🌹 *हे जीवन संगित ...!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर
मो. न ९३७०९८४१३८
फुलों का अपनापन, मन ही भाया है
हे जीवन संगित, बुद्ध बुद्ध ही रहा है...
ना कोई वहां, द्वेष राग लोभ रहा है
वैरता धोकादारी, कहीं दुर दुर रही है
पंछीओं का साथ, हे निष्पाप रहा है
निसर्ग मन में, बुद्ध बुद्ध ही दिखा है...
हे इतिहास देखें तो, वादें वादें हीं रहे है
पेट में छुरां युं, अपनों द्वारा ही भोपा है
पहचान करना भी, वहं आसान नहीं है
बुध्द शरणं में, प्रेम मैत्री करुणा रही है...
बुध्द धम्मचक्रप्रवर्तन, एक क्रांती रही है
हे मानव मानव में, वह इतिहास रचा है
कार्यकारण भाव युं, जीवन मुल रहा है
प्रतित्यसमुत्पाद, मानव को सिख देता है...
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नागपुर दिनांक ४ जुन २०२५
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