🎓 *सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वय सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड - न्यायाधीश भुषण गवई इनके बयाण से लेकरं रशिया की ब्रिक्स समिट तक !*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
मा सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इनकी, अभी अभी उनके पुना जिले के मुलं गाव *कणेरसर* को भेट दी गयी. तथा नागरी सत्कार भी किया गया. उस सत्कार समारोह में सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड कह गये कि, *"अयोध्या रामजन्मभूमी प्रकरण पर, शेकडो वर्षो से निर्णय देना संभव नहीं हुआ. जब वह केस हमारे बेंच में आयी, तब तिन माह से उस केस पर सोच रहा था. परंतु उस केस पर रास्ता नहीं निकल रहा था. आखिर मैं भगवान की पुजा करते हुये, उनसे रास्ता खोजने की अपिल की. अगर हम में आस्था हो तो, देव उसकी राह निकाल कर देता है."* यह बयाण सुनकर मैं पिछले दो दिन से, इस विषय पर लिखने का सोच रहा था. उसी बिच में मां. सर्वोच्च न्यायालय के माजी न्यायाधीश *मार्कंडेय काटजू* इनका, न्या. चंद्रचुड इनके इस विचार विरोध में, बडा क्रांतीकारी बयाण दिखाई दिया. और *न्या. काटजु* इन्होने *"न्या. चंद्रचुड का बयाण यह एक बकवास / झुटा बताया."* हमें यह भी समझना बहुत जरुरी है कि, *"अयोध्या रामजन्मभूमी प्रकरण"* यह *सरन्यायाधीश रंजन गोगोई* इनकी अध्यक्षता के खंडपीठ में *शरद बोबडे / अशोक भुषण / धनंजय चंद्रचूड / एस. अब्दुल नज़ीर* यह चार न्यायाधीश रहे थे. और यह फैसला *"सबसे मुर्खतापुर्ण / बिना प्रायमा फेसी / देश की गरिमा गिरानेवाला"* फैसला ९ नवंबर २०१९ को दिया गया था. उस गलत फैसला दिन की याद, कभी भुलाई नहीं जा सकती है. क्यौं कि, *"पांच में से, किसी भी एक न्यायाधीश की नैतिकता सही दिशा में जागी नहीं थी."*
सन १९१९ का कालखंड. इंग्रजो ने ब्राह्मण वर्ग को *"न्यायाधीश"* बनने पर बंदी लायी गयी थी. साथ ही ब्राह्मण वर्ग का १००% नियंत्रण यह २.५% पर लाकर खडा किया. यहीं नहीं, संपत्ती अधिकार दिया. देवदासी प्रथा बंदी / नवविवाहित शुध्दीकरण प्रथा बंदी / चरक प्रथा (शुद्र बली) बंदी / गंगा दान प्रथा (बच्चे का दान) बंदी / खुर्ची अधिकार ( शुद्र को अधिकार नहीं था) मिला / शिक्षा का अधिकार मिला / नोकरी का अधिकार मिला. यह सभी काम *"अंग्रेज शासन"* में किये गये थे. उसके पहले की स्थिती - *"मनुस्मृती"* (८/२१ - २२) इस ग्रंथ के एक श्लोक कहा गया है कि, *"ब्राम्हण चाहें अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाना जाए. वरना राज्य मुसिबत में फसं जाएगा."* दुसरा (८/२७०) एक श्लोक का अर्थ है कि, *"यदी कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो, उस की जीभ काटकर दंड दे."* स्त्री के संदर्भ में (३५/५/२/४७) कहा कि, *"पत्नी एक से अधिक पती ग्रहण ना करे. लेकिन पति चाहें कितनी भी पत्नीया रखे."* शतपत ब्राह्मण (५/२/३/१४) में कहा कि, *"जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए."* बृहदारण्यक उपनिषद (६/४/७) में कहा है कि, *"अगर पत्नी संबंध करने के लिये तैयार ना हो तो, उसे खुश करने का प्रयास करे. यदी फिर भी ना माने तो, उसे पिट पिट कर वश में करे."* मैत्रायणी संहिता में (३/८/३) में कहा है कि, *"नारी अशुभ है. यज्ञ के समय नारी, कुत्ते, शुद्र (ओबीसी) को नहीं देखना चाहिये. अर्थात नारी, शुद्र, कुत्ते एक समान है."*' महाभारत (१२/४०/१) में कहा गया है कि, *"नारी से बढकर अशुभ कुछ भी नहीं है. इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होना चाहिए."* इस के साथ ही *"वाल्मीकी रामायण"* इस ग्रंथ में, *"राम को मनु की संतान (वंशज) बताया है."* यह उदाहरण देने का कारण यह कि, सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इन्होने, उन्हे *"स्त्री सक्षमीकरण की प्रेरणा"* उनके मां से मिलने का तब जिक्र किया था. यही नहीं उनकी पत्नी *कल्पना दास* यह *"स्त्री सक्षमीकरण"* में जुडने का भी जिक्र किया है. परंतु *महात्मा ज्योतिबा फुले / सावित्रीबाई फुले* इनकी उन्हे याद तक नहीं आयी. सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड इन्होने *"गणेश पुजा / देवपुजा कथन"* कहकर, उनके कट्टर हिंदुत्व का परिचय कराया है. दुसरे अर्थ में कहा जाए तो, *"न्यायाधीश"* खुर्ची पर बैठकर, पुरोगामी विचारों का बताकर *"भेडियों की खाल"* पहने हुये, वे नज़र आते है. तो फिर उनके द्वारा दिये गये *"जजमेंट की समिक्षा"* ??? एक प्रश्न है.
अब हम मा. सर्वोच्च न्यायालय के माजी न्यायाधीश *मार्कंडेय काटजू* इन्होने, सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इन पर किये गये सक्त टिप्पणी पर चलते है. *न्या काटजु* इन्होने नामचिन फिलोसोफर *Francis Bacon* इनके द्वारा कहा गया एक संदर्भ दिया है. *"A much talking judge is like an ill turned cymbal."* (ज्यादा बोलने वाला न्यायाधीश बेसुरा बाजा जैसा है.) काटजु कह गये कि, जब वे जज बने थे. तब हमारे सिनियर ने कहा कि, "शाम को घर में ही रहना. ज्यादा नहीं बोलना. समाज में ज्यादा मिक्स नहीं होना." इस का कारण यह था कि, *"न्याय कार्य यह निरपेक्ष हो."* परंतु सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड तो, ज्यादा तर कार्यक्रमों में घुमते नज़र आता है. *"अयोध्या रामजन्मभूमी प्रकरण"* पर *"बेमानी फैसला"* कहा है. कोई भी *"Archeological प्रमाण"* नहीं है. वही जजमेंट में *"Demolition of Babri mosque was a crime"* का जिक्र है. फिर *"रामजन्मभूमी "* यह फैसला कैसे ? धनंजय चंद्रचूड यह ज्यादा एम्बीशियस व्यक्ती है. अयोध्या रामजन्मभूमी फैसले में, पांच में से एक भी जज विरोध में जजमेंट नहीं दिया. इस लिये की *"धनंजय चंद्रचूड को ,भारत का सरन्यायाधीश बनना ही था."* वह नरेंद्र मोदी सरकार को दुखाना नहीं चाहता था. धनंजय चंद्रचूड यह उनके पिता *यशवंत चंद्रचूड* इनके मार्ग पर ही चला है. उनके पिता यशवंत चंद्रचूड ने, *"मिसा जजमेंट १९७५"* (ADM Jabalpur vs Shivkant Shukla) इस केस में, *"किसी को भी पकड लो. गोली मार दो. उपाय नहीं है "* यह जजमेंट दिया था. तब पांच बेंच की खंडपीठ में से, *Justice H. R. Khanna* इन्होने सरकार विरोध मे जजमेंट देने के कारण, वे सरन्यायाधीश नहीं बन सके. सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड के पिता *यशवंत चंद्रचूड,* यह भारत के सरन्यायाधीश बने थे, जैसे *धनंजय चंद्रचूड* बन गये. यही नहीं *"ज्ञानव्यापी मस्जिद"* बनारस प्रकरण भी विवाद में दिखाई देता है. औरंगजेब ने १६८० में वह मस्जिद बनायी थी. और *"The places of Worship (Special provision) Act 1991"* अन्वये वह केस तो Restore नहीं हो सकती. वह केस मेंटेनेबल भी नहीं है. *"Justice"* का अर्थ - *"It is not a law court."* बल्की Human Being के गरजों (Need) की रक्षा करना / वह देना है. जब न्यायाधीश काटजु को सरन्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड को, *"क्या उपदेश देना चाहोंगे ?"* इस प्रश्न पर, न्यायाधीश काटजु कह गये कि, *"Don't give unsolicited advice."* (अर्थात किसी ने उपदेश ना मांगा हो तो, वह उपदेश ना दो.)
अभी अभी *पणजी* दक्षिण गोवा में पार हुयी *"Supreme Court Advocates on Record Association"* इस परिषद में, सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इन्होने अपने भाषण में, *"हर किसी भी व्यक्ती को, कानुनी विसंगती या गलतीयों पर टीका करने का अधिकार स्वीकार किया है "* साथ ही न्यायालय का कार्य यह परिणामों के दृष्टिकोन से देखने की बात कही है. वही *न्यायाधीश भुषण गवई* इनका भाषण तो, बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. न्या गवई अपने भाषण में कह गये कि, *"किसी न्यायाधीश ने चुनाव लढने हेतु अपने पद का इस्तिफा दिया तो, जन मन में उसके निष्पक्षपातीपण पर परिणाम कर जाता है. वही न्यायिक मुल्य और सचोटी, यह न्याय व्यवस्था की विश्वासनियंता रखनेवाला एक मुलभूत आधारस्तंभ है. न्यायालयीन काम के समय तथा न्यायालय के बाहर होते हुये भी, न्यायाधीश इनका वर्तन न्यायिक नीती और मुल्य से भरा हो. किसी भी न्यायाधीश ने, राजकीय व्यक्ती / प्रशासकीय अधिकारी इनकी प्रशंसा करने से, संपुर्ण न्यायपालिका पर, जनता का विश्वास संदेह निर्माण करता है. अगर जनता का न्यायपालिका पर का विश्वास खत्म हुआ तो, यह जनता न्यायालय के बाहर न्याय मिलाने का, वह प्रयास करेगी. और यह स्थिती समाज - कानुन - व्यवस्था पर दुष्परिणाम करेगी. साथ ही न्यायालय में केस पर तथा निर्णय पर भी वह असर करेगा. अत: हमें संवेदनशील प्रकरण पर सावध होना जरुरी है. धर्म जाती लिंग राजनीति समान संवेदनशील विषयों पर, टिप्पणी करने से, न्यायाधीश वर्ग ने बचना चाहिए. साथ ही न्या गवई इन्होने, अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा, अध्यक्षीय उमेदवार पर टिप्पणी करने पर, माफी मांगने का उदाहरण भी दिया."* न्या भुषण गवई इनका यह कथन, भारतीय न्याय व्यवस्था के लिये एक बडी सिख है.
भारत - कॅनडा - अमेरिका इस अंतर्गत द्वंद्व का असर, राजदुतों को देश छोडने तक बढा है. वही रशिया - चायना भी *"अमेरिका विरोधी ताकतों"* को, अपने साथ जोडनें में लगा है. वही *"चायना"* ने अपनी *"अर्थव्यवस्था"* को बडी मजबुती देकरं, *"विश्व शक्ती"* बनने की ओर पहल शुरु की है. भारत के पडोसी देश आज भारत के मित्र कम, और *"चायना"* से वे ज्यादा जुडे हुये नज़र आ रहे है. भारत से जुडे हुये *"SAARC"* देश ? एक प्रश्न चिन्ह है. वही *"चायना में हुयी BRICS परिषद"* में, भारत ने बहिष्कार डाला हुआ था. जब की *अमेरिका - रशिया सहित सभी देशों की*, तब वहां खास उपस्थिती रही थी. भारत ने चायना के ब्रिक्स परिषद में, *बहिष्कार डालकर क्या पाया ?* एक संशोधन का विषय है. भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* भी, ब्रिक्स परिषद में सहभाग लेने रशिया गये है. वही *"भारत - चायना समझौता"* (?) होकर, *"पुर्व लद्दाख"* सिमा समस्या छुटने की बात कही गयी है. वैसे वह सीमा विषय इतना सहज भी नहीं है. मुख्य विवाद तो *"अरुणाचल प्रदेश - तवांग"* से जुडा हुआ है. सन १९६२ का *"चायना - भारत युध्द"* भी, उसी प्रदेश से जुडा हुआ था. *"सन १९६२ में, चायना द्वारा भारत पर आक्रमण तथा एक तरफा युद्ध बंंदी, यह पहले ही हो गयी है."* मेरे लेख में *"४०० वर्षीय बौध्द लामा"* (दिखने में ४० साल का) का संदर्भ दिया गया था. उस *"लामा का मृत शरीर"* तवांग भुभाग से, चायना सेना ले जाने के पश्चात, *"एक तरफा युद्ध बंंदी"* की गयी थी. इस संदर्भ में मेरा लेख, पहले ही प्रकाशीत हो चुका है. चायना यह *"लद्दाख सिमा भुभाग छोडने"* को, पहले भी तैयार था. अत: *"ब्रिक्स परिषद में भारत को क्या मिला है ?"* यह आगे दिखाई देगा. परंतु *"भारत - कॅनडा विवाद,"* यह क्या अमेरिका के भारी पडा है ? यह एक प्रश्न है. वही चायना भी रशिया के माध्यम से, क्या हासिल करेगा ? यह भी हमें देखना है. इस परिषद में *"इराण"* का भी सहभाग होनेवाला है. अब हमे देखना है, *"भारत की विदेश नीति !"*
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर, दिनांक २३ अक्तुबर २०२४
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