Saturday 22 October 2022

 ✍️ *ब्रिटन के प्रधानमंत्री लिझ ट्रस इनके राजीनामा से लेकर नरेंद्र मोदी की भारत अर्थनीति - सत्तानीति तक...!*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      ब्रिटन की डगमगाते गंभिर अर्थव्यवस्था से लेकर, अभी अभी ब्रिटन की प्रधानमंत्री बनी (केवल ४५ दिन) *मिसेस लिझ ट्रस* इनका राजीनामा देने की घोषणा, हमारे भारतीय राजनीति के लिए बडा कडा तमाचा कहना होगा. लिझ ट्रस ने हाऊस में सादर किये हुये ब्रिटन के *"मिनी बजेट"* में, कर कपात, चढे मुल्य के उर्जा बिल आदी कारणों से, उसे सभी विरोधीओं का कडा सामना करना पडा. वैसे ब्रिटन देश‌ की बिगडती अर्थव्यवस्था, यह आज की बात नही है. ब्रिटन की आर्थिक हालात पहले ही खराब थी. फिर भी लिझ ट्रस को, उस गंभिर परिस्थितियों का कडा सामना करना पडा. और उसका प्रधानमंत्री कार्यकाल यह सबसे कम रहा है. ब्रिटन के इसके पहले के प्रधानमंत्री जार्ज केनिंग (१२१ दिन) / फ्रेडरिक जॉन रॉबिन्सन (१४४ दिन) / बोनार लॉ (२१० दिन) / विल्यम कँव्हन्डिश (२३६ दिन) / विलयम पेट्टी (२६७ दिन) इन्होने भी, अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल पुरा नही किया. हमे ब्रिटन के राजनीति के इस सजगता को समझना होगा. *श्रीलंका* ये छोटे से देश की आर्थिक स्थिती भी अजिबो गरिब थी. वहां के तत्कालिन महा महिम राष्ट्रपती *गोताबाया राजपाक्षे* और तत्कालिन प्रधानमंत्री के पद पर उनके ही भाई *महिंदा राजापाक्षे* इनके कार्यकाल के दरम्यान, अप्रेल २०२१ में श्रीलंका मे जैविक खेती को बढावा देने के लिए, रासायनिक उर्वरकों एवं किटकनाशक के आयात पर, पुर्णतः निर्बंध लगा देने के कारण, कृषी में आयें बदलाव से उत्पादन बिलकुल घट गया. और श्रीलंका में खाद्दानों की भारी कमी आ गयी. फल, सब्जी, अनाज आदी वस्तुओं की किल्लत सुरु होने से, श्रीलंका की आर्थिक हालात पुरी तरह चरामरा गई. विदेशी मुद्रा भांडार, पुरी रुप से खाली हो चुका था. इस कारण श्रीलंका मे जन उठाव आक्रोश बढ गया. यही कारण था कि, *श्रीलंका के तत्कालिन प्रधानमंत्री को अपनी खुर्ची छोडनी पडी. वही वहां के राष्ट्रपती को देश छोडकर भागना पडा.* यह इतिहास है. पाकिस्तान की हालात भी कुछ अलग नही है. *पाकिस्तान के तत्कालिन प्रधानमंत्री नवाज शरिफ हो या इम्रान खान हो,* इन्हे भी अपनी खुर्ची छोडनी पडी. परन्तु भारत की सत्तानीति हो या, अर्थनीति हो या, कहे सामाजिक अवस्था हो ????

       *श्रीलंका* के तत्कालिन महा महिम राष्ट्रपती *गोताबाया राजपाक्षे* इनके उस कार्यकाल का, वह दु:खद विद्रोह होने के दो साल पहले, मुझे तत्कालिन श्रीलंका सरकार द्वारा *"आंतरराष्ट्रीय बौध्द परिषद"* के लिए अनुराधापुर निमंत्रित किया था. और मुझे एक हप्ता श्रीलंका में रहने का एवं वहां की संस्कृति समझने का सुनहरा अवसर मिला. हमे वहां पुर्णत: *"व्हिव्हीआयपी मिलटरी सुरक्षा"* थी. अचानक दो साल बाद, श्रीलंका की इतनी बदतर हालात को देखकर, मै पुरी रूप से दंग ही रह गया. तथा सन २०१५ में भी श्रीलंका के राष्ट्रपती, *हमारी टीम* द्वारा  आयोजित *"जागतिक बौध्द परिषद"* के लिए, नागपुर आनेवाले थे. उनका नागपुर में आने का कार्यक्रम भी, हमें मिल चुका था. परंतु भारत सरकार की ओर से, सुरक्षा देने की असमर्थता के कारण एन समय पर, श्रीलंका के राष्ट्रपती का, नागपुर आने का कार्यक्रम रद्द करना पडा. अत: श्रीलंका के तत्कालिन राष्ट्रपती की उस दु:खद स्थिती को देखकर, हमे दु:ख होना स्वाभाविक था. श्रीलंका इस देश के अलावा, मुझे *नेपाल / सिंगापुर / मलेशिया / थायलंड* आदी देशों में जाने का, और उनकी संस्कृति जानने का अवसर मिला है. अत: वहां की अर्थनीति को समझने का मैने प्रयास किया है.

    अब हम विश्व की अर्थनीति  एवं भारत की अर्थनीति का अवलोकन करेंगे. समस्त विश्व के बँलेस शीट का अभ्यास करनेवाली *"मँकंझी एंड कंपनी"* इस कंपनी द्वारा प्रकाशित अहवाल के अनुसार -  *"पिछले बीस साल में, विश्व के संपत्ति में तिस गुणा बढोत्तरी हुयी है. और उस बढोतरी में एक तृतीयांश (३३%) सहभाग यह केवल चायना का है. इसके साथ ही चायना के संपत्ति में, १६% बढोतरी हुयी है."* अर्थात विश्व का महाकाय देश *"अमरीका"*(सन २०२० में कुल संपत्ति ९० ट्रिलियन डाॅलर ) अब पिछाडी पर आया है. और चायना विश्व का सबसे अमिर देश बना है. उस कपंनी के अहवाल में, सन २००० में विश्व की आर्थिक संपत्ति  १५६ ट्रिलियन डाॅलर बतायी. और दो दशक में (सन २०२०) में वह बढकर ५१४ ट्रिलियन डाॅलर  बतायी गयी है. चायना का आर्थिक विवरण देखे तो, सन २००० में कुल संपत्ति ०७ ट्रिलियन डाॅलर थी. जब कि सन २०२० में वह बढकर १२० ट्रिलियन डाॅलर हुयी है. विश्व का यह आर्थिक विवरण, यह *"विश्व के दस देशों कें बँलेस शीट  के आधार पर"* तैयार किये गये है. वे दस देश है - *'चायना / अमरीका / जर्मनी / फ्रांस / ब्रिटन / केनडा / आस्ट्रेलिया  / जापान / मेक्सिको / स्विडन."* और उस विकास यादी में भारत का नामोनिशान नही है. इस साल भारत का नाम आया है - *"भुख निर्देशांक एवं कुपोषण में, विश्व के १२१ देशों में, भारत १०७ वे स्थान पर है."* वही *"क्रेडिट सुस"* के "ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट" के अनुसार, सन २०१९ में भारत की कुल संपत्ति  १२.६ ट्रिलियन डाॅलर  थी. अर्थात हमारी संपत्ति *"चायना से आठ गुना कम है."* और सन २०१९ के बाद, भारत ने अपनी संपत्ति जाहिर ही नही की है. सबसे महत्वपुर्ण विषय यह कि, हमारी *"बामनी व्यवस्था"* यह *"भारत का विश्व गुरु"* बनाने जा रही है. इससे बडा मजाक और क्या हो सकता है ?

     *अमेरिकी की दादागिरी* यह विशेषत: आखाती देशों के तैल पर निर्भर है. अमेरिका ने मेक्सिको आखात के *"कच्चे तेल एवं गैस का १.१ अब्ज डॉलर में लिलाव किया है."* वही *"सीओपी - २६ पर्यावरण परिषद"* की सांगता होते ही, पर्यावरण विषयक उद्दीष्टों को पार करने के लिए, *"जीवाष्म तैल उत्सर्जन"* में बढी कपात का उद्देश‌ रखकर वह लिलाव एक चुनौती थी. वही *"असोशिएशन ऑफ साऊट ईस्ट एशियन नेशन्स"* (आसियन) सदस्यों के आनलाइन परिषद में, चायना के सर्वेसर्वा *शि जिनपिंग* इन्होने अपने डिप्लोमेट भाषण में कहा कि, *"दक्षिण पुरब आशिया पर चायना अपना वर्चस्व निर्माण नही करेगा."* वही दुसरी ओर *"तिब्बत - तायवान"* इन देशों की दांसता हम देख रहे है. यही नहीं अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष  *जो बायडन* ने "शिखर परिषद" में चायना को कहा कि, *"चायना अपनी सार्वभौमिकता एवं सुरक्षा हितों की रक्षा करेगा. तैवान प्रश्नों पर हमसे उलझने की चेष्टा न करे. नही तो आग में तुम भी जल जाओंगे."* उधर *"रशिया - युक्रेन युध्द"* की ताजा वास्तविकता को, हम देख रहे है. अमेरिका से लेकर सभी देश  केवल मुक प्रदर्शक है. *"द्वितीय महायुद्ध"* में *"तिब्बत"* यह देश स्वतंत्र हुआ करता है. अमरीकी राजनीति नें उसे चायना का गुलाम बनाया. साथ ही जवाहरलाल नेहरु की "विदेश नीति" भी इसके लिए जिम्मेदार रही है. और नेहरु के उस विदेश नीति पर, *डा. आंबेडकर* ने अपनी नाराजी जताई थी. उस पर पुरी जानकारी फिर कभी बताऊंगा. परंतु *"द्वितिय महायुध्द"* खत्म होने के बाद भी, *"भारत को आजादी पाच साल देर से मिलना"* इसे हमे समझना होगा. क्या इसमे *मोहनदास गांधी* की अदुरदर्शिता कारण रही ? यह संशोधन का विषय है. 

     चायना की २१ वी सदी की, "सिल्क रोड एकोनामिक  डेव्हलपमेन्ट" परियोजना, जो *"वन बेल्ट वन रोड"* नाम से शुरु हुयी थी.‌ सन २०१६ में चायना ने उसे *"बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव्ह"* (BRI) इस नाम में बदल दिया. जहां *नेपाल / श्रीलंका  / बांगला देश / अफगानिस्तान* आदी देशों में अरबों डाॅलरों का निवेश, चायना द्वारा किया गया है. अब अमरीका उस परियोजना का विरोध कर रहा है. *"भारत के पास मित्र रुप में कौनसा पडोसी देश है ?"* यह बडा प्रश्न है. *नेपाल* यह विश्व का एकमेव *"हिंदु राष्ट्र"* था. परंतु उन्होने भी नविन संविधान में, स्वयं को निधर्मी राष्ट्र घोषित किया है. जो बहुत महत्वपुर्ण ही है. और हम भारत को *"हिंदु धर्मांधी देश"* बनाने की चेष्टा कर रहे है. उधर *नार्थ कोरिया* का सर्वेसर्वा *किम जोंग उन* अण्वस्त्र परिक्षण कर रहा है. अमेरिका को धत्ता बता रहा है. अर्थात *"चायना - रशिया - नार्थ कोरिया"* यह एक शक्ति बन चुके है. *अमेरिका* बेवस है. अगर *"तिसरा महायुद्ध"* हुआ तो, अमेरिका के साथ भारत की अर्थव्यवस्था यह चरमरा होना लाजमी है. भुखमरी / बेकारी का आलम रहेगा. यह हमे समझना बहुत जरुरी है.

     अभी अभी हमारे देश की *वित्तमंत्री - निर्मला सितारामन* यह कह गयी की, *"अमेरिकी डाॅलर सशक्त होना, इसका मतलब कदापी नही की, भारत का रुपया निचे आना है."* डाॅलर की तुलना मे भारतीय रुपया ८२.३४ होना, इसे हम क्या कहना चाहिये ? हमारे कुछ अर्थविदों के अनुसार, रिझर्व बैंक ने *"रुपया को स्थिर करने के लिए, १०० अब्ज डॉलर बरबाद किये है."* वही हमारी भारत सरकार ने, रिझर्व बैंक स्थित *"रिझर्व फंड पर भी डाका मार दिया है."* जो आज तक के इतिहास में, *"नरेंद्र मोदी सरकार ने वह इतिहास रच डाला."* उधर हमारे भारत सरकार ने, विदेशी कंपनियों को *"भारत आयुर्विमा महामंडल"* (LIC) में २०% की सिधी भागिदारी दे दी है. वही अंबानी के रिलायन्स को *"पेंशन‌ फंड के लिए ९० हजार करोड"* देने का इतिहास रचा गया है. *"राफेल का मामला"* यह तो जगजाहिर है. सबसे अहम विषय है - *"आभासी चलन."* हमारी सरकार इस पर प्रतिबंध नही लगा पायी. उस पर भारत सरकार ने टैक्स लगा दिया है. उधर हमारे रिझर्व बैंक के गव्हर्नर *डाॅ. शशिकांत दास* यह कह गये है कि, *"आभासी चलन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बडा धोका है."*‌सबसे महत्व का विषय यह है कि, सन १९७० में *"भारतीय अर्थव्यवस्था,"* को मजबुती देने के लिए तथा सामान्य लोगों के उत्थान के लिए, *"बैंकों का राष्ट्रीयकरण"* किया गया था. वही आज हमारी भारत सरकार, बैंको का खाजगीकरण करने जा रही है. पुंजीवादी व्यवस्था का अधिक मजबुतीकरण हो रहा है. महंगाई बढ रही है. रोजगार खत्म हो रहा है. गरिबी - भुखमरी चरम सिमा पर है. फिर भी भारत की आवाम पुरी तरह खामोश बैठी है...! इसे हम क्या कहे ? *"आर्थिक गुलाम भारत - सामाजिक गुलाम भारत - राजनीतिक गुलाम भारत - वैचारिक गुलाम भारत...!"* जरा सोचों.


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