Friday 18 November 2022

 🌪️  *बाली परिषद जी - २० की आगाज अणुयुध्द हल से लेकर प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का कथन अंधश्रध्दा (?) टालो...!*

   *डॉ. ‌मिलिन्द जीवने "शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      अभी अभी *बाली* (इंडोनेशिया) में, दो दिन की *" जी - २० परिषद"* संपन्न हुयी है. वहां जी - २० इन देशों के राष्ट्र प्रमुख वहां उपस्थित भी रहे है. वही इस परिषद की आगामी अध्यक्षता सकाणु भारत को मिला है. अब देखना होगा कि, भारत क्या गुल खिलायेगा ? *"किसी भी परिस्थिती में, विश्व में अणुयुध्द नही होना चाहियें. और वह युध्द होता है तो, वह कभी जीता भी नही जा सकता...!"* यह बडे ही निर्धार (?) की बातें, अमेरिका के अध्यक्ष *जो बायडेन* तथा चायना के अध्यक्ष *शी जिनपिंग* इन्होने व्यक्त किये है. परंतु महत्वपुर्ण प्रश्न है, *"क्या चायना यह देश युध्द / अणुयुध्द कभी नहीं हो, वह यह मन से चाहता है ?"* अगर चायना मन से यही चाहता हो तो, उसके विश्वशक्ती बनने के इरादों का, क्या कहे..? क्या इतनी सहजता से चायना विश्वशक्ती बन सकता है ? और क्या अमेरिका यह सरलता से होने देगा ? विश्व के अमेरिका - चायना इन दो सशक्त देशों की असली राजनीति, यह *"विश्वशक्ती"* चाहत की तो है...! *रशिया* अब तो इस रेस में नहीं है. *"अमेरिका की आर्थिक हालात कमजोरी की ओर तेजी सें बढ़ना, वही चायना की अर्थव्यवस्था का मजबुतीकरण, इसको हम कैसे ले ?"* वही भारत के आर्थिक अवस्था के बारे में, हम क्या कहे ? भारत तो इस बडे रेस के मुकाबले में, कभी आ ही नहीं सकता. रिझर्व बैंक ऑफ इंडिया के भुतपुर्व गव्हर्नर *डॉ. डी. सुब्बाराव* ने बडे दु:खी मन से कहा कि, *"समाज के कमजोर तबके को, मदत मिलना ही चाहिये. इस विषय पर मतभेद नही है. परंतु सरकार एवं राजनीतिक दल, ये उधार के पैसे लेकर अगर "मुफ्त" की प्रलोभन देती हो तो, आगे आनेवाली पिढीयों को, इसका दुष्परीणाम भोगना पडेगा."*

    प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* जी - २० परिषद के लिए  *बाली* (इंडोनेशिया) जाने के पहले भारत में *"विशाखापट्टणम्"* के दौरे पर थे.‌ तब नरेंद्र मोदी कह गये कि, *"भारत अभी विश्व के आकांक्षा का एक केंद्र बन गया है.‌ पीएम गतीशक्ति उपक्रम के कारण, विदेशी उद्दोग समुह भारत में आ रहे है."* वही हैद्राबाद आय टी - तेलंगाना राज्य पर व्यंग कसते हुये, नरेंद्र मोदी कह रहे थे कि, *"अगर तेलंगाना का विकास करना हो तो, तुम्हे अंधश्रध्दा को दुर रखना होगा."* परन्तु महत्वका विषय यह कि, क्या नरेंद्र मोदी या भाजपाई शासन, अंधश्रध्दा को बढावा नही दे रहा है ? भाजपा की संपुर्ण राजनीति धर्मवाद - देववाद - धर्मांधवाद की है. नरेद्र मोदी का भ्रमण अकसर देवदर्शन में ही दिखाई देता है. क्या  नरेंद्र मोदी  *"भारत राष्ट्रवाद - भारतीयत्व भावना - भारत राष्ट्रवाद संचालनालय - मंत्रालय"* इस दिशा की ओर, अपना रूख करेंगे ? भारत के बजेट में इसका प्रबंधन करेंगे ? यह प्रश्न है. सवाल तो कृतिशिलता का है.

     *"जी - २० देशों के लिए परिषद की अध्यक्षता,"* अब १ दिसंबर २०२२ के बाद प्रधानमन्त्री  *नरेंद्र मोदी* करेंगे. इंडोनेशिया (बाली) की *"जी २० परिषद"* में, इंडोनेशिया के तथा परिषद के अध्यक्ष - *जोको विडोडो* इन्होने औपचारिक रुप से, *"अध्यक्षपद का प्रतिक हतोडा"* नरेंद्र मोदी इनके सुपुर्द भी किया. बाली मे १५ / १६ नवंबर २०२२ के *"जी २० परिषद"* में, रशिया के अध्यक्ष  - *व्लादीमिर पुतिन* उपस्थित ना होने की, बडे जोर शोर से चर्चा चली. *"युक्रेन - रशिया युध्द"* के कारण, अमेरिका तथा मित्र देशों के बीच संघर्षो को टालना, वह कारण भी बताया जा रहा था. सदर जी २० परिषद का *"रिकव्हर टुगेदर, रिकव्हर स्ट्रांगर"* यह उद्देश लेकर, गट में सहभागी देशों की चर्चा भी रही. अब सवाल यह है कि, *"उस जी - २० परिषद का आऊट पुट क्या रहा ?"* या केवल वो *"जी गट राष्ट्र प्रमुखों का एक सांस्कृतिक / राजकिय महोत्सव...???"* अब यह वक्त ही बतायेंगा.

     प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* द्वारा "जी - २० परिषद" के भाषण की बडी तारिफ, हमारी मिडिया बरे जोरो शोरों से कर रही है. नरेंद्र मोदी कह गये कि, *"अभी का काल युध्द का नही है."* वही "जी - २० परिषद" में, रशिया - युक्रेन युध्द पर सदस्य देशों मे, कडे मतभेद भी दिखाई दिये थे.‌ इसके दो महिने पहले हुये - *"शांघाय को-ऑपरेशन (एससीओ) ऑर्गनायझेशन परिषद"* में, रशिया के अध्यक्ष - व्लादीमिर पुतिन के सामने, नरेंद्र मोदी ने दिये भाषण को, *"जी २० परिषद के ठराव मसुदा"* में समावेश करने की तारिफ भी है. *"क्या प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने, रशिया - युक्रेन युध्द का जाहिर निषेध किया है / था ?* अगर नहीं तो, यह नरेन्द्र मोदी की ये तारिफ लिपाथोपी हमे बंद करनी चाहिये. कृतीशीलता भाव को अब तवज्जो देना बहुत जरुरी है‌‌. *"कोव्हिड पश्चात स्थिती, मौसम में बदलाव, अनाज उत्पादन - समस्या, इंधन सुरक्षा, बेकारी, भुखमरी, जन आबादी नियंत्रण"* आदी बहुत सारे प्रश्न है.‌ समस्या है. भारत ने बढ रहे - *"जन आबादी"* (Population) का दर सन २०२३ में, चायना को भी पिछे छोड देनेवाला है. विश्व की सबसे जादा आबादी, चायना की है. आज भारत की जन आबादी १.४१२ अब्ज (१७ करोड ७० लाख की भर) है. और सन २०५० में वह आबादी १.६६८ अब्ज होनेवाली है. वही चायना की जन आबादी १.४२६ अब्ज (७.३ करोड की भर) ही है. सन २०५० में वह आबादी १.३१७ अब्ज होनेवाली है. वही विश्व की आबादी ०८ अब्ज है. भारत के सामने भविष्य मे आनेवाला, नया संकट - गरिबी / बेकारी के अलावा, *"लैंगिक असमानता"* रहनेवाला है. मित्रो, तब सोचो, भारत का सामाजिक / धार्मिक वातावरण क्या होगा ? और हम देववाद / धर्मवाद / धर्मांधवाद में, अब भी उलझे हुये है.

     *द्वितिय महायुध्द* होने के पश्चात, विश्व का संपुर्ण लक्ष, *"विश्व शांती"* स्थापित करने में लगा था. उस समय विश्व की *"आर्थिक बजेट"* तुटसा गया था. और आज अमेरिका - चायना समान देश, युध्द को सहज ले रहे है. उनका संपुर्ण लक्ष *"महाशक्ती"* बनने की ओर है. अगर *"तिसरा महायुध्द"* लादा गया तो, विश्व की आर्थिक हालात पतली होने की संभावना है. अमेरिका आज तिसरा महायुध्द लढने के पक्ष में बिलकुल ही नही है. *परंतु चायना की चाहत तिसरा महायुध्द ही है.* क्यौं कि, रशिया आर्थिक रूप से कमजोर हो रहा है. वो महाशक्ती बनने से दुर है. फिर भी चायना रशिया को *"युक्रेन युध्द"* मामले में, रशिया के पक्ष में खडा है. अमेरिका तो पुरी तरह लाचार है. उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा *किम जांग ऊन* को भी, चायना का पुर्णत: आशिर्वाद होने से, वो बिनधास्त मिसाईल परिक्षण कर रहा है. अमेरिका को ललकार रहा है.‌ फिर भी अमेरिका तो उत्तर कोरिया मामले में, कुछ भी नही कर पा रहा है. चायना का ड्रिम प्रोजेक्ट  - *"बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव्ह"* (BRI) इस प्रोजेक्ट के माध्यम से - पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बांगला देश, म्यानमार सहीत तमाम सभी पडोसी देशों को, चायना द्वारा अपने साथ जोड रखा है.‌ भारत के पक्ष में - ना नेपाल है, ना ही श्रीलंका....!!! अहं सवाल है कि, अब हमारे मित्र देश कितने रहे है ? और हम *"विश्व गुरु"* बनने का, बडा सपना देख रहे है.‌ क्या बात है ?

     चायना के भुतपुर्व अध्यक्ष *माओ त्से तुंग* वे भी, बडे महत्वाकांक्षी शासक थे. कहा जाता है कि, एक लामा ने माओ का भविष्य बताकर, *माओ की मृत्यु की भी भविष्यवाणी की थी.* माओ, ये बहुत साल तक जिवित रहना चाहते थे. चायना पुलिस को, भ्रमण करनेवाले एक तिब्बती लामा पर संदेह हुआ. चायना पुलिस ने उस लामा को पकड़कर, उसका मेडिकल परिक्षण किया गया. *"मेडिकल परिक्षण में, उस तिब्बती लामा की उम्र, ४०० साल की बतायी गयी. परंतु वह ४० साल का दिख रहा था."* चायना पुलिस ने, उस लामा को बहुत यातनाएं दी. और *"उम्र बढानेवाली घाटी का रहस्य"* वह जानना चाहते थे. परंतु उस लामा ने, उस रहस्य के बारे में, कुछ भी नही बताया. फिर माओ के कहने पर, उस लामा को छोडा गया.‌ ता कि, वो उस घाटी में जाने से, उस घाटी का रहस्य समज सके. परंतु वह लामा तिब्बत होते हुये, अरुणाचल प्रदेश के *"तवांग बुध्दीस्ट मानेस्ट्री"* की ओर चल कर भारत आया. सन १९६२ में तत्कालिन प्रधानमन्त्री  *जवाहरलाल नेहरु* इन्होने, *"पंचशील करार"* को मानते हुये, *"चिनी - हिंदी भाई भाई"* यह घोषवाक्य कहा था.  महत्वपुर्ण विषय यह कि, सन १९६२ का *"चायना - भारत युध्द'* यह चायना द्वारा शुरु किया गया. और किसी भी बातचित से बिना नतीजा, चायना द्वारा ही एकतर्फा बंद भी किया गया था. वह एकमात्र ऐसा युध्द है कि, वह बिना हार - जीत से रोका गया है. *"चायना द्वारा वह एक तरफा युध्द बंदी का कारण, अब भी संस्पेंस है."* वही सन १९६२ में, चायना की सेना का अरुणाचल प्रदेश के तवांग बुध्द विहार में, उस लामा का शोध करना, और वो लामा घोडे पर बैठकर, आसाम की और जाते समय, लामा का वह घोडा पहाडों में फिसलने से, उस लामा की मृत्यु होने के बाद, *"चायना सेना द्वारा उस लामा के मृत शरिर को, चायना ले जाने के पश्चात,"* चायना द्वारा ही एक तरफा युध्द रोका जाने की, एक आख्यायिका बताते है. महत्वपुर्ण विषय यह कि, माओ की मृत्यु भी, उस लामा की भविष्यवाणी के दिन ही हुयी है, ऐसी कहानी बयान है. चायना का अभी का अध्यक्ष *शी जिनपिंग* भी माओ के रास्ते पर जाने की चर्चा है. *चिनी कम्युनिस्ट दल* की महासभा में, शी जिनपिंग के बाजु मे बैठे हुये, भुतपुर्व राष्ट्राध्यक्ष *हु जिंताओ* को, मार्शल द्वारा बाहर निकाला गया. और *शी जिनपिंग*  ने चायना में, अपने आप को सशक्त नेता बताया.‌ परंतु उस हिन घटना की कभी भी कडी निर्भत्सना नही होना, इसे हम क्या कहे ? उस घटना का जाहिर निषेध ना अमेरिका राष्ट्राध्यक्ष *जो बायडेन* ने किया, ना ही *नरेंद्र मोदी* ने किया, ना किसी देश के प्रमुख ने...!!! आज भी चायना का विवाद, अरुणाचल प्रदेश का *"तवांग भुभाग"* ही रहा है. चायना तवांग पर अपना दावा जता रहा है. एवं उसके बदले चायना भारत को, लद्दाख क्षेत्र के अन्य विवादित क्षेत्र देने को तैयार है.

   *"तिब्बत देश पर चायना का अधिपत्य"* करना, यह भी इतना सहज विषय नही है. *परम पावन दलाई लामा* इनका तिब्बत से भागकर, भारत देश मे आश्रय लेना हो, या उन्होने *"चायना के अधिपत्य में तिब्बत मे शासन"* ना करना (?) हो, यह भी एक बडा संशोधन का विषय है. आज तक *"ना युनो / जी - २० देश और ना ही अमेरिका - भारत,"* तिब्बत के आजादी का हल खोज पाये है. मेरा (डॉ. मिलिन्द जीवने) व्यक्तिगत सामाजिक - धार्मिक  कारणों से, *"तिब्बती आंदोलन"* से, तथा संस्कृती से नजदिकी संबंध रहे है. दस साल पहले, भारत के *"गोठणगाव तिब्बती कैम्प"* से, निकाली गयी *"तिब्बत मुक्ती रैली"* को मैने (डा. जीवने) झंडा दिखाकर उदघाटन किया था. गोठणगाव स्थित *"तिब्बती  विधान सभा"* को देखना हो या, या तिब्बती गेस्ट हाऊस में रहने का, तिब्बती बुध्द विहार देखने का, मुझे सु-अवसर मिला था. यही नहीं तिब्बती बुध्द विहार के *प्रमुख लामा (गुरुजी)* का, नागपुर के धंतोली अस्पताल मे निधन होने पर, (डाक्टरों ने मृत्यु प्रमाणपत्र देने पर भी) वहां के तिब्बती लामाओं ने उनके मृत्यु होने को नही माना. और प्रमुख लामा जहां बैठते थे, उसके बाजु में *मृत लामा के शरिर* को रखा गया. (बिना बर्फ) और सात दिन के उपरांत, उस मृत शरीर के नाक से खुन बहने पर, अब गुरूजी नही रहे. और सात दिन के बाद, उस प्रमुख लामा का अंतसंस्कार किया गया. परंतु सात दिन तक, वह मृत शरीर को, साधारण स्थिती में रखने पर दुर्गंधी नही आना, *"यह उस प्रमुख लामा जी की, क्या अर्हत अवस्था थी ?"* यह एक संशोधन का विषय है. मै उस लामा जी के अंतसंस्कार मे उपस्थित था. एक ओर लामा के अंतसंस्कार की (समाधी) तैयारी चल रही थी. तो दुसरे ओर खाने की व्यवस्था थी. कोई भी आदमी नही रो रहा था. तब मैने परिचीत व्यक्ति से पुछा कि, "लामा के निधन होने पर भी, कोई भी रोते हुये, नही दिखाई दे रहे है." तो उस परिचित व्यक्ति ने मुझे कहा, *"क्या रोना है. अच्छे लोग आते है. और चले जाते है."* मै यह उत्तर सुनकर, बहुत सोचमें ही रह गया. यह उदाहरण देने का कारण, *"संस्कृती की बडी दुहाई"* देनेवाले के लिए है.

     *"जी - २० परिषद"* की अध्यक्षता, अब प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* करने जा रहे है. अब सवाल यह, उपर बताये गये सवाल है. क्या उन सभी प्रश्नों का हल, प्रधानमन्त्री नरेद्र मोदी के अगवानी मे हो पाएगा या नहीं ? क्या *"तिसरा महायुध्द"* हो या, अन्य छोटे देशों पर महाशक्ती देशों का अधिपत्य क्या रूक पायेगा ? क्या नरेंद्र मोदी, बदले की राजनीति से उपर उठकर, *"स्वच्छ भारत - स्वस्थ भारत - समृध्द भारत - विकास भारत"* की राजनीति करेंगे ? भारत के भुतपुर्व प्रधानमन्त्री *जवाहरलाल नेहरु* को, आधुनिक भारत के निर्माता कहते है. *इंदिरा गांधी* की पहचान "आयरन लेडी" की रही है. भारत को आर्थिक समृध्द करने के लिए, राष्ट्रीयीकरण पॉलीसी का उन्होने अवलंबन किया था. *राहुल गांधी* की "भारत जोडो यात्रा" कितना आऊट पुट देगी, यह वक्त ही बतायेंगा. परंतु राहुल गांधी को, अपने देश का संविधानिक नाम *"इंडिया, दैट इज भारत"* यह मालुम ना हो तो, उसे हम सफल राजनेता कैसे कह सकते है ? प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* की पॉलीसी तो, *"सरकारीकरण से खाजगीकरण"* की ओर ही जा रही है. *प्रजातंत्र* को धत्ता बताकर, *"पुंजीवाद तंत्र"* के हिमायती, वे दिख रहे है. चायना के *शी जिनपिंग* / रशिया के *व्लादीमिर पुतिन* / उत्तर कोरिया के *किम जांग ऊन* या जर्मनी के *हिटलर* की राह पर, *नरेंद्र मोदी* के चलने की, कोई सही मंशा तो नही है ? पंरतु यह भी सत्य है कि, जब जनाधार तुट जाता है, विश्वास ऊठ जाता है तो, उसका *हिटलर* होता है. हिटलर का अंत बडा दु:खदायक रहा है. बुध्द ने पाप / अकुशल कर्म के बारे में कहा कि, *"पापञ्चे पुरिसो कयिरा न तं कयिरा पुनप्पुनं | न तम्ही छंद कयिराथ दुक्खो पापस्स उच्चयो ||"* (अर्थात - मनुष्य यदी पाप हो जाए तो, उसे बार बार ना करे. उस मे रत ना हो जाए. क्यौं कि, पाप का संचय यह दु:खदायक होता है.) कांग्रेस शासन काल में, भारत के करंसी पर स्थित सम्राट अशोक *"राजमुद्रा"* को, बहुत छोटा कर मोहनदास गांधी को बिठाकर, बडी तोहिम की गयी है. भारत का महान शासक - *चक्रवर्ती सम्राट अशोक की जयंती"* ना तो शासन द्वारा घोषित की गयी है, ना ही सरकारी अवकाश घोषित किया गया है. यह देश‌ *"भगवान बुध्द"* का देश है, यही तो भारत की पहचान है. मोहनदास गांधी, *बुध्द के समकक्ष कैसे हो सकते हैं ?* परंतु गांधी का बुध्द के समकक्ष नाम लिया जाता है. यह कथन / कृतीभाव बहुत निंदनीय है. हमारे शासक वर्ग इस बात से अच्छे ज्ञात हो, इसी अपेक्षा में....!!!


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