Sunday 2 May 2021

Dr. B. R. Ambedkar never supported Sanskrit as India National Language... Dr. Milind Jiwane

 ✍️ *डॉ. आंबेडकर के नाम संस्कृत राष्ट्रभाषा (?) विवाद : माजी सरन्यायाधीश शरद बोबडे के वकालती एड. दुबे से लेकर अलग राय रखनेवाले एड. प्रशांत भूषण तक...!!!*

          *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

           राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल प्रोटेक्शन सेल

           मो.न. ९३७०९८४१३८,९२२५२२६९२२




      अभी अभी पुना के माजी पोलिस आयुक्त एवं मेरे अच्छे मित्र *एम. एस.‌ महेशगौरी साहब (IPS)* इन्होने, व्हाट्सएप पर लोड हुयी यु ट्यूब की, दो व्हिडिओ पोष्ट मुझे शेअर की. उस पोष्ट में, एक व्हिडिओ यह सर्वोच्च न्यायालय के माजी सरन्यायाधीश *शरद बोबडे* इन्होने, प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनके जयंती पर १४ अप्रेल २०२१ को, नागपुर में *"महाराष्ट्र राष्ट्रीयता विधी विद्यापीठ"* के शैक्षणिक भवन के उदघाटन पर, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संस्कृत को, भारत की अधिकारिक भाषा होने का, प्रस्ताव रखा था...!"* यह बयान देकर, एक नया विवाद खडा किया.‌ इस संदर्भ मे मैने मेरे लिखे गये एक लेख में, *"मैने न्या.‌ शरद बोबडे का अच्छा ही समाचार लिया...!"* वही न्या. शरद बोबडे के उस बयान पर, नयी दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करनेवाले, *एड.‌ डी.‌ के. दुबे* इन्होने, न्या.‌ शरद बोबडे के सदर बयान को, बहुत ही महत्वपुर्ण कहते हुये, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के बारे में, बहोत झुटी हमदर्दी जताते हुये, बहुत सी अनशन बातें की. अर्थात इसका जबाब नही दिया गया तो, *"प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा देश के लिए, किये गये रचनात्मक कार्यों का, भविष्य में झुठा इतिहास रचा जाने की, बहोत सी जादा संभावना है...!"* वही दुसरी व्हिडिओ यह *"न्या. शरद बोबडे इनकी लिगसी"* (The legacy of justice Bobade) इस विषय पर, *सुजीत नायर* इस संपादक ने, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ नामांकित वकिल *प्रशांत भुषण* इनकी, मुलाकत का है. जो भारत की आज की न्याय व्यवस्था / सत्ता व्यवस्था विषय पर, बहोत अच्छा प्रकाश डालती है.‌ अत: वह मुलाकत मुझे बहोत ही महत्वपुर्ण लगी...!!!

     अब हम सर्वोच्च न्यायालय के भुतपुर्व न्यायाधीश *शरद बोबडे* तथा उनके उस कथन का अच्छी वकालत करनेवाले, *एड. डी. के. दुबे* इनके *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने संस्कृत  को, भारत की अधिकारिक भाषा होने का प्रस्ताव रखा था.....!"* इस विषय पर, हम चर्चा करेंगे. *दिनांक १४ सितंबर १९४९ को* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने, *"भारतीय संविधान सभा"* में *"नया पार्ट - New Part XIV - A (भाषा)"* इस प्रस्ताव पर कहां कि, *"महोदय, मै विधेयक पेश करता हुं."* केवल इतने ही शब्द कहे. वहां कही भी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने, *"मै संस्कृत भाषा को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने हेतु, प्रस्ताव सादर करता हुं."* इसका जिक्र नही है. फिर इस पर कई माननीय सदस्य, बोलने के उठ खडे हुये.‌ इस  विषय पर बहोत से सदस्यों ने उनके विचार रखें. वही संविधान सभा द्वारा डिबेट के अध्याय - *३०१ ए (१) - नुसार : संघ की राजभाषा देवनागरी लिपी में हिंदी होगी. तथा ३०१ सी (१) नुसार (अध्याय II - क्षेत्रीय भाषाएं) - राज्य द्वारा हिंदी या भाषा या भाषाओं के बारे में कानुन द्वारा राज्य या राज्य के सभी अधिकारिक उद्दोंशों के लिए इस्तमाल की जानेवाली भाषा या भाषा के रुप में उपयोग किया जा सकता है....! "*  यह उल्लेख मिलता है. हां, एक न्युज पेपर *"नैशनल हेराल्ड"* ने अपने दैनिक में, दिनांक ११ सितंबर १९४९ को छापा था कि, *"Ambedkar among sponsors - Sanskrit proposed as official language."* परंतु वह डा.‌ आंबेडकर का अधिकारिक बयान नही है. वही भाजपा नेता तथा तत्कालिन केंद्रिय मंत्री *मुरली मनोहर जोशी* दिनांक ३०/०४/२०१६ को तथा *वसंत त्रिपाठी* दिनांक २४/०४/२०१८ को, अपने बयान में कहते है कि, *"संस्कृत के पक्षधर थे डॉ. आंबेडकर."* और शायद उसी बयान की *" री"* सर्वोच्च न्यायालय के भुतपुर्व सरन्यायाधीश *शरद बोबडे* ने ली हो. खुद की अकल न्या. बोबडे द्वारा, वहाँ लगाई दिखाई नहीं देती. महत्व‌पुर्ण विषय यह कि, ब्राम्हणी नायकों के वह बयान *"गुगल का हिस्सा"* बन गया है. शायद भविष्य में, वह झुंटी बातें कही प्रमाण न बन जाए. दुसरा अहं महत्व‌पुर्ण विषय यह कि, *"दै.‌ नैशनल हेराल्ड का वह बयान ११ सितंबर १९४९ का है. वही डॉ. आंबेडकर संविधान सभा में, १४ सितंबर १९४९ को भाषा प्रस्ताव रखते है.‌ "* मित्रो, आप को पता होना चाहिये कि, *" ग्लोबल्स तंत्र"* कहता है, *'झुठी बातें भी विश्वास के साथ, दस बार समाज के सामनें रखो.‌ बाद में वह सच लगने लगती है...!"* भाजपा / कांग्रेसी / संघवाद ने आज तक, उसी तंत्र का सहारा लिया है. अत: हमें अब उस *"ग्लोबल्स तंत्र"* को फोडना है...! इतिहास जमा करना है...!!!

      अब हम न्या. शरद बोबडे के हिमायती सर्वोच्च न्यायालय के वकिल *एड.‌ डी. के.‌ दुबे* द्वारा, न्या. बोबडे के उस खोकले सदर बयान का, सहारा लेते हुये बसपा नेता कांशीराम से लेकर, समस्त आंबेडकरी लेखक / विचारविदों पर कडा निशाना साधा है. और हम ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को,  *"एक कंसायनमेंट / एक आयडीयल / दलित आयडेंटीटी "* के बीच रखने का आरोप लगाया. ‌यह कहते हुये वह *"ना-लायक"* एड. दुबे, प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का *"ऐकरी शब्द"* से उल्लेख करता है.‌ वही *"तत्कालिन सरसंघचालक गोलवलकर / हेडगेवार / देवरस"* इनके प्रती, *"पुज्य"* इस शब्द का प्रयोग कर गया. यही तो वो एड दुबे, अपनी असली निच औकात छोड गया. *"क्या योगदान है संघवादी उन महाशयों का, भारत के आजादी में / भारत विकास में / भारत की ऐकात्मता रखने में / भारत राष्ट्रवाद भावना जगानें में...?"*

      एड. दुबे महाशय ने प. पु.‌ बाबासाहेब के बारें में, बहोत कुछ कह गया है.‌ वो बिंदु है........  ****** *जवाहरलाल नेहरू को, इंटेलेक्चुअल लोक पसंद नही थे."* जवाहरलाल नेहरू को अय्यंगार समान चाटुक लोग पसंद थे.‌ वही *सरदार वल्लभभाई पटेल* को, इंटेलेक्चुअल लोग पसंद थे. उन्होने डॉ. आंबेडकर की विद्वता पहचानी थी.‌ इस लिये सरदार पटेल / मोहनदास गांधी के कारण ही, डॉ. आंबेडकर *"संविधान सभा"* मे जा सके...!  *"कांस्टीट्युशन ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन"* बने. एवं *"कानुन मंत्री"* बनना भी...!!! डॉ आंबेडकर, ये *"बंगाल से सभा"* में, चुनकर आये थे. ‌भारत विभाजन के बाद उनका मतदार संघ, यह पाकिस्तान में चला गया. आखिर *बैरीस्टर एम. आर. जयकर* ने, अपने सदस्य पद का इस्तिफा देकर, डॉ. आंबेडकर को पुना से, संविधान सभा में भेजा गया. *"जयकर समान सर्वोत्तम वकिल"* भारत में कोई नही था. यही नहीं, जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. बाबासाहेब ‌आंबेडकर को, कभी भी *"महत्वपुर्ण मंत्रालय"* की, कोई जबाबदारी नही दी गयी. *"हिंदु कोड बिल"*  यह सरदार पटेल / डॉ. आंबेडकर के रहते हुये, नेहरू ने संविधान सभा में, कभी पारीत होने नहीं दिया.....!!!! *"अस्पृश्यता"* यह विषय, RSS के हेडगेवार / देवरस भी अहं समजते थे.‌ सरदार पटेल / स्वामी विवेकानंद / दयानन्द सरस्वती / गांधी भी, इस प्रथा के विरोधी थे.‌ अर्थात डॉ. आंबेडकर ने अस्पृश्यता के बारे में, जो कुछ काम किये थे, वह कुछ नये नही थे. यही नहीं, भारतीय संविधान के कलम ३७० / ४९ ‌/ ३० / ३५४ / ३३८ / १६ / ७  आदी पर भी, दुबे महाशय बोल गये.‌ और वे महाशय हमें क्या क्या अकल, नहीं दे गये ??? उस पर एक अच्छी सी किताब, लिखी जा सकती है.‌ 

       अब हम एड.‌ दुबे महाराज की सच्चाई को उजागर करेंगे.‌ वह विषय है - १.  *नेहरू को इंटेलेक्चुअल लोग पसंद नही थे...!"* २. *सरदार पटेल को इंटेलेक्चुअल लोग पसंद थे....!* ३. *डॉ. ‌आंबेडकर को महत्वपुर्ण मंत्रालय की, कभी जबाबदारी नही दी गयी...! "* इस तिन बिंदु संदर्भ में कहा जाएं तो, यह बात बिलकुल सही है. अब अहं सवाल है, *" क्या आज भाजपा / कांग्रेसी सत्ता शासन में, मागासवर्गीय इंटेलेक्चुअल को, वह संधी दी जा रही है...?"*  वह हिन ब्राम्हणी व्यवस्था (मानसिकता), जवाहरलाल नेहरू के सत्ता काल में थी. और आज भी वह यथावत है.‌ *"अर्थात भाजपा हो या / कांग्रेसी भी हो, वह एक ही शिक्के के दो पहलू है....!"*  मागासवर्गीय समुह यह, पहले भी संघर्ष कर रहा था. और आज भी कर रहा है. *"मौके के पदों पर,"* उन्हे नही बिठाया जाता.‌ अब तो भाजपा नरेंद्र मोदी युग में, *"IAS Cadre पोष्ट पर, बगैरे UPSC पास किये, ना-लायक उद्योगपतियों को,"* कंत्राटी बेस पर नियुक्ती दी गयी है. *"जो लोगों का लहु, भांडवलशाही / भ्रष्टाचारी मानसिकता हो, क्या वे लोग देशभक्ती के बीज रो पायेंगे....!!!"* अब तो, सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालिन सरन्यायाधीश शरद बोबडे के पीठ ने भी, *"न्याय व्यवस्था में भी कंत्राटी बेस पर, न्यायाधीश नियुक्ती करने का निर्णय देने की...!"* चर्चा जोरों पर है. पहले भी न्याय व्यवस्था पर, प्रश्नचिह्न लगा करते थे. अब कंत्राटी व्यवस्था आने पर क्या होगा...? यह सुनकर ही, मन सुन्न हो जाता है. वैसे देखा जाएं तो, *"यें ब्राम्हणी समुदायों का प्राचिन इतिहास, यह वफ़ादारी का नही रहा. देश गद्दारी का / अन्याय का - शोषण का रहा है...!"* फिर हम इन बामनी औलादों से, देशभक्ती / न्याय / समानता / सुव्यवस्था / सु-शासन की अपेक्षा, कैसे कर सकते है ? जो लहु ही गंदा है. वह संदर्भ *चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शासन से, हमे मिलता है...!"* सम्राट अशोक का वह *"विशालकाय - विकास - सुशासन - अखंड भारत"* आज तो, *"खंड खंड विभाजित - कुशासन‌ - विकसनशील - अन्याय - शोषण - भ्रष्टाचार भारत"* हो गया है. वह सच्चाई तो हमारे सामने है....!!! और *"भारत विश्व गुरु"* होने की, *"नंगे गुरु"* (?) की खोकलीं बातें, हमे देखा करते है.

      एड.‌ दुबे महाराज द्वारा कहे गये, कुछ अन्य बिंदु - ४. *डॉ. आंबेडकर संविधान सभा में, गांधी / पटेल के कारण जाना...!* ५. *कांस्टीट्युशन ड्राफ्टिंग कमेटी के चेअरमन बनना...!* ६. *संयुक्त बंगाल प्रांत अंतर्गत भूभाग, पाकिस्तान में जाने के कारण, डॉ. आंबेडकर महाराष्ट्र से संविधान सभा में जाना...!* ७. *डॉ. आंबेडकर का 'आजाद भारत के कानुन मंत्री' बनना...!* इस संदर्भ का इतिहास, एड.‌ दुबे महाराज ने, ठिक से पढा हुआ, हमें दिखाई नहीं देता. डॉ आंबेडकर, महाराष्ट्र से आते है.‌ अत: उन्हे *"संविधान सभा"* मे, महाराष्ट्र से चुनकर जाना चाहिये था. परंतु कांग्रेस / सरदार पटेल ने, डॉ आंबेडकर को चुनौती दी कि, *"हम ने डॉ आंबेडकर के, संविधान सभा मे आने के, सारे दरवाजे ही क्या खिडकिया भी, बंद कर रखी है. हम देखते है डॉ आंबेडकर, संविधान सभा में कैसे आते है...?"* इस चुनौती में, एड. दुबे महाराज के सदर कथन का उत्तर, निहित दिखाई देता है. कहते है नां, समझने वालों को इशारा काफ़ी है. फिर संयुक्त बंगाल प्रांत के नमो शुद्र नेता *जोगेंद्रनाथ मंडल* ने, बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को, बंगाल से "संविधान सभा" में भेजने की, चुनौती स्विकार की.‌ और डॉ आंबेडकर, *"बंगाल प्रांत के खुलना / जसौर / बोरीसाल / भाकडगंज क्षेत्र से, "संविधान सभा" मे विजयी हुये...!"* यह बात कांग्रेसी नेताओं कों, कभी हजम नहीं हुयी. और फिर उन्होने १५ अगस्त १९४७ को, *"भारत - पाकिस्तान विभाजन"* में पाकिस्तान को देकर, डॉ. ‌बाबासाहेब आंबेडकर की *"संविधान सभा"* की सदस्यता रद्द की. महत्वपुर्ण बात यह कि, भारत - पाकिस्तान विभाजन के समय - *"५१% हिंदु बहुल लोकसंख्या भुभाग भारत"* का रहेगा. और *"५१% मुस्लिम बहुल भुभाग यह पाकिस्तान"* का रहेगा. यह करार किया गया था. *"डॉ. आंबेडकर के निर्वाचन क्षेत्र भुभाग में, ६०% लोक तो हिंदु बहुल थे...!"* परंतु नेहरू / पटेल / कांग्रेसीयों ने, वह हिंदु बहुल भाग पाकिस्तान देकर, अपने निच कमीनेपन का परिचय दिया. जो अब वो, इतिहास बन चुका है.

     बंगाल के नमो शुद्र नेता *जोगेंद्रनाथ मंडल जी* के सुपुत्र, *जगदीशचंद्र मंडल जी* वे तिन चार साल पहले, नागपुर आयें थें. तब जगदीशचंद्र जी, हमारे अच्छे करीबी *डॉ. संजय गजभिये* इनके साथ, मेरे (डॉ. मिलिन्द जीवने) घर / आॅफिस आये थे.‌ तब हम लोगों की, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर / जोगेन्द्रनाथ मंडल / बंगाल की राजनीति इस विषय पर, बहुत अच्छी चर्चा चली.‌ वही डॉ. बाबासाहेब ने भारत - पाकिस्तान विघटन संदर्भ में, जोगेन्द्रनाथ मंडल को एक गोपनीय पत्र भेजा.‌ वह पत्र अभी उपलब्ध है. उधर *जोगेंद्रनाथ मंडल जी* पाकिस्तान के, *"पहिले कानुन मंत्री"* बन गये.‌ इस विषय पर, फिर कभी अलग से, मै एक लेख लिखुंगा.‌ अभी हम इंग्लैंड में हुयी, *"पहिली गोलमेज परिषद"* (नवंबर १९३० से जानेवारी १९३१), *"दुसरी गोलमेज परिषद"* (सितंबर १९३१ से दिसंबर १९३१), तथा *"तिसरी गोलमेज परिषद"* (नवंबर १९३२ से दिसंबर १९३२) इस परिषद में, *"डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर"* ने, अपने बुध्दीमत्ता का अच्छा परिचय, अंग्रेज़ी शासन को करवाया था.‌ हमें यह कालखंड भी समझना होगा...? *"डॉ. आंबेडकर बंगाल प्रांत से, जुलै १९४६ को संविधान सभा पर चुने जाते है...!"* भारत - पाकिस्तान विभाजन में, *"डॉ. आंबेडकर का हिंदु बहुल मतदार संघ,"* पाकिस्तान देने का नेहरू / पटेल / कांग्रेस राजनीति करते है. फिर कांग्रेस की क्या मजबुरी हुयी की, उन्होनें *'डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को जुलै १९४७ को, मुंबई प्रांत से "संविधान सभा" में, बिन विरोध चुनकर लाया...?"*

     *"१५ अगस्त १९४७ को"* भारत आजाद होना तय था.‌ परंतु भारत को वह आजादी देते समय - *"हिंदु  / मुस्लिम / अस्पृश्य"* इन तिनो ही वर्गों के अधिकारों का, वहां संदर्भ था.‌ मोहनदास गांधी, ये हिंदु के नेता थे. ‌बैरिस्टर जिना, ये मुस्लिम समुह के नेता थे. और डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, ये अस्पृश्य के नेता थे. *बैरिस्टर जिना* ने, मुस्लिमों के लिए, अलग से *"पाकिस्तान "* ले लिया.‌ अब भारत में, *"अस्पृश्यो के अधिकार "* का, अहं प्रश्न खड़ा रहा. ‌अंग्रेजी शासन ने, कांग्रेस को कह दिया था कि, *"अगर डॉ.‌ बाबासाहेब आंबेडकर को, संविधान सभा / मंत्रीमंडल में जगह नही मिली तो, उन्हे इस पर सोचना होगा...?"* अंग्रेजों के इस आग्रही भुमीका के कारण, गांधी / नेहरू / पटेल / कांग्रेसी इनके पैरों तले जमिन, पुर्णत: खिसक गयी...! *और उन्हे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को, संविधान सभा में मुंबई प्रांत से, चुनकर लाना पडा...!"* वही बैरिस्टर जयकर भी, कांग्रेस से नाराज चल रहे थे.‌ और उन्होनें संविधान सभा से, वे अपनी सदस्यता का इस्तिफा दे गये थे. इसके साथ ही अंग्रेजों ने *"द्वितिय महायुध्द"* में, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के मदत को भुलें नही थे.‌ डॉ. आंबेडकर ने उस महायुध्द में, ब्रिटिशों का साथ देते हुये कहा कि, *"ब्रिटीशों का शासन जाने के बाद, अगर भारत पर जापान या जर्मनी शासन आ गया तो, भारत के सभी लोगों का जीवन पशुतुल्य हो जाएगा.‌ ब्रिटीशों ने भारत पर अन्याय किया है, परंतु भारतीयों को उसके विरोध में आवाज उठाने का, बोलने का संवैधानिक अधिकार है.‌ परंतु जापान या जर्मनी के हुकुमशाही में, उस आजादी का स्वाद आप नही ले पायेंगे....!"* (कोकीनाडा, मद्रास प्रांत दि.‌ २६ सितंबर १९४४ - BAWS Vol. 18) महत्व‌पुर्ण विषय यह कि, कांग्रेस ने *"द्वितिय महायुद्ध"* में, अंग्रेजों को मदत करने से मना किया था. परंतु बाबासाहेब डॉ. ‌आंबेडकर के उस भुमीका के कारण, कांग्रेस भी ब्रिटीशों का मदत करने राजी हो गयी.

       भारत को १५ अगस्त १९४७ को आजादी देते समय, अंग्रेजों ने *"हिंदु / मुस्लिम / अस्पृश्य"* इन तिन समुदायों का संदर्भ ही, *"मागासवर्गीय आरक्षण"* का, अहं केंद्र बिंदु रहा है. क्यौं कि, अस्पृश्य समादायों के महानायक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी ने, *"मुस्लिम समुदायों की तरह ,अलग पाकिस्तान, समान अपने अलग दलितस्थान / बौध्दस्थान (वतन) की मांग नही की थी...!"* इस लिये तत्कालिन कांग्रेस नेताओं की, वह औकात नही थी की, वे मागासवर्गीय आरक्षण का विरोध करे.‌ *"पुना करार"* भी, उसी की एक कडी है.‌ *मोहनदास गांधी जी* को, जीवन दान देनेवाले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ही है. डॉ. आंबेडकर जी को, *"भारतीय संविधान - ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन बनाना, वह उनकी मजबुरी थी....!"* इससे स्पष्ट सिध्द होता है कि, *"अस्पृश्य / अनुसुचित जाती / अनुसुचित जनजाती समुह के लोग, हिंदु नही है...!"* इन जाती / जनजाती समुह वर्ग की, अलग से *"अनुसुची (शेड्यूल्ड),"* अंग्रेज काल में ही बनायी गया थी. परंतु भारत को आजादी मिलने के पश्चात, *"हिंदु कोड बिल"* के इश्यु पर, डॉ. आंबेडकर जी ने केंद्रिय मंत्री पद का इस्तिफा दिया. ‌८. *"हिंदु कोड बिल"  भी, डॉ. ‌बाबासाहेब आंबेडकर जी के इज्जत का, अहं विषय था...!"* परंतु दुबे महाराज, "हिंदु कोड बिल" पर सरदार पटेल को, अहमियत देते है.‌ जब कि, वे भी जवाहरलाल नेहरू के समान, उस बील के, कट्टर विरोधी रहे थे. इस विषय पर, मै अलग से फिर कभी, एक लेख लिखुंगा.‌ महत्वपुर्ण विषय यह कि, *"आजादी के बाद भारत से, "गोरे अंग्रेज" तो चले गये. ‌परंतु उनसे भी जहरीले, ये "काले अंग्रेज" सत्ताधीश बन गये...!"*  और मागासवर्गीय समुदाय, आज भी अपने अधिकारों का, संघर्ष कर रहा है...!!!

       अभी एड.‌ दुबे महाराज के कहे गये, केंद्र बिंदु - अस्पृश्यता तथा संविधान कें विभिन्न कलमोंं पर, हम चर्चा करेंगे....! ९. *अस्पृश्यता निवारण में, डॉ. आंबेडकर ने कुछ नया नहीं किया....!* अस्पृश्यता निवारण करने के संदर्भ मे, *RSS के हेडगेवार / देवरस* भी, वह विषय अहं समजते है. इस लिये संघ मे, *"सरनेम"* को कोई जगह नही है. *मोहनदास गांधी / सरदार पटेल / विवेकानंद / स्वामी दयानन्द सरस्वती* इनके कार्यों का, एड.‌ दुबे महाराज ने बकुबी से जिक्र किया है. अगर संघ ने "अस्पृश्यता" को अहं महत्व दिया हो तो, और "सरनेम" हटाया हो तो, *"RSS के सरसंघचालक इस पद पर, किसी मागासवर्गीय व्यक्ती की नियुक्ती क्यौ नही हुयी...?"* विभिन्न मंदिरों के *"शंकराचार्य"* पदो पर, मागासवर्गीय व्यक्ती क्यौ नही बैठ पाया...? भारत की लोकसंख्या अनुपात में, सभी न्यायालयों में *"विभिन्न जाती के न्यायाधीश,"* नियुक्ती की क्या...? विभिन्न राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ती / मौकों के पदों पर, जाती लोकसंख्या अनुपात में नियुक्ती क्यौं नही की जाती...??? अब रही बात, *स्वामी विवेकानंद जी* की...! उन्हे दिनांक १८ सितंबर १८९३ को, शिकागो (अमरीका) में हुयी, *"Parliament of Religions"* में, निमंत्रण था क्या...? उन्हे अपने साथ अमेरीका ले जाने वाले / अपने भाषण के पांच मिनिट देनेवाले, बौध्द विद्वान *"अनागरिक धम्मपाल"* की जानकारी, आप को है या नहीं...? विवेकानंद को, भारत से हिंदु धर्म का प्रतिनिधी का पत्र, क्यौं नही दिया गया...? विवेकानंद ने शिकागो में, क्या भाषण दिया...? *"भारत से बामनी धर्म को, पुरा कुचल डालो."* - विवेकानंद जी ऐसे क्यौं बोले...? अब रही बात, *स्वामी दयानंद सरस्वती जी* की. उन्होने *"हिंदु "* इस शब्द का, कडा विरोध करने का, वह कारण क्या था...? *मोहनदास गांधी* के अस्पृश्यता निवारण पर, डॉ. आंबेडकर जी ने, बहुत कुछ लिखा है. इस लिए मुझे अलग से लिखने की, कोई आवश्यकता नहीं है. *सरदार वल्लभभाई पटेल* के विचारों का, उपरी पैरां में, पहले ही जिक्र किया गया है...!

        एड.‌ दुबे महाराज ने कहे, *"भारतीय संविधान "* के विभिन्न आर्टिकल पर - केंद्र बिंदु १०. *भारतीय संविधान की धारा ७ / १६ / ३० / ४९ / ३३८ / ३५४ / ३७० इस संदर्भ में...!*  इस विषयों पर लिखा जाएं तो, यह लेख और बहोत लंबा हो जाएगा. अत: इस विषय पर, मै फिर कभी अलग से लिखाण करुंगा.‌ दुबे महाराज ने हमारे बारे में, इतना सारा बोल दिया है. अभी थोडा उनके बारे में भी, कुछ लिखना होगा.‌ *"क्या बामनी वर्ग समुह का DNA, भारतीय है...?"* अगर‌ वे विदेशी हो तो, वे भारत के सत्ताधीश, कैसै रह सकते है....? सर्वोच्च पदों पर, वे क्यौं बैठे है...? इस पर भी, थोडी सी चर्चा हो जाएं...!!! * *मनुस्मृती....!* (श्लोक न.‌ २४) / * *बाल गंगाधर तिलक* (वैदिक आर्यों का मुलस्थान  /  भारत वर्ष का इतिहास) / * *मोहनदास गांधी* (२७ दिसंबर १९२४ का भाषण) / * *पंडित जवाहरलाल नेहरू* (इंदिरा को लिखे पत्र) / * *लाला लजपतराय* (भारत वर्ष का इतिहास) /  * *पंडित श्यामबिहारी मिश्रा एवं सुखदेव बिहारी मिश्रा* (भारत वर्ष का इतिहास) / * *पंडित जनार्धन भट* (माधुरी मासिक १९२५ - भारतीय पुरातत्व की नयी खोज) / * *पंडित गंगाप्रसाद* (जाति भेदी) / * *सुख सनपात्री भंडारी* (रविंद्र दर्शन) / * *नागेंद्रनाथ बसु* (भारतीय लिपीतत्व) / * *रमेश चंद्र दत्त* (प्राचिन भारत वर्ष की सभ्यता का इतिहास, भाग १) / * *आचार्य महावीर द्विवेदी* (हिंदी भाषा की उत्पत्ती) / * *बाबु श्यामसुंदर* (हिंदी भाषेचा विकास) / * *पंडित लक्ष्मीनारायण गर्दे* (हिंदुत्व) / * *पंडित जगन्नाथ पांचोली* (आर्यों का आदिम निवास) / * *राय बहादुर चिंतामणी विनायक वैद्द* (महाभारत मिमांसा) / * *स्वामी सत्यदेव परिभ्राजक* (जाति शिक्षा) / * *रामानंद चटर्जी* (२९ वे अखिल भारतीय हिंदु संमेलन का भाषण) / * *आचार्य प्रफुल चंद्र राय* (२९ नवंबर १९२६ का "आज" में छपा लेख) / * *देशभक्त मासिक* (२९ फरवरी १९२४ का संपादकीय लेख) / * *योगशचंद्र पाल* (प्रेम का वृंदावन‌ १९२७ का लेख) / * *काका कालेलकर* (पिछडा वर्ग रिपोर्ट) / * *पा. वा. काणे* (धर्मशास्त्राचा इतिहास) / * *राधाकृष्ण मुखर्जी* (हिंदु सभ्यता) / * *धर्मानंद कोसंबी* (प्राचिन भारत की संस्कृति एवं सभ्यता) / * *राहुल सांस्कृत्यायन* (वोल्गा से गंगा) / * *प्रताप जोशी* (ग्रिक ओरीजन्स आफ कोकनस्थ चित्पावन) / * *ना. गो.‌ चाफेकर* (चित्पावन) / * *वि. का.‌ राजवाडे*  (ब्राम्हण विदेशी है) / * *स्वामी दयानंद सरस्वती* (सत्यप्रकाश) / * *टाईम्स आफ इंडिया २००१ का DNA Report* / * *ऋगवेद* (ब्राम्हण विदेशी है) / * *आर्यो का मुल वस्तीस्थान - उत्तर धृव* (आर्टिक्ट होम इन द वेदाज) / * *पंडित जवाहरलाल नेहरू* (डिस्कव्हरी आफ इंडिया) - हम ब्राम्हण लोग, मध्य एशिया से भारत आये है....!!! इन संदर्भों ग्रंथो से, आप बामन लोगों को, अपने मुल वतन के बारे में, क्यां कहना है...???? यह भी थोडा, विस्तार से बताओ...!

      अब हम *"RSS"* (Royal Secret Service - Original Name), जो बाद में *"राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ "* इस नाम से, पहचाने जा रहा है. यह RSS मुलत: *"लाल झेंडे"* के प्रभाव से, *"सन १९२५"* में स्थापित हुआ एक संघटन है. और उनका आदर्श *"जर्मनी का हुकुमशहा - अडॉल्फ हिटलर"* दिखाई देता है. वही हिटलर समान और एक हुकुमशहा, जो *"इटली का - बेनिटो मुसोलिनी"* था.‌ वही जापान में *"झारशाही"* थी.‌ अर्थात जर्मनी / इटली / जापान यह प्रभावी देश तो, *"लोकशाही / प्रजातंत्र"* विरोधी देश थे.‌ *"ब्रिटिश - अंग्रेजो"* का, भारत पर शासन जरूर था. परंतु यहां बोलने की / चलने की / आंदोलन करने की, पुरी तरह हमें आजादी थी. *"RSS अर्थात Royal Secret Service"* इस नाम से, *केशव हेडगेवार* ने संघटन बनाने का उद्देश, यह संशोधन का विषय है. *'अर्थात क्या वह संघटन, ब्रिटीशों की - अंग्रेजों की Royal Secret Service (RSS) संबधित तो नही थी...?"* यह प्रश्न है.‌ क्यौ कि, वे समुह लोग *"भारत आजादी आंदोलन"* से काफी दुर थे. इस से संबधित और एक विषय, वह चर्चा का केंद्रबिंदु दिखाई देता है.

     राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्थापक *केशव हेडगेवार* इनके *"वंशावली"* पर, आज कल मिडिया में, जोरों से चर्चा होते हुयें, हमें दिखाई देती है. वहां चर्चा का विषय इस प्रकार है. *केशव हेडगेवार* इनके मां का नाम - *"थुसु रहमान बाई."* पिता का नाम - *"मुबारक अली."* मुबारक अली के मृत्यु के बाद, केशव हेडगेवार के मां ने *"बळीराम हेडगेवार "* से, दुसरी शादी की. बळीराम हेडगेवार के पिता, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) के *"जमिल मोहम्मद अली"* कहें जाते है. *"सन १८५७ के आजादी का उठाव"* के बाद, जमिल मोहम्मद इन्होने *"यवतमाल"* (महाराष्ट्र) में शरण ली. और नाम बदलकर *"गंगाधर हेडगेवार"* इस नाम से, परीचय देने की बात कही जाती है. वही पहरावा भी उन्होनें बामनी पहनकर, वे नागपूर आ गये.‌ और नागपुर में, *बळीराम हेडगेवार* ये आचारी (खाना बनाने वाला) का काम करने लगा.‌ नागपुर में हुये *"कांग्रेस अधिवेशन"* में, खाना बनाने का काम, *बळीराम हेडगेवार* इनको मिलने की चर्चा होती है..‌.! वह इतिहास हम थोडा बाजु में रखते है.‌ *बळीराम हेडगेवार* इनको पांच औरते होने की चर्चा है.‌ उन पांच औरतें के नाम तथा बच्चों का (?) विवरण - १. रेवती (काशीबाई / मालती - दो लडकियां) २. *थुसु रहमान बाई* (पहिला पती मुबारक अली से *केशव हेडगेवार*- RSS संस्थापक) ३. मंजिरी ( स्वातंत्रवीर (?) *विनायक सावरकर* लडका) ४. हरणाबाई ( *माधव गोळवलकर* - लडका - RSS सरसंघचालक) ५. मुस्लिम नोकरानी ( *महम्मद अली जिना*  लडका - जो पाकिस्तान का निर्माता / प्रधानमन्त्री बना) यह चर्चा हमें मिडिया में, अकसर पढने में मिलती है.‌ *"केशव हेडगेवार / माधव गोलवलकर / स्वातंत्रवीर (?) विनायक दामोदर सावरकर / बैरिस्टर मोहम्मद अली जिना* इनका आपस ने, भाईयों का रिस्ता है, या यह अफवाहें है...? बामनी समुह यह, विशेषत: गोरे दिखाई देता है, इस का वैद्दकिय कारण क्या है..? क्या माजी सरन्यायाधीश *शरद बोबडे या दुबे महाराज,* इस विषय पर देश को, सच्चाई से अवगत करेंगे....!!!

     अब हम संपादक *सुजीत नायर* ने, मा. सर्वोच्च न्यायालय के नामांकित वरिष्ठ वकिल *प्रशांत भुषण* इनकी, *"The Legacy of Justice Bobade"* इस मुलाखत पर चर्चा करेंगे. उस मुलाखत में मा. सर्वोच्च न्यायालय के, *"कुछ विवादित जजमेंट तथा भुतपुर्व सरन्यायाधीशों के कामों की प्रामाणिकता"* पर, कुछ सवाल उठाये गये है. उस में माजी सरन्यायाधीश *रंजन‌ गोगाई / शरद बोबडे* इनके नाम, दिखाई देते है.‌ वही तत्कालिन सरन्यायाधीश रंजन गोगाई इनके पीठ में न्या. शरद बोबडे थे, जिन्होने *"अयोध्या रामजन्मभूमी (?) / बाबरी मस्जिद (?) / बौध्द‌ कालीन साकेत नगरी"* इस केस में, *"बौध्द साकेत नगरी याचिका"* वैसे ही प्रलंबीत रखते हुये, *"रामायण"* इस महाकाव्य / रचना के आधार पर, *कोई वैज्ञानिक प्रायमा फेसी को संज्ञान न देखकर*, जो निर्णय दिया है.‌ यह भारतीय इतिहास में, *"सबसे बिन-अकल / भावनिक आधार पर,"* दिया गया न्यायालय निर्णय माना जायेगा. *"क्या हमारी सर्वोच्च न्यायालय, ग्यारह न्यायाधीश बेंच के सामने, वह रिव्यू याचिका स्वयं ही संज्ञान होकर, डालते हुये अपने किये गलती का, नया सुधार करेगी...?"* इस अहं सवाल का जबाब, समस्त विश्व के विचारविदों का है. क्यौं कि, उस जजमेंट मे हमे, कोई मेरिट दिखाई नहीं देता. और भारतीय न्यायालयों प्रती समस्त विश्व के विचारविद, संशय की नजरों में देखते है. इस मुलाखत का संदर्भ, यहां देने का प्रयोजन यह कि, *शरद बोबडे* समान लोक जो *"सर्वोच्च पदों"* पर बैठते है, वे केवल *"ब्राम्हण "* इस जाति के आधार पर...!!! नहीं तो, वो लोग बाबु इस पद पर, बैठने के काबिल भी होंगे...? यह बडा प्रश्न है.‌ वही हमे भी, वह एक अवसर देकर देखो, *"हम भी बता ही देंगे समस्त दुनिया को, हमारा सर्वोच्च मेरीट...!!!"*

    अंत में, अभी अभी *"कोरोना संक्रमण / कोविड - १९"* इस संदर्भ में, मा.‌सर्वोच्च न्यायालय तथा देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों के जजमेंट पढकर, *"न्यायालय जिवित होने की, मुझे अनुभूति हो रही है.‌..!"* अच्छा लग रहा है.‌ न्यायालय के शक्ती का आभास हो रहा है. इसके साथ ही, *"कोरोना संक्रमण / कोविड - १९, क्या वह एक बडा आंतरराष्ट्रिय षडयंत्र है...? तथा भारत सरकार / WHO के कुछ विवादीत सर्कुलर पर, रिपोर्ट के आधार पर, याचिका को लेकर जल्द सुनवायी होने की, मेरी अपेक्षा है..!"* इसी विषय संदर्भ में, मैने दिनांक २३अक्तूबर २०२० को, *"मा.‌ उच्च न्यायालय, नागपुर खंडपीठ"* में, एक याचिका दाखल की है. जो अभी भी प्रलंबीत है. मेरी ओर से, मेरे अच्छे मित्र *एड. डॉ.‌ मोहन गवई / एड. संदिप ताटके* इनका वकालतनामा, सादर किया गया है. हमारा *"भारतीय संविधान"* यह सर्वोच्च न्यायालय को, *"Watch Dog"* के रूप में देखता है.‌ भारत आजाद होकर, *"बहात्तर साल"* गुजर चुके है.‌ फिर भी हमारे देश में, *"भारतीय - भारतीयत्व भावना / चेतना"* का, पुर्णत: अभाव है.‌ आज तक हमारी किसी सरकार ने, *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* का निर्माण नही किया. ‌ना ही बजेट में, कोई भी प्रावधान....! हमारी मा. सर्वोच्च न्यायालय, *"इस विषय को संज्ञान लेकर, उचित ऐसा न्याय करेंगी...!!!"* इसी प्रामाणिक अपेक्षा के साथ, मै अपने लिखाण को, अभी विराम देता हुं...!!!!


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर - १७

        ( भारत राष्ट्रवाद समर्थक )

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न.‌ ९३७०९८४१३८ / ९२२५२२६९२२


* *जन हित में / देश हित में यह लेख, सभी को प्रकाशित करने की, सभी को पुरी आजादी है...!*

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