🔥 *सन १८५७ का उठाव से लेकरं १९४७ की भारत आजादी : गांधी - नेहरु के कांग्रेस से लेकर सुभाषचंद्र बोस की आझाद हिंद फौज और द्वितीय महायुध्द !!!*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु मप्र
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
भारत के *"इतिहास रचयिता"* इनके बुध्दी की कभी कभी दया आ जाती है. इतिहास कभी प्रामाणिकता से लिखा ही नहीं गया है...!!! इतिहास प्रेमी होने के कारण मै प्राचिन धरोतल / किला आदी जगह को भेट देता हुं. उसी उद्देश में - *"झाशी का किला / ग्वालियर का किला / फतेहपुर शिक्री का किला / आग्रा का लाल किला / दिल्ली का किला / नालंदा प्राचिन विद्यापीठ / मनसर प्राचिन बौध्द विद्यापीठ / पवनी"* आदी बहुत से जगहों को, मेरी भेट हुयी है. कभी कभी मेरे साथ मेरे मित्र भी रहे है. *"सन १८५७ का उठाव"* का संदर्भ झाशी / ग्वालियर से भी जुडा है. और सन १८५७ का उठाव को, *"आजादी की पहली दास्तान"* से जोडनेवाले, बडे महामुर्ख *"इतिहास विचारविदों"* के बारें हम क्या कहे ? *"ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी / ब्रिटिश साम्राज्यवाद सेना"* की *"बैरकपुर छावणी"* (बंगाल) के सैनिकी विद्रोह का जनक, *मंगल पांडे* (?) इस ब्राह्मण की महिमा मंडीत की जाती है. परंतु ३१ मई १८५७ में "ब्रिटिश सैनिकों के विद्रोह" की पटकथा लिखनेवाला, *"मुसहार"* (भंगी) जाती के *मातादिन भंगी* को भुला दिया जाता है. जब मातादिन को प्यास लगी थी, तब ब्राह्मण जाती के *मंगल पांडे* ने, पाणी पिलाने को मना किया था. मातादिन भंगी धार्मिक / सामाजिक उत्पिडन का शिकार हुआ. तब *मातादिन भंगी* ने मंगल पांडे को दो टुक जबाब दिया था, *"पाणी पिलाने से मना करता है, यह कैसा है तुम्हारा धर्म ? गाय - सुवर के चमडों के कारतुसों को मुंह से खोलने से, क्या तुम्हारा धर्म भ्रष्ट नहीं होता ?"* और ब्रिटिश सेना में विद्रोह खडा हो गया. *"सन १८५७ सैनिकी विद्रोह का नायक तो मातादिन भंगी है."* साथ ही मातादिन भंगी / उदयसिंग चमार / गोविंद चमार / भोलाराम चमार / बटुकलाल चमार / राजु चमार आदी बहुत से *"महार - मांग - चमार"* फाशी पर चढ गये. झाशी की राणी *लक्ष्मी* ने, ग्वालियर में स्वयं को आग में समर्पित कर, *"आत्महत्या"* की थी. मर्दानी लढनेवाली कोरी मागासवर्गीय समाज की *झलकारी* रणांगना रही थी. झलकारी को साथ देनेवाला तोपची मुस्लिम समाज का *गुलाम गौस खान* था. और महिमा तो मंडीत की गयी बामणी धारक *मंगल पांडे* की / झाशी की राणी *लक्ष्मी* की !!! क्या बात है ? और सन १८५७ का उठाव *"असफल"* रहा था. इसे भी हमें समजना होगा. दुसरी ओर *१ जनवरी १८१८ का भीमा कोरेगाव युध्द"* वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी विरुद्ध पेशवा के बिच हुआ था. *"५०० महार सैनिकों"* ने, पुना बामणी पेशवा के *"२८००० सैनिकों"* को धुल चटाई थी. वह *"सैनिक प्रमाण १:५६"* रहा था. इसलिए *"तेरे समान छप्पन देखे"* यह कहावत बन गयी है.*"भीमा कोरेगाव स्तंभ"* वह याद हमें दिलाता है. *"सन १८१८ के इतिहास युद्ध"* को हम क्या कहे ??? *"महार रेजिमेंट"* का शौर्य इतिहास भी देखें..... वह तो छुपाया जाता है. *"गद्दारों का इतिहास"* रचा गया है. *"महार रेजिमेंट"* ने देश को दो जनरल (सेना प्रमुख) दिये है. *जनरल के. वी. कृष्णराव / जनरल के. सुंदरजी.*
सन १८५७ का उठाव यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के *"विद्रोही सिपाही"* / मुगल राज साम्राज्य / अवध विरासत के *"अपदस्थ राजा"* के बेटे / झाशी की *"अपदस्थ राणी लक्ष्मीबाई"* / ग्वालियर गुट / जोधपुर गुट / जगदीशपुर गुट / कोहरा - बांदा - विभिन्न राजा - नवाब - जमिनदार - चौधरी - तालुकदार - सरदार - प्रधान इनके विरोध में,... *"ग्रेट ब्रिटन ३५ आयरलॅंड / ईस्ट इंडिया कंपनी की २१ रियासते"* / बिकानेर - मारवाड - रामपुर - कपुरथला - नाभा - भोपाल रियासते / सिरोही - पटियाला - सिरमौर - अलवर - भरतपुर - बुंदी - जावरा - बिजापूर - अजमगढ - रीवा - केन्दुझाड - हैदराबाद - कश्मिर - नेपाल रियासत / और छोटे राज्यों के बिच वह उठाव रहा था. और उस १८५७ के उठाव में *मंगल पांडे / झाशी की राणी लक्ष्मीबाई / मुगल साम्राज्य* की कडी हार हुयी थी. वह उठाव *"असफल उठाव"* रहा था. *"सन १८५७"* का वह उठाव यह *"पहिला आजादी का उठाव"* बिलकुल ही नहीं था. वह *"सामाजिक / धार्मिक / स्व: सत्तावाद का राजेशाही संघर्ष "* रहा था. लेकिन *"बिनअकल इतिहासकारो"* के बुध्दी को जंग होने से, उनकी आँखें *"सही मूल्यांकन नहीं"* कर सकी. अत: हमे यह भारत इतिहास समजना बहुत जरुरी है.
*"सन १९४७ तक के उठाव"* को भी, *"संपुर्ण आजादी का उठाव"* कहना वह मुर्खता होगी. *"मुठ्ठीभर काले अंग्रेजो"* के हाथों सत्ता पाना, वह मकसद था. *"गोरे अंग्रेजो"* की सत्ता इस *"काले अंग्रेजो"* से काफी बेहतर रही है. भारत को *"१५ अगस्त १९४७"* दिन को संपूर्ण आजादी मिली या वह *"सत्ता हस्तांतरण"* था, यह संशोधन का एक विषय है. कांग्रेस स्वतंत्रता आंदोलन (?) समवेत भारत में, *"१६ विभिन्न आंदोलनों / घटनाओं "* का जिक्र होता रहा है. १८५७ - विद्रोह / १८८५ - भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना / १९०५ - स्वदेशी आंदोलन (वंग भंग) / १९०६ - मुस्लिम लिग की स्थापना / १९१३ - गदर आंदोलन / १९१६ - होम रुल आंदोलन / १९१७ - चंपारण सत्याग्रह / १९१७ - खेडा सत्याग्रह / १९१८ - अहमदाबाद मिल सत्याग्रह / १९१९ - रॉलेक्ट एक्ट सत्याग्रह / १९२० - खिलापत सत्याग्रह / *"सन १९४२ - अंग्रेज चले जाव आंदोलन"*... उपरोक्त सभी घटना - सत्याग्रह का संदर्भ ले तो, हमें *"द्वितीय महायुध्द"* का इतिहास को समजना भी बहुत जरुरी है. *"द्वितीय महायुध्द"* का कालखंड १ सितंबर १९३९ से २ सितंबर १९४५ रहा है. और *"दो साल बाद"* १५ अगस्त १९४७ को, भारत को आजादी मिली है. वैसे भारत को आजादी मिलने में, *"दो साल देर"* क्यौ हुयी है ? *"कांग्रेस आंदोलन"* को *"सफलता"* मिली या नहीं मिली थी ? *मोहनदास गांधी / जवाहरलाल नेहरू / कांग्रेस* इनकी *"अदुरदर्शिता"* क्या रही थी ? सन १९४७ तक का आंदोलन *"सत्ता हस्तांतरण आंदोलन"* रहा है या नहीं ? यह सारे प्रश्न सामने आते है.
द्वितीय महायुध्द यह तो *"मित्र राष्ट्र"* - ब्रिटन / अमेरिका / सोव्हिएत संघ तथा *"धुरी राष्ट्र"* - जर्मनी / इटली / जापान इन प्रमुख देशों का युध्द रहा है. जर्मनी हा *"एडोल्फ हिटलर* / इटली का *मुसोलिनी* / जापान का *हिराहितो* यह शत्रु राष्ट्रों के प्रमुख नेता थे. एडोल्फ हिटलर ये *"समुचे विश्व पर राज्य पाले"* चाहता था. सन १९३९ में *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने द्वितीय महायुध्द में, *"मित्र देशों"* को समर्थन घोषित कर, *"महार समुदायों"* को सैनिक रुप में सहभाग लेने की बात कही गये थे. बाबासाहेब *"नाझीवाद"* को विश्व पर बडा खतरा समझ गये थे. परंतु *"कांग्रेस / गांधी"* इनकी भुमिका तब स्पष्ट नहीं थी. कांग्रेस *हिटलर* से भी चर्चा करती रही. अंत में कांग्रेस ने *"मित्र देशों"* को समर्थन घोषित किया था. वही *"सन १९४२"* में "द्वितीय महायुध्द" काल में *"चले जाव आंदोलन"* कांग्रेस का असफल आंदोलन, कांग्रेस की बडी मुर्खता थी. वही कांग्रेस इनका *डॉ. आंबेडकर* विरोध भी ...!!! *"संघ (RSS)"* तो हिटलर के विचारों का रहा है. वही *सुभाषचंद्र बोस* तो धुरी राष्ट्र - *"जापान"* की मदत ले रहा था. सुभाषचंद्र बोस के *"आझाद हिंद फौज"* ने, उत्तर पश्चिम सिमांत प्रांत और बर्मा से भारत पर चढाई की थी. परंतु *"महार रेजिमेंट"* ने सुभाषचंद्र बोस की सेना का मुकाबला किया. *"महार रेजिमेंट"* की शौर्य गाथा दिखाई देती है. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर को सन १९३७ में स्थापित *"इंडिपेंडंट लेबर पार्टी"* को, द्वितीय महायुध्द में बरखास्त कर, सन १९४२ को *"शेड्युल कास्ट फेडरेशन"* की स्थापना करनी पडी थी. वह इतिहास भी समजना बहुत जरुरी है. द्वितीय महायुध्द में *"महार रेजिमेंट "* का बडा योगदान रहा है. अगर डॉ बाबासाहेब आंबेडकर *"मित्र देशों"* के पक्ष में खडे ना होते तो, भारत *"धुरी राष्ट्र के अधिन पुनश्च गुलाम"* होता. कांग्रेस की उस गलती का फायदा *"नरेंद्र मोदी / भाजपा / संघ"* आज ले रहा है. कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* इसकी राजनीति (?) भी, *"धार्मिक राजनीति"* अधिन ही है. राहुल गांधी तो *"भारतीय संविधान"* हाथ पकडे दिखाई देता है, परंतु *"संविधानिक नाम"*- भारत / इंडिया का जिक्र *"हिंदुस्थान"* करता है , राहुल गांधी के इस मुर्खता *"धार्मिक राजनीति "* को समजना बहुत जरुरी है. यहां अहं प्रश्न है, *"कांग्रेस दल के राजनीतिक अदुरदर्शिता "* का ! *"धार्मिक राजनीति"* का भी !!! *"सामाजिक - आर्थिक समानता"* कब भारत देश में दिखाई देगी ??? *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* का यही सपना रहा था. अत: जरा विचार से सोचो !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक २९ अगस्त २०२५
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