Thursday 29 February 2024

 ✍️ *बिन- अकल (घुटना सिख) एड दिनेश सिंघ के - डॉ. आंबेडकर सीक्रेट क्रिश्चियन (छुपे हुये इसाई) इस छुटे लिखाण को करारा जबाब....!!!*

     *डॉ. मिलिंन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       अकसर सिख समुदायों पर, जोक क्यौं लिखी जाती है. या सिख समुदायों की अकल घुटनों में रहती है. यह जो अकसर बातें चर्चा में होती है, इसमे तथ्य कितना है, यह संशोधन का विषय है. परंतु दिनेश सिंघ यह निश्चित ही *"घुटना सिख"* है, यह दिखाई देता है. या कहे तो, सस्ते में प्रसिध्दी पाने की ख्यायिश हो. मेरे पिछले लेख में, *"मैने सिखों की देश गद्दारी, हारे हुये सैनिक, उनकी औरतों का ज्योहार (सती जाना) और जो औरते सति नहीं गयी हों, उनका अंग्रेजो को सरेंडर होने का जिक्र किया था."* किसी भी समुदायों का बदनामीकरण करना उचित नहीं है. परंतु सिख धर्मगुरु दिनेश सिंघ के बाबासाहेब आंबेडकर विरोधी लिखाण को, रोक ना लागते हो तो, सिख समुदायों की पुरी चिरफाड करना, यह लाजमी हो गया है. और मेरे पढाई में उच्च वर्गीय सिखों का, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर विरोधी रवय्या का, और एक कारण सामने आ गया है. *"बाबासाहेब ने अछुत सिखों के लिये, पंजाब की चालिस लाख एकर भुमी में सें, चार लाख एकर भुमी मिल जाने का प्रयास किया था. जिससे अछुत सिखों का जीवन स्तर सुधर जाएं."* और इसका पंजाब प्रांत के (जाट सिख) मंत्री *प्रतापसिंह कैरो* ने, इसका खुले तौर पर विरोध किया था. क्यौं कि, मंत्री वह जमिन अपने रिस्तेदारों को, वो देना चाहता था. यह जानकारी बाबासाहेब के बहुत ही करिबी तथा पंजाब से ही जुडे हुये *सोहनलाल शास्त्री* इन्होने, अपनी पुस्तक *"डॉ. आंबेडकर के संपर्क में पच्चीस वर्ष"* में लिखी हुयी है. इसी के साथ ही पंंजाब के आंबेडकरी कृतीशील मान्यवर *एल. आर. बाली* इनकी लिखी हुयी पुस्तक - *"डॉ. आंबेडकर जीवन और मिशन"* इसमें सें, कुछ संदर्भ दुंगा. अब हम दिनेश सिंघ के लिखाण का चिरफाड करेंगे.

     घुटना सिख - *दिनेश सिंघ* ने, हमारे मार्गदाता *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इन पर, *"छुपे हुये इसाई होने का"* आरोप लगाया है. इस आरोप के संदर्भ में दिनेश सिंघ ने, बाम्बे मेथाडिस्ट चर्च के पाद्री *जैरल वासकोम पिकेट* इनकी लिखी गयी एक पुस्तक *"My Twenties Century Odyssey"* के पेज न ३२, १५५, १५६ का संदर्भ दिया है. और दिनेश सिंघ अपने लेख में कहता है की, *"पाद्री जैरल वासकोम पिकेट ने कहा कि, बाबासाहेब १९३५ में येवला में धर्मांतरण करने की घोषणा के बाद, उन्हे आंबेडकर इनको मिलने का आग्रह (इसाई वरिष्ठों ने) किया गया. पिकेट १९३५ में बिशप और १९३६ में बाम्बे क्षेत्र में नियुक्त किये गये थे. पिकेट ने कहा कि, बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने उन्हे शेंकडों किताबे उधार लिये थे. और दो साल बाद आंबेडकर जी ने, पिकेट से "गुप्त रूप से बाप्तिस्मा करने को" कहा था. परंतु पिकेट यह करने को सहमत नहीं थे. आंबेडकर साहाब ने, हर साल युवा पुरुषों / महिलाओं को, प्रशिक्षण का खर्च उठाने के लिये, मनाने की कोशिश की थी. ता कि, वे उनके अनुयायीओं के पाद्री बन सके. आंबेडकर नहीं चाहते थे कि, उनके शिष्यों को चर्च में, अनुशासन के अधिन रखा जाए."* इसके साथ ही बिशप जैरल वासकोम पिकेट के शिष्य *आर्थर जी. मैकफी* इनकी लिखी गयी पुस्तक *"The Road to Delhi"* इस पुस्तक का संदर्भ देते हुये कहा कि, *"मेथाडिस्ट चर्च के बिशप जैरल वासकोम पिकेट और डॉ आंबेडकर ये करिबी दोस्त थे. बाबासाहेब दो बार पिकेट से, "गुप्त रुप से बाप्तिस्मा देने को" कहा था. परंतु पिकेट ने मना कर दिया. आंबेडकर एक विधुर इसाई महिला मिशनरी से, शादी करने के इच्छुक थे. जिसने उनकी कई तरह से मदत की थी. उसने उसके बार बार के प्रस्तावों को कभी स्वीकार नहीं किया. आंबेडकर साहाब ने एक विधवा ब्राह्मण से विवाह तय कर दिया."* यही नहीं दिनेश सिंघ यह कह गया कि, डॉ आंबेडकर *"मुस्लिम धर्म"* स्वीकार करना चाहते थें, परंतु गांधी ने मना कर दिया और कहा कि, *"यदी आप मुस्लिम बनेंगे तो, आप पुना पेक्ट वादों को भुल जाओ."*  हिंदु महासभा के *डॉ. बी. एस. मुंजे*  से १८ जुन १९३६ को, राजगृह में एक सिक्रेट पेक्ट हुआ था. *सिख प्रतिनिधीयों* ने डॉ आंबेडकर को *"विदेश जाने"* के लिये, रुपये भी दिये थे.

     बिन-अकल *दिनेश सिंघ* के लगायें गये आरोपों के उत्तर की ओर हम बढेंगे. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर साहाब ने येवला, नासिक में, ३१ मई १९३५ को धर्मांतरण की घोषणा की थी. और कहां था कि, *"मैं हिंदु धर्म में जन्मा जरुर हुं. परंतु हिंदु धर्म में रहकर कभी मरुंगा नहीं."* बाबासाहेब आंबेडकर के इस घोषणा के बाद, *मेथाडिस्ट एपिस्कोपल चर्च* मुंबई के बिशप *थाबर्न ब्रडले* इन्होने डॉ आंबेडकर इनके धर्मांतरण घोषणा का स्वागत किया. तथा कहा कि, *"पिछले वर्ग के लोग जीवन में नया मार्ग प्रशस्त करना चाहते है तो, उन्होंने इसाई धर्म को ग्रहण कर लेना चाहिये."* मुस्लिम धर्म के नेता और विधानसभा सदस्य *के.‌ एल. गौवा* ने, बाबासाहेब आंबेडकर को एक तार भेजकर कहा कि, *"भारत के समस्त मुसलमान उनका और अछुतों का  इस्लाम धर्म में स्वागत करने के लिये उतावले है."* महाबोधी सोसायटी सारनाथ के सचिव ने बाबासाहेब आंबेडकर को एक तार भेजकर कहा कि, *"सोसायटी डॉ आंबेडकर और उनके अनुयायीओं बुध्द धर्म अपनाने का निमंत्रण देती है."* अमृतसर हरिमंदिर साहाब के उपप्रधान *सरदार दिलिप सिंह दोआबिया* ने तार भेजकर प्रार्थना कि, *"वे सिख धर्म का स्वीकार कर ले."* उस समय बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनका झुकाव *"सिख धर्म"* की और था. दिनांक १३ जनवरी १९३६ को, बाबासाहेब डॉ सोलंकी को लेकर, एक दिवाण और किर्तन में भाग लिया था. दिनांक ११ - १२ -  १३ अप्रैल १९३६ को, बाबासाहेब ने अमृतसर में *"सिख मिशनरी कांन्फेंन्स"* में सहभाग लिया था.  और *"जुलुस में प्रधान के साथ शाही बग्गी पर विराजमान थे."*  यही नहीं प्रधान सन्त *हुक्म सिंह* ने, बाबासाहेब के सन्मान में, एक शानदार भोजन का आयोजन किया था. उसी समय लाहोर (पंजाब प्रांत) में *"जात पात तोडक मंडल"* की एक अपनी *"कांन्फेंन्स"* बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनकी अध्यक्षता में होनी थी. वह कांन्फेंन्स क्यौं रद्द हुयी ? इस विषय पर, मैं फिर कभी लेख लिखुंगा. बाबासाहेब आंबेडकर के इस घोषणा सें, हिंदु नेता बहुत ही परेशान हो गये थे. *गांधी जी* ने भारत के करोडपती *बालचंद हिराचंद / जमनालाल बजाज* इनको बाबासाहेब आंबेडकर इनके पास भेजा. हर प्रकार का प्रलोभन दिया. परंतु बाबासाहेब हिंदु धर्म त्यागने के अपने निश्चय से, टस से मस नहीं हुये. आखिर हिंदु महासभा के नेता *डॉ ‌मुंजे* ने, एक आंदोलन चलाया. और विनंती कि *"अछुतों ने यदी धर्मांतरण करना ही है, तो वे मुसलमान या इसाई बनने के स्थान पर, सिख धर्म का स्वीकार कर ले."* यह सभी संदर्भ बाबासाहेब आंबेडकर इनके जीवनी लेखक *एल. आर. बाली* इनके पुस्तक में वर्णीत है. वही बाबासाहेब आंबेडकर के बहुत ही करिबी *सोहनलाल शास्त्री* इन्होने एक लेख लिखकर बाबासाहेब को निवेदन किया कि, *"वे अछुतों को सामुहिक तौर पर, सिख धर्म में दीक्षित होने का आदेश ना दे. जिस रोग के कारण ये हिंदु धर्म से पिण्ड छुडाना चाहते है, वह सिखों में भी मौजुद है. भले ही उस रोग का किटाणु सिखों के, धर्म ग्रंथ में ना हो, लेकीन सिखों में मौजुद है."*  बाबासाहेब आंबेडकर इनकी *पटियाला* (पंजाब) के राजा *भुपेंद्रसिंग* इन्होने शाही मेहमानी की थी. उस समय लाहोर के *सरदार महतावसिंग* भी उपस्थित थे. महाराज ने बाबासाहेब को *"पटियाला का प्रधानमंत्री"* बनने का प्रलोभन दिया था. तब बाबासाहेब ने महाराज को कहा था कि, *"तुम्हारे धर्म में मुझे और मेरे लोगों को, अपने अंदर लाने की कोई चीज ही नहीं है. महाराज साहाब, मैं लालच और लोभ में फसनेवाली मछली नहीं हुं."* वही सरदार महतावसिंग जब वेळ लाहोर लौटे थे, तब उनके सहकारी ओं ने इस संदर्भ में पुछा था, तब सरदार महतावसिंग कहते हैं कि, *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर तो अजिब स्वभाव के व्यक्ती है. उन्हे तो कोई सांसारिक लोभ लालच नहीं खीच सकता."* हिंदु महासभा के नेता *भाई परमानंद* कहते है की, *"आंबेडकर में कितने ही दोष क्यौं ना हो, किंतु वे न तो बेईमान है, न ही खुदगर्ज, न ही लालची."*(डॉ आंबेडकर इनके संपर्क में पच्चीस वर्ष‌‌‌ - इस पुस्तक सें लिये गये संदर्भ) यही नहीं *हैदराबाद के निजाम* बाबासाहेब आंबेडकर को, *"मुस्लिम धर्म स्वीकार हेतु चार करोड का प्रलोभन देते है."* फिर भी बाबासाहेब उन सभी प्रलोभन को ठुकरा देते है.

       उपरोक्त पैरा संदर्भ में मेथाडिस्ट चर्च के *बिशप थाबर्न ब्रडले* का उल्लेख दिखाई देता है. ना कि *बिशप जैरल वासकोम पिकेट* इस महाशय का. दुसरी बात यह कि, वे नये नये बने हुये बिशप दिखाई देते है. अत: वे बाबासाहेब आंबेडकर समान पहाड से, इस संदर्भ में बातें करेंगे, यह विषय हजम होनेवाला नहीं है. वही बिशप जैरल पिकेट से *"गहरी मित्रता"* रही थी, इस संदर्भ के कोई इतिहास सबुत नहीं दिये गये. और *बिशप जैरल वासकोम पिकेट* की एक किताब - *"My Twenties Century Odyssey"* इसका प्रकाशन सन १९८० का है. वही बिशप जैरल वासकोम पिकेट का शिष्य *आर्थर जी मैकफी* इनकी लिखी गयी पुस्तक *"The Road to Delhi"* इसका प्रकाशन दिनांक ३१ अक्तुबर २००५ का रहा है. *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनकी *धम्मदीक्षा १४ अक्तुबर १९५६* में हुयी थी. इसके पहले बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ने सन १९३३ को, मुंबई स्थित अपने घर का नाम *"राजगृह"* रखा था. जो बुध्द संस्कृती का प्रतिक है. यही नहीं, मुंबई में स्थापित कॉलेज का नामकरण *"सिध्दार्थ कॉलेज"* (१९४६) तथा औरंगाबाद में स्थापित कॉलेज का नामकरण *"मिलिंद कॉलेज"* (१९५०) रखते है. *"भारतीय बौद्ध जनसंघ"* की स्थापना सन १९५१ में करते है. *"The Buddhist Society of India"* इस धार्मिक संघटन की स्थापना १९५४ में, और पंजीकरण सन १९५५ में करते है.  *"The Buddha and His Dhamma"*  इस पुस्तक का लिखाण सुरुवात, सन १९५१ से करते है और १९५६ को उसे पुर्ण करते है. यही नहीं बाबासाहेब आंबेडकर *श्रीलंका* में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (१९५०) / *बर्मा* (म्यानमार) में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (सन १९५४) तथा *नेपाल* में आयोजित *"जागतिक बौद्ध परिषद"* (१९५६) में सहभाग लेते है. और ६ दिसंबर १९५६को हमें छोड जाते है. उनका *"महापरिनिर्वाण"* हो जाता है. बाबासाहेब आंबेडकर सभी कार्यक्रम जाहीर दिखाई देते है. और बिशप जैरल वासकोम पिकेट (१९८०) या उसका शिष्य आर्थर जी मैकफी (२००५) में पुस्तक लिखकर, बाबासाहेब आंबेडकर से घनिष्ठ मैत्री दिखाकर, उनपर आरोप लगाते है. यह कैसे विश्वसनीय विषय हो सकता है ?  यह अहं प्रश्न है. अगर बिन-अकल *दिनेश सिंघ* को, किसी व्यक्तीने उसकी *"मां के मृत्यु के उपरांत"* यह कह दे की, *"दिनेश सिंघ के मां सें उस व्यक्ती के नाजायज संबंध थे, और दिनेश सिंघ उसकी औलाद है."* तो क्या दिनेश सिंघ उस कथन को स्वीकार करेगा ? या *अंग्रेजो से उसकी मां के अनैतिक संबंधो से, दिनेश सिंघ का जन्म हुआ है.* इस प्रकार की बातों पर, दिनेश सिंघ क्या विश्वास करेगा ? इस तरह की जलील देना भी ठिक नहीं है. परंतु कभी कभी कडवे घोट पिलाना भी जरुरी हो जाता है. क्यौं कि, दिनेश सिंघ एक महापुरुष पर आरोप लगा रहा है.

        सिख धर्म यह हिंदु संस्कृती का प्रतिक है.  इसलिए शंकराचार्य / डॉ कुर्तकोटी / डॉ. मुंजे भी बाबासाहेब आंबेडकर को *"सिख धर्म की ओर"* जाने का दबाव बना रहे थे.‌ वही डॉ आंबेडकर उस समय में "Mr. Gandhi and Emancipation of the Untouchables / What Congress & Gandhi have done the Untouchables"  समान ग्रंथ लिखते है. *"पुना पेक्ट"* के समय गांधी रोने की स्थिती में दिखाई देता था. इस संदर्भ पर चर्चा करना, हम ठिक भी नहीं समझते. वही *"भीमा कोरेगाव का इतिहास"* यह महार समुदायों के शौर्य का इतिहास है. एक एक महार सैनिकों ने, छप्पन पेशवा सैनिकों को मृत्यु के घाट उतार दिया था. इसलिए *"तेरे समान छप्पन देखे"* यह कहावत प्रचलित है. *"जालियनवाला बाग हत्याकांड"* में, उच्च वर्गीय सिखों ने, अछुत वर्ग सिखों सें दगाबाजी की थी. अत: उच्च वर्गीय सिखों का इतिहास देश गद्दारी का रहा है. हां, यह सत्य है की, बाबासाहेब की एक *विदेशी विदुषी"* से मैत्री थी. और बाबासाहेब आंबेडकर अपनी लिखी एक किताब, उसको अर्पण की है. *हिंदु महासभा के डॉ मुंजे हो, गोळवलकर हो, सुभाषचंद्र बोस हो,* और भी कोई हो, वे सभी डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पास सहकार्य की अपेक्षा मिलने आते थे. लेकीन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने, कोई भी बातें देश विरोधी नहीं की, ना ही अपने लोगों से गोपनीय रखी. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर ख्रिस्ती या मुस्लिम धर्मांतरण संदर्भ में कहते है की, *"Conversion to Islam or Christianity will denatization the Depressed Classes."* पिछले दस - बारा दिनो सें, कार से ही मेरा प्रवास *खामगाव / नासिक / इगतपुरी / मुंबई / वर्धा / आर्वी / कारंजा / भंडारा / साकोली / उमरेड* आदी जगहों पर, पर्यटन तज्ञ *डॉ उमाजी बिसेन / इंजी. विजय बागडे* इनके साथ रहा है. भंडारा / साकोली / कामठी / चिंचोली प्रवास में, फिल्म / सिरीयल अभिनेत्री *पी. मिनाक्षी* हमारे साथ रही थी. इतने सारे मेरे व्यस्तता के बीच, मैं यह लेख लिखने की चेष्टा की है. अंत में मेरे कविता की कुछ पंक्तिया लिखकर, इस मेरे लेख को, मैं  विराम देता हुं -

*कभी तो वफा़ करो, अपने ही दिलों से*

*झुठ मक्कारी की साथ, युं कब तक लोगें*

*निंद पाने के लिये, बसं यें सकुन जरुरी है*

*यें सुख का जरीया, केवल वही तो बसा है...*


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नागपुर, दिनांक २९ फरवरी २०२४

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