👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, २१ मई २०२५ को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*
* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें एक प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!
* प्रश्न - १ :
* *आपके धर्मग्रंथ में मानव प्रकृति को कैसे परिभाषीत किया गया है ?*
* उत्तर : - सबसे पहले हमें मानव प्रकृति को समझना होगा. वो कैसे बनती है ? वह किस प्रकार की होती है ? धम्मपद के यमक वग्गो की एक गाथा बताना चाहुंगा.
*"मनोपुब्बङ्गमा धम्मा मनोसेट्ठा मनोमया | मनचा से पदुट्ठेन भासति वा करोति वा | ततोनं दुक्खमन्वेति चक्कं व वहतो पदं ||"* (अर्थात :- सभी शारीरीक, वाचिक और मानसिक कर्म पहले मन में उत्पन्न होते है. मन ही मुखिया है. अत: वे मनोमय है. जब व्यक्ति सदोष मन से बोलता है, काम करता है, तो वह कष्ट, दु:ख को उसी प्रकार भोगता है, जैसे बैलगाडी के पहिये बैल के पैरो से पीछे पीछे आते है.)
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मानव प्रकृति भी उसी लक्षण अनुरुप होती है. मानव प्रकृति में वैरता भी होती है. उसी संदर्भ की धम्मपद में गाथा बतायी गयी है.
*"न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (अर्थात :- वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता. अवैर से वैर शान्त होता है. यही संसार का नियम है. यही सनातन धर्म है.) हमें यह समझना होगा की, बुध्द का धर्म ही सनातन धर्म है.
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बुध्द ने मानव प्रकृति का एक नियम बताया है.
*"इदं सति इदं होति, इदं असति इदं न होति |"* (अर्थात :- कारण हो तो कार्य होता है. कारण ना हो तो कार्य नहीं होता.)
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सृष्टी का कोई कर्ता है क्या ? या मानव प्रकृति बनाने का कोई कर्ता है क्या ? यह अहं प्रश्न है. बुध्द कहते हैं -
*"न हेत्थ देवो ब्रम्ह संसारस्य अत्थि कारको | बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुसंभारपच्चया ति ||"* (अर्थात :- बुद्ध ने विश्व का कोई कर्ता नहीं माना. सृष्टी के नियम अनुसार अपने आप सृष्टी चक्र चलते रहता है.)
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बुद्ध ने चार प्रकाल के भौतिक पदार्थ माना है. - पृथ्वी, आप,, तेज, वायु. बुध्द ने आकाश तत्व को नहीं माना. मानवी शरीर भी उसी चार तत्व से बना है. और मृत्यु के बाद उन्ही चार भौतिक तत्व में शरीर मिल जाता है. प्रतित्यसमुत्पाद सिध्दांत भी कार्यकारण नियम का अनुकरण करता है. और मानवी प्रकृति भी उसी का एक भाग है.
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प्रश्न २ :
* *आपके धर्मग्रंथ के अनुसार, एक आदर्श मानवीय जीवन जीने के लिये कौन कौन से प्रयास आवश्यक है ?*
* उत्तर :- हमने पहले प्रश्न में मानव प्रकृति विषय पर चर्चा की है. बुध्द ने वैरता न करने की शिक्षा दी है. वह गाथा है -
*'न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं | अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ||"* (अर्थात :- वैर से वैर कभी शांत नहीं होता. अवैर से वैर शांत होता है. यही संसार का नियम है. यही सनातन धर्म है.)
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बुध्द ने मानव को अपना कार्य स्वयं करने की शिक्षा दी है. वह गाथा भी सुने -
*'तुम्हेहि किच्चं आतप्पं अक्खातारो तथागता | पटिपन्ना पमोक्खन्ति झायिनो मारबंधना ||"* (अर्थात :- कार्य करने के लिये तुम्हे ही उद्योग करना है. तथागत का कार्य केवल मार्ग दिखाना है. उस अनुसार तुम्हे मार्ग पर आरुढ होकर, ध्यानमग्न होकर मार के बन्धनो से मुक्त होना है.) बुद्ध ने देव आहे संकल्पना को नकारा है.
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बुध्द ने तृष्णा की आसक्ती शोक का कारण माना है. बुध्द कहते हैं -
*"तण्हाण्य जायते सोको, तण्हाय जायते भयं | तण्हाय विप्पमंतस्स, नत्थि सोको कुतो भयं ||"* (अर्थात :- तृष्णा के कारण शोक उत्पन्न होता है. भय उत्पन्न होता है. तृष्णा से मुक्त होने पर, शोक नहीं रहेगा. ना भय रहेगा.)
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विसुध्दीमग्ग इस ग्रंथ में मृत्यू का कारण बताया है.
*"नामं च रुपं च इथ अत्थि सच्चतो, न हेत्थो सत्तो मनुजो इव अभिसंखात, दुक्खस्स पुञ्ञो विणकट्ठसदिसो ||"* (अर्थात :- नाम - रुप यह जोडी एकमेक पर आश्रित होती है. जब एक भंग हो जाती है, तब दुसरी भी भंग हो जाती है. और मृत्यु होता है.)
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बुध्द ने चित्त को सर्वोपरी माना है. उस की एक गाथा है.
*'चित्तेन नियतो लोको |"* (, अर्थात :- सृष्टी - संसार ही चित्त की उपज है. इस लिये चित्त ही सर्वोपरी है. इसलिए चित और उस के विशेष गुणों का अभ्यास करना चाहिए.
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बुध्द के धम्म का सारं दो लाईन में हम समझ सकते हैं. वह गाथा है -
*"सब्ब पापस्स अकरणं कुसलस्स उपसम्पदा | सचित्त परियोदपनं एतं बुध्दानं सासनं ||"* (अर्थात :- सभी पापो को न करना, कुशल कर्म करना तथा स्वयं के मन को (चित्त) परिशुध्द करना, यही बुद्ध की शिक्षा है. यही बुद्ध का शासन है.) बुध्दीझम बहुत व्यापक विषय है. फिर भी कम शब्दों में, मैने बताने का प्रयास किया है. भवतु सब्ब मङ्गलं !
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* परिचय : -
* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
(बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)
* मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग
* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब
* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)
* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५
* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)
* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर
* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी
* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर
* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०
* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०
* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन
* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)
* आगामी पुस्तक प्रकाशन :
* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)
* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)
* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)
* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)
* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)
* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*
* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*
* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७
* *२१ में २०२५ में मैं ट्रवल्स होकर भी सदर आंतरधर्मीय सभा में सहभागी हो सका.*
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