🇮🇳 *विश्व के अव्वल पांच देशों में भारत की अर्थव्यवस्था चवथे स्थान पर ?* (विश्व के युवा बेरोजगारी दर / गरिबी रेखा दर / जनसंख्या वृध्दी दर / विदेशी कर्ज बोजा / मुफ्त अनाज वितरण योजना आदी देखे तो विश्व - भारतीय अर्थव्यवस्था का क्या ???)
*डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७
राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल
एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु म.प्र.
मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२
भारत सरकार *"नीति आयोग"* के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) *बी. व्ही. आर. सुब्रह्यण्यम* जी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर, रविवार २५ मई २०२५ को, मैने एक बयाण इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में सुना. सुब्रह्यण्यम जी ने कहा था कि, *"भारत की अर्थव्यवस्था ये विश्व अर्थव्यवस्था के चवथे स्थान पर आ गयी है. और आने वाले दो तिन सालों में, वह तिसरे स्थान पर आने का संदेश भी दे गये. और वह कथन उनका ना होकर, वह वर्ल्ड इकॉनॉमिक आऊटलुक (WEF) तथा आंतरराष्ट्रीय नाणेनिधी (IMF) द्वारा बताना भी वे नहीं भुलें."* उपरीय न्युज सुनकर, मैं बहुत ही सोचं में पड गया. पिछले कुछ माह से, *"विश्व की युवा बेरोजगारी दर / गरिबी रेखा दर / जनसंख्या वृध्दी दर / विदेशी कर्ज बोजा / मुफ्त अनाज वितरण योजना"* आदी विषयों पर, मै अध्ययन कर रहा था. भारतीय अर्थव्यवस्था में *"विश्व की पाचवी अर्थव्यवस्था"* बनने पर, मैने भारत के सद्य आर्थिक स्थिती पर, एक लेख भी लिखा था. *"कौन भारत का देशभक्त नहीं चाहता कि भारत आर्थिक समृध्द बने ?"* परंतु वहां आर्थिक हेरफेर ना होकर, सही अर्थो में, *"भारत विकसित देश"* हो. कुछ दिन पहले ही मेरा मुंबई प्रवास रहा. और ज्यादा एक्सर्शन के कारण, मै ५ - ६ दिन तक *"व्हायरल फिवर"* से ग्रस्त रहा. कुछ ठिक ही हुआ तो, मुझे दो दिन के लिये नयी दिल्ली को जाना पडा. और नयी दिल्ली से वापसी पर, पुनश्च *"व्हायरल फिवर"* ने जखड दिया. अत: यह न्युज सुनकर मन नहीं माना तो, लिखने को मैं बैठ गया.
नीति आयोग के *सुब्रह्यण्यम* ने भारत की अर्थव्यवस्था *"चवथे स्थान पंहुचने के कुछ कारण"* भी बतायें. जैसे - देश अंतर्गत बढती मांग (ग्राहक खर्च / गुंतवणूक वृध्दी) / युवा कार्यक्षम लोगों की बढती संख्या / धोरणात्मक सुधार (कर प्रणाली सुधार / डिजीटायझेशन / पायाभूत सुधार में इन्हेस्टमेंट / मेक इन इंडिया) आदी. साथ साथ ही वे *"जापान की घटती अर्थव्यवस्था"* (?) पर भी बोल गये. *"जागतिक व्यापार में तणाव / जनसंख्या में कमी होना / धोरणात्मक बदलाव"* आदी. हमे *"पांच (५) अव्वल देश के अर्थव्यवस्था"* का वह ग्राफ भी समझना होगा. *"अमेरिका - ३०.५१ ट्रिलियन डॉलर / चायना - १९.२३ ट्रिलियन डॉलर / जर्मनी - ४.७५ ट्रिलियन डॉलर / भारत - ४.१८७ ट्रिलियन डॉलर / जापान - ४.१८६ ट्रिलियन डॉलर."* (स्त्रोत - WEF & IMF) अर्थात USA / संयुक्त राष्ट्र अमेरिका यह *"विश्व शक्ति देश"* है. *"चायना की अर्थव्यवस्था"* भी उसी *"विश्व शक्ति"* बनने की ओर बढ रही है. विशेषतः *"विश्व व्यापार युध्द"* (World Trade War) भी *'अमेरिका × चायना"* बीच ही छेडा हुआ है. हमें यह समझना होगा कि, *"अमेरिकी अर्थव्यवस्था"* भी उतनी मजबूत नहीं है, जितनी *"चायना अर्थव्यवस्था"* मजबुत है. वही चायना हमारा *"राजनैतिक शत्रु"* (विरोधी) भी है. फिर भी भारत चायना से *"व्यापारीक संबंध"* बनाये हुये है. हमारे पडोसी देश *"नेपाल / श्रीलंका / म्यानमार / बांगला देश"* आदी देश चायना से मित्रता बना चुके हैं. और भारत से दुरी हुयी है. चायना *"औद्योगिक क्षेत्र"* मे विकास की ओर है. *"जापान"* की स्थिती भी वही है. वही *"भारत के औद्योगिक विकास पहेलीओं"* (Industrial Growth) को, हम कैसे बयाण करे ??? मेरे स्वयं *विश्व के कुछ देशों के भ्रमण"* ने और अध्ययन ने, मुझे *"उद्द्योग / व्यापार"* आदि की अनुभुती करा दी.
विश्व के देशों पर, कुल *"१०२ ट्रिलियन डॉलर" का कर्ज* बताया जाता है. *"अमेरिका - ३६ ट्रिलियन डॉलर / चायना - १४.६९ ट्रिलियन डॉलर / जापान - १०.७९ ट्रिलियन डॉलर / युनायटेड किंग्डम - ३.४६ ट्रिलियन डॉलर / फ्रांस - ३.३५ ट्रिलियन डॉलर / इटली - ३.१४ ट्रिलियन डॉलर / भारत - ३.०५७ ट्रिलियन डॉलर / जर्मनी - २.९१९ ट्रिलियन डॉलर / कॅनडा - २.२५३ ट्रिलियन डॉलर / ब्राझिल - १.८५३ ट्रिलियन डॉलर. "* भारत का विदेशी ऋण - *६४८.८ बिलियन डॉलर,* यह दिसंबर २०२४ तक बताया जाता है. भारत के बाहरी ऋण का ५४.८% अमेरिकी डॉलर था. भारत सरकार पर कर्ज एक जटील मुद्दा है. तथा जो *"सकल घरेलु उत्पाद"* (GDP) का ५६% बताया जाता है. भारत पर *सन २०१३* में बाह्य ऋण - ४०९.४ बिलियन डॉलर तथा अल्पकालीन ऋण - २०.४ बिलियन डॉलर था. *सन २०१४* में बाह्य ऋण - ४४६.२ बिलियन डॉलर तथा अल्पकालीन ऋण - २०.५ बिलियन डॉलर हो गया. *सन २०१९* में बाह्य ऋण - ५४३.१ बिलियन डॉलर तथा अल्पकालीन ऋण - १९.९ बिलियन डॉलर, *सन २०२४* में बाह्य ऋण - *७६५ / - लाख करोड* बताया जाता है. *सन २०२५* की भारत की *"राजस्व कुल प्राप्ति ३४.९६ लाख करोड"* / अनुमानीत लक्ष ५०.६५ लाख करोड तथा *शुध्द प्राप्ती - २८.३७ लाख करोड* बतायी गयी है. *"कर्ज बढने के प्रमुख कारण* - विकास योजना को लागु करना / राजस्व की कमी / आर्थिक मंदी /अन्य संकट बताये गये है. *"कर्ज से जुडी जोखिम"* - व्याज का भुगतान / अर्थव्यवस्था का प्रभाव / निवेश की कमी होना बताया जाता है. *"अत: भारत सरकार को, कर्ज का बोझ कम करने के लिये, राजस्व को बढाना / खर्च को कम करना यह बहुत जरुरी है."* परंतु नयी दिल्ली की *"नयी संसद भवन का निर्माण"* तथा संसद सदस्य का पेंशन / सॅलरी / सुविधा / विमान खरेदी आदी खर्च प्रश्न कर देते है. *नरेंद्र मोदी* काल में, *"सरकारी कंपनीयां ३०० से घटकर २ दर्जन"* हो जाना / *२२ उद्योगपतीयों का २२ लाख करोड का कर्ज माफ करना* (?) भी, प्रश्न चिन्ह कर जाते है.
दुसरा महत्वपूर्ण विषय *"जनसंख्या वृध्दी"* (Population Control) का है. भारत भौगोलिक दृष्टी से *"विश्व का सातवा देश"* है. जब की *"जनसंख्या के दृष्टी"* से, दुनिया का सबसे बडा देश है. विश्व की जनसंख्या *"८ अरब"* बतायी जाती है. चायना / भारत की जनसंख्या १.४ बिलियन बतायी गयी. तथा सन २०२४ में, भारत की जनसंख्या *"१४५ करोड"* हो गयी है. विश्व के जो सबसे ज्यादा आबादी वाले १० देश है, वे - *"चायना / भारत / अमेरिका / इंडोनेशिया / पाकिस्तान / नायजेरिया / ब्राझिल / बांगला देश / रशिया / मेक्सिको"* यह देश है. विश्व का *"गरिबी दर"* (Poverty Rate) यह ९.२ % है. और उनकी *"प्रतिदिन आय २.१५ डॉलर"* (भारतीय रु. १६५/- साधारणतः) *"विश्व बॅंक"* (World Bank) ने बतायी है. अर्थात विश्व बॅंक उन्हे *"गरिबी रेखा"* (Poverty Line) की ओर निर्धारित करता है. भारत में *सन २०११ - १२* में, ६१.८% लोग *गरीब* बताये गये, जो *सन २०२२ - २३* मे, २८.१% बताया गया है. अगर भारत में *"गरिबी का दर"* सन २०२५ तक उपरोक्त हो तो, भारत के *"१४५ करोड जनसंख्या"* में, सन २०२५ में, *"८१.३५ करोड"* (५६.१०%) लोगों को,*"सार्वजनिक वितरण प्रणाली"* (PDS) अंतर्गत, *"मुफ्त अनाज वितरण"* क्यौं किया जा रहा है ? यह बडा प्रश्न है. अर्थात भारत सरकार *"गरिबी रेखा दर"* (५६.१० % लोगो को मुक्त अनाज देना) यह छुपा रही है, यह सिधे तौर पर दिखाई देता है.
वैसे भारत की बहुत सारी समस्यांएं है. परंतु *"बेरोजगारी"* (Unemployment) समस्या, विषय पर चर्चा करते है. विश्व में भी बेरोजगारी यह एक गंभीर समस्या है. कई देशों का वह प्रमुख आर्थिक और सामाजिक विषय बन चुका है. सन २०२३ में *विश्व बेरोजगारी दर - ४.९६ %* है. International Labour Organization (ILO) के अनुसार, युवा पुरुषों का बेरोजगारी दर - *१३.४%* तथा युवा महिलाओं का दर - *१२.३%* है. विश्व के कुछ देशों में *"बेरोजगारी की स्थिती"* - अमेरिका - ४.१% / चायना - ४.६% / जर्मनी - ३.४% / जापान - २.६ / भारत - ४.२% / युनायटेड किंग्डम - ४.१% / फ्रान्स - ७.४% बतायी गयी है. यहां प्रश्न *"भारत के बेरोजगारी दर - ४.२% "* का है. भारत की बेरोजगारी प्रमाण और ज्यादा हो सकता है. वह छुपाये जाने की हमें आशंका है. *बेरोजगारी के कारण* - आर्थिक मंदी / तर्कनिकी परिवर्तन / कौशल की कमी / शिक्षा तथा प्रशिक्षण की कमी / सामाजिक असमानता यह बताये जाते है. तथा *"बेरोजगारी का प्रभाव"* - आर्थिक प्रभाव / सामाजिक प्रभाव / स्वास्थ प्रभाव हमें दिखाई देते है. अत: *"बेरोजगारी का समाधान"*- आर्थिक विकास / शिक्षा तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था / रोजगार सृजन / बेरोजगारी भत्ता / सामाजिक सुरक्षा हो सकते हैं.
भारत मे *पहलगाम"* (कश्मिर) प्रकरण ने, सेना को *"ऑपरेशन सिंदुर"* करना मजबुर किया. हमे हमारे तिनों दलों के सैनिकों पर नाझ़ है. परंतु भारत में *"पहलगाम समान घटना"* का होना, यह हमारी कमजोरी बयाण करती है. यह शर्मसार घटना है. और उस पर राजनीति हो तो, और खेद का विषय है. *"ऑपरेशन सिंदुर"* ने प्राचिन नागवंश की याद दिलाई. *"कश्मिर यह नागवंशीय प्रदेश था."* तधा सिंदुर का पर्यायी शब्द *"नाग + रंगी > नारंगी / नारिंगी"* है. और वह नाग लोगो की खोज है. *भारत की तीनों सेना के मजबुती के धोरण* पर भी, प्रश्न उठाये जाते रहे है. *"भारत की आर्थिक स्थिती कमजोर क्यौ हुयी ?"* यह भी हमारे सामने प्रश्न है. भारत को *"आजादी"* मिलने के बाद, भारत की हालात बहुत खस्ता रही थी. परंतु भारत एक *"शक्तिशाली देश"* बनकर उभर गया था. आज भारत का उसी *"आर्थिक खस्ताहाली"* की ओर बढना, और दुसरी ओर *"भारत को चवथी विश्व आर्थिक बताना,"* यह परस्पर विरोधी दिशाएं है. इस पर राजनीति ना करते हुये, हमें बैठकर गंभीर चिंतन करना होगा. *"भारत राष्ट्रवाद"* का अभाव भी दिखाई देता है. और *"धर्मांधी राजनीति"* का प्रभावी होना भी, देश के आंतरीक सुरक्षा के लिये, अच्छे लक्षण नहीं है. अत: भारतीय राजनेताओं को इस विषय पर, गंभीर चिंतन करना बहुत जरुरी है. नहीं तो कांग्रेसी पितामह *मोहनदास गांधी* / संघवादी नायक *के सुदर्शन* / प्राचिन विचारविद *भर्तृहरी* इनके शब्दों में, *"भारतीय राजनीति यह वेश्यालय है."* उस शब्दों के अनुसार नेताओं को, *"वेश्या"* की उपमा दी जाना कोई गलत नहीं होगा.
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▪️ *डॉ मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*
नागपूर दिनांक २६ मई २०२५
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