Sunday 24 March 2024

 🇮🇳 *प्रजासत्ताक भारत का उल्लेख हिंदुस्तान (?) (अस्तित्वहिन देश) कहकर हमारे देश‌ की तोहिम करनेवाले कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के पिता का नाम मि. गाढव (राजीव) गांधी कहे तो क्या वह उसे स्वीकार करेगा ?*

     *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी. आर. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु (म. प्र.)

मो. न.‌९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


        भारत के कुछ राजकिय नेता (वैचारिक नेता ?) लोग, *"प्रजासत्ताक भारत"* (Republic India) का उल्लेख, *"हिंदुस्तान"* करते हुये, वे दिखाई देते है. उन नेताओं द्वारा, हमारे देश का *संविधानिक नाम का उल्लेख ना करना,* क्या यह उन नेताओं के *अज्ञानता का प्रतिक* है, या उनके *अ-संस्कारों का फलित ?* यह प्रश्न है. उन नेताओं में एक कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* भी है. हमारे *"भारतीय संविधान"* के आर्टिकल १ अनुसार Name and Territory of Union - *"India, that is Bharat, shall be Union of States."* हमारा भारत देश यह *"एक राज्य"* ना होकर, भारत यह तो *"संघ राज्य"* (Union of States) है. और भारत के सभी राज्य यह *"सार्वभौम"* है. अर्थात वे सभी राज्य, आवाम के प्रति उत्तरदायी भी होते है.‌ जैसे की *"केंद्र सरकार"* भी है. परंतु दिल्ली में बैठी हुयी *"केंद्र सरकारे,"* राज्य के सार्वभौम अधिकारों का, वे हनन करते हुये हम देखते रहे है. फिर तो यहां प्रश्न, *"प्रजातंत्र"* (Democracy) का उठ खडा होता है.‌ केंद्र सरकार के इस *"तानाशाही"* (?) (Dictatorship) प्रवृत्ती को रोकना, क्या यहां जरुरी नहीं है ? यह अहं प्रश्न है. हमारे संविधान निर्माता - *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर* - भारतीय संविधान को जलानेवाला, मैं पहिला व्यक्ती रहुंगा, यह क्यौं कह गये हैं ? इसे भी हमें समझना होगा.

      जब भी हम *"प्रजातंत्र"* (Democracy) इस अहं विषय पर चर्चा करते है, तब संविधान निर्माता *डॉ. बाबासाहेब बी. आर. आंबेडकर* इनके *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) में दिये गये, २६ नवंबर १९४९ के इस अंतिम भाषण को, हमे समझना बहुत जरुरी है. क्या हमारी तमाम सरकारों ने, इस *समस्या की पुर्तता* आज तक की है ? यह भी अहं प्रश्न है. बाबासाहेब आंबेडकर कहते हैं कि, *"We must make our political democracy a social democracy as well. Political democracy cannot last unless there lies at the base of it Social Democracy. What does Social Democracy mean ? It means a way of life which recognises liberty, equality and fraternity as the principle of life. ....... On the 26th January 1950, we are going to enter the life of contradictions. In politics we will have equality and in social and economic life we will have inequality........ We must remove this contradiction at the earliest possible moment or else those who suffer from inequality will blow up the structure of political democracy which is Assembly has to laboriously built up....."* इसके साथ ही बाबासाहेब आंबेडकर इनके और दो संदर्भ बोल देना चाहुंगा.‌ बाबासाहेब कहते हैं कि, *"हमारे इस देश से, एक बार अंग्रेज लोग चले जाएंगे. परंतु तमाम गरिब आवाम का, लहु का शोषण करनेवाला, जलौका समान ये जो पुंजीवादी वर्ग है, वह इस देश से जानेवाला नहीं है."* (सातारा, ६ नवंबर १९३७) भारत के प्रधानमंत्री *नरेंद्र मोदी* तो, *"पुंजीवादी व्यवस्था के नायक"* दिखाई देते है. भारत के सरकारी तमाम संस्थानों का *"निजीकरण"* करना, पुंजीवादी वर्ग को बीना IAS परिक्षा दिये बिना, *IAS cadre के पोस्ट पर नियुक्ती* करना, हुकुमशाही के निर्णय लेना, *"बेरोजगार - किसान - लद्दाख - मणीपुर"* आदी आदी सभी आंदोलन इसके उदाहरण भी है. बाबासाहेब डॉ आंबेडकर इन्होने, आझाद भारत में *"दो राष्ट्र"* होने की बात कही थी.‌ इस संदर्भ में बाबासाहेब कहते हैं कि, *"हमारे देश में दो अलग अलग राष्ट्र का समावेश है. एक सत्ताधारी वर्ग का राष्ट्र और दुसरा जो लोगों पर सत्ता किया जा रहा है, उन लोगो का राष्ट्र. सभी के सभी मागास वर्ग, ये दुसरे राष्ट्र की आवाम है."* (राज्य सभा, नयी दिल्ली, ६ सितंबर १९५४) बाबासाहेब आंबेडकर इनके इस महत्वपूर्ण बोल पर, आज हमे चिंतन करना जरुरी हो गया है.

       जब *"भारत का पुंजीवाद"* इस विषय के अंतर्भाव में जाते है, तब इसका जनक *"कांग्रेस दल"* ही दिखाई देता है. चाहे वो *"भारत का आजादी‌ आंदोलन"* हो या, कांग्रेसी पितामहा *मोहनदास गांधी* का नेतृत्व हो या, जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी / राजीव गांधी / पी.‌ व्ही. नरसिंह राव हो या / डॉ. मनमोहन सिंग हो, उन तमाम कांग्रेसी शासन काल में, पुंजीवाद संस्थानो से उनके संबंध रहे है. परंतु वे पुंजीवादी संस्थानिक केंद्र सरकार पर, कभी भी *“ज्यादा हावी नहीं थे."* परंतु भाजपा दल कहे या संघवाद को, *नरेंद्र मोदी* इनको आगे लाने के पिछे एक *"आर्थिक कारण"* भी दिखाई देता है. नरेंद्र मोदी ने संघवाद के इस कमजोर नस को, बेखुबी से जानकर, अपना व्यापारी दिमाख का इस्तेमाल किया. इस गंभीर विषय पर लिखाण, मैं फिर कभी लिखुंगा. परंतु *नरेंद्र मोदी* ने *"भारत का बडा शहेनशहा"* बनने की ओर, अपनी शतरंज की चाल बिछाई. और इस शतरंज चाल में, कुछ औद्योगिक घराने की साथ भी मिली. और भारतीय आवाम गया *"पुंजीवाद के मकडी जाल में...!"* कांग्रेसी नरसिंह राव इनके कार्यकाल में ही, *"बाबरी मशीद"* (राम जन्मभूमी ?) ढहाई गयी. कांग्रेस सत्ता काल में ही - *वैश्वीकरण / निजीकरण / इव्हीएम मशीन"* का उदय भी हुआ. भाजपा संघवादी सरकार के *नरेंद्र मोदी सरकार"* ने, भारत का पुरा आर्थिक बंट्याधार ही कर डाला.

     ‌‌हिंदी में एक अच्छी कहावत है. *"जो तुम बोओगे, वही तुम पाओंगे."* कांग्रेस ने बहुत से राजनैतिक दलों को तोडा है. *"रिपब्लिकन पार्टी"* में, आज का जो भी बिखराव है, वह तो कांग्रेस की वह देन है.‌ कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष / मागासवर्गीय *सिताराम केसरी* इनको अपमानित कर, सोनिया गांधी के उपस्थिती में, कांग्रेस दल मुख्यालय से, अपमानित कर निकाला गया. उन सारों पापों का फल *"आज की कांग्रेस"* है.‌ और अभी कांग्रेस को उभारने के लिये, मागास समाज के *मल्लिकार्जुन खरगे* इनकी ही आवश्यकता दिखाई देती है. यही बात अभी भाजपा दल हो या, संघवाद हो या, *नरेंद्र मोदी* हो, इन्हे भी समझना जरुरी है. दुसरी बात भी समझना, यह बहुत जरुरी है.  *"हिटलर* हो या *मुसोलिनी* हो, किसी भी तानाशाह का अंत, यह बहुत ही दु:खद रहा है. कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* ने, कांग्रेस दल का वह सभी पुराना, इतिहास समजा होगा. यही कारण है कि, *पुरानी कांग्रेस प्लॅनिंग"* में, राहुल गांधी काल में बदलाव दिखाई देता है. परंतु *राहुल गांधी* इन्होने अभी भी, संपूर्ण *"संविधान संस्कृति"* को, पुर्णतः नहीं समझा होगा. राहुल गांधी पर अभी भी, *"संस्कृति संविधान"* (संविधान संस्कृति ?) हावी  दिखाई देती है‌. राहुल गांधी का *"हिंदुस्तान"* यह शब्द प्रयोग, उसी प्रभाव का द्योतक है. क्या हम राहुल गांधी के पिता का नाम -  *मि. गाढव (राजीव ?) गांधी* पुकार सकते हैं. जैसे राहुल गांधी हमारे देश का नाम - *"हिंदुस्तान"* कहकर, तोहिम कर रहा है.

         अंत में, कांग्रेस सत्ता के *डॉ. मनमोहन सिंग* उनके कार्यकाल की, घटना का उल्लेख कर, मेरे इस लेख का समापन करुंगा. *नयी दिल्ली* में, मैं जब भी जाता हुं, मंत्रालय के कुछ अधिकारी मित्रों से, आंबेडकरी आंदोलन के कुछ बडे नेताओं से, तथा साहित्यकार मित्रों से, मेरी अकसर भेट होती रहती है. मनमोहन सिंग के सत्ता काल में, मैं जब दिल्ली गया था, तब गृह मंत्रालय में कार्यरत, मेरे एक अधिकारी मित्र ने मुझे, गृह मंत्रालय में बुलाया था. और श्याम होने के बाद, वह मित्र मुझे कस्तुरबा गांधी मार्ग पर स्थित, *"ऑफिसर क्लब"* वो मुझे खाना खाने को ले गया. दो महिने बाद, जब मैं नयी दिल्ली गया था, तब *"संघ लोकसेवा आयोग"* (UPSC) में कार्यरत, मेरे एक ब्राह्मण मित्र का भी, मुझे फोन आया. और उसने मुझे UPSC में मिलने के लिये बुलाया था. आकाशवाणी नागपुर में कार्यरत मेरे अधिकारी मित्र - *अमर रामटेके* साथ, मैं उस मित्र से मिलने पहुंच गया. दो - तिन घंटा हमारी देश की स्थिती, डॉ आंबेडकर विचारों पर पर, बडी गहन चर्चा चलती रही. जब हमारी चर्चा *"भारतीय संविधान"* पर चली थी, तब मेरे उस ब्राह्मण मित्र ने मुझे, *"संविधान सभा"* (Constituent Assembly) यह, वहां सें पाच छ: मिनिटं दुरी पर, कस्तुरबा गांधी मार्ग पर होने की बात कही. हमारी चर्चा खत्म होने के बाद,  *"संविधान सभा"* (भारतीय संविधान को अंतिम रुप दिया, वह स्थल) देखने को, मैं मेरे मित्र - अमर रामटेके के साथ, वहां चला गया. और वह स्थल देखते ही, मुझे बडे जोर से झटका लगा. जहां मेरे गृह मंत्रालय के मित्र ने खाना खिलाया था, वही वह जगह थी. जहां ऑफिसर लोगों के लिये, *"दारु का क्लब"* था. जब की वह वास्तु *"हेरिटेज दर्जा"* प्राप्त होनी थी.  परंतु कांग्रेस सरकार ने उसे, दारू के क्लब में बदल दी‌ थी. मैं नागपुर आने के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री *डॉ मनमोहन सिंग* को, मेरी संघटन *"सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल"* की ओर से, एक निवेदन भेजकर वह जगह *"डॉ आंबेडकर कांस्टुट्युशन - लॉ अकादमी एंड रिसर्च सेंटर"* खोलने की मांग कर, ऑफिसर क्लब हटाने की मांग की थी. परंतु कांग्रेस सरकार ने, हमारे उस मांग पर, ध्यान नहीं दिया. और बाद में सुनने मे़ं आया कि, *नरेंद्र मोदी* सरकार ने, वह हेरिटेज वास्तु ही ढहा दिया.‌ यहां सवाल यह है कि, हमारे *"भारतीय संविधान वास्तु"* का हश्र भी, क्या हम इस तरह करे ? क्या हमारी देशभक्ती भावना मर गयी है ? भारत के देशभक्तों को बडा सवाल ???


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*डॉ. मिलिंद जीवने 'शाक्य'*

       (भारत राष्ट्रवाद समर्थक)

नागपुर, दिनांक २४ मार्च २०२४

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