🚩 *संघ (RSS) तथा विरोधी दलों को पुर्णतः कमज़ोर करना नरेंद्र मोदी का प्रमुख लक्ष है : मोदी प्रजातंत्र भारत के बडे हुकुमशहा होंंगे ?*
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपूर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु मप्र
बुध्द आंबेडकरी लेखक, कवि, समिक्षक, चिंतक
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
सन २०१४. नरेंद्र मोदी को जब भारत का *"प्रधानमंत्री का उम्मीदवार"* घोषित किया हुआ था, तब गुजरात के कुछ *"भाजपा - संघ"* से जुडा हुआ प्रतिनिधी मंडल *"संघ प्रमुख"* से मिलकर, *नरेंद्र मोदी को छोडकर* किसी अन्य को *"प्रधानमंत्री"* बनाने की विनंती की थी. परंतु संघ द्वारा गुजरात के उस *"प्रतिनिधी मंडल"* को, विशेष तवज्जो नहीं दिया गया. प्रधानमंत्री *नरेंद्र दामोदर मोदी* ने भारत का प्रधानमंत्री बनने के पहले, जब मोदी *"गुजरात के मुख्यमंत्री"* रहे थे, तब नरेंद्र मोदी द्वारा संघ के *"ब्राह्मणी प्राबल्य"* को बहुत अच्छे से समझकर, ज्यादा तर अपने *"अब्राह्मण पदाधिकारी वर्ग"* की खास नियुक्ती की थी. एक जमाने के नरेंद्र मोदी के गुजरात सहकारी *संजय जोशी* को भी किनारे किया गया था. संघ को विच्छेद की परंपरा, यह *"गोवा के संघ पदाधिकारी"* द्वारा शुरु होकर, गोवा राजनीति ने *"खुला विद्रोह"* कर, *"अलग संघ"* का निर्माण करना, यह पाठ बहुत कुछ सिखाया गया था. परंतु *"संघवाद - RSS"* द्वारा उसकी खास दखल ली गयी थी या नहीं ? यह संशोधन का विषय है. हां, यह सत्य है कि, *गोवा की संघ नाराजी* / संघ से विच्छेद हो जाना, वह *"संघ शक्ती"* को वह ध्वस्त / कमजोर नहीं कर पाया. परंतु *नरेंद्र मोदी* को सन २०१४ में *"प्रधानमंत्री उम्मीदवार"* बनाना, यह *"संघ / भाजपा की बडी मजबुरी"* थी. नरेंद्र मोदीं द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री होने पर, *"भाजपा अर्थनीति"* को मजबुत बनाया था. *राजनीति यह बगैर अर्थ से नहीं की सकती.* गुजरात की *"भांडवलशाही व्यवस्था"* यह नरेंद्र मोदी के साथ ही दिखाई दी. और एक जमाने में *"पायदल"* चलनेवाला *"संघ / भाजपा"* आज तो *"फाईव्ह स्टार संस्कृति"* का आदि हो चुका है. यही कारण है कि, नरेंद्र मोदी का प्रभाव ही *"संघ - भाजपा के दो फाड"* में, बहुत बडा प्रभाव कर सकता है. *"संघ"* के पिछे *"इ.डी. / सी.बी.आय."* भी लगा सकता है. वही डर *"भाजपा - संघ शिर्षस्थ नेताओं"* को सता रहा है. संघ के *सुरेश सोनी* भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ है. एवं नरेंद्र मोदी ये *सुरेश सोनी* को *"संघनायक"* तौर पर देखना चाहता है. *"दत्तात्रय होसबोले"* इस संघ प्रमुख रेस में, आगे दिखाई देते है. अत: *नरेंद्र मोदी - अमित शहा* कल भाजपा - संघ के लिये, बडी मुश्कीलें खडी कर सकता है. आज संघ का काम आईस्ता आईस्ता दिखाई देता है.
नरेंद्र मोदी के गुजरात मुख्यमंत्री काल में, *"संघ के ब्राह्मणी"* प्रभाव को कम करना / *"भाजपा"* को आर्थिक रुप से सशक्त करना, अत: संघ के सामने कोई पर्याय नहीं था. नरेंद्र मोदी ने संघ के *"हिंदु राष्ट्र निर्माण / मुस्लिम द्वेष राजनीति"* को पुरेपुर भुना रहा था. अत: नरेंद्र मोदी के कुछ बडी गलतीयों को, *"नजर अंदाज"* संघ द्वारा युं ही किया गया. गुजरात की *"पुंजीवादी लॉबी"* नरेंद्र मोदी के साथ ही होने से, *शिवराज सिंह* समान वरिष्ठ नेताओं को दुर कर, *नरेंद्र मोदी* ने भारत के प्रधानमंत्री की धुरा संभाली. नरेंद्र मोदी ने गुजराती भाई *अमित शाह* को अपने साथ जोड दिया. भाजपा के वरिष्ठ नेता *लालकृष्ण अडवाणी / मुरली मनोहर जोशी / सुमित्रा महाजन"* समान कुछ बडे नेताओं को, *"मार्गदर्शन मंडल"* में डाल दिया. उधर नरेंद्र मोदी ने भाजपा की विचारधारा को मजबुत कर, संघ को खुश करते गया. *डॉ. मोहन भागवत* को झेड प्लस सुरक्षा दी गयी. परंतु अंदर अंदर मोदी - शहा जोडी अपनी शक्ती मजबूत करते रहा. आगे जाकर संघ प्रिय मंत्री द्वय *डॉ नितीन गडकरी / देवेंद्र फडणवीस* इनके प्रभाव को भी कम करते गया. *अमित शहा* ये तो *सुपर प्रांईम मिनीस्टर"* हो चुका था. संघ / भाजपा के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारीयों को अपने साथ जोडते गया. संघ की वह खामोशी ही *"संघ कमजोरी"* बडा कारण रहा है. संघ को *"पंचतारांकित ऑफिस परंपरा"* में जोडते गया. आज संघ को यह सभी गलती महसुस हो रही होगी. परंतु *"चिडिया चुब गयी खेत...."* कहावत अनुसार, अब संघ क्या कर सकता है...??? यह प्रश्न है. *"संघ ने जैसा बोया, वैसे ही वह पाया है."* बुध्द ने कुशल कर्म करने की हमें सिख क्यौ दी ? बुध्द धम्मपालन गाथा में कहते हैं, *"सब्ब पापस्य अकरणं, कुसलस्स उपसंपदा | सचित्तपरियोदपनं, एतं बुध्दान सासनं ||"* (अर्थात - सभी पापों का न करना, कुशल कर्मो का करना तथा स्वयं के मन (चित्त) की परिशुध्दि करना ही बुध्द की शिक्षा है. बुध्द का शासन है.) बुध्द ने *"पराभव सुत्त"* में कहा हैं कि, *"असन्तास्स पिया होन्ति, सन्ते न कुरुते पियं | असतं धम्मं रोचेति, तं पराभवतो मुखं ||"* (अर्थात - जिसे दुर्जन लोक प्रिय होते है, सज्जन लोगों से प्रेम नहीं करते, असत्य पुरुषों के धर्म को पसंद करते है, वह उसके अवनति का द्वार है.) यह बुद्ध विचार समजना बहुत जरुरी है. परंतु *"भाजपा - संघवाद"* ने भारत के *"हिंदु - मुस्लिम सौहार्द संबंध"* को, ताड ताड भी कर दिया हैं. *"प्रेम - मैत्री - बंधुता - करुणा* - बुद्ध विचार से, भाजपा - संघ परे रहा है. बुध्द ने *"प्रज्ञा युक्त श्रध्दा"* को बल दिया है. श्रध्दा होनी चाहिए, अंधश्रद्धा नहीं..!!!
*"फोर्ब्स की २०२५ यादी"* में, ,जनसंख्या आधार पर, *"१० शक्तीशाली देशों की GDP"* निम्न *"ट्रिलियन डॉलर"* बतायी गयी है. वहां भारत का नाम ही नहीं है. अमेरिका (३०.३४) / चायना (१९.५३) / रूस (२.२) / युके (३.७३) / जर्मनी (४.९२) / दक्षिण कोरिया (१.९५) / फ्रांस (३.२८) / जापान (४.२९) / सऊदी अरब (१.१४) / इजराईल (५५०.९१ बिलियन डॉलर). *"ग्लोबल हंगर इंडेक्स"* (भुखमरी) में, भारत की हालत तो *पाकिस्तान / बांगला देश / नेपाल"* से बदतर है. भारत *"जनसंख्या"* में विश्व का *"नंबर वन"* देश बन गया है. भारत की *"करंसी"* तो, दिनो दिन गिरती जा रही है. और भारत का *"विश्व अर्थव्यवस्था में चवथे नंबर"* का प्रचार किया गया है. जब की भारत की *"अर्थव्यवस्था तो, ९ वे - १० वे"* नंबर पर है. यह सब अंको का खेल है. अब हम *"विश्व के कुछ क्रुर हुकुमशहा"* को भी देखते है. और हुकुमशहा का *"अंत कभी अच्छा नहीं"* रहा है. *एडोल्फ हिटलर* (जर्मनी) / *बेनिटो मुसोलिनी* (इटली) / *ब्लादिमीर इलियच लेनिन* (रुस) / *माओ जेदोंग - माओ त्से तुंग* (चायना) / *इदी अमिन* (युगांडा) / *सद्दाम हुसेन* (इराक) / *याह्या खां* (पाकिस्तान) / *मोहम्मद झिया उल हक* (पाकिस्तान) / *होस्नी मुबारक* (अरब गणराज्य मिस्त्र) / *किम जोंग* (अभी उत्तर कोरिया शासक) / *फ्रांसवा डुवलीयर* (हेती) / *अयातुल्ला खुमैनी* (अभी इराण शासक) / *नेपोलियन बोनापार्ट* (फ्रांस) और उन क्रुर हुकुमशहा यादी में, भारत के *नरेंद्र मोदी* इनका नाम भी जुडा दिखाई देता है. *"संघ (RSS)"* का आदर्श जर्मनी का *एडोल्फ हिटलर* रहा है. और हिटलर ने तो, विश्व पर *"द्वितीय महायुध्द "* थोपा था. इन तमाम *"क्रुर हुकुमशहा"* के काले कारणामों पर, मैं पहले लिख चुका हुं. अत: यहां इस विषय पर शब्दों को विराम देता हुं. *"संघ - भाजपा सत्तावाद"* को यह सिख है. *"कांग्रेस"* यह अपने बुरे कर्मो से, पिछड गयी है. *"भारत राष्ट्रवाद"* कभी भारत में पनपा ही नहीं. ना भारत में *"राष्ट्रवाद मंत्रालय बना ना ही संचालनालय"* बना. तो *"आर्थिक बजेट"* यह विषय बहुत दुर की कवडी है. यहां आदमी की असली पहचान *"जाति - धर्म"* से होती है. *"भारतीयता"* से नहीं. तो खाक भारत *"विश्व गुरु"* बनेगा. *"विकास भारत - समृध्द भारत"* यह केवल दिवास्वप्न ही है. भारत की आवाम *"बेरोजगारी / गरिबी / भुखमरी"* की मार / झेल भोग रहा है. जरा इस विषय पर सोचों, *"संघ निष्ठ - भाजपा निष्ठ - कांग्रेसी निष्ठ - लालधारी निष्ठ - पंजा धनुष्य निष्ठ - शेंडीधारी निष्ठ / ना- लायकों !!!"*
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक १२ अगस्त २०२५
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