Saturday, 12 February 2022

 इस *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १२ फरवरी २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में दर्ज  एतिहासिक घटनाओं के बीच, कृपया एक ऐसी घटना का परिचय दें जो धार्मिक लोगों को, आप के संबधित ग्रंथ में से जानने की आवश्यकता है...!*

* उत्तर : भगवान बुध्द सें जुडी, इतिहास में कई महत्वपुर्ण घटनाएं रही है. और वह घटनाएं बुध्द धर्म ग्रंथ में वर्णीत भी है. परंतु बुध्द ने, किसी भी दैवी चमत्कार को नकारा है. 

    उस कई घटनाओं में सें, एक घटना बताने के पहले, बुध्द ने संस्कार संदर्भ में क्या कहां ? वह पाली गाथा बताना चाहुंगा. 

*अनिच्छा वत संखारा, उप्पावदय धम्मिनो |*

*उपज्जित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वुपसमोहसुखो ||*

(अर्थात - भिक्खुओं ! मै तुम्हे स्पष्ट बता रहा हुं कि, सभी संस्कार नाशवंत है. तुम्हे अप्रमादी रहकर अपने मुक्ति के लिए, प्रयत्न करना है.)

--------------------------------------

तथागत ने स्वयं को "उपदेशक / मार्गदाता" कहा है.‌ देव पुरुष नही. इस संदर्भ में भी, मै पाली गाथा बताना चाहुंगा.

*तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*

*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||*

(अर्थात - कार्य के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत बुध्द का कार्य केवल मार्ग बताना है. उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनो से तुम्हे मुक्त होना है.)

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उपरोक्त दो पाली गाथा समजने से, बुध्द से जुडी घटनाओं को, आप को बोध हो जाएगा. अब मैं *"डाकु अंगुलीमाल"* से जुडी एक घटना का जिक्र करूंगा.

कोशल‌‌ देश का पसेनदी (प्रसेनजित) राजा डाकु अंगुलीमाल से, बहुत परेशान था. क्यौ कि, अंगुलीमाल का जिस जंगल में वास रहता था, वहां दस / बीस / तीस /  चालीस लोग भी एकसाथ उस मार्ग से जाते थे, फिर भी वे अंगुलीमाल का मुकाबला नही कर सकते थे. अंगुलीमाल मारे गये लोगों की एक उंगली काटकर, उस की माला अपने गले में पहनता था. इस लिये उसका नाम *"अंगुलीमाल "* पडा.

--------------------------------------

एक दिन तथागत श्रावस्ती आये थे. उन्होने अंगुलीमाल के अत्याचार की कहानी सुनी. और बुध्द ने उसे सदाचारी पुरूष बनाने का निश्चय किया. और वे अंगुलीमाल जहां रहता था, उस दिशा में निकल पडे. तब सभी लोगों ने, उस रास्ते से न जाने का बुध्द से अनुरोध किया. परंतु बुध्द शांत मन से, किसी को कुछ ना बोले, उस मार्ग पर निकल पडे.

--------------------------------------

अंगुलीमाल ने दुर से ही उस मार्ग से, बुध्द को आते हुये देखा. अंगुलीमाल को बडा आश्चर्य हुआ की, इस मार्ग से मनुष्यों बडा झुंड भी आने को डरता है. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को मारने का निश्चय किया. और वह अपनी ढाल - तलवार लेकर, बुध्द को मारने को निकल पडा. परंतु अंगुलीमाल बुध्द के करिब भी नही जा सका. उसे बुध्द शांत मन से चलते ही नज़र आने लगा. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को आवाज दिया और कहां, *"ऐ तपस्वी रूक जा."*

बुध्द ने कहां, *अंगुलीमाल, मै तो रूका ही हुं. तु अपने दुष्कर्म कब बंद करेगा ? मुझे तुम्हे सदाचार के मार्ग पर ले जाना है. इस लिये, मै तुम्हारे लिए आया हुं. तुम्हारे अंदर का साधुत्व, अभी भी मरा हुआ नही है....!"*

अंगुलीमाल ने कहां, *"तथागत, आप के दिव्य वाणी ने मुझे, दुष्कर्म छोडने को कहां है. वह प्रयास मै निश्चित ही करुंगा...!"*

     डाकु अंगुलीमाल ने, गले से अंगुली की माला फेंक दी. बुध्द के पैरों मे प्रणाम कर, भिक्खु की दीक्षा ली. बाद में बुध्द उसे भिक्खु बनाकर, अपने साथ ले चले.

-------------------------------------

एक दिन राजा प्रसेनजित अपने  सेना के साथ बुध्द को मिलने आये. तब राजा प्रसेनजित बहुत चिंता में दिखे. तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहा, *"हे राजन, क्या हुआ है ? मगध राजा बिंबिसार, वैशाली के लिच्छवी, या अन्य शत्रुओं‌‌ से, क्या आप परेशान है...?"*

तब राजा प्रसेनजित ने कहां, *"नही भगवंत. मै उन लोगों‌ से परेशान नही हुं. डाकु अंगुलीमाल से परेशान हुं."*

तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहां, *"हे राजन, मुंडन किया हुआ, काशाय वस्त्र परिधान किये, जो किसी को मारता नही, चोरी नही करता, झुट नही बोलता, दिन में केवल एक बार खाना खाता है, अत्याचार नही करता, श्रेष्ठ जीवन जी रहा है, उस अंगुलीमाल को देखकर, आप क्या करेंगे ...?"*

राजा प्रसेनजित ने कहां, *"भगवंत, मै उन्हे वंदन करूंगा. उसे मिलने के लिए, मै खडा रहुंगा. उसे बैठने के लिए निमंत्रण दुंगा. उसे वस्त्र - वस्तुओं का दान करूंगा. उस की सुरक्षा करूंगा. परंतु ऐसे दृष्ट पुरुष, किसी की छाया में गिरना, क्या संभव है..?"*

--------------------------------------

तथागत ने कहां, *"हे राजन, ये भिक्खु जो मेरे पास बैठा है, वो अंगुलीमाल ही है. अब आप को, डरने की कोई आवश्यकता नही है."*

राजा प्रसेनजित भिक्खु अंगुलीमाल के पास गया. और उसे पुछा, *"भन्ते, आप के पिता का गोत्र क्या है ? माता का गोत्र क्या है...?"*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहां, *"हे राजन, मेरे पिता का गोत्र गार्ग्य है. और माता का मंत्राणी (मैत्रायणी) है."*

राजा प्रसेनजित ने कहां,*"गार्ग्य मैत्रायणी पुत्रा, सुखी हो. आप के सभी गरजों की, मै व्यवस्था करूंगा."*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहा, *"नही राजन, अब मैने भिक्षा मांगकर खाने की, तीन से जादा चिवर ना रखने की प्रतिज्ञा ली है.‌ मै आप के दान का स्विकार नही कर सकता."* 

बाद में राजा प्रसेनजित तथागत के पास गया और बुद्ध को कहा, *"हे भगवंत, यह अदभुत है. मै जिसे काठी से, तलवार से नही हरा पाया. परंतु आप की इस किमया ने, यह कर दिखाया."* और राजा प्रसेनजित तथागत को वंदन‌ कर, अपने राजवाडा की ओर निकल पडे. 

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एक दिन भिक्खु अंगुलीमाल भिक्षा लेने श्रावस्ती की ओर निकल पडे. तब एक आदमी ने उस, वीट फेककर घायल किया. दुसरे आदमी ने उसे सोटा मारा. तिसरे आदमी ने खापर से वार किया. उस का भिक्षापात्र फोड दिया. तब अंगुलीमाल रक्तबंबाल होकर, फटा हुआ चिवर पहन हुये, बुध्द के पास गया. तब बुध्द ने भिक्खु अंगुलीमाल को कहा, *"अंगुलीमाल, तुम्हे यह सहन करना होगा."* 

अंगुलीमाल ये शांत पुरुष बन गया. आगे जाकर अंगुलीमाल को मुक्त सुख की अनुभुती हुयी. 

* * * * * * * * * * * * * * * * * * 


प्रश्न - २ :

* *वर्तमान समय में रहनेवाले, धार्मिक लोगों के लिए, इस ऐतिहासिक घटना का, क्या अर्थ या महत्व है..?*

* उत्तर : भिक्खु अंगुलीमाल के  डाकु बनने का, एक विशेष इतिहास है. अंगुलीमाल डाकु बनने के बाद, लोगों को मारता था. उनकी उंगलियां काटकर, उन उंगली की माला पहनने के कारण, वो डाकु अंगुलीमाल के रूप में परिचीत हुआ. अंगुलीमाल का मुल नाम *"अहिंसक"* था. वो गुरुकुल में शिक्षा ले रहा था. वो बहुत हुशार, आज्ञाधारक, इमानदार, अपने गुरु का प्रिय शिष्य था. गुरुमाता उस से बहुत स्नेह करती थी. इस कारणवश गुरुकुल के अन्य छात्र, अहिंसक से इर्षा करते थे. उस कारणवश कुछ छात्रों ने, गुरु को अहिंसक की गुरुमाता से, अवैध संबध होने की छुटी बातें सुनाई. गुरु ने भी उन छात्रों के छुटी बातों पर विश्वास कर, अहिंसक की शिक्षा पुरी होने पर, उसे दंडित करने का मन बना लिया. गुरू ने अहिंसक को, *"एक सहस्त्र उंगलियों की माला"* लाने की, गुरु दक्षिणा मांगी. ता कि, अहिंसक वह गुरु दक्षिणा ना ला सके. और गुरु श्रृण से, वो मुक्त ना हो सके. या किसी के हत्या कर, उनकी उंगलियां की माला लाने की चेष्टा करने पर,  राजा द्वारा अहिंसक को मृत्युदंड मिल जाए. अर्थात यहां गुरु द्वारा मांगी गयी गुरु दक्षिणा, यह अंहिसक पर किया गया, एक बडा षडयंत्र ही था. हमारी व्यवस्था भी इसी तरह से अच्छे, होनहार , इमानदार छात्रों से, इस तरह का षडयंत्र करते आयी है.

-------------------------------------

अहिंसक द्वारा व्यवस्था के बडे षडयंत्र का शिकार होना, वही वो डाकु अंगुलीमाल बन जाना, फिर बुध्द को शरण जाने पर, वो भिक्खु बन जाना, यह अहिंसक का एक नया पुनर्जन्म ही है. मुक्ती का मार्ग है. सुखी जीवन का सन्मार्ग है. अर्थात समाज में ऐसे बहुत अहिंसक पुरूष होते है. व्यवस्था के बडे षडयंत्र से, डाकु अंगुलीमाल बन जाते है. और बुध्द पुरुष के सहवास से, वे मुक्ती पाकर, इतिहास में नाम - रूप से पहचाने गये है / जाते है. बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को, पुर्णत: नकार दिया है. केवल नाम -रुप को माना है. इस *"नाम - रुप"* संबध में पाली में, एक गाथा है. वह पाली गाथा इस प्रकार है. (विशुध्दी मग्ग)

*नामों च रूपं च इध अत्थि सच्चते |*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं |*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||*

(अर्थात - नाम रुप की जोडी, यह एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक का नाश होता है, तब दुसरी का भी नाश होता है.‌ और मृतु होता है.)

--------------------------------------

अर्थात इस घटना से,हमे एक सिख यह मिलती है कि, व्यवस्था के शिकार होने पर भी, हमे गलत मार्ग नही जाना चाहिये. हमे उस का मुकाबला करना चाहिये. संघर्ष करना चाहिये. क्यौ कि, गलत मार्ग पर चलने से, अपने को दु:ख ही मिलता है. बदनामी होती है. अत: सन्मार्ग की ओर जाना ही, उत्तम जीवन है. जो उज्वल भविष्य देता है. मुक्ती का मार्ग है.

* * * * *  * * * * * * * *

* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

 इस *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १२ फरवरी २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में दर्ज  एतिहासिक घटनाओं के बीच, कृपया एक ऐसी घटना का परिचय दें जो धार्मिक लोगों को, आप के संबधित ग्रंथ में से जानने की आवश्यकता है...!*

* उत्तर : भगवान बुध्द सें जुडी, इतिहास में कई महत्वपुर्ण घटनाएं रही है. और वह घटनाएं बुध्द धर्म ग्रंथ में वर्णीत भी है. परंतु बुध्द ने, किसी भी दैवी चमत्कार को नकारा है. 

    उस कई घटनाओं में सें, एक घटना बताने के पहले, बुध्द ने संस्कार संदर्भ में क्या कहां ? वह पाली गाथा बताना चाहुंगा. 

*अनिच्छा वत संखारा, उप्पावदय धम्मिनो |*

*उपज्जित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वुपसमोहसुखो ||*

(अर्थात - भिक्खुओं ! मै तुम्हे स्पष्ट बता रहा हुं कि, सभी संस्कार नाशवंत है. तुम्हे अप्रमादी रहकर अपने मुक्ति के लिए, प्रयत्न करना है.)

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तथागत ने स्वयं को "उपदेशक / मार्गदाता" कहा है.‌ देव पुरुष नही. इस संदर्भ में भी, मै पाली गाथा बताना चाहुंगा.

*तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*

*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||*

(अर्थात - कार्य के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत बुध्द का कार्य केवल मार्ग बताना है. उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनो से तुम्हे मुक्त होना है.)

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उपरोक्त दो पाली गाथा समजने से, बुध्द से जुडी घटनाओं को, आप को बोध हो जाएगा. अब मैं *"डाकु अंगुलीमाल"* से जुडी एक घटना का जिक्र करूंगा.

कोशल‌‌ देश का पसेनदी (प्रसेनजित) राजा डाकु अंगुलीमाल से, बहुत परेशान था. क्यौ कि, अंगुलीमाल का जिस जंगल में वास रहता था, वहां दस / बीस / तीस /  चालीस लोग भी एकसाथ उस मार्ग से जाते थे, फिर भी वे अंगुलीमाल का मुकाबला नही कर सकते थे. अंगुलीमाल मारे गये लोगों की एक उंगली काटकर, उस की माला अपने गले में पहनता था. इस लिये उसका नाम *"अंगुलीमाल "* पडा.

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एक दिन तथागत श्रावस्ती आये थे. उन्होने अंगुलीमाल के अत्याचार की कहानी सुनी. और बुध्द ने उसे सदाचारी पुरूष बनाने का निश्चय किया. और वे अंगुलीमाल जहां रहता था, उस दिशा में निकल पडे. तब सभी लोगों ने, उस रास्ते से न जाने का बुध्द से अनुरोध किया. परंतु बुध्द शांत मन से, किसी को कुछ ना बोले, उस मार्ग पर निकल पडे.

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अंगुलीमाल ने दुर से ही उस मार्ग से, बुध्द को आते हुये देखा. अंगुलीमाल को बडा आश्चर्य हुआ की, इस मार्ग से मनुष्यों बडा झुंड भी आने को डरता है. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को मारने का निश्चय किया. और वह अपनी ढाल - तलवार लेकर, बुध्द को मारने को निकल पडा. परंतु अंगुलीमाल बुध्द के करिब भी नही जा सका. उसे बुध्द शांत मन से चलते ही नज़र आने लगा. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को आवाज दिया और कहां, *"ऐ तपस्वी रूक जा."*

बुध्द ने कहां, *अंगुलीमाल, मै तो रूका ही हुं. तु अपने दुष्कर्म कब बंद करेगा ? मुझे तुम्हे सदाचार के मार्ग पर ले जाना है. इस लिये, मै तुम्हारे लिए आया हुं. तुम्हारे अंदर का साधुत्व, अभी भी मरा हुआ नही है....!"*

अंगुलीमाल ने कहां, *"तथागत, आप के दिव्य वाणी ने मुझे, दुष्कर्म छोडने को कहां है. वह प्रयास मै निश्चित ही करुंगा...!"*

     डाकु अंगुलीमाल ने, गले से अंगुली की माला फेंक दी. बुध्द के पैरों मे प्रणाम कर, भिक्खु की दीक्षा ली. बाद में बुध्द उसे भिक्खु बनाकर, अपने साथ ले चले.

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एक दिन राजा प्रसेनजित अपने  सेना के साथ बुध्द को मिलने आये. तब राजा प्रसेनजित बहुत चिंता में दिखे. तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहा, *"हे राजन, क्या हुआ है ? मगध राजा बिंबिसार, वैशाली के लिच्छवी, या अन्य शत्रुओं‌‌ से, क्या आप परेशान है...?"*

तब राजा प्रसेनजित ने कहां, *"नही भगवंत. मै उन लोगों‌ से परेशान नही हुं. डाकु अंगुलीमाल से परेशान हुं."*

तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहां, *"हे राजन, मुंडन किया हुआ, काशाय वस्त्र परिधान किये, जो किसी को मारता नही, चोरी नही करता, झुट नही बोलता, दिन में केवल एक बार खाना खाता है, अत्याचार नही करता, श्रेष्ठ जीवन जी रहा है, उस अंगुलीमाल को देखकर, आप क्या करेंगे ...?"*

राजा प्रसेनजित ने कहां, *"भगवंत, मै उन्हे वंदन करूंगा. उसे मिलने के लिए, मै खडा रहुंगा. उसे बैठने के लिए निमंत्रण दुंगा. उसे वस्त्र - वस्तुओं का दान करूंगा. उस की सुरक्षा करूंगा. परंतु ऐसे दृष्ट पुरुष, किसी की छाया में गिरना, क्या संभव है..?"*

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तथागत ने कहां, *"हे राजन, ये भिक्खु जो मेरे पास बैठा है, वो अंगुलीमाल ही है. अब आप को, डरने की कोई आवश्यकता नही है."*

राजा प्रसेनजित भिक्खु अंगुलीमाल के पास गया. और उसे पुछा, *"भन्ते, आप के पिता का गोत्र क्या है ? माता का गोत्र क्या है...?"*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहां, *"हे राजन, मेरे पिता का गोत्र गार्ग्य है. और माता का मंत्राणी (मैत्रायणी) है."*

राजा प्रसेनजित ने कहां,*"गार्ग्य मैत्रायणी पुत्रा, सुखी हो. आप के सभी गरजों की, मै व्यवस्था करूंगा."*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहा, *"नही राजन, अब मैने भिक्षा मांगकर खाने की, तीन से जादा चिवर ना रखने की प्रतिज्ञा ली है.‌ मै आप के दान का स्विकार नही कर सकता."* 

बाद में राजा प्रसेनजित तथागत के पास गया और बुद्ध को कहा, *"हे भगवंत, यह अदभुत है. मै जिसे काठी से, तलवार से नही हरा पाया. परंतु आप की इस किमया ने, यह कर दिखाया."* और राजा प्रसेनजित तथागत को वंदन‌ कर, अपने राजवाडा की ओर निकल पडे. 

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एक दिन भिक्खु अंगुलीमाल भिक्षा लेने श्रावस्ती की ओर निकल पडे. तब एक आदमी ने उस, वीट फेककर घायल किया. दुसरे आदमी ने उसे सोटा मारा. तिसरे आदमी ने खापर से वार किया. उस का भिक्षापात्र फोड दिया. तब अंगुलीमाल रक्तबंबाल होकर, फटा हुआ चिवर पहन हुये, बुध्द के पास गया. तब बुध्द ने भिक्खु अंगुलीमाल को कहा, *"अंगुलीमाल, तुम्हे यह सहन करना होगा."* 

अंगुलीमाल ये शांत पुरुष बन गया. आगे जाकर अंगुलीमाल को मुक्त सुख की अनुभुती हुयी. 

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प्रश्न - २ :

* *वर्तमान समय में रहनेवाले, धार्मिक लोगों के लिए, इस ऐतिहासिक घटना का, क्या अर्थ या महत्व है..?*

* उत्तर : भिक्खु अंगुलीमाल के  डाकु बनने का, एक विशेष इतिहास है. अंगुलीमाल डाकु बनने के बाद, लोगों को मारता था. उनकी उंगलियां काटकर, उन उंगली की माला पहनने के कारण, वो डाकु अंगुलीमाल के रूप में परिचीत हुआ. अंगुलीमाल का मुल नाम *"अहिंसक"* था. वो गुरुकुल में शिक्षा ले रहा था. वो बहुत हुशार, आज्ञाधारक, इमानदार, अपने गुरु का प्रिय शिष्य था. गुरुमाता उस से बहुत स्नेह करती थी. इस कारणवश गुरुकुल के अन्य छात्र, अहिंसक से इर्षा करते थे. उस कारणवश कुछ छात्रों ने, गुरु को अहिंसक की गुरुमाता से, अवैध संबध होने की छुटी बातें सुनाई. गुरु ने भी उन छात्रों के छुटी बातों पर विश्वास कर, अहिंसक की शिक्षा पुरी होने पर, उसे दंडित करने का मन बना लिया. गुरू ने अहिंसक को, *"एक सहस्त्र उंगलियों की माला"* लाने की, गुरु दक्षिणा मांगी. ता कि, अहिंसक वह गुरु दक्षिणा ना ला सके. और गुरु श्रृण से, वो मुक्त ना हो सके. या किसी के हत्या कर, उनकी उंगलियां की माला लाने की चेष्टा करने पर,  राजा द्वारा अहिंसक को मृत्युदंड मिल जाए. अर्थात यहां गुरु द्वारा मांगी गयी गुरु दक्षिणा, यह अंहिसक पर किया गया, एक बडा षडयंत्र ही था. हमारी व्यवस्था भी इसी तरह से अच्छे, होनहार , इमानदार छात्रों से, इस तरह का षडयंत्र करते आयी है.

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अहिंसक द्वारा व्यवस्था के बडे षडयंत्र का शिकार होना, वही वो डाकु अंगुलीमाल बन जाना, फिर बुध्द को शरण जाने पर, वो भिक्खु बन जाना, यह अहिंसक का एक नया पुनर्जन्म ही है. मुक्ती का मार्ग है. सुखी जीवन का सन्मार्ग है. अर्थात समाज में ऐसे बहुत अहिंसक पुरूष होते है. व्यवस्था के बडे षडयंत्र से, डाकु अंगुलीमाल बन जाते है. और बुध्द पुरुष के सहवास से, वे मुक्ती पाकर, इतिहास में नाम - रूप से पहचाने गये है / जाते है. बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को, पुर्णत: नकार दिया है. केवल नाम -रुप को माना है. इस *"नाम - रुप"* संबध में पाली में, एक गाथा है. वह पाली गाथा इस प्रकार है. (विशुध्दी मग्ग)

*नामों च रूपं च इध अत्थि सच्चते |*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं |*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||*

(अर्थात - नाम रुप की जोडी, यह एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक का नाश होता है, तब दुसरी का भी नाश होता है.‌ और मृतु होता है.)

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अर्थात इस घटना से,हमे एक सिख यह मिलती है कि, व्यवस्था के शिकार होने पर भी, हमे गलत मार्ग नही जाना चाहिये. हमे उस का मुकाबला करना चाहिये. संघर्ष करना चाहिये. क्यौ कि, गलत मार्ग पर चलने से, अपने को दु:ख ही मिलता है. बदनामी होती है. अत: सन्मार्ग की ओर जाना ही, उत्तम जीवन है. जो उज्वल भविष्य देता है. मुक्ती का मार्ग है.

* * * * *  * * * * * * * *

* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

Wednesday, 9 February 2022

 🇪🇬 *कांग्रेस ने देश मे कोरोना फैलाया..! इति नरेंद्र दामोदर मोदी*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


      दिनांक ६ - ७ फरवरी २०२२. राष्ट्रपती के अभिभाषण पर, लोकसभा / राज्यसभा में प्रधानमन्त्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने चर्चा को उत्तर दिया. उस चर्चा में, नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर तिखे प्रहार करते हुये कहा कि, *"कांग्रेस ने देश में कोरोना फैलाया है.‌ कांग्रेस ना होती तो, जातीयवाद को बढावा ना मिलता.‌ कांग्रेस ना होती तो, प्रादेशिक वाद ना बढता.  कांग्रेस ना होती तो, भ्रष्टाचार ना होता. कांग्रेस ना होती तो, शिख बंधुओं का नरसंहार ना हुआ होता. कांग्रेस ना होती तो, स्वदेशी संकल्पना को बल मिलता. कांग्रेस ना होती तो, कश्मिरी पंडित कश्मिर ना छोडते. कांग्रेस ना होती तो, लडकीयां तंदुर में ना जलती. यह सभी इंदिरा इज इंडिया का परिणाम है.‌ आजादी के बाद, महात्मा गांधी ने कांग्रेस बरखास्त करने की बात कही थी. परंतु कांग्रेस बरखास्त ना करने का, यह सब दुष्परीणाम है...!"* नरेंद्र मोदी, यह बिलकुल सच कह गये है. *"बामनशाही का असली चेहरा"* संसद के माध्यम से, समस्त विश्व ने देखा है. भारत में *"बामन शाही - दो रूप* में कार्यरत है. एक है - नरम बामनशाही. ‌और दुसरी है - गरम बामनशाही. ‌कांग्रेस का असली रूप *"नरम बामनशाही"* का है.‌ तो भाजपा का असली रूप *"गरम बामनशाही"* का है. इसके पहले कांग्रेसी नेता *"राहुल गांधी"* ने भी, भाजपा प्रणित सत्ताधीश सरकार (गरम बामनशाही) पर, तिखा हमला किया था. इस साल के राष्ट्रपती अभिभाषण में, दोनो ही बामनशाही दलो ने, एकमेक पर तिव्र वार करते हुयें जन मन को, *अपने अपने नंगेपण का अस्सल परिचय कराया...!!!*

       कांग्रेस हो या भाजपा, इन दोनो ही राजकिय दलों को, बामनशाही कहने पिछे कारण भी है. *"बामनशाही यह एक प्रवृती है, व्यक्ती विशेष नही...!"* वह प्रवृती किसी भी समुहों मे, हमें दिखाई देती है.‌ विद्यमान रहती है. बामनशाही यह क्या है ? *"गरिब हो या मध्यम वर्गीय समुह, इनके प्रती उच्च वर्गीय समुह का रहनेवाला हिन भाव को, बामनशाही कहते है."* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बामनशाही संदर्भ कहते है कि, *"बामनशाही इस शब्द का अर्थ स्वातंत्र, समता एवं बंधुता इन भावों का अभाव, यह मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थ से, इसने सभी बातों पर, कहर बरसाया है. बामन यह उस के जनक है. परंतु यह अभाव अब केवल, बामनों के सिमित नही रहा. इस बामनशाही का संचार, अब सर्वत्र बिखरा हुआ है. और उस ने, सभी वर्ग के आचार एवं विचार को नियंत्रीत किया है. यह बात निर्विवाद सत्य है."* (मनमाड, १३ फरवरी १९३८)

       आजादी मिलने के पहले ही, भारतीय परिस्थिती का सही वर्णन करते हुये डॉ. आंबेडकर कहते है, *"आज देश की सभी संपत्ती, पांढरपेशा वर्ग लेकर बैठा है. उनका ऐशो-आराम सुरू है. यहां तुम्हे पेटभर खाने के लिए, अनाज नही है.‌ और शरीर झाकने के‌ लिए, कपडे नही है."* (सोलापुर, १ जनवरी १९३८) भारत प्रजासत्ताक होने के बाद, दु:खी भाव से डॉ. आंबेडकर कहते है, *"सच कहा जाएं तो, अपने देश‌ में दो राष्ट्र दिखाई देते है. एक है, सत्तारूढ दल वालों का राष्ट्र.‌ और दुसरा है, वह समुह जिस पर शासन किया जाता है, उन का राष्ट्र. सभी के सभी मागासवर्गीय समुह, यह दुसरे राष्ट्र से जुडे है."* (राज्यसभा, ६ सितंबर १९५४) डॉ. आंबेडकर इन्होने, देश के आवाम के बारें में, बहुत कुछ बातें कही है. परंतु हम अभी, इस दो बातों पर चर्चा करेंगे. क्यौं कि, दोनो ही बामनशाही राजकिय दलों के कार्यशीलता का संबध, इन दो बयान पर घुमते नज़र आता है. एक और अहं विषय है, *"परिवार वाद...!"*

     पहले हम *"परिवार वाद",* इस गंभिर विषय पर चर्चा करेंगे.‌ निश्चित ही *"कांग्रेस में नेहरु - गांधी"* यह परिवार वाद, बरसों से चलते आया है.‌ इतना ही नहीं, कांग्रेस से *"जुडे जो भी नेता रहे हो / है,"* उन्होने भी अपने परिवार वाद को आगे बढाया है. अब सवाल है, *"क्या भाजपा दल, परिवार वाद से अछुता रहा है... ?"* भाजपा में कार्यरत सभी आजी / माजी नेता लोग, *"क्या वे अपने परिवार वाद को‌, बढावा नही दे रहे है...?"*  यहां तो नंगे, दोनो ही दल है. केवल यहां भाषणबाजी का खेल, चलते नज़र आ रहा है. शायद भारतीय आवाम, उनके नजरों में बडी बेवकूफ है...!!!

     अब हम नरेंद्र मोदी के भाषण पर चर्चा करेंगे.‌ *"कांग्रेस ना होती तो....!"* जो बोला, वह सच्चाई भी है. क्यौं कि, आजादी के बाद कांग्रेस ने, *"भारत देशभक्ती"* बढाने का, कोई प्रयास ही नही किया. *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय तथा संचालनालय"* का गठण, कभी किया ही नही. ना ही बजेट में कोई प्रावधान. दुसरी बात है - *"सामाजिक / आर्थिक समानता"* प्रस्थापित करने की, कोई पहल भी नही की. अपने सत्ता में मदमस्त रही. फिर भी कांग्रेस ने, *"बैंको का राष्ट्रियकरण "* किया. भाभा अणु संशोधन संस्थान का निर्माण / सरंक्षण क्षेत्र को मजबुत करना / रेल्वे - यातायात को गावों तक पहुचांना / धरण का निर्माण आदी कामों को तवज्जो दी. *"भाजपा दल"* की, क्या उपलब्धी है...? क्या आप‌ ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं‌ संचालनालय"* का गठण कर, भारत देशभक्ती को बढावा देना उचित समझा ? बजेट में उस संदर्भ में कोई प्रावधान किया ? *"सामाजिक एवं आर्थिक समानता"* के लिए, कोई पहल की गयी?  क्या *खेती को उद्दोग* की श्रेणी प्रदान की ? *"खेती का राष्ट्रियकरण / उद्दोगों का राष्ट्रीयकरण / मंदिरों का राष्ट्रियकरण‌ / स्कुल - कॉलेजेस - हॉस्पिटल्स का राष्ट्रीयकरण"* एवं‌ अन्य का, क्या आप ने उन सभी विषयों का, राष्ट्रियकरण करते हुये, *"सामाजिक / आर्थिक समता"* के दरवाजे खोले है ? बल्की आप के सत्ता काल मे आप की समग्र कृती नीति, *"सरकारीकरण का खाजगीकरण की ओर"* दिखाई दी.‌ अर्थात *"पुंजीवादी व्यवस्था"* को, और भी ज्यादा मजबुती प्रदान की है. किसान आंदोलन के समय, आप का असली रूप *"हुकुमशहा / तानाशाह"* का दिखाई देता था. क्या आप *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को, आग में नही झोक रहे थे ?

     दुसरा अहं विषय है, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्ती संबंध मे. Under *Article 124A,* There shall be a commission to be known as the *"National Judicial Appointment Commission"* (NJAC). सदर हुयी‌ दुरूस्ती पर, पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा -  [The Constitution Bench of the apex  court declared the NAJC unconstitutional as its violates the basic structure of the Constitution of India. (99th Amendment)] इसे असंवैधानिक कहे जाने पर भी, भाजपा प्रणित भारत सरकार शांत कैसे बैठ गयी...? सन २०१४ के कानुन अमेंडमेंट में, जो भी कमीयां रह गयी थी तो, उसे सुधार कर नया सुधार बील, क्यौ सादर नही किया गया...? क्या संसद को, संविधान की धाराओं मे, सुधार करने का अधिकार नही है ? या संविधान की धाराओं में, कभी कोई सुधार ही नही किया गया ? क्या मा. सर्वोच्च न्यायालय के साथ, भारत सरकार की कोई अलग से सौदेबाजी हुयी है‌ ? भारत सरकार (नरेंद्र मोदी) से कोई टकराव ना करने का, *मा. सर्वोच्च न्यायालय की कोई भुमिका तो नही है ?* यह भी अहं सवाल है. क्यौं कि, नरेंद्र मोदी इतनी सरलता से, हार मानने‌ वालों में से नही है...!

    आभासी चलन (करंसी) *"बिटकॉइन, एथेरियम, कारडेनो, रिप्पल, बीएनएस"* इन पर, ३०% टैक्स लगाकर, पुंजीवादी लोगों के (अवैध) करंसी को मान्यता प्रदान की. इस का असर भविष्य मे, भारतीय करंसी पर होनेवाला है. जब की, वो अवैध करंसी को ब्यान करना था.‌ आप के सरकार ने *"खाजगीकरण* करने से, *"शोषण व्यवस्था को बल* दिया है. इस कारणवश *"गरिबी / बेकारी - बेरोजगारी"* का ग्राफ, आगे और बढनेवाला है. *"बेघर"* की समस्या, केवल घोषणा करने से छुटनेवाली नही है.‌ बेघर लोगों को घर मिलने की कंडीशन, पुरे करते करते आदमी थक जाता है. वही बैंक कर्ज देने से, हाथ उपर कर देती है.‌ *"तेल"* पर, आप का नियंत्रण ना होने से, *"मंहगाई"* आसमान छुं रही है. *"मुफ्त में अनाज वितरण"* यह गरिबों को, मुफ्त में खाने की आदत, भविष्य मे देश के सामने बहुत बडी समस्या होनेवाली है.‌ उसके बदले *"गरिबों को रोजगार देना,"* यह सही कदम होता. अर्थात भाजपा-प्रणित सरकार की नीति, यह *"पुंजीवादी व्यवस्था / हुकुमशाही व्यवस्था"* की ओर, ले जानेवाली दिखाई देती है. *"प्रजातंत्र व्यवस्था"* को खत्म करने की, वह नीति दिख रही है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, सरकार कैसी हो, इस संदर्भ में‌ कहते‌ है, *"जो सरकार उचित और जल्द से निर्णय लेकर, उस का अमल ना करती हो तो, उसे सरकार कहने का कोई भी अधिकार नही है, और यही मेरी धारणा है."* (केंद्रिय विधीमंडल नयी दिल्ली, दिनांक ८ फरवरी १९४४) अंत मे मै यही कहुंगा, *"पुंजीवाद / हुकुमशाही"* यह, एक सिमित समय तक ठिक रहेगी. परंतु जब उठाव‌ होगा तो, *"रक्त क्रांती"* होगी. जो भविष्य में किसी शासक / पुंजीवादी लोगों के हित में, वह कभी नही होगी.‌ अत: डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"प्रजातंत्र"* संदर्भ के शब्द, आप को अपने ब्रेन मे, वह याद रखना है. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"प्रजातंत्र, जब वह चलानेवाले लोग, लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन में, मुलभुत बदल लाने मे सफल दिखाई देते हो तो, लोग वह बदल बिना रक्तपात से, सहजता से स्विकार करते है.‌ और उसे मै प्रजातंत्र मानता हुं...!!!"*(पुणे, २२ दिसंबर १९५२)


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Tuesday, 8 February 2022

 🇪🇬 *प्रजातंत्र भारत बनाम पुंजीवादी भारत तथा हुकुमशहा भारत एवं बामनी एकाधिकारशाही...!*

  *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

 

      प्रजातंत्र को अंग्रेजी में *"डेमोक्रेसी"* यह शब्द है. जो ग्रीक शब्द *"डेमोक्रेटिया"* से आया हुआ, कहा जाता है. इसा पुर्व पाचवी शताब्दी में, *"डेमोस"* (प्रजा) तथा *क्रेटोस* (नियम) इन दो शब्दों से, इस शब्द का निर्माण बताया गया. वही कुछ विचारविदों ने *"प्रजातंत्र"* की चार विशेषता बतायी है. वे चार विशेषताएं है - १. जनता द्वारा शासन : बहुमत का शासन २. सरकार जिसमे सर्वोच्च शक्ती प्रजा के पास होती है.‌ और आम तौर पर, प्रतिनिधियों के माध्यम से उपयोग में लायी जाती है ३. लोगों द्वारा शासीत एक राजनीतिक इकाई (एक राष्ट्र के रूप में) ४. इस विचार मे विश्वास या व्यवहार कि, सभी लोक सामाजिक रूप में समान है.

      परंतु डॉ. आंबेडकर इन्होने *"प्रजातंत्र "* यह शब्द *"भारत के संविधान "* में, *"बुध्द भिक्खु संघ"* से लेने की बात कही.‌ इस संदर्भ में‌ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने "संविधान सभा" (२६ नवंबर १९४९) में कहा कि, *"It is not that India did not know what Democracy is. There was a time when India was studded with republics, and even where monarchies, they were either elected or limited. They were never absolute. It is not that India did not know Parliaments  or Parliamentary procedure. A study of Buddhists Bhikkhu Sanghas discloses that not only there were parliaments - for the Sanghas were nothing but Parliaments - But the Sanghas knew and observed all the rules of parliamentary procedure known to modern times. They had rules regarding seating arrangement, rules regarding Motions, Resolutions, Quorum, Whip, Counting of votes, Voting of Ballots, Censure Motion, Regularisation, Res Judicata etc. Although these rules of parliamentary procedure were applied by the Buddha to the meetings of Sanghas, he must have borrowed them from rules of political Assemblies functioning in the country in his time."* इस से यह स्पष्ट बोध हो जाता है कि, ग्रीक विचारविदों ने भी *"प्रजातंत्र"* अर्थात Democracy यह शब्द, भारत से (बुध्द) ही लिया है. क्यौ कि, उस काल में बुध्द धर्म का प्रभाव, समस्त विश्व पर दिखाई देता था. वही *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का, बुध्द धर्म पर राजाश्रय यह सर्वविदित है.

     भारत को १५ अगस्त १९४७ को अंग्रेजों से *"आजादी"* मिली या वह *"सत्ता का हस्तांतरण"* था...? यह भी प्रश्न है. क्यौं कि,  *"गोरे अंग्रेजो का शासन"* यह शिस्तबध्द, इमानदार, पारदर्शी, न्यायप्रिय, भ्रष्टाचार मुक्त दिखाई देता है. परंतु *"काले अंग्रेजो का शासन"* (बामनशाही) यह बेशिस्त, धोकादारी, अपारदर्शी, अन्यायपूर्ण तथा भ्रष्टाचार युक्त हमे दिखाई देता है. वही अखंड भारत का *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का शासन भी, गोरे अंग्रेजों के समान ही था. परंतु साथ में *'प्रजातंत्र "* भी दिखाई देता था. वही २६ जनवरी १९५० को होनेवाले, *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) संदर्भ में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) में कहा कि, *"On 26th January 1950, India will be an Independent Country. (Cheers) What would happen to her Independence ? Will she maintain her Independence or will she lose it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an Independent Country ? The point is that she once lost the Independence she had. Will she lost it a second time ? It is this thought which makes me most anxious for the future."* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के, संविधान सभा दिनांक २६ नवंबर १९४९ के वे शब्द, *२६ जनवरी २०२२* को, हमे लागु दिखाई दे रहे है. आज मुझे *अखंड विशाल भारत* के चक्रवर्ती सम्राट अशोक मार्य के आखरी वंशज, *बृहदत्त* की हत्या *बामनी सेनापती पुष्यमित्र शुंग* ने कर, *"बामनी सत्ता - बामनशाही"* की बुनियाद रखी थी. गद्दारी की निव रची थी. *अखंड विशाल भारत* (भारत, पाकिस्तान, नेपाल, अफगानीस्तान, कजाकिस्तान, बांगला देश आदी) को *खंड खंड* कर, *"गुलाम भारत"* यह इतिहास रचा गया. आज *"विदेशी काले अंग्रेज - बामनी वर्ग समुह"* यह उन गद्दारो की वंशज है. तो हम उन बामनी समुहों से, *"देशभक्ती"* की उम्मीद कैसे करे ...?

     अब हम *"पुंजीवाद"* (Capitalism) पर चर्चा करेंगे. ‌पुंजीवाद यह ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिस में धनिक वर्ग उत्पादन साधनों पर अधिकार कर, श्रमिकों का शोषण करता है. *लॉक्स और  हुट* इन विचारविदों के अनुसार, *"पुंजीवाद आर्थिक संघटन की ऐसी प्रणाली है, जिस मे व्यक्तिगत स्वामित्व पाया जाता है. और मानवकृत एवं प्राकृतिक साधनों के व्यक्तिगत लाभ के लिए, प्रयोग किया जाता है. पुंजीवाद अर्थिक प्रणाली वह है, जिसमे उत्पत्ती‌ के भौतिक साधनो‌ं का अधिकार अथवा उपयोग का अधिकार, कुछ ही व्यक्तियों के पास होता है."* भाजपा प्रणित भारत सरकार, क्या कर रही है...? भारत के सरकारी संस्थाओं का *"खाजगीकरण."* कांग्रेसी माजी पंतप्रधान *इंदिरा गांधी* ने, बैंको का *"राष्ट्रीयकरण"* किया था. क्यौ कि, उस काल में‌ एक विशिष्ट वर्ग का, बैंको‌ पर मोनोपॉली हुआ करती थी. भाजप प्रणित *नरेंद्र मोदी* सरकार द्वारा, बी.एस.एन.एल. / रेल्वे / बैंक से लेकर *"सरंक्षण"* (Defense) तथा अन्य सरकारी संस्थाओं का भी *"खाजगीकरण "* कर डाला. और कुछ सरकारी संस्थाओं‌ का, वो करने जा रही है. *भारतीय लढाकु विमानों* का उत्पादन, *सरकारी कंपनी* द्वारा किया जाता था. अब वह *अंबानी* के हवाले कर दिया. *फिर सरकार का दायित्व क्या है / रहा...?* अर्थात भाजपा-प्रणित बामनशाही सरकार द्वारा, हमारे उज्वल *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) को, *"पुंजीवादी भारत"* (Capitalist India) बना डाला...!!!

     अब हमे *"हुकुमशाही व्यवस्था"* अर्थात Dictatorship इस संदर्भ में, यहा चर्चा करना आवश्यक है. *हुकुमशाही व्यवस्था को तानाशाही / अधिनायकवाद / अधिनायकता / अधिकारशाही* यह भी पर्यायी नाम दिये गये है. इतिहास में, बहुत से हुकुमशहा हो गये. उन्होने राजकिय तथा सामाजिक निर्बंध को तोडकर, अनियंत्रित सत्ता चलाई थी. *"उन हुकुमशहा का अंत भी बहुत बुरा हुआ,"* हमे इतिहास में दिखाई देता है. प्रजा के बढते दबाव में, उन हुकुमशहा ने आत्मघात किया है या, किसी को फाशी पर लटका दिया है. वे हुकुमशहा सिमित काल तक, प्रजा के चेहते रहे. परंतु उनके अतिरेक के कारण, उन्हे प्रजा के रोष का सामना करना पडा. भाजपा-प्रणित सरकार / प्रधानमन्त्री *नरेन्द्र मोदी* का कार्य भी, *"कृषी बील"* तथा अन्य विषय संदर्भ में, हुकुमशहा के रुप में दिखाई दिया है. आखिर *"किसान आंदोलन"* के कारण, नरेंद्र मोदी को पिछे हटना पडा. अर्थात *"हुकुमशहा भारत"* (Dictator India), अब हमें नजर आ रहा है. प्रजा के अनुमती बिना, प्रजा पर *सत्ता द्वारा* कानुन को लादने का, भारत में जबरन प्रयास किया गया है. यह जो *"अधिकारशाही"* (En:authoritarianism) है, वो "प्रजातंत्र विरोधी" होती है. दुसरे अर्थ में कहा जाएं तों, वह *सर्वकष-सत्ता* यह *"बहुत्ववाद"* (Pluralism) विरोधी हमे दिखाई देती है. तथा इस व्यवस्था में, *"सर्व-शक्तीमान"* (Omnipotenence) ऐसे प्रजा के अधिकार, यह पुर्णत: निलंबित किये जाते है.‌ अर्थात *"अधिकारो का संकेद्रण"* (Concentration) कर, प्रजा के वैधिक भाव (Legitimate) को खत्म किया जाता है. भाजपा प्रणीत *नरेंद्र मोदी* भी, कांग्रेसी तत्कालीन प्रधानमन्त्री *इंदिरा गांधी* के राह पर चलते हुयें, हमे दिखाई देते है. इंदिरा गांधी, उस‌ काल में सर्वशक्तीमान थी. आज नरेंद्र मोदी, सर्वशक्तीमान दिखाई देते है. इंदिरा गांधी का हश्र, हम सभी ने देखा है. निश्चित ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने, इतिहास के उन हुकुमशहा के हश्र की, जरुर सिख लेनी चाहीये...!!! और संघवादी परिवार ने भी...!!!!

      अब हम *"बामनशाही"* या अंग्रेज़ी में Brahminism, तथा उनके द्वारा निर्मित संघटन पर, चर्चा करेंगे.‌ सन १९२४ मे बामनशाही द्वारा, *"RSS (Royal Secret Service)"* नामक संघटन की, *"लाल झेंडे"* के प्रभाव में बुनियाद रची गयी. जो बाद में, *"राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ"* नाम मे, उस मे बदल कर दिया.‌ *"रॉयल सिक्रेट सर्व्हिस"* (अर्थात - राजा की गोपनीय सेवा) इस नाम से ही, आप उनके काम करने की मानसिकता को, सहजता से समज सकते है.‌ सन १९२४ में भारत गुलाम था. अर्थात *किस राजा की गोपनीय सेवा* के लिए, यह संघटन बनाया गया है / था...? दुसरी बात *RSS ने आजादी के आंदोलन में, सक्रिय भुमिका नही निभायी.‌* विनायक दामोधर सावरकर लो या अटल बिहारी बाजपेयी लो, इनका इतिहास अंग्रेजों से माफी का रहा है. *वही RSS के संस्थापक के जन्म की कडी भी, यह अंग्रेजो से जुडी बतायी जाती है.‌* शायद अंग्रेज, उनके पिता होने का रहस्य भी ..? वही RSS पर, जर्मनी  के *"हिटलर"* का प्रभाव दिखाई देता है / था. *"लाल झेंडे"* के प्रभाव में, संगठन निर्माण हुआ, हमें दिखाई देता है. वो बामनी समुह *"प्रजातंत्र विरोधी"* तथा *"हुकुमशहा वादी"* (Dictotorship) विचारों का है.‌ अर्थात हिटलरशाही (Hitelerism) के वे पुरस्कर्ता है. *"पुंजीवादी व्यवस्था"* से उन्हे परहेज नही है. "हुकुमशाही" के जडे मजबुत करने के‌ लिए,  "पुंजीवाद" का सहारा, वे लोक लेते रहे है. तो फिर, *"भारतीय  देशभक्ती"* की, बामनशाही से अपेक्षा करना वह बेमानी होगी ...!!! बामनी समुह का इतिहास भी विदेशी का है. मौर्य वंश का आखरी *"सम्राट ब्रृहदत की हत्या,"* बामनी वंश का पुष्यमित्र शुंग द्वारा किया जाना, यह इतिहास रहा है. *"अखंड भारत"* को खंड खंड करना हो, भारत को गुलामी के दलदल में ढकेलना हो, या आज के भारत संदर्भ में भी, बामनशाही द्वारा *"पुंजीवादी व्यवस्था"* भारत पर लादना हो, भारत को आर्थिक गुलाम बनाना हो, इन सभी के पिछे बामनी मानसिकता, हमे कार्यरत दिखाई देती है. *फिर भी हमारी भारतीय आवाम, उनके पिछे जाती हो तो, इसे क्या कहें...???*

    भारत के बामनशाही ने *"न्यायपालिका /कार्यपालिका / नोकरशाही / मिडिया"* समान सभी क्षेत्रों पर, अपना अधिपत्य बना रखा है. पुंजीवादी व्यवस्था को खुश करते हुये, *"उद्योग / व्यापार क्षेत्रों"* पर, उन्होने अपना अंकुश बनाया है. भारत की कुल लोकसंख्या के प्रमाण में, *"बामनी समुह / उच्च जातीय का प्रमाण, ४% से भी अधिक नही है.‌"* परंतु बिना आरक्षण, उन्होने *"९०% जगहों पर अपना कब्जा"* बनाया है. सत्ता यह किसी भी दल की हो, बामन वर्ग का *'बिना आरक्षण सदर पदों पर नियुक्ती "* यह निश्चित बना है. वही *"न्यायपालिका"* भी, बामन वर्ग नियुक्ती को, यथावत करने का अपना दायित्व, पुरी इमानदारी से  निभाते आयी है. वही भारत के बहुसंख्यक समाज को, कभी *"आरक्षण प्रश्न,"* इस नाम पर उलझा कर रखना, तो कभी *"देववाद / धर्मांधवाद"* इस नाम पर उलझा कर रखा गया है. इसे बामनशाही मिडिया / कार्यपालिका / न्यायपालिका का षडयंत्र कहे, या हमारी अपनी कमजोरी...? यह संशोधन का अहं विषय है. सवाल यह है कि, *"हमारा ये बहुसंख्यक समाज, कब जाग उठेगा...???"*  कब अधिकारो की लढाई करेगा...??? अर्थात इस *"बामनी एकाधिकारशाही"*‌ को, हम कैसे तोडे...?? यह प्रश्न है.

     बामनी समुह, आज कल *"राष्ट्रवाद"* का डंका, पीटते हुये नजर आते है. उनका कौनसा राष्ट्रवाद है...? *"हिंदु राष्ट्रवाद या भारत राष्ट्रवाद...!!!"* अगर हिंदु राष्ट्रवाद हो तो, हम हिंदु क्यौ बने ? हिंदु यह विदेशी शब्द है. रामायण / महाभारत / वेद आदी में, हिंदु शब्द का उल्लेख कितने बार आया है‌ ? *"हिंदु"* यह दो अक्षरी शब्द नही है. *"हिनदु"* - तिन अक्षरी शब्द है. हिनदु > हिन + दु > हिन = निच / काले मुंहवाला / चोर, दु = प्रजा > हिनदु = निच लोक / चोर. *स्वामी दयानंद सरस्वती* ने हिंदु शब्द के प्रयोग पर, विरोध किया था. हिंदुस्तान > हिंदु + स्तान > निच लोगों का देश. कांग्रेसी अज्ञानी बच्चा *राहुल गांधी* अपने भाषण में, हिंदुस्तान शब्द का जिक्र कर, *"भारत के संविधान "* की तोहिम करता रहा है. प्रधानमंत्री *नरेन्द्र मोदी* को भी *"हिंदुस्तान"* कहने मे, कोई शर्म नही दिखाई दी. भारत के संविधान में, *"इंडिया, दैट इज भारत"* यह शब्द लिखा हुआ है. राहुल गांधी को, अपने देश का संविधानिक नाम, मालुम ना हो तो, वो नेता बनने के लायक भी नही है.‌ वैसे *"संघवादी"* परिवार के लोग भी, अकसर "हिंदुस्तान" बोलते हुये, भारत के संविधान की तोहिम करते आये है. भारत देश में जो भी सरकारे आयी / गयी, उन्होने कभी भी *"भारत राष्ट्रवाद "* जगाने की, कोई चेष्टा नही की. ना उन सरकारों ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय"* का गठण किया है. ना ही *"भारत राष्ट्रवाद संचालनालय"* का गठण किया है...! तो फिर बजेट में, राष्ट्रवाद जगाने का प्रावधान करना तो, बहुत दुर की बात है.‌ हमार देश की *"वॉच डॉग" - सर्वोच्च न्यायालय* भी, स्वयं होकर इस विषय को, ना संज्ञान ले रही है. इन सब के लिए, *लायक न्यायाधीश* होना, बहुत आवश्यक है. इन न्यायाधीशों में मेरिट कहा है.‌ *"न्यायालय में कोलोजीयम"* ना होता तो, वो चपराशी के स्पर्धा परिक्षा भी पास होंगे या नही...? यह प्रश्न है. ना ही कोई राष्ट्रपती ने, इस संदर्भ में ना कोई पहल की है. भारत में *"बिना आरक्षण"* से, बामनी समुह से, *राज्यपाल / आयोग मे अध्यक्ष* - सदस्य, नियुक्त किये जाते है. उनमे भी मेरिट कहा होता है. *"गधों की खोगीर भरती,"* यह उपमा उनके लिए सही है. तो फिर भारत देश, यह *"विकास भारत - उज्वल भारत - स्वच्छ भारत - सुंदर भारत"* कैसे बनेगा ? यह प्रश्न है. भारत आजादी के ७५ साल में, भारत की आवाम में, *देशभक्ती* जगाने की कभी कोशीश ही नही की गयी ...? इस का जिम्मेदार कौन है...??? *न्यायपालिका / कार्यपालिका / विधायिका / मिडिया* / आदी ....!!!! जबाब दो.

     अखंड विशाल भारत का निर्माता - *चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य* का प्रतिक, यह भारत देश की *"राजमुद्रा "* है.‌ परंतु उनकी जयंती पर, भारत सरकार ने ना ही सरकारी छुट्टी घोषित की है. ना ही *"सम्राट अशोक जयंती"* यह, सरकारी स्तर पर मनायी जाती है. *भारत में "चक्रवर्ती सम्राट अशोक जयंती," यह सब से पहले, हमारे संस्था ने मनायी थी.* यह मै गर्व के साथ कह सकता हुं. उस समय चक्रवर्ती सम्राट अशोक का फोटो मिलना भी, बहुत दुर्लभ था. हम ने वह तिथी का जिक्र कर, भारत सरकार को एक पत्र लिखा भी था. सरकारी छुट्टी की मांग भी की थी. परंतु सरकार से जबाब आया था कि, यह विषय अभी उनके एजेंडा में नही है. हमारे भारत सरकारों की नालायकी, केवल यहां तक सिमित नही है. *"भारत का संविधान"* संदर्भ में, जहां चर्चा होती थी, वह ऐतिहासिक वास्तु *"संविधान सभा"* के जगह *"ऑफिसर वाईन क्लब"* बनाया गया था. दिल्ली के मेरे एक मित्र, जो *"केंद्रिय लोक सेवा आयोग"* में वरिष्ठ अधिकारी पद पर नियुक्त थे, तब मै उससे मिलने के उपरांत, दस मिनट दुरी पर स्थित, उस वास्तु को भेट दी थी. तब उस सत्य की मुझे जानकारी हुयी. तभी मैने प्रधानमन्त्री को पत्र लिखकर, उस ऐतिहासिक जगह पर, *"प.पु. डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय संविधान तथा कानुन अकादमी"* बनाने की, मांग की थी. वह भी स्विकार नही की गयी. यह कितनी बडी विडंबना है. हमारे सत्तावादी सरकारे, यह कितने अहसान फरामोश है...!!! उन के हिन कर्म पर, हमे शर्म आती है.

     डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने भारत को *"आदर्श व्यक्ती - आदर्श समाज - आदर्श राष्ट्र"* बनाने का स्वप्न देखा था.  जातीविहिन समाज अर्थात *"बौध्दमय भारत"* होना, वह उसकी कडी थी. उसके साथ ही बाबासाहेब ने *"सामाजिक / आर्थिक समानता"* की वकालत की. उस संदर्भ में डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा कि, *"On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradictions. In politics, we will have equality and in social and economic life we will have inequality. In politics, we will be recognising the principle of one man one vote, one value. In our social and economic life, we shall, by reasons of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradictions ? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will."* (26th November 1949) भारत आजादी ने, आज ७५ साल पार किये है. फिर भी भारत *गरिबी, बेकारी / बे-रोजगारी, बेघर, महंगाई* इन समस्याओं से जुझ रहा है. सरकार इस संदर्भ में, बहुत से वादें और घोषणाएं करती आयी है / रही. परंतु *सामाजिक / आर्थिक समानता* का यहां ना रूज पाना, *यह किस की गलती है ?* यह प्रश्न है. क्या *बामनी एकाधिकारशाही,* इस के लिए कारण है ? यह भी अहं प्रश्न है. *सरकारीकरण* (Nationalization) से *खाजगीकरण* (Privatisation) यह *"सामाजिक / आर्थिक समानता दुरी"* को, और जादा बढायेगी, या कम करेेगी...? वही दुसरी ओर, *"खाजगीकरण से सरकारीकरण की ओर जाना,"* यह एक सर्वोत्तम पर्याय होगा...? हमे इस दिशा में भी सोचने की, चिंतन करने की, संशोधन करने की, बहुत आवश्यकता है.‌ पहिला पर्याय, यह हमे *"पुंजीवाद / हुकुमशहा की अनुभुती"* देता है. वही दुसरा पर्याय, यह *"प्रजातंत्र की ओर"* हमे इंगित करता है.‌ *"भारत में खेती को उद्दोग (Industry) का दर्जा, कभी मिला ही नही."* केवल खोकली सरकारी घोषणा दिखाई देती है. अगर खेती को उद्दोग समज कर, उद्दोगों की सवलत दी गयी होती तो, गरिब  - मध्यम वर्गीय किसानों की, यह हालात नही होती. *"अत: खेती का राष्ट्रीयकरण / मंदिरो का राष्ट्रीयकरण / उद्दोगो का राष्ट्रीयकरण / बैंको का राष्ट्रीयकरण / सभी स्कुल - कॉलेजेस - हॉस्पिटल्स का राष्ट्रियकरण"* होता है तो, *"सामाजिक / आर्थिक समानता की निव"* डाली जा सकती है.‌ अब सवाल यह *"बामनी एकाधिकारशाही"*‌ तोडने का है...? खोया हुआ वह *"प्रजातंत्र भारत"* (Democratic India) लाने का भी है. मेरे विचारों में, इस के शिवाय कोई दुसरा उपाय नही है...!!!


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

Monday, 7 February 2022

Bharat Manubhai Senva posted State Secretary, of CRPC Gujrath.

 🤝 *भारत मनुभाई सेनवा की सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल -  "गुजरात प्रदेश सचिव" पद पर नियुक्ती...!!!*


    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (CRPC) के *"गुजरात प्रदेश सचिव"* पद पर *भारत मनुभाई सेनवा* इनकी नियुक्ती, मेन विंग की राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा *प्रा.‌ वंदना जीवने* तथा सेल की "राष्ट्रीय महासचिव" *डॉ. किरण मेश्राम* इनसे चर्चा कर, गुजरात प्रदेश‌ अध्यक्ष *मिलिन्द बडोले* इन्होने घोषित की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / वुमन विंग / वुमन क्लब / ट्रायबल विंग के *"राष्ट्रीय पेट्रान"* तथा सेल के आंतरराष्ट्रिय / राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेजी गयी है.

     उपरोक्त नियुक्ती पर *"सी. आर. पी. सी. के राष्ट्रीय पदाधिकारी गण"* - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय महासचिव), प्रा. डॉ. फिरदोस श्राफ (फिल्म स्टार - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), एन. पी. जाधव (माजी उपजिल्हाधिकारी - राष्ट्रीय सचिव), सुर्यभान शेंडे (राष्ट्रीय सचिव), विजय बौद्ध (संपादक - राष्ट्रिय सचिव), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय सचिव), अमित कुमार पासवान (राष्ट्रीय सहसचिव), अॅड. डॉ. मोहन गवई (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार), अॅड. हर्षवर्धन मेश्राम (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार),‌ *"सी.आर.पी.सी. एम्प्लाई (कर्मचारी) विंग"* के राष्ट्रिय पदाधिकारी - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा),  सत्यजीत जानराव (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (राष्ट्रीय महासचिव), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. नितिन तागडे (राष्ट्रीय सचिव), शंकरराव ढेंगरे (राष्ट्रीय सल्लागार), निवॄत्ती रोकडे (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), अॅड. दयानंद माने (राष्ट्रीय कानुनी सलाहकार), प्रा. डॉ. भारत सिरसाठ (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र), निवास कोडाप (महाराष्ट्र प्रदेश संघटक), सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला अध्यक्ष ) तथा  *"सी.आर.पी.सी. राष्ट्रीय महिला विंग"* की प्रा. वंदना जीवने (संस्थापक अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्षा), प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय संघटक), रेणू किशोर (झारखंड - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. डॉ. प्रिती नाईक (राष्ट्रीय महासचिव - मध्य प्रदेश), इंजी. माधवी जांभुलकर (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), मीना उके (राष्ट्रीय सचिव), नंदा रामटेके (छत्तीसगड - राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. ममता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. सविता कांबळे (राष्ट्रीय सहसचिव), डॉ. साधना गेडाम (राष्ट्रीय सहसचिव) इन्होने अभिनंदन किया है. *"सी.आर.पी.सी. वुमन क्लब"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय, राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), कल्याणी इंदोरकर (राष्ट्रीय सचिव), अमिता फुलकर (राष्ट्रीय सहसचिव) *"सी.आर.पी.सी. ट्रायबल (आदिवासी) विंग"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी - आशा तुमडाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष), सतिश सलामे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), विलास सिडाम (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. मोहन गवई (कायदेशीर सल्लागार),  डा. श्रीधर गेडाम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), अॅड. स्वाती मसराम (राष्ट्रीय महासचिव), अर्चना पंधरे (राष्ट्रीय सचिव), मधुकर सडमेक (राष्ट्रीय सचिव), राजेश वट्टी (राष्ट्रीय सचिव), रवी मेडा- मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सचिव), प्रमिला रामेश्वर परते - मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सहसचिव), अंजना मडावी (राष्ट्रीय सचिव), स्मिता माटे (राष्ट्रीय सचिव), विशाल चिमोटे (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र) इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. (मेन विंग) के प्रदेश पदाधिकारी"* - डॉ. मनिषा घोष (अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), महेंद्र मानके (प्रोजेक्ट इन चार्ज), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द बडोले (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), नमो चकमा (अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश), सुब्रमण्या महेश (अध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), दिपक कुमार (अध्यक्ष, बिहार राज्य), पुष्पेंद्र मीना (अध्यक्ष, राजस्थान राज्य), रेणु किशोर (अध्यक्ष, झारखंड प्रदेश), लाल सिंग आनंद (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश), अमित कुमार पासवान (कार्याध्यक्ष, बिहार), सत्यजीत जानराव (महासचिव, महाराष्ट्र राज्य),  रोहिताश मीना (राजस्थान), मीना उके (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द धनवीज (प्रदेश उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), गिरीश व्यंकटेश (प्रदेश उपाध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), सुनिल चव्हान (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. गौतमादित्य (अध्यक्ष, मराठवाडा विभाग), प्रा. राज अटकोरे (महासचिव, मराठवाडा विभाग), अॅड. रविंदरसिंग धोत्रा (गुजरात), संजय टिकार (मध्य प्रदेश), आंचल श्रीवास्तव (गुजरात), मंटुरादेवी मीना (राजस्थान), चंद्रिका बहन सोलंकी (गुजरात), मुसाफिर (बिहार), प्रा. नितिन तागडे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अधिर बागडे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ विभाग), ममता वरठे (अध्यक्ष, विदर्भ विभाग), अविनाश गायकवाड (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), मिलिंद गाडेकर (महासचिव, विदर्भ विभाग), चरणदास नगराले (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), खेमराज मेश्राम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कॅप्टन सरदार कर्नलसिंग दिगवा (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), सचिन जि. गोंडाने (विदर्भ विभाग संघटक), अशोक निमसरकार (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), डॉ. श्रीधर गेडाम (प्रदेश‌ अध्यक्ष, तेलंगाना), प्रा. डॉ. किशोर वानखेडे (प्रदेश कार्याध्यक्ष, तेलंगाना), मनोहर गेडाम (प्रदेश संघटक, तेलंगाना), प्रविण मेश्राम (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), गजानन वैद्द (प्रदेश महासचिव, तेलंगाना), गणेश बोडखे (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), निवॄत्ती रोकडे (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. दयानंद माने (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र),  अॅड. हौसेराव धुमाल (समन्वयक, पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. शशिकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. गोरख बनसोडे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. सुनिल गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), महादेव कांबळे - उपसंपादक (पश्चिम महाराष्ट्र), अंगद गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), सोमनाथ शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. अर्जुन कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. बोधी प्रकाश (पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. डी. एच. माने (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. सागर कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), सुर्यकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), नागनाथ सोनवणे (उपाध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), सुनिल कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. विवेक गजशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (अध्यक्ष, कोंकण विभाग), प्रा. अंकुश सोहनी (कार्याध्यक्ष, कोकण विभाग), श्रीकांत जंवजाळ (महासचिव, कोकण विभाग), डॉ. लक्ष्मण सुरवसे (कोंकण विभाग), डॉ. शिवसजन कान्हेकर (कोंकण विभाग), प्रा. कानिफ भोसले (कोंकण विभाग), प्रा. विलास खरात (कोंकण विभाग), डॉ. शिवराज गोपाळे (कोंकण विभाग), डॉ. निलेश वानखेडे (कोंकण विभाग), विलास गायकवाड (कोंकण विभाग), पत्रकार शरद मोरे (कोंकण विभाग), हर्षवर्धन (छपरा, बिहार), रंजना परमार (महासचिव, गुजरात प्रदेश) बाबुलाल परमार (गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष), राहुल कुमार राजपुत (प्रदेश उपाध्यक्ष, गुजरात), भारत मनुभाई सेनवा (प्रदेश सचिव, गुजरात) आदी पदाधिकारी वर्ग ने भी अभिनंदन किया है.

     इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. के विभिन्न शाखा पदाधिकारी"* - एल. के. धवन (अध्यक्ष, मुंबई शहर), मुकेश शेंडे (अध्यक्ष, चंद्रपूर शहर), गौतमादित्य (अध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), प्रा. दशरथ रोडे (अध्यक्ष, बीड जिला), भारत थोरात (कार्याध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), डॉ. नामदेव खोब्रागडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), मिलिंद धनवीज (अध्यक्ष, यवतमाल जिला), प्रा. योगेंद्र नगराले (अध्यक्ष, गोंदिया जिला), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला कार्याध्यक्ष), इंजी. स्वप्नील सातवेकर (अध्यक्ष, कोल्हापूर जिला), संजय बघेले (अध्यक्ष, गोंदिया शहर), डॉ. देवानंद  उबाले (अध्यक्ष, जलगाव जिला), बापुसाहेब सोनवणे (अध्यक्ष, नासिक जिला), निखिल निकम (कार्याध्यक्ष, नासिक जिला), अंगद गायकवाड (अध्यक्ष, सोलापुर जिला), राजेश परमार (गुजरात), कमलकुमार चव्हाण (गुजरात), हरिदास जीवने (अध्यक्ष, पुसद जिला), प्रा. मिलिंद आठवले (अध्यक्ष, औरंगाबाद शहर), एड. रमेश विवेकी (अध्यक्ष, लातुर जिला), शांताराम इंगळे (अध्यक्ष, बुलढाणा जिल्हा), गौतम जाधव (कार्याध्यक्ष, मुंबई शहर), प्रवीण दाभाडे (महासचिव, मुंबई शहर), उमेश‌ कठाणे (जिला कार्याध्यक्ष, भंडारा), सुरेश वाघमारे (अध्यक्ष, उत्तर मुंबई), किशोर शेजुल (अध्यक्ष, जालना), निवास कोडाप (विदर्भ सचिव), मनिष खर्चे (अध्यक्ष, अकोला), संदिप गायकवाड (महासचिव, जालना), सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, विनोद भाई वनकर (गुजरात), धर्मेंद्र गणवीर, सुधिर जावले, हॄदय गोडबोले (अध्यक्ष, भंडारा जिला), महेंद्र मछिडा (गुजरात), प्रियदर्शी सुभुती (गुजरात), राजेश गोरले (समन्वयक, विदर्भ), अमित जाधव (जिल्हा अध्यक्ष, ठाणे), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला संघटक) *प्रदेश‌ ट्रायबल (आदिवासी) विंग* के निवास कोडाप (अध्यक्ष, ट्रायबल (आदिवासी), विशाल चिमोटे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), किसनलाल मडावी (प्रदेश कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र) अनिता मसराम (प्रदेश महासचिव, महाराष्ट्र), मनिषा मसराम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), दिलिप सुरपाम (प्रदेश संघटक, महाराष्ट्र), अनिलकुमार धुर्वे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र) *सीआरपीसी ट्रायबल विंग के अन्य पदाधिकारी* - पवन मोरे (नांदेड जिला अध्यक्ष, महाराष्ट्र), कोंडु मडावी (आदिलाबाद जिला अध्यक्ष, तेलंगाना), युवराज आडे (कार्याध्यक्ष, आदिलाबाद, तेलंगाना), तिरु. बलराम ऊइके (प्रदेश अध्यक्ष, मध्य प्रदेश), तिरू माय गितेश्वरि कुंजाम (प्रदेश उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), सुनिता मडावी (विदर्भ उपाध्यक्षा), तिरु. अड. हेमराज कंगाले (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरू. सुर्यभान कवडेति (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरु. शिवराज सिंह उरवेति (प्रदेश संघटक, मध्य प्रदेश), विरेंद्र इडपाचे (प्रदेश कोषाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), प्रल्हाद पत्रुजी ऊइके (जिला अध्यक्ष, चंद्रपुर), दयाराम कोडाप (गडचिरोली जिला),  सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला), प्रदिप चिचाम, सहसचिव, मध्य प्रदेश). *प्रदेश‌ महिला विंग*  की - डॉ. भारती लांजेवार (अध्यक्ष, महाराष्ट्र प्रदेश), अर्चना रामटेके (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र), गायिका - ज्योती चौहान - मुंबई (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), डॉ. सारिका कांबले (जानराव) - (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), अॅड. श्रृती संकपाल (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), वैशाली जानराव - (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), डॉ. सुवर्णा घिमघिमे (महासचिव, पश्र्चिम महाराष्ट्र), संजीवनी आटे (अध्यक्ष, विदर्भ), रंजना गांगुर्डे (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), ममता गाडेकर (नागपुर जिला अध्यक्ष), दिशा चनकापुरे (महाराष्ट्र उपाध्यक्ष), रिता बागडे, मंगला वनदूधे (विदर्भ समन्वयक), सुनिता मडावी (विदर्भ सचिव), लीना तुमडाम (सचिव, विदर्भ), प्रिती खोब्रागडे (संघटक, महाराष्ट्र), हिना लांजेवार, वीणा पराते (नागपुर जिला कार्याध्यक्ष), पवित्रा बांबोळे (अध्यक्षा, चंद्रपुर जिला), अपर्णा गाडेकर(नागपुर जिला उपाध्यक्ष), वीणा वासनिक (संघटक, महाराष्ट्र), अॅड. निलिमा लाडे आंबेडकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कल्याणी इंदोरकर (प्रदेश उपाध्यक्ष), वैशाली रामटेके (प्रदेश सचिव), शोभा मेश्राम (प्रदेश सचिव), इंदु मेश्राम (सचिव, विदर्भ विभाग), संध्या रंगारी (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), शीला घागरगुंडे (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), साधना सोनारे (महासचिव, विदर्भ), लक्ष्मी वाघमारे (पश्चिम महाराष्ट्र), वंदना चंदनशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), शैलजा क्षिरसागर (पश्चिम महाराष्ट्र), कविता कापुरे (पश्चिम महाराष्ट्र), रजनी साळवे (पश्चिम महाराष्ट्र), भाग्यश्री शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), सुप्रिया माने (पश्चिम महाराष्ट्र), अनिता मेश्राम (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अमिता फुलकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), मिनाक्षी शहारे (सचिव, महाराष्ट्र), निलिमा भैसारे (महासचिव, महाराष्ट्र), शालिनीताई शेंडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), निलिमा पुरुषोत्तम राऊत (जिला संघटक, गडचिरोली), कल्पना गोवर्धन, राया गजभिये, वैशाली राऊत, ममता कुंभलवार, प्रिया वनकर, भारती खोब्रागडे, अल्का कोचे (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), छाया खोब्रागडे (विदर्भ विभाग उपाध्यक्ष), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), सीमा मेश्राम, सरिता बोरकर, सुजाता सोमकुवर (खापा), संध्या सोमकुवर (वाडी), प्रतिमा गोडबोले (रामटेक), पुष्पा कांबळे (अध्यक्षा, काटोल सर्कल), संगिता नानोटकर (कोराडी), स्मिता जिभे (रामटेक), प्रियंका टोंगसे (रामटेक), सुहासिनी शनिचरे (रामटेक) आदी महिला पदाधिकारी तथा *नागपुर शाखा* के पदाधिकारी नरेश डोंगरे (अध्यक्ष, नागपूर जिला), डॉ. राजेश नंदेश्वर (महासचिव, नागपूर शहर), गंगाधर खापेकर (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), रोशन खोब्रागडे (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), मनिष खंडारे, रेवाराम वासनिक, प्रकाश बागडे, चंद्रशेखर दुपारे, राजु मेश्राम (कार्याध्यक्ष, नागपुर जिला), सुरेश रंगारी, सुनिल कुरील, सुहास चंद्रशेखर, निरज पाटील (कार्याध्यक्ष, काटोल सर्कल), उत्तम कांबळे (महासचिव, काटोल सर्कल) आदीयों ने सदर नियुक्ती पर, उनका अभिनंदन किया है.

 ➿ *लता मंगेशकर के मृत्यु पर घोषित सार्वजनीक छुट्टी सरकार की मुर्खता...!*

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न.‌ ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


     ७ फरवरी २०२२. ‌सुबह ८.१२ बजे का समय.‌ मुंबई स्थित ब्रिच कँडी हास्पिटल मे दाखिल, सिने पार्श्वगायिका *लता मंगेशकर* इनका २९ दिन के बाद, ९२ साल में बिमारी से निधन हुआ. सदर खबर‌ यह निश्चित ही बडी दु:खदायक थी.‌ लता मंगेशकर ने अपने सुरेल आवाज के जादु ने, विश्वभर अपना चाहता वर्ग बना लिया. वही *"बुध्द - डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर"* इनके जीवन पर, गीत गाने से मना करने पर, वह आंबेडकरी समाज के घुस्से का, द्वेष का कारण रही है. और उन समुह का यह घुस्सा जायज भी है. लता मंगेशकर ने, गाने मे जो मुकाम हासिल‌ किया था, वह *"भारत के संविधान "* के कारण ही. और डॉ. आंबेडकर जी ने *"हिंदु कोड बिल"* का जो ड्राफ्ट लिखा था, वो स्त्री उत्थान का केंद्रबिंदु कहा जा सकता है.‌..! *"मनुस्मृती"* ने स्त्री को गुलाम बनाया था.‌ अर्थात स्त्री आजादी देनेवाले महापुरुषों के जिवन पर, गीत ना गाना यह लता मंगेशकर की, सबसे बडी गलती रही. यह विषय हम थोडा बाजु में रखकर, हर किसी के निधन पर, शोक मनाया जाता रहा है / और शोक मनाना भी चाहिये. लता मंगेशकर इनके मृत्यु पर, *भारत सरकार हो या, महाराष्ट्र सरकार ने, उस पर शोक मनाया हो, या शासन इतमाम से अंतसंस्कार किया जाना हो,* इसका विरोध नही किया जा सकता. क्यौ की, लता मंगेशकर यह भारत सरकार की मेहमान *(भारतरत्न पुरस्कार / पद्मश्री दादासाहेब पुरस्कार प्रार्थी)* थी.

      सवाल यहा लता मंगेशकर के निधन पर, शासन के प्रतिनिधी द्वारा शोक मनाना हो, या शासन इतमाम से अंतसंस्कार करना हो, इसको हम बाजु मे रखकर, शासन द्वारा सोमवार को (एक दिन की) जो *"दुखवटा सार्वजनीक छुट्टी"* घोषित की गयी है, प्रश्न उस का है.‌ लता मंगेशकर यह अच्छी / नामांकित गायिका थी, यह विवाद का विषय भी नही है.‌ *सरकार ने किसी नामांकित व्यक्ती के मरने पर, "दुखवटा सार्वजनीक छुट्टी" घोषित करने का, जो गलत पायंडा डाला है,* वह भविष्य में कभी दोहराया नही जाना चाहिये. फिर वह विषय, भविष्य में *"भारत के आजी / माजी राष्ट्रपती का हो, या प्रधानमन्त्री"* इनके निधन‌ का भी, क्यौ ना हो...! इसके पिछे बहुत कारण है.‌ किसी मान्यवर के मृत्यु पर, *"दुखवटा सार्वजनीक छुट्टी"* देने से, भारत की *अर्थव्यवस्था* के हानी का संबध है. भारत के *सरकारी कामों के रुकावट* का संबंध है. कोई लोगों के *महत्वपुर्ण काम,* उस दिन ना होने से संबंध है. एक महत्वपुर्ण दिन *"बरबाद"* होने का संबंध है. वक्त अर्थात  *"समय और काल की यह नुकसान भरपाई,"* यह कभी नही भरी जा सकती.‌ विराजीत प्रधानमन्त्री / मुख्यमंत्री इनके यह निर्णय, केवल भावनिक होते है.‌ *"देश / राज्य का प्रशासन चलाते समय, भावनाओं को बाजु में रखने की आवश्यकता है."* राष्ट्र सेवा प्रशासन यह प्रथम प्राथमिकता है.‌ बाकी सब बाद में...! देश सेवा प्रशासन को ताककर, भावनात्मक निर्णय लेते हो तो, यह उन्हे समझना होगा कि, देश यह उनकी या उनके बाप की, कोई *"व्यक्तिगत जागिर"* नही है.‌ *"राष्ट्र के किसी संपत्ती का, हानी पहुचाने का अधिकार"* किसी को भी नही है. *"चाहे वो फिर, देश‌ का राष्ट्रपती हो, या प्रधानमन्त्री हो, या किसी प्रांत का राज्यपाल हो, या तो वो मुख्यमंत्री हो...!"* यह सिख आप सभी पदासिन पदाधिकारी वर्ग ने, समझने की आवश्यकता है. हद तो तब हो गयी, जब *"मा. उच्च न्यायालय"* ने भी, मुंबई समेत / नागपुर / औरंगाबाद / पणजी - गोवा के खंडपीठ के काम *"सोमवार"* को बंद किये है.‌ भले वे शनिवार को, भरने की‌ बात कही है.‌ लता मंगेशकर यह *"बामनी वर्ग"* जुडी होने से, क्या यह निर्णय लिया गया है ? यह प्रश्न है.

     हमारी *"मा. सर्वोच्च न्यायालय,"* यह भारत की *"वॉच डॉग"* है.‌ उनका दायित्व है कि, वह सरकार द्वारा लिए गये, *"गलत निर्णय"* को रोक लगाए / या ऐसे गलत निर्णय ना लेने से अवगत कराए.‌ यहां तो न्यायालय भी, घास खाने जा रही है.‌ इस लिये हमारे समान लेखकों को, *"समाज प्रहरी / देश प्रहरी"* बनना पड रहा है.‌ न्यायपालिका के *"न्यायाधीश नियुक्ती कोलोजीयम"* हटाने की, बहुत आवश्यकता दिखाई दे रही है. क्यौ कि, न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीश, वे मेरिट के आधार पर चुने नही जाते. इस लिए, *"संघ लोक सेवा आयोग"* द्वारा IAS / IPS परिक्षा पध्दती के अनुसार *"न्यायाधीश नियुक्ती "* का आयोग हो. अर्थात *"युनियन ज्युडिसिअरी कमिशन"* का गठण किया जाए. और मेरिट के आधार पर, सभी जाती / धर्म के अनुपात में आरक्षण देकर, *"न्यायाधीश वर्ग"* की नियुक्ती हो.‌ ता कि, ना - लायक न्यायाधीश नियुक्त ना हो.‌ *"राम जन्मभुमी मंदिर / बाबरी मस्जिद"* समान, जो गलत जजमेंट दिये गये है, उस पर रोक लगे.‌ *"विकास भारत"* बनाने के लिए, हमें इस ओर जाना होगा.


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Saturday, 5 February 2022

Rahul Kumar Rajput posted state vice President of CRPC Gujrath

 🤝 *राहुल कुमार राजपुत इनकी सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल -  "गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष" पद पर नियुक्ती...!!!*


    सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (CRPC) के *"गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष"* पद पर *राहुल कुमार राजपुत* इनकी नियुक्ती, मेन विंग की राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा *प्रा.‌ वंदना जीवने* तथा सेल की "राष्ट्रीय महासचिव" *डॉ. किरण मेश्राम* इनसे चर्चा कर, गुजरात प्रदेश‌ अध्यक्ष *मिलिन्द बडोले* इन्होने घोषित की है. सदर नियुक्ती की सुचना सीआरपीसी एम्प्लाई विंग / वुमन विंग / वुमन क्लब / ट्रायबल विंग के *"राष्ट्रीय पेट्रान"* तथा सेल के आंतरराष्ट्रिय / राष्ट्रीय अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्हे भेजी गयी है.

     उपरोक्त नियुक्ती पर *"सी. आर. पी. सी. के राष्ट्रीय पदाधिकारी गण"* - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय महासचिव), प्रा. डॉ. फिरदोस श्राफ (फिल्म स्टार - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), एन. पी. जाधव (माजी उपजिल्हाधिकारी - राष्ट्रीय सचिव), सुर्यभान शेंडे (राष्ट्रीय सचिव), विजय बौद्ध (संपादक - राष्ट्रिय सचिव), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय सचिव), अमित कुमार पासवान (राष्ट्रीय सहसचिव), अॅड. डॉ. मोहन गवई (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार), अॅड. हर्षवर्धन मेश्राम (राष्ट्रीय कानुनी सल्लागार),‌ *"सी.आर.पी.सी. एम्प्लाई (कर्मचारी) विंग"* के राष्ट्रिय पदाधिकारी - प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा),  सत्यजीत जानराव (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (राष्ट्रीय महासचिव), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. डॉ. मनिष वानखेडे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. नितिन तागडे (राष्ट्रीय सचिव), शंकरराव ढेंगरे (राष्ट्रीय सल्लागार), निवॄत्ती रोकडे (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), अॅड. दयानंद माने (राष्ट्रीय कानुनी सलाहकार), प्रा. डॉ. भारत सिरसाठ (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र), निवास कोडाप (महाराष्ट्र प्रदेश संघटक), सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला अध्यक्ष ) तथा  *"सी.आर.पी.सी. राष्ट्रीय महिला विंग"* की प्रा. वंदना जीवने (संस्थापक अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय अध्यक्षा), प्रा. डॉ. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय संघटक), रेणू किशोर (झारखंड - राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), प्रा. डॉ. प्रिती नाईक (राष्ट्रीय महासचिव - मध्य प्रदेश), इंजी. माधवी जांभुलकर (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), मीना उके (राष्ट्रीय सचिव), नंदा रामटेके (छत्तीसगड - राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. ममता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), प्रा. डॉ. सविता कांबळे (राष्ट्रीय सहसचिव), डॉ. साधना गेडाम (राष्ट्रीय सहसचिव) इन्होने अभिनंदन किया है. *"सी.आर.पी.सी. वुमन क्लब"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय अध्यक्षा), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय कार्याध्यक्षा), प्रा. वर्षा चहांदे (राष्ट्रीय उपाध्यक्षा), डॉ. मनिषा घोष (राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष), ममता वरठे (राष्ट्रीय, राष्टिय संघटक), प्रा. डॉ. नीता मेश्राम (राष्ट्रीय सचिव), आशा तुमडाम (राष्ट्रीय सचिव), कल्याणी इंदोरकर (राष्ट्रीय सचिव), अमिता फुलकर (राष्ट्रीय सहसचिव) *"सी.आर.पी.सी. ट्रायबल (आदिवासी) विंग"* के राष्ट्रीय पदाधिकारी - आशा तुमडाम (राष्ट्रीय अध्यक्ष), सतिश सलामे (राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष), विलास सिडाम (राष्ट्रीय संघटक), प्रा. वंदना जीवने (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. किरण मेश्राम (राष्ट्रीय सल्लागार), डॉ. मोहन गवई (कायदेशीर सल्लागार),  डा. श्रीधर गेडाम (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), अॅड. स्वाती मसराम (राष्ट्रीय महासचिव), अर्चना पंधरे (राष्ट्रीय सचिव), मधुकर सडमेक (राष्ट्रीय सचिव), राजेश वट्टी (राष्ट्रीय सचिव), रवी मेडा- मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सचिव), प्रमिला रामेश्वर परते - मध्य प्रदेश (राष्ट्रीय सहसचिव), अंजना मडावी (राष्ट्रीय सचिव), स्मिता माटे (राष्ट्रीय सचिव), विशाल चिमोटे (प्रदेश अध्यक्ष, महाराष्ट्र) इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. (मेन विंग) के प्रदेश पदाधिकारी"* - डॉ. मनिषा घोष (अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), महेंद्र मानके (प्रोजेक्ट इन चार्ज), इंजी. डॉ. विवेक मवाडे (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द बडोले (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), नमो चकमा (अध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश), सुब्रमण्या महेश (अध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), दिपक कुमार (अध्यक्ष, बिहार राज्य), पुष्पेंद्र मीना (अध्यक्ष, राजस्थान राज्य), रेणु किशोर (अध्यक्ष, झारखंड प्रदेश), लाल सिंग आनंद (अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश), अमित कुमार पासवान (कार्याध्यक्ष, बिहार), सत्यजीत जानराव (महासचिव, महाराष्ट्र राज्य),  रोहिताश मीना (राजस्थान), मीना उके (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), मिलिन्द धनवीज (प्रदेश उपाध्यक्ष), प्रा. वर्षा चहांदे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), गिरीश व्यंकटेश (प्रदेश उपाध्यक्ष, कर्नाटक प्रदेश), सुनिल चव्हान (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. गौतमादित्य (अध्यक्ष, मराठवाडा विभाग), प्रा. राज अटकोरे (महासचिव, मराठवाडा विभाग), अॅड. रविंदरसिंग धोत्रा (गुजरात), संजय टिकार (मध्य प्रदेश), आंचल श्रीवास्तव (गुजरात), मंटुरादेवी मीना (राजस्थान), चंद्रिका बहन सोलंकी (गुजरात), मुसाफिर (बिहार), प्रा. नितिन तागडे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अधिर बागडे (कार्याध्यक्ष, विदर्भ विभाग), ममता वरठे (अध्यक्ष, विदर्भ विभाग), अविनाश गायकवाड (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), मिलिंद गाडेकर (महासचिव, विदर्भ विभाग), चरणदास नगराले (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), प्रा. भारत सिरसाठ - एरंडोल (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), खेमराज मेश्राम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कॅप्टन सरदार कर्नलसिंग दिगवा (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), सचिन जि. गोंडाने (विदर्भ विभाग संघटक), अशोक निमसरकार (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), डॉ. श्रीधर गेडाम (प्रदेश‌ अध्यक्ष, तेलंगाना), प्रा. डॉ. किशोर वानखेडे (प्रदेश कार्याध्यक्ष, तेलंगाना), मनोहर गेडाम (प्रदेश संघटक, तेलंगाना), प्रविण मेश्राम (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), गजानन वैद्द (प्रदेश महासचिव, तेलंगाना), गणेश बोडखे (उपाध्यक्ष, विदर्भ विभाग), निवॄत्ती रोकडे (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. दयानंद माने (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र),  अॅड. हौसेराव धुमाल (समन्वयक, पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. शशिकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. गोरख बनसोडे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. डॉ. सुनिल गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), महादेव कांबळे - उपसंपादक (पश्चिम महाराष्ट्र), अंगद गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), सोमनाथ शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. अर्जुन कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. बोधी प्रकाश (पश्चिम महाराष्ट्र), अॅड. डी. एच. माने (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. सागर कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), सुर्यकांत गायकवाड (पश्चिम महाराष्ट्र), नागनाथ सोनवणे (उपाध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), सुनिल कांबले (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. विवेक गजशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), प्रा. श्रीकांत सिरसाठे (अध्यक्ष, कोंकण विभाग), प्रा. अंकुश सोहनी (कार्याध्यक्ष, कोकण विभाग), श्रीकांत जंवजाळ (महासचिव, कोकण विभाग), डॉ. लक्ष्मण सुरवसे (कोंकण विभाग), डॉ. शिवसजन कान्हेकर (कोंकण विभाग), प्रा. कानिफ भोसले (कोंकण विभाग), प्रा. विलास खरात (कोंकण विभाग), डॉ. शिवराज गोपाळे (कोंकण विभाग), डॉ. निलेश वानखेडे (कोंकण विभाग), विलास गायकवाड (कोंकण विभाग), पत्रकार शरद मोरे (कोंकण विभाग), हर्षवर्धन (छपरा, बिहार), रंजना परमार (महासचिव, गुजरात प्रदेश) बाबुलाल परमार (गुजरात प्रदेश उपाध्यक्ष), राहुल कुमार राजपुत (प्रदेश उपाध्यक्ष, गुजरात) आदी पदाधिकारी वर्ग ने भी अभिनंदन किया है.

     इसके साथ ही *"सी. आर. पी. सी. के विभिन्न शाखा पदाधिकारी"* - एल. के. धवन (अध्यक्ष, मुंबई शहर), मुकेश शेंडे (अध्यक्ष, चंद्रपूर शहर), गौतमादित्य (अध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), प्रा. दशरथ रोडे (अध्यक्ष, बीड जिला), भारत थोरात (कार्याध्यक्ष, औरंगाबाद जिला), डॉ. नामदेव खोब्रागडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), मिलिंद धनवीज (अध्यक्ष, यवतमाल जिला), प्रा. योगेंद्र नगराले (अध्यक्ष, गोंदिया जिला), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला कार्याध्यक्ष), इंजी. स्वप्नील सातवेकर (अध्यक्ष, कोल्हापूर जिला), संजय बघेले (अध्यक्ष, गोंदिया शहर), डॉ. देवानंद  उबाले (अध्यक्ष, जलगाव जिला), बापुसाहेब सोनवणे (अध्यक्ष, नासिक जिला), निखिल निकम (कार्याध्यक्ष, नासिक जिला), अंगद गायकवाड (अध्यक्ष, सोलापुर जिला), राजेश परमार (गुजरात), कमलकुमार चव्हाण (गुजरात), हरिदास जीवने (अध्यक्ष, पुसद जिला), प्रा. मिलिंद आठवले (अध्यक्ष, औरंगाबाद शहर), एड. रमेश विवेकी (अध्यक्ष, लातुर जिला), शांताराम इंगळे (अध्यक्ष, बुलढाणा जिल्हा), गौतम जाधव (कार्याध्यक्ष, मुंबई शहर), प्रवीण दाभाडे (महासचिव, मुंबई शहर), उमेश‌ कठाणे (जिला कार्याध्यक्ष, भंडारा), सुरेश वाघमारे (अध्यक्ष, उत्तर मुंबई), किशोर शेजुल (अध्यक्ष, जालना), निवास कोडाप (विदर्भ सचिव), मनिष खर्चे (अध्यक्ष, अकोला), संदिप गायकवाड (महासचिव, जालना), सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, विनोद भाई वनकर (गुजरात), धर्मेंद्र गणवीर, सुधिर जावले, हॄदय गोडबोले (अध्यक्ष, भंडारा जिला), महेंद्र मछिडा (गुजरात), प्रियदर्शी सुभुती (गुजरात), राजेश गोरले (समन्वयक, विदर्भ), अमित जाधव (जिल्हा अध्यक्ष, ठाणे), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला संघटक) *प्रदेश‌ ट्रायबल (आदिवासी) विंग* के निवास कोडाप (अध्यक्ष, ट्रायबल (आदिवासी), विशाल चिमोटे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), किसनलाल मडावी (प्रदेश कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र) अनिता मसराम (प्रदेश महासचिव, महाराष्ट्र), मनिषा मसराम (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), दिलिप सुरपाम (प्रदेश संघटक, महाराष्ट्र), अनिलकुमार धुर्वे (प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र) *सीआरपीसी ट्रायबल विंग के अन्य पदाधिकारी* - पवन मोरे (नांदेड जिला अध्यक्ष, महाराष्ट्र), कोंडु मडावी (आदिलाबाद जिला अध्यक्ष, तेलंगाना), युवराज आडे (कार्याध्यक्ष, आदिलाबाद, तेलंगाना), तिरु. बलराम ऊइके (प्रदेश अध्यक्ष, मध्य प्रदेश), तिरू माय गितेश्वरि कुंजाम (प्रदेश उपाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), सुनिता मडावी (विदर्भ उपाध्यक्षा), तिरु. अड. हेमराज कंगाले (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरू. सुर्यभान कवडेति (प्रदेश सचिव, मध्य प्रदेश), तिरु. शिवराज सिंह उरवेति (प्रदेश संघटक, मध्य प्रदेश), विरेंद्र इडपाचे (प्रदेश कोषाध्यक्ष, मध्य प्रदेश), प्रल्हाद पत्रुजी ऊइके (जिला अध्यक्ष, चंद्रपुर), दयाराम कोडाप (गडचिरोली जिला),  सुनिल आत्राम (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), शंकर जगन मडावी (गोंदिया जिला), प्रदिप चिचाम, सहसचिव, मध्य प्रदेश). *प्रदेश‌ महिला विंग*  की - डॉ. भारती लांजेवार (अध्यक्ष, महाराष्ट्र प्रदेश), अर्चना रामटेके (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र), गायिका - ज्योती चौहान - मुंबई (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य), डॉ. सारिका कांबले (जानराव) - (अध्यक्ष, गुजरात प्रदेश), अॅड. श्रृती संकपाल (अध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), वैशाली जानराव - (कार्याध्यक्ष, पश्चिम महाराष्ट्र), डॉ. सुवर्णा घिमघिमे (महासचिव, पश्र्चिम महाराष्ट्र), संजीवनी आटे (अध्यक्ष, विदर्भ), रंजना गांगुर्डे (अध्यक्ष, उत्तर महाराष्ट्र), ममता गाडेकर (नागपुर जिला अध्यक्ष), दिशा चनकापुरे (महाराष्ट्र उपाध्यक्ष), रिता बागडे, मंगला वनदूधे (विदर्भ समन्वयक), सुनिता मडावी (विदर्भ सचिव), लीना तुमडाम (सचिव, विदर्भ), प्रिती खोब्रागडे (संघटक, महाराष्ट्र), हिना लांजेवार, वीणा पराते (नागपुर जिला कार्याध्यक्ष), पवित्रा बांबोळे (अध्यक्षा, चंद्रपुर जिला), अपर्णा गाडेकर(नागपुर जिला उपाध्यक्ष), वीणा वासनिक (संघटक, महाराष्ट्र), अॅड. निलिमा लाडे आंबेडकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), कल्याणी इंदोरकर (प्रदेश उपाध्यक्ष), वैशाली रामटेके (प्रदेश सचिव), शोभा मेश्राम (प्रदेश सचिव), इंदु मेश्राम (सचिव, विदर्भ विभाग), संध्या रंगारी (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), शीला घागरगुंडे (नागपुर जिला उपाध्यक्ष), साधना सोनारे (महासचिव, विदर्भ), लक्ष्मी वाघमारे (पश्चिम महाराष्ट्र), वंदना चंदनशिवे (पश्चिम महाराष्ट्र), शैलजा क्षिरसागर (पश्चिम महाराष्ट्र), कविता कापुरे (पश्चिम महाराष्ट्र), रजनी साळवे (पश्चिम महाराष्ट्र), भाग्यश्री शिंदे (पश्चिम महाराष्ट्र), सुप्रिया माने (पश्चिम महाराष्ट्र), अनिता मेश्राम (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), अमिता फुलकर (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), मिनाक्षी शहारे (सचिव, महाराष्ट्र), निलिमा भैसारे (महासचिव, महाराष्ट्र), शालिनीताई शेंडे (जिला अध्यक्ष, गडचिरोली), निलिमा पुरुषोत्तम राऊत (जिला संघटक, गडचिरोली), कल्पना गोवर्धन, राया गजभिये, वैशाली राऊत, ममता कुंभलवार, प्रिया वनकर, भारती खोब्रागडे, अल्का कोचे (उपाध्यक्ष, महाराष्ट्र), छाया खोब्रागडे (विदर्भ विभाग उपाध्यक्ष), अश्विनी भांडेकर (गडचिरोली जिला कार्याध्यक्ष), सीमा मेश्राम, सरिता बोरकर, सुजाता सोमकुवर (खापा), संध्या सोमकुवर (वाडी), प्रतिमा गोडबोले (रामटेक), पुष्पा कांबळे (अध्यक्षा, काटोल सर्कल), संगिता नानोटकर (कोराडी), स्मिता जिभे (रामटेक), प्रियंका टोंगसे (रामटेक), सुहासिनी शनिचरे (रामटेक) आदी महिला पदाधिकारी तथा *नागपुर शाखा* के पदाधिकारी नरेश डोंगरे (अध्यक्ष, नागपूर जिला), डॉ. राजेश नंदेश्वर (महासचिव, नागपूर शहर), गंगाधर खापेकर (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), रोशन खोब्रागडे (उपाध्यक्ष, नागपुर शहर), मनिष खंडारे, रेवाराम वासनिक, प्रकाश बागडे, चंद्रशेखर दुपारे, राजु मेश्राम (कार्याध्यक्ष, नागपुर जिला), सुरेश रंगारी, सुनिल कुरील, सुहास चंद्रशेखर, निरज पाटील (कार्याध्यक्ष, काटोल सर्कल), उत्तम कांबळे (महासचिव, काटोल सर्कल) आदीयों ने सदर नियुक्ती पर, उनका अभिनंदन किया है.