Friday, 21 March 2025

 🤝 *ब्रम्हा की सरस्वती - विद्या की देवी है या संभोग की देवी ?* (भारत वंशियों को शुद्र बनाना / स्त्री को भोगवस्तु - दासी बनाने का संदर्भ, क्या ब्राम्हण वर्ग का विदेशी होना है ?)

       *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म प्र 

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

 

            *मत्स पुराण* अध्याय ३ श्लोक ३२ - ३५ का अध्ययन करने पर, ब्रम्हा - सरस्वती इनकी *"संभोग गाथा"* दिखाई देती है. ब्राह्मण (वैदिक) धर्म अनुसार,  *"सृष्टी का निर्माता (?)"* ब्रम्हा पर संदर्भित श्लोक देखे - *"मध्या यत्वर्त्वनभवदभीके कामं कृण्वाने पिंपरी युवत्याम् | मनानग्रेतो जहर्तुविर्यन्ता सानौ निषिक्तं सुकृत्यस्य यौनौ: ||६६||"* (अर्थात - जिस समय पिता (ब्रम्हा) ने, अपनी युवती कन्या के साथ यथोच्छ कर्म किया, उस समय उनके संभोग कर्म से समिट ही थोडा विर्य गिरा. परस्पर अभिगमन करते हुये उन दोनो ने, वह विर्य यज्ञ के उंचे स्थान योनी में छोडा था.) इस अर्थ का वैज्ञानिक दृष्टिकोन से, विश्लेषण हम फिर कभी करेंगे. दुसरा विषय यह कि, *विष्णु + सरस्वती* इनके संभोग से *मनु* का जन्म होता है. जो *"मनुस्मृती"* इस ब्राह्मण ग्रंथ का रचयिता है. मनुस्मृती ग्रंथ में अध्याय ९ श्लोक ४५ - ५८ में, स्त्री वर्ग संदर्भ में लिखा है कि, *"पती यह पत्नी को छोड सकता है. गिरवी रख सकता है. बेच सकता है. परंतु स्त्री को  इस प्रकार के अधिकार नहीं है. स्त्री को संपत्ती रखने का अधिकार नहीं है. स्त्री की संपत्ती का मालिक उसका पति / पुत्र / पिता है‌"* इसी तरह ब्राह्मण ग्रंथ *"मनुस्मृती"* में ही (२-३-४) शुद्र (ओबीसी) कें संदर्भ में भी लिखा है कि, *"यदी शुद्र भी किसी वेद को पढता है / सुन ले तो, उसके कानों मे पिघला हुआ सिसा / लाख डाल देनी चाहिये."* वही ब्राह्मण ग्रंथ *"वाल्मिकी रामायण"* में, स्त्री संदर्भ का श्लोक १४ - १६ में लिखा है कि, *"अप्यहं जीवितं जह्या युष्पान् वा पुरुषर्थभा: | अपवाद भयाद भीत: किं पुनर्जनकात्मजाम् ||१४||"* (अर्थात - (राम कहता है) नरश्रैष्ठ बंधुंओ, मैं लोक निंदा के भय से, अपने प्राणों के लिये तुम सब को भी त्याग सकता हुं. फिर सिता का त्याग कौनसी बडी बात है ?) श्लोक क्र. १६ तथा *"राम की साली कौन थी ?"* आदि सभी विषयों पर चर्चा, हम फिर कभी करेंगे.

          ब्रम्हा की पांच पत्नीया थी. - *"सरस्वति / सावित्री / गायत्री / मेघा / श्रध्दा."*  ब्रम्हा की पहिली पत्नी उसकी खुद की बेटी थी. तिसरी पत्नी *"गायत्री"* इसके नाम पर *"गायत्री मंत्र"* भी है - *"ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य घीमहि धियो योन: प्रचोदयात् |"* इस श्लोक के अलग अलग तिन अर्थ दिखाई देते है. परंतु चवथा अर्थ *"धियो योन: प्रचोदयात् |"* - अपनी योनी  प्रचोदयात ? होता है या नहीं, इस पर संशोधन होना जरुरी है. कारण ब्राह्मण ग्रंथ ज्यादा तर स्त्री संभोग का बोध कराते है. चाहें फिर वह पुराण हो. *शाक्त परंपरा* ग्रंथ में ब्रम्हा - विष्णु का रिस्ता बताया है. *"महालक्ष्मी द्वारा विष्णु और सरस्वती की उत्पत्ती हुयी है. विष्णु - सरस्वती अपर भाई बहन है. सरस्वति का विवाह ब्रम्हा से हुआ. ब्रम्हा के पुत्री का विवाह विष्णु से हुआ."* ब्रम्हा की पुत्री तो, विष्णु की भांजी हुयी नां !  अर्थात *"विष्णु ने भांजी पर ही बलात्कार किया हुआ है."* "वायु संहिता" ग्रंथ का श्लोक (३१/३९) में, भारतीय लोगों को नरक जाने का संदर्भ भी है. *"शिल्पिन: कारवो वैद्या हेमकारा नृपध्वजा: | भृतका कुटसंयुक्ता: सर्वे ते नरका: स्मृता: ||"* (अर्थात -:शिल्पी, कारागिर, वैद्य, सुनार, राजा का ध्वज उठानेवाला नोकर और मक्कार, यह सब नरक में जाते है.) १६ वी शती का आदि हिंदी कवि *तुलसीदास* यह अपने *"तुलसी रामायण"* इस ग्रंथ में लिखता है कि, *"ढोल गवार शुद्र पशु नारी | सब ताडन के अधिकारी  ||"* रामायण / महाभारत / पुराण / मनुस्मृती आदि ग्रंथ में *"स्त्री - शुद्र"* के संदर्भ में, बहुत कुछ विवादित बाते लिखी गयी है. उस पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. प्रश्न अब यह उठता है कि, *"ब्राह्मण वर्ग यह स्त्री वर्ग / भारत वंशियों को शुद्र बताकर, हिनता व्यवहार क्यौं करता था ?"* गुलाम क्यौं बनाया था ?

           ब्राम्हण धर्मीय लोग यह *"विदेशी"* होने के बहुत संदर्भ है. ब्राह्मणी ग्रंथ *"मनुस्मृती"* में भी उल्लेख है. *बाल गंगाधर तिलक* लिखित ग्रंथ "भारत वर्ष का इतिहास" तथा "वैदिक आर्यों का इतिहास" में भी प्रमाण है. तिलक ने *"उत्तरी धृव"* (आर्केटिक प्रदेश) से आने की बात कही है. *मॅक्स मुलर* इन्होने *"मध्य एशिया"* से होने की बात कही है. *पंडित जवाहरलाल नेहरू* इन्होने उनकी पुस्तक *"डिकव्हरी ऑफ इंडिया"* में वह संदर्भ दिया है. *रमेशचंद्र दत्त* इनकी पुस्तक "प्राचीन भारत वर्ष की सभ्यता" में वह संदर्भ दिया है. *पंडित जगन्नाथ पांचोली* इनकी किताब "आर्यों का आदिम निवास" में भी लिखा है. *रायबहादुर चिंतामणी विनायक* इनकी पुस्तक "महाभारत मिमांसा" में भी संदर्भ है. *काका कालेलकर* इनकी पुस्तक "पिछडे का रिपोर्ट " में भी उल्लेख है. *राधाकृष्ण मुखर्जी* इनकी पुस्तक "हिंदु सभ्यता" में भी वह संदर्भ है. *धर्मानंद कोसंबी* इनकी पुस्तक "प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता" में भी जिक्र है. *राहुल सांस्कृत्यायन*  (केदारनाथ पांडे) इनकी पुस्तक "व्होल्गा टु गंगा" में भी संदर्भ है. *प्रताप जोशी* इनकी पुस्तक "ग्रीक ओरीजिन्स ऑफ कोकणस्थ चित्पावन"  इस में भी संदर्भ है. *स्वामी दयानंद सरस्वती* का "सत्य प्रकाश" तथा *ऋग्वेद* इस ग्रंथ में भी, *"ब्राह्मण विदेशी बताया गया है."* ऐसे बहुत सारे ग्रंथ, वह बाते बयाण करते है. कोई ब्राह्मण ग्रंथ यह *"सेंट्रल एशिया"* से तो / कोई ग्रंथ *"सायबेरिया "* से तो / कोई ग्रंथ *"मंगोलिया "* से तो / कोई ग्रंथ *"ट्रान्स कोकिया"* से तो / कोई ग्रंथ *"स्कैंडेने"* से तो / कोई ग्रंथ *"इराण"* देश से तो / *स्वामी दयानंद सरस्वती* इन्होने *"तिब्बत"* से बताया है. ऋगवेदिक आर्य यह *"गडरिये / चरवाहे / मलेशिये / स्टेपी चरवाह* व्यवसायी थे. भारत में वे *"खाना पकानेवाले आचारी"* के रूप में भी दिखाई दिये थे. आज भारत की *"सत्ता पर वे आसिन"* है. भारतीय मुल के लोगों को *"गुलाम"* बनायें हुये है. *"हिंदुत्व धर्मांधता"* का जहर भी, कुछ लोग फैलाते हुये दिखाई देते है. जब कि *"भारत की प्राचिन जनगणना"* में भी, वे हिंदु धर्मीय ना होकर, वे *"ब्राह्मण धर्मीय"* दिखाई देते है. साथ ही उपरोक्त *"ब्राह्मण ग्रंथ"* द्वारा, द्वेष / अशांति / असमानता फैलाते हुये, कुछ ब्राह्मण वर्ग / संघटन दिखाई देता है. *अंग्रेजी शासन"* काल में, *"ब्राह्मण न्यायाधीश "* बनने पर, पाबंदी लगायी गयी थी, इसे भी समझना जरुरी है. कभी *"हिंदु - मुस्लिम"* इस नाम पर / तो कभी *"औरंगजेब - अकबर"* इस नाम पर !!! हमारा *"भारत का संविधान"* यह *"स्वातंत्र्य / समता / बंधुता/ न्याय"* की बात करता है. अत: ब्राह्मण वर्ग का विदेशी होना तो, *"भारत द्वेष का सही कारण तो नहीं ?"* उन का लहु *"सच्चा भारतीय"* नहीं है. ब्राह्मण वर्ग जहां भी रहा है - फिर वह *"सत्ता व्यवस्था हो / न्याय व्यवस्था हो / और कोई भी व्यवस्था हो,"* वह असमानता का जहर भरता हुआ दिखाई देता है.

            *छत्रपती शिवाजी महाराज* इनसे गद्दारी करनेवाले *कृष्णा भास्कर कुलकर्णी* ब्राम्हण /  *मोरोपंत पिंगळे* पेशवा ब्राह्मण / *अनुजो दत्तो / राहु सोमनाथ* नामक ब्राह्मण नाम की चर्चा होती है. शिवाजी महाराज इनका *"राज्याभिषेक नकारनेवाले"* तथा राजा न माननेवालो में, *"महाराष्ट्री ब्राह्मण"* वर्ग ही था नां ! शिवाजी महाराज की संदेहास्पद मृत्यु पर भी, *ब्राह्मण* वर्ग का हाथ बताया जाता है. शिवाजी महाराज के विश्वासु *"महार - मराठा"* थे, ना कि कोई ब्राह्मण ! वही शिवाजी महाराज के ३ अंगरक्षक में से  *सिध्दी इब्राहिम* यह एक मुस्लिम था. ६०,००० से ज्यादा सैनिक मुस्लिम थे. शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु *संत तुकाराम महाराज* थे, ना की *समर्थ रामदास स्वामी* ब्राह्मण ! *छत्रपती शंभु राजे* (संभाजी) इनको बदनाम करनेवाले / औरंगजेब द्वारा हत्या करानेवालों का  संदर्भ समझना जरुरी है. *गुरु गोविंदसिंग* इनको औरंगजेब के पास पहुचानेवाला, काश्मीरी ब्राह्मण *गंगादत्त कोल* तथा *गुरु तेज बहादुर* इनका सिर कटवानेवाला, *चौतिदास* ब्राह्मण ही था ना. परंतु ब्राह्मण वर्ग ने, भारत देश का झुटा इतिहास ही रच डाला है. *मोहनदास गांधी* इनकी हत्या भी *"ब्राह्मण"* द्वारा की गयी. इस विषय पर सविस्तर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. *ब्राह्मण / वैदिक* लोग किस देश से, भारत आये ? और वे *कब भारत* आये ? इसका कोई प्रमाण इतिहास नहीं है. *"सिंधु घाटी सभ्यता"* का कालखंड इ. पु‌ ३३०० - १९०० रहा है. और *"ब्राम्हण इतिहास"* सिंधु घाटी में, इ. पु. २००० - १५०० को, विदेश से आने का बताते है. परंतु *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* इ. पु. तिसरी शती) दरबार का *मेगस्थनीज* इनके *"इंडिका"* इस ग्रंथ में या, सम्राट अशोक के *"शिलालेखों"* में, उस संदर्भ का कोई प्रमाण अंकित नहीं है. *"वर्णव्यवस्था "* का कोई प्रमाण भी दिखाई नहीं देता. केवल और केवल *"वंश व्यवस्था"* दिखाई देती है. जैसे - शाक्य वंश / कोलिय वंश / मौर्य वंश / हरयक वंश आदि. *"बम्हण"* यह शब्द *"ब्राह्मण वर्ग"* विषयक ना होकर, *"विद्वान / समन / श्रमण"* इस अर्थ से रहा हैं. सिंधु घाटी सभ्यता के *"डी.एन.ए."* (DNA) में भी, ब्राह्मण के अस्तित्व का कोई प्रमाण नहीं मिला. उस काल में *"बौध्द स्तुप / बौध्द चिन्ह स्वस्तिक* का संदर्भ दिखाई देता है. इसवी ९ वी शती के फारशी इतिहासकार, *अलबरुनी* की पुस्तक में भी, ब्राह्मण वर्ग का इतिहास नहीं दिखाई देता. *"बुध्द के महापरिनिर्वाण"* (इ.पु. ४८३ / नया शोध अनुसार इ. पु. ५४३) के बाद, *"चवथी बुद्ध सांगिती"* (इ.पु. ७२ मे) कश्मिर के *"कुंडलवन"* में, कुषाण शासक *सम्राट कनिष्क* के सरंक्षण में / *वसुमित्र* इनकी अध्यक्षता तथा *अश्वघोष* इनकी उपाध्यक्षता में हुयी थी. सदर सांगिती का परिणाम बौध्द धर्म में, *"हिनयान और महायान संप्रदाय"* उदय में हुआ था.

              *"सिंधु घाटी सभ्यता"* (इ.पु. ३३०० - १९००) की लिपी, अब तक *"पढी या समझी'"* नहीं गयी है. पहिला बुध्द अर्थात *ताम्हणकर बुध्द* का संदर्भ, उत्खनन मिले *"बौध्द स्तुप एवं तरणताल/ जमिन पर  चक्राकार स्तुप / स्वस्तिक चिन्ह / सिंह चिन्ह / ध्यानस्थ राजा मुद्रा"* आदि से होता है. सिंधु घाटी सभ्यता यह नगयीय सभ्यता है. *"वैदिक / ब्राह्मण सभ्यता यह ग्रामिण सभ्यता है."* और सिंधु घाटी सभ्यता उत्खनन में, *"ग्रामीण सभ्यता का कोई भी  प्रमाण नहीं"* मिला. ना ही DNA Report वह प्रमाण दे रहा है. अत:: प्राचीन ब्राह्मण सभ्यता ??? इ. पु. ६ वी शती *"२८ वे बुध्द काल /ब्राम्ही लिपी (धम्म लिपी) / पाली भाषा"* का बोध कराती है. और *"ब्राम्ही लिपी"* यह पढी और समझी भी गयी है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक (इ. पु. २६८ - २३२) के *"शिलालेख"* उसके प्रमाण है. *"चवथी बुद्ध सांगिती"* यह सम्राट कनिष्क काल में इसवी ७२ में, कश्मिर के कुण्डलवन में हुयी थी. वही सें *"महायान संप्रदाय "* का उदय हुआ. *"थेरगाव संप्रदाय"* की मुलं भाषा *"पाली भाषा"* ही थी. अत: महायान संप्रदाय ने *"पालि भाषा पर संस्कार कर, हिब्रु संस्कृत भाषा का जन्म दिया."* बल्कि "हिब्रू संस्कृत" (संस्कार करने के कारण संस्कृत) की भाषा लिपी यह *"ब्राम्ही लिपी"* (धम्म लिपी) ही थी. *"पाली भाषा में  - ऋ / क्ष / त्र / ज्ञ / ऐ / औ"* यह शब्द नहीं है. जो बाद काल में, *"संस्कृत भाषा"* में दिखाई देते है. अत: *"हिब्रू संस्कृत"* (इसवी पहिली शती) भाषा के जनक *"महायान बौध्द संप्रदाय"* है. उसके बाद इसवी ८ वी शती में *"अपभ्रंश भाषा"* का उदय हुआ. और *पालि भाषा की अंतिम अपभ्रंश* भाषा अवस्था यह *"आदि हिंदी"* (उगम इसवी १२ वी शति) है. *"आधुनिक हिंदी"* का उदय १९ वी शती में हुआ है. और आधुनिक हिंदी भाषा की लिपी *"देवनागरी लिपी "* है. इसवी ११०० में *"देवनागरी लिपी"* का प्रथम स्वरुप बना. वही इसवी १७९६ में *"देवनागरी लिपी का प्रारंभ"* शुरु हुआ. भारत में विद्यमान संस्कृत भाषा यह *"क्लासिकल संस्कृत"* भाषा है और उसकी लिपी *"देवनागरी"* है. *"हिब्रू संस्कृत"* भाषा की लिपी *"ब्राम्ही लिपी"*(धम्म लिपी) है. संस्कृत व्याकरण कर्ता *पाणीनी* यह चवथे नंबर पर आता है. वह क्रम भी देखे - *"ऐंद्र / चांद्र / शाकट / पाणिनी / कातन्त्र / शशीदेववृत्ती / दुर्गाविवृति शिष्य हिताव्रति."*  ह्याशिवाय भारतात पुढे -  *"खरोष्टी लिपी / चित्र लिपी / शंख लिपी / शाहमुखी लिपी / मोडी लिपी / गुप्त लिपी / कुटिल लिपी / शारदा लिपी / गुरुमुखी लिपी / देवनागरी लिपी / तेलगु लिपी / कन्नड लिपी / तामिळ लिपी / मल्याळम लिपी / कलिंग लिपी / ग्रंथ लिपी / मध्यवेशी लिपी / पश्चिमी लिपी "* ह्यांचा उदय झालेला होता.

                *महायान संप्रदाय* (इ. पु. पहिली शती) द्वारा ही इसवी ५ शती में, *"वज्रयान संप्रदाय"* का उदय भारत में हुआ. और तिब्बत में ७ - ८ वी शती में हुआ. बाद में वज्रयान द्वारा ८ वी शती मे,*"तंत्रयान संप्रदाय"* का उदय हुआ . इसवी ८५० में *शंकर* नामक व्यक्ती का जन्म होता है. उसे *"प्रच्छन्न बौध्द "* भी कहा जाता है. वज्रयान / तंत्रयान द्वारा ९ - १० शती में, *"शैव पंथ/  वैष्णव पंथ / शाक्त पंथ"* का उदय होता है. शंकर नाम का व्यक्ती स्वयं को *"आदि शंकराचार्य"* घोषित कर, चार पीठों का निर्माण करता है. *"रामेश्वरम् श्रृंगेरी पीठ, केरल (यजुर्वेद) / द्वारका शारदा पीठ, गुजरात (सामवेद) / बद्रिनाथ ज्योतिर्मठ पीठ, उत्तराखंड (अथर्ववेद) / पुरी गोवर्धन पीठ, ओरिसा (ऋग्वेद)"* यह चार पीठ की स्थापना होने के बाद, *"बौध्द महायान संप्रदाय विहारों"* पर कब्जा करते है. और यही से *"बौध्द धर्म पतन"* (इसवी ९ - १० शती से) की शुरुवात होती है. *ब्राह्मण / वैदिक लोग किस देश* से और *कब* से, भारत में स्थलांतरित हुये है, इसका *"कोई पुक्ता प्रमाण"* दिखाई नहीं देता. *"रामायण / महाभारत/ वेद / उपनिषद/ मनुस्मृती"* इन ब्राह्मणी ग्रंथों का उदय, *"इसवी दसवी शती"* के बाद ही, लिखे गये है. क्यौं कि यह सभी ग्रंथ तो, *"कागज"* पर ही लिखे है, ना कि *"शिलालेख / ताम्रपट/ ताडपत्र"* पर ! और *"कागज का शोध"* यह चायना में, *"इसवी दसवी शती"* में लगा है. जब *"ब्राह्मण / वैदिक लोग"* भारत में स्थलांतरित हुये थे, शायद तब वे *"अकेले आयें"* होंगे. जैसे *अंग्रेज* भारत में व्यापार करने अकेले आये थे. और ब्राम्हण वर्ग ने *"भारतीय मुल स्त्री"* सें विवाह / संबंध स्थापित किये होंगे. और *"भारतीय मुल लोगों"* द्वारा, ब्राह्मण वर्ग को खास अहमियत नहीं  दी होंगी. अत: वह *"बदला"* स्वरूप, ब्राह्मण वर्ग ने *"भारतीय मुल लोग / स्त्री वर्ग"* को, अछुत / दास - दासी बनाये जाने को नकारा नहीं जा सकता. नहीं तो *"भारतीय मुल स्त्री या पुरुष"* को, ब्राह्मण वर्ग द्वारा उनके धर्म ग्रंथ में - *"हिन / निच शब्दों"* का प्रयोग करने का, दुसरा *"औचित्य क्या ?"* यह अहं प्रश्न है. यही कारण है कि *"वाल्मिकी रामायण"* (अयोध्या कांड) का श्लोक - *"यथा हि चोर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विध्दी | तस्माध्दि य: शक्यतम् प्रजानां  से नास्तिके नाभिमुखे बुध: स्यात् ||३४||"* (अर्थात - जैसे चोर दंडनिय होता है, उसी प्रकार (वेद विरोधी) बुद्ध (बुद्ध मतावलम्बी) भी दंडनीय है. तथागत (नास्तिक विशेष) और नास्तिक (चार्वाक) को भी, यहां इसी कोटी में समझना चाहिए. इसीलिए प्रजा पर अनुग्रह करने के लिये, राजा द्वारा जिस नास्तिक को दण्ड दिलाया जा सके,  उसे तो चोर के समान ही दण्ड दिलाया जाए. परंतु जो वंश के बाहर हो, उस नास्तिक के प्रति विद्वान ब्राह्मण कभी उन्मुख ना हो - उससे वार्तालाप ना करे.). इस प्रकार के ब्राह्मण श्लोक स्त्री प्रति भी दासता बयाण करता है. बुध्द धर्म में स्त्री वर्ग का सन्मान / *"स्त्री वर्ग का बौविसत्व - अर्हत"* हो जाना, फिर ब्राह्मण धर्म ने स्त्री वर्ग को *"देवी"* की संकल्पना शुरु किया. अत: सरस्वती इसका संदर्भ भी *"संभोग की देवी"* (?) स्वरुप में दिखाई देता है. *"विद्या की देवी"* स्वरूप में, उसका कोई औचित्य नहीं दिखाई देता. गुवाहाटी असम का *"कामाख्या मंदिर"* फिर क्या कहे ? अत: *"दास - दासी - गुलामी की मानसिक दासता"* को, अब हमें समझना होगा ! *"हिंदु - मुस्लिम विवादों"* से हमें युं बचना होगा. अगर *"औरंगजेब "* इन्होने अन्याय किया है तो, उनसे भी ज्यादा अन्याय / देशद्रोह तो, *ब्राह्मण वर्ग* ने किया है. फिर ब्राह्मण से भी बदला लोंगे ? उन्हे भी विदेश भगाओंगे ? *"क्या पुराने इतिहास को खोदना,आज ठिक होगा ?"* भारत में अशांती / हिंसा भडकाना / वैरता को बढाना ठिक है ? हमे सब मिल जुलकर ही रहना है.  अभी तो *"भारत का संविधान"* ही हमारा एक मात्र आदर्श है. जय भीम !!!


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर दिनांक २१ मार्च २०२५

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