Tuesday 22 November 2022

 ✍️ *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका पुर्व का सरनेम यह आंब(वडे)कर नही बल्की आंब(डवे)कर था...!!!* (इति - ज.‌ वि. पवार)

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल  राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       नामचीन आंबेडकरी साहित्यकार *ज.‌ वि. पवार* इनके द्वारा लिखा गया, बोधिसत्व डॉ. ‌बाबासाहेब बी. आर. आंबेडकर इनके जीवन संदर्भ का, मराठी भाषा में लिखा गया, एक *"जीवन आलेख,"* मेरे पढने में आया.‌ पवार जी ने, बाबासाहेब के गुरुजी - *कृष्णाजी केशव आंबेडकर* इन्होने अपना छात्र - "भीमराव‌ को, अपना आंबेडकर यह सरल सरनेम लगाने के कहा था. और गुरुजी ने अपने स्कुल के रिकार्ड में, भीमराव‌ का आंबेडकर यह सरनेम सुधार भी डाला." यह संदर्भ *धनंजय किर* इनके द्वारा लिखे गये *"डॉ.  बाबासाहेब आंबेडकर* इनकी जीवनी (आवृत्ति -४, पृ.‌ २०) में दिया हुआ है. परंतु गुरुजी के संदर्भ में, वहां जादा लिखा हुआ दिखाई नही देती. तथा *चांगदेव खैरमोडे* इनके द्वारा लिखी गयी, डॉ. बाबासाहेब की जीवनी में, डॉ. ‌बाबासाहेब आंबेडकर इनके गुरुजी *कृष्णाजी केशव‌ आंबेडकर* इनका जादातर विशेष तपशील, उपलब्ध ना होने की बात कही है.‌ पवार जी द्वारा लिखा गया, बाबासाहेब के गुरुजी पर शोध लिखाण को, उन्होने सबुत डाकुमेंटशन की बात कही है. ज वि पवार जी द्वारा लिखे गये सदर *"शोध लिखाण "* के लिए, ज.‌ वि.‌ पवार जी का सबसे पहले मै अभिनंदन करता हु. जो तथ्य पवार जी ने वहां सादर किये हुये है, वह हमें विचार करने के लिए, बहुत ही मजबुर करते है. अब हम उनके लिखे गये, तथ्यों पर चर्चा करेंगे.

      ज.‌ वि.‌ पवार कहते है कि, "बाबासाहेब के गुरुजी - *कृष्णाजी आंबेडकर** इनका *"आंबेडकर"* यह सरनेम *मु. आंबेड (खुर्द)* ता.‌संगमेश्वर जि. रत्नागिरी इस गाव से गिरा.‌ उनका मुल सरनेम *"मुळ्ये"* (हिंदी में - मुल्ये) था.‌"  यह शोध लिखाण करने के पुर्व, पवार जी सन १९८३ में बैंक ऑफ इंडिया, शाखा साटविली ता. लांजा में कार्यरत थे. बाद में सन १९८५ में, ज वि पवार जी का तबादला संगमेश्वर शाखा मे होने की बात कही. उस कार्यक्षेत्र में, आंबेड (बुद्रुक) तथा आंबेड (खुर्द) यह दो गाव थे. सातारा - सांगली परिसर में, *"आंबेड"* यह गाव है या नही, इस का शोध लेने पर, वहां इस नाम का एक भी गाव नही दिखाई दिया‌. तब पवार जी ने भारतीय बौध्द महासभा के उनके मित्र ज. भा. कदम की मदत ली.‌ तब उन्हे सातारा - सांगली परिसर में, आंबेड यह गाव दिखाई दिया. वहां वे गये. और वहां आंबेडकर गुरुजी के बारे में, जानकारी लेने के प्रयत्न किया. परंतु उन्हे उस संदर्भ की मालुमात नही मिली.‌ उसी मुलाकत में, मुळ्ये नामक एक व्यक्ति की भेट हुयी. तब उस व्यक्ति ने, आंबेडकर गुरुजी इसी गाव के होने की बात कहीं. सौ - सव्वा सौ साल पहले, उन्होने गाव छोड़ा था. और वे फिर कभी इस गाव नही आये. अब उनकी पीढी कहां है, इसके बारें में अज्ञानता जताई.‌ पर गुरूजी भारत के घटनाकार बाबासाहेब के, गुरुजी होने का हमे बडा अभिमान होने की बात, उस व्यक्ति ने जरुर कहीं थी."

     डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्हे, अपने गुरुजी पर बडा अभिमान था. आदर भी था. *"जाती - भेद"* के कठिण परिस्थिति में, गुरुजी का बाबासाहेब को मिला प्रेम, बहुत सुखकारक रहा. सन १९३१ को बाबासाहेब *"गोलमेज परिषद"* को जानेवाले है, यह बात सुनकर, गुरुजी को बडा आनंद हुआ. और गुरुजी अपने पुर्व छात्र को मिलने के लिए, मुंबई आये. और बाबासाहेब को गले लगाकार सन्मान करने की बात भी कहीं.‌ फिर और मिलने की बातें कही.‌ परंतु वह भेट नही हो पायी. क्यौं कि, सन १९३४ में, बाबासाहेब के गुरुजी चल बसे.‌ गुरुजी को *"सातारा के तिलक"* भी कहते थे. वे फिर पुना में रहने को आये. परंतु उनके निवास का पत्ता नही मिल पाया था.

   जवि पवार जी वहा लिखते है, माईसाहेब आंबेडकर इन्होने, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनको भारत सरकार से मिला, *"भारत रत्न"* यह अमुल्य सन्मान प्रतिक, पुना के *"सिम्बायाेसिस"* के पास रखने की बात कही जाती है. सिम्बायाेसिस के प्रमुख डॉ. एस.‌ एस. मुजुमदार है. उनकी पत्नी सातारा की. उन्होने गुरुजी की जानकारी लेनें मे बडी मदत की. उस संस्था के पास बाबासाहेब आंबेडकर के बहोत से चिजें / वस्तुएं तथा बाबासाहेब के गुरुजी का फोटो होने की, बात सुनने में आयी. उसी समय में *सुहास सोनवणे* इनका "चित्रलेखा" मासिक के ८/१२/१९९७ अंक में, आंबेडकरी साहित्य पर एक लेख छपा था. उस लेख में, गुरुजी के फोटो संदर्भ में, *विजय सुरवाडे* का उल्लेख था. मुजुमदार की पत्नी गुरुजी के नाती - रमेशचंद्र आंबेडकर को मिली थी. और उनसे गुरुजी का फोटो उपलब्ध होने पर, अविश्वासनियता का प्रश्न नही रहा. आगे जब पवार जी गुरुजी के लडके / नातीओं को मिलना चाहते थे, परंतु उनका पुरा पत्ता उपलब्ध नही था. तब पवार जी को, *केशव वाघमारे* इनकी बहुमुल्य मदत मिली थी.‌ सिम्बायाेसिस संस्था के माध्यम से *अनुराग आंबेडकर* इनका नाम मिला. उनसे मिले अपुर्ण पत्ते पर, पवार जी ने एक पत्र भी भेजा. तब अनुराग जी ने पवार जी को, पत्र का उत्तर लिखकर उनकी चाची - *अनुराधा आंबेडकर* इनका मोबाईल नंबर भेजा और उनसे संपर्क करने को कहा.

      ज वि पवार इन्होने १९/०७/२०२१ को व्हाट्सएप पर, *अनुराधा आंबेडकर* जी को  मेसेज भेजा. अनुराधा आंबेडकर जी ने, उन्हे २९/०७/२०२१ को उत्तर देकर, उनके ग्रैंड ससुर *कृष्णाजी केशव आंबेडकर* इनके बारे में, कुछ जानकारी देकर, पवार जी के काम की बडी प्रशंसा की. उन्होने उनके चचेरे ससुर - *नारायण कृष्णाजी आंबेडकर* इन्होंने, *स्मृतिशेष - यशंवत दत्तात्रेय आंबेडकर* इनको ११/०८/१९८४ लिखे हुये एक पत्र में, कृष्णाजी आंबेडकर  इनका जन्म १८५५ के आस पास का बताया और मृत्यु २२/१२/१९३४ को बताया था. उनकी शिक्षा ७ वी पास थी. *"सातारा पब्लिक स्कुल"*  में कृष्णाजी आंबेडकर जी, वे मुख्याध्यापक हुआ करते थे, जहां बाबासाहेब आंबेडकर ४ थी तक पढे थे. उन्हे हिंदी, पारसी, गुजराती, मोडी तथा मराठी भाषा का अच्छा ज्ञान था.‌ गुरुजी उस स्कुलमें, २० - २५ वर्ष तक हेड मास्टर थे.‌ बाद में उन्होने *"मिशन स्कुल सातारा"* यहां १०/ १२ साल नोकरी की. उनका नोकरी की समस्त कारकिर्द ब्रिटिश काल की रही. उन्हे *"सातारा का तिलक"* नाम से भी, लोग जानते थे. कृष्णाजी आंबेडकर इनका मुल गाव *वांद्री* जिल्हा - रत्नागिरी था. उस मुल गाव हम लोग तो गये नही, परंतु मेरे देवर *सुरेश दत्तात्रेय आंबेडकर*, नारायणगाव तथा *सुरेश दत्तात्रेय आंबेडकर* और हमारी बहु *नयना आंबेडकर* इन्होने भेट देने की बात कही है. अधिक जानकारी के लिए अनुराधा जी ने, *एड. विनायक (सतिश) यशवंत आंबेडकर* इनसे बात करने को कहा. विनायक आंबेडकर इन्होने बताया की, उनके वांद्री गाव के पुरखों को, आंबेड गाव का वतन मिला था. उनका मुल सरनेम *मुळ्ये* था. और वें *देवरूखे ब्राम्हण छात्र सहाय्यक संघ"* से जुडे हुये थे. उनका *"देवार्षे"* यह नियतकालिक प्रकाशित होता था. अनुराधा आंबेडकर इन्होने, बाबासाहेब (सपकाल) आंबेडकर इन्हे उनके ग्रैंड ससुर ने अपना सरनेम दिया था. और बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने, उसको सहर्ष स्विकृती भी दी थी. इस संदर्भ में, बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने अपनी जिंदगी की, एक यादगार बात बतायी है. बाबासाहेब आंबेडकर कहते है, *"आंबेडकर मास्टर अपने साथ भाजी - भाकर बांधकर लाते थे.‌ और बिच के अवकाश में, गुरुजी बाबासाहेब को, वह खाने को देते थे. वह प्रेम से मिली भाकरी का स्वाद बहुत कुछ अलग ही था."* और गुरुजी का मिला प्रेम - स्नेह, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर कभी भुले नही. तथा  गुरुजी का कहना था कि, *"आंबडवेकर यह सरनेम आडातेडा सा लगता है. उस सरनेम के बदले, तु मेरा आंबेडकर सरनेम लगा ले.‌"* और गुरुजी ने, कैटलॉग में वह बदलाव भी किया. (नवयुग - १३/०४/१९४७) *धनंजय किर* इन्होने लिखे बाबासाहेब आंबेडकर जीवन चरित्र में, *"बाबासाहेब आंबेडकर‌ का सरनेम आंब(वडे)कर लिखा हुआ है."* वास्तविकत: वो सरनेम *"आंबा(डवे)कर"* है.  डॉ.‌ बाबासाहेब आंबेडकर के पिताजी रामजी सपकाल इन्होने, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका सरनेम *"आंब(डवे)कर"* यही लिखा हुआ था. *आंब(वडे)कर"* नही !

     ज. वि.‌ पवार जी ने कहा कि, उन्होने डॉ.‌ बाबासाहेब के गुरुजी इनके वंशजों का, नया शोध लिखाण किया हुआ है. और आंबेडकर गुरुजी के वंशजों ने भी, उनका दायित्व पुरी तरह निभाने का प्रयत्न किया है. जैसे कि - *विनायक आंबेडकर* इन्होने, मुंबई लघुवाद न्यायालय के बार रूम में, डॉ.‌ बाबासाहेब आंबेडकर इनका १२ फीट का तैलचित्र भेट दिया है.‌ *राजीव आंबेडकर* वे जब आय. डी. बी. आय में अधिकारी थे, उनका डॉ.‌ बाबासाहेब की जयंती वहां मनाने मे, बडा सहभाग होता था. गुरुजी का नाति कैप्टन - *रमेशचंद्र शंकर आंबेडकर* (शंकर - गुरुजी का तिसरा लडका) इन्होने, सिम्बायाेसिस के डॉ. एस.एस. मुजुमदार इन्हें बाबासाहेब के हस्तलिखित दिये है. इसके अलावा उन्होने मुजुमदार की पत्नी *संजीवनी* जी को भी, बाबासाहेब आंबेडकर इनके उपर लिखाण के लिए, कुछ दस्तावेज़ भी उपलब्ध कराये थे.‌ आंबेडकर गुरुजी के कुछ रिस्तेदार, मुंबई के विरार तथा बोरिवली के क्षेत्र मे रहते है. *अनुराग / अनुराधा* ये पुना में रहते है.‌ उन सभी लोगों ने, नैतिकता का पालन करते हुये, बाबासाहेब के वह सभी संदर्भ उपलब्ध कराये है. अर्थात डॉ.‌  बाबासाहेब आंबेडकर इनके जीवन चरित्र लिखाण करनेवालों ने, *"कृष्णाजी आंबेडकर गुरुजी का मुल गाव, सन्मानित गाव, मुल सरनेम"* यह जो जगह छोडी दिखाई देती थी, वह जगह भरने का दायित्व ज वि पवार जी ने, पुरी तरह निभाया है. ज वि पवार इन्होने यहां संशोधक होने का, कोई दावा नही किया है. परंतु ज वि पवार के इस बडे प्रयास की, हमे सराहना करनी होगी. यह हमारा दायित्व भी है. और नैतिकता भी...!

      जब कभी हम, सत्य की खोज करने को निकलते है, *"तब हमे वह अपना मिशन समझकर, आगे बढना होता है.‌"* सफलता का आशावाद रखना, यह कोई बुरा विचार नही है. परंतु सफलता ना मिलने पर, हम तुट जाते है. *हम मायुस होकर, उस मिशन को छोडने की चेष्टा भी करते है.* क्यौ कि, हमारी मानसिकता यह सहज पाने की होती है. *"शार्ट कट मार्ग"* के अवलंबन की ओर, हमारा झुकाव होता है. और इस शार्ट कट मे, कभी हम अपनी नैतिकता हद को, पार कर जाते हैै. *"सत्यता, प्रामाणिकता, एकनिष्ठता उनके लिए, कोई मायने ही नही रखता."* और सहजता से मिले वस्तु का, हम मुल्य भी नही कर पाते है.‌ बस, लालसा की अभिव्यक्ति की ओर बढना ??? झुट का सहारा भी कर लेते है. आगे जाकर वह *"झुट बोलना"*, यह उनकी आदतसी बन जाती है. अर्थात नैतिकता की ऐसी तैसी...! क्या हम यह सभी अगुण का सहारा लेकर, खुश रह पाये है ??? यह प्रश्न तो हमे, अपने आप को, पुछना अच्छा है. यह भी सत्य है कि, कभी कभी *"सत्य बोलना,"* यह बडा ही हानीकारक हो जाता है. कभी कभी सत्य बोलने‌ के परिणाम, सफलता ना भी दे, परंतु सत्य बोलना, यह मन को संतोष दे जाता है. और भविष्य में, *"सत्य की ही विजय होती है...!"* झुट का सहारा लेनेवाला, झुट के ही दलदल में फंस जाते है.

     अंत में, हमारे कुछ मित्र वर्ग के कामों के लेखाजोखा पर, आप का लक्ष केंद्रीत करते है. हमारे परम प्रिय मित्र *प्रा.‌ डॉ. प्रदिप आगलावे* इनके बारे में, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर खंड प्रकाशन"* संदर्भ में, जो चर्चा चल रही है, जो कुछ शिकायते हो रही है, यह बडा चिंता का विषय है. बाबासाहेब के खंड प्रकाशन में, *वसंत मुन* जी इनका योगदान, कभी भुलाया नही जा सकता. और वसंत मुन जी के "सदस्य सचिव" काल में, *"डॉ.  बाबासाहेब आंबेडकर खंड प्रकाशन"* जो काम हुआ है, जो अचुकता रही है, वह योगदान बाद में, किसी भी अन्य "सदस्य सचिव" ने नही किया है. बाकी सभी "सदस्य सचिव" को, वह सभी मटेरियल सहजता से मिले है. मेरी व्यक्तिशः वसंत मुन जी से, तिन - चार बार, नागपुर और मुंबई में भेट रही है. मेरी उनसे अच्छी चर्चा भी हुयी है. हमारे और मित्र स्मृतिशेष *"डॉ. कृष्णा कांबले"* भी उस पद पर रहे है. वे नामचीन आंबेडकरी साहित्यकार ना होने के कारण, मैने स्वयं उनके नियुक्ति का विरोध जताया था. फिर भी डॉ. कृष्णा कांबले जी ने अपनी मृत्यु तक, अपना दायित्व निभाने की चेष्टा की है. परंतु *वसंत मुन हो या डॉ. कृष्णा कांबले,* इनका नाम खंड से हटाने के, मेरे परम मित्र *प्रा. डॉ. प्रदिप आगलावे* के कृती का, समर्थन नही किया जा सकता है. *ज वि पवार* जी ने, आंबेडकर गुरुजी का शोध विचार लिखाण, हमारे सामने जो रखा है, उन्होने सहकार्य देनेवालों के नाम लिखने में, कोई कमी नही की है.‌ अर्थात हमे मदत करनेवालों के प्रति / सहकार्य करनेवालों के प्रति, कृतज्ञतापूर्वक भाव रखना बहुत जरुरी है. इसी में, उस व्यक्ति का बडप्पण दिखाई देता है. बस, हमे यह सोच रखना जरुरी है.


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