Tuesday 29 September 2020

 😥 *बांगला देश में बुध्द विहार उध्वस्तीकरण से लेकर साकेत (अयोध्या) इस बुद्ध धरोहर के उध्वस्तीकरण तक...!!!*

* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर १७*

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२


    शुक्रवार २४ जुलै २०२०. नागपुर शहर में कोरोना के लगातार बघते संक्रमण से, *"जनता कर्प्यु"* की घोषणा, आज सुनने को मिली. जो जन - मन का हितकारी निर्णय कहा जा सकता है. वही दुसरी ओर आज के दिन, *"बांगला देश में, बुध्द विहार की केवल तोडफोड ही नहीं तो, बौध्द भिख्खु को गंभिर चोट होने तक मारपिट होना"* यह घटना मुझे बहुत ही बडी वेदना दे गया. और इस हिन घटना की, जितनी भी निंदा की जाए, इसके लिये शब्द के बोल भी कम है...! इसी क्रम में *"बुद्ध धरोहर उध्वस्तीकरण के हिन सिलसिले में, भारत की ब्राम्हणी व्यवस्था को क्या कहे....???"*

     वैसे देखा जाए तो, भारत में बहुजन संख्यांक समाज की बहुलता है. *"फिर भी इस देश पर, ४ प्रतिशत सवर्ण अल्पसंख्याक समुह अधिपत्य रखता है...!"* इस के मुल में जाने का प्रयास *"बहुजन सख्यांक समाज"* ना करता हो, और अल्पसंख्याक सवर्ण की गुलामी चाबुक के कोडे खाता हो तो, यह कितनी बडी शर्म की बात है. बहुजन के इस गुलामी के मुल का कारण *"देववाद, धर्मांधवाद"* है. जो देव - धर्म, इस मानसिक बिमारी से पिडित है. भारत के समस्त मंदिरो की मक्तेदारी, ब्राम्हणशाही के अधिन होकर भी, उस मंदिर में चढावा चढाना, इस में बहुजन बहुसंख्यांक धन्यता मानता है. *"आज मंदिरो का आर्थिक वार्षिक बजेट ३०० लाख करोड से भी जादा है. जब की भारत सरकार का सालाना बजेट रू. १५ लाख करोड...!"* सवाल है, उस मंदिरों के संपत्ती का, राष्ट्र विकास में योगदान क्या...? समाज कल्याण में योगदान क्या...??? फिर समस्त मंदिरो के राष्ट्रियकरण के संदर्भ में,, हमारी *"सर्वोच्च न्यायालय अर्थात सवर्ण न्यायालय"* मौन क्यौ...??? *"भारत राष्ट्रवाद"* यह विचार रूजाने प्रती, मा. सर्वोच्च न्यायालय ने क्या पहल की है....??? हम एक बार समझ भी जाऐंगे कि, *"भारत की सत्ता नीति नंगी है. बेशर्म है. देशद्रोही है. तो क्या, हम ये समझे की, उसके साथ साथ न्याय व्यवस्था भी नंगी हो गयी. बेशर्म हो गयी. देशद्रोही हो गयी...?"* भारत का राष्ट्रगान *"जन गण मन अधिनायक जय हे...."* यह इंग्लंड के तत्कालीन राजा पंचम जार्ज का, पिछले ७० साल से महिमा गाकर, आज भी हम, अंग्रेजो की गुलामी को स्विकार कर रहे है. सवाल यह है कि, हमारी सर्वोच्च न्यायालय स्वयं संज्ञान होकर, राष्ट्र हित में - समाज हित में, उस विषय संदर्भ में, जन याचिकाएं दाखल क्यौ नहीं करती...? या निर्णय क्यौं नहीं देती....? तो फिर सर्वोच्च न्यायालय के *"वॉच डॉग"* इस मुल्य का क्या...?

      अभी अभी मा. सर्वोच्च न्यायालय के तिन सदस्यीय खंडपीठ ने, *"बौध्द भिख्खु की अयोध्या के संदर्भ में, याचिका को ठुकराते हुये एक लाख का जुर्माना लगाया है....!"* यह बात मिडिया में चर्चा में है. वही मा. सर्वोच्च न्यायालय के तिन सदस्यीय खंडपीठ के सदर निर्णय के विरोध में, मिडिया में बहुत कुछ लिखा जा रहा है. क्या हमारी न्याय व्यवस्था, उचित और निरपेक्ष न्याय करने में, असफल हुयी है...? *"रामायण"* यह वाल्मिकी की काल्पनिक कहानी है. वही *"सम्राट अशोक के शिलालेख - स्तंभ"* यह भारत की धरोहर है. यह तो प्रायमा फेसी है. *"भारत के ब्राम्हणी व्यवस्था का प्राचिन इतिहास, यह देश गद्दारी का रहा है. भारत को गुलाम बनाने का रहा है...!"* प्राचिन भारत का महान चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य वंश के, *"विशालकाय अखंड भारत के उध्वस्तीकरण"* में, और आज के भारत को *"भांडवलशाही व्यवस्था के अधिन गुलाम कराने में,"* ब्राम्हणी व्यवस्था को कारक माना जा रहा है. वही न्याय व्यवस्था हो या, प्रशासन व्यवस्था हो या, सत्ता व्यवस्था हो या, अन्य कोई व्यवस्था हो, वहां के सर्वोच्च पदों पर, बगैर परिक्षा दिये ब्राम्हण व्यक्ती विशेष की, वहां नियुक्ती दी जाती है. सवाल यहां मेरिट का है...! *"विकास भारत"* बनाने का है...? क्या ये बामनी मानसिकता, *"विकास भारत... स्वस्थ भारत...!"* बना सकेगा...? यह प्रश्न आप सभी के लिये....!!!!


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* *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर

        (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

* राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२







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