Sunday 11 February 2024

 ✍️ *डॉ. आंबेडकर साहाब इनकी बदनामी करनेवालों सिखों को, उनके सिख पुर्वजों की भारत गद्दारी का इतिहास क्या मालुम है...?*

    *डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य,"* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      बुध्द - आंबेडकरी समुदायों का वैचारिक - सामाजिक - राजकीय - सांस्कृतिक तीव्र संघर्ष, यह विशेषतः विदेशी ब्राह्मण वर्ग द्वारा रहा है. और *"बुध्द - ब्राह्मण संघर्ष"* को प्राचिन भारत का एक इतिहास है. प्राचीन भारत की *"सिंध संस्कृति या हडप्पा संस्कृति"* (पुर्व हडप्पा संस्कृति का कालखंड इ. पु. ७५००  - ३३००,  हडप्पा संस्कृति या पहिला नागरीकरण कालखंड इ. पु. ३३००  - १५००, परिपक्व हडप्पा संस्कृति का कालखंड इ. पु. २६०० - १९००) पर पहिला आक्रमण *"विदेशी वैदिक ब्राह्मणों"* (वैदिक सभ्यता का कालखंड इ. पु. १५०० - ६००) द्वारा किया गया. *"ब्राह्मण वर्ग ये भारत में विदेशी है"* इस तथ्य पर, मनुस्मृती (श्लोक २४) / बाल गंगाधर तिलक (वैदिक आर्यों का मुलस्थान - Arctic home in the Vedas) तथा भारत वर्ष का इतिहास पृ. ६३ - ८७) / मोहनदास गांधी (२७ दिसंबर १९२४ का कांग्रेस अधिवेशन का भाषण) / जवाहरलाल नेहरू (पिता की ओर से पुत्री के खत) / लाला लजपतराय (भारत वर्ष का इतिहास पृ.२१ - २२) / पंडित श्यामबिहारी मिश्रा और सुखदेव बिहारी (भारत वर्ष का इतिहास भाग १ पृ. ६२  - ६३) / पंडित जनार्दन भट (माधुरी मासिक ) ऐसे बहुत से लोगों द्वारा, उसे प्रमाणित किया गया है.‌ और प्राचिन भारत में, ब्राह्मण वर्ग द्वारा *"अनैतिक वाद"* का बीजारोपण किया गया. फिर *बुध्द कालखंड* (इ. पु. ५६३ - ४८३ और बौध्द सम्राट साम्राज्य कालखंड इ. पु.  ५४४ - १८५) यह *"सवर्ण युग"* के रुप में जाना जाता है. *"मौर्य साम्राज्य वंश"* के बुध्द धर्मीय - चक्रवर्ती सम्राट बृहद्रथ इनका, ब्राह्मणी सेनापति *पुष्यमित्र शुंग* (अपनी बहन बृहद्रथ को ब्याहकर मैत्री करना) ने, *ब्राह्मण ऋषी पातंजली* इनके कहने पर,  इ. पु. १८५ में किया गया. उसके बाद *"भोगवादी साहित्य / भोगवादी युग"* का ब्राह्मण पंडित *कालिदास* द्वारा आक्रमण दिखाई देता है. *"सिख धर्म"* की स्थापना यह इसा १८ वी शती में होती है. और सिख धर्म के संस्थापक *गुरु नानक"* इन पर भी, हिंदु धर्म का प्रभाव दिखाई देता है.

       *"प्रथम महायुध्द"* का कालखंड यह सन १९११ का रहा. और प्रथम महायुध्द में जापान ने, *"अमेरिका,ग्रेट ब्रिटन, फ्रान्स"* का पक्ष भी लिया था. उभी दोरान जापान ने, *ब्रिटीश साम्राज्य* पर आक्रमण कर, साम्राज्य विस्तार की शुरुवात की थी. *"सोव्हिएत संघ - जापान* ने उसी काल में, *"वाणिज्य और नेव्हीगेशन संधी"* पर हस्ताक्षर भी किये थे. इधर भारत *"अंग्रेजो को गुलामी"* में जखडा हुआ था. वही प्रथम महायुध्द के बाद, सन १९१८ में जो *"अछुत सिख"* पंंजाब वापस आये थें, उन्होंने सन १९१९ में *"जालियनवाला बाग"* में एक मीटिंग रखी थी. उस मीटिंग का एक खास कारण था. *"अमृतसर गुरुद्वारा"* में अछुत सिखों को, दर्शन करने नहीं दिया जाता था. और उन्हे बाहर निकलवा जाता था. *उच्च जाती के सिखों के इस भेदाभेद विरोध में, वह शांतपुर्ण मीटिंग का आयोजन‌ होने पर,* इसका बदला क्यौं ना लिया जाए ? उच्च जाती के सिखों ने, *जनरल डायर* को गलत सुचना दी थी कि, *"जालियनवाला बाग में क्रांतिकारीयों की मीटिंग रखी गयी है."* और जनरल डायर ने बिना कुछ छानबीन के, *"निहत्थे अछुत सिखों पर गोलीयां चलाई थी."* इसका बदला अछुत सिख *उधम सिंग* ने, लंडन जाकर जनरल डायर को गोलीयों से भुन डाला. *"अंत: पंजाब के उच्च वर्गीय सिखों की, गुलाम भारत के गद्दारी का यह इतिहास है."* और अभी जो  सिख वर्ग *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* पर, जो मनगंढत आरोप लगा रहे है, वे उन गद्दार सिखों के वंशज है. जो उनके लहु में *"गद्दार लहु"* पुरा भरा हुआ है.

       अब हम *"द्वितीय महायुध्द"* (सन १९३९ से लेकरं १९४५ तक) की ओर बढते है. जर्मनी के हुकुमशहा *एडोल्फ हिटलर* / इटली का हुकुमशहा *बेनितो मुसोलिनी* / जापान का हुकुमशहा *हिरोहितो* इनका प्रभाव समस्त विश्व में फैला हुआ था. और उन *"धुरी देशों"* के विरोध में, *"मित्र देशों"* से सोव्हिएत संघ / उत्तरी और दक्षिण अमेरिका / युनायटेड किंग्डम / चायना आदी देशों के नेता - *जोसेफ स्टॅलिन / फैंकलिन डेलिनो रूझवेल्ट / विन्स्टन चर्चिल / चिआंग काई शेक* और अन्य नेता, एकसंघ हो चुके थे. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने द्वितीय महायुध्द में, ब्रिटीशों के पक्ष में समर्थन देकर, *"हिटलर / मुसोलिनी / हिरोहितो* इनकी भविष्य में, भारत पर गुलामी लादना है, यह दुर की बात वे जान चुके थे. *"इधर कांग्रेस और मोहनदास गांधी द्विधा स्थिती में रहे थे. हिटलर को साथ दे या ब्रिटीशों को...!!!"* और हिंदु - मुस्लिम संबंध भी कुछ अच्छे नहीं थे. इधर अछुतों पर भारत में अन्याय ये बढता ही रहा था. समस्त विश्व की *"अर्थव्यवस्था"* यह चरमरा गयी थी. बाबासाहेब ने सन १९४० में, *"पाकिस्तान का विभाजन - Thoughts of Pakistan"* यह ग्रंथ प्रकाशन के पहले बेळगाव की सभा २६ दिसंबर १९३९ में कहा था की, *"राष्ट्र की सत्ता अपने हाथ में हो, यह कांग्रेस कहती है. परंतु तुमने मुसलमान के लिये क्या किया है ? हिंदु - मुसलमानों के बीच कडी दुश्मनी बनी हुयी है. और वह पहले से जादा अति बढ गयी है. उन्हे हिंदु के राज्य में रहना नहीं है. यह मुसलमानों की भावना बनी है. अत: भारत के दो तुकडे होना चाहिए, ऐसा उनको लगता है. इतके लिये केवल और केवल कांग्रेस ही जिम्मेदार है."* महत्वपूर्ण विषय यह कि, कांग्रेस और गांधी इनका *"मुसलमान - अछुत"* इनके प्रति संदिग्ध निर्णय ने, *"भारत को आजादी ३ - ४ साल देरी से मिली है."*

       भारत को आजादी १५ अगस्त १९४७ को मिलने के बाद, कांग्रेस और एम. के. गांधी ने  *डॉ.आंबेडकर साहाब* के साथ तथा अछुतों के साथ, क्या राजनीति की है ? बाबासाहेब डॉ आंबेडकर को *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) पर जाने के लिये, *क्या क्या वे पापड बेलने पडे थे ?* इस विषय पर मैं फिर कभी लिखुंगा. या कहे तो इस विषय पर, एक अच्छा संशोधन ग्रंथ हो सकता है.  *बाबासाहेब आंबेडकर* संविधान सभा में २५ नंवबर १९४९ को कहते हैं कि, *"On 26th January 1950, India will be an Independent Country (Cheers). What would happen to her Independence? Will she maintain to her Independence or she lose it again ? This is first thought that comes to my mind. It is not that India was never an country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ?"* आज भाजपा शासन काल में, हम किस दौर से गुजर रहे है, यह बडा चिंता का विषय है. भारत को गुलाम करनेवाले गद्दारों  का उल्लेख भी, बाबासाहेब आंबेडकर ने उस भाषण में करते हुये कहा कि, *"In the invasion of Sindh by Mohammad Bin Kasim, the military Commander of King Dohar accepted bribes from the agent of Mohammad Bin Kasim and refused to fight on the side of their King ... When the British were trying to destroy the Sikh Rulars, Gulab Singh, the Principal Commander sat silence and did not help to save the Sikh Kingdom."*

      *सिख जाती (उच्च वर्ग) का इतिहास यह शौर्य, बलिदान, निष्ठा का रहा है क्या ?* यह प्रश्न उपरोक्त विषय पढकर खडा होना लाजमी है. क्यौं कि, सिखों का इतिहास यह ज्यादातर हारने का दिखाई देता है. और *"सिख स्त्री वर्ग का ज्योहार"* (एक तरह से सती जाना) जाना, यह संशोधन का विषय है. और *जो सिख स्त्री ज्योहार ना गयी हो, और किसी को सरेंडर हुयी हो,* बाबासाहेब आंबेडकर इन पर आरोप करनेवाले, उस अनैतिक / दुषित रिस्ते की संतान होने की, संभावना ज्यादातर दिखाई देती है‌. इस तरह का शब्द प्रयोग करना उचित नहीं है. परंतु *"सिख धर्मगुरु"* इस विषय पर शांत हो तो, यह विषय बनता है. महार समाज का इतिहास यह इमानदारी, शौर्य, निष्ठा और बलिदान का रहा है. *"द्वितीय महायुध्द"* में महार सैनिकों का, अपना एक इतिहास है. *"भीमा कोरेगाव"* भी उसका एक सबुत है. एक एक महार सैनिकों ने, छप्पन्न की संख्या में, पेशवा सैनिकों को, मृत्यु के घाट उतार दिया था. इसलिए *"तेरे समान छप्पन देखे है"* यह मुहावरा प्रचलित है. *शिवाजी महाराज* इनकी सेना में, ज्यादातर महार ही वे लोग थे. शिवाजी महाराज को आग्रा के औरंगजेब की जेल से छुडानेवाला जीवा महार था.‌ इसलिए तो, *"था जीवा इसलिए बच गया शिवा"* यह मुहावरा बडा ही प्रचलीत है.‌

       बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन पर, दिल्ली का उस *सिख बिगडेल छोरे* का गुस्सा, *"सिख धर्म"* का स्वीकार ना करना, यह दिखाई देता है. यह सत्य है की, बाबासाहेब ने १९३५ में हिंदु धर्म छोडने की घोषणा के बाद, उन्हे विभिन्न धर्मों से निमंत्रण मिले थे. पटियाला (पंजाब) के राजा *भुपेंद्रसिंग* इन्होने बाबासाहेब आंबेडकर का शाही मेहमानी भी की थी. लाहोर के *सरदार महतावसिंग* भी पटियाला आये थे. महाराज ने बाबासाहेब को *"पटियाला का प्रधानमंत्री"* बनाने का लालच भी दिया था. तब बाबासाहेब ने महाराज को कहा कि,*"तुम्हारे धर्म में मुझे और मेरे लोगों को, अपने अंदर लाने की कोई चीज ही नहीं है. महाराज साहाब, मैं लालच और लोभ में फसनेवाली मछली नहीं हुं"* वही लाहोर के सरदार महतावसिंग को जब उनके लोगों ने पुछा कि, क्या होनेवाला है. तब सरदार जी बोल गये कि, *"डॉ आंबेडकर तो अजिब स्वभाव के व्यक्ती है. उन्हे तो कोई सांसारिक लोभ लालच नहीं खीच सकता."* वही पंजाब के हिंदु महासभा के नेता *भाई परमानंद* कहते हैं कि, *"आंबेडकर में कितने ही दोष क्यौं ना हो, किंतु वे न तो बेईमान है, ने ही खुदगर्ज, न ही लालची."* "बाबासाहेब आंबेडकर के संपर्क में पच्चीस वर्ष" इस ग्रंथ के लेखक *सोहनलाल शास्त्री*, जो पंजाब से ही थे, उन्होंने एक लेख लिखकर बाबासाहेब को भेजा था. और उस लेख में *"सिख धर्म में भी, हिंदु धर्म समान छुआछुत होने की बात कही थी."*  उपरोक्त कारण ही था कि, डॉ बाबासाहेब ने सिख धर्म का स्वीकार नहीं किया था.

      दिल्ली का पंजाबी बिन-अकल छोरा *एड. दिनेश सिंघ* ने *"हिंदु राष्ट्र के निर्माता है डॉ आंबेडकर"* इस लेख पर, मेरे जबाबी उत्तर के बाद, उसके दुसरे लेख - *"भारत का संविधान वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था को स्थापित करता है"* यह लेख लिखकर उसने, *"ब्राह्मण समुदायों"* पर भी जोरदार हमला बोला. और कहा कि, *बाबासाहेब आंबेडकर* ने *"सबसे पहले नारा दिया था हमें जातिविहिन और वर्गविहिन समाज का निर्माण करना है."* परंतु डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इस तरह की व्यवस्था कभी नहीं निर्माण कर सकते थे.‌ इतके साथ ही उस बिन-अकल ने *"मागास आरक्षण"* का विरोध जताया. साथ ही उसने *"राष्ट्रियकरण"* की मांग कर डाली. उस गधे को यह भी पत्ता नहीं कि, *"राष्ट्रियकरण"* की भी पहली मांग *डॉ आंबेडकर साहाब द्वारा ही वो की गयी थी."* बाबासाहेब आंबेडकर ने *"जातिविहिन - वर्गविहिन समाज"* निर्माण करने का लक्ष रखा था. *"भारतीय संविधान"* में वे बहुत कुछ जोडना चाहते थे. परंतु एक सिमित काल में संविधान निर्माण करना जरुरी था. और *"संविधान सभा"* में ७६३५ संशोधन प्रस्तावित थे. परंतु २४७३ संशोधन ही स्वीकार किये गये. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने, संविधान लिखने के बाद, संविधान सभा में जिस तरह उसको फेस किया था, और अपना पक्ष कैसा सही है ? यह बताने में वे सफल रहे, तथा बाबासाहाब को शरीर भी साथ नहीं दे रहा था, और बाबासाहेब का *"संविधान संघर्ष इतिहास"* को समजना, उस सिख बिगडेल छोरे के बसं का विषय नहीं.‌ या कहे तो  यह उसकी औकात नहीं. क्यौं कि, *"भारतीय संविधान और भारतीय कानुन"* यह दो अलग विषय है. जब वो बिगडेल वकिल कानुन ही नहीं समझ पाया तो, वो, *"संविधान को क्या समझ पाएगा."* अंत: *"भारतीय संविधान"* पर *"जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था स्थापित करना"* यह आरोप करना, इसे क्या कहते ? आज वो जो कुछ भी लिख रहा, वो आजादी उसे भारतीय संविधान ने ही थी है. अत: उस तरह मानसिकता लिये लोगों के लिये, मेरे कविता के शब्द याद आ गये -

 *"तुम ने ना कभी युं वो वफा की थी,*

 *बसं वफा की चाह तुम कर बैठे हो*

*वतन के लिये थोडी कुर्बानी कर देखो,*

*प्रेम मैत्री बंधुता करुणा को तुम पाओगे...!"*


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नागपुर, दिनांक ११ फरवरी २०२४

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