Saturday 16 September 2023

 🇮🇳 *इंडिया बनाम भारत इस विवाद से देश गद्दारी का प्राचिन इतिहास क्या मिट जाएगा ?* इस द्वंद्व राजनीति से क्या भारत में प्रेम - मैत्री - शांती - बंधुता आएगी ???

  *डॉ.  मिलिन्द जीवने 'शाक्य'* नागपुर १७

राष्ट्रिय अध्यक्ष, सिव्हिल राईट्स प्रोटेक्शन सेल (सी.आर.पी.सी.)

मो.‌न. ९३७०९८४१३८, ९२२५२२६९२२


     चक्रवर्ती सम्राट अशोक का *"प्राचिन अखंड - विशाल - विकास भारत"* को, गुलामी की दासता में ढकलनेवाले, भारत को खंड खंड करनेवाले, प्राचिन विकसित भारत को *"अविकसित भारत"* बनानेवाले कौन है ? इस विषय पर आज संशोधन होना जरुरी है. *बिन-अकल, अनपढ राजनीति* का थोपा गया कोई भी निर्णय, यह भारत में अशांती - उद्वेग का प्रमुख कारण बनेगा. कांग्रेसी पितामह - मोहनदास गांधी हो या राजनितिज्ञ (?) - भर्तुहरी  हो या, संघवादी - सुदर्शन इन्होने तो, *"भारत की राजनीति को वेश्यालय"* कहा है. और वह सच्चाई आज हमे दिखाई भी दे रही है. अत: भारत के इन नेताओं को, *"राज नेता"* कहने के बदले, *"वेश्या"* कहना ही सबसे ठिक रहेगा. और यह *"विशेषण उनके नाम के पिछे"* लगाकर, उनकी पहचान देनी होगी. जैसे - *नरेंद्र मोदी 'वेश्या' / राहुल गांधी 'वेश्या'* आदी आदी. *"बुध्द का भारत, आज युध्द का भारत"* बन गया है. चक्रवर्ती सम्राट अशोक के काल को, भारत का स्वर्णमय युग कहा जाता है.  *"इंडिया बनाम भारत विवाद"* ने, भारत मे अशांती के बीज बोये जा रहे है. अत: *"भारत या इंडिया"* का प्राचिन सच्चा इतिहास समझने के लिए, हमे *"सिंध संस्कृति"* या *"हडप्पा संस्कृति"* की ओर जाना होगा.

    सिंध संस्कृति कहे या *"हडप्पा संस्कृति"* का कालखंड इ. पु. ३३०० - २६०० माना जाता है. उसके पहले *"पुर्व हडप्पा संस्कृति या नव पाषाण युग या ताम्र पाषाण युग"* (इ. पु. ७५७०- ३३००) कहा जाता है. *"परिपक्व हडप्पा संस्कृति या मध्य कास्यं युग"* का कालखंड इ. पु. २६०० - १९०० माना जाता है. सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था. *"इण्डस नदी"* के किनारे बसनेवाली वह उच्च सभ्यता थी. भौगोलिक उच्चारण विभिन्नता के कारण इण्डस को सिंधु कहने लगे. कुछ इतिहासकार उस नदी को *"अन्दुस"* भी कहते है. पुरातत्व विभाग के महानिदेशक *जॉन मार्शल* ने, सन १९२४ में अन्दुस पर तिन ग्रंथ लिखने का इतिहास है. *ब्रिटिश काल* में हुये खुदाई के कारण, कुछ पुरातत्ववेत्ता वर्ग एवं इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया है कि, *"प्राचिन सिंधु सभ्यता,इसह अत्यंत विकसित सभ्यता रही थी. अनेक शहर उजडे गये और बसे भी गये."* सिंधु संस्कृति ८००० साल पुरानी मानी जाती है. एक और महत्वपूर्ण बात यह कि, *लार्ड कनिंघम* द्वारा ही सन १८५६ में, इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया था. और सन १८६१ में, *लार्ड एलेक्झांडर कनिंघम* इनके निर्देशन मे ही, *"भारतीय पुरातत्व विभाग" (Archeology Survey of India)* की स्थापना हुयी थी. *"प्राचिनतम भारत की खोज"* यह ब्रिटिशों की देन है...! दुसरे सही शब्दों में कहा जाएं तो, *"यह गोरे अंग्रेजो की देन है, काले अंग्रेजों की देन नहीं...!* 

     अब हम *"वैदिक काल‌"* (कालखंड इ. पु.‌ १५००- ५०० माना जाता है) की ओर हम बढते है. तथा *"प्राचिन भारत"* (?) का कालखंड इ. पु.‌ १२०० - २४० माना गया है. *"महाजनपद से मगध साम्राज्य"* का कालखंड यह इ. पु.‌ १२०० -३०० रहा है. *"सातवाहन साम्राज्य से मौर्य साम्राज्य"* का कालखंड यह इ. पु. ३२१ - १८४ का रहा है. जो *"बौध्द साम्राज्य"* का काल रहा है. *"चक्रवर्ती सम्राट अशोक"* का युग भी कह सकते है. यह सभी कालखंड बताने का कारण यह कि, *"हिंदु धर्म / सनातन धर्म"* का प्राचिन इतिहास हमें नही दिखाई देता. *"अयस = लोह"* का उद्गम हडप्पा संस्कृति में दिखाई नही देता. *स्वर्ण* आदी धातुओं का उद्गम भी..! अब सवाल यह है कि, *ब्रम्हा* ने सृष्टी का निर्माण किया है,  तो वो कैसे ? यह प्रश्न है. *"सृष्टी की उत्पति के समय"* मानव जाति कभी थी ही नही. *"मानव का निर्माण"* यह आखरी की स्टेज है. उस समय *"मानव नंगा रहता* था. तो फिर *"ब्रम्हा, विष्णु, महेश"* यह *कपडेधारी पहने* हुये देव लोक तथा *स्वर्णादी* अलंकार धारक *"सरस्वति"* आदी देवीयों का होना, प्रश्न खडा करता है. क्यौं कि, *"स्वर्ण आदी धातु तथा कपडों का शोध तब लगा ही नही था."* तब का युग यह *"पाषाण युग"* (पत्थर पर) था. और *"लिपी"* तब अस्तित्व में ही नही थी. *"शिलालेख"* का निर्माण चक्रवर्ती सम्राट अशोक की देन है. *"वैदिक काल से बुध्द काल तक"* मौखिक परंपरा विद्यमान थी. तो फिर *"चार वेदों का निर्माण"* ???? (लिखित) यह बडा अहं प्रश्न है. पेपर का शोध भी नही था. *"प्राचिन पर्णपत्र"* का कोई लिपी प्रमाण, वैदिक काल का आज तक कोई शोध नही मिला.

      अब हम ब्राम्हण महर्षी व्यास लिखित *"महाभारत"* तथा महर्षी वाल्मिकी लिखित *"रामायण"* की ओर बढते है. सबसे पहले हमे यह समझना होगा कि, *"महाभारत / रामायण यह कोई धर्मग्रंथ नही है. बल्कि वे महाकाव्य है."* व्यास और वाल्मिकी इन कवि की, वो एक कल्पना है. वहां के पात्र यह केवल *कवि के नायक पात्र* है. उन्हे देव का स्वरुप कैसे आया है ? यह संशोधन का विषय है. यह सभी *"बुध्द काल के बाद"* का लिखाण है. वही *कवि कालिदास"* की *"दुष्यंत शाकुंतल"* यह नाट्य रचना भी कोई प्रारंभ नही है. कवि कालिदास के पहले तो, *भदंत - महाकवि अश्वघोष* यह आचार्य / आद्य नाटककार / संगितकार इतिहास में होकर गये है. यह सभी इतिहास बताने का कारण यह कि, *"भारत देश का नाम भरत नामक व्यक्ति / राजा से पडा है."* यह हमे बताया गया है. *भरत* भी इतिहास के दो पात्र है. *श्रीमदभागवत* ग्रंथ के एक श्लोक (५/७/३) मे लिखा है कि -

*"अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति |"*

(अर्थात - जैन के ऋषभदेव स्वयंभु मनु से पाचवी पीढी में, इस क्रम मे हुये, स्वयंभु मनु, प्रियवत, अग्निघ्र, नाभी फिर ऋषभ. राजा ऋषभदेव के दो पुत्र है - *भरत और बाहुबली......*) इसका प्रमाण अग्निपुराण, मार्केण्डय पुराण और भक्तमाल इस ग्रंथ मे होने की बात बतायी गयी है. दुसरा उल्लेख *राजा दुष्यंत - शाकुंन्तल* का पुत्र *"भरत"* से, *"भारत"* यह देश का नाम पडा है, यह भी एक कथन है. *"भरत"* (भारत नही) शब्द का अर्थ - *"भरण पोषण करनेवाला, प्रजा को पालनेवाला"* बताया जाता है.

      *"ब्रम्हा के मानव निर्माण"* (?) पर कई सवाल उठते है. तो फिर *"भारत - इंडिया"* नामकरण पर सवाल उठना लाजमी है. यही कारण है कि, घटनाकारों ने, इस विवाद को खत्म कर, विचारपुर्वक / शांती स्थापन हेतु भारत के संविधान में, आर्टिकल १ अंतर्गत *"India, that is Bharat"* लिखा है. और हमारे बिन-अकल और अनपढ़ नेता लोग, इस विषय पर अशांती फैला रहे है. घटीया राजनीति कर रहे है. *"विश्व का पहिला आदि मानव - होमो इरेक्टस"* यह दो लाख वर्ष पहले, *आफ्रिका* मे होने की बात कही जाती है. *"होमो इरेक्टस"* का मतलब है - *इमानदार आदमी.* वही भारत के मध्य प्रदेश की *"नर्मदा घाटी"* में, सन १९८८ में "जिओलॉजिकल सर्व्हे ऑफ इंडिया" (GSI) के भुवैज्ञानिक *डॉ. अरुण सोनकिया* जी इन्होने ७०,००० साल पुर्व आदि मानव का *(नर्मदा मैन* यह नाम उसे दिया है) शोध भी हुआ है. जो की होमो इरेक्टस श्रेणी का है. आज का मानव *"होमो स्पाईन्स"* (मेधावी मानव) प्रजाती का कहा जाता है. मुझे स्वयं *"नर्मदा मैन स्कल"* को छुने का अवसर भी मिला है. इस विषय पर फिर कभी लिखुंगा. यहां सवाल आदि मानव पर भी उठ रहे है. वही सवाल *"पृथ्वी निर्माण"* पर भी है. इस पर चर्चा फिर कभी.

      जब हम *"बुध्द काल"* की ओर बढते जाते है, तब *"तिब्बती बौध्द संस्कृति"* के *"मंजुश्रीमुलकल्प"* में, शिक्षाओं का संदर्भ आता है.‌ *"वज्रयान या तांत्रिक बौध्द धर्म"* का जिक्र हमें दिखाई देता है.‌ यह उतनी ही सत्यता है कि, बुध्द के समय में *"महायान, हिनयान, वज्रयान / तंत्रयान"* यह तिन संप्रदाय विद्यमान नही थे. यह सभी बुध्द के महापरिनिर्वाण के बाद की उपज है. तिब्बती बौध्द संस्कृति में, *"मंजुश्री"* को *"ज्ञान का बोधिसत्व"* कहा जाता है. अर्थात शिक्षाओं का प्रारंभ मंजुश्री से ही माना जाता है. वही भारत में कुछ संप्रदाय *"सरस्वती"* को विद्या की देवी कहते है. *"ब्राम्हणी धर्म"* में बहुतसे तत्व, बुध्द से चुराये हुये दिखाई देते है. जैसे - मोहनदास गांधी ने *"तिन बंदर"* (बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो) यह बुध्द धर्म से लिया है. परंतु वहां नाम गांधी का ही लगा है. इस विषय पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे. हां, तिब्बति संस्कृति में, बुध्द को *"भरत"* यह नाम भी दिया गया है. और कुछ विद्वान (?) तो, बुध्द के नाम कारण ही, *"भारत देश"* नामकरण होने की बातें करते है. अत: हमे *"पुर्व वैदिक काल, वैदिक काल, प्राचिन भारत काल, बुध्द काल"* की ओर जाना पडेगा.‌ वही *"सिंध संस्कृति"* के *"इंण्डस - अन्दुस"* नदी की ओर बढने से, *"इंडिया"* का उद्गम दिखाई देता है. बौध्द संस्कृति में, भारत का नाम *"जम्बुद्विप"* का उल्लेख हमें दिखाई देता है. इस संदर्भ में पाली भाषा की *"बुध्दपुजा"* एक गाथा है - 

*"बुध्दं धम्मं च संघं सुगततनुभवा धातवो धातुगब्भे | लंकायं जम्बुदीपे तिदसपुरवरे नागलोके च धूपे ||"* (अर्थात - बुध्द, धम्म तथा संघ एवं श्रीलंका, जम्बुद्विप, नागलोक और त्रिदिसपुर में स्थित स्तुपों में, भगवान बुध्द के‌ शरिर के जितने भी अवशेष स्थापित है, उन सबको मै प्रणाम करता हुं.)

       *"इंडिया"* इस शब्द का विरोध करते हुये, एक याचिकाकर्ता द्वारा, *मा. सर्वोच्च न्यायालय* में याचिका दायर की थी. *प्रधान न्यायामुर्ती शरद बोबडे* की अध्यक्षतेवाली तिन बेंचवाली एक पीठ ने, इस याचिका को पुर्ण खारीज करते हुये, इसकी दखल लेनेसे इंकार किया था. याचिकाकर्ता ने *"इंडिया"* यह शब्द ग्रीक शब्द *"इंण्डिका"* से आने की बात कही थी. वही नरेंद्र मोदी सरकार इसे *"अंग्रेजों के गुलामी"* का प्रतिक मान रही है. अब इन अज्ञानी नेताओं के बुध्दी को, क्या कहे ? *"भारत राष्ट्रवाद मंत्रालय एवं संचालनालय"* यह देशभक्ति जगाने की दिशा में, उनका ख्याल नही है. ‌ना ही बजेट में कोई प्रावधान किया गया. भारत का राष्ट्रगान - *"जन गन मन अधिनायक जय हे, भारत भाग्य विधाता. .."* यह अंग्रेज शासकों की दासता का गीत है. हम आजादी के ७५ साल बाद भी, वह गीत गाते जा रहे. अंग्रेजों को हमारा *"भाग्य विधाता"* मान रहे है.  वही *"वंदे मातरम्..."*  यह गीत भी, *"भारत माता"* के लिए नही रचा गया. वह गीत *"दुर्गा देवी"* के सुंदरता की महिमा के लिखा गया. अब तक हम हमारा देशभक्ति राष्ट्रगान नही बना पाये. इससे शर्म की बात, और क्या हो सकती है. आज भी *"शोषित"* समुह पर, स्त्री वर्ग पर अत्याचार - बलात्कार हो रहा है. भाषावाद, प्रांतवाद, संप्रदायवाद, जातीवाद, धर्मवाद आदी कें अंतर्युध्द चल रहे है.‌ *"प्रेम - मैत्री - बंधुता"* इस बुध्द भाव से, हम दुर जा चुके है.‌ महंगाई - भ्रष्टाचार का बोलबाला है. इस ओर भारत सरकार का ख्याल नही है. और *"नफरत की राजनीति"* को बढावा दिया जा रहा है. किसे हम अब अपना कहे ? यह अहं प्रश्न है. *"धोका देना, गद्दारी करना"* अब यह फैशन बन गयी है. कोरीया के *"विश्व शांती शिखर परिषद"* में, सहभाग लेने जाते समय मेरे *"हवाई प्रवास"* में, मिल गये उचित समय में, इससे दुसरा उचित विषय नही हो सकता....!!!!


* * * * * * * * * * * * * * * *  कोरीया के हवाई प्रवास में,  दिनांक १६ सितंबर २०२३

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