👌 *बुध्द के धम्म पथ पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बुध्द यान में हमारा बुद्ध मिशन !*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
जब कभी हम *"बुध्द का धम्म / डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका धम्म यान / हमारा बुद्ध मिशन"* - इस ओर बढते है, तब हमें हमारे कृतीशीलता को बोध हो जाता है. हमारी प्रतिबद्धता / निष्ठा / सत्यता / प्रामाणिकता इस पर भी प्रश्न चिन्ह खडे होते है. *"भिक्खु संघ"* भी इस से अछुता नहीं है. *"प्रशिक्षित भिक्खु"* यह भारत की कमी रही है. थायलंड तथा श्रीलंका इस देश में स्थित, *"बुध्द भिक्खु विद्यापीठ"* में मेरी भेट हुयी है. श्रीलंका सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय ने, मुझे अक्तुबर / नवंबर २०१४ साल में *"बुद्ध भिक्खु विद्यापीठ अनुराधापुर"* में, *"धम्म परिषद"* के लिये निमंत्रित किया था. कोलोंबो एयर पोर्ट पर, *"श्रीलंका सेना / विमानतल अधिकारी"* वर्ग ने, मेरा स्वागत भी किया था. मैं श्रीलंका सरकार का *"व्ही.व्ही.आय.पी."* रहा था. अत: उन देशों की संस्कृती तथा प्रशिक्षित बुद्ध भिक्खु को करिबी से समझा है. तिब्बती संस्कृती / बुध्द शासन लोकशाही व्यवस्था को, *"गोठणगाव कॅम्प"* के मेरे प्रवास में, मैने महसुस किया है. वैसे तो प्राचिन बुद्ध धरोहर / आधुनिक बुध्द धरोहर / निसर्ग रम्य स्थल / ऐतिहासिक स्थल / जंगल / नदी - झरना आदी जगह को भेट करना, मेरी खास हॉबी रही है. कभी मैं उन जगहों पर, *"मेरे परिवार के साथ / तो कभी कभी मेरे मित्रों के साथ,"* बहुत बार भेट दी है. वे सभी यादें, मैं आज भी याद करता हुं. वे मेरे मन में बसी है. *वे सभी यादें मेरी प्रेरणा रहीं है.* जो मुझे लिखाण करने को नया विषय देती है.
बुध्द का इतिहास *ताम्हणकर बुध्द*- (इ. पु. २४ - २३ शती) इस पहले बुद्ध से जुडा हुआ है. और पहले बुद्ध का संबंध *"*सिंधु घाटी सभ्यता"* से जुडा है. सिंधु घाटी सभ्यता में पाये गये गोलाकार छ: आरेवाला धोलविरा स्तुप / तरणताल से जुडा हुआ दुसरा बुध्द स्तुप / कप पर बनी हुयी सिंह की मुद्रा / वृषभ / स्वस्तिक यह सभी प्राचिन चिन्ह, अठ्ठावीस वे *"शाक्यमुनी बुध्द"* काल में पंजाब के संगोल / वैशाली का तरणताल और बौध्द स्तुप / अमरावती, आंध्र में मिला वृषभ / बुध्द के पदमुद्रा में स्वस्तिक / सम्राट अशोक मौर्य की सिंह मुद्रा, यह सभी समान दिखाई देते है. चवथे बुद्ध - *दिपांकर बुद्ध* इन्होने जमिन पर लेटे हुये *सुमेध* धनाढ्य दानी व्यापारी को देखकर, *"शाक्यमुनी बुध्द"* की पहिली भविष्यवाणी की है. शाक्यमुनी बुध्द का असली नाम, *"सिध्दार्थ नहीं बल्की सुकिती"* था. वही डॉ बाबासाहेब आंबेडकर लिखित *"दि बुद्ध एंड हिज धम्मा"* इस ग्रंथ में, *"असित ऋषी"* द्वारा बुद्ध के दुसरा भविष्य कथन का, हमे जिक्र दिखाई देता है. प्राचिन भारत शिलालेख में, *ककुसंघ बुद्ध* (इ. पु. ९ - ८ वी शती) / *कोणागमण बुध्द* (इ. पु. ८ - ७ वी शती) /*कस्सापा बुद्ध* (इ. पु. ७ वी शती) का संदर्भ दिखाई देता है. इन *"तिन बुध्द"* पर विवेचन, मैं फिर कभी बताऊंगा. लुंबीनी वन के महामाया मंदिर खुदाई में, जमिन के निचे *"इट का मंदिर"*:मिला. और उसके भी निचे *"लकडी का मंडप"* मिला. और उसके बिचोबिच *"शाल वृक्ष की जड"* मिली. अमेरिका में उस *"जड की कार्बन डेटींग"* की गयी. तब वह कालखंड इ. पु. ६०० बताया गया. और *शाक्यमुनी बुध्द का जन्म इ. पु. ६२३* बताया गया. अत: इ. पु. ५६३ काल संदर्भ में, अब हमे दुरुस्ती करे या नहीं ? यह भी प्रश्न है. अत: पहले बुध्द का इतिहास, यह सिंधु घाटी सभ्यता से जुडा हुआ है, यह सप्रमाण दिखाई देता हैं. शाक्यमुनी बुध्द के ५००० साल बाद *"मैत्रेय बुद्ध"* का भी संदर्भ मिलता है. वही *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनका १४ अक्तुबर १९५६ का *"धम्म दीक्षा समारोह"* यह *"अशोका विजया दशमी"* दिन की याद दिलाता है. अर्थात इन सभी इतिहास में, इसा पुर्व २५०० वर्ष का प्राचिन कालखंड, हमें *"बौध्दमय भारत"* की बडे क्रांती की ओर इशारा करता है.
सन १९९० का कालखंड वह कालखंड. आंबेडकरी युवा टीम *विमलसुर्य चिमणकर / डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य' / अशोक मेंढे / संघरक्षीत सुखदेवे* इन्होने इकठ्ठा साथ आकर, *"पिंपल्स डेमोक्रॅटिक मुव्हमेंट"* (PDM) की स्थापना की. और मागासवर्गीय आरक्षण संदर्भ में, हमारी एक्टिव्हिटीज चलती थी. *विमलसुर्य चिमणकर* इनके साथ मतभेद होने पर, वे PDM के बाहर निकल गये. और "भारतीय सामाजिक लोकशाही संघटन" (भासालोस) की स्थापना की. फिर वह संघटन को उन्होंने बरखास्त कर, *"समता सैनिक दल"* की ओर वे चल पडे. वही हमारी PDM की माध्यम से ४ अक्तुबर १९९२ में, *"धर्मांतर समारोह"* का आयोजन, *"धनवटे रंगमंदिर"* में किया गया. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर का धम्म मिशन १४ अक्तुबर १९५६ के बाद थमसा गया था. अत: वह क्रियाशील करने के लिये, हम युवा वर्ग का एक प्रयास था. तब मेरे पास *"राजदुत मोटर सायकल"* रही थी. मेरे उस मोटर सायकल पर बैठकर, हम त्रिपल सिट जाते थे. हम लोग धम्म दीक्षा लेनेवालों की खोज करते थे. सन १९९२ के उस धर्मांतर समारोह में, संस्कृत पंडित *"प्रा. डॉ. रूपा कुलकर्णी"* इन्होने तथा ४०० हिंदु लोगों ने *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा ली. उसके बाद ९ दिसंबर १९९२ में *"यशवंत स्टेडियम"* में, *"आंतरराष्ट्रीय बौध्द परिषद"* का आयोजन किया गया. तब ओबीसी नेता *प्रा. प्रभाकर पावडे* इन्होने *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा की थी. २३ अक्तुबर १९९३ में दिल्ली के आंबेडकरी साहित्यिक *मोहनदास नैमिसराय* सहीत ३०० हिंदु लोगो ने, धनवटे रंगमंदिर में हुये धर्मांतर समारोह में,*"बौध्द धम्म"* की दीक्षा ली. वही धम्म दीक्षा का हमारा मिशन महान कवि *सुरेश भट* इन्हे भी, *आर्य नागार्जुन भंदंत नागार्जुन सुरेई ससाई* के हाथो, *"बुद्ध धम्म"* की दीक्षा लेने इंदोरा बुद्ध विहार आना पडा. उसी समय बंगलोर के नामांकित ओबीसी नेता / दलित व्हाईस इस के संपादक *व्ही. टी. राजशेखर* इन्हे *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा लेने के लिये, मेरा पत्र व्यवहार होता रहा था. उन्होंने बिहार प्रदेश - पटना में हुये *"धर्मांतर समारोह"* में, १००० लोगों के साथ *"बौध्द धम्म"* की दीक्षा ली. सदर समारोह में *भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई* जी इनके साथ, उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ती *भाऊ वहाणे* और मैं स्वयं (डॉ. जीवने) प्रमुख अतिथी के रुप में उपस्थित थे. हमारा बौध्द मिशन बहुत जोरों पर रहा था. उसके बाद *भंदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई जी* इनके आग्रह पर, सन १९९५ से वह *दीक्षा समारोह"* दीक्षाभूमी पर हौना प्रारंभ हुआ. वही मै तथा संघरक्षीत सुखदेवे इनके अशोक मेंढे के साथ कुछ कारणवश बडे मतभेद हुयें. और मैने *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* (CRPC) इस राष्ट्रिय संंघटन की स्थापना की. और मेरा पहिला आंदोलन यह *"महाराष्ट्र विद्यापीठ कानुन के आरक्षण"* संदर्भ रहा था. तब *नितीन राऊत* यह विधायक हुये थे. उनको इस विषय पर विधान सभा में आवाज उठाने की बात कही थी. नये विद्यापीठ कानुन में, अनुसुचित जाती / अनुसुचित जमाती के आरक्षण मर्यादा बढाई गयी. यह CRPC संघटन की पहिली जीत थी.
सन १९९६ - ९७ का कालखंड. मेरे दो फास्ट फ्रेंड *डॉ दिपांकर भगत / संघरक्षीत सुखदेवे* इनको *अशोक कोल्हटकर* इसने, उसके बहन के लिये, शादी का रिस्ता देखने की बातें कही थी. अशोक के पिताजी रेल्वे में *"वर्ग ४"* के कर्मचारी रहे थे. उन दो मित्रोने मेरी शादी की बातें छेडी थी. एक माह तक मेरी ओर से, उन मित्रों को कुछ जबाब नहीं दिया. क्यौं की, मैं शादी के विषय में सिरीयस नहीं था. वही मैं कुछ लोगों के शब्द को सन्मान देता था / रहा हुं. वे दो मित्र मेरे घर आये. मेरे परिवार वालों से बातें कहकर, मेरे शादी की बातें आगे बढी. और शादी भी हो गयी. परंतु मेरे पत्नी के परिवार लोगों से, मेरी कभी बनी ही नहीं है. क्यौं कि, मेरा *"खुला स्वभाव / स्पष्ट बोलना / स्वाभिमानी होना / पैर चाटुकता नहीं / जी हुजुरी नहीं / कमिनापण नहीं / धोका देना नही"* आदि इस कारणवश, मेरे ससुराल लोगों से दुरीया बढती ही गयी. और *"मेरे इस स्वभाव के कारण, मैने बहुत कुछ खोया भी है."* आज वे *"दोनो भी फास्ट फ्रेंड इस दुनिया में नहीं"* है. उसके बाद मेरी संंघटन *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल / जीवक वेल्फेअर सोसायटी / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर"* इनके संयुक्त तत्वाधान में, दिनांक ३ - ४ जुन २००६ में, *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन किया गया. *संजय जीवने / शंकरराव ढेंगरे / डी. बी. वानकर / प्रा. जयंत जांभुळकर* इनके साथ, डोनेशन मिलने के लिये हम डॉक्टर / इंजीनियर / विद्युत आदी संघटना के नेताओं से मिले. उन्होंने मदत करने का वादा किया. परंतु हाथ में कुछ भी राशी नहीं मिली. तब हमारी मिटिंग में *"जागतिक बौद्ध परिषद कैसे ले ?"* यह प्रश्न सामने आया. उसी दरम्यान मेरे पत्नी को जन्मदिन की गिफ्ट - *"खेती का सौदा"* किया गया था. परंतु मैने *"खेती का सौदा रद्द"* करते हुये, वह पैसा धम्म परिषद में लगाया. पैसों का व्यवहार मेरी पत्नी *वंदना* देख रही थी. तब मैने उसके आखों में आसुं देखे थे. वह जागतिक बौद्ध परिषद बहुत सफल रही. उसके बाद सन २०१३ में पुनश्च *"जागतिक बौद्ध परिषद"* का आयोजन किया गया. तब कामठी रोड पर एक *"फ्लैट का सौदा"* चल रह था. परंतु कुछ कारणवश वह सौदा बना नहीं. और वह पैसा मैने *"जागतिक बौद्ध परिषद"* में लगा दिया. तायवान से *"बौध्द धम्म ग्रंथ"* मोफत आते थे. परंतु वह छुडाने के लिये / कार्टिंग खर्च तब ३० - ४० हजार आया करता था. ३ - ४ बार वह किताबे बुलायी गयी. *दो लाख* के आसपास खर्च आया. परंतु मैने किसी से भी एक रुपया नहीं लिया. *"थायलंड से बुध्द मुर्ती वाटप"* का काम, तब मैनै किसी गजभिये (महाठग गजभिये नही) के साथ शुरु किया था. परंतु उस समय भी किसी बौध्द विहार से, एक रुपया नहीं लिया. *पाचपावली / वैशाली नगर / उंटखाना / सेमीनरी हिल्स* आदी बहुत से *बुद्ध विहारों"* का उल्लेख किया जा सकता है. चंद्रपूर की *दीक्षाभूमी*/ पांंढरकवडा समान बहुत से शहरो में भी, बुद्ध मुर्ती का वाटप किया गया. परंतु यह सभी काम करने के बाद भी, *फुकट लोग* बदनामी करते हुये नज़र आये. अत: मन को बहुत वेदना होती थी.
सन २०१४ में भी मेरी संघटन की ओर से *"जागतिक बौद्ध परिषद"* सफल आयोजन किया गया था. उसके बाद "दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया" के *चंद्रबोधी पाटील / शंकरराव ढेंगरे* इन्होने सन २०१५ में, एक बौध्द परिषद लेने का प्रस्ताव रखा. और *महाठग नितिन गजभिये* को साथ में लेने की बात, चंद्रबोधी पाटील इन्होने की थी. महाठग नितिन गजभिये इसके पहले मेरे कार्यालय, मदत मांगने के लिये आया था. तथा उसके एरीया में *"मेरा दवाखाना"* होने से, महाठग नितिन गजभिये की टपोरेगिरी से, मैं बहुत अच्छा परिचीत था. और *"मैं किसी को सहजता से स्वीकृती भी नहीं देता."* परंतु चंद्रबोधी पाटील के आग्रह के खातीर, उसे मैने मेरे मिशन में जोड दिया. मैने *"जागतिक बौद्ध परिषद / जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५"* का प्लॉन तयार किया. मेरे घर पर हर हप्ते ३० - ४० महिला वर्ग की मिटिंग होती थी. हमारे मिटिंग में, *महाठग नितिन गजभिये की महाठगी"* के संदर्भ में, मैने तो चंद्रबोधी पाटील को आगाह किया था. सदर *"जागतिक बौद्ध परिषद"* के लिये, श्रीलंका के राष्ट्रपती *मैत्रीपाला सिरिसेना* इन्होने आने की स्वीकृती दी थी. मेरी संघटन *"जीवक वेल्फेअर सोसायटी"* की ओर से, मैत्रीपाला सिरीसेना को *"डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार २०१५"* से सन्मानित किया जानेवाला था. तथा *"जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५"* के लिये, थायलंड देश की राजकुमारी *मॉम ल्युआंग राजदरबारी जयांकुरा* भी उदघाटक थी. श्रीलंका के राष्ट्रपती मैत्रीपाला सिरीसेना इनका कार्यक्रम भी हमें मिला. परंतु भारत सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री ने, *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* के कारण, पोलिस सुरक्षा देने में असमर्थता जाहिर की थी. अत: श्रीलंका के राष्ट्रपती का कार्यक्रम रद्द हुआ. अंत में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र के कुलगुरू / मेरे मित्र *डॉ आर एस कुरिल / डॉ. सी. डी. नायक* इनके उपस्थिती में, *"जागतिक बौद्ध परिषद २०१५"* का संपन्न किया गया. वही *"जागतिक बौद्ध महिला परिषद २०१५"* के लिये, थायलंड देश की राजकुमारी *मॉम ल्युआंग राजदरबारी जयांकुरा* नागपुर आयी भी थी. परंतु *महाठग नितिन गजभिये* इसने उसे कार्यक्रम स्थल पर लाया ही नहीं. अंत में जर्मनी की मेरी मित्र *मिस उर्सुला गोईटिंगर* इनके हाथो तथा *"श्रीलंका / व्हिएतनाम"* कुछ मान्यवरों वर्ग के हाथो, वह महिला परिषद बहुत सफल की गयी. जागतिक महिला परिषद की अध्यक्षता *वंदना मि. जीवने* इन्होने की थी. इस के साथ ही *"कपिलवस्तु बुद्ध अस्थीधातु"* के कस्टोडियन *ब़डुला विराट वर्दने* तथा श्रीलंका के कुछ मान्यवर भंते जी का *"नागपुर एयर पोर्ट"* पर आगमन हुआ. उन सभी मान्यवरों का एयर पोर्ट पर स्वागत महाराष्ट्र के केद्रिय मंत्री *"राजकुमार बडोले / सांसद रामदास आठवले / माजी मंत्री एड. सुलेखा कुंभारे / चंद्रबोधी पाटील / डॉ. मिलिन्द पं. जीवने 'शाक्य' / शंकरराव ढेंगरे* इन्होने किया. सदर अस्थीधातु रथ बनाने के लिये, *मैने ही रू. ४० हजार* तथा अलग से *"चार लाख रुपये"* शंकरराव ढेंगरे इनके माध्यम से, *महाठग नितिन गजभिये* इसे दिये थे. परंतु मेरे वह पैसै भी नहीं लौटाये. दान में आयी हुयी *"लाखों की राशी"* लेकरं वो चले गया. सदर परिषद में बुद्ध मुव्ही के अभिनेता *गगन मलिक* भी नागपुर आया हुआ था. मैने ही गगन मलिक को एयर पोर्ट से रिसिव्ह किया. और मेरी कार से *"रवी भवन"* छोडा था. *"बुध्दा मुव्ही प्रिमियर पत्र परिषद"* के बाद, गगन मलिक मेरे घर भी आया. महिला वर्ग ने मेरे घर गगन मलिक का स्वागत किया. फिर मेरे घर, सभी लोगों ने भोजन का आस्वाद भी लिया. बुध्द अस्थीधातु यह *"बेझशबाग मैदान"* में दर्शनार्थ रखी गयी थी. उस कार्यक्रम दरम्यान मैने गगन मलिक को, *महाठग नितिन गजभिये* इस से दुर रहने की सलाह दी थी. परंतु *चंद्रबोधी पाटील तथा गगन मलिक* इनके आखों पर, महाठग नितिन गजभिये की पट्टी बंधी हुयी थी. जब वह पट्टी हट गयी थी, तब वे भी पुर्णतः ठगी हो चुके थे. मेरा कहना समज चुके थे.
मेरी संघटन *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* के माध्यम से, बडेगाव (म.रा.) से डोंगरगड (छत्तीसगड) और *दीक्षाभूमी नागपुर* समापन *"विश्व शांती रैली २००७"* निकाली गयी थी. उस रैली का स्वागत हर जगह होता रहा. डोंगरगड में वहां के विधायक ने रैली का स्वागत किया. दुसरे दिन *आर्य नागार्जुन भंदंत सुरई ससाई* जी इनके उपस्थिती में, शहर से बडी रैली निकाली गयी. उस रैली का समापन दीक्षाभूमी नागपुर में हुआ. सन २०१९ में नागपुर - आंभोरा बौध्द क्षेत्र में *"विश्व शांती रैली"* निकाली गयी. सन २०२० में नागपुर - बडेगाव की ओर *"विश्व शांती रैली"* निकाली गयी. उन सभी रैली का नेतृत्व करने का अवसर मुझे मिला. सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल की माध्यम से, सन २०१८ में *"पहिली आंबेडकरी विचारविद परिषद"* का आयोजन, मेरी ही अध्यक्षता में *रालेगाव"* यवतमाळ में हुआ था. सदर परिषद में *राजरत्न आंबेडकर* भी मौजुद था. परिषद का आयोजन *मिलिंद धनवीज* इसने किया था. *"दुसरी आंबेडकरी विचारविद परिषद २०२०"* में नागपुर हुयी थी. अध्यक्षता भारतीय रेल्वे के एक्स सचिव /:मेरे मित्र / समता सैनिक दल के *इंजी. विजय मेश्राम* इन्होने / उदघाटन नयी दिल्ली के मेरे परम मित्र / विचारविद / भारतीय रेल्वे के *डॉ अरविंद आलोक* इन्होने तथा स्वागताध्यक्ष मैं स्वयं रहा था. वही सीआरपीसी महिला वर्ग ने *"पहिली आंबेडकरी विचारविद महिला परिषद २०२०"* का आयोजन लासलगाव की *"प्रा. डॉ. प्रतिभा जाधव* इनकी अध्यक्षता में किया था. स्वागताध्यक्ष *वंदना मि. जीवने* थी. वही परिषद का संचालन *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने किया था. मेरे संघटन के इन तमाम मिशन में (CRPC) सेल के *सुर्यभान शेंडे / प्रा. डॉ. टी. जी. गेडाम / वंदना मि. जीवने / दिपाली शंभरकर / डॉ. किरण मेश्राम / डॉ राजेश नंदेश्वर / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / अधिर बागडे / इंजी. गौतम हेंदरे / सुरेखा खंडारे / प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे* आदी पदाधिकारी वर्ग का बडा योगदान रहा है. *HWPL H.Q. Korea* इस आंतरराष्ट्रीय संघटन तथा *CRPC (India)* इनके संयुक्त तत्वाधान में, कोरोना संक्रमण काल में, ऑन लाईन *"मिनी विश्व शांती परिषद २०२२"* का आयोजन किया गया था. सदर परिषद का उदघाटन HWPL के अध्यक्ष *मैन ही ली* इन्होने किया था. परिषद की अध्यक्षता *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्होने की. महु विद्यापीठ के कुलगुरू *डॉ. आर. एस. कुरील* / भुतान देश के लामा *खेनपो किनलो ग्यालस्तन* / विचारविद *डॉ. अरविंद आलोक* यह अतिथी थे. सदर परिषद में महु के तत्कालीन कुलगुरू / मेरे मित्र *डॉ. सी. डी. नायक* / इंदिरा गांधी ओपन विद्यापीठ की प्र-कुलगुरु / मेरी मित्र *डॉ. सुषमा यादव* / श्रीलंका देश की प्राध्यापक *मिस रंजनी मलावी पथिराना* / शिलांग के *प्रा. डॉ. एक्स. पी. माओ* / आय. ए. एस. अधिकारी *श्याम तागडे* यह मान्यवर प्रमुख वक्ता थे. अतिथी वर्ग का शब्द सुमनों से स्वागत *वंदना जीवने* इन्होने तथा आभार *डॉ. किरण मेश्राम* इन्होने माना था. परिषद का सफल संचालन HWPL की *दीक्षा रंजन / वांगजाम शालीनी चानु / एलन बारा* इन्होने किया था. वह शांती परिषद बहुत सफल रही थी.
सन २००६ में हुयी *"जागतिक बौद्ध परिषद"* सफलता का प्रभाव बहुत रहा था. अत: सन २००७ साल में *"विश्व हिंदू परिषद"* द्वारा आयोजित *"सर्व धर्म सभा"* इस राष्ट्रिय परिषद की अध्यक्षता करने का निमंत्रण, मुझे (डॉ. जीवने), विश्व हिंदु परिषद के *बाळकृष्ण नाईक* इनके द्वारा दिया गया था. सरसंघचालक *डॉ मोहन भागवत* इन्होने सदर परिषद का उदघाटन किया. विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष *प्रविण तोगडिया* कुछ कारणवश नहीं आ पाये. मेरै अध्यक्षीय भाषण में *"सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी इन्हे, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके बौद्धमय भारत इस महान संकल्पना की किसी ने भी उचित दखल नहीं ली. अगर भारत यह बौद्धमय हुआ होता तो, भारत में "धर्म संघर्ष / जाती संघर्ष" खत्म हुआ होता. अगर हमें भारत में समानता / एकात्मता लाना हो तो, मोहन भागवत जी आप को बुद्ध धम्म स्वीकार करना होगा. विश्व हिंदू परिषद का नाम बदलकर "विश्व बौध्द परिषद" यह नाम रखना होगा."* यह बातें कही थी. नागपुर के तमाम वर्तमान पत्र के फ्रंट पेज पर, वह *"फोटो सहीत न्युज"* आने पर, हमारे कुछ लोगो ने मुझे *"संघवादी"* होने का आरोप लगाया था. वैसे ही दुसरी घटना *"तिब्बत और गुरुजी"* इस किताब का विमोचन मेरी अध्यक्षता में, पत्रकार भवन सभागृह में हुआ था. सदर कार्यक्रम में प्रमुख अतिथी आरएसएस के *इंद्रेशकुमार* थे. मेरे अध्यक्षीय भाषण में, *"तिब्बत के संदर्भ में गुरुजी (गोलवलकर) का, क्या योगदान रहा है ? यह प्रश्न मैने लेखक को पुछा था. बाबासाहेब आंबेडकर इन्हे गद्दार कहनेवालों ने, आगे चलकर डॉ बाबासाहेब की बडे देशभक्त होने की, वाहवा भी की थी."* मेरे इस कथन के बाद, इंद्रेशकुमार जी डायस से निचे चले गये. हमें बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इनके सपनों का *"बौध्दमय भारत"* बनाना हो तो, *"सभी धर्म - जाती वर्ग से मैत्री बंधुता"* करनी होगी. बुध्द वचन हमें उस ओर इंगित करता है. वही *"संघवादी"* कहने के मानसिकता आरोपों सें, हम बचना होगा. तभी हम हमारेऐ मिशन ने सफलता पा सकते हैं.
सन १९७६ के बाद का कालखंड. हम लोग मेडीकोज छात्र थे. श्री आयुवेर्दिक कॉलेज में,*डॉ बाबासाहेब आंबेडकर आयुर्वेदिक मेडिकोज असोसिएशन* की, हम लोगों ने स्थापना की थी. दीक्षाभूमी पर *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* के उपलक्ष में, *"मोफत रोगनिदान शिबिर"* लेने का निर्णय लिया गया. *डॉ. हरिश भिवगडे / डॉ. के. एस. उमरे / डॉ मिलिन्द जीवने / डॉ. इंदिरा सोमकुवर / डॉ. माया कांबळे / डॉ. मंगला बनसोड* आदी साथी उस समय कार्यरत थे. *संत चोखामेळा वस्तीगृह"* इस जगह हमारा एकमेव कॅम्प रहा करता था. मेडिकल / मेयो हॉस्पिटल एवं कॉलेज का कॅम्प यह अन्नाभाऊ साठे चौक ते एग्रीकलवचरल होस्टल रोड पर रहता था. महाराष्ट्र शासन के *"आरोग्य विभाग"* खामोश था. मैने उसकी शिकायत महाराष्ट्र शासन को की थी. मेरी वह शिकायत आरोग्य विभाग नागपूर आयी थी. मेरा बयाण तब लिया गया. अगले साल मेडिकल / मेयो / आरोग्य विभाग ने, *"माता कचेरी"* में आरोग्य शिबीर का बडा आयोजन किया था. उसके अगले साल *"मेडिकल / मेयो का कॅम्प"* यह भी चोखामेळा होस्टेल शिफ्ट हो गया. हम लोगों को एक सहपाठी मिल गया था. उसके बाद मेरी संंघटन *सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल / जीवक वेल्फेअर सोसायटी / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर "* द्वारा मैने और एक अलग *"मोफत रोगनिदान शिबिर "* का आयोजन शुरु किया. उसके अगले साल *डेंटल कॉलेज के डॉक्टर"* मुझे डेंटल शिबिर की जगह मिलाकर देने की बात कही. डेंटल कॉलेज के कॅम्प हेतु मैने कुछ मदत की. और *"पहिले डेंटल कॉलेज मेडिकल कॅम्प"* का उदघाटन मेरे ही हाथो हुआ. उसके बाद *"होमिओपॅथी / डॉक्टर्स असोसिएशन"* इन्होने भी मेडिकल कॅम्प का आयोजन सुरू किया. हमने लगाया वह छोटासा वृक्ष, आज *"फैला हुआ देखकर"* हमें बडी खुशी होती है.
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर राजनीति में आज से ३५ - ४० साल पहले *"खोरिपा / गारिपा"* का बोलबाला था. *प्रकाश आंबेडकर* इन्होने वकालत डिग्री लेने के बाद, *डॉ आनंद जीवने* भाऊ इनकी अध्यक्षता में, *धनवटे रंगमंदिर"* में *"एड. प्रकाश आंबेडकर इनका परिचय / सत्कार कार्यक्रम"* का आयोजन किया गया था. प्रकाश आंबेडकर इनका सत्कार तब मैने किया था. वही आज के १० - १५ साल पहले प्रकाश आंबेडकर *"रवि भवन"* की मेरी मुलाखत कभी भुलेंगे नहीं. हमने प्रकाश आंबेडकर इनसे बहुत अपेक्षा की थी. परंतु उनकी *राजनीति ???* मुझे धम्म मिशन के लिये *"थायलंड / मलेशिया / सिंगापूर / श्रीलंका / नेपाल / व्हिएतनाम / दक्षिण कोरिया"* इन देशों में जाने का अवसर आया. कुछ कारणवश *"चायना / पाकिस्तान"* का प्रवास रद्द करना पडा. अगले साल २०२५ में *"जापान / हांगकांग"* देश जाने की शक्यता है. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर साहाब द्वारा निर्मित *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया"*(TBSIi) इस धार्मिक संघटन की *"स्कीम"* लिखने की जबाबदारी *"हरिश मजगौरी / डॉ. स. वि. रामटेके"* इनको दी गयी थी. हरिश मजगौरी यह मेरे मम्मी के पुफा के लडके / आत्या भाई थे. अंग्रेज शासन काल में, मजगौरी साहाब रेल्वे में अधिकारी थे. रिटायर्ड के बाद उन्होंने *"भारत सरकार आयोग"* में काम किया. मजगौरी साहाब महिने में दो - तिन बार मेरे घर आते थे. कभी कभी डॉ स. वि. रामटेके भी मेरे घर आते थे. मेरे घर में ही *"TBSI"* की आज कार्यरत स्कीम लिखी गयी. *मीराताई आंबेडकर / एड. प्रकाश आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / अशोक आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर* इन्हे तो वह इतिहास भी मालुम नहीं होगा. तब मुझे TBSI का सदस्य भी बनाया गया था. *चंद्रबोधी पाटील* इनकी भेट मजगौरी साहाब से, मैने ही कराकर दी थी. आंबेडकरी लेखक *"एड. भगवानदास / डॉ. पी. जी. ज्योतिकर साहाब"* भी मेरे घर आये थे. आंबेडकरी जीवनी लेखक *एल. आर. बाली* साहाब से भी मेरे संबंध थे. TBSI द्वारा बुलडाणा में आयोजित *"धम्म परिषद“* के लिये *"मुझे और दिपाली शंभरकर"* इन्हे अतिथी बुलाया गया था. गेस्ट हाऊस में *"अशोक आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर"* भी मौजुद थे. हमारे मुलाखत में राजरत्न आंबेडकर को मैने, TBSI के एकीकरण प्लॉन को बताया था. *अशोक आंबेडकर* इन्हे मेरी वह संकल्पना बहुत पसंद आयी. मैने *राजरत्न आंबेडकर* को नागपुर मिलने को कहा. *चंद्रबोधी पाटील* भी भोपाल से नागपुर शिफ्ट हुये है. ट्रस्टी चेअरमन *डॉ. पी. जी. ज्योतिकर* साहाब से, मेरे अच्छे संबंध थे. परंतु *राजरत्न आंबेडकर* यह केवल नोटा छापने में व्यस्त है. TBSI विकास से उसका कोई लेना देना नहीं. *"आज TBSI इस संघटन का कोई भी संविधानिक पदाधिकारी नहीं है."* उन का लक्ष शासन तिजोरी में जमा *"१४ करोड राशी"* पर टीका है.
दिनांक ३ - ५ फरवरी २०१८ को, मुझे *"विश्व शांती अमरावती बुध्दिस्ट हेरीटेज फेस्टीवल"* के लिये, आंध्र प्रदेश सरकार का निमंत्रण था. *चंद्राबाबू नायडू* तब मुख्यमंत्री थे. आज भी है. उन्होंने १०० भंते को लाने की जिम्मेदारी मुझे दी थी. इसलिए उनके लिये तिन बसेस / खाना / रहने की व्यवस्था थी. रास्तों पर बडे बडे होर्डिंग्ज लगे थे. वहां देशी - विदेशी मान्यवरों के साथ, मेरी भी फोटो थी. बुध्द धम्म मिशन के कारण मेरे बहुत से आंतरराष्ट्रीय मान्यवरों से संबंध आये है. *परम पावन दलाई लामा / परम पावन ड्रायकंग कैबगान चेटसंग / पर पावन बुध्द मैत्रेय (अमेरिका) / परम पावन १७ वे कर्माप्पा त्रिनेले थाये दोरजे / व्हिएतनाम के थिंक नैट हैन / कोरिया की मदर पार्क चुंग सु / थायलंड की मदर डॉ. बॅंकेट सित्थिपोल / थायलंड की मदर धम्मानंदा / महाबोधी सोसायटी ऑफ श्रीलंका के बनागल उपतिस्स नायका महाथेरो / महाबोधी सोसायटी ऑफ लद्दाख के भदंत संघसेन / बोम्डिला त्सोना रिंपोचे* आदी बहुत सारे मान्यवर है. इनमें से बहुत से मान्यवरों को मेरी संघटन *"जीवक वेल्फेअर सोसायटी / अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर"* की ओर से *"शाक्यमुनी बुध्दा आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार / डॉ आंबेडकर आंतरराष्ट्रीय पुरस्कार"* देकरं सन्मानित करने का, मुझे सु-अवसर मिला है. मेरे इस मिशन में *सुर्यभान शेंडे / डॉ. मनिषा घोष / डॉ. भारती लांजेवार / डॉ. राजेश नंदेश्वर / सुरेखा खंडारे / इंजी. गौतम हेंदरे / इंजी. विजय बागडे / प्रा. नितीन तागडे / विजय भैसारे / अशोक सोनटक्के / रवी पाटील* इनके अलावा *करुणा रामटेके / एड. प्रज्ञा निकोसे / सीमा बोरकर / विजय निकोसे* समान कुछ नये साथी भी जुड गये है. *मैने बहुत कुछ लोगों को मेरी तरफ से मदत की है. उन्हे बडा करने का प्रयास किया है. सुख - दु:ख में साथ रहा हुं. सभी को न्याय देने का प्रयास भी किया."* पर हम सभी को खुश नहीं कर पाते है. कुछ लोगों के कुरापती कार्य करने के कारण, उन्हे संघटन के बाहर जाना पडा. तो कुछ पदाधिकारी वर्ग अक्रियाशील होने से, उनका नाम का उल्लेख नहीं किया गया. *"कुरापती कार्य"* करनेवालों की मानसिकता मुजोर / हेकेखोर / कृतज्ञता अभाव / धोका करनेवाली दिखाई देती है. उनमे *"सत्य बोलने की / सत्य को सामोरा जाने की"* हिम्मत भी नहीं होती.*वे लोग झुट का सहारा लेते है.* अत: वे लोग कभी इतिहास नहीं बना पाते. इतिहास से बाहर होते है. *"अत: उन प्रवृत्ती (?) लोगों से दुर होना ही उत्तम मार्ग है."* मेरे जीवन में बहुत कुछ खट्टे - मिठे - तिखे अनुभव रहे है. उन सभी *"यादों की दास्तान"* लिखने की बहुत ईच्छा है. जय भीम !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर, दिनांक १८ अक्तुबर २०२४
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