Sunday 18 April 2021

 🔹 *कोरोना महामारी (?) में भारतीय न्यायालयों का दोगलापन एवं कोरोना के पिडित डॉ. ‌मोहन भागवत से लेकर नरेंद्र मोदी तक...???*

       *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',*  नागपुर १७

      * राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

       * एक्स हाऊस सर्जन एवं मेडिकल आफिसर

       * मो.न. ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


       बहुत दिनों से, इस विषय पर कुछ लिखने का, मेरा मन मुझे कह रहा था.‌ वही १६ - १७ अप्रेल के मिडिया की दो खबर के कारण, मै अपने शब्दों कों आकार देने लगा. पहली खबर, वह कोरोना सें संबधित नहीं है. परंतु वह देश से संबधित जरुर है. *मा. सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश शरद बोबडे* ने, जो "महाराष्ट्र राष्ट्रीय विधी विद्यापीठ" के संस्थापक कुलपती भी समझे जाते है, सदर विद्यापीठ के शैक्षणिक भवन के उदघाटन कार्यक्रम मे, उन्होंने कहा किं, *"प्रशासकिय कामकाज कौन से भाषा में होना चाहियें, इसे लेकर हमेशा द्वंद्व रहा है. डॉ. ‌बाबासाहेब आंबेडकर ने संस्कृत को, अधिकारिक भाषा का प्रस्ताव रखा था.....!"* महत्वपुर्ण विषय यह कि, सदर समारोह में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री *उध्दव ठाकरे,* केंद्रिय मंत्री *नितीन गडकरी,* सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश *भुषण गवई,* मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश *दीपांकर दत्ता,* नागपुर के पालकमंत्री हमारे मित्र *डॉ. नितिन राऊत,* विधान सभा विपक्ष *देवेंद्र फडणवीस* यह महामहिम उपस्थित थे. एक ओर महाराष्ट्र में *"१४४ धारा"* लगाई गयी है. अर्थात सार्वजनिक जगह पर, पांच से जादा लोग इकठ्ठा नही रह सकते. वही कोरोना के कारण, सभी सामाजिक / धार्मिक / सांस्कृतिक / राजकिय कार्यक्रम लेने पर, पुर्णत: पाबंदी लगायी गयी है.‌ और सदर आदेश का उल्लंघन करनेवाले, सामान्य लोंगो को दंडित कराने का, पुलिस को आदेश है. *"और यहां तो कानुन को बनानेवाले और कानुन की रक्षा / अमलबजावणी करनेवाले महामहिम ही, कानुन की पुरी तरह धज़्जीया उडा रहे है. "* फिर इन दोषीयों को, *"जनता अदालत"* में, क्या सजा सुनाई जाए...? सजाएं मौत...? या उनके " भर चौराह पर, कपडे उतारे जाएं....???"

      खैर छोडो, यह विषय अब हम थोडा बाजुं में रखते है.‌ सर्वोच्च न्यायालय के सरन्यायाधीश *शरद बोबडे* के कथन पर, हम पहले चर्चा करेंगे. शायद डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के सदर विषय संदर्भ में, शरद बोबडे का *(भारत की प्रशासकिय भाषा यह संस्कृत हो...?)* अभ्यास उतना ना हो. उन्होनें डॉ. बाबासाहेब के संदर्भ मे मेरे (डा.‌ मिलिन्द जीवने) से ट्युशन लेना जरुरी लग रहा है. यह विषय बहोत बडा होने के कारण, इस विषय पर फिर कभी, मै अलग से लिखुंगा. अब हम, *शरद बोबडे* के, एक न्यायालयीन निर्णय पर चर्चा करेंगे. कोरोना संक्रमण काल में, भारत के तमाम मंदिर बंद कराने का, सरकार ने आदेश‌ दिया गया था. वही उस काल में *"जगन्नाथपुरी मंदिर रथयात्रा केस"* पर तथा भावना का विषय जोडकर, *"Hon. Supreme Court of India's vacation bench of the Chief Justice of India S. A. Bobade,  Justice Dinesh Maheshwari & Justice A.S. Bopanna has allowed the Rathyatra (23rd June 2020) to take place in Puri with strict guidelines of the state Government."* प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में, जगन्नाथ रथ यात्रा में सहभागी होकर झाडु भी लगाया. वही कोरोना काल में नरेंद्र माेदी ने, *अयोध्या राम मंदिर का शिलान्यास"* भी किया. *"शबरीमाला मंदिर"* भी दर्शनार्थ खोला गया था.  वही अभी कुछ दिन पहले, *"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ - RSS"* के सरसंघचालक *डॉ. मोहन भागवत* नें, बैंगलुरू में ७०० संघ प्रचारकों के उपस्थितीं में  "संघ के वार्षिक शिबिर" मे, सहभाग लेकर उदबोधन भी किया. अभी अभी *"हरीद्वार में कुंभमेला"* में, लाखों की संख्या मे साधु - संत (?), भाविकों ने वहां उपस्थित होकर, *"गंगा स्नान"* किया है. वही वहां के लाखों की उपस्थितीं के कारण, वहां से *"कोरोना संक्रमण"* बढने की चर्चा, बडी जोरों पर है.  *पश्चिम बंगाल / असम* में, विधान सभा चुनावों का गरम माहोल है. लाखों की संख्या में, जन सैलाब वहॉ दिखाई दिया है. नरेंद्र माेदी / राहुल गांधी / ममता बनर्जी की सभाएं, उसको क्या कहे...? यहां सवाल तो, कोरोना संक्रमण रोकने का है...??? *"ये निकले गंगा नदी में, अपना पाप धोने. वही नहाते नहाते, गंगा को ही गंदा कर चले....!"* फिर भी सर्वोच्च न्यायालय खामोश है.

    अभी अभी *'मा. मुंबई उच्च न्यायालय"* में, *"जैन मंदिर में नौ दिन की तपश्चर्या"* के कारण, जैन मंदिर के ट्रस्ट ने *"उपवास पदार्थ"* बनाने / वितरण करने हेतु, मुंबई न्यायालय से विशेष अनुमती मांगी.‌ एवं मा. उच्च न्यायालय ने जैन मंदिरों को, कुछ शर्तो पर अनुमती दी है. उपरोक्त उच्च / सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का संदर्भ देकर, मैने स्वयं (डॉ. मिलिन्द जीवने) *"नागपुर उच्च न्यायालय "* में, *"धम्म चक्र प्रवर्तन दिन"* पर *" दीक्षाभूमी के द्वार"* अभिवादन करने हेतु -  W.P. (ST) No. 9961/2020, यह याचिका दिनांक ९ अक्तूबर २०२० को दायर की थी. जहां मैने मा. सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त जजमेंट का, संदर्भ भी दिया था.‌ परंतु *Justice R. K. Deshpande / Pushpa Ganediwala* इन्होने अपने जजमेंट में, *"Respo. No. 1 (Deekshabhoomi) is a public Trust. We fail to understand as to how the petitioner can invoke the writ jurisdiction of this court seeking the direction as above....!"* कहकर, मेरी याचिका डिसमिस की. और "धम्म चक्र प्रवर्तन दिन" पर, हम दीक्षाभूमी के अंदर जाकर, अभिवादन नही कर सके. अंत में मेरे नेतृत्व में (डॉ. मिलिन्द जीवने), *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल* की टीम, जिस में *प्रा. वंदना जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / डॉ. मनिषा घोष / ममता वरठे / प्रा. वर्षा चहांदे / डॉ. भारती लांजेवार / इंजी. माधवी जांभुलकर / दिशा चनकापुरे /ममता गाडेकर / सुर्यभान शेंडे / प्रा. नीता मेश्राम* आदीयों ने दीक्षाभूमी जाकर, गेट के बाहर से ही *'बुध्द वंदना"* की. सवाल यहां *दीक्षाभूमी ट्रस्ट"* का भी है. हमारे बौध्द बंधुओं के, भावना का भी है. वहां के ट्रस्टी यह *"केवल वहाँ विश्वस्त (विश्वास करने योग्य व्यक्ती) है. संस्था के मालक नही."* दीक्षाभूमी यह कोई उन ट्रस्टीयों की, बापजादा की वैयक्तिक संपत्ती नही है. *"दीक्षाभूमी यह आंबेडकरी / बौध्द समाज की जागतीक धरोहर है...!"* और उन्हे अपने ही धरोहर में, अभिवादन करने के लिए, किसी ना-लायक व्यक्ती की अनुमती लेनी होगी...??? वही उच्च न्यायालय के सदर आदेश‌ को ध्यान में रखकर, मा. धर्मादाय उपायुक्त के पास *अर्ज क्र. ३२/२०२०"* मैने फिर केस दायर की थी. वहॉ भी सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त जजमेंट का, मैने संदर्भ दिया गया.‌ उप धर्मादाय आयुक्त ने अपने आदेश में कहां कि, *"उन्हे दीक्षाभूमी समिती को, दरवाजा खोलने हेतु आदेश देने का कोई अधिकार नही है...!"* यह कितनी बडी शर्मसार बात है. सरकार अपने नियंत्रण में रहनेवाली संस्था को, आदेश देने का उन्हे अधिकार नही...? फिर धर्मादाय उपायुक्त वहां झक मारने बैठा हुआ है क्या...??? अंत: पुनश्च दिनांक २३ अक्तूबर २०२० को, *"उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ"* में याचिका डाली गयी. जो अभी भी प्रलंबीत है. मेरी ओर से, *अड. डाॅ. मोहन गवई / अड. संदिप ताटके* इन्होने वकालतनामा सादर किया.

     मा.‌ उच्च न्यायालय, नागपुर में प्रलंबीत मेरी वह याचिका, केवल *"दीक्षाभुमी प्रकरण"* सिमित नही है. तथाकथित कोरोना संक्रमण (?) संदर्भ में, भारत सरकार के विभिन्न आदेशों को, याचिका में जोडा गया है. *भारत सरकार का कोरोना संक्रमण अलग अलग आदेश‌ / भारत के पिछले पांच सालों का मृत्यु दर"* आदी भी विषय वहां जुडे है.‌ इस ‌लिए मैने अपने Prayer में, *"कोरोना संक्रमण की वास्तविकता / सच्चाई जानने हेतु, Court Commissioner के नियुक्ती की,"* उस पिटिशन में मांग भी की. हमे यह भी देखना है कि, *"कोरोना संक्रमण यह, कोई बहुत बडा आंतरराष्ट्रिय षडयन्त्र तो नही है...???"* आज भारत यह संक्रमण काल से, गुजर रहा है.‌ भारत की अर्थ व्यवस्था खस्ताहाल है.‌ *"भारत के मंदिरों में डंब पडी हुयी जमा पुंजी / संपत्ती का उपयोग करना, यह आज की गरज है."* परंतु हमें लगता है कि, "हमारे न्यायालय को भी, कोरोना रोग हो गया है....!"  इतनी महत्वपुर्ण मेरी याचिका को, मा. उच्च न्यायालय ने स्वयं होकर संज्ञान लेकर, *"जनहित याचिका"*  के रूप में, जल्द सुनवायी कर, उस पर निर्णय लेना चाहियें....!!! सर्वोच्च न्यायालय के एक भुतपुर्व सरन्यायाधीश ने, अपने एक बयाण में कहा कि, *"भारतीय न्यायालय से, हम सही न्याय की अपेक्षा नहीं सकते...!"* मेरे खयाल से, वह अधुरा बयाण है. भारत के न्यायालयों मे, जादातर सवर्ण वर्ग के न्यायाधीश बैठे है.‌ और उनके पुरखों का इतिहास, यह भारत के गद्दारी का रहा है. *चक्रवर्ती सम्राट अशोक* का विशालकाय अखंड विकास भारत को, खंड खंड बरबाद करनेवालों की, वे औलाद है. अर्थात भारत के न्यायालय को, हम *"सवर्ण न्यायालय"* भी कह सकते है...!!! अत: वह *"न्याय भारत / विकास भारत"* का अस्तित्व, पुर्णत: खो चुकी है. भारत के आझादी के ७० साल पार होने पर भी,  *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय / संचालनालय,"* यह भारत में कभी बना ही नही. ‌और ना ही न्यायालय *"वाच डॉग"* के रुप में, वह अपना दायित्व निभा रही है. अगर न्याय व्यवस्था ही भ्रष्ट हो तो, जाए तो जांए कहा....!!! *"न्यायालय ने, मागास आरक्षण की समिक्षा करने की, एक बात कही है...!"* इस सवर्ण वर्ग का, यहां बिना आरक्षण रखे - न्यायालय / राज्यपाल / समस्त सर्वोच्च पदोंपर अवैध घुसपैठ का ....??? इसकी समिक्षा कब होगी. इस सवर्ण वर्ग का *"गर्भ मेरिट"* क्या है...??? *"एक बार हमारे समान लोगों को, उच्च पदों पर आसिन कर देखो. और अधिकार प्रदान करो. फिर देखों, हम भारत को कितनी उंचाई पर, ले जाते हें...! "* परंतु यहां खुर्ची पर तो, गधे बैठे है. उनके मेरिट को क्या कहे...???

       अभी अभी कुछ दिन पहले, संघवाद - RSS के सरसंघचालक *डा. मोहन भागवत* तथा सरकार्यवाह *भय्याजी जोशी* इन्हे कोरोना होने के कारण, उन्हे हास्पिटल में भरती किये जाने की, बडी ही चर्चा रही. अब उनके छुट्टी होने की भी...! वे दोनो ही महानुभावों नें अपनी सत्तरी पार की है.  और उन्हे कुछ अन्य बिमारी बतायी गयी है. यहां सवाल ऐसा है कि, उनके पास *"संकट मोचन हनुमान"* है. आरोग्य की देवता *"धनवंतरी"* है. मर्यादा पुरूषोत्तम *"राम"* है. गोपीकायों से यौवन क्रिडा रचानेवाला *"कृष्ण"* है. महामृत्युंजय मंत्र / गायत्री मंत्र है. सभी देव‌ - देवताएं उनके पास होकर भी, उन्होने उनके नामों का *"महायज्ञ"* क्यौ नही किया....? वे *"कोरोना हास्पिटल"* में भरती हो गये है. इंसान उन्हे ठिक कर रहा है. भगवान नही. *"दुवाएं के बदले, वे दवाई खा रहे है....!!!"* अब यह सिध्द हो गया कि,  *"यह कोरोना संक्रमण देव - देवताओं कों भी हो गया है...!"* वैसे भी तो, उनके धर्मग्रंथ में देवी - देवताएं, किसी न किसी बिमारी के शिकार थे. कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने कारण, वह मरनेवाले लोग *"किस जाती से / श्रेणी से"* आते है.‌ उन्हे कोरोना के अलावा अन्य बिमारी थी क्या...??? इसका संशोधन होना भी जरूरी हो गया है. गरिब / मध्यम वर्गीय रुग्न को मारकर, उनके *"आर्गन की तस्करी"*  होने की भी चर्चा है. *मेरे खयाल से, कोरोना काल में, उन लोगों के मृत्यु का कारण, फैलाया हुआ "डर" है...!"* जैसे पहले *"भगवान का डर"* दिखाई जाता था. आज *"कोरोना डर"* है. अत: आप सभी नें, *"डर के आगे जीत है....!"* इस मंत्र को, हमेशा याद करना है.....!!! रोज एक्सरसाइज़ / योगा / आसन / विपश्यना यह करना है. *"योगा यह पतंजली की देन है,"* यह एक बहुत बडा जोक है. *"विपश्यना याने बुध्दीझम,"* इस विवाद से भी हमें बचना चाहिये.‌ *"बुध्दीझम"* यह बहुत बडा विषय है.  *"विपश्यना "* तो, बुध्दीझम का एक छोटासा भाग है. विटामिन सी तथा अच्छा आहार युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिये. सफाई का ध्यान रखना जरुरी है. तभी आप तंदुरस्त रहेंगे...!!!


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