Saturday 24 April 2021

 ✍️ *दादर मुंबई स्थित इंदु मिल की जगह पर, डॉ. आंबेडकर स्मारक को प्रकाश आंबेडकर की विरोध करने की ओछी राजनीति...!!!*

         *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

         राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईटस् प्रोटेक्शन सेल

          मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


      डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती १४ अप्रेल २०२१ को, कोरोना संक्रमण की छाया में, हम उतनी धुमधाम सें नहीं कर पाये.‌ परंतु वह समस्त विश्व में, अपने अलग अंदाज से मनाई गयी.‌ उसी धुमधाम के अलगपन में, अड.‌ प्रकाश आंबेडकर इन्होने, *इंदु मिल की जगह पर बनने जा रहे, डॉ. आंबेडकर स्मारक पर खर्च की जानेवाली समस्त राशी, यह वाडिया हास्पिटल को देने की वकालत....!"* एक साल पहले, सरकार को की थी. प्रकाश आंबेडकर द्वारा की गयी उस मांग को, आज एड. प्रकाश आंबेडकर के कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा, अब उसे दोबारा दोहराया जा रहा है. ‌ *एड प्रकाश आंबेडकर के सदर अलग भुमिका को देखकर, मैने (डॉ. मिलिन्द जीवने) उस औचित्य पर, उसका कडा विरोध करते हुये, मैने उस संदर्भ में एक लेख लिखा था...!* और प्रकाश आंबेडकर के ओछी राजनीति का, मैने उसमें अच्छा समाचार लिया. उस मेरे लेख पर, समस्त महाराष्ट्र में भुचालसा आ गया. वही वह *"डा. आंबेडकर स्मारक"* को मुर्त रूप देने के लिए, सबसे पहले केंद्र सरकार के पोष्ट खातें मे कार्यरत तथा दादर स्थित चैत्यभुमी परिसर में रहनेवालें *चंद्रकांत भंडारे* इनका नाम, मेरे सामने आया. उस व्यक्ती ने, वह स्मारक को मंजुरी मिलने के लिए, क्या क्या पापड बेले थे ...? वह समस्त इतिहास भी मेरे सामने आ गया.

      एक बार एड. प्रकाश आंबेडकर द्वारा, *"डा. आंबेडकर स्मारक के बदले में, अस्पताल बनाने के प्रस्ताव"* को, हम मान भी लेते है. परंतु सवाल यह है कि, उस डॉ. "‌आंबेडकर स्मारक" की समस्त मंजुर राशी, केवल *"वाडिया हास्पिटल"* को ही देने की, वह मांग क्यौं...? इसके पिछे की, असली राजनीति क्या है...? एड. प्रकाश आंबेडकर ने, उसी इंदु मिल के स्थान पर, *" डॉ. आंबेडकर स्मारक के साथ साथ, बाजु में ही डॉ. आंबेडकर हास्पिटल खोलने की मांग,"* क्यौं नही की....??? दुसरी बात यह कि, "डॉ. आंबेडकर स्मारक" को, केंद्र से अनुमती मिलने संदर्भ में, पहला मांगकर्ता *चंद्रकांत खंडारे* को *एड. प्रकाश आंबेडकर* ने, आंबेडकर भवन दादर (पुर्व), मुंबई यहां दिनांक २०/११/२०११ को स्वयं बुलाकर, एवं उनके पास के समस्त पत्रव्यवहार देखने के पश्चात, एक दिन के बाद ही दिनांक २२/११/२०११ को, समस्त मुंबई शहर के दिवारों पर, एड. प्रकाश आंबेडकर इनका छोटा भाई *"रिपब्लिकन सेना के सरसेनापती मा. आनंदराज आंबेडकर इनके कुशल नेतृत्व में, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके महापरिनिर्वाण दिन - ६ दिसंबर २०११ को, समस्त इंदु मिल का ताबा लेने का,"* वह बडा आंदोलन खडा करने की, शकुनी राजनीति क्यौं की...???

      पहला मांगकर्ता *चंद्रकांत खंडारे* इस आंबेडकरी व्यक्ती का, उसी दादर के चैत्यभुमी परिसर में बचपन बिता. अब बुढापा भी...! उसने दिनांक १२/०६/२००१ को, तत्कालीन लोकसभा के अध्यक्ष / राज्यसभा के सभापती / महाराष्ट्र विधान सभा - विधान परिषद के अध्यक्ष / विरोधी पक्षनेता इन्हे *"दादर के चैत्यभुमी पर, तमिलनाडु के मरीना बीच स्थित तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. जी. रामचंद्रन के स्मारक के समान, मुंबई के समुद्र में, एक हजार मिटर अंदर तक भराव डालकर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका उचित स्मारक बनाने का"* एक निवेदन दिया. खंडारे के उस निवेदन की सभी मान्यवरों ने दखल लेकर, दिनांक २३/०८/२००२ को, खंडारे को शासन द्वारा एक पत्र प्राप्त हुआ की, *"चैत्यभुमी के पुनर्विकास के लिए, वास्तु विशारद शशी प्रभु इनकी नियुक्ती की गयी है....!"* बाद में जो राजनीति हुयी या की गयी, इस पर एक अच्छी किताब लिखी जा सकती है. इस लिए, उस विषय को विराम देते हुये, अब हम दुसरे भाग पर चर्चा करेंगे...!

       एक साल पहले लिखे मेरे लेख में, मैने पचाहत्तरी पार किये हुये, मुंबई के एक *"बुढ़े नानाजी"* की वेदना लिखी थी. मै मुंबई *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया (भारतीय बौध्द महासभा)"* केस के सिलसिलें  में, अकसर जाता रहता हुं.‌ मेरे उस केस में, भारतीय बौध्द महासभा के स्वयं घोषीत अध्यक्ष - *"मीराताई आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर / डॉ. पी.जी. ज्योतीकर के सहयोगी चंद्रबोधी पाटील "* इन्हे पार्टी बनाया गया है. आज "भारतीय बौध्द महासभा" के, एक भी ट्रस्टी जीवित नही है. अत: वहां प्रलंबीत *"चार चेंज रिपोर्ट"* पर, प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है....! यह कैसे माना जा सकता है कि, वह चेंज रिपोर्ट प्रामाणिक है.‌ या मृत ट्रस्टी की ओर से, कोई वकिल कोर्ट में कैसे खडा हो सकता है. *"वही इन सभी तिनों स्वयं घोषीत अध्यक्ष महाशयों ने, सन २००९ से धर्मादाय आयुक्त मुंबई इन्हे, कोई हिशोब ही सादर नही किया...!!!"*  यही कारणवश उनकी सदस्यता भी रद्द हो सकती है. या उन पर  क्रिमीनल केस भी की जा सकती है.‌ महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"राजरत्न आंबेडकर "* ये स्वयं को, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका असली वारिस"* तथा स्वयं को राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बताता है. जब कि, राजरत्न आंबेडकर, वो दोनो भी नहीं है. *"बाबासाहेब के असली वारिस / नाती - एड. प्रकाश आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / आनंदराज आंबेडकर है."* इसके अलावा राजरत्न आंबेडकर ने, भारतीय बौध्द महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा *"बाबासाहेब आंबेडकर के नाती बताकर, देश / विदेशों से लाखों रुपयों का चंदा इकठ्ठा किया है. कुछ जमिन भी दान में ली है. जिस का हिशोब धर्मादाय कार्यालय को नही दिया. क्या यह धोकादारी नही है...???"* और महत्व‌पुर्ण विषय यह कि, मीराताई आंबेडकर / भीमराव आंबेडकर / राजरत्न आंबेडकर /  और अन्यों की नजर, *"यह "भारतीय बौध्द महासभा" के नाम, खाते पर जमा "तेरा करोड"* के आस पास न्यायालय के निगरानी में जमा, उस खजाने पर है...!!!  खैर छोडो, इस विषय पर विस्तार से, फिर कभी हम चर्चा करेंगे. अब हम *"पचाहत्तरी पार किये, उस बुढ़े नानाजी के वेदना"* की बांत करेंगे...!!!

       मै "भारतीय बौध्द महासभा" केस के सिलसिले में, उस दिन मुंबई था. तब मुझे एक बुढ़े नानाजी का फोन आया. और वह मुझे मिलने पहुंचा और कहने लगा कि, "साहेब, आप ने बहुत अच्छा काम हात में लिया है. बाद में उसने, एड. प्रकाश आंबेडकर के काम करने के बारे में, तथा बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में, उसने बोले अपशब्द का जिक्र किया." तब बुढ़े नानाजी ने कहा कि, *"प्रकाश आंबेडकर, ये बाबासाहेब से बहोत नफ़रत करता है. वो कहता है कि, उस खेड्डे (बाबासाहेब) ने उसके मां को, बहोत तकलीफ दी है. और कहता है कि, उस खेड्डे नें हमारे आंबेडकर परिवार के लिए क्यां किया....? "* यह बातें मुझे बताते हुये, वह नानाजी बहोत रोने लगा. यह जिक्र मेरे उस लेख में था. उस मेरे लेख पर, मुझे सौं के आस पास फोन / मेसेजेस आये. जादा तर फोन ये धमकी के रहे थे. और कुछ फोन मेरे हिंमत के लिए थे. आज भी वह संदर्भ देने के कुछ कारण है. हमे एड. प्रकाश आंबेडकर इनके बहोत से कामों पर, गौर करना होगा...!!! उस विषय पर जाने के पहले, *"मेरी (डॉ. मिलिन्द जीवने) एवं एड.‌ प्रकाश आंबेडकर के बिच, नागपुर के रवी भवन में १० साल पहले हुये,"* हमारे चर्चा की ओर आप का लक्ष केंद्रीत करूंगा. तब मैने प्रकाश आंबेडकर को कुछ प्रश्न किये थे.‌ वे प्रश्न थे, *"रिपब्लीकन पार्टी के , आज तक जीतने भी नेता हुये है, उन सभी नेताओं में रा. सु.‌ गवई / बैरिस्टर खोब्रागडे के बाद, केवल आप ही हुशार, दुरदर्शी, अच्छे वकृत्ववाले नेता है. उपर से आंबेडकर नाम का वलय, आप के पिछे है. यह होते हुये भी, एड.‌ प्रकाश आंबेडकर राजनीति में फेल क्यौ...?"* इस मेरे प्रश्न का उत्तर दो.‌ इस मेरे प्रश्न पर, एड. प्रकाश आंबेडकर कुछ नही बोलें. वातावरण खामोश था. दस मिनिट के पश्चात मैनें ही कहां कि, क्या मै इसका उत्तर दुं...? एड. आंबेडकर ने कहां, दे दो...! मैने उत्तर दिया कि, *"आप यहां जो चौकडी में घिरे पडे हो, इससे पहले बाहर निकलो. आप में जो इगो भरा है, उससे भी बाहर निकलो. और जनता के बिच जाओ...! सफल नेता बनोंगें...!!!"* मेरे इस उत्तर से एड. प्रकाश आंबेडकर, खामोश हो गये. और मुंबई की ओर निकल पडे. इस हमारे चर्चा की साक्ष आंबेडकरी विचारवंत *प्रा. रणजीत मेश्राम /समता सैनिक दल के विमलसुर्य चिमणकर / माजी विधायक डॉ. मिलिन्द माने* है. जो वहाँ उपस्थित थे.

       मेरा यह लेख मिडिया में आने के बाद, समता सैनिक दल के *विमलससुर्य चिमणकर* इनका मुझे फोन आया. आधा घंटा तक हमारी चर्चा हुयी थी. तब उन्होनें उस बुढे नानाजी के बातों को, सही बताया.‌ और उन्होंने स्वयं कहां, यह भी सत्य है कि, डॉ. बाबासाहेब मीराताई आंबेडकर को, पसंद नही करते थे. इस लिए बाबासाहेब, यशवंत आंबेडकर के शादी में, शरिफ नही हुये थे. आज विमलसुर्य चिमणकर हमारे बिच नहीं है. कुछ माह पहले उनका निर्वाण हुआ है...! *अब हम एड. प्रकाश आंबेडकर के, विभिन्न काम शैली पर गौर करेंगे...!* हमारे रिपब्लीकन पार्टी के कई गट है. जैसे कि - खोरिपा / गारिपा / रिप (कवाडे) / रिप (कांबळे) / आदी....! उन नेताओं ने बिखरकर भी, *"रिपब्लीकन मुव्हमेंट"* इस नाम से, अपनी बांधिलकी कायम रखी है. एड. प्रकाश आंबेडकर ने तो, अपने राजनीतिक जीवन में, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके *"रिपब्लीकन"* इस विचार / शब्द को, पुर्णत: तिलांजली दे दी. बहुजन‌ महासंघ से लेकर वंचित आघाडी तक, यह प्रकाश आंबेडकर का राजनैतिक प्रवास क्या है....? डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनका *"कालाराम मंदिर आंदोलन"* यह *"समता / न्याय अधिकार"* प्राप्ती का आंदोलन था. फिर डॉ. बाबासाहेब हमे बुध्द की ओर ले जाकर, विज्ञानवादी *"बाईस प्रतिज्ञा"* देते है. और *"देववाद / धर्मांधवाद"* से, हमे छुटकारा देते है. हम में *"भारत राष्ट्रवाद"* जगाते है. इसके विपरीत एड. प्रकाश आंबेडकर, ये हमें हिंदु मंदिर - *"देववाद / धर्मांधवाद की ओर"* ले जाते है. *"आंबेडकर भवन"* यह पावन वास्तु, प.पु. डॉ. बाबासाहेब ने, हमें समाज के लिये दी. उस जगह *"अच्छी बडी वास्तु"* होने का विरोध कर, *"बाबासाहेब के नाम की वास्तु"* को कोर्ट मे लिपट दिया. अगर वे चाहते तो, दोनों पक्ष एकसाथ बैठकर, मध्यम मार्ग भी निकाल सकते थे.‌ परंतु यह भी नही हुआ...!!!

      भारत के जादातर कांग्रेसी / संघी नेताओं के, समस्त भारत के सरकारी जमिन पर तथा उनके निजी जगह / निवासस्थान, यह *"राष्ट्रीय स्मारक"* घोषित कर दिये है. विश्व तथा देश के लोग, वह वास्तु देखने भी जाते है. *परंतु डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा बनवाया "राजगृह"* यह, प्रकाश आंबेडकर / मिराताई आंबेडकर इनके तिव्र विरोध के कारण, *"राष्ट्रीय स्मारक"* नही बन पाया. देश / विदेशों के हर लोगों की, मन से चाह है कि, बाबासाहेब का घर अंदर से देखें. बाबासाहेब की बैठक रुम / बेड रूम /लायब्ररी कहां थी / है....! आदी. *"उस के बदले आंबेडकर परिवार को, सरकार की ओर से अच्छी पर्यायी जागा दी जा सकती थी. या अब भी कुछ देर नही हुयी...!"* जैसे की लोग *"परेल की चाल"* में, बाबासाहेब का घर देखने जाते है...! परंतु एड. प्रकाश आंबेडकर एवं परिवार की, *"डॉ. बाबासाहेब के प्रती रहनेवाली नफ़रत"* ही, वह *"राष्ट्रीय स्मारक"* होने नही देती. *"इंदु मिल"* की जगह होनेवाला *"डॉ. आंबेडकर स्मारक"* भी, उसी की एक कडी है...!!! *एड. प्रकाश आंबेडकर, ये बाबासाहेब के वह समस्त यादों को / धरोहर को मिटाना चाहता है...!* चाहे फिर वह, सामाजिक / धार्मिक / राजकिय संघटन भी, क्यौं ना हो...??? अगर प्रकाश आंबेडकर चाहता तो, समस्त *"रिपब्लीकन दल""* को एकसंघ कर सकता है....! *"समता सैनिक दल"* को एकसंघ कर सकता है....! *"दि बुध्दीस्ट सोसायटी ऑफ़ इंडिया "* को भी, एकसंघ कर सकता है.‌‌..! केंद्रिय / राज्य स्तर पर, रिपब्लीकन के बैनर तले, तथा *" बहुजन समाज पार्टी "* एवं तिसरे आघाडी के कुछ दलों के साथ मिलकर, *"४० : ४० : २०"* इस फार्मुला के तहत (४०% प्रकाश आंबेडकर / ४०% बसपा / २०% रिपब्लीकन के अन्य दल तथा तिसरी आघाडी) राजनीति की जा सकती थी / है. परंतु एड. प्रकाश यह कराने का पक्षधर नहीं है.‌ *"शायद प्रकाश आंबेडकर की सत्ताधारी वर्ग से, अंदरूनी चलनेवाली - बडी अर्थ राजनीति...?"*

     एड. प्रकाश आंबेडकर ने, *" अयोध्या राम जन्म भुमी / बौध्द धरोहर केस हो या, पंढरपुर का विठ्ठल मंदिर / बौध्द विहार केस हो, तिरुपती बालाजी - शबरीमाला मंदिर - जगन्नाथ मंदिर / बौध्द मंदिर"* इन बौध्द धरोहर को पाने के लिए, ना कोई आंदोलन किया, ना ही वह मिलने की मांग....!!! सर्वोच्च / उच्च न्यायालय के *"मागास आरक्षण प्रकरण"* पर भी, प्रकाश आंबेडकर वह उतना सक्रिय नहीं दिखाई देता, जितना की वो होना चाहिये...!!!! वही बात *"बहुजन समाज पार्टी"* की सर्वेसर्वा, *"मायावती"* के लिए भी लागु है. मायावती भी कांशीराम पुरस्कृत विचारों से, पुर्णत: भटक गयी है.‌ पहले की सशक्त बसपा आज दिखाई नही देती.‌ *"केडर संकल्पना"* को, मायावती ने पुर्णत: तिलांजली दी है. मायावतीने भी *"परिवारवाद* का सहारा लिया है. *"कर्मचारी संघटन* भी बसपा से दुर हो गयी है. कांशीराम समर्थित पुराने सहपाठी, बसपा से दुर हो गये है या निकाले गये है. *प्रकाश आंबेडकर* तो, इन सभी भावों से कोसों दुर है.‌ *"तो संघटन मजबुती, यह तो केवल एक खोकली धारा  है....!"* अब सवाल यह है कि, इन बिखरी धाराओं‌ में, हम कैसे स्वाभिमान से जीवित रह पायेंगे...???


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईटस् प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२

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