🇮🇳🤝 *भारतीय संविधान की मुल संरचना संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय और संसद इनके बीच उभरा हुआ संविधान अधिकार विवाद !*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.
बुध्द आंबेडकरी लेखक, कवि, समिक्षक, चिंतक
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
*"भारत का संविधान"* (Constitution of India) यह मुलत: नागरिकों के *"मुलभुत अधिकार"* (Fundamental Rights) तथा *"मार्गदर्शक तत्व"* (Directive Principles) इन दो पहियों पर खडा है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा *"केशवानंद भारती"* (१९७३) इस केस ने, *"मुल सरंचना"* (Basic Structure) को संसद छेड नहीं सकती, यह निर्णय १३ न्यायाधिशों के पीठ ने, *"७ विरुध्द ६"* बहुमत से दिया था. तत्कालीन सरन्यायाधीश *एम. एस. सिकरी* इनकी अध्यक्षतावाली १३ न्यायाधीश खंडपीठ मे थे - *जे. एम. शेलत / के. एस. हेगडे / ए. एन. ग्रोवर / ए. एन. रे / पी जगमोहन रेड्डी / डी. जी. पालेकर / एच. आर. खन्ना / के. के. मैथु / एम. एच. बेग / एस. एन. द्विवेदी / बी. के. मुखर्जी / वाय. वी. चंद्रचुड.* और केशवानंद भारती केस रही - केशवानंद भारती केरल के एक हिंदु मठ के पुजारी थे. उन्होंने *"केरल भुमी सुधार अधिनियम "* को चुनौति दी थी. उनका कथन था कि, *"धार्मिक संस्थानो की संपत्ती को सरकार द्वारा अधिग्रहण नहीं किया जा सकता."* सर्वोच्च न्यायालय में ६८ दिन चले सुनबाई में, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बहुमत में अपने निर्णय में कहा कि, *"संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है. लेकिन संसद को संविधान के मुल सरंचना (Basic Structure) को बदलने की कोई अनुमति नहीं देता है."* अत: न्यायालय का वह निर्णय संसद के लिये *"गले का फासं"* बन गया है. अत: *"मुल संरचना"* (Basic Structure) क्या है ? यह भी एक विवादीत प्रश्न बन गया है. उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* भी उसी विवादित प्रश्न पर ही उंगली रखकर, *"न्याय व्यवस्था"* पर आरोप करते रहे है. शायद *"नरेंद्र मोदी सरकार* को खुश कर, जगदीश धनकड राष्ट्रपति बनने के सपने देख रहे है. *"संविधानिक पद"* पर बैठे हुये *जगदीश धनकड* की वह कृति - *"संविधान पर बलात्कार"* समान दिखाई देती है, जो बहुत ही निंदनीय भाष्य है.
भारतीय संविधान की *"मुल संरचना"* क्या है ? इस अंतरंग में जाने के पहले, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये और कुछ खास केस निर्णय भी महत्वपूर्ण है. *एस. आर. बोम्मई केस* (१९९४) / *इंदिरा नेहरु गांधी* विरुध्द राजनारायण (१९७५) / *मिनर्वा मिल्स* विरुध्द भारत संघ (१९८०) / *शंकरी प्रसाद केस* (१९५१) / *गोलक नाथ* विरुद्ध पंजाब राज्य (१९६७) / *वामनराव* केस (१९७१) / *२४ वा संविधान संशोधन* (१९७१) / *४२ वा संविधान संशोधन अधिनियम* (१९७६) यह उपरोक्त प्रमुख केस है. परंतु शब्द मर्यादा के कारण इन केस पर, हम फिर कभी चर्चा करेंगे. मेरी *"डॉक्टर उपाधी"* मिलने के बाद, मैने *"लोक प्रशासन / उद्द्योग प्रशासन / कानुन / संविधान / समाजशास्त्र / डॉ आंबेडकर / गांधी / बुध्दीझम / साहित्य / कला / इतिहास / अर्थशास्त्र / राजनीति"* आदि विषयों पर अध्ययन किया है. *"मेडिकल ऑफिसर"* भी रहा हुं. अत: उन तमाम विषयों के अध्ययन ने, मुझे एक नयी दिशा प्रदान की. जो भारतीय व्यवस्था से जुडे विषय है. भारत के *सरन्यायाधीश* बनने के बाद *भुषण गवई* इनका मुंबई दौरे का यह बयाण मुझे बहुत अच्छा लगा. सरन्यायाधीश *भुषण गवई* ने कहां कि, *"कार्यपालिका (Executive) / न्यायपालिका (Judiciary) / विधायिका (Legislature) यह तिनों व्यवस्था एक समान ही है. यहां कोई बडा और कोई छोटा नहीं है. भारत का संविधान (Constitution) ही यह सर्वोच्च है."* महाराष्ट्र शासन की ओर से *"सरन्यायाधीश प्रोटोकॉल"* पालन ना होना, वह जातीयवादी नालायकी का एक प्रमाण है. वंचित आघाडी के *एड. प्रकाश आंबेडकर / सुजित आंबेडकर* समान मुर्ख नेता लोग क्या कहते हैं ? वह मायने नहीं रखता. कभी कभी हमें लगता भी है कि, *प्रकाश आंबेडकर* इनके वकिल बनने के बाद, *प्रकाश आंबेडकर* इनको सामाजिक क्षेत्र मे *"सबसे पहले परिचीत"* कराना / नागपुर में *"पहला जाहिर सत्कार समारोह"* लेना, यह हमारी बहुत बडी भुलं थी. आज से चालिस साल पहले *डॉ. आनंद जीवने* इनकी अध्यक्षता में ही हमने, *"धनवटे रंगमंदिर"* मे जाहिर सत्कार समारोह किया था. हाथी पर बिठाकर बहुत बडी *"रॅली"* का सफल आयोजन किया था. हमने *प्रकाश आंबेडकर* इनसे जो अपेक्षा रखी थी, वे उन दिशा की ओर कभी बढें ही नहीं !!! यही नहीं *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"* (TBSI) इसकी *"स्कीम"* (दुसरी बॉय लॉज) यह *हरिष मजगौरी* इन्होने मेरे स्टडी रुम में बैठकर ही लिखी थी. हरिष मजगौरी ये मेरे मम्मी के बुवा के लडके थे. हरीश मजगौरी भी *"TBSI के ट्रस्टी"* थे. तत्कालीन राष्ट्रिय अध्यक्ष *डॉ. स. वि. रामटेके* भी कभी कभी मेरे घर आते थे. कहने का तात्पर्य यह कि, मैं बचपन से ही *"आंबेडकरी आंदोलन"* को देखते आया हुं. इसके साथ ही बाबासाहेब के बॉडीगार्ड रहे मेरे मामा *दिपकचंद फुलझेले / आकांत माटे / सदानंद फुलझेले* इनसे भी डॉ बाबासाहेब के सहवास विचार की जाणकारी मुझे मिलती रही.
भारतीय संविधान का *"बुनियादी (मुल) तत्व"* (Basic Structure) क्या है ? वास्तव में यह प्रश्न ही उपस्थित करना *"बिन-अकल के सामने बिन बजाना समान ही विषय है ."* हमारे भारतीय संविधान में - *"संघीय संरचना / लोकतंत्र / धर्मनिरपेक्षता / कानुन का शासन / स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव / न्यायिक समिक्षा"* आदी बुनियादी विषय यह सम्मिलीत है. अगर संसद में बिन-अकल / अनपढ / गुंडेगिरी व्यक्ति / भ्रष्टाचारी लोग जाते हो तो, हम *"विकास भारत"* का विचार कभी नहीं रख सकते. *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्होने २५ नवंबर १९४९ को *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) में दिये गये भाषण की मुझे याद आ गयी. बाबासाहेब कहते हैं - *"संविधान यह कितना भी अच्छा हो, उसे अमल में लाने की जिम्मेदारी जीन पर है, वे लोग अप्रामाणिक हो तो, संविधान यह बुरा हो जाएगा. तथा संविधान यह कितना भी बुरा हो, उसे अमल करने की जाणकारी जीन पर है, वे लोग प्रामाणिक हो तो, संविधान यह अच्छा होने वाला है."* प्राचिन अखंड भारत (जंबुद्वीप) का *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* इनके शासन काल के बाद, इसवी १० वी शती से *"वैदिक युग"* - गद्दारी / धोकादारी का युग शुरु हो गया है. आज के ज्यादातर सत्ताधारी ऊनके ही वारिस दिखाई देते है. उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* यह तो, *"संविधान बलात्कारी पुरुष"* दिखाई देता है. कांग्रेस के पितामह *मोहनदास गांधी* / संघवादी नायक *के सुदर्शन* / प्राचीन विचारविद *भर्तृहरी* इनके शब्दों में तो, *"भारतीय राजनीति यह वेश्यालय है."* अर्थात नेता लोग *"वेश्या"* हो गये है नां !!! अत: ऐसे नेताओं से *"समृध्द भारत"* की, क्या अपेक्षा करे ? इनकी मानसिकता *"बुरे विचारों की हो"* तो, उन्हे *"भारतीय संविधान"* में दोष दिखेगा ही !!! भारत के पडोसी देश - *"नेपाल / म्यानमार / बांगला देश / श्रीलंका / पाकिस्तान"* आदी देशों के शासन स्थिती का बोध करे तो, *"भारत के संविधान"* की महत्तता दिखाई देगी. लेकीन *"सम्यक बुध्दी"* होना भी जरुरी है.
जब मैं *"कानुन की पढाई"* कर रहा था, तब हमारे प्राध्यापक *"भारतीय कानुन का लचीलापन तथा कानुन की कठोरता"* इस विषय पर भाष्य करते थे. अर्थात *"भारतीय संविधान"* को समझना इतना सहज भी नहीं है. संविधान के *"मार्गदर्शक तत्व "* (Directive Principles) की रक्षा के लिये / कभी कभी तो, *"मुलभूत अधिकारों"* (Fundamental Rights) का भी संशोधन किया जा सकता है. परंतु वह दोनो भी *"भारतीय संविधान रथ"* के दो पहिये है. *"सर्वोच्च न्यायालय"* यह *"भारतीय संविधान"* की कस्टोडियन है. *"वॉच डॉग"* है. भारत के सरन्यायाधीश *भुषण गवई* इनका मुंबई का उपरी पॅरा कथन मुझे बहुत अच्छा लगा. हमारे तिनो व्यवस्था में - *"कार्य पालिका (Executive) / न्यायपालिका (Judiciary) / विधायिका (Legislature)"* में गुणवत्ता प्राप्त / प्रामाणिक / देशभक्त आदी गुणवान लोगों का अभाव है. *"ऐसा विषय भी नहीं है कि, गुणवान लोगों की भारत में कमी है."* प्रश्न यह कि, भारत भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुका है. *"भारत देशभक्ती"* दिखाई नहीं देती. *"मेरीट धारक"* पर सदियों से अन्याय होता आ रहा है. भारत आजादी के ७५ साल होने पर भी, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय / संचालनालय"* नहीं बन पाया है. ना ही बजेट कोई आर्थिक प्रावधान रहा है. आदमी की पहचान *"जाति - धर्म"* से होती है. ना कि नागरिकता *"भारतीय"* बनकर !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक १० जुन २०२५
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