Thursday, 22 June 2023

 ✍️ *भारतीय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर - मोहनदास गांधी - विनायक सावरकर वैचारिक द्वंद्व संघर्ष की मिमांसा...!*

   *डॉ. ‌मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

भुतपुर्व मानद प्राध्यापक, डॉ.‌ आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय,महु (म.‌प्र.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     भारत की राजनीति ने, आज कल तो *"तिन प्रमुख विचारधारा"* में, स्वयं को विभाजित करते हुये, विशेष रुप से, हम देख रहे है. *"पहिली है कांग्रेसी - गांधी विचारधारा. दुसरी है भाजपा - संघवादी, सावरकर, गोडसे विचारधारा. तिसरी है बसपा, रिपब्लिकन, आघाडी - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर , महात्मा फुले विचारधारा."* और कुछ विचारधारा भी हमें, यहां दिखाई देती है. जैसे कि - लेफ्ट फ्रंट आदी.‌ और भारत की *"सत्तानीति"* यह, *"कभी कांग्रेस, तो कभी भाजपा"* इन दो दलों के बिच, सिकुड गयी है. कभी कुछ समय *"तिसरी आघाडी - लेफ्ट फ्रंट"* ने भी, हात मार लिया था. परंतु वह पुर्ण कालीन सत्ता चलानें में, कभी सफल नही रही. भारत की राजनीति ने, *"प्रादेशिक सत्तावाद"* में भी बहुत से पैर पसारे है. जो *"केंद्रीय सत्तावाद"* के लिए, बहुत ही बडा परेशानी का कारण रहा है. अब हम *"डॉ.‌ बाबासाहेब आंबेडकर - मोहनदास गांधी - विनायक सावरकर"* इनके द्वंद्व विचारों कें, कुछ बिंदुओं पर चर्चा करेंगे.

     भारतीय राजनीति में, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इनके मैत्री मधुर संबंध, कभी कभी भारत आजा़दी के सेनानी *मोहनदास करमचंद गांधी* इनके साथ, तो कभी कभी भारत के स्वातंत्रवीर कहे या माफीवीर‌ (?) *विनायक दामोधर सावरकर* इनके साथ भी, जोडे जाते है. कभी कभी तो, गांधीजी का हत्यारा *नात्थुराम गोडसे* इनकी बचाव वकिली करने के बारे में भी, शोध दिखाई देता है. संघवादी *श्यामाप्रसाद मुखर्जी - दिनदयाल उपाध्याय* से भी, मैत्री संबंध जोडे जाते है.‌ *प्रा. हरी नरके* इन्होने तो, *'डॉ.‌ आंबेडकर - मोहनदास गांधीं"* इनके मधुर संबंध होने का, एक लेख मिडिया में लिखा था. जिसका वह मधुर संबंध नकारते हुये, प्रमाणीत उदाहरण सह उत्तर मैने (डॉ. मिलिन्द जीवने) मिडिया में दिया है. यहां बहुत बडा प्रश्न यह है कि, *"डॉ. आंबेडकर साहाब इनके मधुर संबंध, उन विरोधी विचारों‌ के - कट्टर हिंदु नेताओं के साथ बताने की, हमारे आज के राजनीतिक नेताओं कों, दलों कों, ऐसी जरुरत क्यौ पडी है ?"*

     डॉ.‌ आंबेडकर  इन्होने *मोहनदास गांधी* इनको *"भारत आजादी"* का श्रेय ना देकर,  *सुभाषचन्द्र बोस* इन्हे दिया है. आंबेडकर साहाब कहते है कि, *"सुभाषचन्द्र बोस ही आजादी मिलने में, प्रमुख कारण रहे है. हिन्दी सेना के निष्ठा पर, ब्रिटीश सरकार निर्भर थी. बोस इन्होने उस निष्ठा को ही, पराकाष्ठा का धक्का देकर, असंतोष यह फैलाया था. आजाद हिंद सेना की स्थापना की थी. यह देखकर ब्रिटिशों को भारत छोडना पडा."* (मुंबई २३ दिसंबर १९५१) वही *"द्वितिय महायुध्द"* (१९३९ से १९४४) में, विश्व की आर्थिक हालात, बहुत खस्ता हो चुकी थी. अत: अंग्रेजों को भारत छोडना, यह तो मजबुरी हो गयी थी. *परंतु भारत को आजादी ३ साल देरी से (१५ अगस्त १९४७) मिली है. इसका कारण मोहनदास गांधी और कांग्रेस की अदुरदर्शीता रही है."* गांधी - कांग्रेस अदुरदर्शी का और‌ भी एक उदाहरण‌ दुंगा.‌ आंबेडकर साहाब ने *"पुना करार"* के पुर्व कहते है कि, *"हमारी मांग को, महात्मा गांधी का विरोध है. इसलिये उन्होने प्राणांतिक उपोषण सुरु किया है. गांधी के प्राण मुल्यवान है, ऐसा सभी को लगना स्वाभाविक है. परंतु प्राणांतिक उपोषण पर बैठने के पहले, गांधी ने दुसरा पर्याय भी रखना जरुरी है."* (मुंबई, १९ सितंबर १९३२) भारत की आजादी के पहले, गांधी - कांग्रेस का विरोध करना, कभी कभी समज से परे होता रहा. आंबेडकर साहाब ने *"द्वितीय महायुध्द"* में, *"हिटलर - मुसोलिनी हुकुमशहा"* को हराने के लिए, ब्रिटिश - मित्र राष्ट्रों के पक्षों में, अपना समर्थन दिया था. परंतु गांधी - कांग्रेस उसका विरोध करती रही. आखिर उन्हे ब्रिटीश - मित्र राष्ट्र के पक्ष में, समर्थन जाहिर करना पडी.‌ *"अत: यह गांधीं जी - कांग्रेस की बडी ही अदुरदर्शीता थी, या तो मुर्खता...!"* यह संशोधनों का विषय है.

    *ब्रिटिश सत्ता* के संदर्भ में, डॉ. ‌आंबेडकर  साहाब  *"राज्यसभा"* (सितंबर १९५४) में कहते है कि, *"ब्रिटिश प्रशासन एवं राज्य यह समता तथा न्याय आधारीत था. इस कारणवश लोगों में, एक प्रकार की सुरक्षा लगती थी. परंतु आजादी मिलने के बाद, अल्पसंख्यक समुदाय को, बहुसंख्यक समुदाय सें, असुरक्षीत भाव लगने लगा है."* आज बहुसंख्यक समाज भी, अपने आप को असुरक्षीत समझ रहा है. दुसरे शब्दों में कहां जाएं तो, *"गोरे अंग्रेज भारत छोडकर चले गये. काले अंग्रेज भारत के सत्ता पर बैठ गये."* भारत के मागास समाज के आवाम की समस्या के बारे में, डॉ आंबेडकर कहते है कि, *"भारत देश में (सही कहे तो) दो अलग अलग राष्ट्र समायें हुये है.‌ एक राष्ट्र राज्यकर्ता‌ वर्ग का है.‌ और दुसरा जिस पर शासन‌ किया जा रहा है, उनका राष्ट्र.‌ सभी के सभी मागासवर्गीय समुदाय, यह दुसरे राष्ट्र का भाग है."* (राज्यसभा, ६ सितंबर १९५४) भारत आजादी‌ के पहले, *डॉ.‌ आंबेडकर* साहाब, *"केंद्रीय विधीमंडल"* नयी दिल्ली (८ मार्च १९४४) में, सरकार कैसी हो ? इस संदर्भ में कहते है कि, *"जो सरकार योग्य तथा तत्पर निर्णय लेकर, उसका अमल ना करती हो तो, उसे सरकार कहने का, कोई अधिकार नही है.‌ और यही मेरी धारणा है."*

      आंबेडकर साहाब *"भारत की हिंदु वर्णव्यवस्था"* के संदर्भ में स्पष्ट कहते है कि, *"हिंदु धर्म यह, चार‌ वर्ण के चौकट में बंदिस्त है.‌ इस वर्णव्यवस्था के कारण ही, हमारी अवस्था तो ब्राम्हण से श्रेष्ठ होने पर भी, हमे गुलामी के काम करना होता है.‌"* (अमरावती, ४ मई १९३६) डॉ. आंबेडकर साहाब ने, *"हिंदु कोड बिल १९५१"* को, जवाहरलाल नेहरु सरकार ने, पारित ना होने के कारण ही, कानुनमंत्री पद का इस्तिफा दिया था. *"अगर हिंदु कोड बिल, यह पारीत होता तो, क्या बाबासाहेब बौध्द धर्म की दीक्षा लेते ?"* यह संशोधन का बडा विषय है.‌ और १४ अक्तुबर १९५६ को, डॉ. आंबेडकर साहाब ने, *"बौध्द धर्म"* अपनाने का निर्णय लिया था. वह धर्म अपनाने का कारण बताते हुए, वे कहते है कि, *'बौध्द धर्म में समता, बंधुता एवं स्वातंत्र्य है. अन्य धर्म में ईश्वर और आत्मा इसके बिना कुछ नही है."* परंतु विनायक दामोधर सावरकर ने, डॉ. आंबेडकर इनके *"बौध्द धम्म दीक्षा"* का विरोध किया था. तभी डॉ. आंबेडकर साहाब ने, *"विनायक दामोधर सावरकर"* इनको उत्तर देते हुए कहा कि, *'भगवान बुध्द का जो अफाट भिक्खुसंघ था, उसमें शेकडा ७५ % ब्राम्हण लोग थे. यह बात सावरकर को पता है या नही ? सारीपुत्त - मोग्गलान समान पंडित ब्राम्हण लोग थे. यह बात सावरकर ने भुलनी नही चाहिये."* (मुंबई, २४ मई १९५६) इसके अलावा विनायक सावरकर को, और बहुत कुछ बातें कहीं थी. अब सवाल यह है कि, *"सावरकर ने हिंदु धर्म सुधार क्या किया है ? भारत के आजादी में, क्या योगदान रहा है ? "* और स्वांतत्रवीर कहना ???

     *मोहनदास गांधी (वैश्य) - विनायक सावरकर (ब्राम्हण)* इन दोनो ही, कट्टर हिंदु धर्मीयों के आचार - विचार में, बहुत दुरीया थी. सिर्फ दोनो भी नेता लोग, *" चातुर्वर्ण्य"* के समर्थक थे. विनायक सावरकर इनका नात्थुराम गोडसे से, क्या संबंध था ? और गांधीजी की हत्या में, आरोप दोनों पर भी लगे थे. दोषी कौन थे ? अब यह चर्चा का विषय भी नही है. जहां *"गांधी - सावरकर"* की, विचारों में मित्रता कभी ना हो सकी हो तो, *"डॉ. आंबेडकर - गांधीजी"* इन परस्पर विरोधी विचारधारी मान्यवर, *कैसे मित्र हो सकते हैं ?* यह अहं प्रश्न है. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर साहाब ने, *"बुध्द - फुले - कबिर"* इनको अपना गुरु माना है. अत: फुले - आंबेडकर विचारधारीओं की राजकिय हो, सामाजिक हो, या सांस्कृतिक मैत्री संभव है....! मै *"व्यक्तिगत व्यवहार मित्रता"* की बातं नही कर रहा हुं. वह किसी भी धर्मीयों के साथ हो सकती हैं...!!!


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* *डॉ. मिलिन्द  जीवने  'शाक्य'* नागपुर १७

नागपुर, दिनांक २१ जुन २०२३

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