Thursday 15 October 2020

 🐒 *दीक्षाभूमी नागपुर में धम्म दीक्षा दिन - १४ अक्तुबर २०२० को, सभी के सभी गेट पोलिसी छाया में बंद...! भारी जनसागर ने दादासाहेब गायकवाड पुतले के पास इकठ्ठा होकर, शांतीपुर्वक बाबासाहेब को अभिवादन किया...!! समिती में ना-लायक / बिन-अकल पदाधिकारी हो तो, क्या कहें...?*

(अब तो समितीवालो / मंत्रीगण / प्रशासनवालो शरम करो. चुल्लु भर पाणी में डुब मरो...!!!)

   * *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न.‌९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२


       दिनांक १४ अक्तुबर २०२०.‌ भारतीय बौद्ध इतिहास में, दीक्षाभूमी स्मारक समिती के कु-हरकतों का, वह *"निषेध दिन"* (?) भी कहलाया जाएगा. *हमारे दादाजी ने किसी रिपब्लिकन नेता (मनमानी करनेवाले) के मरने पर, अच्छा हुआ वो कुत्ता मर गया, यह अपनी दु:खद वेदना प्रकट की थी...!* वही *"दादाजी वेदना,"* स्मारक  समिती के किसी भी पदाधिकारी के, संदर्भ में ना हो, इस मंगल भावना की, मै आशा करता हुं. क्यौं कि, मरणोपरांत सब कुछ यहीं तो छुट जाता है...! *"वास्तविकता: वह धम्म दीक्षा दिन - १४ अक्तुबर १९५६ के ऐतिहासिक क्षणों की, हर पल याद दिलाता है."* और उस दिन प. पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक समिती नागपुर द्वारा, दीक्षाभूमी स्मारक के समस्त प्रवेश द्वार एवं अंतर्गत द्वार बंद कर दिये थे. *"स्मारक पर एवं अंदरी भाग में, उस दिन ना कोई रोशनाई थी, ना ही कोई झगमगाहट थी, ना ही भारी उजाला था. बस, केवल सन्नाटा ही सन्नाटा था...!!!"* नागपुर के बौध्द समुदाय को, स्मारक समिती के प्रती कोई लेना देना नहीं है. *"बस, दीक्षाभूमी यह केवल हमारे अंतर्मन की, एक महत प्रेरणा है...!"* इस लिये, स्मारक समिती ने दीक्षाभूमी प्रवेश द्वार / अंतर्द्वार बंद करने से, पोलिस के झुंड को परिसर के आसपास लगाने से, कोई फरक नहीं पडा. *नागपुर के भाविक बौध्द समुदाय नें, अण्णाभाऊ साठे चौक परिसर स्थित दादासाहेब गायकवाड इनके पुतले के पास, इकठ्ठा होकर दुर से ही सही / शांतीपुर्वक डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर इनको अभिवादन किया.* वहां बैठने की कोई व्यवस्था ना होने पर भी, रोड पर ही बौध्द समुदाय, आधे - एक घंटे खडे खडे रूक रहे. किसी मंगल-मन भाव भाविकों ने, वहां खीर दान की - चायपान की - नास्ते की, मुफ्त व्यवस्था की थी. हमारी *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* की टीम भी, हर साल की तरह उस शाम के समय, दीक्षाभूमी पर गयी थी. एक घंटे के आस पास वहां रुकी रही. खीर का सेवन किया‌. उपस्थित जनसागर के सामने, हमारी टीम नें *"बौध्द वंदना"* ली. कुछ लोगों से मेल मिलाप हुआ. अच्छी चर्चा भी हुयी. कोरोना संक्रमण की वहां, कोई *"डर छाया"* भी नहीं थी. *"बस, वहां केवल शांती थी. मन की पावन आस्था थी...!"* पश्चात हम निकल पडे, अपने घर की ओर...!!!

     वैसा देखे जाएं तो, दीक्षाभूमी अंदरी क्षेत्र में, धम्म दीक्षा दिन हो या, धम्म प्रवर्तन दिन हो, हमें आज तक किसी भी *"शासन पोलिस"* की, कभी आवश्यकता ही नहीं पडी. हमारे *"समता सैनिक दल"* के भीम सैनिक ही, अंदरुनी भाग में अच्छी व्यवस्था निभाते आये है. और वे अच्छी व्यवस्था निभानें में, बहुत सक्षम भी है. तो फिर हमें, *"खाकी चड्डी"* की क्या जरूरत...? चाहे हमारे *"समता सैनिक दल"* के, कितने भी दल हो - तुकडे हो, उस दिन वे अपने दल भावना से उपर उठकर, अपना दायित्व निभाते आये है. ना कोई वहां किसी लडकी - औरत की, वहां छेड हुयी. ना ही झुंडशाही. बस शांती से, बौध्द समुदाय डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को अभिवादन करने जाता है. जाता रहा है...! *" बस,  अहं सवाल यह है कि, उन समस्त शासन पोलिस दल एवं हमारे "समता सैनिक दल" की  माध्यम से, शांतीपूर्ण तरीके से आवश्यक व्यवस्था करते हुये, अभिवादन करने की अनुमती क्यौं नहीं दी गयी थी...?"* यह सभी व्यवस्था करने के लिये, इच्छाशक्ती की जरूरत है. अपने ही बौध्द समुदाय पर, कोरोना संक्रमण के बहाने, इस तरह का मुर्खतापुर्ण अविश्वास जताना, क्या लाजमी भाव था...??? *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती ने, बौध्द समुदाय को घर से ही पुजा करने की, एक अपिल की थी...! क्या उनके उस अपिल का सन्मान, बौध्द समुदाय ने किया था...?"*  वे लोग दीक्षाभूमी के अंदर तो नहीं आ सके. परंतु बाहर रोड से ही *"बौध्द वंदना"* करते हुये, रोड पर ही आधा - एक घंटा खडे रहकर, अपने घर वे लौट पडे. अगर दीक्षाभूमी के द्वार खुले होते तो, उस परिसर में बैठकर, अपने अंतर्मन को तसल्ली दे पाते.  परंतु *"दीक्षाभूमी स्मारक समिती के पदाधिकारीयों (बुध्दी) को कोरोना होने से, उनकी अकल घास खाने चली गयी...!"* उन स्मारक समिती पदाधिकारीयों से, हमारा *कुत्ता* यह जानवर अच्छा है, वह इंसानियत समजता है.‌ हमारी भाषा सुनता है. जो इंसानियत, इन समिती पदाधिकारीयों में नहीं है...!

      अब हम *"कोरोना संक्रमण या कोविद - १९"* इस विषय संदर्भ में, संशोधनात्मक चर्चा करेंगे.‌ अब हम भारत के पिछले तिनं साल का, *"मॄत्यु दर - Death Rate"* देखेंगे...! सन २०१७ में ७.२१%  / सन २०१८ में ७.२३% / सन २०१९ में ७.२७ अर्थात ७.३% यह *"मॄत्यु दर"* रहा है.‌ और *सन २०२० में, कोरोना संक्रमण अर्थात कोविद - १९ की छाया में, वह "मॄत्यु दर" ७.३०% है....! यह मेरा अपना कथन नहीं तो, भारत सरकार का वह रिपोर्ट कहता है...!* अब महत्त्वपुर्ण सवाल यह है कि, *"कोरोना संक्रमण / कोविड - १९ इस बिमारी से, मरने का सही "मॄत्यु दर" (Death Rate) क्या है...???"* वही Indian Council Of Medical Research (ICMR) यह भारत सरकार का अधिकॄत आरोग्य संस्थान कहता है कि, *"हॉस्पिटल में, जो भी आदमी मरता हो तो, उसे कोविद - १९ बता दो...!"* बात इतनी ही नहीं है, तो ICMR ने Autopsy या Biopsy यह मेडिकल टेस्टींग करने की, कोई जरूरत ही नहीं समझी...!!! अब अहं सवाल यह है कि, कोरोना संक्रमण या कोविद - १९ का *"अधिकॄत निदान परिक्षण"* किसे माने...? और क्यौं माने...? वही मास्क की अनिवार्यता पर भी, बहुत बडे प्रश्न चिन्ह लगे है. चाहे वह मास्क N95 भी क्यौं ना हो...? *क्यौं कि, व्हायरस का आकार तो, N95 मास्क के छेद से भी छोटा होता है.* तो फिर, हमारे द्वारा उपयुक्त मास्क की, अनिवार्यता क्या है...??? 

      मैंने *"प.पु. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (दीक्षाभूमी) स्मारक समिती नागपुर के विरुद्ध मेरी (डॉ. मिलिन्द जीवने) मा. उच्च न्यायालय में दायर याचिका क्रं - WP. (ST)  No. 9691/2020 में, धम्म दीक्षा दिन - १४ अक्तुबर एवं धम्म चक्र प्रवर्तन दिन - २४ / २५ / २६ अक्तुबर २०२० को, दीक्षाभूमी पर सभी बाहरी / अंदरुनी दरवाजे खोलने की मांग की थी...!"*  यहीं नहीं मेरी उस याचिका में, वे सभी कथित *"कोरोना संक्रमण संदर्भ रिपोर्ट"* सादर किये थे. और *"कोर्ट कमिशनर"* नियुक्त करते हुयें, सही जांच की मांग की थी. इसी कारणवश मैनें मेरी याचिका में, *विभागीय आयुक्त / जिलाधिकारी / मनपा आयुक्त / पोलिस आयुक्त* इन्हे पार्टी बनाते हुयें, भारतीय संविधान की धारा २२६ / २२७ अंतर्गत याचिका दाखल की थी. *परंतु उच्च न्यायालय नागपुर खंडपीठ के न्यायमूर्ती रवी देशपांडे / पुष्पा गणोडीवाला* इन्होने केवल "दीक्षाभूमी स्मारक समिती" यह खाजगी संस्थान है. और संविधान की धारा २२६ / २२७ अंतर्गत आदेश पारित करने से मना करते हुये, मेरी वह याचिका डिसमिस की. *"परंतु कोर्ट कमिशनर नियुक्ती एवं सरकारी प्रतिनिधी के पक्ष संदर्भ में, उस आदेश में कोई जिक्र ही नहीं है...!"* वही मेरी याचिका में उल्लेखित सरकारी अधिकारी, यह *"दीक्षाभूमी समारोह आयोजन समिती के सदस्य"* रहते है. सदर मा. उच्च न्यायालय के निर्णय / आदेश में, उन दो संदर्भ का जिक्र ना होने से, *"क्या मा. उच्च न्यायालय का वह जजमेंट, मेरिट पर खरा माना जा सकता है...?"* भारत में मागास वर्ग आरक्षण संदर्भ में, मेरीट की भाषा कही जाती है.‌ मा सर्वोच्च न्यायालय ने *"अयोध्या रामजन्म भुमी केस"* में, कुछ भी प्रायमा फेसी ना होकर भी, अयोध्या के बाजु में निर्णय दिया. *भारत की ऐतिहासिक प्रायमा फेसी तो, चक्रवर्ती सम्राट अशोक के शिलालेख है.* अब तो वही मेरिट का सवाल, न्यायालय बैठे न्यायाधीशों को भी लागु होना चाहिए...? एक ओर मा. सर्वोच्च न्यायालय, *"जगन्नाथ रथयात्रा"* के आयोजन को अपनी स्विकॄती दे रहा है. क्या *"जगन्नाथ रथयात्रा हो या, अयोध्या रामजन्म भुमी शिलाण्यास"* कार्यक्रम हो, क्या वे सरकारी या सरकारी अधिकारी द्वारा आयोजित कार्यक्रम थे. *"वहा खाजगी ट्रस्ट होने का सवाल नहीं उठा. परंतु दीक्षाभूमी संदर्भ में, खाजगी ट्रस्ट होने का सवाल उठा. जब कि मेरी याचिका में, वह जगन्नाथ रथयात्रा का सायटेशन लिखित रूप में दिया गया था...!!!"* अत: वह निर्णय निश्चित ही, *'भारतीय न्याय व्यवस्था के न्यायाधीशों की प्रामाणिक विश्वहार्यता पर, संदेह निर्माण करता है. और उनके मेरीट पर, सवाल - ए - निशाण है...!!!"*

      धम्म दीक्षा दिन - १४ अक्तुबर २०२० नागपुर को, दीक्षाभूमी के गेट खुले करने के लिये, मैने *"मा. धर्मादाय उपायुक्त, नागपुर"* इनके समक्ष, दिनांक १३ अक्तुबर २०२० को, एक Urgent Hearing याचिका *"बीपीटी नियम ४१-अ अन्वये"* दाखल की.‌ सदर मेरी याचिका पर, संबंधित न्यायाधीश महोदय ने त्वरीत आदेश करने में अपनी असमर्थता जताई. और मेरी याचिका *अर्ज क्र.३२/२०२०* में पंजिबध्द करते हुये, दीक्षाभूमी स्मारक समिती को २० अक्तुबर २०२० को, उनके उत्तर सहित उपस्थित होने का नोटीस जारी किया...!!! मेरी उन दोनो ही केस में, *अॅड. डॉ. मोहन गवई / अॅड. संदिप ताटके* ये दोनो वकिल द्वय, मेरी ओर से पैरवी करनेवाले है. यही नहीं, उनका सहाय्यक *प्रविण मेश्राम* तो, पुरा दिन मेरे साथ रहा. मेरे सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल के पदाधिकारी *प्रा. वंदना जीवने / डॉ. किरण मेश्राम / सुर्यभान शेंडे / ममता वरठे / दिपाली शंभरकर / डॉ. मनिषा घोष / प्रा. वर्षा चहांदे / प्रा. डॉ. नीता मेश्राम / कल्याणी इंदोरकर / वैशाली रामटेके / प्रा. डॉ. ममता मेश्राम / अमिता फुलकर / इंदु मेश्राम / वनिता लांजेवार / डॉ. भारती लांजेवार / डॉ. साधना गेडाम / संध्या रंगारी / शीला घागरगुंडे / वीणा पराते / रमेश वरठे / सुरेश रंगारी / मिलिन्द गाडेकर* आदी पदाधिकारी, मेरे साथ खडे है. जो मेरी बडी शक्ती भी है...!!!

     मुझे बहुत बडी शर्म तो, हमारे मित्र महाराष्ट्र के उर्जा मंत्री एवं नागपुर के पालकमंत्री *डॉ. नितिन राऊत* इनकी, दीक्षाभूमी संदर्भ के भुमिका पर आ रही है. भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री भाजपाई  *नितिन गडकरी* हो या, महाराष्ट्र के मंत्रीद्वय *अमित देशमुख / सुनिल केदार* के प्रती उतनी नहीं. क्यौं कि, वे अन्य मंत्रीगण से दीक्षाभूमी के संदर्भ में, उतना लगाव की हम जादा अपेक्षा भी नहीं कर सकते. अगर मंत्री महाराज -  *डॉ. नितिन राऊत* जी, कोरोना का कोई संदर्भ देते हो तो, *उन्होंने मेरी मा. उच्च न्यायालय में दाखल याचिका,* अच्छे से पढनी चाहिये. जो सार्वजनिक भी हो चुकी है. और उन्हे व्हाट्सअप के माध्यम से, मैने भेजी भी है. *"जगन्नाथ रथयात्रा / अयोध्या रामजन्म भुमी शिलाण्यास / पंढरपूर मंदिर आंदोलन"* आदी कार्यक्रमों में, हजारों का जन समुदाय इकठ्ठा होना, इसे हम क्या कहे...??? भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* की उपस्थिती भी, उस प्रमाण का एक हिस्सा है. वही भारत सरकार के आरोग्य मंत्रालय ने, *"कोरोना से रिकव्हर"* होने का *प्रमाण ८५%* बताया है. वही कोविद रोगी का *प्रमाण १४%* बताया है.‌ अगर भारत सरकार का यह आकडा प्रमाणित हो तो, फिर *"कोविड व्हक्सिन"* की भारत में क्या जरूरत है....? अंत में, वंचित नेता - *अॅड. प्रकाश आंबेडकर* जी, आप का *"पंढरपूर मंदिर मुक्ती का आंदोलन,"* नागपुर के *"पावन दीक्षाभूमी स्मारक मुक्ती"* के लिये, क्यौं नहीं...??? मैं आप को अच्छे से जानता हुं, आंबेडकरी आंदोलन प्रती आप की सजगता...!!! मित्र हो, इस पर कुछ भी लिखने के पहले, मेरी याचिका आप एकबार अच्छे से पढे. जहां मैने वे प्रमाण भी दिये है...!!!


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* *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रीय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९८९०५८६८२२

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