Tuesday 1 November 2022

 🇳🇪 *भारतीय करंसी पर लक्ष्मी - गांधी के फोटो विवाद का बिनअकल राजनितिक हिजडापण !*

      *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२ 


     भारत के करंसी पर *"लक्ष्मी का फोटो हो"* इस दिल्ली के मुख्यमंत्री - *अरविंद केजरीवाल* इसके बयाण पर, आज कल मिडिया यें बहुत चर्चा हो रही है. परंतु हमारे *"राजनितिज्ञ की औकात"* भी, हमे समज लेना बहुत जरुरी है. भारत आजादी के पुर्व तथा आजादी के बाद, कांग्रेसी द्रोणाचार्य *मोहनदास गांधी* इन्होने भारतीय राजनिति को *"वेश्यालय"* की उपमा दी थी. तो हमे यह अधिक बताने की अधिक आवश्यकता नही कि, मोहनदास करमचंद गांधी के शब्द म़े, राजनीतिज्ञ कौन है / थे ? *"यह तो समजनेवालों को, वो केवल इशारा ही काफी होता है. ना समजे वो तो अनाडी होंगे."* गांधीजी के पहले प्राचिन भारत के *भर्तृहरि* ने भी, राजनीति को वेश्या कहा है. यही नही तत्कालिन शक्तिशाली भाजपा नेता - *लालकृष्ण आडवाणी* पर, व्यंग कसते हुये संघवाद के तत्कालिन सर्वेसर्वा *सुदर्शन* कह गये थे कि, *"राजनितिज्ञ वेश्या की तरह होते है."* दिवंगत पत्रकार *गौरी लंकेश* इन्होने राजनीतिक नेताओं पर व्यंग कसते हुये कहा था कि, *"वे मुझे वेश्या भी कहे तो, कोई फर्क नही पडता."* गौरी लंकेश, यह जानेमानी पत्रकार एवं वाम दलों से भी ताल्लुक रखती है. लोगों के हक प्राप्ति के लिए, वो स्पष्ट - सत्य लिखाण कर रही थी. उसकी हत्या बहुत ही चर्चा का विषय रहा था. अत: हमे राजनीतिज्ञ को कितना गंभिर लेना चाहिये, यह आप पर निर्भर है.‌ *परंतु भारतीय करंसी (रूपया) का अवमूल्यन, यह बहुत गंभिर विषय है.* क्यौ कि, उसका दुष्प्रभाव यह सीधा ही, जनता के जीवन पर पडता है.

   आजाद भारत की करंसी पर, पहले महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक का राजचिन्ह *"चारो दिशाओं मे दहाड देनेवाले चार शेर"* (चित्र में तिन शेर दिखाई देते है) हुआ करता था. फिर कांग्रेसी शासन काल में, हमारे भारतीय करंसी पर *"मोहनदास गांधी"* को बिठाकर, *"भारतीय राजमुद्रा"* को बहुत ही छोटा कर दिया. अर्थात *"भारतीय करंसी का वह अवमूल्यन"* कांग्रेसी शासन से सुरु हुआ. और *"आज कांग्रेस दल का भी, वैसा ही अवमूल्यन हो गया."* और भाजपा शासन काल में, उस करसीं (रुपया) को *"डाॅलर सादृश्य,"* करते हुये,  केवल  *गांधीजी* को भी करंसी पर नही बिठाया, तो उसके *चष्मे* को भी अलग जगह दी गयी. और *"भारतीय राजमुद्रा"* की जगह, छोटी की छोटी ही रख दिया. *"कल भाजपा का हश्र भी, कांग्रेस की तरह ही होगा."* भारतीय करंसी का अवमूल्यन, हमारी सत्ताधारी शासन पिंढीयों से करते आ रही है. *"आप को बुरे कर्म का फल भोगना ही पडता है."* चक्रवर्ती सम्राट अशोक के कार्यकाल में, यह *"प्रगत अखंड विशाल भारत"* का गौरव था.  न्याय का - समता का - समृध्दी का - मानवता का वह प्रतिक था. *"अगर आप अहसान फरामोश हो जाते हो तो, उसका दुष्प्रभाव आप को भोगना ही होता है."* आप ने चक्रवर्ती सम्राट अशोक से गद्दारी की है. *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक इनकी जयंती, ना ही तो सरकारी तौर पर मनायी जाती है. ना ही उसके जन्म दिन पर, सरकारी छुट्टी दी जाती है."* और जो लोगों का राष्ट्रविकास में योगदान नही होता / है, उनके नाम का जप - तप होता है. मित्रो, यह सहज विषय नही है. हमारे भारतीय करंसी पर, *"मोहनदास गांधीजी"* को हटाकर, *"प्राचिन भारत की सभ्यताओं"* को जगह मिलना यह *"कुशल कर्म"* की निव होगी. *लक्ष्मी देवी* को बिठाने से, भारतीय करंसी को न्याय नही मिलेगा. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"प्रॉब्लेम्स ऑफ रुपिज"* इस अर्थ विषयक ग्रंथ के कारण, *"भारतीय रिझर्व बैंक"* की स्थापना हुयी है. अत: *डॉ.  आंबेडकर साहेब* का फोटो भी, भारतीय करंसी पर हो. यह मांग भी उठ रही है. यह सभी उचित निर्णय हमारे सरकार ने लेना अनिवार्य है.

      अभी अभी हमारी भारत सरकार ने *"अर्थसंकल्प २०२२"* में देश‌ का *वित्तिय घाटा ३७.३%* बताया है.‌ *"अर्थात वह हमे, मंहगाई का अहसास दे रहा है."* भारत में बेकारी तो है ही. *"पुंजीवाद"* मजबुत हो रहा है. *"प्रजातंत्र"* यह केवल नाममात्र शेष है. वही अमेरिकन डाॅलर की तुलना में, भारतीय रुपया और निचे गिरकर *८२.७८* हो गया है. अकसर जो लोग विदेश‌ को जाया करते है, उन्हे इस का अंदाजा विशेषत: होता रहता है. मै कुछ साल पहले विदेश जब गया था, तब *डाॅलर का मुल्य ३३ - ३५* हुआ करता था. पिछले बार भी मेरे श्रीलंका प्रवास में, मुझे डॉलर लेने की आवश्यकता नही पडी. भारतीय करंसी से ही, मुझे श्रीलंका करंसी मिल गयी थी. उधर हमारे देश की *वित्तमंत्री - निर्मला सितारामन* यह कह गयी कि, *"अमेरिका डाॅलर सशक्त होना, इसका मतलब कदापी नही की, भारत का रूपया निचे आना है."* वही हमारे अर्थविदों के अनुसार, *"रिझर्व बैंक ने रुपया को स्थिर करने के लिए, १०० अब्ज डॉलर बरबाद किये है."* वही हमारी भारत सरकार ने, रिझर्व बैंक स्थित *"रिझर्व फंड पर डाका मार दिया है."*  जो आज तक के इतिहास में, किसी सरकार ने जो इतिहास नही रचा, वो इतिहास *"नरेन्द्र मोदी सरकार ने रच डाला है."* वही रिझर्व बैंक के गव्हर्नर - *डॉ शशिकांत दास* इन्होने जोर देकर कहा कि, *"आभासी चलन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बडा खतरा है."* फिर भी उस पर, रोक नही लगाई गयी. सन १९७० में, भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबुती देने के लिए तथा सामान्य लोगों के उत्थान के लिए, *"बैंको का राष्ट्रीयकरण"* किया गया था. आज खाजगीकरण का बोलबाला है. हम केवल टाली बजा रहे है. भारतीय करंसी पर, *लक्ष्मी - गांधी*  इनको बिठाने की चर्चा में मशगुल है.

     हम और कितने सारे पाप करेंगे. सबसे महत्वपुर्ण विषय यह की, धार्मिक भाव यह हमारे राजनीति में कुटकुट के भरा हुआ है. इस लिए मैं तथागत बुध्द द्वारा बतायें हुयें, धार्मिक वचन को ही दोहराऊंगा. बुध्द कहते है -

 *"मधुआ मञ्ञति बालो याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ बालो दुक्खं निगच्छति  ||"*

(अर्थात - जब तक पाप का फल नही मिलता, तब तक अज्ञ व्यक्ति पाप को, मधु के समान समझता है. किंतु उस का फल मिलता है, तब वो दु:ख को प्राप्त होता है.)

*"पापञ्चे पुरिसो कयिरा न तं कयिरा पुनप्पुनं |*

*न तम्ही छंद कयिराथ दुक्खो पापस्स उच्चयो ||"*

(अर्थात - मनुष्य यदी पाप हो जाए तो, उसे बार बार ना करे. उस मे रत ना हो जाए. क्यौ कि पाप का संचय यह दु:खदायक होता है.)

*"पापोपि पस्सति भद्र याव पापं न पच्चति |*

*यदा च पच्चति पापं अथ पापो पापामि पस्सति ||"*

(अर्थात - जब तक पाप का परिणाम सामने नही आता, तब तक पाप अच्छा लगता है. जब पाप का परिणाम आना शुरु हो जाता है, तब पापी को समझ मे आ जाता है कि, मैने क्या कर दिया है.)

*"अभिवादनसिलिस्स निच्चं वध्दापचायिनो |*

*चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु वण्णो सुखं बलं ||"*

(अर्थात - जो नित्य बडों का आदर करता है, अभिवादनशील है, उस की आयु, वर्ण, सुख और बल मे वृध्दी होती है.)

      तथागत बुध्द ने सारनाथ मे अपने पांच भिक्खुओं को, जो प्रथम मार्गदर्शन किया था, उसे *"धम्म चक्र प्रवर्तन"* कहते है. तब बुध्द पाच मापदंड का पालन करने को कहा है. हमे देखना है कि, हम उस मापदण्ड में कितने खरे उतरते है.... ! *१. किसी भी प्राणी की हिंसा ना करना २. चोरी ना करना ३. व्यभिचार ना करना ४. झुट ना बोलना ५. मादक वस्तुओं का सेवन ना करना....!*

     अंत में, यहां ना तो बडों का आदर है.‌ ना ही उन्हे उचित सन्मान दिया जाता है. केवल मतलब की / स्वार्थ की राजनिति हो रही है. जन - मन यह गुलाम, कैसी बनी रहे ? यही राजतंत्र का खेल हुआ करता है. *"देववाद / धर्मांधवाद"* इसके उपर निकलने की, जन - मन की कोई भावना भी नही है. *"भारत राष्ट्रवाद"* कहे या *"भारतीयत्व भावना"* इसका थोडासा भी अपनापन नही है. भारत आजादी के इन ७५ सालों मे, ना ही *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* बना, ना ही तो *"भारत राष्ट्रवाद संचालनालय"* बना है. भारतीय  बजेट में, उस संदर्भ में कोई प्रावधान नही है. हां, देववाद के लिए मात्र बजेट में प्रावधान अवश्य होता है. हमारे राजनीतिज्ञ नेताओं की, कोई *"आदर्श विचारधारा"* नही होती. इसलिये उन्हे कुछ मान्यवरों ने *"वेश्या"* कहा है. मै तो कहुंगा, इन राजनीतिज्ञ को *"वेश्या"* कहना, यह *"वेश्या"* की तोहिम होगी. क्यौं कि, *"वेश्या अपना व्यवसाय बंद कमरे मे करती है."* चौराहों पर वह नग्न नही होती. इन राजनीतिज्ञ ने तो देशों को बाजार में बेचा है. तो इन्हे हम क्या कहे ? सवाल यह है कि, *"यें भारतीय करंसी को उचित मुल्यांकन न्याय कैसे मिले ?"*


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