🇮🇳 *नये संसद भवन का डॉ. आंबेडकर संसद भवन इस नामकरण मांग से लेकर धर्मनिरपेक्ष संविधान में होम हवन ???*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
अभी अभी रिपब्लीकन पार्टी के नेता (?) *रामदास आठवले* ने, *"दलित पैंथर स्थापना दिन"* के उपलक्ष में, नागपुर में *"नये संसद भवन"* का नामकरण *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर संसद भवन"* यह करने की मांग कर डाली. लेकिन वह मांग करनेवाला, रामदास आठवले यह पहला व्यक्ति नही है. वह मांग *"नये संसद भवन"* का नामकरण दिनांक *"२८ मई २०२३ को स्वातंत्रवीर कहे या माफीवीर (?) वि. दा. सावरकर जन्म दिन"* पर, *"स्वातंत्रवीर सावरकर संसद भवन"* नाम से होने की, बडी चर्चा समस्त देश भर फैली थी. तब कुछ लोगों द्वारा *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर संसद भवन"* यह नामकरण हो, यह मांग उठी थी. और नये संसद भवन उदघाटन में महामहिम राष्ट्रपती *द्रौपदी मुर्मु* को ना बुलाने से, और २१ विरोधी दलों नें कार्यक्रम पर, पुर्णत: बहिष्कार डालने सें, *प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी* को, बहुत से झटके भी मिले है. और नये संसद भवन उदघाटन में, *"सेंगोल"* का मुद्दा, *आदिवासी समाज के राष्ट्रपती* को ना बुलाना, सेंगोल के सामने प्रधानमन्त्री मोदी को सो कर प्रणाम करना, *ब्राम्हण साधुओं द्वारा होम - हवन - यज्ञ* आदी विषय, *"नरेंद्र मोदी के लिए, गले का फास हो गये है...!"* अर्थात *"नयी संसद भवन"* का निर्माण का कोई भी फायदा, अब नरेंद्र मोदी को, दिखाई नही दे रहा है. वही *"भारत के संविधान"* के अनुच्छेद ७९ अंतर्गत *"भारत के महामहिम राष्ट्रपती"* यह संसद के प्रमुख होते है. और उनको ना बुलाना भी, भविष्य के लिए नरेंद्र मोदी के लिए, अच्छा संकेत नही है. इसके साथ ही *"संविधान का धर्मनिरपेक्ष तत्व"* यह अलग याद दिलाता है. अत: *"पुजा - पाठ - हवन करना"* भी, नरेंद्र मोदी के लिए, अब तेढी खीर हो गयी है.
*"कर्नाटक चुनाव"* में, *"दक्षिण क्षेत्र"* से भाजपा का सुपडा साफ दिखाई दे रहा है. *"उत्तरी भारत"* में भी, नरेंद्र मोदी की जादु दिखाई नही दे रहा है. और *भाजपा यह २१० - २२० सीटों* तक सिमट जाने के संकेत है. अर्थात *"पुरे मेजोरिटी"* से, भाजपा कोंसो दुर है. और भाजपा के साथ सहयोगी क्षेत्रीय दलों का ना होना भी, अब परेशानी का कारण दिखाई दे रहा है. वही कांग्रेस की *"भारत जोडो यात्रा"* का असर दिखाई दे रहा है. कांग्रेस का खिसका हुआ जनाधार लौट आ रहा है. वही *"महिला पहलवान इश्यु"* ने, भाजपा की पोल खोल रखी है. *महिला / युवा वर्ग का आक्रोश भी महंगाई* से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में है. अत: *भाजपा हो या संघ* के लिए, नरेंद्र मोदी यह *"हुकुम का एक्का"* नही रहा. वही *"इ.डी. / इंकम टैक्स रेड"* ने, तथा *"पूंजीवादी दोस्तों को फायदा पहुंचाना,"* अब नरेंद्र मोदी को २०२४ के चुनाव के लिए, बडा खतरा दिखाई दे रहे है. *"बहुजन समाज पार्टी"* का - *"एकला चलो रे,"* भाजपा को कितना लाभ देगा ? यह भी अहं प्रश्न है. क्यौं कि, *"बसपा"* भी अपने *"मौत की घटका"* गीनती नज़र आ रही है. *अनुसुचित जाती / जनजाती* का जनाधार, कांग्रेस की ओर झुकते नजर आ रहा है.
अत: नरेंद्र मोदी द्वारा *"राजनितिक शस्त्र"* के रूप में, *"डॉ. आंबेडकर संसद भवन"* नामकरण की चाल खेली जा रही हो...! *रामदास आठवले* ने, नरेंद्र मोदी द्वारा उस खेल की लकीर खिंची हो. नही तो, *रामदास आठवले* की राजनीति में, *हैसियत की क्या है ?* पिछले दो चुनाव में, आठवलें पार्टी को कितनी सींटे दी है ? यह तो जगजाहिर है. *"रामदास आठवले यह नेता कम, जोकर जादा है."* विपक्षी दलों का कांग्रेस की ओर झुकाव भी, भाजपा के लिए, परेशानी बढा रहा है. और बहुत ही महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"तेलंगाना"* इस दक्षिणी भारत क्षेत्र में, *"डॉ. आंबेडकर नामकरण"* का खेल चल रहा है. कांग्रेस का ग्राफ दक्षिण भारत में बढने सें, *"तेलंगाना"* में, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर नाम की राजनीति"* बहुत ही साधा गणित है. और भाजपा द्वारा *"डॉ. आंबेडकर संसद भवन"* नामकरण की घोषणा कर, कांग्रेस को काट देने की राजनीति हुयी तो, यह कोई अचरज नही है.
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नागपुर, दिनांक ७ जुन २०२३
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