Sunday, 23 March 2025

 🎓 *मा. सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश रंजन गोगोई बलात्कार प्रकरण से लेकरं स्तन स्पर्श करना यह अपराध नहीं न्याय करनेवाले राम नारायण मिश्रा तथा ५० करोड (?) नगद राशीवाले न्यायाधीश यशवंत वर्मा तक ...!*  (न्या. कर्णन इन्होने २० भ्रष्ट न्यायाधीश होने की शिकायत प्रधानमंत्री को करने पर उन्हे छ: माह जेल की सजा सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाई थी.)

       *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल 

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


          *ब्रम्हा* द्वारा अपनी कन्या *सरस्वति* से संभोग क्रिया कर, उसे अपनी पत्नी बनाना / उससे उत्पन्न पुत्र - *मनु* ऋषी द्वारा *"मनुस्मृती"* इस *"ब्राह्मण न्याय संहिता"* का निर्माण कर (८/२१-२२) में लिखा गया है कि, *"ब्राह्मण चाहें अयोग्य भी हो, उसे न्यायाधीश बनाना जाए. वरना राज्य मुसिबत में फंस जाएगा."*  इस ब्राह्मण न्याय संहिता का पालन करते हुये, शायद ही *"कोलोजीयम सिस्टम"* का निर्माण किया गया हो ! वही *अंग्रेजो का भारत पर अधिपत्य* होना / भारत का गुलाम हो जाना / सन १९१९ में *"ब्राह्मण न्यायाधीश बनने पर पाबंदी आना"* आदि घटना भारत का इतिहास रही है. *"भारत का आजादी इतिहास"* भी बडा रोमांचक है. *"गोरे अंग्रेजो का देश छोडकर चले जाना, काले अंग्रेजो के हाथ सत्ता दे जाना."* कम से कम गोरे अंग्रेजो ने कानुनी प्रशासन में, शिस्त रखी थी / न्याय था / भ्रष्टाचार नहीं था. इस विषय पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. आझाद भारत में *"विधायिका / कार्य पालिका / न्याय पालिका"* का निर्माण, *"भारतीय संविधान"* द्वारा २६ जनवरी १९५० को लागु किया गया. और भारत *"प्रजातंत्र देश"* बन गया. सन २०२५ में भारत ने *"पुंजीवाद तंत्र"* (Capitalism) में प्रवेश कर, *"प्रजातंत्र"* (Democracy) को बाय बाय किया है. प्रजातंत्र भारत में सरन्यायाधीश *रंजन गोगोई* इन पर *"बलात्कार"* का आरोप भी हुआ. और बगैर न्यायालयीन सुनबाई से, रंजन गोगोई जी बरी भी हो गये. *"संसद"* भी पहुंच गये. कुछ *विवादित माजी सरन्यायाधीश* (?) भारत सरकार के संविधानिक निकायों में, *"अध्यक्ष"* पद पर आसिन भी हो गये. तो कोई माजी सरन्यायाधीश *धनंजय चंद्रचूड"* समान लोग, *"पुरस्कार"* से सन्मानित भी हो गये. अभी अभी दिल्ली उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश *यशवंत वर्मा* इनके सरकारी बंगले से, *"रु. ५० करोड + नगद राशी"* बराबद होने की मिडिया चर्चा भी रही. अब वह राशी घटकर *"१५ करोड"* हो गयी. शायद नकद राशी को पैर होने से, वह कही चले गयी होगी. उसी बिच अलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश *राम नारायण मिश्रा* इनका एक विवादित निर्णय - *"बच्ची के स्तन को दबाना / पायजामा का नाडा खोलना / गुप्त पार्ट को छुना / पुल के निचे ले जाना"* यह सभी कर्म *"बलात्कार करना / बलात्कार प्रयास / अपराध श्रेणी"* मे मानने सें इंकार किया और अपराधी को मुक्त किया गया. यह अहं विषय भी, मिडिया में बहुत जोरों पर चर्चा में है. अर्थात *"मनु ब्राह्मण कानुनी संहिता"* की जय हो ! जय हो !! जय हो !!! क्यौं कि वह मनु की प्रतिमा *"राजस्थान उच्च न्यायालय"* में विराजीत है.  और *"भारत सरकार / सर्वोच्च न्यायालय"* खामोश है.

          बुध्द का एक वचन है - *"इदं सति इदं होति, इदं असति इदं न होति|"* (अर्थात - कारण हो तो कार्य होता है. अगर कारण ना हो तो, कार्य नही होता.) भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* इनका अति हो जाना, एलन मस्क के *"ग्लोक एप"* (Glok) का आ जाना / समुचे भारत में हंगामा हो जाना, यही तो बुध्द का *"प्रत्यित्यसमुत्पाद सिध्दांत"* हमें बतलाता है. दिल्ली उच्च न्यायालय के *न्या. यशवंत वर्मा* का बाहर जाना / सरकारी बंगले में १४ मार्च को आग लगना / और *"रु ५० करोड (?) की नगद राशी"* बराबद हो जाना / मिडिया में देरी से ही सही, *२० मार्च २०२५* को चर्चा का विषय हो जाना भी, उपरोक्त बुद्ध सिध्दांत की ही यादें दिलाता है. भले ही यह घटना छुपाने का प्रयास किया गया हो. अलाहाबाद उच्च न्यायालय के /*न्या. राम नारायण मिश्रा* इन्होने भी तो, *"मनु ब्राह्मण संहिता"* (संविधान  ?) आधार पर (?) अपने निर्णय में कहां है कि, *"बच्ची के स्तनों को दबाना / गुप्त अंगों को स्पर्श करना / पायजामा का नाडा खोलना / पुल के निचे ले जाना"* यह कृत्य *"बलात्कार करना / बलात्कार प्रयास / अपराध श्रेणी"* मानने से इंकार किया है‌. और अपराधी को बरी कर दिया हैं.अत: यह कृत्य *न्या. राम नारायण मिश्रा* इनकी पत्नी / पुत्री से किया जाए तो ? कुछ भी हो - *"सत्यमेव जयते"* - सत्य की ही विजय होती है. भले ही *"सर्वोच्च न्यायालय"* के विद्वान (?) न्यायाधीशों द्वारा, यह *"घोष वाक्य"* उनके मोनो से हटाकर, *ब्राह्मणी* धर्म घोष वाक्य - *"यतो धर्मस्ततो जय :"* अर्थात - विजय हमेशा धर्म के साथ होता है, यह मोनों में घुसाड दिया हो ! उच्च वर्गीय न्यायाधीशों की *"वैचारिक औकात"* यही जातीयवादी है. *यहां विजय तो सत्य की हुयी है, ना कि धर्म की !!!* वैसे ही और न्यायाधीश *शेखर यादव* इन्होने भी तो, *"अल्पसंख्याक वर्ग समुदाय"* के बारे में, दिया गया विवादीत बयाण, बहुत चर्चा का विषय है. कलकत्ता उच्च न्यायालय एक न्यायाधीश ने तो, *"लोकसभा चुनाव"* २०२४ में, न्यायाधीश पद का इस्तिफा देकरं, *भाजपा* दल से चुनाव जीता है. सवाल यह है कि, इन तमाम *"न्यायाधीशों द्वारा दियें तमाम निर्णयों की समिक्षा"* करनी चाहिए. सभी विवादीत न्यायाधीशों को, त्वरीत *"सेवा से सेवामुक्त"*(Terminated) करना चाहिए. उनकी *"पेंशन"* को भी बंद की जाए.  *"सभी न्यायाधीश वर्ग तथा उनका परिवार / उनकी संपत्ती विवरण"* न्यायिक वेबसाईट पर प्रकाशीत की जाएं. तथा इस *"कोलोजीयम सिस्टम "* को बाय बाय कर / *"न्यायिक नियुक्ती आयोग"* का गठण कर /लोक सेवा आयोग स्तर सदृश्य *"न्यायाधीश वर्ग"* की नियुक्ती की जाए. न्यायाधीशों के निर्णयों की समिक्षा हेतु *"न्याय समिक्षा आयोग"* का गठण कर, सभी निर्णयो की समिक्षा की जाए, ता कि अयोग्य न्यायाधीशों को, *"सेवा मुक्त"* करनें में सुविधा हो. यह भविष्य में *"न्यायव्यवस्था छबी"* को सुधारणा उपाय है.

           मुंबई उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ में, *डॉ. मिलिन्द पं. जीवने* विरुद्ध *संविधान फाऊंडेशन नागपुर* मार्फत इ. झेड. खोब्रागडे  (Retd. IAS) एवं अन्य, याचिका क्र. ३९४०/ २०१९ अन्वये मैने  *"भारत संविधान साहित्य नहीं है !"* अर्थात भारतीय संविधान यह *"कानुनी बुक"* (Legal Book) नहीं है. बल्की वह तो *"कानुनी दस्तावेज "*'(Legal Documents) है, यह केस दायर करते हुये, *इ. झेड. खोब्रागडे* द्वारा दीक्षाभूमी नागपुर मे आयोजित *"संविधान साहित्य संमेलन"* का विरोध किया था. सदर मेरी केस पर *न्या. रवी देशपांडे / न्या. विनय जोशी* इनकी खंडपीठ के सामने ही, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकिल *एड. चेतन बैरवा / एड. बी. बी. रायपुरे* मेरी पैरवी कर रहे थे. परंतु विद्वान (?) न्यायाधीश द्वय द्वारा, मेरी केस यह कहते हुये खारीज करते है कि, *"The ground of challange is that the literature, can be obsence also and therefore, there should be prevention in holding such program is purely hypothetical and imaginary. Apart from this, we don't find any fundamental right in favour of the petitioner or any fundamental duty cast which can be enforced by way of filling writ petition under article 226 of the constitution of India. The write petition is therefore dismissed. No cost."* भारतीय संविधान की रक्षा करना, क्या हम सभी भारतीय लोगों का *"नैतिक कर्तव्य"* नहीं है ?अगर तुम *"संविधान को साहित्य"* मानते हो तो, और तुम्हे साहित्य विचार मान्य ना हो तो, साहित्य यह *"जलाया"* भी सकता है. जैसे *बाबासाहेब डॉ आंबेडकर* इन्होने *"मनुस्मृती दहन"* किया था. इसका ही गैरफायदा नयी दिल्ली के *"जात्यांध शक्ती"* द्वारा उठाया गया. और नयी दिल्ली के जंतर मंतर पर, *"भारतीय संविधान"* को जलाया भी गया था. अत: *न्या. रवी देशपांडे / न्या. विनय जोशी* समान ना-लायक (No merit qualified)  न्यायाधीश हो तो, *"भारत का संविधान"* को खतरा है. भारत संविधान की *"कस्टोडियन"* कहे या *"वॉच डॉग"* यह तो, सर्वोच्च न्यायालय है. सत्ता नेता द्वारा *"संविधान का उल्लंघन"* होने पर भी, सर्वोच्च न्यायालय खामोश है. अत: *"पुंजीवाद"* (Capitalism) ने *"प्रजातंत्र"* (Democracy)  पर शिकंजा कसा हुआ दिखाई देता है. उच्च न्यायालय भी अनुच्छेद २२६ - २२७ का ही, *"गैरफायदा"* लेते हुये दिखाई भी देती है. मा सर्वोच्च न्यायालय के *"पांच न्यायाधीशों"* का ही एक जजमेंट हमें बताता है कि, *"It has been held that, in exercise of its extra ordinary power of superintendence and or judicial review under article 226 & 227 of the constitution of India, the high court does not re assess or re analyzes the evidence and materials on record. The writ jurisdiction of the high court cannot be converted into an alternative appellant forum just because there is no other provision of appeal in the eye of law."* क्या उच्च न्यायालय निर्णय देते समय, इस का पालन करती है ? यह भी तो प्रश्न है.

            ‌ *मद्रास उच्च न्यायालय* के न्यायाधीश -  *सी. एस. कर्णन* इन्होने, न्याय व्यवस्था में *"२० न्यायाधीश भ्रष्टाचार में लिप्त होने की लेखी शिकायत"* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनको वर्ष २०१७ में की थी. न्यायाधीश *कर्णन* जी एक इमानदार तथा *"अनुसुचित जाति"* वर्ग से जुडे है. सदर शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय को वर्ग की गयी. फिर सर्वोच्च न्यायालय तथा न्या. कर्णन जी इनके बिच बडा *"संघर्ष युध्द"* शुरु हुआ. न्यायाधीश कर्णन इनकी बदली *"कलकत्ता उच्च न्यायालय"* भी की गयी. कर्णन जी को *"शो कॉज नोटिस"* आदि आदि मिलते गये. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय विरुद्ध जंग छेड दी. और सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *जे. एस. केहर* समवेत अन्य सात न्यायाधीश - *दिपक मिश्रा / जे. चेलमेश्वर / रंजन गोगोई / मदान / व्ही लोकुर / पिनाकी चंद्रा घोष / कुरियन जोसेफ* इनके विरोध में, *"जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है. इस लिये अनुसुचित जाती / जमाती कानुन की तहत दोषी मानकर, सजा सुनाई जाती है. सभी जजों को सजा के साथ साथ एक लाख रुपये जुर्माना भी देने का आदेश दिया जाता है,"* यह आदेश पारीत किया. इस आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगायी गयी. तथा सर्वोच्च न्यायालय की *सात जजो"* की खंडपीठ ने, *न्या. सी. एस. कर्णन* इनको सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के तहत, *"छ: माह की सजा"* सुनाई थी. और न्यायाधीश *कर्णन* जी ने सेवानिवृत्त होने के बाद, वह *"सजा काटी"* भी है. सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त *"आठ न्यायाधीश"* का भी रिकार्ड अब देखना बहुत जरुरी हुआ है. तथा दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश *यशवंत वर्मा* इन्होने तो, *न्या कर्णन* इनकी शिकायत का *"सही प्रमाण सिध्द"* कर दिया. परंतु इमानदार *"न्या. कर्णन को - "इमानदारी पुरस्कार"* क्या मिला ? यह प्रश्न है. सर्वोच्च न्यायालय हो या भारत सरकार, क्या *यशवंत वर्मा* को बचायेंगी या नोकरी से उन्हे *"सेवामुक्त"* करेगी ? क्या उन का *पेंशन* भी रोक देगी ? क्या उन्हे भी *जेल यात्रा* करायेगी ? क्या उन पर, *"इ. डी. / आय. टी. / सी.बी.आय."* धारा लगायेंगी ? दुसरा विषय यह कि, *"क्या न्यायाधीश वर्ग के लिये "Code of Conduct"* लागु होगा ? क्या न्यायाधीश वर्ग की नियुक्ती *"न्यायिक नियुक्ती आयोग"* सदृश्य संविधानिक व्यवस्था द्वारा निर्धारीत होगी ? क्या न्यायाधीशों के निर्णयों की *"समिक्षा आयोग"* मार्फत समिक्षा की जाएगी ? आदि आदि, बहुत सारे प्रश्न है. यह सारे प्रश्न *"न्याय व्यवस्था की मलिनता"* को दुर करने में, कारगिल सिध्द होंगे. यह भी कहा जा सकता है.


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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

       नागपुर दिनांक २३ मार्च २०२५

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