🇮🇳 *भारतीय प्रजातंत्र का बलात्कारी पुरुष उपराष्ट्रपती जगदीश धनकड !*
*डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म. प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
मा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किसी राज्य का *"राज्यपाल"* हो या, देश का *"राष्ट्रपती"* भी हो, इन्हे तो किसी भी विधेयक को, मंजुरी दिलाने के लिये *"तिन माह की कालमर्यादा"* निश्चित की है. उपरोक्त मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर, भारत के उपराष्ट्रपती तथा राज्यसभा के पदासिन सभापती *जगदीश धनकड* इन्होने, *"राज्यसभा प्रशिक्षणार्थी समारोह"* पर, मा. सर्वोच्च न्यायालय पर कठोर व्यंग कसते हुये *"राष्ट्रपती यह देश का सर्वोच्च पद है. राष्ट्रपती ये संविधान की रक्षा करने की शपथ लेते है. सांसद / मंत्री / उपराष्ट्रपती / न्यायाधीश इन्हे भी संविधान का पालन करना होता है. न्यायपालिका को संविधान की कलम १४५ (३) अंतर्गत संविधान का अर्थ लगाने का अधिकार है, वह भी पाच या उसके अधिक न्यायाधीश खंडपीठ के माध्यम से ही करना होता है. न्यायपालिका को २४ घंटे उपलब्ध होने वाले संविधान अनुच्छेद १४२ यह प्रजातंत्र शक्ति विरोध का अण्वस्त्र बना है. राष्ट्रपती को आदेश देने वाली सर्वोच्च न्यायालय, यह सुपर संसद नहीं है."* यह बात कही है. इसके साथ ही धनकड इन्होने, *"दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के बंगले पर, मिली बडी रोकड प्रकरण पर भी बोले. तिन न्यायाधीशों की समिती पर प्रश्नचिन्ह लगाया. तथा पोलिस स्टेशन में शिकायत ना करने पर भी,"* उन्होंने तिखा व्यंग कसा है. सदर दोनो ही आरोप बहुत गंभिर है. *"न्यायव्यवस्था की इमानदारी"* आज ताक पर है. वही भारत के *"प्रजातंत्र पर बलात्कार"* होते हुये दिखाई देता है. कांग्रेस के पितामाह - *मोहनदास करमचंद गांधी* / ब्राह्मणी भुतपुर्व संघनायक *के. सुदर्शन* / प्राचिन इतिहास के विचारविध *भर्तृहरी* इन्होने, *"भारतीय राजनीति को वेश्यालय"* की उपमा दी थी. अर्थात संसद के दोनो सदनों में बैठे हुये हर सांसद, *"वेश्या"* इस श्रेणी में आ गये. पिछले कुछ सालों से संसद द्वारा ही, *"प्रजातंत्र पर बलात्कार"* होते दिखाई देता है. अत: उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* को बलात्कारी पुरुष कहना, कोई गलत नहीं है. तथा राज्यसभा में *जगदीश धनकड* का कार्यकाल तथा लोकसभा में *ओम बिर्ला* इनका कार्यकाल बडा विवादपुर्ण दिखाई देता है. जो हमारे देश के *"प्रजातंत्र के लिये शर्मसार"* घटना है.
अब हम उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* इनके दोनो ही बयाण पर, कुछ चर्चा करते है. मणीपुर जल रहा था. मणीपुर की *"आदिवासी महिला को विवस्त्र"* करने की घटना हुयी. आदिवासी वर्ग की महामहीम राष्ट्रपती *द्रोपदी मुर्मु* खामोश थी. महिलाओं की ऐसी बहुत सारी घटना भारत में हुयी है. हम इस पर क्या कहे ? विविध राज्यों के विविध प्रकरण बहुत गंभिर थे. विविध *"राज्यपालों"* की भुमिका न्यायपुर्ण नहीं दिखाई दी. कुछ राज्यपाल *"राज्य सदन में पास विधेयक"* बिना-कारणवश रोकते रहे है. अत: सभी राज्यपाल / देश के राष्ट्रपती को, *"विधेयक मंजुरी"* देने हेतु *"कालमर्यादा"* निहित करना बहुत आवश्यक हैं. *निर्वाचन आयोग* (Election Commission) / *प्रवर्तन निदेशालय* (ED) / *गुन्हे अन्वेषण शाखा* (CBI) / *इन्कम टॅक्स* (IT) पर भी बहुत गंभीर आरोप लगे. वे सभी प्रकरण *"सर्वोच्च न्यायालय"* भी गये. कुछ प्रकरण पर *सर्वोच्च न्यायालय"* रुख, यह पक्षपात पुर्ण रहा. सर्वोच्च न्यायालय की साख निचे गिरती गयी. सर्वोच्च न्यायालय के कुछ निर्णय अच्छे भी रहे. परंतु उस निर्णय में *"कृतीशीलता अभाव"* (हाथी के शो केस दात समान निर्णय) था. *"रामजन्मभूमी प्रकरण निर्णय"* में कोई प्रायमा फेसी थी नहीं. केवल *"भावना के आधार"* पर निर्णय दिया गया था. तत्कालीन सरन्यायाधीश *रंजन गोगोई* इनके *"बलात्कार प्रकरण"* पर, रंजन गोगोई स्वयं निर्णय कर गये. तत्कालीन सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड* इन्होने तो, भगवान के भरोसे ही निर्णय दिया है. चंद्रचूड के पास बुध्दी थी ही नही. बहुत से न्यायाधीश इनके निर्णय *"पक्षपात पुर्ण / अ-मेरीट"* रहे है. अगर *"कोलोजीयम पध्दती"* ना होती तो, वे लोग *"चपराशी स्पर्धा परीक्षा"* पास हुये होते या नहीं, यह संशोधन का विषय है. ऐसे बहुत सारे न्यायाधीशों के निर्णयों को पढकर, वे न्यायाधीश *"ना-लायक"* (Not Qualified) दिखाई देते है. अत: न्यायव्यवस्था की साख बहुत निचे गिरती गयी. वैसे सर्वोच्च न्यायालय कुछ न्यायाधीशों ने, *"कुछ कठोर उचित निर्णय"* देते हुये, न्यायव्यवस्था की गरीमा बचाने का प्रयास किया है. उनके कुछ निर्णयों में, *"अच्छी प्रामाणिक छाप"* जताने का प्रयास भी किया गया है. ऐसे समय भारत के बडेबोल उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* इन्होने, सर्वोच्च न्यायालय के उस *"कठोर तथा सर्वथा उचित निर्णय"* पर, तिखा व्यंग कसा है. जब की इसका कोई औचित्य ही नहीं था. उपराष्ट्रपती जगदीश धनकड इन्हे अपनी मर्यादा में ही रहना चाहिये. *"राज्यसभा"* में जगदीश धनकड इन्होने अपनी मर्यादा लांघ दी है. वही बात *"लोकसभा"* में भी ओम बिर्ला इन्होने लांघी है. पदानुरुप उनका कार्य तटस्थ नहीं दिखाई दिया. वे उन हाऊस के एक प्रकार से *"न्यायाधीश"* ही है. उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* इनके इस चापलुसी (?) में, सरकार को खुश कर, *"राष्ट्रपती"* बनने की बु दिखाई देती है.
भारत के महामहीम राष्ट्रपती इनको *"संविधान का अनुच्छेद ६०"* अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के *"सरन्यायाधीश"* ही पद एवं गोपनीयता की शपथ देते है. किसी भी अन्य संविधानिक व्यक्ती को, यह अधिकार ही नहीं है. *"भारतीय संविधान"* की कस्टोडियन भी सर्वोच्च न्यायालय ही है. संविधान *"अनुच्छेद १४५(३)"* अंतर्गत संविधान का अर्थ लगाने का अधिकार भी, सर्वोच्च न्यायालय के पास ही है. संविधान का *"अनुच्छेद १४२"* अंतर्गत *"विशेष अधिकार"* भी, सर्वोच्च न्यायालय के पास है. सर्वोच्च न्यायालय के *सरन्यायाधीश* को शपथ, महामहीम राष्ट्रपती ही देते है. अत: राष्ट्रपती - सरन्यायाधीश यह दोनो संविधानिक पद होकर भी, सर्वोच्च न्यायालय के *"खंडपीठ"* को, राष्ट्रपती - राज्यपाल इन्हे निहित कालावधी में, किसी भी विधेयक मंजुरी देने का निर्णय देना, यह *"अच्छे प्रजातंत्र"* के लिये आवश्यक है. ता कि, उन संविधानिक पद पर बैठे हुये इन लोगोंद्वारा, *"प्रजातंत्र की हत्या / बलात्कार"* ना हो. अर्थात सदर संविधानिक पद पर बैठे हुये इन लोगोंद्वारा, संविधानिक गरीमा बनायी जा सके. वे पद का दुरुपयोग ना करे. अत: इस विषय पर मानापमान - ओछी राजनीति करना ठिक नहीं है. भारत के उपराष्ट्रपती *जगदीश धनकड* द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को, *"सुपर संसद"* यह आरोप लगाना, यह धनकड जी की हिन सोच दिखाई देती है. *"भारत की संसद"* की एक अलग ही गरीमा है. और संसद में बैठे उन लोगों द्वारा, अपनी गरीमा का ख्याल रखकर, *"अच्छे लोकोपयोगी निर्णय"* लेना चाहिये. ना कि किसी विशेष *"समुदाय के हित में !"* भारत के संविधान निर्माता *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* सरकार कैसी हो, इस संदर्भ में कहते हैं कि, *"जो सरकार उचित तथा ठिक समय पर, निर्णय लेकरं अमल ना करती हो तो, उसे सरकार कहने का कोई अधिकार नहीं है. यही मेरी धारणा है."* (केंद्रीय विधीमंडल, नयी दिल्ली ८ फरवरी १९४४) *"संविधान सभा"* (Constitution Assembly) में संविधान मंजुरी पर चर्चा करते हुये वे आगे कहते हैं कि, *"संविधान कितना भी अच्छा हो, वह अंमल करने की जिम्मेदारी जिन पर है, वे लोग अप्रामाणिक हो तो, वह संविधान बुरा हो जाएगा. अगर संविधान बुरा भी हो तो, उसका अमल करनेवाले लोग अच्छे हो तो, वह संविधान अच्छा दिखाई देंगा."* (संविधान सभा दिल्ली २५ नवंबर १९४९) अत: बाबासाहेब डॉ आंबेडकर के यह बोल बहुत कुछ बता जाते है. भारत के आज तक जीतने भी *"उपराष्ट्रपती"* हुये है या, *"लोकसभा अध्यक्ष"* हुये है, उन किसी ने भी, अपने पद की गरीमा नहीं गिरायी. जो आज कल दिखाई दे रही है. वही दिल्ली उच्च न्यायालय के *न्या. यशवंत वर्मा* करंसी प्रकरण से भी, *"सर्वोच्च न्यायालय"* बच नहीं सकती. यशवंत वर्मा पर पोलिस केस बनती है. भारतीय संविधान का *"अनुच्छेद १४ - समानता"* के अंतर्गत यशवंत वर्मा दोषी दिखने के कारण, उन्हे दंडित करना बहुत जरुरी है. भारत देश के लिये यह घटना, बडी ही शर्मसार घटना है. आज भारत देश का *"प्रजातंत्र"* (Democracy) भी, बहुत कमजोर होता जा रहा है. *"पुंजीवाद"* (Capitalism) यह शक्तीशाली होता जा रहा है. इसकी दुसरी कडी *"हुकुमशाही"* (Dictatorship) ही है, यह हमें समझना है. अर्थात भारत *"गुलामी की दासता"* में जा रहा है, यह एक धोके की ही घंटी है. जरा सोचों, मेरे भारतीय मित्रौ !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक १९ अप्रेल २०२५
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