🎓 *भारत का देशद्रोह कानुन से लेकर समान नागरी कानुन लागु करने संदर्भ में राजनीतिक विवाद...!*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)
मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
भाजपा की सत्ता सरकार, फिलहाल *"समान नागरी संहिता"* कानुन (Uniform Civil Code - UCC) बील, संसद में लाने की बात कर रहा है. भाजपा के सत्ता राज को, अब सत्ता पर रहे, १० साल हो चुके है. और उनके ही कार्यकाल में, *"२१ वा विधी आयोग"* को बिठाया गया था. उनका रिपोर्ट क्या कहता है ? यह अहं प्रश्न है. *"यही नही, भारत सरकार ने नवंबर २०१९ तथा मार्च २०२० में, समान नागरी संहिता - UCC बिल, दो बार संसद में पेश किया है. फिर वह बिल, वापस क्यौं लिया गया है...?"* इसका उत्तर, क्या भाजपा सत्ता देगी. और लोकसभा चुनाव २०२४ को देखकर, *"२२ वे विधी आयोग"* के अध्यक्ष *न्या. ऋतुराज अवस्थी* द्वारा ३० दिनों कें अंदर, *"समान नागरी संहिता"* पर, संघटनो के अभिप्राय मांगे है. यहा अहं सवाल है, *"समान नागरी संहिता - ड्राफ्ट"* कहां है ? जिस *"ड्राफ्ट"* पर, हम प्रतिक्रिया कर सके...! *"क्या यह आनेवाले लोकसभा चुनाव की, कुटील राजनीति तो नही है...?"*
*"समान नागरी संहिता"* (UCC) पर चर्चा करने के पहले, *"देशद्रोह कानुन"* इस महत्वपुर्ण विषय पर, हम चर्चा करेंगे. इस कानुन का अति दुरुपयोग बढने के कारण, *मा. सर्वोच्च न्यायालय* के निर्देशानुसार, इस कानुन के अमल पर, रोक दिखाई देती है. भारत में *"बेकायदा कृत्य प्रतिबंधक कानुन १९६७ तथा राष्ट्रिय सुरक्षा कानुन १९८०"* यह दो सुरक्षा कानुन, अस्तित्व में होने के कारण, *"देशद्रोह कानुन"* को ( *भारतीय दंड संहिता १९७३* - Cr.PC Act 1973 कलम - १२४ अ) लागु करने का, कोई भी औचित्य नही रहा. और यह कुछ मान्यवर कानुनविदों की राय है. धारा १२४अ *"राजद्रोह - देशद्रोह"* पर कहती है, *"अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर या इशारों से या फिर चिन्हों के जरीए, या किसी और तरिके से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने की, कोशिश करता है या असंतोष भडकाने का कोशीश करता है तो, वो राजद्रोह का आरोपी है."* साथ ही, अगर कोई व्यक्ति देश विरोधी संघटनो से, जाने या अनजाने में कोई संबंध रखता है, उन्हे किसी तरह का सहयोग करता है, तो भी वह *"देशद्रोह"* के दायरें मे आता है. *"यह कानुन ब्रिटिश काल में, अंग्रेजो द्वारा सन १८७० में बनाया था."*
अब हम *"राष्ट्रिय सुरक्षा कानुन १९८०"* इस पर बात करेंगे. *"भारत का संविधान* यह भारत आजाद (१५ अगस्त १९४७) होने के बाद, *२६ जनवरी १९५०* को (गणराज्य दिन), अमल में आया है. *भारत संविधान* के *"आर्टिकल १"* में हमारे देश का नाम, - *"India, that is Bharat, shall be a Union of States.* (भारत यह संघ राज्य है.) यह स्पष्ट रुप से लिखा गया है. फिर हमारे *"प्रधानमन्त्री / मंत्री / विरोधी नेता / अन्य नेता",* क्या इनके विरोध में, भारत को *"हिंदुस्तान"* (हिंदु + स्तान > हिंदु = हिनदु > हिन + दु > हिन = निच, दु = प्रजा > हिंदु = निच लोक > *हिंदुस्तान = निच लोगों का देश)* कहकर, हमारे देश की तोहिम करने के कारण, *"देशद्रोह - राजद्रोह"* की केस दायर करना चाहिये ? यह अहं प्रश्न है. वही न्यायालय द्वारा *"हिंदु शब्द पर ब्यान देने की"* भी बात कही जाती है. भारत यह *"गणराज्य"* (जनता का राज) होने के बाद, ७३ साल गुजरने पर भी, किसी भी राज दल की सरकारों ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* की स्थापना नही की. ना ही भारत के आर्थिक बजेट में, *"कोई आर्थिक प्रावधान किया है."* यही नही, हमारा अपना *"सही राष्ट्रगान"* नही लिखा गया. *"जन गन मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता"* हम गाते जा रहे है. भारत के जन - गन - मन का अधिनायक, *"अंग्रेजी शासक - इंग्लैंड के राजा"* की, हम जय जयकार करते हुये, *"हमारा भाग्य विधाता"* कहते है. वही *"वंदे मातरम्...!"* इस गीत का, *"भारत माता"* से कोई संबंध नही है. वह गीत *"दुर्गा देवी के सुंदरता"* को, महामंडित करता है. अब यहां तो अहं सवाल यह, *"सर्वोच्च न्यायालय"* को भी है. *"क्या वह इस गंभिर राष्ट्रिय विषय को संज्ञान लेगी ?"* क्या हम, हमारे राजनीतिक दोषी नेताओं पर, *"राजद्रोह - राष्ट्रद्रोह"* का मुकदमा दायर करेंगे ?
अब हम *"समान नागरी संहिता"* - ( यूनीफार्म सिव्हिल कोड - UCC) पर कुछ बातें करेंगे. हमारी भारत सरकार ने, *"क्या इसका ड्राफ्ट, जनता के लिए, जाहिर घोषित किया गया है ?"* तो फिर, हम इस संदर्भ क्या समझे ? वही भारत में, *"दि हिंदु मैरेज एक्ट १९५५ / दि मुस्लिम पर्सनल लॉ - मैरेज एक्ट १९३९ / शिखों का - दि आनंद मैरेज एक्ट १९०९"* यह कानुन कार्यरत है. और *"बुध्द धर्मीय"* लोगों द्वारा *"दि बुध्दीस्ट पर्सनल एक्ट"* का ड्राफ्ट (सन २०१८) भी सादर किया है. वह ड्राफ्ट बनने के बाद, उस समिती का एक सदस्य, मुझे (डॉ. जीवने) मिलने, मेरे आफिस में आया था. और मुझे उसने वह बडी बातें बताने पर, मैने उसे पुछां कि, *"बुध्द धर्म की संस्कार विधी, क्या बतायी गयी है ?"* मेरे इस प्रश्न पर, वो खामोश हो गया. तब मैने उसे *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर"* द्वारा *व्ही. एम. कर्डक* को लिखा हुआ, वह पत्र उसे दिया. और एक महत्वपुर्ण विषय यह भी है कि, भारत के तमाम धार्मिक आवाम के लोग - हिंदु, मुस्लिम, शिख, इसाई, बौध्द, पारसी इन समुहों के लिए, *"दि स्पेशल मैरेज एक्ट १९५४"* के तहत, नियम लागु है. और वह नियम आंतरधर्मीय लोगों को भी लागु है. तो फिर *"युनिफार्म सिव्हिल कोड"* यह विषय, *"लोकसभा चुनाव"* के पहले, उछालने का उद्देश क्या है ? यह हमे समझना होगा.
*"समान नागरीक संहिता"* - UCC कें अंतर्गत - *"सभी धर्मीय नागरीकों के विवाह / तलाक / गोद लेना / विरासत / उत्तराधिकारी समान व्यक्तिगत विषयों का अंतर्भाव"* होने की, बातें कही जाती है. उस संहिता की चर्चा सुनकर, मुझे *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* द्वारा सन १९५१ को, सादर हुये *"हिंदु कोड बिल"* की यादें, बहुत ताजा हो गयी. और वह बील *पंडित नेहरु सरकार* ने, पारीत ना करने कारण, कानुनी मंत्री *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इन्होने, अपने मंत्री पद से इस्तिफा दिया था. बाद में, वह बील तुकडों - तुकडों में, पारीत किया गया. और *"महिला वर्ग"* को, उनका अधिकार प्राप्त हुआ. *"भारतीय संविधान"* का *अनुच्छेद २५ - २८* अंतर्गत, भारतीय नागरीकों को, *"धार्मिक स्वतंत्रता"* मिली है. और संविधान के *अनुच्छेद ४४* अंतर्गत, भारतीय राज्यों से, सभी भारतीय नागरीकों के लिए नीतीयां बनाते समय, सभी भारतीय नागरीकों के *"निर्देशांक सिध्दान्तो"* की, याद दिलाता है. क्या हमारी सरकार, *"उन सिध्दान्तो के प्रति वफादार है ?"* यह अहं प्रश्न है...!!!
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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
नागपुर, दिनांक २८ जुन २०२३
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