👌 *बुद्ध की छाया में ...!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
मो. न. ९३७०९८४१३८
बुध्द की छाया में, भीम का उजाला मिला
हे फिर क्या डरना, ये बेज़ान तुफानों से ही....
हम ने तो दर्द झेला है, अपने वालों से ही
फिर उन परायों की, शिकायत क्या करे
अकसर पराये लोग, यह तो परायें होते है
हमें यह जिना है, हमारे स्वयं के लिये ही...
जो मुसिबतो में साथ दे, वही सही मित्र है
जिंदगी में ऐसे तो, ढ़ेर सारे मित्र होते ही है
ये घने कोहरे अंधेरो से, युं ही डरना क्या है
चांद का उजाला भी, काफी है राह के लिये...
हमें युं चलना है, यह बुध्द भीम मिशन पर
वही तो केवल हमारी, असली मंझ़िल रही है
यह साथ चलता रहा, और कारवां बढ़ता रहा
हम तो पहुंच गये है, उस सफल मंझ़िल पर...
हे बुध्द तो हमें कह गये है, अत्त दिपो भव
हमारा प्रकाश तो, हमें ही स्वयं तो बनना है
फिर क्यौ अपेक्षा करे, उन पराये सहारों की
अगर मुकद्दर में दम है, तो हम मौर्य संतान है...
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नागपुर, दिनांक १२ दिसंषर २०२४
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