👌 *सिंधु घाटी की सभ्यता में बुद्ध से लेकर नववी शती की वैदिक सभ्यता में बुध्द धम्म का अवलोकितेश्र्वर प्रभाव !*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
प्राचिन भारत इतिहास में तिन युग दिखाई देते है. *पाषाण युग (पुरा पाषाण युग : इ.पु. २५००० से १२०००, मध्य पाषाण युग : इ. पु. १२००० से १००००, नव पाषाण युग : इ. पु. १०००० से ३५००) / कास्य युग (इ. पु. ३३०० से १२००) / लोह युग (इ. पु. १२०० से ५५०).* वही प्राचिन भारत में *"सिंधु घाटी सभ्यता या हडप्पा सभ्यता"* भी विद्यमान थी. वह भी तिन भागों में दिखाई देती है. *"पुर्व हडप्पा (इ. पु. ७५०० से ३३००) / हडप्पा सभ्यता (इ. पु. ३३०० से १५००) / परिपक्व हडप्पा (इ. पु. २६०० से १०००)"* वही दक्षिण आफ्रिका में मानव का अस्तित्व यह *"२५ लाख वर्ष पूर्व"* दिखाई देता है. *भारत* में पहिला मानव का शोध यह मध्य प्रदेश के हथनोरा गाव में, भुवैज्ञानिक *अरुण सोनकिया* इन्होने सन १९९७ में वह लगाया. वह *"पाच लाख वर्ष पुर्व मानव की खोपडी"* नर्मदा घाटी में मिलने के कारण, उसे *"नर्मदा मानव"* यह नाम दिया गया है. मुझे स्वयं (डॉ जीवने) उस *"प्राचिन मानव खोपडी"* को *अपने हाथ में पकडने* का अवसर प्राप्त हुआ. आज वह मुल मानव खोपडी *"कलकत्ता संग्रहालय"* में है और नागपुर के *"भुगर्भशास्त्र संग्रहालय"* में, उस प्राचिन मानव खोपडी की केवल प्रतिकृती है. *"होमोसेपियन मानव"* तथा *"डार्विन का सिद्धांत"* को भी हमें समझना है. इस विषय पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. परंतु हमें यह प्राचिन इतिहास जानना इस लिए भी जरुरी है कि, हमें *"भारत की प्राचिन सभ्यता"* को वह समझना है.
*"सिंधु घाटी सभ्यता"* यह बहुत विकसित नगरीय सभ्यता थी. तब चिनाब नदी के पास ३०० नगर तथा झेलम नदी के पास ८०० नगर का इतिहास है. आज भी वह अवशेष दिखाई देते है. इस विषय संदर्भ में चर्चा हम फिर कभी करेंगे. हम केवल सिंधु घाटी सभ्यता में मिले *"स्तुप के समिप जलाशय / चक्राकार स्तुप / ध्यानस्थ पुरुष / स्वस्तिक चिन्ह / बैठा हुआ सिंह / वृषभ (बैल) / प्राप्त लिपी"* केवल इस विषय पर चर्चा करेंगे. अर्थात पहिला बुद्ध - *"ताम्हणकर बुध्द"* (इ. पु. २२ से २१ वी शती) इनका प्रमाण हो जाता है. वही *"शाक्यमुनी बुध्द"* तो २८ वे बुद्ध है. सिंधु घाटी में मिला *"स्तुप तथा जलाशय"*(तरणताल) यह *वैशाली* में दिखाई देता है. *"चक्राकार स्तुप"* यह पंजाब के *संगोल* में दिखाई देता है. *"बैठा हुआ सिंह"* यह सम्राट अशोक की *"धरोहर"* दिखाई देती है. सिंधु घाटी का *"वृषभ"* यह आंध्र प्रदेश के *"अमरावती"* में दिखाई देता है. सिंधु घाटी में प्राप्त *"स्वस्तिक चिन्ह"* यह शाक्यमुनी बुद्ध के *पदमुद्रा"* में दिखाई देता है. *"ध्यानस्थ पुरुष"* का मुद्रा भाव एवं पहनावा तथा *"शाक्यमुनी बुध्द"* इनसे सदृश्यता दिखाई देती है. अर्थात *"पहिले बुध्द"* से शाक्यमुनी बुध्द तक वह परंपरा चली आ रही है, यह प्रमाणीत होता है. वही सिंधु शिलालेख पर जो *"लिपी"* अंकित है, वह आज तक कोई पढ नहीं पाया है. वही शाक्यमुनी बुद्ध काल में *"ब्राम्ही लिपी"* (धम्म लिपी) विद्यमान थी. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के *"शिलालेख यह ज्यादातर ब्राम्ही लिपी"* में ही लिखे गये है. तब केवल *"पाली प्राकृत भाषा"* यह बोली भाषा रही थी. बाद में पाली भाषा में *"संंस्कार"* किया गया है. उसे *"हिब्रु संस्कृत"* (कुछ विद्वान - हिब्रु पाली) कहा जाता है. आज की *"संस्कृत भाषा"* यह *"क्लासिकल संस्कृत"* है. पाली भाषा में *"ऋ, श, ष, क्ष, त्र, ज्ञ"* यह शब्द नहीं है. वे शब्द केवल *"संस्कृत भाषा"* में दिखाई देते है. अत: यह प्रमाण *"पाली भाषा की प्राचिनता"* सिध्द करते है. इस विषय पर संपूर्ण चर्चा हम फिर कभी करेंगे.
*"कागज"* का आविष्कार यह *"चायना"* में हुआ, ना कि *"भारत"* में. भारत में *"कागज का निर्माण इसवी ९ से १४ वी शती"* में हुआ है. इसवी ७८८ में *आदि शंकर* का जन्म होता है. और आदि शंकर ये *"शैव पंध"* की स्थापना *इसवी ८५०"* में करते है. वही *रामानुज"* ये *"वैष्णव पंथ"* की स्थापना करते है. हमें यह भी समझना होगा की बौध्द धर्म के *"महायान"* से *"वज्रयान"* / फिर वज्रयान से *"तंत्रयान"* का निर्माण होता है. और वज्रयान / तंत्रयान से *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* का उदय होता है. वे तिनो पंथ में मित्रता नहीं होती. वे परस्पर विरोधी दिखाई देते है. पर वे सभी *"अवलोकितेश्र्वर बुध्द"* को अपना आराध्य मानते है. *"अवतार वाद"* का उदय होता है. अर्थात *"इसवी पुर्व वे सभी बौध्द धम्म"* से जुडे लोग थे. इसका प्रमाण हिमाचल प्रदेश के *"तुंदा - त्रिलोचनाय"* गाव का *अवलोकितेश्र्वर बुद्ध* (१० वी शती) मंदिर है. इसके पहले *"वैदिक सभ्यता की कोई मुर्ती"* हमें दिखाई नहीं देती. और सभी मुर्तीया के ऊपर *"बुद्ध"* दिखाई देते है. बाद में बुध्द की प्रतिमा को कपडों से झाक दिया गया है. यही नहीं *"आदि शंकर"* इन्होने चार पीठों का निर्माण किया होता है. *श्रृंगेरी पीठ* (रामेश्वरम, केरल / यजुर्वेद / पदनाम - सरस्वती भारती) / *शारदा पीठ* (द्वारका, गुजरात / सामवेद / पदनाम - तिर्थ आश्रम) / *ज्योतिर्मठ पीठ* (बद्रिकाश्रम, उत्तराखंड / अथर्ववेद / पदनाम - गिरी सागर) / *गोवर्धन पीठ* (पुरी, ओरिसा / ऋग्वेद / पदनाम - आरण्य). सोबतच *"१२ ज्योतिर्लिंग"* की स्थापना की गयी. और *"केदारनाथ"* (८ - ९ शती) में आदि शंकराचार्य की समाधी है. नेपाल का *"पशुपतीनाथ मंदिर"* से लेकरं समस्त *"बुद्ध विहार"* इन सभी पर, ब्राम्हण वर्ग का कब्जा हो गया. *जैमिनी* तथा *कुमारील भट्ट* इन्होने फिर *"ब्राम्हणी धर्म ग्रंथ"* रचना की. *"रामायण / महाभारत / वेद / उपनिषद"* इस काल की उपलब्धी है. युनानी दुत *मेगानस्थीज* (इ. पु. ३६५) यह सम्राट अशोक इनके दरबार में सात साल तक रहा. और उसने *"इंडिका"* यह ग्रंथ लिखा. बाद में उस पुस्तक के आधार पर, *एरियन* (इ. पु. १७६ से ९५) इसने भी *"इंडिका"* नामक ग्रंथ की रचना की है. पर एरियन ये भारत नहीं आया था. इन किसी भी पुस्तक में *"वैदिक वर्णाश्रम"* का उल्लेख नहीं है. *अलब्रुनी* (७ - ८ वी शती) इस ने भी अपने ग्रंथ में *"महाभारत"* का उल्लेख नहीं किया है. यह भी हमें समझना होगा. ब्राम्हणी परंपरा में *"शैव पंथ / वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* इस के बाद *"लिंगायत पंथ / रामानंद पंथ / कबीर पंथ / तुलसी पंथ / आर्य समाज पंथ / गायत्री पंथ"* आदी पंथ का भी उदय हो गया. हमें यह भी समझना है कि, *"वेद का मुलाधार वैदिक ऋचाएं है. जो संस्कृत भाषा में है."* और वह *"कागज पर लिखी"* गयी है. ना की *"शिलालेख"* पर ! साथ ही वेद का मुलाधार *"वर्ण"* है. और सामाजिक व्यवस्था यह *"वर्णागत"* रही है. यहां प्रश्न यह भी है कि, *"सम्राट अशोक कालीन शिलालेख में ब्राह्मण / क्षत्रिय / वैश्य / शुद्र इस वर्णव्यवस्था का उल्लेख कहां लिखा है ?"* तब वर्णागत व्यवस्था ना होकर *"शाक्य वंश / कोलिय वंश / मौर्य वंश / हरियक वंश / नाग वंश / शुंग वंश / कुशाण वंश / गुप्त वंश / पाल वंश"* आदी केवल *"वंश"* दिखाई देते है. और वे बौध्द धर्मिय राजा थे. *"पुष्यमित्र शृंग "* को ब्राम्हण बताना, यह संशोधन का प्रश्न है. उस काल का संघर्ष यह केवल *"सत्ता संघर्ष"* था.
*"बुध्द मुर्तीया"* यह सम्राट कनिष्क काल में, *"गंधार कला / मथुरा कला"* की वह देणं है. और कनिष्क काल में भी *"वैदिक संस्कृती"* यह दिखाई नहीं देती. *"शिव लिंग"* यह भी मथुरा कला के *"बुध्द स्तुप"* का प्रतिक रहा है. प्राचीन काल में लेख यह, *"स्तंभ लेख / शिला लेख / गुफा लेख"* इन तिन प्रकार का दिखाई देता है. *"अभिलेख"* भी सात प्रकार का दिखाई देता है. *"लघु शिलालेख / भाबरु शिलालेख / कलिंग शिलालेख / बृहद शिलालेख / स्तंभ शिलालेख / लघु स्तंभ शिलालेख / गुफा लेख."* लिपी भी उस काल में *"चित्र लिपी / ब्राम्ही लिपी / शंख लिपी"* यह दिखाई देती है. ब्राम्ही लिपी अभिलेख में धम्म की व्याख्या है - *"अत्तनो संभावं अत्तनो लक्खनं, धारेती ति धम्मो"* (अर्थात - जो अपने स्वभाव को धारण करता है, जो अपने लक्षण को धारण करता है, उसे ही धम्म (धर्म) कहते हैं.) प्राचिन काल में *"बम्हण"* यह शब्द *"ब्राह्मण"* वर्ग के लिये प्रयोग ना होकर, *"समन"*(नष्ट करना) / *"श्रवण"* (सुनना) / *"विद्वान"* इस अर्थ में प्रयोग होता रहा. *"वेद"* यह शब्द *"वेदना"* (वेदन) अर्थात *"अनुभुती"* अर्थ से जुडा हुआ है. इन विषयों पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. *"बौध्दों की पांडुलिपी"* में *"कागज"* का प्रयोग नहीं दिखाई देता. *"ब्रम्ह सत्य जगत मिथ्या"* इस मठ पर भी १० वी शती में, आदि शंकर ने कब्जा जमा लिया. बुध्द काल में *"समता मुलक समाज"* होता था. कोई वर्ण नहीं. कोई जाति नहीं. बुध्द धर्म के महायान संप्रदाय ग्रंथ - *"सधर्मपुण्डरीक"* में *"अवलोकितेश्र्वर"* को मान्यता दी गयी है. *"ओम मणी पद्म हुम्"* इस ऋचा में, *"ओम"* यह शब्द कैसे आया ? इस पर हमे संशोधन करना होगा. महायानी / वज्रयानी लोग उस मंत्र का उच्चार कर, *"धम्मचक्र"* को घुमाते नज़र आते है. अर्थात उस काल में तंत्र / मंत्र का प्रभाव यह बहुत जोरो पर था. उस प्राचिन काल के *"बुध्द विहार"* आदि शंकर द्वारा कब्जा किया गया था. वे बौध्द विहार है - पशुपतीनाथ मंदिर (नेपाल) / मंदसौर (म. प्र) का पशुपतीनाथ मंदिर / लिलौटीनाथ का शिव मंदिर / इटखोरी (झारखंड) का शीव मंदिर / वैजनाथ नाम - देवधर (झारखंड) १२ ज्योतिर्लिंग में से एक / महामंडलेश्वर (बिहार) का शीव मंदिर / कैलास पुरी (राजस्थान) का एक लिंगी मंदिर / गंधेश्वर (छत्तीसगड) का महादेव मंदिर / चतुर्भुज (बिहार) का शिव मंदिर / बद्रीनाथ मंदिर - चार धाम में से एक / मुक्ती नाथ (नेपाल) मंदिर जहां विष्णु - लक्ष्मी - गरुड है / तिरुपती (तामिलनाडु) का वैष्णव मंदिर / सिरपुर (छत्तीसगड) का लक्ष्मण मंदिर / जांजगीर (छत्तीसगड) का अष्टभुजी देगुणी गुरु मंदिर / कोनार्क (ओरिसा) का सुर्य मंदिर / औरंगाबाद (बिहार) का देव सुर्य मंदिर / जगन्नाथ मंदिर (ओरिसा) / कौमुर (बिहार) का मुण्डेश्वरी देवी मंदिर / इटखोरी (झारखंड) का भद्रकाली मंदिर / किरिट शक्तिपीठ (बंगाल) / आंजनधाम (झारखंड) का हनुमान मंदिर / ओम मंदिर - अवलोकितेश्र्वर परम्परा" आदी प्रमुख मंदिर पर, ब्राह्मणी व्यवस्था ने कब्जा किया हुआ दिखाई देता है.
*"बाबरी रामजन्मभूमी प्रकरण"* पर, मा. सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन सरन्यायाधीश *रंजन गोगोई* इनकी अध्यक्षता में साथ रहे चार न्यायाधीश *शरद बोबडे / अशोक भुषण / धनंजय चंद्रचूड / एस. अब्दुल नजीर* इन्होने बगैर किसी *"प्रायमा फेसी"* आधार पर, ९ नवंबर २०१९ को, *"अयोध्या में रामजन्मभूमी"* होने का निर्णय दिया है. अत: उन न्यायाधीशों की न्यायपीठ में *"वैचारिक हैसियत"* (ना-लायक) दिखाई देती है. आयु *शांती भुषण"* इन्होने तो हमारे न्यायालय के १६ में से ८ न्यायाधीश भ्रष्ट बताये है. *आचार्य महिर्धर"* इन्होने १३ वी शती में, *"वेद का भाष्य"* करने की बात कही जाती है. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री *अटलबिहारी वाजपेयी* इन्होने श्रीलंका दौरे पर *"गोमांस सेवन"* किया हुआ था. *विनायक दामोदर सावरकर* इन्हे तो, गोमांस सेवन करने में कोई आपत्ती नहीं थी. *"मनुस्मृती "* प्रकाश भाषा टीका संहिता में (१०८) लिखा है कि - *"सुधार्तधातु मभ्यागाद्विश्वामित्र: श्र्वजाधनीम् | भण्डालहस्तादादाय धर्माधर्मविचक्षत: ||"* (अर्थात - अधर्म को जाननेवाले विश्वामित्र ऋषी भुख से आर्त होकर चांण्डाल के हाथ से, कुत्ते के जंघे का मांस लेकर, खाने को तैयार हुये थे.) वही १०६ श्लोक में तो *वामदेव ऋषी* ने कुत्ते का मांस खाने का जिक्र है. भारत के अभी अभी सेवा मुक्त हुये सरन्यायाधीश *धनंजय यं. चंद्रचूड* ने तो, *"भारतीय न्याय व्यवस्था"* का स्तर बहुत निचे गिरा दिया. *जस्टीस मार्कंडेय काटजू* इन्होने तो, सरन्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड को बडा झुटा आदमी करार दिया है. तथा उनके पिता जी *सरन्यायाधीश यशवंत चंद्रचूड* इन्हे भी, *"मिसा केस"* (१९७५) में, अन्याय पुर्ण न्याय करने की बात कही है. बुध्द की ध्यानस्थली स्थित *"बुध्दगया महाविहार"* के संदर्भ में, हमारी न्यायालय / सरकार क्या कर रही है ? बनारस का *"ज्ञानव्यापी मस्जिद"* प्रकरण यह *"सर्वोच्च न्यायालय"* में प्रलंबित है. वह मस्जीद १६८० में बनाई गयी थी. *"The places of worship special provisional Act 1991"* अंतर्गत, सन १९४७ के पहले की केस *"क्या न्यायालय में चलाई जानी चाहिये ?"* रामजन्मभूमी प्रकरण केस भी तो, उस स्तर की केस थी. *शंकर की जटा"* से *"गंगा का उगम"* भी प्रश्न चिन्ह खडा करता है. जब की *"हिमालय के हिमखंड"* यह ग्लेशियर से पिघलने के बाद, *"गंगोत्री"* / गंगोत्री यह जलधारा रुप लेती है. उसके बाद *अलकनंदा नदी - मंदाकिनी नदी* / बाद में *"गंगा"* / और वह जब पश्चिम बंगाल में जाती है, तब *"हुगली नदी - पद्मा नदी"* बन जाती है. गंगा नदी का मुलं उगम प्रश्न है. जब हम *"महाभारत "* की ओर बढते है, तब मुल महाभारत (मुल नाम "जय" है) मे ८८०० श्लोक थे. *महर्षी व्यास* यह महाभारत का *"रचयिता नहीं बल्की वह संपादक था."* और व्यास यह व्यक्ती नहीं पद रहा था. बाद में महाभारत में अन्य के संपादन में, *"एक लाख श्लोक"* लिखे गये. इस संदर्भ में सविस्तर चर्चा फिर कभी करेंगे. वही *"वाल्मिकी रामायण"* में एक श्लोक है - *"यथा हि चोर: से तथा हि | बुध्दस्तथागतां नास्तिकमत्र सिध्दी ||"* (अर्थात - बुध्द चोर है. तथागत बुद्ध को नास्तिक समझो.) *"प्राचिन सिंधु घाटी सभ्यता"* में, जब *"वैदिक संस्कृती"* का कोई प्रमाण ही नही है, तब तो महाभारत यह *"द्वापार युग"* में लिखा गया और रामायण यह *"त्रेतायुग काल"* में लिखा गया है, यह तो केवल कपोलकल्पित कल्पना दिखाई देती है. जैसे कि *"चाणाक्य / कालिदास"* यह काल्पनिक पात्र है. यह भी हमें समझना होगा. प्राचिन भारत में *"सात संस्कृति"* का उल्लेख दिखाई देता है. *"कायथा संस्कृति (इ. पु. २००० से १८००) / मालवा संस्कृति (इ. पु. १७०० से १२००) / आहर संस्कृति (इ. पु. २१०० से १२००) / गैरिक मृदभांड संस्कृति (इ. पु २००० से १५००) / सवालदा संस्कृति (इ. पु. २००० से १८००) / चिरांद संस्कृति (इ. पु. १५०० से ७५०) / जोखे संस्कृति (इ. पु. १४०० से ७००)."* इस संदर्भ में भी संशोधन होना जरुरी है. समस्त विश्व आज *"ग्रेगारियन कॅलेंडर"* से चल रहा है. भारत में इ. पु. ५७ में *"विक्रम संवत कॅलेंडर"* / इसवी ७८ में *"शक सवंत कॅलेंडर"* / मुस्लिम शासन के इसवी ६२२ में *"हिजरी कॅलेंडर"* अस्तित्व में था. यहां प्रश्न *"विक्रम संवत / शक सवंत"* यह कॅलेंडर *"ब्राह्मणी व्यवस्था के कॅलेंडर कैसे रहे है ?"* जब भारत में *"नंगो का राज हो"* तो, यहां सब कुछ उपर (?) भरोसे है.
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर, दिनांक १५ नवंबर २०२४
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