Tuesday 19 December 2023

 👌 *HWPL (H.Q.: Korea) इस विश्व स्तरीय आंतरराष्ट्रिय संघटन की ओर से, १९ दिस़बर २०२३ को झुम पर आयोजित, "विश्व शांती शिखर सम्मेलन" इस विषय पर, "आंतरधर्मीय परिसंवाद" कार्यक्रम...!*

* *डा. मिलिन्द जीवने,* अध्यक्ष - अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन, नागपुर *(बुध्दीस्ट एक्सपर्ट / फालोवर)* इन्होंने वहां पुछें दो प्रश्नों पर, इस प्रकार उत्तर दिये...!!!


* प्रश्न - १ :

* *कृपया अपने धर्म और अन्य धर्मो की शिक्षाओं के बिच दिलचस्प अंतर पेश करे.*

* उत्तर : - सिध्दार्थ गौतम ने वेद तथा दस वैदिक ऋषीयों के शास्त्र का अध्ययन किया था. वेद, वेदांग, उपनिषद इन ग्रंथ का अध्ययन, सब्बमित्त और उद्दीच्च इन विद्वानों के मार्गदर्शन मे किया था. परंतु सिध्दार्थ गौतम को उस ग्रंथ में, मानवी उत्थान के लिए कोई विशेष भाव नही दिखाया दिया. साथ ही  सिध्दार्थ गौतम को, उनके दर्शन शास्त्र में भी कुछ विशेष नही दिखायी दिया. उन ऋषीयों को सत्य को पाना था. परंतु वे अंधकार मे ही घुमते नज़र आते थे.

--------------------------------------

सिध्दार्थ गौतम ने तपस्वीयों के साथ देहदंड, आत्मक्लेश समान उग्र तपश्चर्या की थी. सिध्दार्थ ने सभी पध्दती आत्मसात की थी. परंतु सिध्दार्थ को संपुर्ण ज्ञान प्राप्त नही हुआ. इस तपश्चर्या से दु:ख का मुल और मुक्ती का मार्ग नही मिला.

--------------------------------------

सिध्दार्थ गौतम को वैदिक यज्ञात या अन्य धार्मिक विधी से, जन्म - मरण मुक्ति मिलती है, यह ब्राम्हणी कल्पना मान्य नही थी. ब्राम्हणी कर्मवाद सिध्दांत भी, बुध्द को मान्य नही था.

--------------------------------------

बुद्धत्व प्राप्त होने के बाद बुध्द ने प्रथम धम्मोपदेश दिया, उसे *"धम्म चक्र प्रवर्तन"* उपदेश कहते है. इसमें दो प्रवचन है. वह है धर्म चक्र प्रवर्तन सुत्र और अनात्मलक्षण सुत्र. 

--------------------------------------

पहिला प्रवचन *"चार आर्य सत्य"* पर है. दुसरा प्रवचन अनात्म लक्षण सुत्त मे, *अनित्य* (कोई भी बात सनातन तत्व नही है - Doctrine of Impermanence) / *दु:ख* (दु:ख का अस्तित्व - Doctrine of Suffering) / *अनात्म* (आत्मा का अस्तित्व नही है - Doctrine of nonself) इससे संबधित है. और यह उपदेश वाराणसी में पंचवर्गीय भिक्खु को दिया है.

--------------------------------------

भगवान बुध्द सत्य के उपदेशक  है. उन्होने देव इस संज्ञा को नकारा है. स्वयं को केवल मार्गदर्शक माना है. वे कहते है कि -

*"तुम्हेहि किच्चं आतप्पं, अक्खातारो तथागता |*

*पटिपन्ना पमोक्खन्ति, झायिनो मारबंधना ||"*

(अर्थात :- कार्य के लिए तुम्हे ही उद्दोग करना है. तथागत का कार्य केवल मार्ग दिखाना है. उस मार्ग पर आरूढ होकर, ध्यानमग्न होकर, मार के बंधनो से तुम्हे मुक्त होना है.

--------------------------------------

भगवान बुध्द ने पंचवर्गीय भिक्खु को आठ सम्यक मार्ग का अर्थात *"आर्य अष्टांगिक मार्ग"* का उपदेश दिया. वह आठ मार्ग है - सम्यक दृष्टी / सम्यक संकल्प / सम्यक वाणी / सम्यक कर्मान्त / सम्यक आजिविका / सम्यक व्यायाम / सम्यक स्मृति / सम्यक समाधी.

--------------------------------------

भगवान बुध्द ने ऋषीपतन में वास करते समय, अपने साठ भिक्खु संघ को उपदेश देते हुये कहा की -

*"चरथ भिक्खवे चारिकं, बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय, लोकानुकंपाय अत्थाय, हिताय, सुखाय देवमनुस्सानं, देसेत्थ भिक्खवे धम्मं, आदि कल्याणं, मज्झेकल्याणं, परियोसान कल्याणं, सात्थं सव्यंज्यनं केवल परिपुण्णं, परिसुध्दं ब्रम्हचरियं पकासेथ."*

(अर्थात :- भिक्खुओ, बहुजन के हित के लिए, बहुजन के सुख के लिए, लोगों पर अनुकंपा कर, देव और मनुष्यों के कल्याण के लिए, धम्मोपदेश प्रचार के लिए भ्रमण करो. प्रारंभ में कल्याणप्रद, मध्य में कल्याणप्रद, और अंत में कल्याणप्रद इस धम्म मार्ग का अर्थ और परिशुध्द भाव बताने के लिए,  ब्रम्हचर्य रखकर प्रचार करो.)

--------------------------------------

भगवान बुध्द जब वेळुग्राम में ठहरे थे, और उनका स्वास्थ ठिक नही था. तभी भंते आनंद बडा ही चिंतित थे. तब बुध्द ने भंते आनंद को कहा - *"अत्त दिपो भव !"* (अर्थात :- अपना दिप तुम स्वयं बनो) स्वयं को ही शरण जाना है. दुसरे अन्य को शरण जाना नही है.

--------------------------------------

तथागत बुध्द ने आत्मा सिध्दांत, देव सिध्दांत को पुर्णत: नकारा है. मानवी कल्याण का विचार दिया है. जब की अन्य धर्म आत्मा - देव सिध्दांत को मान्यता देता है.

* * * * * * * * * * * * * * * * *

* प्रश्न - २ :

*धार्मिक शिक्षाओं के बिच के अंतर को समझना क्यौ महत्वपुर्ण है, और यह एक धार्मिक अनुयायी के लिए, क्या लाभ ला सकता है ?*

* उत्तर :- हमने मेरे पहिले प्रश्न के उत्तर में, बुध्द धर्म और अन्य धर्मों की शिक्षा के अंतर को सम़झा है. और उन अन्य धर्मों से, भगवान बुध्द के विचार मेल नही खातें. अत: अन्य धर्मों के लोगों के साथ, समझौता करना बडी ही चुनौती दिखाई देती है. अत: इन दो धर्म के विचारो को समझने के लिए, हमे संशोधनात्मक अध्ययन करना, बहुत ही जरुरी है.

--------------------------------------

जब भी हम संशोधनात्मक अध्ययन करते है, तब हमे धर्म के सही विचार समझने न में, बहुत मदत मिलती है. भारत के संदर्भ में कहां जाए तो, *"मानव के गुलामी का / मानवी विचार संघर्ष का केंद्रबिंदु"* यह धर्म ही रहा है.

--------------------------------------

अत: जो धर्म *"मानव को गुलाम"* करने की सिख देता है, या *"मानव - मानव के बिच संघर्ष"* करने को चेताता हो तो, यह राष्ट्र के लिए  हो या, मानवी समुह के लिए चिंता का विषय है. और ऐसे परिस्थिती में, हम शांती स्थापित नही कर सकते. ना ही हम प्रेम से रह सकते है. अत: हमे इन दुरीयां को मिटाना बहुत ही जरुरी है.

-------------------------------------

भगवान बुध्द का *"प्रतीत्यसमुत्पाद सिध्दान्त"* यह बहुत ही महत्वपुर्ण विचार है. यह सिध्दांत विज्ञान पर आधारीत है. इस सिध्दांत को समझने के लिए -

*"इदं सति इदं होति, इदं असते इदं न होति |"*

(अर्थात: - कारण होने पर ही कार्य होता है. कारण ना होने पर, कार्य नही होता.)

-------------------------------------

*"उप्पादा वा तथागतानं निताव साधातु धर्मद्वितता धर्मनियमता इदप्पच्चयता | तं तथागत अभिसंबुज्झति अभिसंमेन्ति | अभिसं बुज्झित्वा अभिसमेन्त्वा आचिक्खाति, देसेति पस्सथाति चाह |"* (संयुक्त निकाय)

(अर्थात :- तथागत का जन्म हुआ हो या ना हो, यह जो  शक्ति, धर्म स्थिती, धर्मनियामतता, कार्यकारण परंपरा, वह है वही है. वह रहेंगी ही. उसे जानना, उस का साक्षात्कार करना, उसे लोगों को बताना, उसे लोगों को उपदेश करना, और तुम्हे भी उसे अपने प्रज्ञा से जानना है.)

--------------------------------------

अंत मे, बुध्द ने *"मानव"* संज्ञा संदर्भ मे कहा कि, 

हम आंख से वस्तु देखते है. हात से वस्तु को उठाते है. देखना और उठाना इसमे जो क्रिया चलती है, उस में मन अस्तित्व का भाव होता है.  मन के बिना उन दोनो भी क्रिया का समन्वय संभव नही होता. आत्मा का यहां कुछ भी संबंध नही है. मन और शरिर इन दोनो  संयोग से बना व्यक्तित्व है मानव. उसके बिना मनुष्य कुछ भी नही है. आत्मा यह कोई वस्तु नही है.

--------------------------------------

सृष्टी के निर्माण संबंध मे भी, बुध्द ने देव का अस्तित्व नकारते हुये कहा है कि -

*"न हेत्थ देवो ब्रम्ह संसारस्स अत्थि कारको |*

*बुध्दधम्मा पवत्तन्ति हेतुसंभारपच्चया ति |"*

(अर्थात :- यहां कोई भी विश्व का कर्ता नही है. सृष्टी के नियमानुसार अपने आप सृष्टी का चक्र शुरु रहता है.)

--------------------------------------

अर्थात बुध्द केवल सत्य को स्वीकारता है. मानवी कल्याण यह बुध्द धर्म का केंद्र है. समता, बंधुता, स्वातंत्र की बुध्द ने वकालत की है. अन्याय - अत्याचार - अशांति - हिंसा का बुध्द ने विरोध किया है.


* * * * *  * * * * * * * * * * *

* परिचय : -

* *डाॅ. मिलिन्द जीवने 'शाक्य'*

    (बौध्द - आंबेडकरी लेखक /विचारवंत / चिंतक)

* मो.न.‌ ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२

* राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी एम्प्लाई विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी ट्रायबल विंग

* राष्ट्रिय पेट्रान, सीआरपीसी वुमन क्लब

* अध्यक्ष, जागतिक बौध्द परिषद २००६ (नागपूर)

* स्वागताध्यक्ष, विश्व बौध्दमय आंतरराष्ट्रिय परिषद २०१३, २०१४, २०१५

* आयोजक, जागतिक बौध्द महिला परिषद २०१५ (नागपूर)

* अध्यक्ष, अश्वघोष बुध्दीस्ट फाऊंडेशन नागपुर

* अध्यक्ष, जीवक वेलफेयर सोसायटी

* माजी अध्यक्ष, अमृतवन लेप्रोसी रिहबिलिटेशन सेंटर, नागपूर

* अध्यक्ष, अखिल भारतीय आंबेडकरी विचार परिषद २०१७, २०२०

* आयोजक, अखिल भारतीय आंबेडकरी महिला विचार परिषद २०२०

* अध्यक्ष, डाॅ. आंबेडकर आंतरराष्ट्रिय बुध्दीस्ट मिशन

* माजी मानद प्राध्यापक, डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक संस्थान, महु (म.प्र.)

* आगामी पुस्तक प्रकाशन :

* *संविधान संस्कृती* (मराठी कविता संग्रह)

* *बुध्द पंख* (मराठी कविता संग्रह)

* *निर्वाण* (मराठी कविता संग्रह)

* *संविधान संस्कृती की ओर* (हिंदी कविता संग्रह)

* *पद मुद्रा* (हिंदी कविता संग्रह)

* *इंडियाइझम आणि डाॅ. आंबेडकर*

* *तिसरे महायुद्ध आणि डॉ. आंबेडकर*

* पत्ता : ४९४, जीवक विहार परिसर, नया नकाशा, स्वास्तिक स्कुल के पास, लष्करीबाग, नागपुर ४४००१७

No comments:

Post a Comment