Sunday 15 October 2023

 🇮🇳 *भारत आझादी से लेकर भारतीय संविधान तक ?* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी के लहु के वारीस बनाम भावना वारीसों के बीच संघर्ष एवं दायित्व ...!!!

    *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी.‌ सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


       भारत आझादी का विषय जब कभी भी आता है, तब हमे भारत के प्राचिन *तिन कालखंड* में जाना होगा. एक जो कालखंड है, वो *चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य* इनके कार्यकाल का *"अखंड - विशाल - विकास भारत."* वह प्राचिन कालखंड *"भारत का स्वर्णकाल"* भी हम कह सकते है.‌ भारत में विश्व का सबसे बडा व्यापार केंद्र था. वह शिक्षा का भी केंद्र था. समस्त विश्वभर के कुछ लोग, भारत में शिक्षा लेने आया करते थे.‌ दुसरा कालखंड है, मौर्य वंश‌ का आखरी *सम्राट बृहदथ* की हत्या, बामनी सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने करने के बाद, *"खंड खंडगत गुलाम भारत."* जैसे की - *"अफगानिस्तान (१८७६) / नेपाल (१९०४) / भुतान (१९०६) / तिब्बत (१९०७) / श्रीलंका (१९३५) / म्यानमार (१९३७)/ पाकिस्तान (१९४७)/ बांगला देश (१९४७)"* यह सभी देश अखंड भारत से अलग हो गये. समस्त अखंड भारत यह बुध्द विचारशील राष्ट्र था. तिसरा कालखंड है, *"आझाद भारत."* जो राजसत्ता नीति के कारण, अब *"पुंजीवादी व्यवस्था"* के गुलामी की ओर बढ रहा है. पहले ब्रिटिश‌ गुलामी थी, अब पुंजीवादी गुलामी...!!!

       *सन १७५७ से १९४७ इस २०० साल के ब्रिटिश आदी गुलामी कालखंड* मे, सन १८५७ का पहिला उठाव था, वो *"पहिली आझादी की लढाई थी या वो राजगद्दी बचाव सत्ता संघर्ष था,"* यह संशोधन का बडा विषय है. झाशी की (ब्राम्हण) राणी - *लक्ष्मीबाई"* इन्होने ब्रिटिशों से खुली जंग की है या नही ? इस पर भी संशोधन होना चाहिये. क्यौं कि, राणी लक्ष्मीबाई के भेष में, मागास समुदाय की *झलकारी* मर्दानी इन्होने ही झाशी की खुली जंग लढी थी. राणी लक्ष्मीबाई ने झाशी से पलायन कर, ग्वालियर नरेश *सिंदिया* से युध्द के लिए मदत मांगी थी. परंतु सिंधिया संस्थान ने मदत ना देकर, राणी लक्ष्मीबाई के ग्वालियर आने की सुचना, अंग्रेजों को देते हुये, गद्दारी की थी. वही राणी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में ही, *खुद को जलाकर आत्महत्या* की थी.‌ मेरे भारत भ्रमण में, मैने सभी जगह भेंट दी है. वही भारत के संविधान पर, *"संविधान सभा"* (Constitution Assembly - 26th November 1949) में चर्चा करते समय, उन सभी देश के गद्दार समुदायों का जिक्र, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहेब* ने किया हुआ है.‌

     सन १८५७ का क्रांती उठाव के बाद, सन १९०० से लेकर १९४७ कालखंड में, *बाल गंगाधर तिलक (१९०० - १९०८) / मोहनदास करमचंद गांधी (१९१९ - १९४८) /  सुभाषचन्द्र बोस (१९२१ - १९४५) तथा शहिद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आझाद* इन क्रांतीकारी नेताओं के कार्योपर, हमे अवलोकन करना होगा. केवल *मोहनदास करमचंद गांधी* इनको ही, भारत आझादी का एक ही सच्चा नायक बनाना, यह नाइंसाफी होगी. गांधी को *"शांती का पुजारी"* कहना भी, *"बुध्द - महावीर - येशु"* कें शांती पैगाम को, नज़र अंदाज करना होगा. *मोहनदास गांधी* इनका वैचारीक / कृतिशील संघर्ष केवल *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* इनसे ही नही था, बल्की *सुभाषचन्द्र बोस तथा अन्य क्रांतीकारी नेताओं* के साथ भी था. *मोहम्मद अली जिना* से भी गांधी के मतभेद रहे. कांग्रेस मे भी गांधी के साथ कुछ नेताओं का टकराव होता रहा. फिर गांधी *"शांती के पुजारी"* कैसे हुये ? यह प्रश्न है. *तिलक काल* में, भारत आझादी का आंदोलन, जन - जन तक कभी पहुचा ही नही था. सिमित ब्राम्हणी वर्ग तक वह बना रहा. *मोहनदास गांधी काल* में, वह आंदोलन जन - जन तक पहुंचा. वही गांधी से मतभेद होने पर, *सुभाषचन्द्र बोस* इन्होने कांग्रेस के अध्यक्ष पद का इस्तिफा देकर (१८ जनवरी १९३८ - २९ अप्रेल १९३९), *"आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक दल* (२२ जुन १९३९ - १६ जनवरी १९४१) / *आझाद हिंद सेना* (४ जुलै १९४३ - १८ अगस्त १९४५)" के माध्यम से आंदोलन छेडना, तथा क्रांतीकारी नेताओं की *"रक्त क्रांती आंदोलन"* को, हम कैसे पुरे नज़र अंदाज कर सकते हैं ?

     अब हम *"द्वितीय महायुध्द"* (१ सितंबर १९३९ - २ सितंबर १९४५) की ओर बढते है. *अगर द्वितीय महायुध्द नही हुआ होता तो, क्या भारत की आझादी बहुत ही दुर होती ?* यह भी संशोधन का एक विषय हैं. गांधी कालखंड में, शोषित - पिडित - वंचित लोगों के मसिहा के रुप में, *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* अच्छे स्थापित हो चुके थे. *प्रथम राऊंड टेबल कांफरंस* (गोलमेज परिषद - १२ नवंबर १९३० से १९ जानेवारी १९३१) / *द्वितिय राऊंड टेबल कांफरंस* (७ सितंबर १९३१ से १ दिसंबर १९३१) में, आंबेडकर जी ने, सहभाग लेकर समान अधिकार की आवाज उठाई थी. *"गांधी - डॉ. आंबेडकर संघर्ष"* यह द्वितिय राऊंड टेबल कांफरंस की ही उपज है...! *पुना पैक्ट भी !!* (येरवढा सेंट्रल जेल मे, २४ सितंबर १९३२ को) और मागास वर्ग आरक्षण भी !!! *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* द्वितिय महायुध्द कालखंड में ही, *ब्रिटिश व्हाईसरॉय* मंत्रीमंडल में *"श्रम मंत्री"* (जुलै १९४२ - १९४६) बने थे. यही नहीं, द्वितिय महायुध्द (१९३९ - १९४५) में *ब्रिटिश और मित्र देशों का समर्थन* किया था. तब कांग्रेसी नेताओं नें, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को, गद्दार - देशद्रोही भी कहा था. तब बाबासाहेब आंबेडकर ने इसके समर्थन की महत्वपुर्ण वजह भी बताई.

     विश्व में बडे क्रुर तानाशाह - इटली का *बेनितो मुसोलिनी* (३१ अक्तूबर १९२२ - २८ अप्रेल १९४५) / जर्मनी का *एडोल्फ हिटलर* (३० जनवरी १९३२ - ३० अप्रेल १९४५) / जापान का राजा *हिरोहितो* उर्फ *शोओवा तेन्नोओ* (२९ अप्रेल १९०१ - ७ जनवरी १९८९) इनका प्रभाव बढ गया था. जापान ने १९३१ में, *चायना के मांचुरीया* पर हमला कर, अधिपत्य जमा लिया था. सन १९१० में *कोरीया* पर, अधिपत्य कर लिया था. सन १९३९ में हिटलर ने पोलंड पर आक्रमण कर, अपना अधिपत्य जमा लिया था. वे द्वितिय महायुध्द में  *"धुरी देश"* थे. वही मित्र देशों में, अमेरिका के *फैंकलिन डेलिनो रूझवेल्ट* / सोव्हियत संघ (रशिया) के *जोसेफ स्टॅलिन* / युनायटेड किंगडम (ब्रिटिश) के *विंस्टन चर्चिल* / चायना के *चियांग काई शेक* मिलकर, *"मित्र देश"* के रुप में खडे थे. वैसे मित्र देशों का इतिहास भी, कोई अच्छा नही था. *भारत, तिब्बत, तायवान, कोरीया* समान देश भी उनके शिकार देश थे. परंतु मित्र देशों की तुलना मे, *धुरी देशों का इतिहास भयावह* था. इधर गांधी - कांग्रेस विरोध में, *सुभाषचन्द्र बोस* ने, जापान से मित्रता की थी.‌ *सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु* भी, १८ अगस्त १९४५ को द्वितीय महायुध्द काल में, विमान दुर्घटना में जापान के *फोर्मोसा* (आज का तायवान शहर) में हो जाना, *क्या कोई बडे षडयंत्र का हिस्सा था ? क्या जापान, कोरीया के समान भारत पर अधिपत्य करना चाहता था ? या हिटलर की भी, भारत पर बुरी नज़र थी ?* ऐसे बहुत सारे प्रश्न खडे होते है.

      डॉ. आंबेडकर साहेब की यह दूरदृष्टी थी कि, *"मुसोलिनी, हिटलर, हिरोहितो इनका कोई भी परिस्थिति में जीत ना हो."*  इटली के तानाशाह *मुसोलिनी* को, सैनिकों ने उसकी प्रेमिका *क्लारा पेटीचा* समवेत गोली से हत्या कर, खुले फांसी पर लटकाया (२८ अप्रेल १९४५). और यह बर्बर खबर सुनकर जर्मनी के तानाशाह *एडोल्फ हिटलर* ने भी, अपनी प्रेमिका *एवा ब्राऊन* के साथ, आत्महत्या करने का निर्णय लिया. एवा ब्राऊन ने सायनाईड खाकर *बंकर* मे (जमिन के ५० फीट निचे) आत्महत्या की. और हिटलर ने भी खुद को गोली मारकर (३० अप्रेल १९४५) बंकर में ही आत्महत्या की. वही अमेरिका ने जापान के *"हिरोशिमा - नागासाकी"* दो शहर पर अणुबाम्ब (६ अगस्त १९४५) गिरा दिया. द्वितीय महायुध्द में *मित्र देशों* की बडी जीत हुयी. युध्द बंद हो गया. भारत के प्रधानमंत्री *नरेन्द्र मोदी* के लिए, या किसी भी तानाशाह के लिए, यह एक बडी सिख है. डॉ. आंबेडकर साहेब भी, भारत की आजादी चाहते थे. परंतु गांधी - कांग्रेस दल की बडी ही अदुरदर्शिता *"द्वितीय महायुध्द"* में दिखाई देती है. और कांग्रेस ने ८ अगस्त १९४२ को, *"करो या मरो आंदोलन"* छेड दिया था. जब कि, डॉ. आंबेडकर का यह विचार गांधी और कांग्रेस को समझने आया, तब उन्होंने *द्वितीय महायुध्द में, ब्रिटिश - मित्र देशों का साथ* दिया. इसे कांग्रेस की अज्ञानता कहे या अदृष्टी ??? यह प्रश्न है. *द्वितीय महायुध्द २ सितंबर १९४५ को खत्म हुआ.* इधर गुलाम भारत (?) में, *"हिंदु - मुस्लिम / हिंदु - शोषित वर्ग - धर्म संघर्ष - वर्ग संघर्ष"* बहुत ही उफान पर था. यहां अहं प्रश्न है कि, *"गांधी - कांग्रेस ने, सन १९४२ से लेकर १९४७ तक, कितने आंदोलन किये ?"* फिर मोहनदास गांधी - कांग्रेस, अकेले आजादी के नायक कैसे ? यह प्रश्न है. द्वितीय महायुध्द में पुरे विश्व की - ब्रिटन की भी, *"आर्थिक हालात बहुत खस्ता"* हो चुकी थी. *परंतु सत्ता दे तो, वो किसे ???* गुलाम भारत में विरोध था. यही कारण है कि, *"भारत को आझादी २ - ३ साल देरी से मिली."* इसके लिए असली दोषी कौन ??? मोहनदास गांधी - कांग्रेस - या ब्राम्हणी व्यवस्था...!!!

      अब हम गुलाम भारत के *"भारतीय संविधान सभा"* (India Constitution Assembly) स्थापना की ओर (६ सितंबर १९४६) बढते है. डा बाबासाहेब आंबेडकर की राजकिय पार्टी - SCF *"शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन"* को, *"संविधान सभा"* में भारी पराजय का सामना करना पडा. *संविधान सभा की कुल सींटे थी ३८९.* कांग्रेस - २०८ सींटे / AIML - ७३ सींटे / अन्य - १५ सींटे / रियासती - ९३ सींटे.‌ आखिर पश्चिम बंगाल के *जोगेंद्रनाथ मंडल* के माध्यम से, *"जेस्सोर, खुलना मतदारसंघ"* से, डॉ. आंबेडकर संविधान सभा (१९४६ - १९४७) पर चुने गये.‌ कांग्रेस ने तो, डा. बाबासाहेब आंबेडकर के, संविधान सभा पर जाने के सभी रास्ते बंद किये थे.‌ उस समय ४८% मुस्लिमों ने बाबासाहेब के पक्ष में वोट दिये थे. और *भारत - पाकिस्तान विभाजन* के समय ५१ - ४९ सुत्र (हिंदु बहुल  - मुस्लिम बहुल क्षेत्र) तय किया गया था. बाबासाहेब आंबेडकर का बंगाल का मतदारसंघ *"हिंदु बहुल मतदारसंघ"* होने पर भी, वह क्षेत्र पाकिस्तान को देकर, डॉ. बाबासाहेब को चुनाकर देने का, बडा दंड कांग्रेस ने उनको दिया गया. परंतु ब्रिटिश सरकार के भारी दबाव के कारण ही, कांग्रेस को *मुंबई प्रांत* से (१९४७ - १९५०) मजबुरन डा आंबेडकर को *"संविधान सभा"* पर भेजना पडा.‌ और कांग्रेस दल के इस गंदी राजनीति के कारण, उसकी बडी नाचक्की भी हो चुकी थी. इस संदर्भ की व्यक्तिगत चर्चा जोगेंद्रनाथ मंडल के सुपुत्र *जगदीश मंडल* के साथ, *मैने स्वयं* जब जगदीश जी, नागपुर *मेरे ऑफिस* आये थे, तब हमने की थी.

       डॉ. आंबेडकर साहाब तो, *"भारतीय संविधान सभा"* के निर्वाचित सदस्य ९ दिसंबर १९४६ से २४ जानेवारी १९५० तक रहे.‌ इसमें गांधी और कांग्रेस की कुछ भी मेहरबानी नही रही, इसका संदर्भ उपरी पैरा में मैने दिया भी है. *जवाहरलाल नेहरु* ने *"भारत का संविधान"* लिखाने / बनाने की जिम्मेवारी, किसी विदेशी संविधानविद को ही देना चाहते थे. और उस संदर्भ में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने, काम भी शुरू किया था. इस संदर्भ में कहा जाता है कि, *"आयरलैंड"* का संविधान निर्माता *इमोन डी वलेरा* इन्होने, *"भारत का संविधान"* बनाने के लिए, *डा. आबेडकर* इनकी शिफारस ब्रिटिश व्हाईसरॉय *लार्ड माऊंटबॅटन* तथा भारत के प्रधानमन्त्री *जवाहरलाल नेहरु* इनको की थी. तथा *लेडी माऊंटबॅटन* इनके पत्र मे भी, डा आंबेडकर के बुध्दीमत्ता का परिचय मिलता है. यही नहीं, *अशोक गोयल* इन्होने भी अपनी किताब में, इसका जिक्र किया है. इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि, बाबासाहेब आंबेडकर इनको संविधान बनाने के लिए, *मोहनदास गांधी* का दिया जा रहा संदर्भ सही नही है. बल्की गांधी - नेहरु - पटेल - कांग्रेस ने तो, संविधान सभा के सारे दरवाजे बंद कर दिये थे. बाबासाहेब आंबेडकर को चुनाव में हराने का भी प्रयास किया था. बाबासाहेब आंबेडकर इनको *"संविधान प्रारुप समिती"* (Drafting Committee) का अध्यक्ष बनाना भी (२९ अगस्त १९४७ से लेकर २४ जानेवारी १९५० तक), कांग्रेस की बडी मजबुरी बन गयी थी.

      भारत में ब्रिटिश सरकार आने के बाद, भारत का पहिला संविधान *"भारत सरकार अधिनियम १९१९"* / दुसरा सुधारीत भारत का संविधान *"भारत सरकार अधिनियम १९३५"* कार्यरत था. ब्रिटिश सरकार ने भारत छोडने का / भारत को आझादी देने का निर्णय लेने पर, *६ सितंबर १९४६* को *"भारतीय संविधान सभा"* यह अस्तित्व में आयी. और *भारतीय संविधान* बनाने के लिए *"२ साल ११ महिने १८ दिन"* का समय लगा. नये *"भारतीय संविधान"* को, संविधान सभा ने *२६ नवंबर १९४९* को मान्यता दी. और वह भारतीय संविधान *२६ जनवरी १९५०* को, अमल में लाया गया. अर्थात *"संविधान संस्कृति"* की, उस दिन निवं रची गयी. उस दिन को *"गणराज्य दिन"* के रुप में, हम मनाते भी है. भारतीय संविधान की विशेषता यह है कि, *"सभी नागरिकों को राजकिय समानता"* मिली है. सभी नागरीकों के मत का मुल्य *"एक आदमी - एक मत - एक मुल्य"* (One Man - One Vote - One Value) रही है. *"व्यक्ति स्वातंत्र /धार्मिक स्वातंत्र / व्यक्ति की समता / शिक्षा का, बोलने का अधिकार"* (Individual Liberty, Religious Liberty,  Equality, Rights of Education,  Rights of Speech) आदी अधिकार मिले है.

      *कांग्रेसी दल* के सत्तानीति राज पर कहे या, कटु अनैतिकता वाद पर कहे या, सत्तांधता वाद पर, हमने कुछ चर्चा की है. परंतु कांग्रेसी राज ने *"संविधान संस्कृति"* यह जिवित थी. कांग्रेस राज में पुंजीवाद ने उतने पैर नही पसारे थे, जितने *भाजपा - नरेंद्र मोदी राज* में पसारे गये है.‌ लोकतंत्र खत्मसा हो गया है. बेकारी - बेरोजगारी तो, आसमान छु रही है. भाजपा - नरेंद्र मोदी राज पर, जो भी लिखा जाए, वह कम ही है. भाजपा ने *"संविधान संस्कृति"* को खत्म कर, *"संस्कृति संविधान"* को बढावा दिया है.  धर्मांधवाद, वर्गवाद, जातिवाद, देववाद आदी को परोसा है. प्रश्न तो यह हमारे बुध्द - फुले - आंबेडकरी राजकिय नेताओं का है. उन्होंने तो अपनी सारी नैतिकता, सत्तावादी - विरोधी दलों के सामने बेच दी है.‌ क्या अब जनता के बिच सें, क्रांती का बिगुल उठ खडा होगा ??? उन रिपब्लिकन नेताओं में कई नाम गिनाये जा सकते है. परंतु हम *एड.‌ प्रकाश आंबेडकर - रामदास आठवले* इन दो प्रमुख नेताओं पर ही, हमारा विशेष लक्ष केंद्रीत करेंगे. *रामदास आठवले* तो, वह बिन-अकल नेता है. उसे *"जोकर"* कहा जाएं तो, वह अतिशयोक्ती नही होगी.

      *एड. प्रकाश यशवंत आंबेडकर* उर्फ बालासाहेब आंबेडकर इनको रिपब्लीकन दल सच्चा नेता, क्या हम कह सकते है ? एड.‌ प्रकाश आंबेडकर इन्होने,‌ रिपब्लीकन शब्द को पुरी तिलांजलि देकर, महासंघ से लेकर वंचित तक का राजकिय प्रवास किया है.‌ डॉ आंबेडकर दिन में *"राजगृह"* पर, काले झेंडे फहराये है. *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी आफ इंडिया"* (भारतीय बौध्द महासभा) यह प्रकरण भी हो. *"बाबासाहेब आंबेडकर विरोधी विचार आचरण* की यादी बहुत लंबी है. *"आंबेडकर परिवार का हम सन्मान करते है. और सन्मान करना भी चाहिए."* परंतु सन्मान करना अलग विषय है और आंखे बंद करते हुये आंबेडकर परिवार का अनुसरण करना, यह अलग विषय हैं. प्रकाश आंबेडकर  - *लहु का वारिस* (Blood Relation) है, तो हम लोग - *भावनां‌ के वारिस* (Emotional Relation) है. लहु के वारिस बनाम भावना के वारिस, यह संघर्ष तो दशकों से जारी है. बाबासाहेब आंबेडकर इनके महापरिनिर्वाण के बाद, भावना के वारिसों को सही नेतृत्व देने की जिम्मेदारी, लहु के वारिसों की थी. क्या यह जिम्मेदारी उन्होंने सही ईमानदारी से निभायी है ? यह प्रश्न है. आज भारत द्विधा परिस्थिती से गुजर रहा है. पुंजीवादी गुलामी हम पर लादी जा रही है. सही दिशा - आंदोलन यहां हमें नज़र नही आता. तो हम *"लहु के वारिसों"* के भटकता नेतृत्व कैसे स्वीकार करे ??? एक प्रश्न है. 


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

नागपुर, दिनांक १२ अक्तूबर २०२३

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