Saturday, 30 November 2024

 🎓 *सर्वोच्च न्यायालय के मागासवर्ग जाति आरक्षण धर्मांतर से लेकर भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाजवाद शब्द निर्णय की विश्लेषणात्मक समिक्षा !*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


         अभी अभी मां. *सर्वोच्च न्यायालय* द्वारा दिये दो अहं निर्णय - एक भारतीय संविधान से *"धर्मनिरपेक्ष - समाजवाद"* शब्द हटाने संदर्भ में तथा दुसरा मागासवर्गीय *"आरक्षण धर्मांतरीत वर्ग"* को लागु ना करने संदर्भ में आया है. मैं पिछले ४ - ५ दिनों से इस निर्णय विषय पर सोच रहा था. परंतु मेरी अपनी कुछ व्यस्तता ने मुझे बांध रखा था. परंतु आज मैने निर्णय ले लिया था कि, इस विषय पर लिखणा है. कभी कभी तो भारतीय जन मानसिकता पर, तो कभी कभी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर भी शर्म महसुस होती है. वही जनचेतना हक्क नपुंसकता पर भी शर्म आती है. क्या हमारी चेतना इतनी भी जिवित नहीं बची है, जो महाराष्ट्र हरियाना चुनाव में दिखाई दिया. मैं कांग्रेस - भाजपा वा अन्य राजकीय दलों की बात नहीं कर रहा हुं. कांग्रेसी राजकुमार - *राहुल गांधी* इस की तो अजिबात ही नहीं. राहुल गांधी की वो वैचारिक औकात ही नहीं, *"भारतीय संविधान"* विषय पर वो बोले ! भारतीय संविधान के आर्टिकल १ - *"India, that is Bharat, shall be union of states"* लिखा गया है. दुसरी बात *"भारत यह संघ राज्य है."* अर्थात भारत के सभी राज्य यह सार्वभौम है. राहुल गांधी तो *"लावारीस देश हिंदुस्थान का लावीरिस ओलाद है."* चले, हम सर्वोच्च न्यायालय के दो मुख्य निर्णय पर चर्चा करते है.

            भाजपा के बडे बोल नेता *सुब्रह्मण्यम स्वामी* इनकी ओर से, *एड‌. विष्णु शंकर जैन* तथा अन्य द्वारा दायर याचिका पर, सरन्यायाधीश *संजीव खन्ना*  तथा न्यायाधीश *संजयकुमार* इनकी खंडपीठ में सुनवाई की. तथा याचिका को २५ नवंबर २०२४ को खारिज करते हुये, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, *"भारतीय अर्थ में समाजवादी होना कल्याणकारी राज्य से जुडा विषय है."* मि. स्वामी का आरोप यह था कि, सन १९७६ में तत्कालीन प्रधानमंत्री *इंदिरा गांधी* इनकी सरकार ने, ४२ वे घटना दुरुस्ती में धर्मनिरपेक्ष - समाजवाद यह शब्द भारतीय संविधान के प्रास्ताविका में जोडे है. महत्वपूर्ण विषय यह कि, सन १९९४ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एस. आर. बोम्मई केस में, *"धर्मनिरपेक्ष"* यह शब्द भारतीय संविधान के मुलं रचना का हिस्सा माना है. साथ ही यह भी कहना है कि, *"भारतीय संविधान आर्टिकल ३६८ अंतर्गत संसद यह संविधान में सुधार या विस्तार कर सकती है."* सर्वोच्च न्यायालय ने अभी अभी दिये गये निर्णय में, *एस. आर. बोम्मई केस* निर्णय को बदला नहीं है. अत: यह हमें कहना होगा कि, *"सर्वोच्च न्यायालय को बडी सुबुद्धी मिली है."* यहा सवाल यह भी है कि, *"ब्राह्मणी व्यवस्था को भारतीय संविधान प्रास्ताविक से, धर्मनिरपेक्ष - समाजवाद यह शब्द क्यौ हटाना है ?"* क्या भारत में *"मनुस्मृती"* पुन: लागु करने की पहल, शुरु तो नहीं हुयी है ?

         मागासवर्गीय जाती वर्ग ने *"धर्मांतर"* करने सदंर्भ में, ख्रिश्चन धर्म स्वीकार करने पर, मद्रास उच्च न्यायालय में,  मागास आरक्षण अंतर्गत रोजगार मिलने का दावा अस्विकार किया था. उस केस की *"सर्वोच्च न्यायालय* अपिल पर, न्यायाधीश *पंकज मित्तल* तथा न्यायाधीश *आर. महादेवन* इनकी खंडपीठ ने, सदर ख्रिस्चन महिला को राहत देने से नकार देते हुये कहा कि, *"सच्ची आस्था ना होकर केवल आरक्षण का लाभ लेने हेतु किया गया धर्मांतर यह संविधान से धोकादारी है‌."* सर्वोच्च न्यायालय आगे कहता है कि, सदर महिला यह चर्च में नियमित जा रही है. फिर भी उस ख्रिस्त महिला ने आरक्षण के लिये *"हिंदु"* होने का दावा किया है. तथा रोजगार के लिये अनुसुचित जाती का प्रमाणपत्र मांगा है. हमें यह समझना होगा कि, यह निर्णय *"क्या धर्मांतरीत बौध्द समुदाय को लागु नहीं होगा ?"*  यह अहं बडा प्रश्न है. महत्वपूर्ण विषय यह भी है कि, सन १९९५ में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश *के. एम. जोसेफ* तथा न्यायाधीश *बी. व्ही. नागरत्ना* इनकी खंडपीठ ने, स्वामी प्रसाद मौर्य केस में, *"हिंदु कोई धर्म नहीं है. बल्की जीने का एक तरिका माना है."* साथ ही एक बिन-अकल वक्तव्य भी जोडा गया. उन्होंने आगे कहा कि, *"हिंदु धर्म में कोई कट्टरता नहीं है."* इसे क्या कहे ? दुसरा अहं विषय यह भी है कि, *"अनुसुचित जाती / जनजाती"* इनका हिंदु धर्म से, कोई लेना देना नहीं है.

        ‌. सन १९११ में हिंदु धर्म से अलग गैर - हिंदु के लिये, सामाजिक एवं शैक्षणिक रुप से पिछडी वर्ग के लिये, पहिली बार अनुसुचि (Schedule) *"जाति"* की बनाई गयी. और सन १९३१ में, अछुतो की / आदिवासी वर्ग की जनगणना हुयी थी. जनगणना आयुक्त *जे. एच. हटन* इन्होने, भारत में ११०८ अस्पृश्य जातीयां बतायी. और इन जातीयों कों *"बहिष्कृत"* यह स्वतंत्र वर्ग कहा जाता था. वे सभी जाती हिंदु धर्म से अलग थी. प्रधानमंत्री *रैम्से मैक्डोनाल्ड* फिर उस अलग *"बहिष्कृत जाती"* के लिये जो अनुसुची (Schedule) *"जाति"* की बनाई गयी, उसे *"अनुसुचित जाती"* यह नाम दिया गया. इसकी परिभाषा १० शर्तो वाले सिध्दांत से, सन १९११ के जनगणना आधार से की गयी. इसका वर्णन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने *"अछुत क्यौ और कैसे ?"* इस किताब में भी लिखा है. और कुल आबादी के ४० प्रतिशत अछुत पाये गये. इस विषय पर सविस्तर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. अब हम न्यायाधीश के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओ पर चर्चा करेंगे. उपरोक्त आधार पर यह सिध्द होता है कि, *"अनुसुचित जाती वर्ग यह हिंदु नहीं है."* दुसरा विषय यह कि, *"हिंदु कोई धर्म नहीं है."*  तिसरा विषय भारतीय संविधान के आर्टिकल २५ *"Right to freedom of Religion"* अधिकार देता है. अगर हम *"धर्मपरिवर्तन"* करते है तो, *"हमारी आर्थिक स्थिती बदलती नहीं है."* तो *"मागास आरक्षण"* यह तो हमारा अधिकार बनता है. तो फिर यह न्यायाधीश महोदय, हमारा अधिकार छिननेवाले कौन भोमण जी है ? अगर न्यायालय में *"कोलोजीयम व्यवस्था"* ना होती तो, तो यह न्यायाधीश महोदय *"चपराशी स्पर्धा परीक्षा"* पास हुये होते या नहीं ? यह बडा प्रश्न है. फिर *"आर्थिक आधार पर आरक्षण"* यह क्यौ नहीं रद्द किया गया ? क्या यह *"बेरोजगारी हटाव कार्यक्रम"* है क्या ? अंत में, इस महत्वपूर्ण विषय पर, जगह जगह पर *"चर्चा सत्र"* हो, इस आशा के साथ...! जय भीम !!!


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▪️ *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

नागपुर दिनांक ३० नवंबर २०२४

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