Saturday 1 October 2022

 👌 *३ अक्तूबर को नागपुर मे आयोजित - आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद (?) कहे या उसे अ-नाम फेम नाचाओं का अ-विवेकी लोकल मेला कहे ...?*

   *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपुर)

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      नागपुर में ३ अक्तुंबर २०२२ को विवाद आयोजित *"आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद,"* यह आयोंजकों द्वारा नैतिकता का पालन हो रहा है या नही ? इस पर अब ना बोलना ही ठिक है. पर धम्म पद के पाप वग्गो में, बुध्द उपदेश बहुत ही महत्वपुर्ण है. वह यह कि - 

*पापञ्चे पुरिसो कयिरा न‌ तं कयिरा पुनप्पुनं |*

*न तम्हि छन्दं कयिराथ दुक्खो पापस्स उच्चयो ||*

(अर्थात :- मनुष्य से यदी पाप हो जाए तो उसे बार बार ना करे. उस में रत न हो. क्यौं कि पाप का संचय दु:खदायक होता है.)

    उसी पाप वग्गो में बुध्द का उपदेश और भी है, वह यह कि -

*पुञ्ञेञ्च पुरिसो कयिरा कयिराथेतं पुनप्पुनं |*

*तम्हि छन्दं कयिराथ सुखो पुञ्ञस्स उच्चयो ||*

(अर्थात :- व्यक्ति पुण्य कर्म करे, उस फिर फिर करे, उस मे रत रहे. संचित पुण्य सुख का कारण बनता है.)

   जब व्यक्तिद्वारा पाप कर्म बहुत बढ जाते है, उस संदर्भ में बुध्द का यह कहा उपदेश समझना, हमे बहुत आवश्यक है. वह यह है कि -

*पापोपि पस्सति भद्रं याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ पापो   पापानि पस्सति ||*

(अर्थात :- जब तक पाप का दुष्परिणाम सामने नही आता, तब तक पाप भी अच्छा लगता है. जब पाप का दुष्परिणाम देना शुरू करेगा, तब पापी को समझ में आवेगा कि, मैने यह क्या कर दिया ?)

    धम्म पद के दण्ड वग्गो में बुध्द का यह उपदेश बहुत महत्वपुर्ण है. वे इस प्रकार है -

*अथ पापानि कम्मानि करं बालो न बुज्झति |*

*सेहि कम्मेहि‌ दुम्मेधो अग्गिदड्ढोव तप्पति ||*

(अर्थात :- पाप करता हुआ पृथग्जन यह नही जानता कि, वो पाप कर रहा है.‌ दुर्बुध्दि अपने कृत कर्मो के कारण आग में जलते हुये की तरह, वो तपता है.)

      बुध्द ने धार्मिक वस्त्र पहनने का सही अधिकारी कौन‌ है, इस संदर्भ में भी बताया है. अर्थात इस धम्म परिषद में *सहभागी मान्यवर / अध्यक्ष आदी, क्या बुध्द के इस गुण पर खरे उतरते है ?* क्या धम्म परिषद के लिए, बुध्द विचारविदों की कमी थी ? जो आयोजकों ने बुध्द विचारविदों के जगह, किसी *"बुध्द विचार अज्ञानी गधे"* को, आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद के, खुटे में बांध दिया है. जो रा.तु.म. नागपुर विद्यापीठ के उपकुलपती *डॉ. सुभाष चौधरी* इनका नाम, *"आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त"* होने का, अभी अभी शासन समिती अहवाल में है. बस, परिषदी सहभागी आयोजक तथा प्राध्यापकों की, यह कोई *"झेलागिरी"* तो नही है ? बुध्द उपदेश इस प्रकार है -

*ये च वन्तकसावस्स सीलेसु सुसमाहितो |*

*उपेतो दमसच्चेन स वे कासावमरहति ||*

(अर्थात :- जिस व्यक्ति ने मन के मैल को दुर कर दिया है, वो शीलवान है, सदाचारी है, संयमशील और सत्यवादी है, वह व्यक्ति ही काषाय वस्त्र (धार्मिक वस्त्र) पहनने का सही उत्तराधिकारी है.

    बुध्द ने धम्म समझने के लिए, कुछ मुख्य मापदंड भी बतायें है. वे मापदंड है -

*सहस्समपि चे वाचा अनत्थ अनत्थपदसंहिता |*

*एक अत्थपदं सेय्यो यं सुत्वा उपसम्मति ||*

(अर्थात :- मनुष्य बहोत से ग्रंथ का वाचन कर सकता है. परंतु वह उसे समझा ही नही गया तो, वह वाचन निष्प्रयोजन है. व्यर्थ विषयों के हजार श्लोक पढने के बदले, केवल एक ही श्लोक वह समझ गया है, वह उमग गया है, उस नुसार आचरण करता हो तो, उसे मोक्ष मार्ग कहना चाहिये.)

   हमारे दोनो ही मित्र एवं आयोजक *गगन मलिक* हो या नागपुर विद्यापीठ के माजी कुलसचिव *डॉ. पुरणचंद्र मेश्राम* हो, उन्होने बुध्द धम्म को कितना पढा ? आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद के सही आयोजन का कितना अभ्यास है ? या बुध्द के सर्वोत्तम शिष्य *"सारिपुत्र"* के समान, वे दोनो ही आयोजक - *"आंबेडकरी मिशन के सारिपुत्र"* है या नही ? इस विषय पर भी, मै कुछ भी टिप्पणी नही कहुंगा. परंतु *अनाथपिंडिक* द्वारा "जेतवन बुध्द विहार" दान देने के अवसर पर, एक ब्राम्हण दारा बुध्द को, अगला सेनापती कौन है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुये, बुध्द ने जो कुछ कहां है, वह हम सभी को, समझने की बहुत आवश्यकता है. क्या *गगन मलिक / पुरणचंद्र मेश्राम* स्वयं को आंबेडकरी मिशन के, सारिपुत्त तो नही समझ रहे है ? यह भी प्रश्न है. बुध्द का उत्तर इस प्रकार था -

*मया पवत्तितं चक्कं धम्मचक्कं अनुत्तरं |*

*सारिपुत्तो अनुवत्तेति अनजातो तथागतं ||*

(अर्थात :- मैने प्रस्थापित किया हुआ कार्य, सारिपुत्त चला रहा है.‌ तथागत इनके पिछे पिछे आनेवाला, वह एक शिष्य है.)

    तथागत ने *"तिन बंदर"* बतायें थे. जो विदेश के बुध्द विहार में शीला पर अंकित है. जो बाद में *"गांधी के तिन बंदर"* नाम से प्रचलित हुये है. वह तिन बंदर *मोहनदास गांधी की चोरी* है या, मिडिया का झुटा प्रचार था ? यह संशोधन का विषय है. पर वह तिन बंदर दर्शाते थे कि - *"बुरा मत बोलो / बुरा मत देखों / बुरा मत सुनों !"* परंतु अभी के यह तिन बंदर, जो एक अदृश्य तिसरा भी एक बंदर है, महाठग *नितिन गजभीये,* जो गगन मलिक द्वारा विदेशों से, *"मुफ्त में जो धातु (मेटल) की बुध्द मुर्तीयां लायी जाती है, वह अवैध रूप सें भारत में बेचने का, एक बडा दलाल है."* और कुछ जगहों पर, उस बंदरों ने जो नौ इंच की *"प्लास्टर ऑफ पेरिस"* (धातु की नही) की, थोडी सी बुध्द मुर्तीया बांटकर, मिडिया से वाहवा ले रहे है. अर्थात *"दुनिया झुकती है, केवल झुकानेवाला चाहिये."* यह उन तिन बंदरों का मंत्र है. जो इस प्रकार है - *"झुट बोलो / झुटा काम करो / और झुट ही देखो."*

    *"झुट के तिन बंदरों"* का "आंतरराष्ट्रिय बौध्द परिषद" के *आयोजन झुटगिरी* भी अजोबो गरिब है. लोकमत दिनांक ११ अक्तूबर २०२२ के अंक मे, मुख्यमंत्री / उपमुख्यमंत्री से लेकर भाजपा / कांग्रेस / रिपब्लीकन नेताओं को निमंत्रित करने की तथा वह कार्यक्रम *"कविवर्य सुरेश भट"* इस दो हजार लोगों के कैपेसिटी का, सभी सुविधा युक्त *वातानुकुलित सभागृह* में आयोजित किया गया था. परंतु लोगों का भारी विरोध होने से, दो हजार लोग आना असंभवसा देखकर, वर्षा के कारण वहां सुविधा देना असंभव बताकर, पहला झुट बोला गया. दुसरा झुट - किसी राजनीतिक नेताओं को नही निमंत्रित किया गया, यह था. तिसरा झुट - उन्हे कोई बौध्द विचारविद ना मिलना दिखाई देता है.‌ अर्थात वे तिन बंदर आयोजक बहुत बडे विचारविद हो. चवथा झुट - नागपुर विद्यापीठ का वह कार्यक्रम होने से, प्रोटोकाल के अनुसार  उपकुलपती *डा सुभाष चौधरी* इस अबौध्द को परिषद का अध्यक्ष बनाना है. जब की वह कार्यक्रम गगन मलिक फाऊंडेशन का है. नागपुर विद्यापीठ का नही है. नागपुर विद्यापीठ के किस सभा में, सदर आयोजन का मंजुरी दी तथा बजेट में क्या कोई प्रावधान ना बताना, यह पाचवा सफेद झुट है. *"होटल सेंटर पाईंट"* मे केवल ३०० - ४०० लोगों की व्यवस्था करना संभव है. इस तरह अपने झुट को छुपाना, और परिषद में इज्जत का फालुदा ना हो, इस तरह का प्रयोजन किया गया है.

      अब सवाल यह है कि, क्या हमारा *"भिक्खुसंघ एवं बौध्द संघटनाएं,"* इस झुटगिरी के विरोध में, आवाज उठायेंगे...? महत्वपुर्ण विषय यह कि, सदर परिषद के विरोध में, जो प्रश्न उठायें गये थे, उस का उत्तर किसी भी आयोजकों ने, जनता के सामने नही रखा है. बस, केवल मुजोरी है. क्या हम उन तिन बंदरों के मुजोरी को, युं ही झेलना चाहिये. यह भी प्रश्न है. और इस *"चाटुगिरी परिषद"* का भी समाचार लिया जाएगा ...? इस आप के प्रतिक्रिया में...!


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