Saturday, 11 August 2018

✍ *मा. दलाई लामा की नाराजी में भारतीय राजनिती की अक्रियाशील कु-नीति...!*
         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

     *"स्वतंत्र भारत के पहिले प्रधानमंत्री बनाने के लिए महात्मा गांधी की पहली पसंद यह बँ. मोहम्मद अली जीना थी. परंतु स्वकेंद्रीत एवं आजाद विचारों के पंडित जवाहरलाल नेहरु ही स्वतंत्र भारत के पहले  प्रधानमंत्री बन गये. अगर बँरिष्टर जीना भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो, भारत - पाकिस्तान यह विभाजन तब नही होता. नेहरु के कट्टर विरोध के कारण बँ. जीना भारत के प्रधानमंत्री नही बन सके."* यह विचार परम पावन दलाई लामा इन्होने अभी अभी पणजी मे आयोजित "गोवा व्यवस्थापन संस्था" के समारोह समापन के उपरांत ही छात्रो़ं के बीच चले एक चर्चा मे कही.
     आगे जाकर प.पा. दलाई लामा ने कहा कि, *"दलाई लामा यह यंत्रना अब गैरलागु हो गयी है.  अब यह दिर्घ काल से चली आ रही परंपरा सुरु रखना चाहिये या नही, इस का निर्णय अब तिब्बती जनता को लेना है. वही इस भाव संदर्भ मे हम लोगो़ं से जादा रुची, यह तो चीनी सरकार को ही है. वह भी राजकीय भावो़ं को देखकर. तिब्बत में हर साल विभिन्न परंपरा के प्रतिनिधी इकठ्ठा आकर इस पर निर्णय लेते है. और इस साल भी तिब्बत में वह बैठक होने जा रही है....!"*
     परम पावन दलाई लामा का पहला कथन, वह भी "भारतीय राजनिती" पर, यह तो बडे सोंच का विषय है. क्यौं कि, दलाई लामा भारतीय राजनिती पर कोई भी टिप्पणी करने से अकसर बचते रहे है. वही उनका भारत मे आश्रय लेने का कालखंड भी पंडित नेहरु के सत्ता काल मे ही रहा है. इस विषय पर सविस्तर लिखाण मै बाद में करुंगा ही. दलाई लामा के दुसरे कथन से, मै पिछले दो दिन से बडा ही चिंतीत रहा हुँ. परंतु परम पावन दलाई लामा का वह कथन, हमारे प्राचिन बुध्द सुवर्ण काल के "लोकशाही व्यवस्था" की बडी याँदे दे गया, जहा उनका कथन, *"दलाई लामा यह परंपरा आगे चालु रखना चाहिये या नही, इस का सर्वोपरी निर्णय यह तिब्बत जनता पर छोडा है."*
     मेरा व्यक्तीगत एवं संघटन का भी तिब्बती आंदोलन से काफी गहरा संबध रहा है. मैने उन के "तिब्बेत आजादी आंदोलन यात्रा" को हरी झंडी भी दिखाई है. मै कई बार तो गोठणगाव तिब्बती कँम्प भी गया हुँ. वहाँ की असेंबली को मैने अंदर से भी देखा है. वहाँ के तिब्बती गेस्टहाउस मे भी मेरा मुक्काम रहा है. उनका चुनाव प्रक्रिया को भी देखा है. उनके संस्कृती की भी मैने अनुभुती ली है. प.पा. दलाई लामा एवं तिब्बती प्रधानमंत्री से मेरी व्यक्तीगत भेट हुयी है. कर्माप्पा लामा से भी मेरी चर्चा हुयी है. इतना ही नही, नागपुर में मेरे अध्यक्षता में हुयी *"जागतिक बौद्ध परिषद - २००६"* में तिब्बत के मा. धार्मिक मंत्री, वे प्रमुख अतिथी उपस्थित थे. लोकशाही प्रक्रिया का सही अमल, मुझे तिब्बती अंसेबली मे दिखाई दिया. कोई भी हंगामा नही. तिब्बती लोग तो शांतीप्रिय, स्वाभिमानी, इमानदार लोग है. पर मुझे काँग्रेसी नेहरू सरकार पर बडा ही घुस्सा भी आया, की उन्होने तिब्बती समुह को हर शहर से काफी दुर जंगलो मे बसाया है. जहाँ ना कोई रोड था, ना ही कोई सुविधाएँ...! वही बेहाल बांगला देशी चकमा बौध्द शरणार्थी समुह का रहा है. जो त्रिपुरा मे बसे है. और आज भी गरिबी की जिंदगी बसर कर रहे है. वही *स्वतंत्र भारत का विभाजन होने के बाद, पाकिस्तान से भारत आये समुचे सिंधी शरणार्थी को, बडे बडे शहरों मे बसाया गया. इतना ही नही, उन्हे करोडो रुपयो़ की सरकारी मदत भी दी गयी.* पर भारतीय औद्दोगिक क्षेत्र मे चल रहे, "डुप्लिकेट (नकली) उत्पादन निर्माण" का आरोप, सिंधी समुह पर लगता आया है. क्या यह हमारे भारत सरकार की, बडी ही जागती नही तो और इसे हम क्या है...?
      तिब्बती अंसेबली को देखने के बाद, मुझे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने २५ नवंबर १९४९ को, "भारतीय संविधान" को अमली जामा पहनाते समय, "संविधानिक सभा" मे दिये गये वे अनमोल बोल याद आ गये. डॉ. आंबेडकर कहते है, *"It is not that India did not know what democracy is. There was a time when India was studded with republics, and even where there were monarchies, they were either elected or limited. They were never absolute. It is not that India did not know Parliament or Parliamentary procedure. A study of the Buddhist Bhikshu Sanghas discloses that not only there were Parliaments - for the Sanghas were nothing but parliament - But the Sanghas knew and observed all the rules of Parliamentary procedure known to modern times. They had rules regarding seating arrangements, rules regarding motions, resolutions, quorum, whip, counting of votes, voting by ballot, censure motions, regularization, res judicata, etc. Although these rules of Parliamentary procedure were applied by the Buddha to the meeting of the Sanghas, he must have borrowed them from the rules of the Political Assemblies functioning in the country in his time...."* हमारे समाज के कुछ बिक-अकल़ों का "The Buddhist Personal Act" को विरोध देखकर, मुझे उन पर दया भी आती है.  बाबासाहेब का संदर्भ देकर, जो हमारे महामहिम (?) "बौध्द कानुन" को विरोध करते है, क्या उन्होने कभी बाबासाहेब के संपुर्ण लिखाण का "विषयानुरूप वर्गीकरण" किया है ?  क्या उन्होने बाबासाहेब के संपुर्ण लिखाण का "कालानुसापेक्ष वर्गीकरण" किया है ? क्या उन्होने बाबासाहेब के समस्त लिखाण का संशोधनात्मक, चिकित्सात्मक, समिक्षात्मक अध्ययन किया है ? बाबासाहेब आंबेडकर को पढना अलग विषय है. परंतु उसे समझना - उमगना - परखना यह अलग विषय है...! मैने *"The Buddhist Personal Act"* का एक कच्चा ड्राफ्ट तयार कर, इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉगर आदी पर डाल दिया है. जब तक उस कच्चे ड्राफ्ट पर, विद्वान - संशोधक - धार्मिक गुरू आदीयों द्वारा संशोधनात्मक - चिकित्सात्मक चिंतन नही किया जाता, तब तक उस ड्राफ्ट को, कानुनी अमली जामा पहनाना यह मुर्खता होगी...!
      यह विषयांतर भाव लिखना भी, यहाँ कुछ गैर नही है. क्यौ कि, वह विषय बुध्द संस्कृती से जुडा हुआ है. पुज्य दलाई लामा जी ने *"दलाई लामा यह यंत्रणा अब गैरलागु होने की जो बात कही है....!"* यह विषय बहुत ही गंभिर है. दलाई लामा यह कोई साधारणसा पद नही है ! वह तो तिब्बती शासन में "सर्वोच्च पद" है. *"जिसका संबंध यह तिब्बती संस्कृती के धार्मिक - राजनितिक भाव से जुडा है. जो एक बहुत बडा शक्ती केंद्र भी है, जिस के द्वारा तिब्बती समुह को बांधे रखा है. वह तो तिब्बत की सही रूप से शासन व्यवस्था है...!"* अत: उस पद को हटाने से केवल तिब्बती संस्कृती ही नही, अपितु विश्व के समस्त बौध्द संस्कृती पर, उसका गहरा असर पडने की भी प्रबल संभावना है.
      हमे तिब्बत का प्राचिन इतिहास समजना भी बहुत जरूरी है. तिब्बत की सिमाएँ यह २५ लाख चौरस किलोमीटर, अर्थात भारत से दोन तृतीयांश से भी बडे आकार का बौद्ध राष्ट्र था.  २१०० वर्षों से भी जादा इतिहास रहा तिब्बत, सातवी-दसवी शताब्दी तक आशिया का एक स्वतंत्र शक्तीशाली राष्ट्र था. सन ७६३ में तिब्बत ने चीन पर आक्रमण करने से, चीन का राजा देश छोडकर भाग गया. फिर तिब्बती सेना ने, वहा नये राजा की नियुक्ती कर, सन ८२१ में चीन - तिब्बत के बीच "सरहद्द निश्चीतीकरण" का समझौता किया. और दोनों भी देशों मे सुख - शांती से रहने की बातें कही गयी. *सन १९१४ में भारत - तिब्बत के बीच, "सरहद्द निश्चितीकरण" (मँकमोहन रेखा) करनेवाला "सिमला करार" हुआ.* सन १९४९ को नेपाल ने संयुक्त राष्ट्र में स्वयं सदस्यता के लिए जो आवेदन किया था, तब सार्वभौम दर्जा सिध्द करने के लिए, उस सिमला करार का उल्लेख किया गया. यही इतिहास ही तो हमे, तिब्बत के आजादी का बडा सबुत दे जाता है.
      सन १९४१ में अमेरिका के बडे कुटनीति ने, सिकियांग और तिब्बत यह दो राष्ट्र चीन के अधिन करने की एक बडी नीव रखी गयी. सन १९१४ के तिब्बत - ब्रिटिश बीच हुये करार को, अमेरिका ने भी स्विकार किया था. वही द्वितिय महायुध्द में ब्रिटिश के बाजु में खडे होने के साथ ही, भारत से ब्रिटिश की पकड ढिली करने के लिए, अमेरिका ने चीन को उनकी सैनिक छावणी को तिब्बत में लगाने के लिए प्रेरीत किया. क्यौं कि, अमेरिका आशिया पर भी अपना अधिपत्य जमाना चाहता था, जो चीन के बीना संभव नही था. अर्थात इस कुटनीती को अंजाम देकर, अमेरिका ने ब्रिटन को  बहुत बडा धोका था. अमेरिका का उद्देश केवल हिटलर को मदत करना था. क्यौ कि, अमेरिका का सही शत्रु जर्मनी नही, तो जापान था. वही हिंदी महासागर मे भी, ब्रिटिश नाविक दल पर, अमेरिका अपना स्व: अधिपत्य जमाना चाहता था. अमेरिका की यह कुटनीतिक चाल समझकर, रशिया का सर्वेसर्वा विन्स्टन चर्चील भी  *"इंग्लिश भाषिकों की केवल एक ही राजनिती  हो...!"* यह घोषवाक्य देकर, भारत के हितों की पुरी वाट लगा दी. वही अमेरिका ने भी भारत को बचाने के बदले, चीन को बचाने की चाल खेलकर, तिब्बत को चीन के गुलामी की ओर ढकेल दिया. इस तरह के कुटनीतिक चाल में, भारत - पाकिस्तान के विघटन का रास्ता खुला किया गया. आखिर द्वितिय महायुध्द मे ब्रिटन ने यह बातें खुले तौर पर स्विकार भी की.
    सन १९५० में तिब्बत पर चीन ने आक्रमण करने से, दलाई लामा तिब्बत से भागकर, भारत के सरहद्द पर, चुंगी खोरी मे आश्रित हो गया. तथा भारत सरकार एवं युनो को भी उस की सुचना दी. परंतु इस घटना की गंभिर दखल कभी ली ही नही गयी. वही पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ७ दिसंबर १९५१ में लोकसभा में अपने भाषण में कहा कि, *"तिब्बत आजादी संदर्भ में निर्णायक आवाज तिब्बती जनता की होनी चाहिये. अन्य की नही."* भारत सरकार के इन विदेश नीति पर नाराजी बताते हुये, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने सन १९५० कहते है कि, *"सन १९४९ को भारत ने चीन को स्विकृती देने के बदले तिब्बत को स्विकृती दी होती तो, भारत - चीन सरहद्द समस्या कभी पैदा ही नही होती...!"* जब तक गुलाम भारतीय उपखंड की सरंक्षण नीति एक थी, अर्थात ब्रिटिश राज व्यवस्था का अंत होने के पहले, तिब्बत और अफगाणिस्तान की आजादी अबाधित रही. परंतु भारत - पाकिस्तान विघटन के बाद भारत उपखंड की संरक्षण नीति पर कोई पॉलिसी ही नही बनाई गयी. उसका परिपाक आगे जाकर सन १९५० में चीन ने तिब्बत को और सन १९८० में रशिया ने अफगाणिस्तान को अपने स्व: आधिपत्य में ले लिया.
      तिब्बत संदर्भ मे जवाहरलाल नेहरु ने जो गलत विदेश नीतियाँ चलाई थी, पर तत्कालीन भाजपा शासित प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने तो, विदेश नीतिओं की पुर्णत: हद ही पार की. *"अटल बिहारी बाजपेयी ने तो तिब्बत, यह चीन का अविभाज्य अंग होने का वक्तव्य ही दे डाला."* आज चीन - भारत - भुतान के बीच का "सरहद्द डोकलाम विवाद" भी उसी भारतीय गलत विदेशी नीतिओं का परिपाक है. कश्मिर प्रश्न भी नेहरु के उसी गलत नितीओं की देण है. चीन यह ओबोर के माध्यम से समुचे आशिया पर, अपना शक्तीशाली अधिपत्त जमाने का प्रयास कर रहा है. आज नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांगला देश समान पडोसी देशो़ं को, चीन की केवल आर्थिक मदत ही नही मिलती तो, चीनी सेना का केंद्र भी वहा बन रहा है. *"वही चीन ने तिब्बत में विश्व मे कही भी हमला करने के लिए, "केमीकल वार" और आधुनिक हत्यारों से लेस केंद्र स्थापित किये है."* दक्षिण कोरीया हो या पाकिस्तान हो, चीन के अधिन काम करने मे ही धन्यता मानते है. आज चीन ही तो अमेरिका को आवाहन कर रहा है. रशिया पहले समान शक्तीशाली केंद्रबिंदु अब रहा नही. *अगर "तिसरा महायुध्द" लादा गया तो, भारत का अस्तित्व क्या होगा ?* यह सबसे बडा अहं प्रश्न है. क्या भारत केवल अमेरिका के ही सहारे पनपने की बातें करेगा...? रशिया का भारत पर वो पहले समान विश्वास अब रहा नही. भुतान को छोड दिया जाएँ तो, अन्य भारत के पडोसी देशों के चीन के साथ गहरे संबध है. चीन ने यह सभी बातें केवल आर्थिक समृध्दी कारण करने मे सफलता पायी है. देवत्व - धर्मांधता को वहा कोई भी जगह नही है. *"अमेरिका तो केवल अरब देशो़ं के कर्ज से ही, अपनी दादागिरी कर रहा है. अमेरिका की अर्थव्यवस्था दुसरी बार कब डगमगायेगी, यह तो कहाँ नही जा सकता. तब भारत का क्या होगा...?"* चीन ने पाकिस्तान मे अलगाववाद को पनाह देकर, भारत को गुलाम बनाने की रणनिती चलाई है. अगर वह संभव नही हुआ तो, तिब्बत से भारत पर हमला करना क्या इसे नकारा जा सकता है ? भुतान का सरहद्द भुभाग "डोकलाम" भी उसी कडी की एक कुटनीति है ...!!!
      भारत यह पडोसी क्षेत्र से इस तरह घिरा पडा है. भारत का इतिहास यह तो गुलामी का इतिहास रहा है. और भारत पर यह विदेशी गुलामी लादने की देशद्रोहीता का जिम्मेदार केवल ब्राम्हण्यवाद रहा है. इस पर डॉ. आंबेडकर २५ नवंबर १९४९ को "संविधान सभा" में कहते है कि, *"On 26th January 1950, India will be an independent country (cheers). What would happen to her independence ? Will she mentain her independence or will she lost it again ? This is the first thought that comes to my mind. It is not that India was never an independent country. The point is that she once lost the independence she had. Will she lost it a second time ...?"* वही काँग्रेसी नरसिंहराव सरकार ने, फिर से भारत पर भांडवलशाही देशों की गुलामी लादने का बडा ही हिन काम किया है. भारतीय अर्थव्यवस्था तो पुर्णत: खोकली दिखाई देती है. भारत यह कर्ज से तले पुर्णत: डुब चुका है. भारत को डॉ. मनमोहन सिंग समान अच्छा अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मिलने के पश्चात भी, काँग्रेसी कु-नीति ने सिंग को अपने मर्जी से काम करने की आजादी न देना...! यह भारत की बडी शोकांतिका रही है. फिर भी डॉ मनमोहन सिंग जी ने डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के अर्थनीति पर चलने का कुछ प्रयास किया था. हमारे भारत की अर्थनीती यह केवल डॉलर के सहारे कब तक चलेगी...? यह अहमं सवाल है. भारत की महंगाई यह आसमान छुँ रही है. कर्मचारी आदीओं को महंगाई भत्ते में वृध्दी तो मिल जाती है. परंतु किसान, मजदुर, सामान्य वर्ग का क्या...? वह तो महंगाई तले मर रहा है. *"वही देवत्व - धर्मांधता ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मंदिरों में जबडे रखा है. और मंदिरों में डंब हुये, उस संपत्ती का वापर करने की हिंमत कोई भी सत्ता व्यवस्था नही कर पा रही है. यही तो बडी शोकांतिका है...!"* क्या भारतीय अर्थनीति यह बाबासाहेब के अर्थनीति विचारो़ पर चलेगी...? यह केवल प्रश्न ही बना है.
     विदेशी नीति के संदर्भ मे जवाहरलाल नेहरू, अटलबिहारी बाजपेयी ने जो गलतीयाँ की थी, वह गलतीयाँ नरेंद्र मोदी ने नही की. इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ने अन्य देशो़ से अच्छे संबध बनाने का प्रयास किया है. परंतु नरेंद्र मोदी केवल हवा मे ही उडते नजर आते है. तिब्बत के संदर्भ मे मोदी का मौन रहना भी, हमारे भारतीय सुरक्षा के लिए बडा घातक हो सकता है. अमेरिका आज तिब्बत के प्रती सकारात्मक दिखाई देता है. वही भारत का उदासीन रहना ? क्या नरेंद्र मोदी, तिब्बत यह एक स्वतंत्र राष्ट्र है ? यह वक्तव्य करने की हिंमत दिखा पायेगा, यह भी महत्वपुर्ण प्रश्न है. चीन का आर्थिक सशक्त हो जाना, यह तिब्बत के आजादी लिए अब बडे दुर की मंजिल है. दलाई लामा का वक्तव्य भी हमे उसी कडी में लेना होगा. भारत के संदर्भ में देवत्व - धर्मांधता से परे होकर, *"मंदिरों का राष्ट्रियकरण"* करने की हिंमत नरेंद्र मोदी ने ना दिखाना, यह मोदी की सबसे बडी कमजोरी है. इंदिरा गांधी ने बँको का राष्ट्रियकरण करने की एवं भारत पर आणिबाणी लादने की हिंमत दिखाई थी. इसके लिए बडे जिगर की जरूरत है. राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ और सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत तो केवल और केवल देवत्व - हिंदुत्व के कुप-मंडुक हुये दिखाई देते है. भारत की सुरक्षा और आर्थिक विकास उन का एजेंडा अब तक दिखाई ना देना, वही "भारत राष्ट्रवाद" यह संघ का मिशन कब होगा ? यह भी अनुत्तरित प्रश्न बना हुआ है. नरेंद्र मोदी भी उसी कडी का एक बडा हिस्सा है.
          आजाद भारत मे मागासवर्गीय समुह को राजकिय समानता तो मिली है, परंतु चुने गये प्रतिनिधीओ़ ने उनका गुलाम होना, यह भी बडे चिंता का विषय है. वही सामाजिक - आर्थिक असमानता ने, भारतीय अंतर्गत समाज व्यवस्था मे अंतर्युध्द चल रहा है. वही देवत्व - धर्मांधता ने मानसिक गुलामी को और भी जादा बढावा दिया है. भारत की आर्थिक व्यवस्था, केवल मंदिरो मे ही डंब होने के कारण बडी खस्ता है. भारत कर्ज से तले डुबा है. और *हमारे नेता लोग "सशक्त भारत - समृद्ध भारत - एकसंघ भारत" की बडी बडी डिंगे हाकते रहते है...!* सवर्ण वर्ग का एक बडा धर्मांधी कुणबा तो, राष्ट्रभक्त "बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर मुर्दाबाद" के नारे दे रहा है ! भारत की अखंड अस्मिता "भारतीय संविधान" की होली करते भी, वे दिखाई देते है. फिर भी इस भारतीय शासन व्यवस्था और पोलिस वर्ग का मौन रहना, यह तो भारत के अगली गुलामी का संदेश दे रहा है. *"मोहनदास गांधी हत्याकांड"* को वह सवर्ण जाती वर्ग भुलते नजर आता है. जब उन की बहु - बेटीयाँ अपनी इज्जत बचाने की भीख माँगते थे.  वही पुरुष वर्ग अपनी जान बचाने के लिए, जहाँ वहाँ छुपते फिरते नज़र आते थे. आज वह उच्च जातीय देशद्रोही धर्मांधी कुणबा, भारत के उनके पुरखों के देशद्रोही - गद्दारी की मिसाल बनते नजर आते है. अगर यही हालत रही तो, शायद भारत मे *"अंतर्गत रक्तक्रांती"* को बुलावा जादा दुर नही..! जरा सोचों, अंतर्गत और बाह्यगत इन द्वंद्व वार में स्वतंत्र भारत, क्या जिवित रह पायेगा भी नही ? यह प्रश्न है, सभी भारतीय देशभक्तों के लिए...!!!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
           (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* अध्यक्ष, डॉ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* अध्यक्ष, जागतिक बौद्ध परिषद २००६, नागपुर
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

Thursday, 9 August 2018

Prof. Kuldeep Waghmare, Ritesh Thool, Murtaza Babbar posted in CRPC Yeotmal Dist Committee.

🔹 *प्रा. कुलदीप वाघमारे, रितेश थुल, मुर्तझा बब्बर इनकी सिव्हिल राईट्स यवतमाल जिला शाखा पर नियुक्ती...*
        सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (C.R.P.C.) के यवतमाल जिला उपाध्यक्ष पद पर आयु. रितेश थुल, जिला सचिव पद पर प्रा. कुलदीप वाघमारे, एवं जिला कार्याध्यक्ष पद पर मुर्तझा बब्बर इनकी नियुक्ती सेल के यवतमाल जिला अध्यक्ष मिलिन्द धनवीज इन्होने की है. इस नियुक्ती को सेल के राष्ट्रिय अध्यक्ष डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' इन्होने अनुमती दी है... तिनो ही मान्यवर यह बाबासाहेब विचारधारा संघटन मे कृतीशील है...  उनके नियुक्ती पर आयु. एन.पी. जाधव, इंजी. पी. रवी (कर्नाटक),  प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, प्रा. दिलिप बारसागडे, दिपाली शंभरकर, कवी सुर्यभान शेंडे, मिलिन्द बडोले, डॉ. नितिन आयवले, रेणु किशोर, अँड. रविंदर सिंग घोत्रा, मुरली मेश्राम, मिलिन्द धनवीज, अँड. आचल श्रीवास्तव, इंजी. विवेक मवाडे, कांचन वीर, इंजी. गौतम हेंदरे, डॉ. प्रमोद चिंचखेडे, प्रवीण बोरकर, अशोक गणवीर, गौतमादित्य, प्रा. योगेंद्र नगराले, नरेश डोंगरे, प्रा. सुखदेव चिंचखेडे, रजनी थेटे, रणजीत तायडे, अँड. निलिमा लाडे आंबेडकर, डॉ. सौमित्रसेन धिवार, डॉ. देवानंद उबाले, हिना लांजेवार, अँड. राजेश परमार, कमलकुमार चौव्हान, हरिदास जीवने, भोला शेंडे, नालंदा गणवीर, मिलिन्द आठवले, प्रवीण बोरकर, अजय तुम्मे, धनराज उपरे, मनिष खंडारे, सुरेखा खंडारे, सूझंना पोद्दार, चंदा भानुसे, नरेंद्र खोब्रागडे, मिलिन्द गाडेकर, डॉ. राजेश नंदेश्वर , अशोक निमसरकार, सिध्दार्थ सालवे, प्रशांत वानखेडे, ब्रिजेश वानखेडे, अँड. बी.एम. गायकवाड,  विनोद भाई वनकर, धर्मेंद्र गणवीर,  सुधिर जावले, डॉ. मनिषा घोष, डॉ. भारती लांजेवार, आलिया खान, मंगला राजा गणवीर, मुन्ना यादव, ह्रदय गोडबोले, चंद्रिका बहन सोलंकी, महेश महिडा,  विनोद भाई वनकर, प्रवीण देवले, सुधिर मेश्राम, गोपाल यादव, राहुल दुधे, प्रियदर्शी सुभुती, रोहित विनुभाई कचरा, संजय फुलझेले, अँड. राहुल तायडे, नागसेन पाझारे, प्रशांत ठाकरे, ओमप्रकाश मेश्राम, भालचंद्र सुर्यवंशी, आदीयो ने अभिनंदन किया है...




🌳 *औदुंबर तु तो मेरे आँगण में !*
            *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
             मो.न. ९३७०९८४१३८

औदुंबर तु तो मेरे आँगण में
बुध्दमय छाया में बसते जाना ...

जलधारा विवाद शाक्य राज में
राजपाट सिध्दार्थ का छोड जाना
औदुंबर गोद की उस छाया में
ज्ञान बोध का प्र-पादान हो जाना ...

शरीर मन के एकाग्र भाव में
सुजाता ने खीर दान कर जाना
कठोरमय उस महा ध्यान में
गया के ओर बुध्द का बढ जाना ...

पिपल वृक्ष की सु-बुध्द छाया में
गया ग्राम का बुध्दगया हो जाना
तथागत के बोधिवृक्ष धारा में
सिध्दार्थ ने बुध्दत्व ज्ञान पा जाना ...


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Tuesday, 7 August 2018

🤝 *मागासवर्ग आरक्षण व्यवस्था मे १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली, क्या बहुत बडा धोका है ?*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

      हमारी भारतीय राजसत्ता व्यवस्था भी एक अजब गजब की नौटंकी है. नौटंकी के कलाकार यह हमेशा काल्पनिक चित्रण ही सादर करते रहते है. ता कि, हमारे लोगों का एक अच्छा मनोरंजन होता रहे. उसी प्रकार यह राज सत्ताधारी वर्ग भी, *"एक हातों मागासवर्ग के लिए आरक्षण की बडी बडी घोषणा वर्षा कर जाता है. तो दुसरी ओर, उसी घोषणा वर्षा का ना कभी सक्रिय अमल हो...! इस के लिए भी, कुछ अवरोधी अकाल की व्यवस्था कर जाता है. ता कि, यें आरक्षण सीटे कभी भरी ही ना जाऐं...!"* उसी चाणाक्य कुटनीति के सहारे, हमारी इन राजसत्ता व्यवस्था ने, संविधानिक दायित्व को निभाने के लिए, शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण हेतु १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली लागु की है. क्या है, यह १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली..? *"रोस्टर का अर्थ है, शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण लागु होने के बाद स्विकृत पदों का क्रम निर्धारण...!"* अब इस रोस्टर को समजना भी हमे बहुत जरूरी है.
१. अनारक्षित (UR)
२.    - "-
३.    -" -
४. ओ. बी. सी. (O. B.C.)
५. अनारक्षित (UR)
६.    - " -
७. अनुसुचित जाती (SC)
८. ओ. बी. सी.  (O.B.C.)
९. अनारक्षित (UR)
१०.   - " -
११.   -" -
१२. ओ. बी. सी.  (O. B. C.)
१३. अनारक्षित (UR)
--------------------------------------
१४. अनुसुचित जनजाती (ST)
१५. अनुसुचित जाती (SC)
१६. ओ. बी. सी. (OBC)
       अर्थात १३ बिंदु रोस्टर के कुल पद - १३ ---- अनारक्षीत - ९, ओ.बी.सी. - ३, अनु. जाती. - १, अनु. जमाती - ०
       हमारी सत्ता व्यवस्था ने, आरक्षित वर्ग को ४ (ओ.बी.सी.), ७ (अनु. जाती), ८ (ओ.बी.सी.), १२ (ओ.बी.सी.), १४ (अनु. जमाती), १५ (अनु. जाती), १६ (ओ.बी.सी.) इस क्रम पर बिठाया है. वही अनारक्षित वर्ग को प्रथम तथा सर्वोत्तम स्थान पर...! अब सवाल है कि, *"जब किसी विभाग मे किसी भी पदों की भर्ती करना हो तो, उन जगह की नियुक्तीयाँ प्राय: अनारक्षित श्रेणी से ही होगी. ना कि, मागासवर्ग आरक्षित श्रेणी से...!!!"* अब हमारे सभी मागासवर्गीय कर्मचारी संघटन नेतावर्ग, कार्यकर्ता, राजकीय नेता एवं विचारवीद आदी लोगों का चिल्लाना रहता है कि, पदों के अनुपात में विज्ञापन दिया ही नही गया..! वास्तव मे इस १३ बिंदु रोस्टर प्रणाली का कठोर विरोध, जब वह अस्तित्व मे आयी थी, तब ही होना जरुरी था...! *"हमारे भारतीय संविधान में किसी भी विभागों में, किसी भी पदों की नियुक्तीयाँ करते समय मागास वर्ग के लिए प्रतिनिधित्व व्यवस्था की तजबीज पहले ही कर रखी है...!"* आज भारत के कई राज्यों में जो पदों की भरती हो रही है, वहाँ मागासवर्ग के लिए आरक्षण अभाव दिखाई दे रहा है. अब राज सत्ता व्यवस्थाधारीओं ने अपना असली खेल दिखाना शुरु किया है. वास्तव्य में हम लोग बडे ना-लायक है, जो गटवादी हिजडों के गटभाग में बिखर गये है. समाज उत्थान का दायित्व गया भाड में...!!! अत: अब हम नही जागेंगे तो, गुलामी की बेडिया पहनने का काल जादा दुर नही...!!!
      भारत को आजादी मिलने में आज ७० साल का कालखंड गुजर चुका है. फिर भी इस देश में *"अनुसुचित जाती / जमाती प्रतिबंधक कानुन हो या, अनु. जाती / जनजाती आयोग हो या, ओ.बी.सी. आयोग की गरज महसुस होना !"* यह तो भारत के राजकिय, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक परिक्षेत्र के उच्च निच मानसिकता का बोध करा देता है. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जब "भारतीय संविधान" को संविधान सभा मे अंतिम रूप दे रहे थे, तब २५ नवंबर १९४९ को संविधान सभा मे कह गये कि, *"On the 26th January 1950, we are going to enter into a life of contradiction. In politics we will have equality and in social & economic life we will have inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote and one vote one value. In our social and economic life, we shall, by reasons of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one value. How long shall we continue to live this life of contradiction ? How long shall we continue to deny equality in our social and economic life ? If we continue to deny it for long, we will do so only by putting our political democracy in peril. We must remove this contradiction at the earliest possible moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy which is Assembly has to laboriously built up...."*
      हमे महात्मा ज्योतिबा फुले, छत्रपती शाहु महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पंजाबराव देशमुख, प्रबोधनकार ठाकरे समान सामाजिक - आर्थिक समानता का पुरस्कार करनेवाले अच्छे प्रामाणिक नेता तो मिले .... परंतु उन का मिशन आगे ले जानेवाले सही वारिस नही...!!! आज जो कोई भी राजकीय महामहिम नेता दिखाई देते है, चाहे वे रिपब्लिकन गटनेता हो, छगन भुजबळ (ओ. बी. सी. नेता) हो, शरद पवार (मराठा नेता) हो, या अभी अभी राजनिती में आये हुये हमारे मित्र प्रा. बबनराव तायवाडे हो, या सुप्रिया सुळे हो, या पंकजा मुंडे हो, या डॉ. हिना गावित हो, आदी समस्त नेता महामहिम गण यह सामाजिक - आर्थिक समताधारी कम, और राजनितिक दलाल जादा दिखाई देते है. उन महामहिमों को समाज हित से भी जादा, उन के व्यक्तीगत हित की चिंता अधिक रहती है ! अत: हमे इन सभी नेताओं से बचकर रहने की जादा आवश्यकता है. वही ये सभी नेता लोग विचारविद है ही नही, तो खाक समाज को सही दिशा देंगे...??? वही इन सभी नेताओं मे सबसे बडा जहरीला नाग कोई है तो, वह है शरद पवार...!!! इस महामहिम से बचना तो बहुत जरूरी है. वह बोलता एक है, और करता अलग है ! पवार तो विश्वासहिनता की एक ज्वलंत मुर्ती है...!!!
     *"भारत मे विशेषत: महाराष्ट्र हो, या गुजरात हो, या उत्तर प्रदेश हो, या मध्य प्रदेश हो आदी राज्यों मे महारेत्तर समाज ने भी बौध्द धम्म मे दीक्षीत होना, यह एक बहुत बडी क्रांती कहनी होगी."* वही इस "बौद्ध धम्म दीक्षा अभियान" मे कई सामाजिक कार्यकर्ता जुड रहे है. महाराष्ट्र के संदर्भ मे कहा जाएँ तो, लक्ष्मण माने, प्रा. सुषमा अंधारे, स्मृतीशेष हनुमंत उपरे, संदिप उपरे, मेरे मित्र रमेश राठोड, उल्हास राठोड आदी मान्यवरों ने अपना जीवन समर्पित किया है. और हिंदुत्व - देवत्व को पुर्णत: नकारा है. जब तक ये महारेतर ओ.बी.सी., मराठा, आदिवासी, भटके विमुक्त जाती समुह यह हिंदुत्व - देवत्व छोडते नही, तब तक उन के धर्मांध - देवांध सांस्कृतिक गुलामी का पाश दुर होना कदापी संभव नही. मुझे यह कहते हुये आनंद भी हो रहा कि, *"बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने १४ अक्तुबर १९५६ मे "बौध्द धम्म दीक्षा मिशन" शुरु किया था, जो उन के जाने के बाद थमसा गया था, जिसे गती देने का काम हमारी युवा टीम ने १९८१ मे शुरू किया था. और हमारे मंच पर प्रा. डॉ. रूपा कुलकर्णी, प्रा. प्रभाकर पावडे, दिल्ली के नामांकित साहित्यिक मोहनदास नैमिशराय ने आदीयों ने धम्म दीक्षा ली थी. हमारे उस मिशन के प्रभाव में आगे जाकर नामांकित कवी सुरेश भट तथा ओ.बी.सी. नेता - दलित व्हाईस बंगलोर के संपादक मा. व्ही.टी. राजशेखर ने भी बौध्द धम्म की दीक्षा ली थी!"* साथ मे मेरे ही नेतृत्व में जागतिक बौध्द परिषद का आयोजन किया गया. आज हमारे पिढी ने उस दिशा मे पहल कर, हमारे मिशन को गती देने का काम किया है. और करते दिखाई देते है. महत्वकी बात यह कि, *"जब तक वह गुलामी पाश दुर नही होगा, तब तक हम इस देश मे सामाजिक - आर्थिक समानता को प्रस्थापित नही कर सकेंगे...!"* अत: भारत देश पर ४℅ अल्पसंख्यक उच्च वर्ग समुह का सत्ता कार्यकारी मंडल, न्याय मंडल, संरक्षण मंडल, व्यापार एवं औद्योगिक मंडल, ब्युरोक्रेसी, धर्म मंदिर मंडल आदी सभी जगह पर, उन उच्च वर्ग का एकछत्र अधिपत्य होना तो लाजमी है. अगर उन उच्च वर्ग द्वारा अधिग्रहित सभी क्षेत्र को, हमे छेद देना हो तो, डॉ. आंबेडकर जी ने हम भारतीयों को जो "बौध्दमय भारत संकल्पना" दी है, उसे समजना - अमल मे लाना बहुत ही जरूरी है...!!!
     "बौध्दमय भारत" यह संकल्पना जातीविहिन समाज निर्माण एवं समान नागरी कायदा लागु करने का एक माध्यम है. भारत मे सामाजिक - आर्थिक - धार्मिक समानता प्रस्थापित करने की एक बुनियाद है. जाती संघर्ष - धर्म संघर्ष को मिटाने की एक गुरुकिल्ली है. धर्मांधता - देवत्व भाव इस मानसिक गुलामी को ठिक करने की दवा है. अविकसित भारत को "अर्थमय विकास भारत" बनाने की वह एक प्रेरणा है. *"शांतीशील भारत, करुणामय भारत, मैत्रीमय भारत, प्रेममय भारत बनाने का वह एक नाद है...!"* परंतु हम धर्मांधी - देवांधी बनकर, ब्राम्हण्यवाद के जाल मे फंस गये. और आज वह ब्राम्हण्यवाद भारत के हर समाज मे विद्यमान दिखाई देता है. इस संदर्भ में भारतीय संविधान के पितामह बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर कहते है कि, *"ब्राम्हणशाही इस शब्द का अर्थ स्वातंत्र्य, समता एवं बंधुभाव इन तत्व का अभाव - यह मुझे अभिप्रेत है. इस अर्थ से, इस शब्द ने हर क्षेत्र में कहर फैलाया है. और ब्राम्हण भले ही इस के जनक हो, परंतु इसका अभाव अब केवल ब्राम्हण वर्ग के सिमित नही रहा. तो इस ब्राम्हणशाही ने हर जगह संचार कर, सभी वर्ग के आचार विचारो़ को नियंत्रित किया है. और यह निर्विवादीत सत्य है....!"* (मनमाड १३ फरवरी १९३८)
      मै दु:खी भाव से यह कह रहा हुं कि, भारत का हर तबका आज राजनिती मे डुब गया है. वही इस देवांधता ने भारतीय हिंदु मंदिर *"अर्थनाद का आगार"* बन गये है. और वही सशक्त आर्थिक हिंदु धर्म शक्ती, यहाँ के बहुजन समुह को और गुलाम बनाने मे सफल रही है. यही कारण है कि, *"इस देश के राजनितिक सत्ता केंद्र पर हमेशा ही ब्राम्हण्यवाद का बोलबाला है. चाहे वह राजनितिक दल काँग्रेस हो या, भाजपा हो या, कँम्युनिस्ट हो...!!!"* इस लिए हिंदुत्व - देवत्व से बाहर निकले बिना, इन संपूर्ण बहुजन समाज का उत्थान संभव नही. और हम केवल मागास वर्ग प्रतिनिधित्व, मागास वर्ग आयोग की माँग तक ही सिमित रह जाएँगे...! हमे इस से बाहर निकलकर सभी तबके को बौध्द बनाना है. हिंदुत्व धारा का अंत करना है. देवत्व भाव को डुबाना है. तभी हम भारतीय समाज मे सामाजिक - आर्थिक समानता ला सकेंगे...! साथ ही राजकिय सत्तावाद भी...!

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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य', नागपुर*
         (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)
*राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* मो.न. ९३७०९८३१३८, ९२२५२२६९२२

Sunday, 5 August 2018

🌹 *ह्या मनावर प्रेम करावे ...!*
          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य' नागपूर*
          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

ह्या फुलांवर प्रेम करावे, ह्या मनावर प्रेम करावे
सुखकर सह जिवनसाठी, बुध्दाला मी शरण जावे

फुलपाखरा संग रमतांना, भान मी हरपुन जावे
फुलकणांचे शोधन करुनी, क्रांती गुणाचे युग यावे
मोगरा फुलाच्या सुगंधाने, विष दोषाचे हरण व्हावे
गुलाबाच्या सौंदर्यामधुनी, बुध्द गुणांचे दर्शन व्हावे

वेलींच्या ह्या वाढ गुंतेतुन, जन मनांनी गुंतुन जावे
त्या फुलछटा वर्षावानी,माझे आसमंत फुलुन जावे
कोमल तुझ्या भावामधुनी, मी तुझ्यावर प्रेम करावे
बुध्द मनाची तु प्रतिक रे,माणसांनी तुझे गुण घ्यावे

पक्षी जातींच्या जगामध्ये, जनमनाने गवसनी द्यावे
जातीभेद जन दोषावर, आकाशातुन सु-वाणी यावे
विषमतेच्या जन वा-याने,माणसांचे कां घात करावे
निसर्गभाव जगामध्ये, जनमनाने ना ही दास व्हावे

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Thursday, 2 August 2018

🔥 *ती विचार क्रांती ...!*
           *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
           मो.न. ९३७०९८४१३८

चिमण्यांची किलबिल
कावळ्यांचे काव काव करणे
ह्या खार प्राण्याचे
एका झाडावरुन
दुस-या झाडावर मस्त बागडणे
रोजच्या मानव जिवनातील
ते निसर्ग सत्य
आज काल
आमच्या घर अंगणातुन
कायमचे हद्दपार होणे
आणि हे अंगन
त्यांच्या अस्तित्व अभावाने
ओसाड झालेले असतांना
सोबतचं ह्या बाल जगाला
सदर तो इतिहास
प्रत्यक्ष कसा दाखवावा ?
म्हणुन होणारी ती कसरत
त्यातचं निसर्ग संशोधका-समोर
हा चिंतेचा विषय असतांना
सरकार मात्र निश्चिंत आहे
नाही ~ ते तर मेलेले आहे ...!
मित्रांनो,
ही आठवण होणे
इतके सहज भाव नाही
कारण
शिक्षणाचे सिलँबस असो
प्रशासकीय स्पर्धा परिक्षा असो
वा आधुनिक इतिहास बखाण असो
बुध्द, सम्राट अशोक,
महात्मा फुले, डॉ. आंबेडकर
ह्या महामानवांना
त्यामधुन हद्दपार करण्याची
चाललेली त्यांची हिन विकृती
गोडसे - गांधी आदी (गोगावादी)
बहुजन समाज विघातक
विचारवादाचे चाललेले गोडवे
भारत ह्या आमच्या देशाचे
संविधानिक नाव वगळुन
हिंदुस्तान म्हणवणा-या
ह्या अनैतिक, देशद्रोही पिलावळीने
सुवर्ण बुध्द कालीन
प्राचिन विकास भारताचे
केलेले पुर्णत: ते वाटोळे
आणि चिमणी , कावळा, खार
ह्या प्राणी जातीच्या केलेल्या
त्या नामशेषाप्रमाणे
आमच्या महापुरुषांना ही
नामशेष करण्याची हिम्मत
ह्यापुढे कधीही करु नये
म्हणुन आमची ही चेतावणी आहे
नाही तर
पुढची येणारी ती विचार क्रांती
ही तुमच्या अनैतिक, देशद्रोही पिढीला
कायमचे नामशेष करेल
हे सत्य तुम्ही समजुन घ्या ....!!!

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    (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

Dr. Milind Jiwane 'Shakya' delivered his speech on OBC Dhamma Deeksha Ceremony at Nagpur.

*ओबीसी धम्मदीक्षा जनजागृती अभियान नागपुर मे ...!*
      सार्वजनिक धम्मदीक्षा समारोह समिती, नागपुर की ओर से रविवार दिनांंक २९ जुलै २०१८ को डॉ. आंबेडकर सांस्कृतिक सभागृह, उर्वेला कॉलोनी, नागपुर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. उस कार्यशाला बहुत से मान्यवरों ने मार्गदर्शन किया. उस अवसर पर जागतिक बौध्द परिषद के अध्यक्ष *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* इन्होने भी संबोधित किया.
*रमेश राठोड* - आयोजक