. वे सब कुछ जानते है. पर आँखो पर काली पट्टी बांधे होने से अंधे है. और धर्मांधता - देवत्व ने तो दास बना दिया."* यही जन दासता उच्च वर्गीय सत्ता समुह की शक्ती बनी हुयी है. इस लिए तो, देश की राजधानी *"नयी दिल्ली के जंतर मंतर पर, हमारी इज्जत 'भारत के संविधान' को, देशद्रोही खुलेआम जला रहे थे. दिल्ली पुलिस अंधी बनी थी. भारत के राष्ट्रपती मा. रामनाथ कोंविद सोये हुये थे. प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी खामोश थे. संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत जी आँखो पर पट्टी बांधे, हिंदुत्व की धुन छेड रहे थे, काँग्रेसी सोनिया गांधी बंगले मे बिमार पडी थी. अपक्वी राहुल गांधी दुध पी रहा था. लालवादी -हिजडावाद गेम खेल रहे थे. बसपा सुप्रिमो मायावती अकल पाने हेतु, घास चरणे गयी थी. रिपब्लिकन गुट-नेते अपना शिक्का जमाने हेतु, सत्ताधारी वर्ग के आँगन मे पानी भरने गये थे. वही भारत का सर्वोच्च / उच्च न्यायालय विदेशी दौरे पर था. संसद - विधान सभा - विधान परिषद मे तो, सन्नाटा ही सन्नाटा दिखाई दे रहा था..."* यह है हमारे देश की हिन शोकांतिका..! इस लिए भारत केवल "देश" ही बना रहा, वह कभी "राष्ट्र" बना ही नही ....!!!
       यह भारतीय मिडिया भी अजब गजब की है. नरेंद्र मोदी जी ने झाडु मारा तो, मिडिया पर बता दिया. राहुल गांधी ने किसी के घर चाय पी तो, वह मिडिया पर बता दिया. इतना ही नही, उस बेदर्द विषय पर तो बडी बडी बहस भी कर जाते है. पर "भारत के संविधान" पर बलात्कार हो रहा था, तब हमारी यह मिडिया, खुले आँखो से नंगा तमाशा देखती रही. वही *"सर्वोच्च / उच्च न्यायालय ने भी, स्वयं सज्ञान होकर, "जनहित याचिका" दायर करने की जरूरत नही समझी...!"* क्या न्यायालय का यही दायित्व है ...?? देश को सही दिशा देने के लिए "वॉच डॉग" के रूप में...? यहाँ प्रधानमंत्री से लेकर, विरोधी नेता तक और चंगु - मंगु भी, इस देश का संविधानिक नाम *"India means Bharat"* का उल्लेख - अनैतिक नाम *"हिंदुस्तान = निच लोगों का देश"* कर जाते है. फिर भी सर्वोच्च न्यायालय खामोश है ...!!! तो हम अनुसुचित जाती -  जमाती स्त्री वर्ग समुह पर, सामुहिक बलात्कार हो या, किसी जाती विशेष पर अत्याचार होने से, हम किस न्यायालय से निरपेक्ष अपेक्षा कर सकते है ? वही सर्वोच्च न्यायालय ने भी, *"अनुसुचित जाती - जमाती प्रतिबंधक कानुन"* के संदर्भ में, दुरुपयोग होने की बातें कहकर, उस कानुन को कमजोर करने की चेष्टा की. *"कानुन का दुरूपयोग कहा नही होता ?"* क्या कोई भी न्यायालय इस से परे है ? क्या कोई राजसत्ता इस से परे है ...? क्या कोई विभाग इस से परे दिखाई देता है ...? शायद ही अनुसुचीत जाती / जमाती प्रतिबंधक कानुन का ५ - १० % दुरुपयोग होता हो. परंतु अन्य कानुन का ५० - ६० % दुरुपयोग होता है, उस का क्या ? और तो और आजादी के इस ७० साल में, अनुसुचित जाती /जनजाती वर्ग का बँकलॉग कभी भरा ही नही गया, फिर उन दोषीयों को नयी दिल्ली के जंतर मंतर पर, खुले आम हम लोगों ने फाशी की सजा सुनानी चाहिये ...? जो दायित्व न्यायालय हो या कोई राजसत्ता हो, उस ने आज तक कभी भी पुरा कर नही पाई है ...???
      मागास वर्ग के आरक्षण संदर्भ में घटनाकार डॉ. आंबेडकर जी कहते है, *"समान संधी का सिध्दांत और जिन्हे अब तक प्रशासन मे कभी संधी ही नही दी गयी, इन दो माँगो का मिलाप करना हो तो, 'मागासवर्गीय' समान शब्द का प्रयोग करना जरूरी है. अन्यथा आरक्षण का मुल उद्देश, यह तो कानुन को धत्ता ही कर देगा !"* (संविधान सभा , दिल्ली दिनांक ३० नवंबर १९४८) 'मागासवर्गीय' इस शब्द का वापर तो आज तक होते आया है. परंतु किसी उद्देश की सफलता नही ....! इस असफलता में कुछ भुमिका न्यायालय ने भी करते देखा गया. राजसत्ता यह शकुनी मामा थी ही ...!!! वही ब्रिटिश सत्ता के संदर्भ में डॉ. आंबेडकर जी कहते है, *"ब्रिटिश का प्रशासन एवं राज्य समता यह न्याय आधारित थी. इसलिए लोगों को कायम रूप में एक प्रकार की सुरक्षा लगती थी. परंतु स्वातंत्र्य मिलने के पश्चात इस देश के अल्पसंख्यक वर्ग को, बहुसंख्यक वर्ग से असुरक्षा महसुस होने लगी है ...!"* (राज्यसभा, दिल्ली सितंबर १९५४) बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी ब्रिटिश के संदर्भ मे यह भी कहते है, *"इंग्रज लोगो़ं ने इस देश में कदम रखने से, कुछ प्रांतो में अस्पृश्य लोगों को उपर उठने का मौका मिला. और उस का फायदा लेकर, इन वर्गो ने अपना शौर्य, अपना तेज, अपनी बुध्दीमत्ता कितने उच्च श्रेणी की है, यह बताने का प्रयास किया."* (महाड, दिनांंक १९ मार्च १९२७)
      डॉ. आंबेडकर जी ने ब्रिटिश सत्ता के संदर्भ उपरोक्त बाते कहने का अर्थ यह कदापी नही कि, वे भारत आजादी के विरोधी थे. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"हमारी जो गरज है, वह हम तो लेंगे ही. परंतु इस देश का आजादी का विषय आया तो, हम उस का समर्थन भी करेंगे. इस देश की उन्नती होना, यह हमे सर्वोपरी है. काँग्रेस के समान हम भी यह चाहते है."* (मुंबई, दिनांक २ अक्तुबर १९३०) इतना ही नही, डॉ. आंबेडकर इसके आगे जाकर कहते है, *"भाषा, प्रांतभेद, संस्कृती आदी भेदभाव मुझे मंजुर नही. प्रथम हिंदी, बाद में हिंदु या मुसलमान यह विचार भी मुझे स्विकार्य नही. सभी लोगों नें प्रथम भारतीय, अंतत: भारतीय, और भारतीयता के बिना कुछ नही, यह मेरा विचार है ...!!!"* बाबासाहेब के इन विचारों मे मोहनदास गांधी जी हो या डॉ. मोहन भागवत हो, कहाँ बैठते है ...??? कानुन की उपयोगिता यह हर देश की एक शक्ती होती है. इस लिए ही तो, *"भारत का संविधान"* यह हमारे लिए सर्वोपरी है. वही हम सभी भारतीयों का *'भारतीयता भावना जगाना'* यह मिशन होना चाहिये, ता कि यह देश एकसंघ बना रहे. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी भी कानुन की अहमियत समजते हुये, हमे चेतावणी दे गये. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"समाज के अंदर के दोषों का निर्मुलन करना, यह कानुन बनाने का उद्देश रहा है. परंतु हमारे प्राचिन लोगो़ ने समाज के अंदर का दोष दुर करने का कभी प्रयास ही नही किया. इस लिए उनका नाश हुआ है."* यही बातें आज के संदर्भ मे भी लागु होते, हमे दिखाई देती है. अब अहं सवाल है कि, मा. सर्वोच्च न्यायालय यह मुव्ही के न्याय देवता समान, अपने आँखो पर काली पट्टी बांधकर तथा ब्राम्हण्यवाद के पलडे मे अपना न्याय झुकाता है. या मागासवर्ग के उत्थान में अपना नैतिक कर्तव्य निभाता है ...? यह आनेवाले दिनों मे हम देखेंगे ही ...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
           (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Thursday 23 August 2018

🇮🇳 *हिंदुस्तान (अदृश्य देश) के लावारीश (?) राजनैतिक कुत्ते, कब सच्चे भारतीय होंगे..!*
        *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

        दिनांक २३ अगस्त २०१८. सुबह ११.०० का समय. दुरदर्शन के एबीपी न्युज चँनल पर देश - विदेशों की न्युज सुन रहा था. फोकस केवल तो, राहुल गांधी का जर्मनी मे दिया गया वह भाषण, जहाँ भारत देश की कु-व्यवस्था संदर्भ का सार था तथा उस भाषण पर भाजपा के प्रवक्ता डॉ. संदिप पात्रा ने, पत्र परिषद में दिये गये वक्तव्य सुनकर तो, उच्च वर्ग समुह के विचार - मेरीट पर, सवाल - ए - निशान बनना तो स्वाभाविक है. *"ना काँग्रेसी विचार धारा के हिंदुस्तानी (विश्व का अस्तित्व हिन देश) मि. राहुल गांधी हो या ब्राम्हण्यवादी समर्थक हिंदुस्तानी भाजपा नेता डॉ. संदिप पात्रा हो - वे कभी भारतीय रहे नही तो, उन्हे भारतीय संस्कृती (?) पर कुछ भी बोलने का नैतिक अधिकार किसने दिया ?"* उन्हे तो धक्के मारकर भारत से भगाना चाहिये. वे लोग तो भारत के लिए कलंक है. जो खाते है भारत का. जो रहते है भारत में ही. वही ये ना-लायक किडे (?), हमारे देश का संविधानिक नाम *"इंडिया वा भारत"* नाम की धज्जीया उडाकर, हिंदुस्तान, (हिंदु + स्तान) ~ (हिनदु + स्तान) ~ (हिनदु = हिन +दु ) ~  (हिन = निच, निम्न , दु = प्रजा, जन) *(अर्थात - हिंदुस्तान = निच लोगों का देश)* कहकर हमारे देश की तोहिम कर रहे है. और वे बेशरम बनकर, "हमाम मे नंगे रहनेवाले" इन राजनैतिक नेताओं की औकात, सही रूप से हिन - निच ही दिखाई देती है. शायद यह हिन -निच भाव उन्हे उनके माँ  गर्भ में पुरखों से विरासत में मिला हो...! जिन के कारण हमारा स्वर्णमय भारत हमेशा गुलामी के जंजिरा मे जखडे रहा...!
     भारतीय राजनैतिक नेताओं का चारित्र हो या, वैचारिकता, देशनिष्ठता और विदेशी नीतियों को देखकर, मुझे डॉ. आंबेडकर जी के वह शब्द बोल याद आ गये है. डॉ. आंबेडकर विदेशी नीति संदर्भ में कहते है, *"अधिकार रूढ दल एवं अधिकारी वर्ग समुह सें मेरे मतभेद होते हुये भी, मै अपने वतन की बदनामी कभी नही करूंगा. मै अपने देश मे मंत्रीगण वा सरकार से आमने सामने दो हात करूंगा. पर विदेशी लोगों के सामने या विदेशों मे अपने वतन की बदनामी कभी नही करूंगा...!"* (न्युयार्क दिनांक ३१ मई १९५२) वही दुसरी तरफ काँग्रेसी हो या भाजपा-ई हो या लालशाही राजकीय नेताओं के वक्तव्य - कृतीमय भावों को देखकर उन लोगों के देशभक्ती पर संदेह होना तो बनता है. *"वे लोग तो भारत राष्ट्रवाद - भारतीय भावना के प्रती केवल दिखावा करते है. उन का अंतरंग पुर्णत: खोकला - देशद्रोही अवगुणों से भर पडा है...!"* यही कारण है कि, भारत यह भांडवलशाही व्यवस्था का, हमेशा ही आर्थिक गुलाम देश बना रहा है. तो सामाजिक - वैचारिक - सांस्कृतिक उत्थान तो, बहुत ही दुर की बात है. भारत के आर्थिक नीति पर डॉ. आंबेडकर जी कहते है, *"पैसे के बीना व्यक्ती के स्वातंत्र्य, समाज के स्वातंत्र्य एवं वतन के स्वातंत्र्य को कोई अर्थ नही है. अमेरिका शक्तीशाली क्यौं ? इंग्लंड अमेरिका के इशारों पर क्यौ नाचता है ? यहाँ तो पैसा ही नही है. वह अमेरिका से मांगना पडता है....!"* (मुंबई दिनांक १२ अप्रेल १९४७)
      काँग्रेस हो या, भाजपा हो या, लालवादी हो - यह राजकीय दल वह शराब है, जहाँ राजसत्ता पर आरूढ होने का केवल लेबल लगा रहा. नशा मे कोई बदलाव दिखाई नही देता. धर्मांधता - देवत्व का नशा, उन दल नेताओं के अंतर्मन मे तो, कुट कुटकर भरा है. देश जाएँ भाड में...! इसलिए तो उन्हे गुलामी भी बहुत प्यारी लगती रही है. *"केवल सत्ता मद प्राप्ती ही, उन का एक मात्र मकसद रहा है. और उस नशा के आदी होने के कारण, भारत का सामान्य जन - मन भी, वह हिन - देशद्रोही कुटनीति कभी समझ नही सका...!"* जहाँ आम्रपाली ने देश के वजुद के लिए, नगरवधु बनना स्विकार किया. वही इन राजकीय दरिदों ने तो, अपने स्वयं के सत्ता मद के लिए, भारत पर बलात्कार कर डाला. क्या यह आम्रपाली के उस महान त्याग की तोहिम नही है...? इन राज दल नेताओं की औकात तो केवल हिजडों की है, जो रास्तों पर टाली बजाकर पैसा लिया करते है ...!!!
     *सलमान खान, आमिर खान यह फिल्मी कु-सितारे भी, उसी हिंदुस्तानी भाव (अदृश्य अनैतिक देश) हिजडों के वजुद है, जो वतन हिन है...!* सोनी, एबीपी न्युज आदी चँनलों पर भी, उसी कडीं मे कही हिजडे अँकर, हिंदुस्तान की डफली बजाते नजर आते है. शायद उनके माँओं ने भारत देशभक्ती का, कटु घुंटी कभी पी ही ना हो - तो, उनके औलादों से भारत देशभक्ती - भारतीयत्व भावना की सकारात्मक अपेक्षा कैसे की जा सकती है...?
      भारत के संसद में हमे सांसद कम, तमासगिर ही जादा दिखाई देते है. शायद वे उन्ही हिजडों के वंशजों की एक देण हो...! जो तमासगिरी में राष्ट्र के करोडों रूपयों का अपव्यय करते रहे है. संसद के दायित्व संदर्भ में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कहते है, *"संसद में बैठे सांसदो़ का यह दायित्व है कि, वे जन मन हित और कल्याण के बारें में सोंचे. अगर यह कृतीशिलता नही दिखाई गयी तो, एक दिन ऐसा भी आयेगा, संसद के प्रती समाज मन में नफरत भाव पैदा हो. और इस संदर्भ मे मुझे कोई भी संदेह नही है !"* (राज्य सभा, नयी दिल्ली, दिनांक १९ मई १९५२) वही सामाजिक समता प्रस्थापित करने के हेतु डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"इस देश के राजकिय पटल पर, बहिष्कृत समाज वर्ग को संपुर्ण समानता और सार्वभौम स्थान की सुरक्षा प्रदान करना अती आवश्यक है. अगर इस ओर लक्ष केंद्रित नही किया गया तो, भारत पुनश्च दासता एवं गुलामगिरी गर्ते की ओर चले जाएगा !"* (दिल्ली, दिनांक २३ अगस्त १९४२) इस का संदर्भ राष्ट्र हित से जोडते हुये डॉ. आंबेडकर कहते है, *"विश्व में शांती प्रस्थापित करनी हो तो, साम्राज्य लोभ, वर्णद्वेष, एवं दरिद्रता इन तीन दोषो़ को दुर करना होगा. वही राष्ट्र की शक्ती बढाना हो तो, पहले दो दोषों का निवारण करना तो, बहुत ही जरूरी है !"* (मुंबई, दिनांंक १० मई १९४३)
      दोस्तो, हमारे देश में राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी, डॉ. संदिप पात्रा, सलमान खान, आमिर खान समान अनगिणत हिंदुस्तानी उपद्रवी किडे मौजुद है...! वही सोनी, ए.बी.पी न्युज, दुरदर्शन समान मिडिया में, हिंदुस्तान की हिन डफली बजानेवाले देशद्रोही अँकर का बाजार भर पडा है. इसलिए भारत यह सशक्त भारत बनने में, बाधाएँ दिखाई देती है. वही "भारत राष्ट्रवाद" से दुरी बनाना भी, उसी सशक्त भारत के बीच रूकावट रही है. भारत की आर्थिक कु-नीति भी हमारे अधोगती का एक महत्वपुर्ण कारण रहा है. अंत मे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के ही शब्दों में यह प्रश्न है, *"हमारे देश के आर्थिक नियोजन का विचार करते समय, हमे दो मुख्य प्रश्नों पर विचार करना अनिवार्य है. उद्दोजक के रूप में हमे सरकार चाहिये या खाजगी उद्दोग व्यवसाय के रूप में ...! और उस पर नियंत्रण केंद्र सरकार का होना चाहिये या राज्य सरकार का ...?"* (नयी दिल्ली, दिनांंक २ फरवरी १९४५) जरा सोंचो ..! भारत के विकासवाद में ....!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Sunday 19 August 2018

Get to gather & Birth Day of Dr Milind Jiwane 'Shakya' celebrated at Civil Rights Protection Cell office.

🤝 *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की ओर से १८ अगस्त को गेट टु गेदर संपन्न ...!*
      सिव्हील राईट्स प्रोटेक्शन सेल शाखा नागपुर नागपुर जिला एवं नागपुर शहर की ओर से, "गेट टु गेदर" समारोह का आयोजन "मुख्यालय" में १८ अगस्त को किया गया. सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनकी अध्यक्षता में तथा *मा. कवि सुर्यभान शेंडे, दिपाली शंभरकर, प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, शंकरराव ढेंगरे, प्रियदर्शन सोनटक्के 'टोनी', सुदर्शन गोडघाटे, कृष्णा भलावी*  इन मान्यवर लोगो़ं के प्रमुख उपस्थिती में वह समारोह संपन्न हुआ. सेल के नागपुर जिला अध्यक्ष *इंजी. गौतम हेंदरे* इन्होने प्रास्ताविक किया. नागपुर शहर के अध्यक्ष *डॉ. प्रमोद चिंचखेडे* इन्होने संचालन किया. *डॉ. मनिषा घोष* ने आभार माना. उस अवसर पर वंदना मिलिन्द जीवने, डॉ. भारती लांजेवार, बबीता वासे, हिना लांजेवार, साक्षी फुलझेले, पुनम फुलझेले, सुदर्शन मँडम, नरेश डोंगरे, डॉ. राजेश नंदेश्वर, प्रवीण देवले, ब्रिजेश वानखेडे, गोपाल यादव, संजय फुलझेले आदीयो ने अपने मनोगत व्यक्त किया.
       १८ अगस्त को सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इनका जन्म दिन होने के कारण उस अवसर पर, उनका सत्कार भी किया गया. अंत मे संगीत - गीतो से समापन किया गया...!
* *इंजी. गौतम हेंदरे"*, नागपुर जिला अध्यक्ष
* *डॉ. प्रमोद चिंचखेडे*, नागपुर शहर अध्यक्ष





















Thursday 16 August 2018

🌹 *लीन होकर बुध्द छाया में !*
           *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
            मो.न. ९३७०९८४१३८

युं ही लीन होकर बुध्द छाया मे
तुम हर पल मेरे साथ रहती हो ...

फुलों के उन हसिन वादीयों में
कभी कभी युं ही छुप जाती हो
धुंडे कहा उन घने कोहरे वन में
बुध्द किरण रोशनी ले आती हो ...

आसमान के कालें गहराई में
ना डरे ही आगे चले जाती हो
संसार के अशांत मन धारा में
बुध्द चेतना रंग भर आती हो ...

आवाम के नफरत चिंगारी में
राजसत्ता को चुनौती देती हो
बिखरे पडे उन खुशी दामन में
बुध्द शांती से जोड दे आती हो ...

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Wednesday 15 August 2018

Civil Rights Protection Cell Teal celebrated Independence Day at Farm House.

Civil Rights Protection Cell Team celebrated Independence Day with Dr. Milind Jiwane 'Shakya', National Chairman at Farm House.
Er. Gautam Hendre, Nagpur District President
Dr. Pramod Chinchkhede, Nagpur City President



Tuesday 14 August 2018

Burning Constitution condemned by Civil Rights Protection Cell Branch Yeotmal.

सिव्हील राईट्स प्रोटेक्शन सेल शाखा - यवतमाल ने भारतीय संविधान का जलाना ओर डॉ आंबेडकर मुर्दाबाद नारे देनेवाले देशद्रोही सवर्ण का निषेध कर , उन दोषीयों पर शिघ्र कार्यवाही होने हेतु मिलिन्द धनवीज इनके नेतृत्व मे यवतमाल जिलाधिकारी को निवेदन दिया.
डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल








Sunday 12 August 2018

🇮🇳 *भारत के संविधान पर बलात्कार !*
            *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
             मो.न. ९३७०९८४१३८

भारत की राजधानी दिल्ली में
जंतर मंतर के समंदर में
९ अगस्त २०१८ की वह (कु)यादगार
दिल्ली पुलिस को साक्षी रखकर
भारत के संविधान को
पहले पुर्णत: नंगा कर दिया
और फिर आग में झोकते हुये
भारत के संविधान पर बलात्कार कर
डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद - मुर्दाबाद
यह उदंड नारे देने का भी
देशद्रोही सवर्ण वर्ग को
अंसविधानिक (अ)नैतिक अधिकार देते हुये
हिन प्राचिन हिंदु संस्कृती (?) का
ब्रम्ह देवादी प्रणित
स्वयं की पुत्री हो या
किसी दुसरे की भी पत्नी हो
उस पर खुले आम बलात्कार करना
गोपियों के संग कृष्णलीला खेलना
स्वयं पत्नी पर राम - शक भाव रखकर
सीता आदी स्त्री को घर बेदखल करना
अब वह प्राचिन अनैतिक इतिहास
भारत मे स्थापित करने के लक्ष में है ...!
इस लिए भारत की धर्मांध सरकार
विरोधी दल के कु-सेनानी (?)
लोकतंत्र का इमानदार (?) माने जानेवाला
वह चवथा स्तंभ मिडिया भी
बलात्कार का सुखमय (?) आनंद
बिनधास्त खुले आँखो से देखता रहा.
वही आँखो पर काली पट्टी बांधे
उच्च हो या सर्वोच्च न्यायालय भी
मौनव्रत धारण करते हुये
पी.आय.एल. की स्वयं दखल ना लेकर
मनुस्मृती कानुन की भाषा बोलते हुये
धीरे से कह रहा है
चलनो दो बलात्कार और बलात्कार
जो आनंद बलात्कार करने मे है
वह स्वयं के बीबी संग संयोग में कहा ?
दोस्तो !!!
अब बडा ही सवाल है
भारत के संविधान की
इज्जत बचाने के लिए
कौण कौण आगे दौड आते है ?
यह अब देखना है...!
आरक्षण लेनेवाले और मांगनेवाले तो
अब पुर्णत: नामर्द बने है
भारत के राष्ट्रपती रामनाथ कोविंद सोये है
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खामोश है
संघ सरसेनापती डॉ मोहन भागवत
हिंदुत्व की डफली बजा रहे है
भाजपा अध्यक्ष अमित शहा
चुनावी रथयात्रा पर दुल्हा बने सवार है
काँग्रेसी सोनिया गांधी बंगले मे बिमार है
राहुल गांधी तो दुध पिने मे व्यस्त है
ये लालवादी शोषण राज पर
गुप्त मंत्रणा सभा मे भाषण दे रहे है
माडर्न स्त्री वर्ग क्लब में चिअर्स कर रही है
बाबासाहेब के वारीस प्रकाश आंबेडकर तो
'आंबेडकर भवन' सदृश्य
आंदोलन करना पुर्णत: भुल गये है
बिन अकल का गधा - रामदास आठवले
मंत्रीपद का मदसत्ता आनंद ले रहा है
बसपा - रिपब्लिकन महामहिम नेते
अगला चुनावी नीतियाँ (?) बना रहे है
किसी के पास कोई समय नही है
केवल बौध्द - महार सामान्य वर्ग
फेसबुक - ट्विटर - व्हाट्सअप
आदी मिडिया पर लोगों के संपर्क मे है
और छोटा मोटा आवाज उठा रहा है
संसद एवं विधान सभा - विधान परिषद में
सन्नाटा ही सन्नाटा बिखरा पडा है
जिंदादिली पुरी मर गयी है.
भारत के कु-राजनिती ने
हिजडे राज की ओर प्रस्थान किया है
तो कोई समुह हिजडा जाती में
अपनी स्वयं की भरती कर रहा है
केवल देशभक्त शेष बचे है
अब उन्हे ही आवाज देना है
अपने हाथ मे मशाल लिये
रक्तक्रांती का बिगुल फुककर
नया आजाद भारत बनाने की ओर
अब आगे बढना है
चले ! चले !! चले !!!
शक्ती का कदम बढाना है ...!!!

* * * * * * * * * * * * * * * * *
* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन
                      सेल
अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय
           बुध्दीस्ट मिशन
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
🌞 *बुध्द अंकुर बन जाती हो ...!*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८,९२२५२२६९२२

हर बरसात में युं ही, धुप का किरण आने से
सुख के अनुभुती में, बुध्द अंकुर बन जाती हो..

बरसात की महक में, इन फुलों के खिलने से
ये बगिचें के हरियाली मे, दुल्हन बन जाती हो
तेरी वो सुंदरता में, प्यार की यादगार पले ही
मुझे कुछ लिखने की, तुम प्रेरणा बन जाती हो..

ये आसमाँ ने गरज कर, काले घने बादल को
अपने अस्तित्व भावों में, आने का संदेश देती हो
वर्षा अच्छी बरसाने से, पल भर ही रोक कर
तुम अपनी शक्ती को, युं महसुस करा देती हो..

इन जात पात धारा में, आदमी शैतान होने से
परेशानी भी क्यौं करे, तुम उम्मिद बन जाती हो
वो मनु को जलानेवाला, केवल एक ही शेर है
शांती मे ही भलाई है, ये आवाज तुम दे जाती हो..

* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * *

Saturday 11 August 2018

✍ *मा. दलाई लामा की नाराजी में भारतीय राजनिती की अक्रियाशील कु-नीति...!*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

     *"स्वतंत्र भारत के पहिले प्रधानमंत्री बनाने के लिए महात्मा गांधी की पहली पसंद यह बँ. मोहम्मद अली जीना थी. परंतु स्वकेंद्रीत एवं आजाद विचारों के पंडित जवाहरलाल नेहरु ही स्वतंत्र भारत के पहले  प्रधानमंत्री बन गये. अगर बँरिष्टर जीना भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो, भारत - पाकिस्तान यह विभाजन तब नही होता. नेहरु के कट्टर विरोध के कारण बँ. जीना भारत के प्रधानमंत्री नही बन सके."* यह विचार परम पावन दलाई लामा इन्होने अभी अभी पणजी मे आयोजित "गोवा व्यवस्थापन संस्था" के समारोह समापन के उपरांत ही छात्रो़ं के बीच चले एक चर्चा मे कही.
     आगे जाकर प.पा. दलाई लामा ने कहा कि, *"दलाई लामा यह यंत्रना अब गैरलागु हो गयी है.  अब यह दिर्घ काल से चली आ रही परंपरा सुरु रखना चाहिये या नही, इस का निर्णय अब तिब्बती जनता को लेना है. वही इस भाव संदर्भ मे हम लोगो़ं से जादा रुची, यह तो चीनी सरकार को ही है. वह भी राजकीय भावो़ं को देखकर. तिब्बत में हर साल विभिन्न परंपरा के प्रतिनिधी इकठ्ठा आकर इस पर निर्णय लेते है. और इस साल भी तिब्बत में वह बैठक होने जा रही है....!"*
     परम पावन दलाई लामा का पहला कथन, वह भी "भारतीय राजनिती" पर, यह तो बडे सोंच का विषय है. क्यौं कि, दलाई लामा भारतीय राजनिती पर कोई भी टिप्पणी करने से अकसर बचते रहे है. वही उनका भारत मे आश्रय लेने का कालखंड भी पंडित नेहरु के सत्ता काल मे ही रहा है. इस विषय पर सविस्तर लिखाण मै बाद में करुंगा ही. दलाई लामा के दुसरे कथन से, मै पिछले दो दिन से बडा ही चिंतीत रहा हुँ. परंतु परम पावन दलाई लामा का वह कथन, हमारे प्राचिन बुध्द सुवर्ण काल के "लोकशाही व्यवस्था" की बडी याँदे दे गया, जहा उनका कथन, *"दलाई लामा यह परंपरा आगे चालु रखना चाहिये या नही, इस का सर्वोपरी निर्णय यह तिब्बत जनता पर छोडा है."*
     मेरा व्यक्तीगत एवं संघटन का भी तिब्बती आंदोलन से काफी गहरा संबध रहा है. मैने उन के "तिब्बेत आजादी आंदोलन यात्रा" को हरी झंडी भी दिखाई है. मै कई बार तो गोठणगाव तिब्बती कँम्प भी गया हुँ. वहाँ की असेंबली को मैने अंदर से भी देखा है. वहाँ के तिब्बती गेस्टहाउस मे भी मेरा मुक्काम रहा है. उनका चुनाव प्रक्रिया को भी देखा है. उनके संस्कृती की भी मैने अनुभुती ली है. प.पा. दलाई लामा एवं तिब्बती प्रधानमंत्री से मेरी व्यक्तीगत भेट हुयी है. कर्माप्पा लामा से भी मेरी चर्चा हुयी है. इतना ही नही, नागपुर में मेरे अध्यक्षता में हुयी *"जागतिक बौद्ध परिषद - २००६"* में तिब्बत के मा. धार्मिक मंत्री, वे प्रमुख अतिथी उपस्थित थे. लोकशाही प्रक्रिया का सही अमल, मुझे तिब्बती अंसेबली मे दिखाई दिया. कोई भी हंगामा नही. तिब्बती लोग तो शांतीप्रिय, स्वाभिमानी, इमानदार लोग है. पर मुझे काँग्रेसी नेहरू सरकार पर बडा ही घुस्सा भी आया, की उन्होने तिब्बती समुह को हर शहर से काफी दुर जंगलो मे बसाया है. जहाँ ना कोई रोड था, ना ही कोई सुविधाएँ...! वही बेहाल बांगला देशी चकमा बौध्द शरणार्थी समुह का रहा है. जो त्रिपुरा मे बसे है. और आज भी गरिबी की जिंदगी बसर कर रहे है. वही *स्वतंत्र भारत का विभाजन होने के बाद, पाकिस्तान से भारत आये समुचे सिंधी शरणार्थी को, बडे बडे शहरों मे बसाया गया. इतना ही नही, उन्हे करोडो रुपयो़ की सरकारी मदत भी दी गयी.* पर भारतीय औद्दोगिक क्षेत्र मे चल रहे, "डुप्लिकेट (नकली) उत्पादन निर्माण" का आरोप, सिंधी समुह पर लगता आया है. क्या यह हमारे भारत सरकार की, बडी ही जागती नही तो और इसे हम क्या है...?
      तिब्बती अंसेबली को देखने के बाद, मुझे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने २५ नवंबर १९४९ को, "भारतीय संविधान" को अमली जामा पहनाते समय, "संविधानिक सभा" मे दिये गये वे अनमोल बोल याद आ गये. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"It is not that India did not know what democracy is. There was a time when India was studded with republics, and even where there were monarchies, they were either elected or limited. They were never absolute. It is not that India did not know Parliament or Parliamentary procedure. A study of the Buddhist Bhikshu Sanghas discloses that not only there were Parliaments - for the Sanghas were nothing but parliament - But the Sanghas knew and observed all the rules of Parliamentary procedure known to modern times. They had rules regarding seating arrangements, rules regarding motions, resolutions, quorum, whip, counting of votes, voting by ballot, censure motions, regularization, res judicata, etc. Although these rules of Parliamentary procedure were applied by the Buddha to the meeting of the Sanghas, he must have borrowed them from the rules of the Political Assemblies functioning in the country in his time...."* हमारे समाज के कुछ बिक-अकल़ों का "The Buddhist Personal Act" को विरोध देखकर, मुझे उन पर दया भी आती है.  बाबासाहेब का संदर्भ देकर, जो हमारे महामहिम (?) "बौध्द कानुन" को विरोध करते है, क्या उन्होने कभी बाबासाहेब के संपुर्ण लिखाण का "विषयानुरूप वर्गीकरण" किया है ?  क्या उन्होने बाबासाहेब के संपुर्ण लिखाण का "कालानुसापेक्ष वर्गीकरण" किया है ? क्या उन्होने बाबासाहेब के समस्त लिखाण का संशोधनात्मक, चिकित्सात्मक, समिक्षात्मक अध्ययन किया है ? बाबासाहेब आंबेडकर को पढना अलग विषय है. परंतु उसे समझना - उमगना - परखना यह अलग विषय है...! मैने *"The Buddhist Personal Act"* का एक कच्चा ड्राफ्ट तयार कर, इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉगर आदी पर डाल दिया है. जब तक उस कच्चे ड्राफ्ट पर, विद्वान - संशोधक - धार्मिक गुरू आदीयों द्वारा संशोधनात्मक - चिकित्सात्मक चिंतन नही किया जाता, तब तक उस ड्राफ्ट को, कानुनी अमली जामा पहनाना यह मुर्खता होगी...!
      यह विषयांतर भाव लिखना भी, यहाँ कुछ गैर नही है. क्यौ कि, वह विषय बुध्द संस्कृती से जुडा हुआ है. पुज्य दलाई लामा जी ने *"दलाई लामा यह यंत्रणा अब गैरलागु होने की जो बात कही है....!"* यह विषय बहुत ही गंभिर है. दलाई लामा यह कोई साधारणसा पद नही है ! वह तो तिब्बती शासन में "सर्वोच्च पद" है. *"जिसका संबंध यह तिब्बती संस्कृती के धार्मिक - राजनितिक भाव से जुडा है. जो एक बहुत बडा शक्ती केंद्र भी है, जिस के द्वारा तिब्बती समुह को बांधे रखा है. वह तो तिब्बत की सही रूप से शासन व्यवस्था है...!"* अत: उस पद को हटाने से केवल तिब्बती संस्कृती ही नही, अपितु विश्व के समस्त बौध्द संस्कृती पर, उसका गहरा असर पडने की भी प्रबल संभावना है.
      हमे तिब्बत का प्राचिन इतिहास समजना भी बहुत जरूरी है. तिब्बत की सिमाएँ यह २५ लाख चौरस किलोमीटर, अर्थात भारत से दोन तृतीयांश से भी बडे आकार का बौद्ध राष्ट्र था.  २१०० वर्षों से भी जादा इतिहास रहा तिब्बत, सातवी-दसवी शताब्दी तक आशिया का एक स्वतंत्र शक्तीशाली राष्ट्र था. सन ७६३ में तिब्बत ने चीन पर आक्रमण करने से, चीन का राजा देश छोडकर भाग गया. फिर तिब्बती सेना ने, वहा नये राजा की नियुक्ती कर, सन ८२१ में चीन - तिब्बत के बीच "सरहद्द निश्चीतीकरण" का समझौता किया. और दोनों भी देशों मे सुख - शांती से रहने की बातें कही गयी. *सन १९१४ में भारत - तिब्बत के बीच, "सरहद्द निश्चितीकरण" (मँकमोहन रेखा) करनेवाला "सिमला करार" हुआ.* सन १९४९ को नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र में स्वयं सदस्यता के लिए जो आवेदन किया था, तब सार्वभौम दर्जा सिध्द करने के लिए, उस सिमला करार का उल्लेख किया गया. यही इतिहास ही तो हमे, तिब्बत के आजादी का बडा सबुत दे जाता है.
      सन १९४१ में अमेरिका के बडे कुटनीति ने, सिकियांग और तिब्बत यह दो राष्ट्र चीन के अधिन करने की एक बडी नीव रखी गयी. सन १९१४ के तिब्बत - ब्रिटिश बीच हुये करार को, अमेरिका ने भी स्विकार किया था. वही द्वितिय महायुध्द में ब्रिटिश के बाजु में खडे होने के साथ ही, भारत से ब्रिटिश की पकड ढिली करने के लिए, अमेरिका ने चीन को उनकी सैनिक छावणी को तिब्बत में लगाने के लिए प्रेरीत किया. क्यौं कि, अमेरिका आशिया पर भी अपना अधिपत्य जमाना चाहता था, जो चीन के बीना संभव नही था. अर्थात इस कुटनीती को अंजाम देकर, अमेरिका ने ब्रिटन को  बहुत बडा धोका था. अमेरिका का उद्देश केवल हिटलर को मदत करना था. क्यौ कि, अमेरिका का सही शत्रु जर्मनी नही, तो जापान था. वही हिंदी महासागर मे भी, ब्रिटिश नाविक दल पर, अमेरिका अपना स्व: अधिपत्य जमाना चाहता था. अमेरिका की यह कुटनीतिक चाल समझकर, रशिया का सर्वेसर्वा विन्स्टन चर्चील भी  *"इंग्लिश भाषिकों की केवल एक ही राजनिती  हो...!"* यह घोषवाक्य देकर, भारत के हितों की पुरी वाट लगा दी. वही अमेरिका ने भी भारत को बचाने के बदले, चीन को बचाने की चाल खेलकर, तिब्बत को चीन के गुलामी की ओर ढकेल दिया. इस तरह के कुटनीतिक चाल में, भारत - पाकिस्तान के विघटन का रास्ता खुला किया गया. आखिर द्वितिय महायुध्द मे ब्रिटन ने यह बातें खुले तौर पर स्विकार भी की.
    सन १९५० में तिब्बत पर चीन ने आक्रमण करने से, दलाई लामा तिब्बत से भागकर, भारत के सरहद्द पर, चुंगी खोरी मे आश्रित हो गया. तथा भारत सरकार एवं युनो को भी उस की सुचना दी. परंतु इस घटना की गंभिर दखल कभी ली ही नही गयी. वही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ७ दिसंबर १९५१ में लोकसभा में अपने भाषण में कहा कि, *"तिब्बत आजादी संदर्भ में निर्णायक आवाज तिब्बती जनता की होनी चाहिये. अन्य की नही."* भारत सरकार के इन विदेश नीति पर नाराजी बताते हुये, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने सन १९५० कहते है कि, *"सन १९४९ को भारत ने चीन को स्विकृती देने के बदले तिब्बत को स्विकृती दी होती तो, भारत - चीन सरहद्द समस्या कभी पैदा ही नही होती...!"* जब तक गुलाम भारतीय उपखंड की सरंक्षण नीति एक थी, अर्थात ब्रिटिश राज व्यवस्था का अंत होने के पहले, तिब्बत और अफगाणिस्तान की आजादी अबाधित रही. परंतु भारत - पाकिस्तान विघटन के बाद भारत उपखंड की संरक्षण नीति पर कोई पॉलिसी ही नही बनाई गयी. उसका परिपाक आगे जाकर सन १९५० में चीन ने तिब्बत को और सन १९८० में रशिया ने अफगाणिस्तान को अपने स्व: आधिपत्य में ले लिया.
      तिब्बत संदर्भ मे जवाहरलाल नेहरु ने जो गलत विदेश नीतियाँ चलाई थी, पर तत्कालीन भाजपा शासित प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने तो, विदेश नीतिओं की पुर्णत: हद ही पार की. *"अटल बिहारी बाजपेयी ने तो तिब्बत, यह चीन का अविभाज्य अंग होने का वक्तव्य ही दे डाला."* आज चीन - भारत - भुतान के बीच का "सरहद्द डोकलाम विवाद" भी उसी भारतीय गलत विदेशी नीतिओं का परिपाक है. कश्मिर प्रश्न भी नेहरु के उसी गलत नितीओं की देण है. चीन यह ओबोर के माध्यम से समुचे आशिया पर, अपना शक्तीशाली अधिपत्त जमाने का प्रयास कर रहा है. आज नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांगला देश समान पडोसी देशो़ं को, चीन की केवल आर्थिक मदत ही नही मिलती तो, चीनी सेना का केंद्र भी वहा बन रहा है. *"वही चीन ने तिब्बत में विश्व मे कही भी हमला करने के लिए, "केमीकल वार" और आधुनिक हत्यारों से लेस केंद्र स्थापित किये है."* दक्षिण कोरीया हो या पाकिस्तान हो, चीन के अधिन काम करने मे ही धन्यता मानते है. आज चीन ही तो अमेरिका को आवाहन कर रहा है. रशिया पहले समान शक्तीशाली केंद्रबिंदु अब रहा नही. *अगर "तिसरा महायुध्द" लादा गया तो, भारत का अस्तित्व क्या होगा ?* यह सबसे बडा अहं प्रश्न है. क्या भारत केवल अमेरिका के ही सहारे पनपने की बातें करेगा...? रशिया का भारत पर वो पहले समान विश्वास अब रहा नही. भुतान को छोड दिया जाएँ तो, अन्य भारत के पडोसी देशों के चीन के साथ गहरे संबध है. चीन ने यह सभी बातें केवल आर्थिक समृध्दी कारण करने मे सफलता पायी है. देवत्व - धर्मांधता को वहा कोई भी जगह नही है. *"अमेरिका तो केवल अरब देशो़ं के कर्ज से ही, अपनी दादागिरी कर रहा है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुसरी बार कब डगमगायेगी, यह तो कहाँ नही जा सकता. तब भारत का क्या होगा...?"* चीन ने पाकिस्तान मे अलगाववाद को पनाह देकर, भारत को गुलाम बनाने की रणनिती चलाई है. अगर वह संभव नही हुआ तो, तिब्बत से भारत पर हमला करना क्या इसे नकारा जा सकता है ? भुतान का सरहद्द भुभाग "डोकलाम" भी उसी कडी की एक कुटनीति है ...!!!
      भारत यह पडोसी क्षेत्र से इस तरह घिरा पडा है. भारत का इतिहास यह तो गुलामी का इतिहास रहा है. और भारत पर यह विदेशी गुलामी लादने की देशद्रोहीता का जिम्मेदार केवल ब्राम्हण्यवाद रहा है. इस पर डॉ. आंबेडकर २५ नवंबर १९४९ को "संविधान सभा" में कहते है कि, *"On 26th January 1950, India will be an independent country (cheers). What would happen to her independence ? Will she mentain her independence or will she lost it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an independent country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ...?"* वही काँग्रेसी नरसिंहराव सरकार ने, फिर से भारत पर भांडवलशाही देशों की गुलामी लादने का बडा ही हिन काम किया है. भारतीय अर्थव्यवस्था तो पुर्णत: खोकली दिखाई देती है. भारत यह कर्ज से तले पुर्णत: डुब चुका है. भारत को डॉ. मनमोहन सिंग समान अच्छा अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिलने के पश्चात भी, काँग्रेसी कु-नीति ने सिंग को अपने मर्जी से काम करने की आजादी न देना...! यह भारत की बडी शोकांतिका रही है. फिर भी डॉ मनमोहन सिंग जी ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के अर्थनीति पर चलने का कुछ प्रयास किया था. हमारे भारत की अर्थनीती यह केवल डॉलर के सहारे कब तक चलेगी...? यह अहमं सवाल है. भारत की महंगाई यह आसमान छुँ रही है. कर्मचारी आदीओं को महंगाई भत्ते में वृध्दी तो मिल जाती है. परंतु किसान, मजदुर, सामान्य वर्ग का क्या...? वह तो महंगाई तले मर रहा है. *"वही देवत्व - धर्मांधता ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदिरों में जबडे रखा है. और मंदिरों में डंब हुये, उस संपत्ती का वापर करने की हिंमत कोई भी सत्ता व्यवस्था नही कर पा रही है. यही तो बडी शोकांतिका है...!"* क्या भारतीय अर्थनीति यह बाबासाहेब के अर्थनीति विचारो़ पर चलेगी...? यह केवल प्रश्न ही बना है.
     विदेशी नीति के संदर्भ मे जवाहरलाल नेहरू, अटलबिहारी बाजपेयी ने जो गलतीयाँ की थी, वह गलतीयाँ नरेंद्र मोदी ने नही की. इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ने अन्य देशो़ से अच्छे संबध बनाने का प्रयास किया है. परंतु नरेंद्र मोदी केवल हवा मे ही उडते नजर आते है. तिब्बत के संदर्भ मे मोदी का मौन रहना भी, हमारे भारतीय सुरक्षा के लिए बडा घातक हो सकता है. अमेरिका आज तिब्बत के प्रती सकारात्मक दिखाई देता है. वही भारत का उदासीन रहना ? क्या नरेंद्र मोदी, तिब्बत यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है ? यह वक्तव्य करने की हिंमत दिखा पायेगा, यह भी महत्वपुर्ण प्रश्न है. चीन का आर्थिक सशक्त हो जाना, यह तिब्बत के आजादी लिए अब बडे दुर की मंजिल है. दलाई लामा का वक्तव्य भी हमे उसी कडी में लेना होगा. भारत के संदर्भ में देवत्व - धर्मांधता से परे होकर, *"मंदिरों का राष्ट्रियकरण"* करने की हिंमत नरेंद्र मोदी ने ना दिखाना, यह मोदी की सबसे बडी कमजोरी है. इंदिरा गांधी ने बँको का राष्ट्रियकरण करने की एवं भारत पर आणिबाणी लादने की हिंमत दिखाई थी. इसके लिए बडे जिगर की जरूरत है. राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ और सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत तो केवल और केवल देवत्व - हिंदुत्व के कुप-मंडुक हुये दिखाई देते है. भारत की सुरक्षा और आर्थिक विकास उन का एजेंडा अब तक दिखाई ना देना, वही "भारत राष्ट्रवाद" यह संघ का मिशन कब होगा ? यह भी अनुत्तरित प्रश्न बना हुआ है. नरेंद्र मोदी भी उसी कडी का एक बडा हिस्सा है.
          आजाद भारत मे मागासवर्गीय समुह को राजकिय समानता तो मिली है, परंतु चुने गये प्रतिनिधीओ़ ने उनका गुलाम होना, यह भी बडे चिंता का विषय है. वही सामाजिक - आर्थिक असमानता ने, भारतीय अंतर्गत समाज व्यवस्था मे अंतर्युध्द चल रहा है. वही देवत्व - धर्मांधता ने मानसिक गुलामी को और भी जादा बढावा दिया है. भारत की आर्थिक व्यवस्था, केवल मंदिरो मे ही डंब होने के कारण बडी खस्ता है. भारत कर्ज से तले डुबा है. और *हमारे नेता लोग "सशक्त भारत - समृद्ध भारत - एकसंघ भारत" की बडी बडी डिंगे हाकते रहते है...!* सवर्ण वर्ग का एक बडा धर्मांधी कुणबा तो, राष्ट्रभक्त "बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद" के नारे दे रहा है ! भारत की अखंड अस्मिता "भारतीय संविधान" की होली करते भी, वे दिखाई देते है. फिर भी इस भारतीय शासन व्यवस्था और पोलिस वर्ग का मौन रहना, यह तो भारत के अगली गुलामी का संदेश दे रहा है. *"मोहनदास गांधी हत्याकांड"* को वह सवर्ण जाती वर्ग भुलते नजर आता है. जब उन की बहु - बेटीयाँ अपनी इज्जत बचाने की भीख माँगते थे.  वही पुरुष वर्ग अपनी जान बचाने के लिए, जहाँ वहाँ छुपते फिरते नज़र आते थे. आज वह उच्च जातीय देशद्रोही धर्मांधी कुणबा, भारत के उनके पुरखों के देशद्रोही - गद्दारी की मिसाल बनते नजर आते है. अगर यही हालत रही तो, शायद भारत मे *"अंतर्गत रक्तक्रांती"* को बुलावा जादा दुर नही..! जरा सोचों, अंतर्गत और बाह्यगत इन द्वंद्व वार में स्वतंत्र भारत, क्या जिवित रह पायेगा भी नही ? यह प्रश्न है, सभी भारतीय देशभक्तों के लिए...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
           (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६, नागपुर
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Thursday 9 August 2018

Prof. Kuldeep Waghmare, Ritesh Thool, Murtaza Babbar posted in CRPC Yeotmal Dist Committee.

🔹 *प्रा. कुलदीप वाघमारे, रितेश थुल, मुर्तझा बब्बर इनकी सिव्हिल राईट्स यवतमाल जिला शाखा पर नियुक्ती...*
        सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (C.R.P.C.) के यवतमाल जिला उपाध्यक्ष पद पर आयु. रितेश थुल, जिला सचिव पद पर प्रा. कुलदीप वाघमारे, एवं जिला कार्याध्यक्ष पद पर मुर्तझा बब्बर इनकी नियुक्ती सेल के यवतमाल जिला अध्यक्ष मिलिन्द धनवीज इन्होने की है. इस नियुक्ती को सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' इन्होने अनुमती दी है... तिनो ही मान्यवर यह बाबासाहेब विचारधारा संघटन मे कृतीशील है...  उनके नियुक्ती पर आयु. एन.पी. जाधव, इंजी. पी. रवी (कर्नाटक),  प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, प्रा. दिलिप बारसागडे, दिपाली शंभरकर, कवी सुर्यभान शेंडे, मिलिन्द बडोले, डॉ. नितिन आयवले, रेणु किशोर, अँड. रविंदर सिंग घोत्रा, मुरली मेश्राम, मिलिन्द धनवीज, अँड. आचल श्रीवास्तव, इंजी. विवेक मवाडे, कांचन वीर, इंजी. गौतम हेंदरे, डॉ. प्रमोद चिंचखेडे, प्रवीण बोरकर, अशोक गणवीर, गौतमादित्य, प्रा. योगेंद्र नगराले, नरेश डोंगरे, प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, रजनी थेटे, रणजीत तायडे, अँड. निलिमा लाडे आंबेडकर, डॉ. सौमित्रसेन धिवार, डॉ. देवानंद उबाले, हिना लांजेवार, अँड. राजेश परमार, कमलकुमार चौव्हान, हरिदास जीवने, भोला शेंडे, नालंदा गणवीर, मिलिन्द आठवले, प्रवीण बोरकर, अजय तुम्मे, धनराज उपरे, मनिष खंडारे, सुरेखा खंडारे, सूझंना पोद्दार, चंदा भानुसे, नरेंद्र खोब्रागडे, मिलिन्द गाडेकर, डॉ. राजेश नंदेश्वर , अशोक निमसरकार, सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, ब्रिजेश वानखेडे, अँड. बी.एम. गायकवाड,  विनोद भाई वनकर, धर्मेंद्र गणवीर,  सुधिर जावले, डॉ. मनिषा घोष, डॉ. भारती लांजेवार, आलिया खान, मंगला राजा गणवीर, मुन्ना यादव, ह्रदय गोडबोले, चंद्रिका बहन सोलंकी, महेश महिडा,  विनोद भाई वनकर, प्रवीण देवले, सुधिर मेश्राम, गोपाल यादव, राहुल दुधे, प्रियदर्शी सुभुती, रोहित विनुभाई कचरा, संजय फुलझेले, अँड. राहुल तायडे, नागसेन पाझारे, प्रशांत ठाकरे, ओमप्रकाश मेश्राम, भालचंद्र सुर्यवंशी, आदीयो ने अभिनंदन किया है...




🌳 *औदुंबर तु तो मेरे आँगण में !*
            *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
             मो.न. ९३७०९८४१३८

औदुंबर तु तो मेरे आँगण में
बुध्दमय छाया में बसते जाना ...

जलधारा विवाद शाक्य राज में
राजपाट सिध्दार्थ का छोड जाना
औदुंबर गोद की उस छाया में
ज्ञान बोध का प्र-पादान हो जाना ...

शरीर मन के एकाग्र भाव में
सुजाता ने खीर दान कर जाना
कठोरमय उस महा ध्यान में
गया के ओर बुध्द का बढ जाना ...

पिपल वृक्ष की सु-बुध्द छाया में
गया ग्राम का बुध्दगया हो जाना
तथागत के बोधिवृक्ष धारा में
सिध्दार्थ ने बुध्दत्व ज्ञान पा जाना ...


  • * * * * * * * * * * * * * * * * *

Tuesday 7 August 2018

🤝 *मागासवर्ग आरक्षण व्यवस्था मे १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली, क्या बहुत बडा धोका है ?*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

      हमारी भारतीय राजसत्ता व्यवस्था भी एक अजब गजब की नौटंकी है. नौटंकी के कलाकार यह हमेशा काल्पनिक चित्रण ही सादर करते रहते है. ता कि, हमारे लोगों का एक अच्छा मनोरंजन होता रहे. उसी प्रकार यह राज सत्ताधारी वर्ग भी, *"एक हातों मागासवर्ग के लिए आरक्षण की बडी बडी घोषणा वर्षा कर जाता है. तो दुसरी ओर, उसी घोषणा वर्षा का ना कभी सक्रिय अमल हो...! इस के लिए भी, कुछ अवरोधी अकाल की व्यवस्था कर जाता है. ता कि, यें आरक्षण सीटे कभी भरी ही ना जाऐं...!"* उसी चाणाक्य कुटनीति के सहारे, हमारी इन राजसत्ता व्यवस्था ने, संविधानिक दायित्व को निभाने के लिए, शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण हेतु १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली लागु की है. क्या है, यह १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली..? *"रोस्टर का अर्थ है, शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण लागु होने के बाद स्विकृत पदों का क्रम निर्धारण...!"* अब इस रोस्टर को समजना भी हमे बहुत जरूरी है.
१. अनारक्षित (UR)
२.    - "-
३.    -" -
४. ओ. बी. सी. (O. B.C.)
५. अनारक्षित (UR)
६.    - " -
७. अनुसुचित जाती (SC)
८. ओ. बी. सी.  (O.B.C.)
९. अनारक्षित (UR)
१०.   - " -
११.   -" -
१२. ओ. बी. सी.  (O. B. C.)
१३. अनारक्षित (UR)
--------------------------------------
१४. अनुसुचित जनजाती (ST)
१५. अनुसुचित जाती (SC)
१६. ओ. बी. सी. (OBC)
       अर्थात १३ बिंदु रोस्टर के कुल पद - १३ ---- अनारक्षीत - ९, ओ.बी.सी. - ३, अनु. जाती. - १, अनु. जमाती - ०
       हमारी सत्ता व्यवस्था ने, आरक्षित वर्ग को ४ (ओ.बी.सी.), ७ (अनु. जाती), ८ (ओ.बी.सी.), १२ (ओ.बी.सी.), १४ (अनु. जमाती), १५ (अनु. जाती), १६ (ओ.बी.सी.) इस क्रम पर बिठाया है. वही अनारक्षित वर्ग को प्रथम तथा सर्वोत्तम स्थान पर...! अब सवाल है कि, *"जब किसी विभाग मे किसी भी पदों की भर्ती करना हो तो, उन जगह की नियुक्तीयाँ प्राय: अनारक्षित श्रेणी से ही होगी. ना कि, मागासवर्ग आरक्षित श्रेणी से...!!!"* अब हमारे सभी मागासवर्गीय कर्मचारी संघटन नेतावर्ग, कार्यकर्ता, राजकीय नेता एवं विचारवीद आदी लोगों का चिल्लाना रहता है कि, पदों के अनुपात में विज्ञापन दिया ही नही गया..! वास्तव मे इस १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली का कठोर विरोध, जब वह अस्तित्व मे आयी थी, तब ही होना जरुरी था...! *"हमारे भारतीय संविधान में किसी भी विभागों में, किसी भी पदों की नियुक्तीयाँ करते समय मागास वर्ग के लिए प्रतिनिधित्व व्यवस्था की तजबीज पहले ही कर रखी है...!"* आज भारत के कई राज्यों में जो पदों की भरती हो रही है, वहाँ मागासवर्ग के लिए आरक्षण अभाव दिखाई दे रहा है. अब राज सत्ता व्यवस्थाधारीओं ने अपना असली खेल दिखाना शुरु किया है. वास्तव्य में हम लोग बडे ना-लायक है, जो गटवादी हिजडों के गटभाग में बिखर गये है. समाज उत्थान का दायित्व गया भाड में...!!! अत: अब हम नही जागेंगे तो, गुलामी की बेडिया पहनने का काल जादा दुर नही...!!!
      भारत को आजादी मिलने में आज ७० साल का कालखंड गुजर चुका है. फिर भी इस देश में *"अनुसुचित जाती / जमाती प्रतिबंधक कानुन हो या, अनु. जाती / जनजाती आयोग हो या, ओ.बी.सी. आयोग की गरज महसुस होना !"* यह तो भारत के राजकिय, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक परिक्षेत्र के उच्च निच मानसिकता का बोध करा देता है. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जब "भारतीय संविधान" को संविधान सभा मे अंतिम रूप दे रहे थे, तब २५ नवंबर १९४९ को संविधान सभा मे कह गये कि, *"On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradiction. In politics we will have equality and in social & economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one vote one value. In our social and economic life, we shall, by reasons of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradiction ? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will do so only by putting our political democracy in peril. We must remove this contradiction at the earliest possible moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy which is Assembly has to laboriously built up...."*
      हमे महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपती शाहु महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पंजाबराव देशमुख, प्रबोधनकार ठाकरे समान सामाजिक - आर्थिक समानता का पुरस्कार करनेवाले अच्छे प्रामाणिक नेता तो मिले .... परंतु उन का मिशन आगे ले जानेवाले सही वारिस नही...!!! आज जो कोई भी राजकीय महामहिम नेता दिखाई देते है, चाहे वे रिपब्लिकन गटनेता हो, छगन भुजबळ (ओ. बी. सी. नेता) हो, शरद पवार (मराठा नेता) हो, या अभी अभी राजनिती में आये हुये हमारे मित्र प्रा. बबनराव तायवाडे हो, या सुप्रिया सुळे हो, या पंकजा मुंडे हो, या डॉ. हिना गावित हो, आदी समस्त नेता महामहिम गण यह सामाजिक - आर्थिक समताधारी कम, और राजनितिक दलाल जादा दिखाई देते है. उन महामहिमों को समाज हित से भी जादा, उन के व्यक्तीगत हित की चिंता अधिक रहती है ! अत: हमे इन सभी नेताओं से बचकर रहने की जादा आवश्यकता है. वही ये सभी नेता लोग विचारविद है ही नही, तो खाक समाज को सही दिशा देंगे...??? वही इन सभी नेताओं मे सबसे बडा जहरीला नाग कोई है तो, वह है शरद पवार...!!! इस महामहिम से बचना तो बहुत जरूरी है. वह बोलता एक है, और करता अलग है ! पवार तो विश्वासहिनता की एक ज्वलंत मुर्ती है...!!!
     *"भारत मे विशेषत: महाराष्ट्र हो, या गुजरात हो, या उत्तर प्रदेश हो, या मध्य प्रदेश हो आदी राज्यों मे महारेत्तर समाज ने भी बौध्द धम्म मे दीक्षीत होना, यह एक बहुत बडी क्रांती कहनी होगी."* वही इस "बौद्ध धम्म दीक्षा अभियान" मे कई सामाजिक कार्यकर्ता जुड रहे है. महाराष्ट्र के संदर्भ मे कहा जाएँ तो, लक्ष्मण माने, प्रा. सुषमा अंधारे, स्मृतीशेष हनुमंत उपरे, संदिप उपरे, मेरे मित्र रमेश राठोड, उल्हास राठोड आदी मान्यवरों ने अपना जीवन समर्पित किया है. और हिंदुत्व - देवत्व को पुर्णत: नकारा है. जब तक ये महारेतर ओ.बी.सी., मराठा, आदिवासी, भटके विमुक्त जाती समुह यह हिंदुत्व - देवत्व छोडते नही, तब तक उन के धर्मांध - देवांध सांस्कृतिक गुलामी का पाश दुर होना कदापी संभव नही. मुझे यह कहते हुये आनंद भी हो रहा कि, *"बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने १४ अक्तुबर १९५६ मे "बौध्द धम्म दीक्षा मिशन" शुरु किया था, जो उन के जाने के बाद थमसा गया था, जिसे गती देने का काम हमारी युवा टीम ने १९८१ मे शुरू किया था. और हमारे मंच पर प्रा. डॉ. रूपा कुलकर्णी, प्रा. प्रभाकर पावडे, दिल्ली के नामांकित साहित्यिक मोहनदास नैमिशराय ने आदीयों ने धम्म दीक्षा ली थी. हमारे उस मिशन के प्रभाव में आगे जाकर नामांकित कवी सुरेश भट तथा ओ.बी.सी. नेता - दलित व्हाईस बंगलोर के संपादक मा. व्ही.टी. राजशेखर ने भी बौध्द धम्म की दीक्षा ली थी!"* साथ मे मेरे ही नेतृत्व में जागतिक बौध्द परिषद का आयोजन किया गया. आज हमारे पिढी ने उस दिशा मे पहल कर, हमारे मिशन को गती देने का काम किया है. और करते दिखाई देते है. महत्वकी बात यह कि, *"जब तक वह गुलामी पाश दुर नही होगा, तब तक हम इस देश मे सामाजिक - आर्थिक समानता को प्रस्थापित नही कर सकेंगे...!"* अत: भारत देश पर ४℅ अल्पसंख्यक उच्च वर्ग समुह का सत्ता कार्यकारी मंडल, न्याय मंडल, संरक्षण मंडल, व्यापार एवं औद्योगिक मंडल, ब्युरोक्रेसी, धर्म मंदिर मंडल आदी सभी जगह पर, उन उच्च वर्ग का एकछत्र अधिपत्य होना तो लाजमी है. अगर उन उच्च वर्ग द्वारा अधिग्रहित सभी क्षेत्र को, हमे छेद देना हो तो, डॉ. आंबेडकर जी ने हम भारतीयों को जो "बौध्दमय भारत संकल्पना" दी है, उसे समजना - अमल मे लाना बहुत ही जरूरी है...!!!
     "बौध्दमय भारत" यह संकल्पना जातीविहिन समाज निर्माण एवं समान नागरी कायदा लागु करने का एक माध्यम है. भारत मे सामाजिक - आर्थिक - धार्मिक समानता प्रस्थापित करने की एक बुनियाद है. जाती संघर्ष - धर्म संघर्ष को मिटाने की एक गुरुकिल्ली है. धर्मांधता - देवत्व भाव इस मानसिक गुलामी को ठिक करने की दवा है. अविकसित भारत को "अर्थमय विकास भारत" बनाने की वह एक प्रेरणा है. *"शांतीशील भारत, करुणामय भारत, मैत्रीमय भारत, प्रेममय भारत बनाने का वह एक नाद है...!"* परंतु हम धर्मांधी - देवांधी बनकर, ब्राम्हण्यवाद के जाल मे फंस गये. और आज वह ब्राम्हण्यवाद भारत के हर समाज मे विद्यमान दिखाई देता है. इस संदर्भ में भारतीय संविधान के पितामह बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ स्वातंत्र्य, समता एवं बंधुभाव इन तत्व का अभाव - यह मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थ से, इस शब्द ने हर क्षेत्र में कहर फैलाया है. और ब्राम्हण भले ही इस के जनक हो, परंतु इसका अभाव अब केवल ब्राम्हण वर्ग के सिमित नही रहा. तो इस ब्राम्हणशाही ने हर जगह संचार कर, सभी वर्ग के आचार विचारो़ को नियंत्रित किया है. और यह निर्विवादीत सत्य है....!"* (मनमाड १३ फरवरी १९३८)
      मै दु:खी भाव से यह कह रहा हुं कि, भारत का हर तबका आज राजनिती मे डुब गया है. वही इस देवांधता ने भारतीय हिंदु मंदिर *"अर्थनाद का आगार"* बन गये है. और वही सशक्त आर्थिक हिंदु धर्म शक्ती, यहाँ के बहुजन समुह को और गुलाम बनाने मे सफल रही है. यही कारण है कि, *"इस देश के राजनितिक सत्ता केंद्र पर हमेशा ही ब्राम्हण्यवाद का बोलबाला है. चाहे वह राजनितिक दल काँग्रेस हो या, भाजपा हो या, कँम्युनिस्ट हो...!!!"* इस लिए हिंदुत्व - देवत्व से बाहर निकले बिना, इन संपूर्ण बहुजन समाज का उत्थान संभव नही. और हम केवल मागास वर्ग प्रतिनिधित्व, मागास वर्ग आयोग की माँग तक ही सिमित रह जाएँगे...! हमे इस से बाहर निकलकर सभी तबके को बौध्द बनाना है. हिंदुत्व धारा का अंत करना है. देवत्व भाव को डुबाना है. तभी हम भारतीय समाज मे सामाजिक - आर्थिक समानता ला सकेंगे...! साथ ही राजकिय सत्तावाद भी...!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
*राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८३१३८, ९२२५२२६९२२

Sunday 5 August 2018

🌹 *ह्या मनावर प्रेम करावे ...!*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' नागपूर*
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

ह्या फुलांवर प्रेम करावे, ह्या मनावर प्रेम करावे
सुखकर सह जिवनसाठी, बुध्दाला मी शरण जावे

फुलपाखरा संग रमतांना, भान मी हरपुन जावे
फुलकणांचे शोधन करुनी, क्रांती गुणाचे युग यावे
मोगरा फुलाच्या सुगंधाने, विष दोषाचे हरण व्हावे
गुलाबाच्या सौंदर्यामधुनी, बुध्द गुणांचे दर्शन व्हावे

वेलींच्या ह्या वाढ गुंतेतुन, जन मनांनी गुंतुन जावे
त्या फुलछटा वर्षावानी,माझे आसमंत फुलुन जावे
कोमल तुझ्या भावामधुनी, मी तुझ्यावर प्रेम करावे
बुध्द मनाची तु प्रतिक रे,माणसांनी तुझे गुण घ्यावे

पक्षी जातींच्या जगामध्ये, जनमनाने गवसनी द्यावे
जातीभेद जन दोषावर, आकाशातुन सु-वाणी यावे
विषमतेच्या जन वा-याने,माणसांचे कां घात करावे
निसर्गभाव जगामध्ये, जनमनाने ना ही दास व्हावे

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Thursday 2 August 2018

🔥 *ती विचार क्रांती ...!*
           *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
           मो.न. ९३७०९८४१३८

चिमण्यांची किलबिल
कावळ्यांचे काव काव करणे
ह्या खार प्राण्याचे
एका झाडावरुन
दुस-या झाडावर मस्त बागडणे
रोजच्या मानव जिवनातील
ते निसर्ग सत्य
आज काल
आमच्या घर अंगणातुन
कायमचे हद्दपार होणे
आणि हे अंगन
त्यांच्या अस्तित्व अभावाने
ओसाड झालेले असतांना
सोबतचं ह्या बाल जगाला
सदर तो इतिहास
प्रत्यक्ष कसा दाखवावा ?
म्हणुन होणारी ती कसरत
त्यातचं निसर्ग संशोधका-समोर
हा चिंतेचा विषय असतांना
सरकार मात्र निश्चिंत आहे
नाही ~ ते तर मेलेले आहे ...!
मित्रांनो,
ही आठवण होणे
इतके सहज भाव नाही
कारण
शिक्षणाचे सिलँबस असो
प्रशासकीय स्पर्धा परिक्षा असो
वा आधुनिक इतिहास बखाण असो
बुध्द, सम्राट अशोक,
महात्मा फुले, डॉ. आंबेडकर
ह्या महामानवांना
त्यामधुन हद्दपार करण्याची
चाललेली त्यांची हिन विकृती
गोडसे - गांधी आदी (गोगावादी)
बहुजन समाज विघातक
विचारवादाचे चाललेले गोडवे
भारत ह्या आमच्या देशाचे
संविधानिक नाव वगळुन
हिंदुस्तान म्हणवणा-या
ह्या अनैतिक, देशद्रोही पिलावळीने
सुवर्ण बुध्द कालीन
प्राचिन विकास भारताचे
केलेले पुर्णत: ते वाटोळे
आणि चिमणी , कावळा, खार
ह्या प्राणी जातीच्या केलेल्या
त्या नामशेषाप्रमाणे
आमच्या महापुरुषांना ही
नामशेष करण्याची हिम्मत
ह्यापुढे कधीही करु नये
म्हणुन आमची ही चेतावणी आहे
नाही तर
पुढची येणारी ती विचार क्रांती
ही तुमच्या अनैतिक, देशद्रोही पिढीला
कायमचे नामशेष करेल
हे सत्य तुम्ही समजुन घ्या ....!!!

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    (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

Dr. Milind Jiwane 'Shakya' delivered his speech on OBC Dhamma Deeksha Ceremony at Nagpur.

*ओबीसी धम्मदीक्षा जनजागृती अभियान नागपुर मे ...!*
      सार्वजनिक धम्मदीक्षा समारोह समिती, नागपुर की ओर से रविवार दिनांंक २९ जुलै २०१८ को डॉ. आंबेडकर सांस्कृतिक सभागृह, उर्वेला कॉलोनी, नागपुर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. उस कार्यशाला बहुत से मान्यवरों ने मार्गदर्शन किया. उस अवसर पर जागतिक बौध्द परिषद के अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्होने भी संबोधित किया.
*रमेश राठोड* - आयोजक