🎓 *न्यायालय भ्रष्टाचार विरोध में तत्कालीन न्या. सी. एस. कर्णन इनकी आवाज सर्वोच्च न्यायालय ने क्यौ दबाई थी ?* (न्या. यशवंत वर्मा समान करंसी केस घटना ना हुयी होती.)
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
सन २०२५. भारतीय न्याय व्यवस्था में, दिल्ली उच्च न्यायालय के *न्या. यशवंत वर्मा* इनके सरकारी बंगले *"५० करोड"* (?) के ऊपर राशी होने का प्रकरण, मिडिया में उजागर हुआ है. *सन २०१७ की वह घटना.* मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश *सी. एस. कर्णन* जी इन्होने २३ जनवरी को, प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* इनकी कार्यालय एक शिकायत पत्र भेजकर, सर्वोच्च न्यायालय - उच्च न्यायालय में *"बीस (२०) करप्ट न्यायाधीश"* होने की शिकायत की थी. प्रधानमंत्री कार्यालय ने वह पत्र *"सर्वोच्च न्यायालय"* को केवल वर्ग किया. *"भारतीय संसद"* में उस पत्र पर, क्या कारवाई हुयी थी ? यह प्रश्न है. सर्वोच्च न्यायालय ने ८ फरवरी को न्या कर्णन इनको, एक नोटीस भेजी थी. फिर सर्वोच्च न्यायालय ने १० मार्च को, एक जमानती वारंट भी जारी किया. *सर्वोच्च न्यायालय और न्या. कर्णन इनके बीच में न्यायालयीन संघर्ष"* यह चलता रहा. इसी बिच सर्वोच्च न्यायालय की कोलोजीयम ने, *न्या. कर्णन* इनकी बदली, कोलकाता उच्च न्यायालय में की थी. न्यायालय के संघर्ष स्वरुप *न्या. कर्णन* इन्होने भी, सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश (CJ) - *जे. एस. केहर* इनकी समवेत और अन्य सात न्यायाधीश *न्या. दिपक मिश्रा / न्या. जे. चेलमेश्वर / न्या. रंजन गोगोई / न्या. मदान / न्या. बी. लोकुर / न्या. कुरियन जोसेफ / न्या. भानुमती* इनके विरोध में, एक आदेश पारीत किया था. अपने स्वयं के आदेश में, *न्या. कर्णन* साहाब इन्होने लिखा है कि, *"सुप्रीम कोर्ट के आठ जजो ने, जाति के आधार पर भेदभाव किया है. इस लिये अनुसुचित जाती / जमाति कानुन की तहत, उन्हे दोषी मानकर, सभी जजो को सजा के साथ साथ, एक लाख रुपया जुर्माना देने का आदेश दिया जाता है."* यह केस तब मिडिया में बहुत सुर्खीयों में रही थी. हमे *न्या. कर्णन* जी इनकी शिकायत की *"क्रोनोलॉजी"* समझनी होगी. अगर सदर गंभिर शिकायत को *"गंभिरता"* से समजा गया होता तो, क्या सन २०२५ की *"भ्रष्टाचार घटना"* हुयी होती ? अत: तब भ्रष्टाचार को दबाने का, बहुत प्रयास किया गया.और *"भ्रष्टाचार करने में"* न्याय व्यवस्था की हिम्मत बढती चली.
न्यायालय में भ्रष्टाचार - भाई भतिजावाद - ब्राह्मण आरक्षण का कारण यह तो, *सर्वोच्च न्यायालय कोलोजीयम सिस्टम"* है. जैसे की ब्राह्मण आरक्षण *"राज्यपाल"* आदि नियुक्तीयां होती है. सत्ता वर्ग को *"अन्य समुदाय वर्ग के मेरिट लोग"* शायद दिखाई नहीं देते हो. अत: सबसे पहले उस *"कोलिजियम"* को ही हटाना होगा. दुसरी बात प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* सरकार द्वारा - ९९ वी संशोधित कानुन २०१४ अंतर्गत *"National Judicial Appointment Commission"* (NJAC) यह सिस्टम भी, सही तरह से उजागर नहीं है. वह सिस्टम भी तो, १५/०४/२०१५ से लागु होने वाली थी, परंतु सर्वोच्च न्यायालय के *"संविधान खंडपीठ"* ने, उसे *"असंवैधानिक "* करार देने से, उसे लागु नहीं किया गया. परंतु वह सिस्टम भी *"भारतीय चुनाव आयोग"* (Election Commission of India) सदृश्य सरकारी संस्थान रुप में ही, वह कार्यरत होगा. अत: *"केंद्रीय लोकसेवा आयोग"* UPSC) सदृश्य ही *"केंद्रीय न्यायिक आयोग"* (Union Judicial Commission - UJC) का गठण हो. सभी न्यायाधीश वर्ग पर *"Code of Conduct"* लागु हो. न्यायाधीश वर्ग को उनकी और उनके परिवार की संपत्ती, शपथपत्रसह घोषित करनी होगी. न्यायाधीश किसी अपराध में दिखाई दिये तो, उन्हे सेवा मुक्त करने का प्रबंध हो, उनकी पेंशन बंद की जाए, आदि आदि.... ! इसका भी प्रयोजन हो. वही *न्यायाधीश* बनने के लिये लेखी स्पर्धा परिक्षा हो / मौखिक परिक्षा हो / पोलिस रिपोर्ट हो / मेडिकल रिपोर्ट हो / सभी वर्ग की वहा भागिदारी हो / और अंत में न्यायाधीश वर्ग की नियुक्ती हो. इस पध्दती से हमें, *"मेरिट न्यायाधीश"* की नियुक्ती करने में सुविधा होगी. वह *"निकाय स्वतंत्र"* रुप से कार्यरत हो. साथ ही न्यायालयीन आदेश / न्यायाधीश संहिता / न्यायाधीशों पर शिस्तभंग कारवाई करने के लिये *"न्याय समिक्षा कृति आयोग"* (Judicial Review Action Commission - JRAC) इसका भी गठण हो. ता कि *"न्याय व्यवस्था के भ्रष्टाचार"* को, लगाम लगाई जा सके और न्यायालय निर्णय में *"मेरीट"* भी दिखे तथा जनता को सही और उचित समय में न्याय मिले. नहीं तो न्याय मिलने में, हमें बहुत *"दिरंगाई"* होते दिखाई देती है.
कोलकाता उच्च न्यायालय के *न्या. कर्णन* यह बहुत इमानदार तथा *"अनुसुचित जाती"* वर्ग से जुडे न्यायाधीश रहे. कर्णन जी ने *"न्यायालय भ्रष्टाचार विरोध"* में आवाज उठायी थी. सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *जे.एस.केहर* इनकी अध्यक्षता वाली *सात न्यायाधीश खंडपीठ* ने, न्यायालय अवमानना आरोप लगाकर, *"न्या. कर्णन"* इनको तो, *"छ: माह कारावास"* यह सजा सुनाई गयी. और न्या. कर्णन इन्होने *"सेवानिवृत्त होने बाद"* वह छ: माह की सजा काटी भी है. अर्थात *"इमानदार न्यायाधीश"* का हश्र हम देख चुके हैं. अब ५० करोड करंसी को सरकारी बंगले में रखना (?) / जली हुयी करंसी का सबुत को मिटाना / सिमित कालावधी में मुख्य न्यायाधीश को सुचना ना देना भी / अभी तक दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश *यशवंत वर्मा* इनके उपर *"पोलिस FIR दाखिल"* ना होना / करंसी अत्याधिक मात्रा पर होने पर भी, *"इन्कम टॅक्स"* इनका खामोश होना / *"प्रवर्तक निदेशालय"* (ED) तथा CBI इनका भी खामोश रहना / सरकार द्वारा संसद में *"महाभियोग"* ना लाना / *"सर्वोच्च न्यायालय / दिल्ली उच्च न्यायालय"* द्वारा घिमी गती से आगे बढना / *"फायर ब्रिगेड / पोलिस / सरकारी बंगले के कर्मचारी"* आदी से पुछताछ में विलंब करना, अर्थात यह प्रकरण उपरोक्त कारणों से हमेशा याद रखा जाऐगा. न्याय व्यवस्था में *न्या. कर्णन* समान इमानदार लोग कुर्बान होते रहे है. परंतु *यशवंत वर्मा* समान लोग बचकर निकल जाते है, यह कहना होगा. यह भी सुनने (चर्चा है) में आ रहा है कि, इस भ्रष्टाचार के पिछे भी - *"नामांकित सिनियर वकिल"* वर्ग की बडी भुमिका है.*"न्यायाधीश - वरिष्ठ वकिल वर्ग"* उनकी अंदरुनी मिलि भगत होती है. क्या यह सच उजागर होगा ? यह भी प्रश्न है. *"भ्रष्टाचार जुडिशिअरी - जिंदाबाद ! भ्रष्टाचारी न्याय व्यवस्था जिंदाबाद !! भ्रष्टाचारी न्यायाधीश जिंदाबाद !!!"*
जय भीम !!!
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपुर दिनांक २७ मार्च २०२५
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