Monday, 21 October 2024

 👌 *अनिच्चा वत संखारा !*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       मो. न. ९३७०९८४१३८ 


जब किसी महान हस्ती

या नामचिन व्यक्ति का

जीवन चरित्र पढ़ता हुं

सुनते भी रहता हुं

जीवन के अंतिम क्षण में

उनका वह संघर्ष

मुझे वेदना कर जाता है...

मैं परेशान होता हुं

क्या यह इंसान

इतना भी स्वार्थी होता है

पहचान दुरी बन जाती है

कभी एक जमाने में

बहुत करिब रहनेवाले

बहुत दुर चले जाते है...

तब मैं देखा करता हुं

शरीर का लाश बन जाना

अंतिम संस्कार पर भी

भागते नज़र आते है 

पैसा कौन खर्च करेगा...

तब बुध्द का वचन 

मुझे याद कर जाता है

अनिच्चा वत संखारा

उप्पादवय धम्मिनो |

उप्पज्जित्वा निरुज्झन्ति

तेसं वुपसमो सुखो ||

अर्थात सभी संस्कार 

यह विनाशकारी है

अत: तुम्हे अप्रमादी रहकर

स्वयं के मुक्ति का प्रयास करे...

ये निसर्ग सुंदर माया में

वह भयाण कटु सत्य

ना किसी के जीवन आयें

मनुष्य जीव स्वार्थ में

ना कोई इतना डुब पायें....


*******************

नागपुर, दिनांक १९/१०/२०२४

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