🪢 *दोस्ती बनाम शत्रुता...!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो. न. ९३७०९८४१३८
यहां तो हर बार
संघर्ष चलता रहता है
कभी व्यापार में
तो कभी सत्ता वाद में
तो कभी कुछ कारणवश
और संघर्ष में दोस्ती कम
शत्रुता ज्यादा बढ़ जाती है
कारण केवल स्वार्थ होता है....
वही शत्रुता करनेवाले
शत्रुता इतनी कर जाते है
अगर भविष्य में फिर कभी
वे दोस्ती बनाना चाहे तो
कोई गुंजाइश ही ना होती
वह आर पार हो जाता है
अत: दुश्मनी भी ऐसी करो
कभी दोस्ती की गुंजाइस रहे ...
बुध्द ने कहा वैरता को
वैरता ही बढाती है
अत: उसे प्यार से
सुलझाना ही उपाय है
प्रेम मैत्री बंधुता
इस त्रयी का संदेश देकर
समस्त जम्बुद्विप में
बुध्द धम्म साकार किया...
वही निसर्ग जीव में
परस्पर भिन्नता होकर भी
उनकी शत्रुता यह ना होती
जो मानव की होती है
उनकी शत्रुता भुख होती है
क्षणिक भुख शांत हुयी तो
वे संग्रह के पिछे भागते नहीं
जो केवल मानव भागता है....
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नागपुर दिनांक २९/१०/२०२४
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