🔥 *इराण - इस्त्रायल युध्द में अमेरिका खुले प्रवेश ने तिसरे विश्व महायुध्द की नीव रखी !*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ म.प्र.
बुध्द आंबेडकरी लेखक, कवि, समिक्षक, चिंतक
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
*"तिसरा विश्व महायुध्द"* इस विषय पर मिडिया में मेरे कुछ लेख दिखाई देंगे. सन २०२० का *"कोरोना काल"* में तिसरे महायुध्द की आहट दिखाई देती थी. अत: बाद का *"रुस - युक्रेन युध्द "* हो या, *"इस्त्रायल - पॅलेस्टाईन युद्ध "* हो या, *"इस्त्रायल - गाझा युद्ध "* हो, वहां हमे *"तिसरे महायुध्द की आहट"* दिखाई देती थी. परंतु *"तिसरा महायुद्ध"* हुआ नहीं था. वैसे देखे जाए तो, इन तमाम युध्द के पिछे अमेरिका ही रहा है. फिर वह *"चायना"* द्वारा *"तिब्बत देश की गुलामी"* हो या, *"तायवान देश की संप्रभुता"* हो, अमेरिका यह हमेशा सत्ता की कुटिल राजनीति खेलता रहा है. *"पहिला महायुध्द"* (१९१४ - १९१८) हो या, *"द्वितीय महायुध्द"* (१९३९ - १९४५) हो, अमेरिका भी *"साम्राज्य विस्तारवाद"* का कारक रहा है. हम *"पहिला महायुध्द - द्वितीय महायुध्द"* इस विषय पर, फिर कभी चर्चा करेंगे. सन २०२५ के *"इस्त्रायल - इराण युध्द"* में, *"अमेरिका"* विश्व शक्ति का का प्रत्यक्ष सहभाग लेना, यह *"रुस - चायना"* इनके लिए एक चुनौती है. एक जमाने में *"अमेरिका - सोव्हिएत युनियन"* यह दो महाशक्ती रही थी. अमेरिका की राजनीति ने, *"सोव्हिएत युनियन"* (१९९१) को बिखार कर रख दिया. बाद में *"अमेरिका"* यह देश एकमेव *"विश्व शक्ति"* बन गया. इस विषय पर भी हम फिर कभी चर्चा करेंगे. सोव्हिएत युनियन की महाशक्ती के बीच, अमेरिका यह *"चायना"* को बढावा देता था. आज वह *"चायना"* देश ही *"विश्व शक्ति रेस"* में, *"अमेरिका"* को ललकार रहा है. *"अमेरिकी अर्थव्यवस्था"* भी डामाडोल है. *"विश्व बैंक का कर्ज बोजा"* अमेरिका के सिर पर है. वही *"चायना"* अपनी *"अर्थव्यवस्था"* को मजबुत करते हुये, अपनी *"युध्द शक्ति"* को भी मजबुत कर रहा है. *"आंतरराष्ट्रीय बाजार"* पर *"चायना"* का अधिपत्य है. अत: *"इस्त्रायल - इराण युद्ध"* में, अमेरिका का प्रत्यक्ष रुपसे आ जाना, *"चायना - रुस को एक चेतावणी"* है. *"चायना / रुस / उत्तर कोरिया"* यह देश एक साथ खडे है. *"भारत नीति"* तो समज से परे है. अत: *"तिसरे विश्व महायुध्द"* की आहट दिखाई देती है.
*"इस्त्रायल"* इस देश की बडी दादागिरी, *"अमेरिका"* के सहारे ही चल रही थी. इसलिए इस्त्रायल यह *"मध्यपुर्व देशों"* को धमकाता रहा है. *"इराण"* को कमजोर समझना ही, यह *"इस्त्रायल"* के साथ साथ, *"अमेरिका"* की भी भुल थी. *"इराण"* ने तो,अपने अच्छे व्यापारिक संबंध, *"चायना / रुस / भारत"* आदि देशों से, बनायें हुये है. वैसे *"इराण"* यह *"एकसंघ भारत"* में, अपना पडौसी देश ही रहा था. अब *"पाकिस्तान "* है. भारत का *"ब्राह्मण वर्ग"* का मुलं स्थान (आर्य स्थान) *"इराण"* रहा था. अत: *"इराण"* से भारत के संबंध बहुत घनिष्ठ रहे थे. *"इस्त्रायल"* तो हमारे लिस्ट में, विशेष दिखाई नहीं देता था. परंतु *नरेंद्र मोदी भाजपा सरकार"* की *"विदेश नीति"* तो, हमारे समझ से परे है. उधर *"अमेरिका"* भी, भारत की बेइज्जती करने में, कोई कसर नहीं छोड रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपती - *डोनाल्ड ट्रंप* यह *"पाकिस्तान"* को अपना मित्र कह चुका है. अमेरिका ने *"मध्यपुर्व देशों"* में, अपनी *"सैनिक छावणी"* बना रखी है. अत: अमेरिका यह *"पाकिस्तान"* से भी, वही उम्मीद पाले हुये है. परंतु वह असंभवसा दिखाई देता है. *"पाकिस्तान"* देश पर तो, *"चायना"* का वरदहस्त है. *"भारत"* का कोई पडोसी देश, अपना मित्र नहीं रहा. जो पहले कभी हमारे मित्र हुआ करते थे. *"दोस्त दोस्त ना रहा....!"* कॅनडा देश में हुयी *"जी ७ परिषद २०२५"* में, भारत (नरेंद्र मोदी) *"दुय्यम स्थान "* पर खडे थे. अमेरिका राष्ट्रपती *डोनाल्ड ट्रंप* तो "जी ७ परिषद" अधुरी छोडकर, *"अमेरिका"* लौट गये थे. और *"अमेरिकी कांग्रेस"* में डोनाल्ड ट्रंप को *"विरोध का सामना"* करना पडा. *"अमेरिकी कांग्रेस"* यह "इस्त्रायल - इराण युद्ध" में सहभाग के पक्ष में नहीं है. अमेरिकी कांग्रेस के विरोध के बिच ही, *"डोनाल्ड ट्रंप"* ने २२ जुन २०२५ को, *"इराण"* के तिन अणुऊर्जा केंद्र - *"फोरडोव / नतांझ / इस्फाहा"* पर हमला कर, उसे उध्वस्त करने का प्रयास किया है. अत: अमेरिकी एटैक का परिणाम *"तिसरे विश्व महायुध्द"* की ओर ले जा रहा है.
अमेरिका का *"इराण के तिन प्रमुख अणुऊर्जा केंद्र"* पर एटैक करना, और *"इराण"* देश से *"शांती की पहल"* की आशा करना, हम इसे क्या कहे ? *"दिल पर तो बहुत गहरा जख्म किया और कहे प्यार कर ले !"* इस्त्रायल के पास आज उतने लष्करी सामुग्री / क्षेपणास्त्र नहीं है, जितने *"इराण"* के पास है. इस्त्रायल के प्रधानमंत्री *बेंजामिन नेत्यांन्याहु* तो, इराण के सर्वेसर्वा *अली खामेनेई* इस की लाश देखना चाहता है. इराण में सत्ता बदल चाहता है. इराण ने पिछले नौ दिनों में, *"इस्त्रायल"* (अर्थात अमेरिका) के क्षेपणास्त्र को, करारा जबाब दिया है. *इराण* ने *"अमेरिका / इस्त्रायल"* को, अपने शक्ती का अहसास कराया है. अभी देखना है - *"चायना / रुस / उत्तरी कोरीया / पाकिस्तान"* क्या गुल खिलाता है ? *भारत* ने *पाकिस्तान* विरुध्द लढाई में, *"ऑपरेशन सिंदुर"* को बिच में ही क्यौ छोडा है ? यह अहं प्रश्न खडा है. उधर अमेरिका राष्ट्रपती *डोनाल्ड ट्रंप* ने तो, *"भारत - पाक युद्ध"* रोकने का, खुला बयाण दिया है. अर्थात भारत के *"राजनीति - युध्दनीति"* संदेह के घेरे मे है. भारत की राजनीति - युध्दनीति कभी इतनी कमजोर नहीं थी, यह हमने देखा है. अब *"तिसरा विश्व महायुध्द"* भी हमें देखना है. और *"विश्व के अर्थव्यवस्था"* का बेहाल भी !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक २२ जुन २०२५
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