Tuesday 29 September 2020

 🔹 *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके रक्त वारिस बनाम भावना वारिस के बीच उभरता संघर्ष: नैतिकता, दशा एवं दिशा...!!!*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर - १७

     मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

  राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल


     भारतीय समाज व्यवस्था के अस्सल जीवन में, अकसर हमने देखा है कि, *"रक्त के वारिसों"* ने, अपने पुरखों के नाम को डुबाया है. बट्टा भी लगाया है. और *"भावना के वारिसों"* ने, उन नाम को रोशन कर दिया हैं. बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर जी इनके वारिसों का संघर्ष भी, आज हमें उसी मुकाम पर, दिखाई देता है. बाबासाहेब आंबेडकर जी के *"रक्त के वारिस"* अॅड. प्रकाश आंबेडकर,  भिमराव आंबेडकर, आनंदराज आंबेडकर तथा स्वयं घोषित रक्त वारिस (जो बाबासाहेब आंबेडकर जी के सही वारिस नहीं है) राजरत्न आंबेडकर तथा *"भावना के वारिस"* ये समुचा आंबेडकरी समाज है, इनके बीच उभरते संघर्ष के कारण, नैतिकता - दिशा और दशा पर चर्चा करना, यह बहुत ही जरुरी दिखाई देता है. क्यौं कि, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की मुव्हमेंट, चाहे वो सामाजिक मुव्हमेंट (समता सैनिक दल) हो या, धार्मिक मुव्हमेंट (दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया) हो या, राजकिय मुव्हमेंट (दि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया) हो, आज उस के अस्सल अस्तित्व - दिशा - दशा के संदर्भ में, *"हमें अपने अंतर्मन को पुछना है. क्या हम सही दिशा में जा रहे है...? तभी हम, उस का सही आकलन कर सकते हैं, अन्यथा नहीं...!"*

    सबसे पहले हम डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी द्वारा स्थापित सामाजिक संघटन एवं धार्मिक संघटन पर चर्चा करेंगे. बाबासाहेब ने २० मार्च १९२४ में, *"बहिष्कृत हितकारिणी सभा"* इस सामाजिक संघटन की बुनियाद रखी. फिर ऐसा क्या हुआ कि, बाबासाहेब को सन १९२७ में, *"समता सैनिक दल"* (SSD) यह मिलिटरी बेस्ड, सामाजिक संघटन बनाने की जरुरत पडी. हमें यह समझना बहुत जरुरी है कि, सन १९२५ को कट्टरवादी ब्राम्हणों ने *"Royal Secret Service"* (जो बाद में *"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ"* - RSS इस नाम में बदलाव किया) इस वामपंथी प्रभाव-वाला एवं हिटलर को आदर्श माननेवाले, धर्मांध मिलिटरी बेस्ड, सामाजिक संघटन का जन्म हुआ. जिन्हे ये ब्राम्हणी विचारधारा, यह *"सांस्कृतिक संघटन"* मानती है. एक ही काल में निर्मित दोनो ही संघटन (SSD / RSS) में, *"आंबेडकरी संघटन SSD  कहां खडी है...?"* वही RSS यह संघटन, देश के सामाजिक / आर्थिक / धार्मिक / सांस्कृतिक / राजनैतिक / नोकरशाही से लेकरं हर क्षेत्र में, अपना प्रभाविता निर्धारीत करती है. RSS ने *"संघ"* यह शब्द, बुध्द संस्कॄती से लिया है. चाहे उनकी राजनैतिक बुनियाद, ये *"जन संघ"* भी लो...! उनका नया राजनैतिक दल *"भाजपा"* का चुनावी चिन्ह, *"कमल"* ये बुध्द संस्कृती का प्रतिक है. आज हम लोग, *"संघ"*  इस बुद्ध संस्कृती शब्द को भुलाकर, RSS की पहचान कराते है. वही *"कमल"* को भी, उसी परिपेक्ष में देखते है. इतना ही नहीं, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी ने *"द्वी राष्ट्र सिध्दांत"* की बात हमें बताते हुये, हमें चेताया था. हम उस सिध्दांत को, कभी खत्म नहीं कर पाये. आज वह *"द्वी राष्ट्र सिध्दांत"* ( सत्याधारी वर्ग का एक राष्ट्र तथा शोषणधारी वर्ग का एक राष्ट्र) हमारे गले की हड्डी बन गया है. *"हम तो केवल RSS पर, मुंह एवं पेन से "शब्द बाण" छोडते रहते है. और कॄतीशीलता में हम, केवल कॄतीहिनता का परिचय करा देते है...!"* 

      प्राचिन भारत के नेतागिरी का इतिहास देखा जाएं तो, भारत में हमे, विशेष रूप से, दो प्रकार की लिडरशीप दिखाई देती है...!!! एक है *"व्यक्ती सापेक्ष या परंपरा सदॄश्य लिडरशीप"* (Image based leadership) और दुसरी है *"विचारशील लिडरशीप"* (Knowledge Based Leadership). भारत में जादातर *"पहिले वर्ग"* की, लिडरशीप होने के कारण, भारत यह *"मानसिक गुलामी"* से, कभी उभर ही नहीं पाया. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनकी लिडरशिप, यह *"दुसरे वर्ग"* की थी. यही कारण है कि, *"भारत के महार समाज का जो समुह, बौध्द धम्म में धर्मांतरीत हुआ, उन्होंने अपने सामाजिक - शैक्षणिक - धार्मिक - सांस्कृतिक जीवन में, धम्म दीक्षा लेने के बाद, केवल 64 साल के कम अंतराल में, अपने सामाजिक जीवन में, आमुलाग्र मानसिक बदलाव किया. एवं अपना विकास भी किया...!"* और जो समुह, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के साथ नहीं आयें, तो वह समुह, आज भी मानसिक गुलाम में, हमें दिखाई देता है. वे देववाद -  धर्मांधवाद नशा के अधिन है. *अॅड. प्रकाश आंबेडकर की राजनीति, यह पहिले वर्ग की है. दुसरे वर्ग की नहीं...!"*

       बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी द्वारा स्थापित धार्मिक संघटन, *"The Buddhist Society of India"* की दशा और दिशा की स्थिती भी, *"समता सैनिक दल - SSD"* समान ही है. रक्त के वारिस और भावना के वारिसों के इस लढाई में, *मीराताई आंबेडकर एवं प्रकाश आंबेडकर* इन्हे सर्वोच्च न्यायालय में, शर्मसार हार झेलनी पडी. *"भावना के वारिसों की जीत हुयी...!"* आज पुनश्च, तथाकथित रक्त का वारिस  *राजरत्न आंबेडकर* विरुद्ध भावना के वारिसों की लढाई, कोर्ट में शुरु है. और उन दोनों के लढाई में, मैने *(डॉ मिलिन्द जीवने)* मा. धर्मादाय आयुक्त मुंबई इनके समक्ष, *"संविधानिक पक्ष याचिका"* दायर की है. वह मेरी याचिका, उन दोनों पक्षों के लिये, जी का झंझाल बन गया है. अगर उन दोनो ही पक्षों ने, आपसी समझौता कर, कोई निर्णय नहीं लिया तो, भविष्य में, *राजरत्न आंबेडकर /मीराताई आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / तथा स्वयं घोषित भावना के वारीसों* की, सदस्यता रद्द हो सकती है. उन पर, फौजदारी कारवाई हो सकती है. जेल की हवा भी खानी पड सकती है. हमें एकसंघ *"The Buddhist Society of India"* चाहिए. और वहां के पदाधिकारी, ये बौद्ध जनता द्वारा चुनकर जाना चाहिए...! हर पांच साल में चुनाव हो. मनमानी पर रोक लगें. और हमारी पहल, उस दिशा में ही है.

    बाबासाहेब डॉ आंबेडकर जी का राजकीय संघटन, *"The Republican Party of India"* की दशा - दिशा - नैतिकता इस विषय पर, एक अच्छी संशोधनात्मक किताब लिखी जा सकती है. बाबासाहेब का पहिला राजकिय संघटन, *"Independent Labour Party"* को, जिन गंभीर हालतों में बर्खास्त करते हुये, *"Scheduled Case Federation"* का निर्माण करना पडा था...! वह राजनैतिक पहल, हमें समझना बहुत जरूरी है. वही बाबासाहेब आंबेडकर को, उस राजनीति में, अच्छी जीत भी मिली थी. वह बाबासाहेब का, पहिला राजकिय प्रयास था. *"बाबासाहेब ने राजकिय लाभ के लिये, ना किसी मंदिर में गये थे. ना ही, उन्होने देववाद / धर्मवाद का सहारा लिया...!"* और हमें यह कहनें में, किसी प्रकार का संकोच है कि, अॅड. प्रकाश आंबेडकर में, वह मेरीट ही नहीं है. *"आज तक जितनी सिटें, बाबासाहेब चुनकर लायें है. उसकी आधी सिंटे भी, प्रकाश आंबेडकर, ये "पंडागिरी आंदोलन" से कभी जीत पाएगा...!!!"* अॅड. प्रकाश आंबेडकर की राजनीति, यह *"चमको राजनीति"* है. *"विचारशील राजनीति"* नहीं है. जो राजनीति मे, अच्छी से अच्छी सफलता दे...! क्यौ कि, प्रकाश आंबेडकर की राजनीति, यह *"व्यक्ती सापेक्ष या पंरपरा सदॄश्य"* (Image based leadership) है. जब की, बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की राजनीति, ये *"विचारशील लिडरशीप"* (Knowledge Based Leadership) थी. जो सफलता की ओर जाते, हमें दिखाई देती है...! अॅड प्रकाश आंबेडकर, ये आंबेडकरी समाज का, एकमान्य नेता नहीं बन पाया. दुसरे भी प्रकाश आंबेडकर के, कई राजनैतिक दोष रहे है. प्रकाश आंबेडकर ने *"Republican Party of India"* इस राजकीय धरातल को मिटाकर, *"बहुजन महासंघ"* से लेकरं, *"वंचित आघाडी"* समान यह सभी प्रयोग, प्रकाशराव के अपक्व राजनीति का परिपाक है. *मेरे (डॉ मिलिन्द जीवने) और प्रकाशराव आंबेडकर के साथ की मुलाखत में, उन कई विषयों पर, रवि भवन नागपुर में चर्चा हुयी थी.* जो अॅड. प्रकाशराव आंबेडकर, कभी भुल नहीं पाएंगे...!!! उसकी प्रत्यक्ष साक्ष प्रा. रणजीत मेश्राम, विमलसुर्य चिमणकर, डॉ मिलिन्द माने, राजु लोखंडे, शंकर माणके और प्रकाश आंबेडकर २५ - ३० कार्यकर्ते रहे है.

    अॅड. प्रकाशराव आंबेडकर के संदर्भ में, मेरे लिखाण पर, चाहे वह लिखाण *"राजगॄह यह डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बने हो, इंदु मिल स्मारक हो, आंबेडकर भवन हो, पंढरपूर पंडागिरी आंदोलन हो...!"* इस पर, समस्त भारत भर में, अच्छी चर्चा दिखाई दी. और भुचालसा भी आया है. इस कारणवश, मुझे RSS का दलाल, भी कहा गया है. मेरा प्रकाश आंबेडकर इनके प्रती, द्वेषता का आरोप भी  लगा. सब से पहले, उन आरोप लगानेवालों को, यह समझना होगा कि, मेरी प्रकाश आंबेडकर इनसे शत्रुता नहीं है. *"अॅड. प्रकाश आंबेडकर इन्हे सबसे पहले, सामाजिक क्षेत्र में परिचित करानेवाला, डॉ जीवने परिवार है. नागपुर के धनवटे रंगमंदिर में, प्रकाशराव आंबेडकर इनके सत्कार का, बहुत बडा कार्यक्रम लिया गया था. और मैने प्रकाश आंबेडकर इनका, स्वागत भी किया था."* मेरा कार्य, यह धम्म क्षेत्र से संबंधित है. आज धम्म क्षेत्र में, जो बहुत से लोग दिखाई देते है, वे मेरे से जुडे है. चाहे तो, आप उस सभी का, डाकुमेंटेशन देख सकते हैं. हमारे मिशन के कारण, धम्म दीक्षा समारोह को गती मिली. डॉ रुपा कुळकर्णी, प्रा प्रभाकर पावडे, सुरेश भट, मोहनदास नेमिशराय (नामांकित साहित्यिक दिल्ली), व्ही. टी. राजशेखर (ओबीसी नेता एवं संपादक, दलित व्हाईस बंगलोर) आदी मान्यवरों की धम्मदीक्षा से, मेरा करिबी संबंध रहा है. बिहार की मास धम्मदीक्षा, गुजरात में हुये धम्म दीक्षा में, मै व्यक्तीश: उपस्थित रहा हुं. लाखों रुपयों के, धम्म पुस्तकों का वितरण मैने किया है. जागतिक धम्म परिषदों का आयोजन, मेरे मार्गदर्शन में हुआ है. मै धम्म प्रचारक होने के कारण, *"संघप्रमुख डॉ मोहन भागवत"* इन्हे भी, नागपुर में आयोजित *"अखिल भारतीय सर्व धर्म सभा"* में, (मेरे अध्यक्षता में हुयीं) बौध्द धम्म की दीक्षा लेने की, सदर मंच पर, मैने जाहीर अपिल की थी. और उनके धर्मांधवादी विचारों पर, कटु समाचार लिया था. हमारा मिशन यह, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी का, *"बौध्दमय भारत"* बनाना है...! वही कोई हमारा नेता - विचारविद, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इनके विचारों से हटकर, कुछ गलत करता दिखाई देता है, एक प्रहरी के रुप में, मै लिखाण करता हुं. आप उसे, किस रुप में लेते है, यह सभी आप पर निर्भर हैं...!!! अॅड‌. प्रकाशराव आंबेडकर, ये डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"रक्त के वारिस"* है. परंतु हम भी तो, डा. बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"भावना के वारिस"* है. हमारा डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन पर, उतना ही अधिकार है, जितना अॅड. प्रकाशराव आंबेडकर इनका अधिकार है...!!! बाकी इस लिखाण को कैसे ले, यह आप का विषय है...! जय भीम...!!!



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* *डॉ मिलिन्द जीवने'शाक्य',* नागपुर

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

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