👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, २७ अक्तुबर २०२४ को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* प्रश्न - १ :
* *कृपया अपने धर्म से ऐसे शास्त्रीय संदर्भ प्रस्तुत करे, जो दया और क्षमा पर बल देते हो. और इन्हे व्यवहार में लाने के व्यावहारिक तरीकों को साझा करे !*
* उत्तर : - बुध्द धर्म में जब वंदना करते है, तब त्रिशरण / पंचशील / धम्मपालन गाथा कही जाती है. बुध्द धर्म का सारं दो लाईन में कहा जाएं तो -
*"सब्ब पापस्स अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा | सचित्तपरियोदपनं, एवं बुध्दान सासनं ||"* (अर्थात : सभी पापों का न करना, कुशल कर्मों का करना, तथा स्वयं के मन (चित्त) की परिशुध्दी करना, यही बुध्द का शासन (शिक्षा) है.)
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बुध्द धर्म में प्रार्थना करते समय पंचशील भी कहा जाता है. उस में सें पहिले शील में कहते हैं - *"पाणातिपाता वेरमणि सिक्खापदं समादियामि |"* (अर्थात : मैं प्राणी हिंसा से विरत रहने की, शिक्षा ग्रहण करता / करती हुं.) इस शील में दया की अनुभुती हो जाती है.
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बुध्द वंदना में बुध्द / धम्म / संघ वंदना भी होती है. उस में हर में एक गाथा में, गलती होने पर माफी मांगते समय कहते हैं कि -
*"उत्तमंङ्गेन वन्दे हं, पादपसुवरुत्तमं | बुध्दे यो खलितो दोसो, बुध्दो खमतु तं ममं ||"* (अर्थात : मैं उन भगवान बुध्द की सर्वोत्तम चरण धुलि को, सिर से वंदन करता हुं. यदि बुध्द के प्रति मुझ से कोई दोष हुआ हो तो, बुद्ध मुझे क्षमा करे.)
*"उत्तमङ्गेन वन्दे हं, धमञ्च दुविधं वरं | धम्मे यो खलितो दोसो, धम्मो खमतु तं ममं ||"* (अर्थात : मैं दोनो प्रकार के (व्यवहारिक एवं परमार्थिक) श्रेष्ठ धर्मो को, सिर से वंदन करता हुं. यदि धर्म के प्रति मुझे से कोई दोष हुआ हो तो, धर्म मुझे क्षमा करे.)
*"उत्तमङ्गेन, वन्दे हं, संघं च तिविधुत्तमं | संघे य खलितो दोसो, संघो खमतु तं ममं ||"* (अर्थात : मैं तिन प्रकार (काया, वाचा, मन) से उत्तम और पवित्र उस संघ को , सिर से वंदन करता हुं. यदि संघ के प्रति अनजाने में, मुझे से गलती हुयी हो तो, संघ मुझे माफ करें.)
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बुध्द धर्म के "करणीयमेत्त सुत्त" गाथा में दया - प्रेम का बोध होता है.
*"न च खुद्दं समाचरे किञ्चि, येन विञ्ञुं परे उपवदेय्युं | सुखिनो वा खेमिनो होन्तु, सब्बे सत्ता भवन्तु सुखितsत्ता ||"* (अर्थात : ऐसा कोई भी छोटा कार्य न करे, जिसके लिये दुसरे जानकर, लोग उसे दोष दे. और इस प्रकार मैत्री करे कि सभी प्राचिन सुखी हो. क्षेमि हो और अत्यन्त सुखी हो.)
*"माता यथा नियं पुत्तं, आयुसा एकपुत्त मनुरक्खे | एवम्पि सब्ब-भुतेसु, मानसं भावये अपरिमाणं ||"* (अर्थात : जिस प्रकार माता अपने जान की परवाह न करके भी, अपने इकलौते पुत्र की रक्षा करती है. उसी प्रकार सभी प्राणियों के प्रति अपार प्रेम - भाव बघायचे.)
*"मेतञ्च सब्ब लोकस्मिं, मानसं भावये अपरिमाणं | उध्दं अधो च तिरियञ्व, असम्बाधं अवेरं असपत्तं ||"* (अर्थात : बिना बाधा, बिना वैर वा शत्रुता के ऊपर - निघे, आडे - तिरछे, सारे संसार के प्रति असिम प्रेम - भाव व मैत्री बढावे.) और भी इस संदर्भ में गाथा है.
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बुध्द वंदना के "रतन सुत्त" में कहा है कि, *"तस्मा हि भुता निसामेथ सब्बे, मेत्तं करोथ मानुसिया पजाय | दिवा च रत्तो च हरन्ति ये वलि, तस्मा हि ने रक्खथ अप्पमत्ता ||"* (अर्थात : पृथ्वी पर या आकाश में जितने भी प्राणि उपस्थित है, वे सभी प्राणि इसलिए सुने. मनुष्य मात्र के प्रति मैत्री करे. ज्यो कि वे दिन रात उनका प्रतिपादन करते है, और इस लिये अप्रमत्त होकार उनकी रक्षा करे.) और भी गाथा है.
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समस्त आदमी के कल्याण / मंगल हेतु "शुभेच्छा गाथा" इस प्रकार हैं. *"भवतु सब्ब मङगलं, रक्खंतु सब्ब देवता | सब्बं बुध्दानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते ||४|| भवतु सब्ब मङगलं, रक्खंतु सब्ब देवता | सब्बं धम्मानुभावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते ||५|| भवतु सब्ब मङगलं, रक्खंतु सब्ब देवता | सब्ब संघानु भावेन, सदा सोत्थि भवन्तु ते ||६|| "* (अर्थात : आपका सर्व मंगल हो, सभी देवता आपकी रक्षा करे. सभी बुध्द की भावना / सभी धम्म की भावना / सभी संघ की भावना कर के, सर्व कल्याण को प्राप्त हो.)
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अंत में "खमायाचना गाथा" कहना चाहुंगा. *"ओकास वंन्दामि भन्ते. द्वारत्तेन मया कत्तं सब्बं अच्चयो खमथ में भन्ते | दुतियम्पि...... | ततियम्पि.....!"* (अर्थात : अवकाश दिजिए भन्ते. काया, वाचा, मन से, मेरे से अपराध हुये होंगे, वह सब क्षमा किजिए भन्ते. दुसरी बार..... तिसरी बार.....) उपासक के इस क्षमायाचना पर, भन्ते उत्तर देते है, *"खमामि, खमामि, खमामि."* (अर्थात : क्षमा किया, क्षमा किया, क्षमा किया.)
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बुध्द की उपरोक्त सभी गाथा तथा कुछ गाथाओं का वर्णन समय अभाव के कारण करना, संभव नहीं हुआ है, वह सभी बुद्ध गाथा, यह मानव को पालन करने हेतु / आचरण करणे हेतु / व्यवहार के हेतु कही जाती है. विश्व में बुध्द के इस संदेश से, बहुत सारे राष्ट्र यह बुध्द वचन का पालन करते है. बुध्द का धम्म यह मानव के कल्याण के प्रतिबध्द है. भवतु सब्ब मंगलं !!!
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७