Saturday 12 February 2022

 इस *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १२ फरवरी २०२२ को झुम पर आयोजित, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में दर्ज  एतिहासिक घटनाओं के बीच, कृपया एक ऐसी घटना का परिचय दें जो धार्मिक लोगों को, आप के संबधित ग्रंथ में से जानने की आवश्यकता है...!*

* उत्तर : भगवान बुध्द सें जुडी, इतिहास में कई महत्वपुर्ण घटनाएं रही है. और वह घटनाएं बुध्द धर्म ग्रंथ में वर्णीत भी है. परंतु बुध्द ने, किसी भी दैवी चमत्कार को नकारा है. 

    उस कई घटनाओं में सें, एक घटना बताने के पहले, बुध्द ने संस्कार संदर्भ में क्या कहां ? वह पाली गाथा बताना चाहुंगा. 

*अनिच्छा वत संखारा, उप्पावदय धम्मिनो |*

*उपज्जित्वा निरुज्झन्ति, तेसं वुपसमोहसुखो ||*

(अर्थात - भिक्खुओं ! मै तुम्हे स्पष्ट बता रहा हुं कि, सभी संस्कार नाशवंत है. तुम्हे अप्रमादी रहकर अपने मुक्ति के लिए, प्रयत्न करना है.)

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तथागत ने स्वयं को "उपदेशक / मार्गदाता" कहा है.‌ देव पुरुष नही. इस संदर्भ में भी, मै पाली गाथा बताना चाहुंगा.

*तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*

*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||*

(अर्थात - कार्य के लिए, तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत बुध्द का कार्य केवल मार्ग बताना है. उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनो से तुम्हे मुक्त होना है.)

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उपरोक्त दो पाली गाथा समजने से, बुध्द से जुडी घटनाओं को, आप को बोध हो जाएगा. अब मैं *"डाकु अंगुलीमाल"* से जुडी एक घटना का जिक्र करूंगा.

कोशल‌‌ देश का पसेनदी (प्रसेनजित) राजा डाकु अंगुलीमाल से, बहुत परेशान था. क्यौ कि, अंगुलीमाल का जिस जंगल में वास रहता था, वहां दस / बीस / तीस /  चालीस लोग भी एकसाथ उस मार्ग से जाते थे, फिर भी वे अंगुलीमाल का मुकाबला नही कर सकते थे. अंगुलीमाल मारे गये लोगों की एक उंगली काटकर, उस की माला अपने गले में पहनता था. इस लिये उसका नाम *"अंगुलीमाल "* पडा.

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एक दिन तथागत श्रावस्ती आये थे. उन्होने अंगुलीमाल के अत्याचार की कहानी सुनी. और बुध्द ने उसे सदाचारी पुरूष बनाने का निश्चय किया. और वे अंगुलीमाल जहां रहता था, उस दिशा में निकल पडे. तब सभी लोगों ने, उस रास्ते से न जाने का बुध्द से अनुरोध किया. परंतु बुध्द शांत मन से, किसी को कुछ ना बोले, उस मार्ग पर निकल पडे.

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अंगुलीमाल ने दुर से ही उस मार्ग से, बुध्द को आते हुये देखा. अंगुलीमाल को बडा आश्चर्य हुआ की, इस मार्ग से मनुष्यों बडा झुंड भी आने को डरता है. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को मारने का निश्चय किया. और वह अपनी ढाल - तलवार लेकर, बुध्द को मारने को निकल पडा. परंतु अंगुलीमाल बुध्द के करिब भी नही जा सका. उसे बुध्द शांत मन से चलते ही नज़र आने लगा. तब अंगुलीमाल ने बुध्द को आवाज दिया और कहां, *"ऐ तपस्वी रूक जा."*

बुध्द ने कहां, *अंगुलीमाल, मै तो रूका ही हुं. तु अपने दुष्कर्म कब बंद करेगा ? मुझे तुम्हे सदाचार के मार्ग पर ले जाना है. इस लिये, मै तुम्हारे लिए आया हुं. तुम्हारे अंदर का साधुत्व, अभी भी मरा हुआ नही है....!"*

अंगुलीमाल ने कहां, *"तथागत, आप के दिव्य वाणी ने मुझे, दुष्कर्म छोडने को कहां है. वह प्रयास मै निश्चित ही करुंगा...!"*

     डाकु अंगुलीमाल ने, गले से अंगुली की माला फेंक दी. बुध्द के पैरों मे प्रणाम कर, भिक्खु की दीक्षा ली. बाद में बुध्द उसे भिक्खु बनाकर, अपने साथ ले चले.

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एक दिन राजा प्रसेनजित अपने  सेना के साथ बुध्द को मिलने आये. तब राजा प्रसेनजित बहुत चिंता में दिखे. तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहा, *"हे राजन, क्या हुआ है ? मगध राजा बिंबिसार, वैशाली के लिच्छवी, या अन्य शत्रुओं‌‌ से, क्या आप परेशान है...?"*

तब राजा प्रसेनजित ने कहां, *"नही भगवंत. मै उन लोगों‌ से परेशान नही हुं. डाकु अंगुलीमाल से परेशान हुं."*

तब बुध्द ने राजा प्रसेनजित को कहां, *"हे राजन, मुंडन किया हुआ, काशाय वस्त्र परिधान किये, जो किसी को मारता नही, चोरी नही करता, झुट नही बोलता, दिन में केवल एक बार खाना खाता है, अत्याचार नही करता, श्रेष्ठ जीवन जी रहा है, उस अंगुलीमाल को देखकर, आप क्या करेंगे ...?"*

राजा प्रसेनजित ने कहां, *"भगवंत, मै उन्हे वंदन करूंगा. उसे मिलने के लिए, मै खडा रहुंगा. उसे बैठने के लिए निमंत्रण दुंगा. उसे वस्त्र - वस्तुओं का दान करूंगा. उस की सुरक्षा करूंगा. परंतु ऐसे दृष्ट पुरुष, किसी की छाया में गिरना, क्या संभव है..?"*

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तथागत ने कहां, *"हे राजन, ये भिक्खु जो मेरे पास बैठा है, वो अंगुलीमाल ही है. अब आप को, डरने की कोई आवश्यकता नही है."*

राजा प्रसेनजित भिक्खु अंगुलीमाल के पास गया. और उसे पुछा, *"भन्ते, आप के पिता का गोत्र क्या है ? माता का गोत्र क्या है...?"*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहां, *"हे राजन, मेरे पिता का गोत्र गार्ग्य है. और माता का मंत्राणी (मैत्रायणी) है."*

राजा प्रसेनजित ने कहां,*"गार्ग्य मैत्रायणी पुत्रा, सुखी हो. आप के सभी गरजों की, मै व्यवस्था करूंगा."*

भिक्खु अंगुलीमाल ने कहा, *"नही राजन, अब मैने भिक्षा मांगकर खाने की, तीन से जादा चिवर ना रखने की प्रतिज्ञा ली है.‌ मै आप के दान का स्विकार नही कर सकता."* 

बाद में राजा प्रसेनजित तथागत के पास गया और बुद्ध को कहा, *"हे भगवंत, यह अदभुत है. मै जिसे काठी से, तलवार से नही हरा पाया. परंतु आप की इस किमया ने, यह कर दिखाया."* और राजा प्रसेनजित तथागत को वंदन‌ कर, अपने राजवाडा की ओर निकल पडे. 

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एक दिन भिक्खु अंगुलीमाल भिक्षा लेने श्रावस्ती की ओर निकल पडे. तब एक आदमी ने उस, वीट फेककर घायल किया. दुसरे आदमी ने उसे सोटा मारा. तिसरे आदमी ने खापर से वार किया. उस का भिक्षापात्र फोड दिया. तब अंगुलीमाल रक्तबंबाल होकर, फटा हुआ चिवर पहन हुये, बुध्द के पास गया. तब बुध्द ने भिक्खु अंगुलीमाल को कहा, *"अंगुलीमाल, तुम्हे यह सहन करना होगा."* 

अंगुलीमाल ये शांत पुरुष बन गया. आगे जाकर अंगुलीमाल को मुक्त सुख की अनुभुती हुयी. 

* * * * * * * * * * * * * * * * * * 


प्रश्न - २ :

* *वर्तमान समय में रहनेवाले, धार्मिक लोगों के लिए, इस ऐतिहासिक घटना का, क्या अर्थ या महत्व है..?*

* उत्तर : भिक्खु अंगुलीमाल के  डाकु बनने का, एक विशेष इतिहास है. अंगुलीमाल डाकु बनने के बाद, लोगों को मारता था. उनकी उंगलियां काटकर, उन उंगली की माला पहनने के कारण, वो डाकु अंगुलीमाल के रूप में परिचीत हुआ. अंगुलीमाल का मुल नाम *"अहिंसक"* था. वो गुरुकुल में शिक्षा ले रहा था. वो बहुत हुशार, आज्ञाधारक, इमानदार, अपने गुरु का प्रिय शिष्य था. गुरुमाता उस से बहुत स्नेह करती थी. इस कारणवश गुरुकुल के अन्य छात्र, अहिंसक से इर्षा करते थे. उस कारणवश कुछ छात्रों ने, गुरु को अहिंसक की गुरुमाता से, अवैध संबध होने की छुटी बातें सुनाई. गुरु ने भी उन छात्रों के छुटी बातों पर विश्वास कर, अहिंसक की शिक्षा पुरी होने पर, उसे दंडित करने का मन बना लिया. गुरू ने अहिंसक को, *"एक सहस्त्र उंगलियों की माला"* लाने की, गुरु दक्षिणा मांगी. ता कि, अहिंसक वह गुरु दक्षिणा ना ला सके. और गुरु श्रृण से, वो मुक्त ना हो सके. या किसी के हत्या कर, उनकी उंगलियां की माला लाने की चेष्टा करने पर,  राजा द्वारा अहिंसक को मृत्युदंड मिल जाए. अर्थात यहां गुरु द्वारा मांगी गयी गुरु दक्षिणा, यह अंहिसक पर किया गया, एक बडा षडयंत्र ही था. हमारी व्यवस्था भी इसी तरह से अच्छे, होनहार , इमानदार छात्रों से, इस तरह का षडयंत्र करते आयी है.

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अहिंसक द्वारा व्यवस्था के बडे षडयंत्र का शिकार होना, वही वो डाकु अंगुलीमाल बन जाना, फिर बुध्द को शरण जाने पर, वो भिक्खु बन जाना, यह अहिंसक का एक नया पुनर्जन्म ही है. मुक्ती का मार्ग है. सुखी जीवन का सन्मार्ग है. अर्थात समाज में ऐसे बहुत अहिंसक पुरूष होते है. व्यवस्था के बडे षडयंत्र से, डाकु अंगुलीमाल बन जाते है. और बुध्द पुरुष के सहवास से, वे मुक्ती पाकर, इतिहास में नाम - रूप से पहचाने गये है / जाते है. बुध्द ने *"आत्मा"* इस भाव को, पुर्णत: नकार दिया है. केवल नाम -रुप को माना है. इस *"नाम - रुप"* संबध में पाली में, एक गाथा है. वह पाली गाथा इस प्रकार है. (विशुध्दी मग्ग)

*नामों च रूपं च इध अत्थि सच्चते |*

*न हेत्थ सत्तो मनुजो इव अभिसंखातं |*

*दुक्खस्स पुञ्ञो दिणकठ्ठसदिसो ||*

(अर्थात - नाम रुप की जोडी, यह एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक का नाश होता है, तब दुसरी का भी नाश होता है.‌ और मृतु होता है.)

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अर्थात इस घटना से,हमे एक सिख यह मिलती है कि, व्यवस्था के शिकार होने पर भी, हमे गलत मार्ग नही जाना चाहिये. हमे उस का मुकाबला करना चाहिये. संघर्ष करना चाहिये. क्यौ कि, गलत मार्ग पर चलने से, अपने को दु:ख ही मिलता है. बदनामी होती है. अत: सन्मार्ग की ओर जाना ही, उत्तम जीवन है. जो उज्वल भविष्य देता है. मुक्ती का मार्ग है.

* * * * *  * * * * * * * *

* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

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