Monday 18 March 2024

 🇮🇳 *हिंदुस्तान (भारत ?) इस असंविधानिक देश का नागरीक राहुल गांधी, क्या भारत की राजनीति करने के लायक नेता है ? इलेक्शन बांड (चुनावी चंदा) से लेकर ईव्हीएम मशीन तक के भारतीय राजनीति का एक सच...!*

      *डॉ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

एक्स व्हिजिटिंग प्रोफेसर, डॉ बी आर आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ महु (म.‌प्र.)

मो.न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     प्रजासत्ताक भारत के तमाम नेता *"भारत का संविधान"* बचाने की बातें करते दिखाई देते है. वही कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* इनके हर भाषण में, हमारे देश का नाम *"हिंदुस्तान"* इस असंविधानिक शब्द का प्रयोग होते हुये दिखाई देता है. उस कांग्रेसी राजकुमार राहुल गांधी को, अगर हमारे देश का संविधानिक नाम *"भारत अर्थात इंडिया"* यह ना मालुम हो तो, *वह भारत के राजनीति करने के लायक, कैसे माना जा सकता है ?* यह अहं प्रश्न है. भारत के संविधान के *आर्टिकल १* में स्पष्ट लिखा गया है कि, Name and Territory of the Union - *"India, that is Bharat, shall be a Union of States."* भारत यह *"संघ राज्य"* है. अर्थात *"राज्यों का संघ"* है.  अर्थात भारत का हर राज्य यह *"सार्वभौम "* है. दुसरी बात हमें यह भी समझना बहुत जरुरी होगा कि, *"भारत का संविधान"* यह कोई भी *"कानुनी किताब"* (Legal Book) नहीं है.‌ बल्की वह *"कानुनी दस्तावेज"* (Legal Documents) है. इस संदर्भ मे मैं, मा. सर्वोच्च न्यायालय का एक "केस लॉ" भी कोट करना चाहुंगा. *"Our Constitution, a unique document, is not a mere pedantic legal text; it embodies human values, cherished principles, and spiritual norms. It upholds the dignity of man."* (Bachan Singh vs State of Punjab A.I.R. 1982 SC 1325) अर्थात जो कोई भी व्यक्ति, हमारे देश का *संविधानिक नाम का प्रयोग ना करता हो तो,* वह देशद्रोह ही माना जाना चाहिए. *"चाहे वो व्यक्ती राहुल गांधी हो या, नरेंद्र मोदी हो या, कोई भी व्यक्ति."* इसके साथ ही *"संविधान की प्रास्ताविका"* यह हमारे भारत के संविधान का, प्रमुख उद्देश को बयान करती है. इस संदर्भ में भी, सर्वोच्च न्यायालय का एक "केस लॉ" है. *"The preamble of the Constitution mentions the main objective of the Constitution makers"* (Chief Justice Subba Rao in Golak Nath vs State of Punjab A.I.R. 1967 SC 1643) इतना ही नहीं *"भारत के संविधान"* से, कोई भी व्यक्ति ये सुप्रीम नहीं है. इस पर भी वही एक "केस लॉ" है. *"No authority created under the Constitution is Supreme."* (Golak Nath vs State of Punjab A.I.R. 1967 SC 1643) अगर यह केस लॉ निहित हो तो, चाहे वो नरेंद्र मोदी हो या, कोई भी शासन के संस्थान पदाधिकारी हो या, कोई भी नेता हो, वो हुकुमशाही आम आवाम पर, कभी नहीं लाद सकता. यही बातें,  *"भारत के चुनाव आयोग"* को भी जरुर लागु है. चुनाव आयुक्त को भारत के आवाम की आवाज को तवज्जो देना जरुरी है.

      कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* का ज्यादा तर विद्यार्थी जीवन, विदेशों में ही गुजरा है. और उसका भारतीय राजनीति में आना, यह केवल परिवार वाद का गमक रहा है. मेरा यह मानना बिलकुल ही नहीं है कि, परिवार वादी लोगो ने राजनीति नहीं करनी चाहिए...! *अगर परिवार वादी लोगों में राजकीय मेरीट हो तो, उसे भी राजनीति में करने का पुर्ण अधिकार, हमारा भारतीय संविधान देता है.* परंतु परिवार के *"गधे के हाथ में"* - देश के सत्ता की चाबी ??? कांग्रेसी पितामहा *मोहनदास करमचंद गांधी* इन्होने, भारत के गुलामी काल में, कांग्रेस का नेतृत्व किया था. वे तो परिवाद वाद से परे भी थे. सवाल वहां उनके *"राजकीय निर्णय"* का रहा है. *"द्वितीय महायुध्द"* में गांधी और कांग्रेस की भुमिका स्पष्ट नहीं थी. *"अंग्रेजो को साथ दे या हुकुमशहा हिटलर का साथ दे."* यह उनकी संदिग्धता थी. डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इन्होने सबसे पहले *"द्वितीय महायुध्द में इंग्लंड (मित्र पक्ष - अमेरिका / रशिया / चायना/ ब्रिटन) के समर्थन में, अपना समर्थन घोषित किया था."* इसके पिछे डॉ बाबासाहेब आंबेडकर तर्क भी दे गये कि, *"हुकुमशहा हिटलर का विजयी होना, यह भारत के लिये घातक होगा."* उस समय बाबासाहेब डॉ आंबेडकर को, कांग्रेसी नेताओं ने गद्दार भी कहा था. आखिर कांग्रेस को भी इंग्लंड के पक्ष में खडा होना पडा. दुसरी बात गुलाम भारत में, *"गुलाम भारत के धर्म - जाती संघर्ष (हिंदु  / मुस्लिम / अस्पृश्य) रही थी."* अस्पृश्य समुदाय हिंदु धर्म से विभिन्न समुदाय रहा है. यही कारण रहा कि, द्वितीय महायुध्द खत्म होने के बाद भी, भारत को आजादी २ - ३ साल देरी से मिली. यह विषय इसलिए रखा गया है कि, *"राहुल गांधी को हम राजनीति कितना पक्व समजते है ?"* कांग्रेस अध्यक्ष पद पर, राहुल गांधी यें असफल रहा. कांग्रेस को बांधे रखने भी, राहुल गांधी असफल रहा. केवल *"कन्याकुमारी से कश्मिर या मणीपुर से महाराष्ट्र"* इस १० हजार कि.मी. प्रवास, इस  *"भारत जोडो यात्रा"* करने से, या उसे मिली सफलता से, *क्या हमे राहुल गांधी को पक्व राजकीय नेता कहना चाहिये ???* यह भी अहं प्रश्न है. क्यौं कि, *नरेंद्र मोदी सरकार* के हुकुमशाही रवैय्ये का, भांडवलशाही व्यवस्था को तवज्जो देने का, धर्मांध राजनीति को बढावा देने का (रामजन्मभूमी आदी), सरकारी मशिनरी के दुरुपयोग करने का, मणीपुर - लद्दाख - किसान - बेरोजगार आंदोलन को न्याय ना देने का, आदी आदी कुछ कारणों से, भारत के तमाम आवाम पर, उसका विपरीत प्रभाव दिखाई देता है. और यही कारण *"राहुल गांधी के भारत जोडो यात्रा की सफलता"* के दिखाई देते है. यहां राहुल गांधी की राजकीय पक्वता कहां है ???

      भारत को आजादी मिलने के पहले, सन १९३२ का *डॉ बाबासाहेब आंबेडकर* इनका एक संदर्भ, मैं देना चाहुंगा. जो संदर्भ *कुटुंब कल्याण नियोजन"* से संबंधित है. बाबासाहेब ने *रोहन दादा* के माध्यम से, "कुटुंब कल्याण बिल" लाने का प्रयास किया था. तब गुलाम भारत के तमाम हिंदू धर्मांध नेताओं ने, उस बिल का तिव्र विरोध किया था. तब Govt. Of India Act 1858 के बाद Govt. Of India Act 1919 अस्तित्व में आया था. जो बाद में २ अगस्त १९३५ में Govt of India Act 1935 अस्तित्व में आया. यह सभी के सभी कानुन अंग्रेजो द्वारा अस्तित्व में लाये थे. भारत को आजादी मिलने के बाद, २६ जनवरी १९५० को *"भारत का संविधान"* द्वारा उसकी जगह ली. भारतीय संविधान में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर साहाब जी, *"Rights to Employment"* यह अधिकार भी लाना चाहते थें. परंतु हमारी धर्मांध संस्कृति यह अधिकार में बाधा रही, यह हमें समझना होगा. वही बाबासाहेब आंबेडकर ने *"Employment Exchange"* को उस जगह लाया था. क्या वह विभाग, आज हमारे देश में कार्यरत है ? यह बडा अहं प्रश्न है. *और राहुल गांधी हो या नरेंद्र मोदी, ये सभी नेता लोग, लाखो रोजगार देने का जुमला फेंकते नज़र आते है.* यहां सबसे बडा यह अहं प्रश्न है कि, भारत में नोकरी का खाजगीकरण किसने किया ? भारत में वैश्वीकरण किसने किया था ? भारत में नोकरी में झिरो बजेट किसने लाया ? *भारत में इव्हीएम मशीन किसने लायी है ?* आदी आदी, यह सभी तो *"कांग्रेस की देन"* है. इतना जरुर था कि, इंदिरा गांधी की सबसे बडी भुल *"आपात काल"* लाना थी. वही *"बैंको का राष्ट्रियकरण"* यह अच्छी पहल इंदिरा गांधी ने की थी. *"परंतु क्या कांग्रेस सरकार कार्यकाल में - समुचे खेती का, पुरे औद्योगीक क्षेत्रों का, मंदिरो का राष्ट्रियकरण हुआ था ?"* यह भी प्रश्न है. तो फिर बेरोजगारों के समस्या का हल, कैसे निकाला जा सकता है. *नरेंद्र मोदी सरकार* ने तो, *"भांडवलशाही व्यवस्था"* के पुरक निर्णय लेकर, तमाम सरकारी विभागों का, *"खाजगीकरण"* ही कर डाला. एयर पोर्ट / रेल्वे / बी.एस.एन.एल. ही नहीं, *संरक्षण समान गोपनीय विभागों* को भी नहीं छोडा. नरेंद्र मोदी सरकार ने, अपने *पुंजीवादी मित्रों"* को बडा अमिर और गरिब वर्ग को, अधिक गरिब बनाने की ओर पहल की है. ता कि, *"मनु काल"* की गुलामी लादी जा सके. और *"हुकुमशाही की पहाट...!!!"*  IAD cadre में बगैर परिक्षा दिए, औद्योगिक प्रतिनिधीओं कों, डायरेक्ट नियुक्ती ही कर डाली. *"मजुर कानुन"* (Labour Act) में बदलाव कर, कामगारों के सुरक्षा को रौंध डाला. *अब आने वाले नयी सरकार के सामने बडी चुनौती है.* अब हम उन चुनौती पर चर्चा करेंगे.

      आने वाली नयी सरकार - २०२४ के सामने, आने वाली चुनौती को समझने के पहले, भारत का सबसे बडा चर्चीत भ्रष्टाचार विषय - *"चुनावी चंदा"* (Election Bonds) को भी, हम समजते है. कांग्रेसी पितामहा - *मोहनदास गांधी* इनके समय से ही, *"बजाज आदी"* औद्योगीक समुह, कांग्रेस को चंदा देते रहे थे.  *नरेंद्र मोदी सरकार* ने उस *"औद्योगीक चुनावी चंदे"* को कानुनी जामा पहनाकर, *"काले धन को सफेद"* ही नहीं किया.‌ बल्की *"गोपनीय"* भी रखा है / था. आम आवाम को तो, उन काले पैसों का जानने का अधिकार नहीं दिया था. *"सिर्फ भारतीय आवाम को, केवल उन्हे मत देना है. जानने का अधिकार नहीं."* और इस औद्योगिक चुनावी चंदा प्रकरण के, *"हमाम में सभी राजनैतिक दल नंगे दिखाई देते है."* नरेंद्र मोदी सरकार *बडा नंगा"* अर्थात *"गुंडो का सरदार"* है और अन्य राजकीय दल *"छोटे नंगे"* है. इसके साथ ही, भारत सरकार की शासन विभाग - ED / CBI / IT / EC बडे सरदार के साथ है. यहां बडा सवाल *"भारत के संविधान"* को बचाने का है. तमाम औद्योगिक घराने के सामने, *'तमाम राजकिय दल नंगु ही तो है."* तो फिर *"विकास भारत"* कैसे बनेगा ??? यह अहं प्रश्न है. *भारतीय चुनाव आयोग"* (Election Commission of India) ने लोकसभा चुनावों को,  *"सात चरणों"* में लेने की, घोषणा की है. यहां प्रश्न है कि, क्या वह चुनाव *"दो / तिन / चार चरणो"* में, नहीं किया जा सकता है ??? वह बिलकुल संभव है. वही इतना लंबा समय लेने के कारण, *"इव्हीएम मशीन"* के सुरक्षा का भी प्रश्न खडा हुआ है.  *"बैलट पेपर"* पर चुनाव लेने में, अगर कालावधी ज्यादा लगता हो तो, इस *"सात चरणों"* के लंबे समय के बारे में, हम क्या करें ??? अर्थात यह चुनावी राजनीति को समझना, बहुत जरुरी है. और *"सत्ता आने के बाद, औद्योगिक घराने की बडी आव भगत / उनको बडे फायदे देना,"* यह तो परंपरा चलती रहेगी. यहां सवाल यह है कि, *"इन तमाम औद्योगिक घराने से चंदा पध्दती / बडे आव भगत"* को रोकने में, क्या हमारे तमाम राजनैतिक दल तैय्यार है ??? *संसद में कानुन बनाकर, क्या इस पर पाबंदी* लायेंगे ?????

     अब हम आने वाली चुनौती की ओर बढते है.‌ नरेंद्र मोदी सरकार ने *"भारत की अर्थव्यवस्था"* का, पुरा बंट्याधार किया है.‌ भारत पर विदेशी बैंको का भरमार कर्ज बैठे हुये है. अत: भारत का हर भारतीय विदेशी बैंको का कर्जदार है. यही नहीं भारतीय राजनैतिक दल, औद्योगिक घराने के बटिक होने के कारण, उनके दिये गये चुनावी चंदो के कारण, उन्हे लाभ देने के लिये बाध्य है. अत: हमें इस औद्योगिक चुनावी चंदो को रोकना जरुरी है. भविष्य में भारतीय चुनाव की प्रक्रिया में बदलाव लाना बहुत जरुरी है. *"हर राजकीय दलों को, चुनाव सिटों के अनुसार, शासन कोष में कुछ राशी जमा करना जरुरी होगा."* और शासन ही चुनाव में खडे उमेदवार का, उस जमा राशी से खर्च वहन करेगा. किसी भी उमेदवार को, चुनाव में अतिरिक्त पैसे खर्च करने का अधिकार नहीं होगा. भारत की *"संपूर्ण खेती का राष्ट्रियकरण कर,"* ग्राम पंचायत के मार्फत, उन तमाम खेती किसानों को, शासन की ओर से मोबदला दे. तमाम *"औद्योगिक कारखानों का राष्ट्रियकरण कराकर,"* तमाम औद्योगिक कारखानों की मालकी केवल शासन की बनाये. *"तमाम मंदिरो का राष्ट्रीयकरण कराकर,"* तमाम मंदिरो के पुजारी, ये शासन के कर्मचारी घोषित करे. अर्थात तमाम मंदिरो की संपत्ती यह राष्ट्र की संपत्ती होना जरुरी है. ता कि, उन तमाम मंदिरों के संपत्ती का उपयोग, भारत के विकास में हो. *"Employment Exchange इस विभाग मार्फत"* तमाम युवा वर्ग को, शासन की नोकरी प्रदान करे. नरेंद्र मोदी सरकार ने जो विभागों का खाजगीकरण किया है, *"वह सारे विभाग पुर्ववत शासन का हिस्सा हो."* भ्रष्टाचार रोकने के लिये, *"भ्रष्टाचार कडे कानुनों"* को बनाएं जाएं. भारत में *"जनसंख्या नियंत्रण कानुन"* बनाये जाए. भारत में *"शिक्षा का अधिकार कानुन"* (सभी प्रकार की शिक्षा मुफ्त हो ) बने एवं सभी शिक्षा संस्थाए यह सरकारी हो, भारत में *"भारतीयत्व भावना जगाना कानुन"* (देशभक्ती कानुन) भी बनाये जाए. आदी आदी, क्या हमारे तमाम राजनैतिक दल, इन तमाम चुनौती को और कार्यक्रमों को, अपने चुनावी एजेंडा में, सामिल करने के तैय्यार है ?  क्या इस प्रकार के बदलाव लाया जा सकता है ? यह प्रश्न है.

       अंत में, अभी अभी कांग्रेसी राजकुमार *राहुल गांधी* इनकी *"भारत जोडो न्याय यात्रा"* का समारोप, १७ मार्च २०२४ को, मुंबई के शिवाजी पार्क में संपन्न हुआ. उस अवसर पर कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष *मल्लिकार्जुन खरगे* / कांग्रेसी नेता *प्रियंका गांधी* / शिव सेना के राष्ट्रिय अध्यक्ष *उध्दव ठाकरे* / राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष *शरदचंद्र पवार* / वंचित बहुजन आघाडी (रिपब्लिकन नेता ?) *एड. प्रकाश आंबेडकर* / तामिलनाडु के मुख्यमंत्री तथा डीएमके नेता *एम.‌ के. स्टॅलिन* / जम्मु कश्मिर प्रदेश के माजी मुख्यमंत्री *डॉ. फारुख अब्दुल्ला - डॉ. मेहबूबा मुफ्ती* / झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इनकी पत्नी *कविता सोरेन* / बिहार के उपमुख्यमंत्री *तेजस्वी यादव* / आप दल के नेता *सौरभ भारद्वाज* / झारखंड के मुख्यमंत्री *चंपाई सोरेन* / सभी वाम आदी दलों के नेता उपस्थित थे. और उन्होंने भी अपने अपने विचार प्रकट  किये. और *"इंडिया एकता"* का एक परिचय भी कराया. परंतु वंचित आघाडी के नेता *एड. प्रकाश आंबेडकर* इनका भाषण, वैचारिक कम और सौदेबाजी का ज्यादा दिखाई दिया. *राहुल गांधी* के भाषण में, कोई खास देश विकास धोरण नहीं दिखाई दिये. हमेशा की वही रटरटाई धुन थी. वही तृणमूल काँग्रेस की राष्ट्रिय अध्यक्षा तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री *ममता बॅनर्जी* / समाजवादी दल के नेता एवं उत्तर प्रदेश के माजी मुख्यमंत्री *अखिलेश यादव* इनका ना आना, कुछ अलग ही संदेश दे गया. वही बसपा सुप्रीमो *मायावती* का "एकला चलो रे" यह राजनीति, कितनी सफल होती है, यह वक्त ही बतायेगा. मायावती इन्हे चुनाव आचार संहिता लगने के कारण, अब *"इंडिया गठबंधन"* के साथ जाने में, अब धमकी राजनीति का अब डर क्या ? यह विषय चर्चा का रहा है. वही *"एकसंघ रिपब्लिकन"* के समय कांग्रेस ने,  रिपब्लिकन दल को ४४ में सें ४ सिटें दी थी.‌ और वे चारों भी सिटें चुनकर आयी थी. अत: *प्रकाश आंबेडकर* को, वह इतिहास भी देखना होगा. और सिटों के बटवारों में मध्यम मार्ग के उपर चलना, यही आंबेडकर की राजनैतिक परिपक्वता हमें देखना है. बसपा मायावती को भी, बसपा के भविष्य के राजनीति को देखना होगा. *राहुल गांधी* इनको एक बार, *प्रति मोहनदास गांधी"* समझ भी ले, परंतु वो प्रधानमंत्री बनने के लायक राजनैतिज्ञ नहीं है, यह उसे समझना होगा. और साथ ही, *"इंडिया गठबंधन"* को भारत की नयी दिशा की ओर बढना होगा.


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नागपुर, दिनांक १९ मार्च २०२४

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