Thursday 21 December 2023

 ✍️ *जातिगत जनगणना का राजनितिक विरोध ? भ्रम - नीति - वास्तव ...!!!*

* *डॉ. मिलिन्द जीवने ''शाक्य',* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी. आर. पी. सी.)

मो. न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     पिछले कुछ वर्षों सें, भारत के विभिन्न राज्यों के, *"आरक्षण विरोधी समुदायों द्वारा,"* उनके समुदायों को भी, आरक्षण देने की प्रबल मांग की जा रही है. तब मुझे बहुंत ही हंसी आती थी. और इस विषय पर लिखना, तब मुझे जरुरी भी नही लगा. परंतु अब तो, *"आरक्षण मांग का सैलाब"* ही उमट पडा है, तब मुझे इस विषय पर भी लिखना बहुत ही जरुरी लगा है. जो तबका एक समय तो *"मागासवर्गिय समाज"* को, हिनता के दृष्टी सें, अकसर देखा करता था, आरक्षण से बडी नफरत करता था, स्वयं के जात को उच्च समझता था, आरक्षण विरोध में आंदोलन करता था, मागास समाज पर अन्याय - अत्याचार - बलात्कार किया करता था, गाव से बाहर रहने को भी मजबुर करता था, आज उन्ही ही विरोधक समुदायों द्वारा, आरक्षण की यह मांग होना, और *"ये मांग होना ही नही तो, तिव्र आंदोलन"* को भी खडा करना, यह तो मजाक करने का बडा विषय है, या चिंतन का ??? अहं प्रश्न है. अत: हम *"मागासवर्गिय आरक्षण और भारतीय संविधान"* विषय को स्पर्श करते समय, *"जातिगत जनगणना"* के अंतर्गत भी चर्चा करेंगे.

      कुछ दिन पहले, मैने किसी दैनिक में, किसी तो भी ओबीसी सम्मेलन में, किसी तो भी एक ओबीसी नेता (?) ने, *"ओबीसी का आरक्षण"* यह केवल *डाॅ. पंजाबराव देशमुख* के कारण ही, मिलने का वक्तव्य दिया था. मुझे वह वक्तव्य पढकर, उस ओबीसी नेता (?) के बुध्दी पर बडी ही दया आयी. *मसुदा समिती (Drafting Committee) के अध्यक्ष डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर,* जब संविधान की रचना कर रहे थे, तब *ओबीसी नेता डाॅ. पंजाबराव देशमुख* उनसे मिलने को गये. तब डॉ. आंबेडकर साहाब ने, लिखी हुयी संविधान की प्रती डाॅ. देशमुख जी को बतायी. देशमुख जी बडे अचंबित हो उठे और आंबेडकर जी को कहने लगे कि, *"मै जो बात आप से कहने आया था, आप ने वह बात पहले ही संविधान में लिख डाली है."* दुसरा संदर्भ भी मै देना चाहुंगा. *सरदार वल्लभभाई पटेल* ने तो, ओबीसी आरक्षण पर विरोध जताया था. और कहने लगे की, यह ओबीसी समुह कौन है ? जब की सरदार पटेल भी ओबीसी समुह से आते थे. अब हम *"आर्टिकल ३४०"* पर आयेंगे. जो Appointment of a Commission to investigate the conditions of Backwards Classes से संदर्भीत है. कितने ओबीसी सांसदो ने इसके अमल के संदर्भ मे आवाज उठायी थी ? या कितने ओबीसी नेताओं आंदोलन खडे किये थे ? यह प्रश्न है

     *"भारत के संविधान"* का आर्टिकल ३४० यह तो *"ओबीसी समुदाय"* के लिए लिखा गया. उसके बाद ही आर्टिकल ३४१ यह *"अनुसुचित जाति"* के लिए, और आर्टिकल ३४२ यह *"अनुसुचित जमाति"* के लिए लिखा गया. *बाबासाहेब आंबेडकर साहाब* ने, भारत के कानुनी मंत्री पद का इस्तिफा देने का कारण, *"हिंदु कोड बिल"* पारित ना होना था ही, साथ साथ ही पहला प्रमुख कारण, *"ओबीसी के अधिकारों"* का था.‌ हिंदु कोड बिल में, *"महिलाओं को समान अधिकार"* की भी बाते कही गयी थी. *महात्मा ज्योतिबा फुले / सावित्रीबाई फुले* जी ने शिक्षा की पहिली निवं रखी थी. इस कारणवश, उन्हे अपने घर को विदा भी करना पडा. गोबर की मार झेलनी पडी. अब सवाल है कि, कितनी *"ओबीसी / ब्राम्हण महिलाएं"* उनको अपना आदर्श मानती है. उनका फोटो अपने घर पर रखती है, या उसे पुजती है. उनके घर में, दुनिया भर के *"देवी - देवताएं"* होगी. उनके द्वारा उनका कौनसा उत्थान हुआ है ? क्या वह हमे बतायेंगे. भारत भर में सबसे जादा पुतले *डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जी* के फोडे गये. मागासवर्गिय समुदायों पर, अन्याय - अत्याचार - बलात्कार करनेवाले कौन लोग है ? कितने *ब्राम्हण समुह* इस प्रकरण में लिप्त पाये जाते है ? यह भी तो प्रश्न है.

     अब हम *"भारत की जनगणना"* इस इतिहास विषय पर आयेंगे. *सन १९३१ मे भारत की जनगणना* हुयी थी. उसके बाद *सन १९४१* मे भी वह हुयी थी. परंतु जनगणना के आकडे घोषित नही किये गये. वह कालखंड अंग्रेज सत्ता का रहा था. जनगणना आकडे घोषित ना होने का कारण, तत्कालिन जनगणना आयुक्त *एम. डब्लु. एम. यीट्स* ने *"पुरे देश का जाति आधारित टेबल"* ना बना होना बताया था. अंग्रेज यह काम के पक्के, वक्त के बडे पक्के, अनुशासन प्रिय, तथा जादा भ्रष्टाचारी नही थे. अत: यह कारण हजम नही हो सकता. सन १९३१ का कालखंड *"गोलमेज परिषद"* का तथा सन १९४१ का कालखंड *"द्वितिय महायुद्ध"* का था. दुसरी बात यह कि, वे भारत के उच्च समुदाय दुखाना भी नही चाहते थे. फिर कौनसी राजनीति होंगी कि, जनगणना के आकडे घोषित ना किये गये ? यह संशोधन का विषय है. भारत १५ अगस्त १९४७ को *"आजाद"* और २६ जनवरी १९५० को, *"प्रजासत्ताक"* हो गया. संविधान में मागास आरक्षण की व्यवस्था की गयी. सन १९५१ की जनगणना यह केवल *"अनुसुचित जाती / जनजाति"* की हुयी थी. अर्थात अंग्रेजों के जनगणना पध्दती को बदला गया. सन १९५३ मे, मागासवर्ग आरक्षण के लिए, *"काका कालेलकर आयोग"* बना था. परंतु आरक्षण यह *"जातिगत हो या आर्थिक"* इस विषय पर, नीतिगत निर्णय नही लिया गया. वह आयोग भी सन १९३१ के जनगणना पर ही निर्भर था. उसके बाद सन १९९० मे, *"मंडल कमीशन"* ने, सन १९३१ के जनगणना के आधार पर ही, *"५२% आरक्षण हिस्सेदारी"* मानी थी. और मंडल आयोग की घोषणा सन १९८० में हुयी थी. उसके बाद सन २००६ मे *"मंडल पार्ट २"* शुरु हो गया. महत्वपुर्ण विषय यह कि, सन १९५१ से २०११ तक जनगणना यह केवल, *"अनुसुचित जाति / जनजाति"* तक सिमित रखी गयी. ओबीसी और अन्य सभी जातियों को डाटा छुपाया गया. अर्थात *"ओबीसी समुह"* की राजनीति  ???

     *बिहार राज्य के जातिगत जनगणना"* ने, समुचे भारत में जातिगत जनगणना की बडी लहर दौड पडी है. बिहार के जातिगत जनगणना आधार पर, ओबीसी का प्रतिशत २७.१२% / अति पिछडा वर्ग का प्रतिशत ३६% / अनुसुचित जाती वर्ग का प्रतिशत १९.६५% / अनुसुचित जनजाति प्रतिशत १.६८% / तथाकथित अगडी जाति वर्ग का प्रतिशत १५.५२% / यादव का प्रतिशत १४% / भुमीहार वर्ग का प्रतिशत २.८६% / राजपुत का प्रतिशत ३.४५% / ब्राम्हण वर्ग का प्रतिशत ३.६६% / कुर्मी का प्रतिशत २.८७% / मुसहार का प्रतिशत ३% / तेली का प्रतिशत २.८१% / मल्लाह का प्रतिशत २.६०% बताया गया है. और हमारे भारतीय राजनीति ने अलग करवट ली है. अभी अभी *"राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ"* के विदर्भ प्रांत के संचालक *श्रीधर गाडगे"* ने, *"जातिगत जनगणना"* को विरोध जताया. इसके पिछे की राजनीती भी हमे समझनी होगी. बिहार के जातिगत जनगणना को, मा. पटना उच्च न्यायालय में आवाहन दिया गया. बात कुछ जमी नही. अब सर्वोच्च न्यायालय की ओर रुख होने की चर्चा है.

      सन १९३१ के जनगणना के आधार पर ही, भारत मे अनुसुचित जाती (SC) वर्ग का आरक्षण प्रतिशत १५% / अनुसुचित (ST) जनजाती को ७.५% / ओबीसी  को २७% / *कुल मागासवर्ग आरक्षण ४९.५%* दिया गया है. महत्वपुर्ण विषय यह कि, वह मागासवर्गिय आरक्षण भी, आज तक कभी पुरा भरा नही गया. कुछ ना कुछ तो बहाना कर, उसे रोक दिया गया. और *५१.५% यह आरक्षण तो खुले वर्गों* के लिए है, यह कहे तो अतिशयोक्ति नही होगी. और वह *मागासवर्गिय आरक्षण ५०% के उपर* गया तो, संविधान विरोधी मान कर, *न्यायालय में आवाहन* दिया जाता है. बिहार राज्य के जातिगत जनगणना ने, यह सारे गणित को ही हिला डाला है. अगर जातिगत जनगणना हुयी तो, समस्त भारत में *उच्च जाति / सवर्ण वर्ग की कुल आबादी १५%* होगी या नही, यह भी बडा प्रश्न है. वही *आर्थिक आधार पर १०% उन्हे आरक्षण"* दिया गया है, जो संविधान विरोधी है. भारतीय संविधान से, *"जातिगत आरक्षण"* को मान्यता मिली है. क्या इस १०% आर्थिक आरक्षण को, न्यायालय में आवाहन दिया गया है ? यह भी प्रश्न है. वही सचिव इस (IAS Rank) पद पर भी, *भांडवलशाही प्रतिनिधी* को, डायरेक्ट नियुक्ति दी गयी है, जो संविधान विरोधी विषय है‌. क्या इसे भी न्यायालय में आवाहन दिया गया है ? वह भांडवलशाही प्रतिनिधी, क्या हमारे अधिकारों की रक्षा करेगा ? यह भी प्रश्न है. भारत के प्रधानमन्त्री *नरेंद्र मोदी* की जाति *"मोढ़ घांची (तेली)"* है. क्या गुजरात राज्य के मुल यादी में, वह जाति ओबीसी में सम्मिलित थी ? क्या नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनने पर, उसे ओबीसी मे सम्मिलित किया गया है ? अगर वह जाति इस तरह सम्मिलित की जाती हो तो, और कौन कौनसे जाति को, *"मागासवर्गिय अनुसुचित वर्ग"* (Shedule) में, सम्मिलित किया जाए ? तो फिर *मागासवर्ग आरक्षण की मर्यादा (८५%),* क्यौ ना बढायी जाए ? यह बहुत सारे प्रश्न है. हमारे भारत सरकार ने तमाम *"नोकरीयों का खाजगीकरण / शिक्षा का खाजगीकरण / Deemed University - CBSC समान और कुछ अभ्यासक्रम निर्माण"* करने से, *नयी शिक्षा नीति ?* अभी तो *"मागासवर्गिय आरक्षण"* कहा रहा है ? खाजगी क्षेत्र में मागासवर्ग आरक्षण की व्यवस्था नही है. केवल और केवल *"राजकिय आरक्षण"* दिखाई ही देता है.

        डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब जी ने, *"संविधान सभा"* (संसद नही) में २६ नवंबर १९४९ को, अपने भाषण में कहांं कि, *"On 26th January 1950, we are going to enter into life of contradictions. In politics we will have equality and in Social and economic life, we will inequality. In politics we will be recognizing the principle of one man one vote one value. In social and economic life, we shall, by reason of our social and economic structure, continue to deny the principle of one man one vote one value. How long shall we continue to live this life of contradictions?"* बाबासाहेब आंबेडकर की यह वेदना, केवल महार वर्ग के लिए थी ? समस्त भारत के आवाम के लिए नही थी ? यह अहं प्रश्न है. बाबासाहेब आंबेडकर साहाब जी को जाने / समझे बिना, भारत में उनके पुतलें को फोडा गया. उन पर क्या क्या आरोप लगाये गये ? यह सभी उपद्रव करनेवाली आवाम कौन है ? कितने ब्राम्हण वर्ग का इसमे जुडा होना दिखाई देता है ? *"राम - कृष्ण"* इन *"अब्राम्हण देवों"* के निर्माण की कथा, क्यौं रची गयी है ? क्या उन मंदिरो पर, ओबीसी का अधिपत्य रहा है ? हम केवल *"देववाद / धर्मांधवाद"* के झमेले में उलझे पडे है. और सामाजिक - आर्थिक - मानसिक गुलामी लादने का षडयंत्र, भारत में चल रहा है. कोई भी न्यायालय हमारी अपनी नही है. वह तो *"सवर्ण न्यायालय"* बन गयी है. *"ब्युरोक्रासी"* भी हमारी कहा हैं ? *"राजनीति / सत्तानीति"* मे भी, अब हम गुलामी झेल रहे है. हम केवल अंजान है. कल की गुलामी हमारे सामने खडी है. जरा सोंचो...!!! इस दास्तान पर, मेरे कविता की दो पंक्तियां निकल पडी - *"हम तो निकल पडे थे, प्रेम के सच्चे राहों पर | दुश्मनों के षडयंत्र के, हम शिकार हो चले ||"*


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नागपुर, दिनांक २१ डिसेंबर २०२३

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